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शनिवार, 28 जनवरी 2012

वैचारिक आलेख


अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०५, जनवरी २०१२ 

।।अविराम विमर्श।।

सामग्री : राम शिव मूर्ति यादव का आलेख  'साहित्य में पुरस्कारों की राजनीति'





राम शिव मूर्ति यादव






साहित्य में पुरस्कारों की राजनीति

    पुरस्कारों की समाज में प्राचीनकाल से ही एक लम्बी परम्परा रही है। उत्कृष्ट व सृजनात्मक कार्य को सम्मानित-पुरस्कृत करके जहाँ सम्बन्धित व्यक्ति को प्रोत्साहित किया जाता है, वहीं अन्य लोगों हेतु यह एक नजीर भी पेश करता है। पुरस्कार भावनात्मक, आर्थिक या अन्य किसी भी रूप में हो सकते हैं। सभ्यता के विकास के साथ ही पुरस्कारों के रूप, उद्देश्य व प्रयोजन में भी मात्रात्मक परिवर्तन होते गये। साहित्य में रचनाधर्मिता भी पुरस्कारों से अछूती नहीं है। कभी-कभी तो रचना स्वयं किसी के सम्मान में कही जाती है, यहाँ पर रचना स्वयं में पुरस्कार बन जाती है।
   साहित्य को पुरस्कृत करना मानवीय संवेदनाओं और अनुभूतियों की पहचान को दर्शाता है। साहित्य कई तत्वों से संचालित होती है और आधुनिक दौर में एक तत्व पुरस्कार भी शामिल हो गया है। स्वाँतःसुखाय लिखकर पन्ने फाड़ने वाले साहित्यकार अतीत की चीज हो गये हैं, अब तो साहित्य बाकायदा लिखा ही नहीं जाता, बल्कि प्रायोजित भी किया जाता है। आजकल रचनाधर्मिता स्वानुभूति मात्र नहीं होती बल्कि इसमें सहानुभूति का तत्व भी जुड़ गया है। साहित्य संवेदनाओं, स्वानुभूति और सहानुभूति की त्रिविलि में एक बाजार तैयार करता है। बाजार की इस दौड़ में साहित्य की पहचान सिर्फ पाठक ही नहीं बल्कि पुरस्कार और सम्मान भी निर्धारित करते हैं।
   साहित्य में आज पुरस्कारों की भीड़ सी हो गई है और इसे लेने वालों में भी होड़ मची है। कभी पुरस्कारों की राजनीति राजधानियों में ही दिखती थी परन्तु अब तो लगता है कि पुरस्कारों का भी विकेन्द्रीकरण हो गया है। राजधानियों से ज्यादा साहित्यिक संस्थायें तेजी से उभरते नगरों और कस्बों में विद्यमान हैं। इन संस्थाओं के लिए पुरस्कार एक ऐसी वस्तु के समान है, जिसके माध्यम से वे लागों को सम्मानित कर स्वयं उपकृत होते हैं, कारण इनके पीछे लोगों से प्राप्त धनराशि। वस्तुतः पुरस्कार बटुये में रखे उन सिक्कों की तरह हो गये हैं, जिन्हें किसी मन्दिर में चढ़ाकर ईश्वर को सम्मानित किया जाता है, परन्तु इसके पीछे अपनी दानशीलता का ढिंढोरा पीटकर स्वयं को सम्माननीय बनाने की भावना छुपी होती है।
   पुरस्कारों की दौड़ ने साहित्य को कोई सार्थक लाभ तो नहीं पहुँचाया परन्तु इसकी ओट में तमाम व्यक्ति, संस्थायें एवं शासन-प्रशासन में पदासीन लोग अवश्य लाभान्वित हो रहे हैं। आज पुरस्कार लागों की हैसियत के आधार पर बँटने लगे हैं, जितना बड़ा नाम उतना बड़ा पुरस्कार। सरकारी संस्थाओं द्वारा दिये जाने वाले पुरस्कारों में जाति, धर्म, क्षेत्र व सत्ताधारी दल की राजनीति इतनी बुरी तरह पैठ कर गई है कि एक बारगी सोचना पड़ता है कि इस सम्मान से साहित्य का कोई उद्धार होगा भी या नहीं। किसी ने क्या खूब कहा भी है कि उस पुरस्कार या सम्मान का कोई अर्थ नहीं, जिससे साहित्य की कोई कोंपल भी नहीं हिले।
