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शनिवार, 27 अगस्त 2016

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  5,   अंक  :  05-12,  जनवरी-अगस्त  2016

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क्षणिका के अनियतकालिक प्रकाशन ‘‘समकालीन क्षणिका’’ की रचनाओं को इंटरनेट पर पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- समकालीन क्षणिका
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।।क्षणिका।।

सामग्री :  इस अंक में श्री केशव शरण की क्षणिकाएँ। 





केशव शरण




पाँच क्षणिकाएँ

01. ...आँखें खोलकर

हरे पेड़ पर तोता है
झरे पेड़ पर कौन नभचर...

खोजो आँखें खोलकर
संकेत दिया है बोलकर

02. प्रतिदिन अख़बार

मैं नहीं जानता
मैं कितना आगे बढ़ता हूँ
मैं प्रतिदिन अख़बार पढ़ता हूँ
एक अच्छी ख़बर के लिए

03. एक शिकार दृश्य

कबूतर पर
बाज की छाया पड़ रही है
कबूतर धूप में
निकल जाना चाहता है
जो उसके चारों ओर है

कबूतर निकल आता है धूप में
मगर फिर चला जाता है
बाज़ की छाया में

झुरझुरी उठ रही है मेरी काया में।

04. मेरा-उसका दिल
रेखाचित्र : सिद्धेश्वर  


मेरा दिल
खिलता है बाग़ में
और उसका
बाजार में

हर बार मैं
उसका दिल रखता हूँ
और उसकी खुशी में
होता हूँ बाग़-बाग़

05. जैसे खुले पालों वाली कश्ती

झील-सी उन आँखों में
यों तैरती है मुहब्बतों की मस्ती
जैसे खुले पालों वाली कश्ती
कोई आ रही हो
कोई जा रही हो

  • एस-2/564, सिकरौल, वाराणसी-221002, उ.प्र./मोबा. 09415295137

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  5,   अंक  :  05-12,  जनवरी-जुलाई  2016 

।।हाइकु ।।

सामग्री : इस अंक में डॉ. सतीश दुबे, सुश्री विभा रश्मि एवं श्री रामेश्वर दयाल शर्मा ‘दयाल’ के हाइकु। 


डॉ. सतीश दुबे 




सत्रह हाइकु मंत्रम् : सत्तर पार जीवन का आत्मालाप

01.
माँ का चेहरा
कल्पना का सफर
बुढ़ापे तक।
02.
शांत हो जाओ
मन के कोलाहल
माँ यादों में है।
03.
प्रेम की प्यास
भटका मन-मृग
मरीचिका में।
04.
माँ का आँचल
जीवन के संस्कार
पिता की देन।
05.
पिता ने पीया
संघर्ष का जहर
नीलकंठ सा।
06.
समझ वय
कोंपल आगमन
पिता की विदा।
08.
घर न घाट
चेतना की चिंगारी
बताई बाट।
09.
सुखा ही रहा
 रेखाचित्र : डॉ. सुरेंद्र वर्मा 

लगाव पानी बिन
मन का कुंआ।
10.
जीवन पथ
शिक्षा-दीक्षा संधान
मीन की आँख।
12.
उमर बीस
दी सरस्वती माँ ने
ढेरों आशीष
13.
बढ़ा काफिला
शब्द-यात्रा पथ पे
घर के संग।
14.
पथ में मिले
मित्रता के खंजर
ऊर्जा खातिर।
15.
पास से देखे
स्वार्थ-नद में डूबे
धूर्त-सियार।
16.
पाया सबने
बुद्धि, संपदा, मन
खैराती बन।
17.
परिधि कैद
अपनों की उपेक्षा
तन्हा-जीवन।
01.
प्राण-वायु से
जीवन संग रहे
अनेक जन।
01.
देह-मानिंद
आत्मा को देंगे प्यार
अंतिम चाह।


