tag:blogger.com,1999:blog-2884095429375378267.post7853432761903283342..comments2023-09-03T03:32:57.985-07:00Comments on अविराम: अविराम विस्तारितउमेश महादोषीhttp://www.blogger.com/profile/17022330427080722584noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2884095429375378267.post-45504998561869892472011-11-23T06:24:03.988-08:002011-11-23T06:24:03.988-08:00मंजु मिश्रा की सभी क्षणीकाएँ नई परिकल्पना से सराबो...मंजु मिश्रा की सभी क्षणीकाएँ नई परिकल्पना से सराबोर हैं । इन क्षणीकाओं की गहनता तो इस विधा को महत्त्व दिलाने में सहायक होगी-<br />1.<br />मेरी ख्वाहिशों ने<br />रिश्ते जोड़ लिए आसमानों से<br />उगा लिए हैं पंख<br />और उड़ने लगी हैं हवाओं में<br />अब तो बस !<br />ख़ुदा ही ख़ैर करे !<br />XX<br />!दरख्तों ने तो<br />अपनी<br />प्यास के पैगाम भेजे थे<br />मगर सूखी हुई नदियाँ,<br />भला करतीं तो क्या करतींसहज साहित्यhttps://www.blogger.com/profile/09750848593343499254noreply@blogger.com