   पत्र-पत्रिकाओं में अक्सर ही पढ़ने को मिल जाता है कि अमुक साहित्यकार किसी रोग से ग्रस्त होकर अपने अन्तिम दिन गिन रहा है और साहित्य के नाम पर रोटी सेंकने वाले मठाधीश और सरकार को उसका हाल-चाल लेने की फुर्सत ही नहीं। गौर कीजिए, जब कोई राजनैतिक व्यक्ति अस्पताल में भर्ती होता है तो सुबह से शाम तक उससे मिलने वालों की भीड़ लगी रहती है, इसमें उसके विरोधी राजनैतिक दल के भी शीर्ष नेता शामिल होते हैं। इसे चाहे राजनेताओं की एकता कहें या अवसरवादिता, दुर्भाग्यवश साहित्य के क्षेत्र में यह नजारा विरले ही मिलता है। शहनाई सम्राट बिस्मिल्लाह खान की प्रतिभा की दुनियाँ कायल है, परन्तु जीवन के अन्तिम दिनों में जिस तरह से अपने बेटे के लिए उन्होंने एक अदद सरकारी नौकरी की सरकार से अपेक्षा की, वह इस देश की साहित्य-कला-संस्कृति का चेहरा दिखाने के लिए काफी है। असलियत यही है कि जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी सृजनता में लगा दी, उनकी कोई पूछ तक नहीं, जबकि राजधानियों में रहकर येन-केन-प्रकारेण तमाम सम्मानों व पुरस्कारों से नवाजे जाते लोग, विभिन्न अकादमियों में बिठाये गये लोग या साहित्य-कला-संस्कृति के नाम पर सरकारी धन पर विदेशों की सैर करते लोगों के अवदान का मूल्यांकन किया जाये तो सच्चाई सामने आयेगी, वह समाज को आइना दिखाने के लिए काफी है।
   हम यह भूल जाते हैं कि भारत गाँवों का देश है। ग्रामीण स्तर पर जितनी प्रतिभायें सीमित संसाधनों के साथ आगे बढ़ रही हैं, यदि उन्हें समुचित मार्गदर्शन व संसाधन उपलब्ध कराये जायें तो साहित्य के क्षेत्र में तमाम नये प्रतिमान स्थापित हो सकते हैं। सवाल यह है कि यह कार्य कौन करेगा? एक व्यवस्था के तहत यह किसी व्यक्ति के बलबूते की बात नहीं। अन्ततः बात सरकार के पाले में जाती है, जहाँ वो लोग बैठे हैं जो अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने का गुमान पाले हुए हैं। ऐसे में उनसे किसी रचनात्मक कदम की उम्मीद रखना व्यर्थ है।
    साहित्य की तमाम विधायें लिखी जाती रही हैं और लिखी जाती रहेंगी। कोई भी पुरस्कार या सम्मान इनकी आवाज को तात्कालिक रूप से भले ही दबा ले, पर सृजनधर्मिता पुनः अपनी जीवटता के साथ खड़ी हो जाती है। यह अनायास ही नहीं है कि तमाम क्रान्तियों से पहले साहित्य के द्वारा लोगों को जागृत किया जाता है। पुरस्कार साहित्य की तकदीर नहीं लिखते पर इतना अवश्य है कि क्ष्णिक रूप में ही सही वे उसे प्रोत्साहन देते हैं। ऐसे में यदि प्रोत्साहन ही गलत लोगों को मिलने लगे तो सार्थक साहित्य कहाँ से उभरेगा? पुरस्कारों की राजनीति बन्द होनी चाहिए और उन्हें ही पुरस्कृत करन चाहिए, जो वाकई इसके हकदार हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि साहित्य-कला-संस्कृति किसी भी समाज की रीढ़ हैं और यदि रीढ़ ही कमजोर करने की कोशिशें की जायेंगी तो इस पर आधारित किसी भी समाज को भहराने में देरी नहीं लगेगी।