  • 766, सुदामा नगर, इन्दौर-452009 (म.प्र.)/मोबा. 09406852341



विभा रश्मि





चार हाइकु

01.
भोर के पंछी
उड़ान आशा-भरें,
रेखाचित्र : नरेश उदास 
न हारें कभी।
02.
कीकर-वृक्ष , 
जंगल जलेबी को 
तोड़ें बालाएँ।
03.
घना कीकर,
लदा मीठे फल से 
स्वादिष्ट बड़े।
04.
रजनी-बाला 
कलश छलकाती
आई प्रत्यूषा।

  • 201, पराग अपार्टमेन्ट, प्रियदर्शिनी नगर, बैदला, उदयपुर-313011,राज. /मोबाइल: 09414296536


रामेश्वर दयाल शर्मा ‘दयाल’





तीन हाइकु 

01.
राष्ट्र महान
लाखों हैं भूखे नंगे
कैसा उत्थान

रेखाचित्र : उमेश महादोषी 
02.
दुःखी करता
नेताओं का पतन
त्रस्त वतन

03.
देख लो गाँधी 
लूट रहे अपने
टूटे सपने

  • प्रज्ञा कुंज, 200, इन्द्रापुरम्, करगैना, बरेली-243001, उ.प्र./मोबा. 08899631776

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  5,   अंक  :  05-12,  जनवरी-अगस्त  2016



।। जनक छंद ।। 

सामग्री :  इस अंक में डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ के जनक छन्द।



डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’





पाँच जनक छन्द

01.
सूरज चंदा आँख हैं
भाव और भाषा भले
मेरे दोनों आँख हैं।।
02.
जग की करता सैर मैं
सब की माँगूँ खैर मैं
नहीं जानता बैर मैं।।
03.
पन्थ नहीं जब सूझता
पथिक धुन्ध से जूझता
भावी कैसे बूझता।।
04.
आटा किसी गरीब का
यदि वर्षा में भीगता
होता मरण नसीब का।
05.
थोड़ी पूँजी साँस की
वह दुष्कर्मों में गई
फँसी गले में फाँस-सी।
06.
पुण्य किया तो सुख लिया
लाभ उगाया भाग्य का
नया जन्म सुख से जिया।
07.
औरों का यदि दुख दिया
काँटे बोये लूनिये
पद-पद पर दुख जिया।
08.
नृप तरु झुलसे शीत से
धनी भोगते सुख सभी
बने शीत के मीत-से।।
09.
पूस बिलौटा पी गया
शक्ति दूध को शीत बन
ऊन ओढ़ता जी गया।।
10.
रेखाचित्र :
बी. मोहन नेगी 
कर्म धर्म प्रत्यक्ष है
श्रद्धा गुणवत्ता भरे
तभी धर्मकृत दक्ष है।।
11.
आते जाते वर्ष हैं
अन्यों को सुख दे सकें
उनको प्रति पल हर्ष हैं।।
12.
‘ओम’ धर्म हित काम कर
वह पूँजी दे राम को
पहुँचेगा हरि धाम पर।
13.
पौष मास की ठंड है
धनी चबाते गज्जकें
निर्धन को ज्यों दण्ड है।।
14.
धर्म-धर्म चिल्ला रहे
पैसा खूब कमा रहे
भक्तों को भरमा रहे।।
15.
अर्जुनसुत लड़कर मरा
किन्तु जयद्रथ जीतकर
दिन में छिप डर डर मरा।


  • बी-2-बी-34, जनकपुरी, नई दिल्ली-110058/मोबाइल : 09971773707

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  5,   अंक  :  05-12,  जनवरी-अगस्त  2016


।। व्यंग्य वाण ।।

सामग्री :  इस अंक में डॉ.सुरेन्द्र वर्मा का व्यंग्यालेख- 'जुगाड़ से जुडि़ये' एवं ओमप्रकाश मंजुल का व्यंग्यालेख- 'काश! मैंने भी सम्मान हथिया ही लिया होता' 



