आपका परिचय

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

सामग्री एवं सम्पादकीय पृष्ठ : दिसंबर २०११


अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०४, दिसंबर २०११ 


रेखांकन : डॉ. सुरेन्द्र  वर्मा 
प्रधान संपादिका : मध्यमा गुप्ता
संपादक : डॉ. उमेश महादोषी 
संपादन परामर्श : डॉ. सुरेश सपन  
फोन : ०९४१२८४२४६७ एवं ०९०४५४३७१४२ 
ई मेल : aviramsahityaki@gmail.com 


।।सामग्री।।
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अविराम विस्तारित :


काव्य रचनाएँ  {कविता अनवरत} :  इस अंक में  रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु',  कृष्ण सुकुमार, महेश चंद्र पुनेठा,अलीहसन मकरैंडिया, कमल कपूर, ओम प्रकाश श्रीवास्तव अडिग, सुभान अली ‘रघुनाथपुरी’, डॉ. नसीम अख़्तर, डा. ए. कीर्तिवर्द्धन एवं अमित कुमार लाडी की काव्य रचनाएँ। 


लघुकथाएं   {कथा प्रवाह} :  इस अंक में  डॉ. सतीश दुबे, युगल, राजेन्द्र परदेशी, दिनेश चन्द्र दुबे, सन्तोष सुपेकर, गोवर्धन यादव, अंकु श्री, सीताराम गुप्ता, अनिल द्विवेदी ‘तपन’ एवं शिव प्रसाद ‘कमल’की लघुकथाएं। 


कहानी {कथा कहानी इस अंक में शशिभूषण बडोनी की कहानी


क्षणिकाएं  {क्षणिकाएँ इस अंक में रतन चन्द्र रत्नेश,  महावीर रवांल्टा एवं  सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’ की क्षणिकाएं


हाइकु व सम्बंधित विधाएं  {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ}  :  इस अंक में देवेन्द्र नारायणदास एवं डॉ. गौरीशंकर श्रीवास्तव ‘पथिक’ के पाँच-पाँच हाइकु तथा  दिलबाग विर्क के  चार तांका।


जनक व अन्य सम्बंधित छंद  {जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द:  इस अंक में  पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’ व कुँ. शिवभूषण सिंह गौतम के जनक छंद। 


व्यंग्य रचनाएँ  {व्यंग्य वाण:  इस अंक में कृष्णलता यादव का व्यंग्यालेख


संभावना  {सम्भावना इस अंक में नए हस्ताक्षर देशपाल सिंह सेंगर  की प्रस्तुति उनकी एक  लघुकथा के साथ 


किताबें   {किताबें} : डॉ. ब्रह्मजीत गौतम की पुस्तक 'दोहा-मुक्तक-माल' की परिचयात्मक समीक्षा डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया 'अराज' द्वारा  


लघु पत्रिकाएं   {लघु पत्रिकाएँ} : 'हरिगंधा' के लघुकथा विशेषांक एवं 'मोमदीप' लघु पत्रिका पर डॉ. उमेश महादोषी की समीक्षात्मक/परिचयात्मक 


गतिविधियाँ   {गतिविधियाँ} : पिछले माह प्राप्त साहित्यिक गतिविधियों की सूचनाएं/समाचार


अविराम के अंक  {अविराम के अंक} : अविराम के मुद्रित प्रारूप के दिसंबर २०११ अंक में प्राप्त सामग्री की जानकारी।