  • ग्राम: तहबरपुर, पोस्ट: टीकापुर, जिला: आजमगढ़-276208(उ.प्र.)

गतिविधियाँ



अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०५, जनवरी २०१२ 



 'आकार' का ‘मुक्तक/रुबाई विशेषांक’ : रचनाएँ आमंत्रित

सुपरिचित पत्रिका
‘आकार’ (मुरादाबाद) का आगामी वृहत्‌ अंक ‘मुरुक़ विशेषांक’(मुक्‍तक-रुबाई-क़त्‍आ विशेषांक) होगा। उक्‍त विशेषांक हेतु आपके विविधवर्णी (सामाजिक, राजनीतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, शैक्षिक, देशभक्ति, पर्व-त्योहार, पर्यावरण, श्रृंगार, हास्य-व्यंग्य, आदि अन्यानेक विषयों/ भावों) पर केन्द्रित मुक्‍तक/रुबाई/क़त्‍आत एवं तद्‌विषयक सारगर्भित एवं तथ्यपूर्ण आलेख सादर आमंत्रित हैं। इसके अलावा... हाइकु-मुक्तक, दोहा-मुक्तक, हाइकु-रुबाइयों का भी हार्दिक स्वागत है।
इस विशेषांक में हिन्दी-उर्दू के अतिरिक्‍त विविध भाषाओं/उप-भाषाओं/लोकभाषाओं (जैसे- संस्कृत, भोजपुरी, ब्रज, अवधी, बुन्देली, आदि) के अतिरिक्त राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, पंजाबी आदि के लिए भी स्थान निर्धारित किया गया हैं। इस खण्ड में प्रकाशित मुक्तक/रुबाइयात (हिन्दी-अनुवाद अथवा संक्षिप्‍त हिन्दी-भावार्थ के साथ) प्रकाशित करने की योजना है। इस विशेषांक का हिस्सा बनने के लिए न्यूनतम 20 मुक्‍तक/रुबाइयाँ/क़त्‍आत (चयन सुविधा को ध्यान में रखते हुए) भेजे जा सकते हैं।
          इस विशेषांक में अनेक देशों के कवियों (अनिवासी भारतीय/विदेशी कवियों) की सहभागिता के लिए ‘देशान्तर...’ नामक एक विशेष स्तम्भ निर्धारित किया गया है।
      मुक्तक-साहित्य उपेक्षित-प्राय रहा है। प्रयास रहेगा कि यह विशेषांक भावी शोध-कार्य की दृष्‍टि से एक संदर्भ-ग्रंथीय दस्तावेज बन सके। मुक्तक-संग्रहों की शोधपूर्ण सूची में शामिल करने के लिए कविगण अपने प्रकाशित मुक्तक/रुबाई/क़त्‌आत के संग्रह की प्रति प्रेषित करें!
        लेखकों-कवियों के साथ ही, सुधी-शोधी पाठकगण भी ज्ञात/अज्ञात/सुज्ञात लेखकों के चर्चित अथवा भूले-बिसरे मुक्‍तक/रुबाइयात/क़त्‌आत भेजकर ‘आकार’ के इस दस्तावेजी ‘विशेषांक’ में सहभागी बन सकते हैं। प्रेषक का नाम ‘प्रस्तुतकर्ता’ के रूप में प्रकाशित किया जाएगा। प्रेषक अपना पूरा नाम व पता (फोन नं. सहित) अवश्य लिखें।
      प्रेषित सामग्री के साथ Rs. 5/- का टिकट लगा एक लिफ़ाफ़ा + 1 पोस्टकार्ड संलग्न करना अनिवार्य है। समस्त सामग्री केवल डाक या कुरियर द्वारा (ई-मेल से नहीं) निम्न पते पर अति शीघ्र भेजें। सिर्फ़ अप्रवासी/विदेशी रचनाकारों के लिए ईमेल से सामग्री-प्रेषण का विकल्प उपलब्ध है-  जितेन्द्र ‘जौहर’ (अतिथि संपादक: ‘आकार’) IR-13/6, रेणुसागर, सोनभद्र (उ.प्र.) 231218. मोबा. # : +91 9450320472
ईमेल का पता : jjauharpoet@gmail.com  (समाचार सौजन्य  :   जितेन्द्र ‘जौहर’)


'पत्रिका सृजनात्मक एवं पत्रकारिता पुरस्कार 2011' 



राजस्थान पत्रिका समूह एवं माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल की ओर से गत 22 जनवरी 2012 
(रविवार) को पत्रिका मुख्यालयकेसरगढ़जयपुर में आयोजित पं झाबरमल स्मृति व्याख्यान के अवसर पर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री बी एल जोशी के हाथों 'पत्रिका सृजनात्मक एवं पत्रकारिता पुरस्कार 2011' हिन्दी साहित्यकारों एवं पत्रकारों को प्रदान किये गए। कहानी का प्रथम पुरस्कार जोधपुर की  कथाकार  डा ज़ेबा रशीद को 'मौसम और पहली तारीख़परद्वितीय पुरस्कार दिल्ली के कथाकार सुभाष नीरव को उनकी कहानी 'रंग बदलता मौसमपरकविता मे प्रथम पुरस्कार जोधपुर के कवि/ग़ज़लकार बृजेश अम्बर को तथा द्बितीय पुरस्कार रतलाम के कवि अज़हर हाशमी को प्रदान किया गया। इन रचनाओं का चयन वर्ष 2010 में राजस्थान पत्रिका समूह के अखबार में प्रकाशित रचनाओं में से किया गया।  प्रथम पुरस्कार में 11-11 हज़ार रूपये व द्बितीय पुरस्कार में 5-5 हज़ार रुपये तथा प्रशस्तिपत्र दिए गए। इस अवसर पत्रकारिता के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय कार्य के लिए बहुत से पत्रकारों को भी सम्मानित किया गया। मंच पर भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू,पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी मौजूद थे। समारोह में पूर्व न्यायाधीश व भारतीय विधि आयोग के सदस्य शिव कुमार शर्माप्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य विजय शंकर व्यासराज्य मानवाधिकार आयोग के पूर्व अध्यक्ष एन के जैनराज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष बी डी कल्लासांसद ज्ञान प्रकाश पिलानियाजयपुर की मेयर सुश्री ज्योति खंडेलवालचीफ़ काज़ी खालिद उस्मानीपंडित झाबरमल शर्मा के पौत्र व छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा सहित लगभग एक हजार के करीब साहित्य प्रेमीपत्रकार और विशिष्ट जन उपस्थित थे। (समाचार सौजन्य  :  सुभाष नीरव)