डॉ. सुरेन्द्र वर्मा



जुगाड़ से जुडि़ये
      हम भारतवासी जुगाड़ के लिए मशहूर हैं. हर समय कोई न कोई जुगाड़ बैठाते रहते हैं कि कामयाबी मिल सके। अपने से ज्यादह हमें जुगाड़ में विश्वास है। जब कोई सफल हो जाता है हम यह मान बैठते हैं कि उसने कोई न कोई जुगाड़ ज़रूर लगाया होगा तभी कामयाब हो पाया।
      कहते हैं कि एक विदेशी जब भारत आया तो उसे यहाँ कई कठिनाइयों का सामना करना पडा। जब भी कोई कठिनाई वह यहाँ बतलाता उसे कहा जाता घबराइए नहीं, कोई न कोई जुगाड़ लगाते हैं और सचमुच कुछ ऐसा जुगाड़ बैठाया जाता कि उसकी समस्या हल हो जाती। वह इस जुगाड़ को और इसके बैठाए जाने को स्वयं देख नहीं पाता लेकिन उसकी कठिनाई तो बेशक हल हो ही जाती थी। वापस जाने पर उसने अपने देशवासियों से कहा कि हिन्दुस्तानियों के पास न जाने कौन सा एक ऐसा अदृश्य संयंत्र है कि जिसे जुगाड़ कहते हैं और जिसे लगाकर-बैठाकर वे कैसी भी समस्या हो, हल कर लेते हैं।
      भारत में दो प्रकार के लोग होते हैं, कुछ जुगाड़ी होते हैं, कुछ अनाड़ी होते हैं। जो अपनी कामयाबी के लिए जुगाड़ नहीं बैठा पाता, अनाड़ी है। उसे चाहिए कि जुगाड़ की कला और विज्ञान दोनों को आत्मसात करें।
      लन्दन से खबर आई है कि भारतीय मूल के तीन लेखकों द्वारा लिखी गई एक किताब में इस जुगाड़ की जमकर तारीफ़ की गई है। किताब में पश्चिमी देशों की कंपनियों को सुझाया गया है कि वे गला-काट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में कामयाबी पाने के लिए नए तरीके, नए सूत्र ईजाद करें। जुगाड़ की वकालत करने वाली और इसे व्याख्यायित करने वाली किताब का नाम, काफी लंबा-चौड़ा है- ‘जुगाड़ इन्नोवेशन दृ थिंक फ्रूगल, बी फ्लेक्सिबल, जेनरेट ब्रेकथ्रू ग्रोथ’। जुगाड़ के महत्वपूर्ण सूत्र पुस्तक के नाम में ही स्पष्ट कर दिए गए हैं। सोच में मितव्ययता, आचरण में लचीलापन अच्छी उपज के लिए कुछ नया कर गुज़रना ही वस्तुतः जुगाड़ का मर्म है। लेखकों का कहना है कि भारत में यह नुस्खा बरसों पुराना और कम खर्चीला है।
      जुगाड़ संबंधी इस पुस्तक पर उत्साहजनक प्रतिक्रियाएं आईं हैं। कुछ अन्य सूत्र सिद्धांत भी स्पष्ट किए गए हैं। जैसे (1) प्रतिकूल स्थिति में भी मौकों की खोज (2) कम मेहनत में ज्यादह लाभ कमाना (3) सोच समझ कर काम करना (4) मुस्कान बरकरार रखना और (5) अपने दिल की बात सुनना।
      तो मित्रो, जुगाड़ कोई हलके में लेने की चीज़ नहीं है। इसमें कई सूत्र-सिद्धांत काम करते हैं, कई तरकीबों से मिलकर यह बना है। यह एक युक्ति-संघात है, कई उपायों का समुच्चय है। इसे बैठाने में दिल और दिमाग दोनों की ज़रुरत होती है। यह कला भी है और विज्ञान भी है। हर कोई जुगाड़ नहीं बैठा सकता। बड़ी कलाकारी की ज़रुरत है। न जाने कहाँ कहाँ से बिखरी हुई आवश्यक सामग्री इकट्ठा की जाती है ताकि उसका इस्तेमाल अपने हित में किया जा सके। थोड़ा-थोड़ा सामग्री का जोड़ना, इकट्ठा करना और उसे संभालना- इन सभी कामों में वैज्ञानिक वृत्ति निहित है।  
      जुगाड़ अब केवल अटकल नहीं रहा। विद्वानों ने जुगाड़ का क्या रहस्य है, इसे अंततः जुगाड़ ही लिया है। क्या आप इस बात से सहमत नहीं हैं कि इन दिनों बड़ी-बड़ी संस्थाओं में, व्यापार प्रबंधन के भारी भरकम पाठ्य-क्रमों के जरिए, छात्रों को जुगाड़ ही की शिक्षा तो दी जा रही है! सच्ची बात यही है।     