अविराम के रचनाकार  {अविराम के रचनाकार} : अविराम के तीस और रचनाकारों का परिचय।





।।मेरा पन्ना/उमेश महादोषी।।
  • ब्लाग का यह अंक कुछ विलम्ब से वर्ष 2011 की विदाई की वेला में आ रहा है। इस वर्ष ने हमें काफी कुछ दिया। नतीजे चाहे जो रहे, पर अन्ना के साथ देश की आवाज एक सही और जरूरी मुद्दे पर साथ दिखाई दी। क्षणिक ही सही, जनता ने देश के नेतृत्व को एक चुनौती दी। यह सही है कि हमारा राजनैतिक नेतृत्व अव्वल दर्जे का ढीठ है, और आसानी से अपना चरित्र बदलने वाला नहीं है, पर यह भी निश्चित है कि जनता को रास्ता दिख गया है और नेतृत्व नहीं चेता, तो जनता का गुस्सा कभी भी भयंकर परिणति में बदल सकता है। दोस्तो यह एक ऐसा दौर है, जब रचनाकार के रूप में हमारी जिम्मवारी भी अहम् हो जाती है। हमें अपनी लेखनी से समाज को दिशा दिखानी है, लोगों की ऊर्जा को बढ़ानी है। इसके बिना हम अपना धर्म नहीं निभा पायेंगे। सही मायनों में वर्ष 2011 हम देशवासियों को ऐसी ऊर्जा देकर गया है, जो देश और समाज का भविष्य तय करेगी। 
  • धन्यवाद विदा ले रहे हमारे मार्गदर्शक! हमारे सहगामी! हमारे मित्र! हमारे संरक्षक! हमारे समय! हम जानते हैं अगला वर्ष भी तुम्हारा ही दूसरा कदम है। तुम्हीं हो जो हमारे लिए एक नई ऊर्जा की प्रेरणा लेकर हर नए क्षण में हमारे लिए नया अहसास बनकर आते हो। नया वर्ष भी तुम्हीं होगे, तुम्हीं होगे, जो हमारे कन्धों पर हाथ रखकर साथ चलते हुए हमें एक अलग स्फूर्ति से भर दोगे। स्वागत है मित्र तुम्हारा 2012 के रूप में। हम जानते हैं तुम्हारे तमाम मार्गदर्शन के बावजूद हमारे बहुत से पिछले संकल्प अभी अधूरे हैं, पर तुम्हारी दी ऊर्जा के साथ हम नई चुनौतियाँ के साथ उन तमाम संकल्पों को भी पूरा करेंगे। नए क्षणों, नए समय के रूप में तुम आओ, तुम्हारा स्वागत है! स्वागत है! स्वागत है!
  • दोस्तो नए वर्ष के साथ ही आपकी पत्रिका अविराम, पंजीकृत रूप में ‘अविराम साहित्यिकी’ के नाम से आयेगी। एक लम्बी उड़ान की तैयारी करनी है। प्रसार संख्या को बढ़ाना है। लघु पत्रिकाओं की प्रसार संख्या भी सामान्यतः लघु ही बनी रहती है। हमने धीरे-धीरे विगत दो वर्षों में लगभग दो गुने लोगों तक अविराम को पहुँचाया है। सदस्य संख्या चाहे जो रहे, अगला अंक हर हाल में एक हजार से ज्यादा मित्रों तक पहुँचेगा। आगामी तीन-चार वर्षों में हम एक ओर जहाँ ‘अविराम साहित्यिकी’ के मुद्रित प्रारूप को देश के हर कोने तक, हर नए-पुराने साहित्याकार/साहित्य प्रेमी तक पहुँचाना चाहते हैं, वहीं इसकी पृष्ठ संख्या को भी धीरे-धीरे बढ़ाना चाहते हैं। इसके लिए हम पाठक मित्रों के साथ भी थोड़ी आर्थिक साझेदारी अपेक्षा कर रहे हैं। इसलिए अविराम साहित्यिकी का वार्षिक सहयोग राशि रु. 60/- एवं आजीवन सहयोग रु. 750/- निर्धारित की है। आशा है आप सब पत्रिका का आर्थिक आधार मजबूत करने में सहयोग करेंगे। फिलहाल आर्थिक सहयोग धनादेश द्वारा ही ‘श्रीमती मध्यमा गुप्ता, प्रधान सम्पादिका: अविराम साहित्यिकी, एफ-488/2, गली संख्या 11, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला-हरिद्वार (उत्तराखण्ड)’ के पते पर भेजें। पत्रिका का बैंक में खाता खुलने तक (जिसकी सूचना हम पाठकों को दे देंगे) कृपया चैक/ड्राफ्ट न भेजें।
  • अविराम साहित्यिकी का पहला अंक (जनवरी-मार्च 2012 अंक) फरवरी के मध्य तक लाने का प्रयास रहेगा। इसके बाद मई(अप्रैल-जून अंक), अगस्त (जुलाई-सितम्बर अंक) और नवम्बर (अक्टूबर-दिसम्बर अंक) में नियमित रूप से आते रहेंगे। जिन मित्रों ने अविराम का मुद्रित संस्करण नहीं देखा है, वे अपना पता हमें भेज दें, हम निःशुल्क नमूना प्रति आपको उपलब्ध करवा देंगे। हाँ, फिलहाल भारत से बाहर मुद्रित प्रति भेजना हमारे लिए सम्भव नहीं है। विदेश में रह रहे मित्र अपने भारत के पते पर मुद्रित प्रति भेजने की इच्छा जाहिर करेंगे तो हम अवश्य भेज सकेंगे।
  • जो मित्र इस ब्लाग के समर्थक/सदस्य बने हैं, उनमें से जो लेखन से जुड़े हुए हैं, उनकी रचनाएँ प्राप्त कर हमें खुशी होगी। मुद्रित एवं ब्लाग दोनों ही प्रारूपों में स्थान देने का प्रयास किया जायेगा। आप अपनी साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के समाचार भी भेज सकते हैं। जो मित्र रेखांकन एवं फोटोग्राफी में रुचि रखते हैं, अपने बनाए रेखांकन एवं दृश्य छाया चित्र भी भेज सकते है। प्रकाशनार्थ सामग्री भेजने के लिए आर्थिक सहयोग करना कोई वाध्यता नहीं है। हाँ, रचनाओं के स्तर का अवश्य ध्यान रखें। आर्थिक सहयोग पूरी तरह स्वैच्छिक है। एक बार में अपनी चार-पाँच प्रतिनिधि रचनाएँ परिचय एवं फोटो सहित भेजना अधिक अच्छा होगा।
  • सभी मित्रों को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएँ।


अविराम विस्तारित


अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०४, दिसंबर २०११ 


।।कविता अनवरत।।


सामग्री : रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु',  कृष्ण सुकुमार, महेश चंद्र पुनेठा,अलीहसन मकरैंडिया, कमल कपूर, ओम प्रकाश श्रीवास्तव अडिग, सुभान अली ‘रघुनाथपुरी’, डॉ. नसीम अख़्तर, डा. ए. कीर्तिवर्द्धन एवं अमित कुमार लाडी की काव्य रचनाएँ।



रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’



दोहे

बाती कौए, ले उड़े, चील पी गई तेल ।
बाज देश में खेलते, लुकाछिपी का खेल ।।1।।            


बिना खाद पानी बढ़ा, नभ तक भ्रष्टाचार ।
सदाचार का खोदकर, फेंका खर-पतवार ।। 2।।


रेखांकन : राजेंद्र  परदेशी 
जनता का जीना हुआ, दो पल भी दुश्वार ।
गर्दन उनके हाथ में, जिनके हाथ कटार ।।3।।


ऊँची-ऊँची कुर्सियाँ, लिपटे काले नाग ।
डँसने पर बचना नहीं, भाग सके तो भाग ।। 4।।

  • 37-बी/02, रोहिणी, सेक्टर-17, नई दिल्ली-110089 


कृष्ण सुकुमार


ग़ज़ल 


बचा कर आग इक ऐसी मैं अपने में निहां रखूं
मुसलसल अपने भीतर प्यास का दरिया रवां रखूं


छुपाना चाहता हूँ दर्द से इस जिस्म को लेकिन
परिंदा फिर ठिकाना ढूंढ़ लेता है, कहाँ रखूं


दरोदीवार से रखूं बना कर दूरियां इतनी
कि अपने घर को गोया खुला इक आस्मां रखूं


इधर मैं हूँ उधर पड़ता है मेरे जिस्म का साया
रेखांकन : हिना 
सफ़र में साथ अपने सिर्फ इतना कारवां रखूं


हज़ारों ख़्वाब मेरे कारवां में साथ चलते हैं
अकेलेपन से मैं ख़ुद को बचाने का गुमां रखूं

  • 193/7, सोलानी कुंज, भा. प्रौ. सं., रुड़की-247667, जिला-हरिद्वार (उ.प्र.)




महेश चंद्र पुनेठा



दो  कवितायेँ   

1. प्रार्थना 


विपत्तियों से घिरे आदमी का
जब
नहीं रहा होगा नियंत्रण
परिस्थितियों पर
रेखांकन : शशिभूषण बडोनी

फूटी होगी
उसके कंठ से पहली प्रार्थना
विपत्तियों से उसे
बचा पायी हो या नहीं प्रार्थना
पर विपत्तियों ने
अवश्य बचा लिया प्रार्थना को।


2.  गमक 


फोड़-फाड़ कर बड़े-बड़े ढेले 
टीप-टाप कर जुलके 
बैठी है वह पाँव पसार 
अपने उभरे पेट की तरह 
चिकने लग रहे खेत पर 
फेर रही है 
हल्के -हल्के हाथ 


ढॉप रही है ऊपर तल में 
रह चुके बीजों को 
रेखांकन : नरेश उदास 


फिर जाँचती है 
धड़कन
अपने उभरे पेट में हाथ धर 
गमक रही है औरत 
गमक रहा है खेत 
दोनों को देख 
गमक रहा है एक कवि ।
  • संपर्क: जोशी भवन निकट लीड बैंक  जिला-पिथौरागढ़ 262530(उत्तराखंड) 



अलीहसन मकरैंडिया






सीना ताने खड़ा सेतु 


1.
सुनामी से रक्षा हेतु, सीना ताने खड़ा सेतु,
       टूट जाय इतिहास, ऐसा मत कीजिए!
विजय का प्रतीक है, पुरा वास्तु कला-चिह्न,
       धरोहर राम की अनौखी बचा लीजिए!
वानर-सेना समान, एकजुट तानें तान,
       घूँट अपमान का न चुप रह पीजिए!
करके जो ईश-निंदा, नहीं हुए शरमिंदा,
       संविधान अनुसार, दंड उन्हें दीजिए!
2.
रामसेतु सागर में, विश्व-हित साधक है,
       थाम लेता सीने पे ही सिन्धु के उफान को!
प्रभु राम के चरित्र की मिसाल है विशाल,
       दुनियां से जिसने मिटाया था शैतान को!
द्रश्य छाया चित्र : अभिशक्ति 
धरम-मर्यादा की विखंडता को रोका और
       आपदा-प्रचंड से बचाया जग-प्राण को!
रामजी के निन्दक तू मुख में लगाम डाल,
       सौ-सौ बार सोच फिर खोलना जुबान को!
3.
अत्याचारी दानव, जो मानवों में मिल गये,
       कंटक कठोर हैं वे सज्जन-सलाह में!
दुराग्रही और पापी लोग हैं अनीशवादी,
       विश्व का विनाश इष्ट उनकी कुचाह में!
सत्य के विरोधी हैं मुरीद भ्रष्टाचार के वे,
       निन्दक निगोड़े रत जुल्म की ही राह में!
कहते ‘हसन अली’, औरों की है कब चली,
        उनके बढ़ावे से फरेबी हैं पनाह में!

  • बी-410, एन.टी.पी.सी. टाउनशिप, डाक-विद्युतनगर, जिला-गौतमबुद्धनगर-201008 (उ.प्र.)




कमल कपूर




आओ सहेली!.....




हम बरसों बाद मिली हैं, कर लें आ जी खोल कर बातें
आओं सहेली! आज करें हम मिलजुल अच्छी-अच्छी बातें


गुज़रे कल को दोहराएँ हम करके बचपन वाली बातें
गुड़िया गिट्टे कंच, छुपन-छुपाई की वो बातें
कॉलेज वाली अमराई की, मीठी प्यारी नटखट बातें
चूरन इमली और अंबियों से सनी हुई वो खट्टी बातें
आओं सहेली! आज करें हम......................।।1।।


गृहस्थी के पचड़ों को छोड़ें, करे किताबों की हम बातें
‘धरमवीर’ के सुधा और चंदर, ‘शरत’ के देवदास की बातें
‘नीरज’ के मीठे नग्मों की, ‘बच्चन’ के गीतों की बातें
‘महादेवी’ की ‘दीप शिखा’ की, ‘प्रसाद’ की ‘कामायनी’ की बातें
मुक्त छंद ‘निराला’ के गुन लें, करें ‘वासंती परी’ की बातें
आओं सहेली! आज करें हम ....................।।2।।


पतझर की हम बात करें न, करें बहारों की हम बातें
मस्त फिज़ाओं, भीगी हवाओं, बरखा और जाड़ों की बातें
बहके-बहके मौसम वाली महकी-महकी मीठी बातें
रोग, गमों, झगड़ों को छोड़ें, खुशियों की ही करें हम बातें
मन में घोलें मधु और मिश्री, छेड़ें मधुर-मनाहर बातें
आओं सहेली! आज करें हम......................।।3।।


आशाओं से खुद को जोड़ें, छोड़ निराशा की हम बातें
उम्मीदों से भरी सुहानी, करें हम प्रीत-प्रेम की बातें
नयनों से न नीर बहाएँ, करें खुशी से हँसती बातें 
दर्द, पीर और मौत को भूलें, करें ‘ज़िन्दगी’ की हम बातें
हम आज हैं संग, कल जाने कहाँ! करें सिर्फ हम बातें-बातें
रेखांकन : नरेश उदास 
आओं सहेली! आज करें हम ........................।।4।।



  • 2144/9, फरीदाबाद-121006 (हरियाणा)




ओम प्रकाश श्रीवास्तव अडिग




गीत अपने प्यार के गाओ


घाटियों में फिर चलो! आओ
गीत अपने प्यार के गाओ।


देव की महती कृपा होगी,
जो हरीती है मरुस्थल में।
शेष बस अनुगूँज रहती है,
जो घटाया शब्द ने पल में
पर्वतों पर रास्ते ऐसे
बने हैं, तुम चले जाओ।। गीत....


सृष्टि कैसी घूमती मन में, 
याद का विस्तार है होना।
प्राप्ति का भ्रम जी रहा ऐसे,
स्वप्न में आकाश का खोना।
शाम को जब है मुरझ जाना,
द्रश्य छाया चित्र : अभिशक्ति 
धूप में बन फूल मुस्काओ।। गीत....


झिलमिलाती दीप की वाती
भी सितारों की तरह होती।
प्यार की ही यह कहानी है,
आँख का आँसू हुआ मोती।
श्वांस में यूं  प्राण को भरकर,
फिर सुबह की भांति हरषाओ।। गीत....

  • गीतायन, 454, रोशनगंज, शाहजहाँपुर-242001(उ.प्र.)