  • 10, एच.आई.जी.; 1-सर्कुलर रोड, इलाहाबाद (उ.प्र.)/ मोबाइल :  09621222778


ओमप्रकाश मंजुल




काश! मैंने भी सम्मान हथिया ही लिया होता

     आयी माया को टटिया लगा कर रोकने वाले हम जैसे बेबकूफ और अभागे ही होते हैं। (यहाँ ‘माया’ का मतलब किसी कुमारी या ब्याही माया नामक लेडी से नहीं, धन की देवी, लक्ष्मी से है।) सम्मान न लेने का मुझे आजीवन मलाल रहेगा। पर, अब पछताना तो ऐसा ही है, जैसे बाप की बात जवानी के जोश में बेटा नहीं मानता और आगे बुढापे में पछताता है। सुदूर पूर्व में एक सरकारी संस्था ने अपुन को भी सादर सानुरोध एक असरकारी सम्मान देने की पेशकश की थी। पर, मैं सम्मान को न लेने के लिए ऐसे मना कर बैठा, जैसे बिहार में महागठबंधन में शामिल न होने के लिए मुलायम सिंह ने मना किया था। मुलायम यादव राजनीतिक नहीं तो पारिवारिक या जाति-बिरादरी के नाते ही लालू यादव की बात मान लिये होते, तो आज महाफायदे में रहते। ऐसे ही मैं भी उस समय सम्मान को उठा लाता, तो आज डबलफायदे में रहता। प्राप्त पुरस्कार राशि से अधिक तो आज उस पर ब्याज मिल गया होता। सम्मान्यों की लाईन में लगने के लिए मैं जिन लोग-लुगाइयों के चरण कमलों पर पड़ा था, आज मैं उनके सर माथे पर होता। सबसे बड़ा बेनीफिट यह होता कि सम्मान लौटाने वाले कलमकारों, कलाकारों, कलावन्तों और विज्ञानविदों के रैला में पड़ कर मुझ जैसे बथुआ को भी गेहूँ के साथ पानी लग गया होता। पर, ‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुंग गईं खेत।’ 
      बिहार में भाजपा को हराने वाले शत्रु की तरह मेरी पीठ में छुरा भोंकने वाला शत्रु भी कोई दूसरा न होकर मेरा एक दिखावे का मित्र था। वह स्वार्थी तो था ही ऊपर से दूसरी लाईन का नेता भी था। इसी ने ईर्ष्यावश मुझे उल्टी पट्टी पढ़ाकर सम्मान लेने से रोक दिया था। मुझे क्या पता था वह कि जैसा चेहरे से लगता है वैसा ही दिल से भी फिल्मी विलेन निकलेगा? एक पंच और भी फंस गया था, जिस कारण मैंने सम्मान नहीं लिया। यह आपको ही अपना समझकर बता रहा हूँ। आशा है आप केजरीवाल जैसी गम्भीरता नहीं दिखायेंगे और मैटर को अपने तक ही सीमित रखेंगे। असल में मेरे, ‘दूर-दूर की कौड़ी : चालाकी से जोड़ी’ नामक जिस कविता संग्रह पर पुरस्कार प्रस्तावित हुआ था, उसका कच्चा माल मैंने दूर-दूर छपी पुस्तिकाओं व पत्रिकाओं से उड़ाया था। ठीक इसी वक्त एक चर्चित राज्य के चर्चित कानून मंत्री की फर्जी डिग्रियों का भंडाफोड हो गया। फर्जी संग्रह को लेकर कहीं मेरी भी फजीहत न हो जाये, इस भय से अपुन ने सम्मान को ग्रहण न करना ही मुनासिब समझा। पर, लोगों के बड़े-बड़े फर्जीबाड़ों को याद करता हूँ, तो सम्मान न लेने के लिए मेरे दिल में रह-रहकर हूक उठती है। मिस्त्री से वरिष्ठ अधिशासी अभियन्ता बनने वाले यादव नामधारी महाशय और एक विशेष छवि के खोल से निकलकर एक उत्तम प्रदेश के राज्य लोक सेवा आयोग जैसे महत्वपूर्ण संगठन के सर्वोच्च पद को सुशोभित करने वाले महापुरुष की फर्जीली मनोहर कहानियाँ नेताओं की फोरजरीली सत्यकथाओं के सामने कहीं नहीं ठहरती। न मालूम कितने विधायक और सांसद फर्जी डिग्रियों की बैसाखियों पर सम्मानीय बन चुके हैं। सुनने में आया है कि देश के एक उत्तम प्रदेश में भी फर्जी डिग्री वाले मंत्री बने हैं। जिस देश में शिक्षामंत्री तथा कानूनमंत्री की और कानून परीक्षा डिग्रियां ही संदिग्ध हों, वहाँ सम्मान की रेवड़ियाँ लुटाने और लौटाने की बहस ही अर्थहीन है। ऐसी स्थिति में मुझ जैसे नाचीज ने भी यदि सम्मान हथिया लिया होता, तो न मेरी नैतिक्ता में कोई कमी आ जाती, न देश के सम्मान में ही बट्टा लगता।