सुभान अली ‘रघुनाथपुरी’

खामोशी है दिल की जबाँ

मेरे ये नग़मे अब मेरी आवाज़ में अच्छे नहीं लगते,
और कि नये सुर पुराने साज़ में अच्छे नहीं लगते।


वही ख़्वाहिशें दिल में अब भी हैं जो कभी पहले थीं,
अब वे ख़्वाहिशी परिन्दे परवाज़ में अच्छे नहीं लगते।


मेरे सनम पहले तुम्हीं सुना दो मुझे अपने सारे नगमे,
मेरे ये बेअसर नग़में यूँ आग़ाज़ में अच्छे नहीं लगते।


रखो कुछ अपने चाहने वाले की नज़रों का लिहाज,
इतने नख़रे किसी नज़र नवाज़ में अच्छे नहीं लगते।


जब भी बोलें अल्फ़ाज़ की दिलकश ख़शबू उड़े हरसू,
तज़किरे कभी तल्ख़ अल्फाज़ में अच्छे नहीं लगते।


रेखांकन : किशोर श्रीवास्तव 
राज़ अपने दोस्त के न खोलें गैर से कभी भी यारो,
राज़ खोलने के गुनाह हमराज़ में अच्छे नहीं लगते।


बुजुर्गी में कभी किसी से, ज़ियादह न बोलना यारो,
लफ्ज़ों के ये शग़ल उम्रदराज़ में अच्छे नहीं लगते।


जवानी में जु़बाँ और बुजुर्गी में ख़ामोशी बोलती है,
ज़ज़्बात दिखाने, दीगर अन्दाज़ में अच्छे नहीं लगते।
  • हिण्डन विहार, ग़ाज़ियाबाद-03


डॉ. नसीम अख़्तर


ग़ज़ल


मेरा  सब्र   यूँ   आज़माने लगा।
सितम*1 पर सितम मुझपे करने लगा।


तेरे सामने जबसे जाने लगा
सुकूने दिलो जान*2 पाने लगा।


द्रश्य छाया चित्र : पूनम गुप्ता 
मैं जब घर से बाहर निकलने लगा
ज़माने का अन्दाज़ आने लगा।


वो सरतापा*3 ख़श्बू, वो गुल पैरहन*4
मेरी आत्मा में उतरने लगा।


‘नसीम’ उसके ऐबो हुनर*5 खुल गये
वो हर रोज़ जब पास आने लगा।


*1अत्याचार      *2हृदय और आत्मा की शान्ति
*3सिर से पैर तक    *4लिबास   * 5बुराई-अच्छाई
  • जे- 4/59, हंस तले, वाराणसी-221001 (उ.प्र.)


डा. ए. कीर्तिवर्द्धन




आइना 
हम नहीं जानते
आप क्या चाहते हैं?
वास्तव में
देश को आगे बढ़ाना
अथवा 
राजनीति की 
वैसाखी के सहारे
अपने लक्ष्य को पाना।
एक सत्य है 
सभी जानते हैं
जो लोग
दूसरों के कन्धों पर
चढ़कर जाते हैं
अपने पैरों वो
द्रश्य छाया चित्र : अभिशक्ति 
कभी नहीं
चल पाते हैं।
इतिहास गवाह है
राष्ट्र निर्माण का
उत्थान का
अवसान का।
आम आदमी की
भागेदारी
जब-जब बढ़ी है
राष्ट्र अस्मिता 
परवान चढ़ी है।

  • 53, महालक्ष्मी एंक्लेव, जानसठ रोड, मुजफ्फरनगर-251001 (उ0प्र0)


अमित कुमार लाडी


कई बार


कई बार मुझे
अपने आप से ही
डर लगता है,
कई बार
अपना व्यवहार ही
बर्बर लगता है,
कई बार तो
अपना सुन्दर सा घर ही
द्रश्य छाया चित्र : पूनम गुप्ता 
मुझे खंडहर सा लगता है
और कई बार
अपना होना भी
एक खबर सा लगता है
‘लाडी’ क्या कहे अब
किस्मत का खेल भी
झूठा सा लगता है।

  • मुख्य सम्पादक, आलराउँड मासिक, डोडां स्ट्रीट, फ़रीदकोट-151203 (पंजाब)

अविराम विस्तारित


अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०४, दिसंबर २०११ 


।।कथा प्रवाह।।  


सामग्री :  डॉ. सतीश दुबे, युगल, राजेन्द्र परदेशी, दिनेश चन्द्र दुबे, सन्तोष सुपेकर, गोवर्धन यादव, अंकु श्री, सीताराम गुप्ता, अनिल द्विवेदी ‘तपन’ एवं शिव प्रसाद ‘कमल’की लघुकथाएं। 

डॉ. सतीश दुबे 






{लघुकथा पर डॉ. सतीश दुबे साहब की वृहत पुस्तक ‘बूँद से समुद्र तक’ इसी वर्ष प्रकाशित हुई है। इस पुस्तक में उनकी विगत तीन वर्षों के दौरान लिखी गई 104 लघुकथाओं के साथ 1974 में प्रकाशित उनके लघुकथा संग्रह ‘सिसकता उजास’ से 18 लघुकथाएँ श्री सूर्यकान्त नागर की समीक्षात्मक टिप्पणी सहित एवं 1965-66 में प्रकाशित 12 लघुकथाएँ साथ ही लघुकथा के विभिन्न पक्षों पर प्रश्न संवाद सहित लघुकथा के दस समकालीन समालोचकों-सृजनधर्मियों द्वारा उनके रचनात्मक अवदान को रेखांकित करते आलेख   संग्रहीत हैं। इस महत्वपूर्ण पुस्तक से प्रस्तुत है उनकी एक लघुकथा- ‘रिश्ताई नेहबंध’}


रिश्ताई नेहबंध
   एक विस्तृत परिसर में उसने कार खड़ी कर दी। पत्नी अपनी मनमर्जी से खरीद-फरोख्त के लिए दुकानों की ओर निकल गई तथा वह बाहर की ओर पैर फैलाकर आसपास का नजारा देखने लगा। अचानक उसकी निगाह बन्दर के सर्कसी करतब दिखाते हुए मदारी की ओर स्थिर हो गई।
रेखांकन : हिना  
   खेल समाप्त होने पर तमाशबीनों से रुपया-पैसा बटोरकर इधर-उधर देखते हुए मदारी उस तक पहुँच गया। झुककर कोर्निश करने के बाद उसने बंदर को सलाम करने का आदेश दिया। मन्तव्य समझकर न जाने क्यों उसने पर्स में से बीस रुपये का नोट निकालकर उसकी ओर बढ़ा दिया।
   ‘‘बड़े साब यह तो बहुत ज्यादा हैं।’’
   ‘‘रख लो, दस तुम्हारे दस बंदर के।....सोचा भी नहीं था कि यह खेल इस जमाने में देखने को मिलेगा...।’’
   ‘‘बड़े साब, यह खेल रामजी के टेम से चला आ रहा है। बालक राम जी के दर्शन कराने बालक हनुमानजी को शंकरजी मदारी बनकर ले गये थे और दोनों ने मदारी-बंदर का खेल बताकर रामजी के दर्शन किए। पिताजी से सीखे इस खेल से पेले घर चलता था अब मजदूरी के बाद शाम को इसको लेकर निकल जाते हैं, कुछ मिले तो ठीक नी मिले तो ठीक।’’
   ‘‘इस वनवासी को फिर छोड़ क्यों नहीं देते...?’’
   ‘‘साब इसके गले का यह रस्सा फंदा नहीं, प्रेम की डोर है। एक बार जादा खटपट होने पर बेटे और इसको घर से निकाल दिया। क्या बताऊँ आपको चार दिन बाद खटखट सुनकर दरवाजा खोला तो देखा ये मारुति आया बैठा है।’’ कहते-कहते मदारी जोरों से हंसा और हंसते-हंसते ‘‘बड़े साब निकाला गया बेटा तो घर नहीं आया पर ये आ गया।’’ कहते हुए उसकी आँखें नम हो गई।
   इसी बीच एकाएक ‘‘खिक्ख....खिक्ख’’ आवाज सुन मदारी ने बंदर की ओर हंसकर देखा और कहा- ’’नाराज मत हो, नहीं कहता बस...साब ये कह रहा है कि घर की बातें दुनिया के सामने क्यों कर रहे हैं? चलूं साब नहीं तो ये लबूरने लगेगा।’’ मदारी ने मुस्कुराते हुए उसकी ओर देखा तथा बंदर के गले की नेह डोर थामकर डुगडुगी बजाता हुआ सामने की ओर निकल गया।



  • 766, सुदामा नगर, इन्दौर-452009 (म.प्र.)




युगल









{अभी हाल में युगल जी का सन् 2005 में प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘गर्म रेत’ पढ़ने का सुअवसर मिला। इस संग्रह में तीन खण्डों- जलते पांव, मरुधार एवं काक-वाक   में विभक्त उनकी ९९ लघुकथाएं संग्रहीत हैं प्रस्तुत है इसी संग्रह से उनकी एक लघुकथा- ‘ईमान’}

ईमान
   टैक्सी स्टैण्ड पर टैक्सी रोककर टैक्सी वाले ने बताया- ‘अट्ठारह-अट्ठारह रुपये हुए बाबू जी!’
रेखांकन : डॉ.  सुरेन्द्र वर्मा 
   टैक्सी में हम लोग  पाँच आदमी थे। मैंने बीस का नोट टैक्सी वाले को दिया। वह और लोगों से रुपये लेने लगा। अंत में उसने एक बीस का, एक दस का और एक दो का नोट मेरी ओर बढ़ाया। ड्राइवर ने मेरे बीस के नोट को शायद पचास का समझ लिया था। क्या मैं इसे रख लूँ? मैंने अपनी बेखयाली दिखलाते हुए वे नोट अपनी जेब में डाल लिये और आगे कदम बढ़ाया। मेरे पाँव बढ़ रहे थे और मेरी अन्तरात्मा मुझसे कह रही थी- तू एक गरीब की भूल का नाजायज फायदा उठा रहा है। तू सिर्फ दो रुपये का हकदार है। लौटा दे उसके तीस रुपये। लौटा दे....लौटा दे।
   मेरे पाँव लौटे। एक टैक्सी वहाँ खड़ी थी। टैक्सी ड्राइवर को देखकर मेरे मन ने पूछा- क्या यह वही टैक्सी ड्राइवर है? टैक्सी तो इसी रंग की थी- नीचे काली, ऊपर पीली। मैं पिछली सीट पर बैठा था। ड्राइवर को बहुत गौर से नहीं देखा था। हो सकता है, यह वही ड्राइवर हो। मैंने पूछा- ‘अभी रर्जारी से पाँच सवारियों को लेकर तुम्हीं आये थे?’
   ‘क्यों? क्या बात है?’
   ‘गलती से मुझे तीस रुपये ज्यादा दे दिये गये थे।’
   ‘हाँ साहब, उजलत में मुझसे अक्सर ऐसा हो जाता है आये दिन। साहब, आप-जैसों को देखकर कहना पड़ता है कि सतयुग का कोई एक पाँव अब भी इस धरती पर जरूर अड़ा है!’
   ड्राइवर के बढ़े हाथ पर मैंने तीस रुपये रख दिये।
   मैं अगले मोड़ पर मुड़ा, तो एक खड़ी टैक्सी के ड्राइवर को देखकर लगा- अरे! असल में तो यही चेहरा था। मैंने पूछा- ‘‘अभी पन्द्रह मिनट पहले रजौरी से तुम्हीं आये थे?’
   ‘जी हाँ, पाँच पैसेंजरों को लेकर। क्यों?...गाड़ी में तो कुछ नहीं था साहब! होता, तो मैं पुकार कर दे देता!’ ड्राइवर बोला।
   ‘बात यह है कि...’ मैं पूरा बोल नहीं सका। सोचता रहा, अब वह टैक्सी वाला कहाँ मिलेगा?



  • मोहीउद्दीन नगर, समस्तीपुर-848501 (बिहार)