  • कामायनी, कायस्थान, पूरनपुर-262122, जिला पीलीभीत, (उत्तर प्रदेश)/मो. 09457822961

अविराम के अंक

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  5,   अंक  :  05-12,  जनवरी-अगस्त  2016


अविराम साहित्यिकी 
(समग्र साहित्य की समकालीन त्रैमासिक पत्रिका)
खंड (वर्ष) :  5 / अंक : 2 /  जुलाई-सितम्बर  2016 (मुद्रित)

प्रधान सम्पादिका :  मध्यमा गुप्ता

अंक सम्पादक :  डॉ. उमेश महादोषी 

सम्पादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन

मुद्रण सहयोगी :  पवन कुमार 



रेखाचित्र  : स्व. पारस दासोत 



अविराम का यह मुद्रित अंक रचनाकारों व सदस्योंको 14 अगस्त 2016  को तथा अन्य सभी सम्बंधित मित्रों-पाठकों को 18 अगस्त 2016 तक भेजा जा चुका है। 10 सितम्बर 2015  तक अंक प्राप्त न होने पर सदस्य एवं अंक के रचनाकार अविलम्ब पुनः प्रति भेजने का आग्रह करें। अन्य मित्रों को आग्रह करने पर उनके ई मेल पर पीडीफ़ प्रति भेजी जा सकती है। पत्रिका पूरी तरह अव्यवसायिक है, किसी भी प्रकाशित रचना एवं अन्य सामग्री पर पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है। इस मुद्रित अंक में शामिल रचना सामग्री और रचनाकारों का विवरण निम्न प्रकार है-      


।।सामग्री।।  

अनवरत-1 (काव्य रचनाएँ)
अमर महाकवि श्रीकृष्ण ‘सरल’ (3) 
आचार्य देवेन्द्र ‘देव’ (4) 
डॉ. पुरुषोत्तम दुबे (5) 
नवल जायसवाल (6)
शिवशंकर यजुर्वेदी (7) 
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ (8) 
प्रताप सिंह सोढ़ी/डॉ. कपिलेश भोज (9) 
डॉ. सुषमा सिंह/डॉ. ज्योत्सना शर्मा (10)
जितेन्द्र जौहर/हमीद कानपुरी  (11) 
डॉ. गिरीश चन्द्र पाण्डेय ‘प्रतीक’ (12) 
पुष्पा मेहरा/हरीलाल ‘मिलन’ (13) 
खेमकरण ‘सोमन‘ (14)
भगवानदास जैन/कृष्ण सुकुमार (15) 
तेजराम शर्मा/अशोक ‘आनन’ (16) 