राजेन्द्र परदेशी






जंगलीपन
   बहुत दिनो बाद गाँव जाना हुआ था, वापसी में गाँव के पास स्थित रेलवे स्टेशन पर बचपन के एक मित्र से भेंट हो गई। पुरानी यादें ताजा हो उठीं, गले लगकर कुछ पलों के लिए वह एक-दूसरे में खो गये। फिर व्यक्तिगत चर्चा होने लगी- बहुत दिनों बाद दिखाई पड़े, कहाँ रह रहे हो?
   ‘दिल्ली में एक कम्पनी में काम करता हूँ...छुट्टी मिलती नहीं...कहीं आना-जाना नहीं हो पाता।’
   ‘फिर कैसे आये?’
   ‘बापू को ले जाने के लिए, उन्हें डाक्टर को दिखाना है।’
   ‘उन्हें क्या हो गया है?’
   ‘पैरों में सूजन, चलने-फिरने में परेशानी।’
   ‘अब कैसे हैं?’
रेखांकन : राजेंद्र परदेशी 
   ‘काफी आराम है....पहले चलते समय पैर लड़खड़ाते थे, अब तो ठीक से चल लेते हैं...इसीलिए सोचता हूँ कि एक बार फिर डाक्टर को दिखा दूँ।’
   ‘बापू हैं कहाँ?’
   ‘वहाँ- सामने किसी से बतिया रहे हैं।’
   ‘इन्हें अपने पास क्यों नहीं रखते...खेती तो अब इनसे होती नहीं....वहीं तुम्हारे साथ आराम से रहें।’
   ‘कई बार ले जा चुका हूँ...लेकिन यह रहते कहाँ हैं। दो-चार दिन बीते नहीं कि गाँव लौटने की जिद्द करने लगते हैं।’
    ‘इन्हें तुम्हारे पास अच्छा नहीं लगता होगा।’
   ‘इनके लिए लिए रंगीन टी.वी. लगवा दिया हूँ। कमरे में ए.सी. भी लगा है, फिर भी मन नहीं लगता इनका वहाँ।’
   ‘फिर क्या बात है?’
   ‘कहते हैं दम घुटता है। अपनी जमीन से जुड़कर मन बाग में घूमने को और चौपाल पर बैठकर बतियाने को करता है। कुएँ से चार बाल्टी पानी खींचने का अलग ही आनंद है....सुख-सुविधा छोड़ यदि उन्हें यही जंगलीपन पसंद है तो मैं क्या करूँ?’
   शहरी मानसिकता की आवाज सुन मित्र आवाक रह गया।



  • भारतीय पब्लिक अकादमी, चांदन रोड, फरीदी नगर, लखनऊ-226015 (उ.प्र.)

दिनेश चन्द्र दुबे




   ग्रीटिंग्स


    आखिरी ग्रीटिंग कार्ड उठाकर जब पिता उस पर नाम-पता लिखने लगे तो बेटी एकदम अड़ गई। ‘नहीं पापा, यह अंतिम कार्ड बचा है। इसे मैं भैया को भेजूँगी। वह इतनी दूर पदस्थ है कि उसे देखने का तरस जाती हूँ।
   इस बार उसके द्वारा जबरन कार्ड, पिता के हाथ से खींचने लगने पर वे झल्ला गये।
द्रश्य छाया चित्र : उमेश महादोषी 
   ‘तू क्या समझे अभी दुनियांदारी। जरा सी तो है। जानती समझती कुछ हैं नहीं। यह कीमती कार्ड है। इसे अपने जिलाधिकारी को भेज रहा हूँ। प्रमोशन ड्यू है इस साल। भैया को भेजकर क्या मिल जायेगा? जन्मजात रिश्ता तो बदलने से रहा। याद आती है तो ले यह पोस्टकार्ड लिख डाल। इसी आठ आने के पोस्टकार्ड में बधाई और सन्देश भी। तेरे पास मोबाइल भी तो है।’
   और बेटी को पोस्टकार्ड पकड़ा कर वे खूबसूरत और कीमती ग्रीटिंग कार्ड पर टिकिट चिपका कर जिलाधिकारी का नाम-पता रंगीन पैन से लिखने में व्यस्त हो गये।
   बेटी हक्की-बकी सी रिश्तों की हकीकत पर पिता को देखती रही थी।

  • 68, विनय नगर-1, ग्वालियर-12 (म.प्र.)


सन्तोष सुपेकर






आत्मग्लानि
रेखांकन : डॉ.  सुरेन्द्र वर्मा 


    स्कूटर स्टार्ट हो गया और मैं तेजी से मुहल्ले से निकल गया। ‘‘बाल-बाल बचे...... और उससे भी बड़ी बात, आज की छुट्टी बची, शाम को चला जाऊँगा, बैठने......।’’ बड़बड़ाते हुए मैं जब दफ्तर के लिये निकल रहा था तो सड़क के उस पार मुहल्ले के बुजुर्ग दुकानदार, बाबूजी को चार-छः लोग रिक्शे में डालकर अस्पताल ले जा रहे थे। बाबूजी की आँखें बन्द थीं, चेहरा सफेद पड़ चुका था और परिवार के लोग बुक्का फाड़कर रो रहे थे........।
    रात को देरी से जब मैं बाबूजी के यहाँ ‘‘बैठने’’ पहुँचा तो देखकर चौंक गया.....बाबूजी दुकान पर ही बिस्तर लगाकर लेटे हुए थे, ‘‘आओ बेटा’’ मुझे देखकर वे उठ बैठे, ‘‘तुम जैसे लोगों के समय पर अस्पताल ले जाने की वजह से ही मेरी जान बच गई। सचमुच मुझे तो सारा मुहल्ला मेरा परिवार ही लगता है.......।’’
    अचकचाकर मैं पीछे हटा तो दुकान पर रखा एक खाली ड्रम लुढ़क गया। ‘‘क्या गिरा?’’ बाबूजी ने पूछा। ‘‘मैं गिरा’’ जैसे मैंने अपने आपसे कहा, ‘‘और वह भी, पहाड़ की चोटी से.....।’’ 

  • 31, सुदामानगर, उज्जैन-456001 (म.प्र.) 




गोवर्धन यादव


दस्तूर
 
रेखांकन : डॉ.  सुरेन्द्र वर्मा  
विकराल बाढ़ के हस्ताक्षर अभी पूरी तरह सूख भी नहीं पाये थे कि सूखे ने आदमी के गाल पर दनादन चाटें जड़ दिए। जिधर भी नजर जाती वीरानी ही वीरानी नजर आती। पानी को लेकर त्राहि-त्रहि सी मच गई थी। इस आपदा से निपटने के लिये कई सरकारी योजनाओं की घोषणा की गईं, लेकिन तत्काल कोई कारगर व्यवस्था नहीं बन पायी।
    एक ज्योतिषी ने अपना पोथा खोलते हुए बतलाया कि पुराने जमाने में राजा-महाराजा किसान बन कर हल चलाया करते थे, तब जाकर वर्षा का योग बनता था। अब राजा महाराजाओं का जमाना तो रहा नहीं, यदि कोई शीर्षस्थ नेता हल चला कर यह दस्तूर  करे तो निःसन्देह बरिश हो सकती है।
   एक नियत समय पर एक नेता को हल चलाकर दस्तूर करना था। खेत के चारों ओर लोग खड़े होकर अपने नेता को हल चलते हुए देखना चाहते थे। जयघोष के साथ नेताजी का प्रवेश हुआ और उन्होंने आगे बढ़कर हल की मूठ पकड़कर बैलों को आगे बढ्ने का इशारा किया। हल की फ़ाल जैसे ही जमीन में दबी पड़ी हड्डी से टकराई, एक आवाज आयी- ‘कौन है कम्बखत, जो हमें मरने के बाद भी चौन से सोने नहीं दे रहा है।’  
  • 103, कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा-480001 (म.प्र.)


अंकु श्री


लाभ

   ‘‘पहले तो तुम जनेऊ नहीं पहना करते थे? यह कबसे पहनने लगे?’’
   ‘‘हाँ! इधर पहनने लगा हूँ।’’
   ‘‘लेकिन क्यो?’’
   ‘‘इससे मुझे बहुत लाभ हुआ है।’’
द्रश्य छाया चित्र : उमेश महादोषी  
   ‘‘जनेऊ से लाभ? तुम शायद आध्यात्मिक लाभ की बात कर रहे हो?’’
   ‘‘नहीं; इससे मुझे सामाजिक और आर्थिक लाभ हुआ है।’’
   ‘‘वह कैसे?’’
   ‘‘जबसे मैं जनेऊ पहनने लगा हूँ, लोग मुझ पर अधिक विश्वास करने लगे हैं।’’
   ‘‘अच्छा!’’
   ‘‘हां! लोगों का विश्वास प्राप्त करने से मुझे अपने व्यवसाय में विशेष लाभ हुआ है।’’
   सामने बस स्टैण्ड की ओर से आ रहे एक यात्री को देखकर दोनों चुप हो गये। यात्री जब कुछ आगे बढ़ गया तो एक ने कहा, ‘‘लगता है, मोटा आसामी है?’’
   ‘‘हां, लगता तो है!’’
  ‘‘इससे तुम्हीं निपट लो, तुम्हारा जनेऊ शायद यहां भी कारगर हो जाये। मैं दूसरा यात्री तलाशता हूँ।’’
   दोनों अलग-अलग दिशाओं में चले गये।

  • सी/204, लोअर हिनू, रांची-834002 



सीताराम गुप्ता






मिज़ाजपुर्सी 


   मैं जैसे ही घर पहुँचा तो पता चला कि मेरे पीछे से माँ की तबियत बहुत ख़राब हो गई थी। आज ही कुछ ठीक हुई है। मैं एक हफ्ते के लिए बाहर गया था। छत्तीसगढ़ के दूर-दराज़ एक गाँव में सम्पर्क का कोई साधन नहीं था, जिससे मुझे माँ की बीमारी के बारे में पता चल जाता, वो भी आज से पन्द्रह साल पहले। आज तो गाँवों में भी घर-घर टेलीफोन लग गए हैं। यदि उस दूर जंगल के एक गाँव में सूचना मिल भी जाए तो वहाँ बैठा आदमी कर भी क्या सकता है। दिल्ली तक पहुँचने में दो दिन का समय लग जाता है और तब तक कुछ भी हो सकता है। ख़ैर! माँ को ठीक-ठाक देखकर तसल्ली हुई।
द्रश्य छाया चित्र : रामेश्वर कम्बोज हिमांशु   
   मैं नहा-धोकर खाना खाने बैठा ही था कि मामा जी आ पहुँचे। आते ही मुझसे पूछा ‘‘अजय, छत्तीसगढ़ में तो सब ठीक है?’’ मैंने कहा छत्तीसगढ़ में तो सब ठीक हैं पर आपको कैसे पता चला कि मैं छत्तीसगढ़ गया था? कहने लगे, ‘‘यहाँ से फोन गया था। महेश ने बताया था कि माँ की तबियत ठीक नहीं है, बीमार हैं और भाई छत्तीसगढ़ गया है।’’ ’’अच्छा तो आप मेरे पीछे भी आ चुके हैं माँ से मिलने’’ मैंने कहा।
   ‘‘नहीं तेरे पीछे तो नहीं आया। सोचा तू छत्तीसगढ़ से आ जायेगा, तभी आऊँगा। तुझसे भी मिल लूँगा। रोज़-रोज़ आना सम्भव नहीं होता। तीन-चार दिन की ही तो बात थी। मुझे पता चल गया था कि तेरी गाड़ी आज बारह बजे पहुँचने वाली है, इसीलिए अब चार बजे आया हूँ।’’ इतना कहकर मामा जी ने अत्यन्त आत्मविश्वास के साथ मेरी ओर देखते हुए पूछा, ‘‘अच्छा बता बिल्कुल सही समय पर आया हूँ न?’’ फिर जैसे उन्हें एकाएक कुछ याद आ गया हो इस अन्दाज में पूछने लगे, ‘‘अब तेरी माँ की तबियत कैसी है?’’ डॉक्टर ने क्या कहा है?’’
   ‘‘मैं आया हूँ, जब से माँ सो रही हैं। अभी उठेंगी तो पूछकर बताता हूँ कि तबियत कैसी है?’’ इतना कहकर मैं माँ को देखने पुनः उनके कमरे की ओर चल दिया।

  •  ए.डी.-106-सी, पीतमपुरा, दिल्ली-110034



अनिल द्विवेदी ‘तपन’








सॉरी मम्मी


सुशील बंटे! यहाँ बैठे क्या कर रहे हो?
पाठ याद कर रहा हूँ, मम्मी...! 
कौन सा पाठ याद कर रहे हो, मैं भी जानूँ...! रागिनी ने बड़े प्यार से पूछा।
वही आपने जो कल बताया था! सुशील ने भोलेपन से उत्तर दिया।
रेखांकन : किशोर  श्रीवास्तव 
क्या बताय था हमने....? जिसे मेरा लाड़ला एकान्त में बैठा दुहर रहा है!
यही कि पापा से मत बोलो.... बाबा को खाना मत दो.... दादी को धक्के मारकर घर से निकाल दो...।
‘बदतमीज कहीं का...’ कहते हुए रागिनी ने सुशील के मुँह पर तमाचा जड़ दिया और तमक कर बोली-‘...जुबान काट लूँगी... अगर किसी से कहा तो...! जल्दी बोल- सॉरी!
बड़े-बड़े आँसू टपकाते हुए सुशील ने कहा- सॉरी मम्मी!