विमर्श
सोशल मीडिया पर हिन्दी लघुकथा-01 :  डॉ. जितेन्द्र ‘जीतू’ (17)   

कथा प्रवाह-1 (लघुकथाएँ)  
डॉ. सतीश दुबे (19)
डॉ. बलराम अग्रवाल (20)
डॉ. अशोक भाटिया (21)
डॉ. सिमर सदोष (22)
मार्टिन जॉन (23)

अनवरत-2 (काव्य रचनाएँ)  
कन्हैयालाल अग्रवाल ‘आदाब’/ज्वाला प्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’ (25) 
शालिनी सचिन/कामेश मिश्र ‘सनसनी’ (26)
रामनरेश ‘रमन’/रमेशचन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ (27) 
कमलेश सूद/बंशी लाल ‘पारस’ (28)
रोजलीन/मनीषा सक्सेना (29) 
माधुरी राऊलकर/राकेश बाबू ‘ताबिश’ (30) 
उदय करण ‘सुमन’/डॉ. सतीश चन्द्र शर्मा ‘सुधांशु (31) 

कथा कहानी (कहानियाँ)
हमला : सुशांत सुप्रिय (32)
भूलना मत...  : छत्रसाल क्षितिज (34) 

आहट (क्षणिकाएँ)
प्रो. रूप देवगुण/चक्रधर शुक्ल (35) 

संस्कृति-परम्परा
बरसात का मौसम: डॉ. जेन्नी शबनम (36) 

कथा प्रवाह-2 (लघुकथाएँ)  
ऊषा अग्रवाल ‘पारस’/संतोष सुपेकर (38)
के. एल. दिवान/महावीर उत्तरांचली (39)
सेराज खान बातिश (40)
कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा’/राधेश्याम पाठक ‘उत्तम’ (41)

व्यंग्य वाण
सूर्य प्रकाश मिश्र/डॉ. राकेश कुमार सिंह (42) 
नयन कुमार राठी (44) 

लघुकथा : अगली पीढ़ी (लघुकथाएँ) 
डॉ. संध्या तिवारी (45)
चंद्रेश कुमार छतलानी/सीमा जैन (46)
कपिल शास्त्री/संदीप तोमर (47)

सरोकार
वैचारिक भँवर में राष्ट्रीयता का प्रश्न: डॉ. उमेश महादोषी (49) 

स्मृति-अशेष
गुरुमाता (स्व.) डॉ. आशा शर्मा (58) व (स्व.) मोह. मुइनुद्दीन ‘अतहर’ (59) को श्रद्धांजलि

किताबें (संक्षिप्त समक्षाएँ)
खुरदरेपन में रिश्तों को सहेजती लघुकथाएँ: वाणी दवे के लघुकथा संग्रह ‘अस्थायी चार दिवारी’ की प्रो. बी.एल. आच्छा द्वारा (60), मानवता का पाठ पढ़ाता लघुकथा संग्रह: डॉ. कमल चौपड़ा के लघुकथा संग्रह ‘अनर्थ’ की राधेश्याम भारतीय द्वारा (62), बरेली शहर का यथार्थ चेहरा: हरिशंकर शर्मा के बरेली पर केन्द्रित आलेख संग्रह ‘शहर की पगडंडियाँ’ की डॉ. उमेश महादोषी द्वारा (63) समीक्षाएँ।

स्तम्भ 
माइक पर : उमेश महादोषी का संपादकीय (आवरण 2) 
आजीवन सदस्य (24, 44 व 57)
गतिविधियाँ (66)
प्राप्ति स्वीकार (68 व आवरण 3)
सूचनाएँ (37, 41, 48 व अंतिम आवरण)