  • ‘दुलारे निकुंज’, 46-सिपाही ठाकुर, कन्नौज-209725 (उ.प्र.) 





शिव प्रसाद ‘कमल’




सिर और पांव का फर्क


   कस्बे के बस स्टाप के निकट फुटपाथ पर रामू जूते गांठता था। वहीं बगल में उसका पड़ौसी बिरजू लोगों के दाढ़ी-बाल काटता! आज शाम को एक ग्राहक बिरजू के यहां शेव कराने आया। दाढ़ी बन गयी तो वह ग्राहक की मूँछे ठीक करने लगा। जरा-सी असावधानी हुई तो उसकी एक तरफ की मूँछें कुछ ज्यादा कट गयीं।
   ग्राहक ने शीशा देखा तो नाराज हो गया। उसने बिरजू को पीट दिया। रामू ने बिरजू की ओर से ग्राहक के पांव पकड़कर माफी मांगी। मामला रफा-दफा हुआ। उसके चले जाने पर दोनों अपना सामान समेट कर घर लौटने लगे। रास्ते में क्षुब्ध बिरजू ने पूछा- ‘‘रामू भाई! तुम अपना काम चुपचाप शांति से कैसे कर लेते हो,’’
द्रश्य छाया चित्र : उमेश महादोषी
   रामू बोला- ‘‘बिरजू भाई! मेरा काम सीधा-साधा मामूली है। मेरे हाथ में ग्राहक के पैर होते हैं, तुम्हारे हाथ में सिर। अंगूठा जरा इधर-उधर हो सरक जाने पर भी चल सकता है। पर भाई, जरा सोचो मूंछ कट जाने पर कैसे चलेगा?’’
   बिरजू की समझ में बात आ गयी। वह तनावमुक्त हो गया।

  • कल्पना मन्दिर, चुनार, जिला- मिर्जापुर (उ.प्र.)

अविराम विस्तारित


अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०४, दिसंबर २०११ 


।।क्षणिकाएँ।।



सामग्री :  रतन चन्द्र रत्नेश,  महावीर रवांल्टा एवं  सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’ की क्षणिकाएं।



रतन चन्द्र रत्नेश




दो क्षणिकाएं


1. उदासी
एक उदासी जकड़ लेती है
यक-ब-यक
बिना किसी कारण
शायद देह में पैदा हो रहा है
कोई रसायन
रेखांकन : डॉ.  सुरेन्द्र वर्मा 
खुशियों को संभालने के लिए।


2. संतोष
मेरे लिए
बस इतना ही
तन्हाई, संगीत
और थोड़ी-सी नींद।
  • 1859, सैक्टर 7-सी, चण्डीगढ़-160019




महावीर रवांल्टा




तीन क्षणिकाएं 


1.
मैं उसके चेहरे को
अपने से मिलाने लगा
पर वहाँ तो
आँसू ही आँसू थे।
रेखांकन : सिद्धेश्वर 

2.
गुमनाम है जिन्दगी
उसी को
अंधेरा कहूँगा
सरकती आत्मा को खोजूँ
उसी को
सवेरा कहूँगा।

3.
जिन्दगी में
ख्वाब देखकर मैंने
विष घोला
जिसे
मुझे ही पीना था। 
  • ‘संभावना', महरगाँव, पत्रालय: मोल्टाड़ी, पुरोला, उत्तरकाशी-249185 (उत्तराखण्ड)

सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’


दो क्षणिकाएं

1. आत्मकथा

लिख गया
हवा का झोंका
तपा मरुथल में रेत कणों से
एक लहरदार लेख
द्रश्य छाया चित्र : उमेश महादोषी 
जिसे-
ढलते सूरज की ओट में
पढ़ने का प्रयास करता हूँ
आत्मकथा की तरह।

2. विज्ञापन

संगमरमरी संसदों से
खुशहाली का वक्तव्य है
अभाव, तनाव, दहशत
देश का द्रष्टव्य है।
  • ग्राम व पोस्ट- पथरहट (गौरीबाजार), जिला- देवरिया (उ.प्र.)


अविराम विस्तारित


अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०४, दिसंबर २०११ 


।।हाइकु।।


सामग्री : देवेन्द्र नारायणदास एवं डॉ. गौरीशंकर श्रीवास्तव ‘पथिक’ के पाँच-पाँच हाइकु तथा  दिलबाग विर्क के  चार तांका।

देवेन्द्र नारायणदास




पाँच हाइकु


1.
तेरी यादें, तो
रेखांकन : नरेश उदास  
नित नया सवेरा
लेकर आता
2.
मृगनयनी
फुहार सावन की
हंसी तुम्हारी
3.
मंहगाई में
आंसू से लेख लिखे 
जीवन भर
4.
दुःख के आंसू
आज मुझे पीने दो
बह जाने दो
5.
प्रेम परिधि
असीमित-विस्तृत
बैरी न कोई

  • साधना कुटीर, मु.पो.- बसना, जिला: महासमुंद-493554 (छत्तीसगढ़)



डॉ. गौरीशंकर श्रीवास्तव ‘पथिक’






पाँच हाइकु


1.
सूखे पोखर
नदी गई सिमट
रोया केवट


2.
जल का स्तर
चला गया जो नीचे
आए न खीचे
3.
आ गई होली
मिलेंगे हमजोली
तिलक रोली
द्रश्य छाया चित्र : रोहित कम्बोज 
4.
दोगली हवा
रौदती चल रही
ठंडे संस्कार
5.
चम्पई धरा
इन्द्र धनुष ओढे़
वर्षा की शाम

  • पथिक कुटीर, जवाहर नगर, सतना (म.प्र.)

दिलबाग विर्क 

चार तांका 

०१.
कितना सच्चा
कितना झूठा है तू
न सोचा कभी
जब प्यार किया तो 
सब मंजूर किया ।

०२.
तू चला गया
बहार चली गई
मुरझा गए
ख्वाबों के सब फूल
बेजान हुआ दिल ।

०३.
रेखांकन : नरेश उदास  
कुछ न सूझे
जोगिन हुई रूह
कैसा ये प्यार
भुलाया सब कुछ
बस याद है तू ही ।

०४.
मेरे ये नैन
छमाछम बरसे
बादल जैसे
आया था याद प्रिय
संभलता मैं कैसे ।
  • संपर्क : 
    dilbagvirk23@gmail.com