हरियाणा ग्रन्थ अकादमी के नये प्रकाशनों का लोकार्पण

  
 हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा की संस्कृति, लोकसाहित्य व विश्वविद्यालय स्तर की पुस्तकों के प्रकाशन हेतु नवस्थापित हरियाणा ग्रन्थ अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का सचिवालय स्थित अपने कार्यालय में लोकार्पण किया। सर्वश्री छतर सिंह, शादीलाल कपूर व सुखचैन सिंह भंडारी की मौजूदगी में अकादमी के उपाध्यक्ष कमलेश भारतीय एवं निदेशिका डॉ. मुक्ता ने श्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को नववर्ष के अवसर पर अकादमी द्वारा प्रकाशित 11 पुस्तकों का सैट भेंट किया, जिसका उन्होंने लोकार्पण किया। श्री हुड्डा ने आशा व्यक्त की कि अकादमी हरियाणा लोक-संस्कृति व लोक साहित्य से नयी पीढ़ी को परिचित करवाने में सार्थक भूमिका निभायेगी। (समाचार सौजन्य : रश्मि,गुजवि,हिसार)


निम्बार्क शोध संस्थानम् द्वारा हिन्दी सेवी सम्मानित


     हिम्मत नगर। गुजरात की इस नगरी में निम्बार्क शोध संस्थानम् द्वारा आयोजित दो दिवसीय संस्कृत- हिन्दी संगोष्ठी में देश के विभिन्न से पधारे विद्वानों ने राष्ट्रीय एकता में राष्ट्रभाषा के योगदान पर चर्चा की। कार्यक्रम संयोजक एवं संस्थान के अध्यक्ष स्वामी डा. गौरांगशरण देवाचार्य ने अपने उद्बोधन में संस्कृत को विश्व भाषा बताते हुए भारतीय भाषाओं पर संस्कृत के प्रभाव की चर्चा की। मुख्य अतिथि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी श्री के. जी. वंजारा ने संस्कृत को संस्कृति का आधार बाताते हुए चर्चा के विषय ‘संस्कृत साहित्य में नारी संवेदना’ पर अपने विचार प्रकट किये। विकासशील जातीय कल्याण, गुजरात राज्य के निदेशक श्री वंजारा ने गीता के श्लोकों को उद्धृत करते हुए संस्कृत विद्वानों का अभिनन्दन किया। मुख्य वक्ता प्रधानमंत्री के सलाहकार रहे डा. सोमदत्त दीक्षित ने संस्कृत के विभिन्न ग्रन्थों के उदाहरण प्रस्तुत करते हुए नारी संवेदना और संस्कृत साहित्य का पूरक सिद्ध किया।

     इस अवसर पर डा. योगिनी पटेल, डा. हर्षा पटेल, डा. व्यास, डा. राकेश जोशी सहित अनेक विद्वानों ने अपने आलेख प्रस्तुत किये। इस अवसर पर संस्कृत की रक्षा करने के लिए डा. दीक्षित को निम्बार्क देववाणी दधिचि सम्मान प्रदान किया। उन्हें पुष्प गुच्छ, शाल, प्रशस्तिपत्र तथा 5100 रुपये की राशि भेंट की गई। प्रथम दिवस विभिन्न कालेज के प्राचार्यों, छात्रों एवं बड़ी संख्या में संस्कृत प्रेमियों ने भी भाग लिया।
     द्वितीय दिवस ‘बदलते वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी’ को समर्पित था। वक्ताओं में गुरूनानक विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. हरमहेन्द्र सिंह बेदी, राष्ट्रकिंकर संपादक- विनोद बब्बर, कापड़िया महिला कालेज, भावनगर की हिन्दी विभाग अध्यक्ष डा. सुमन शर्मा, जूनागढ़ आर्ट कॉलेज के कालेज विभागाध्यक्ष डा. कान्ति भाई चौटालिया भी शामिल थे। वक्ताओं ने राष्ट्रभाषा के सम्मान की चर्चा करते हुए इसके अधिकाधिक प्रयोग पर बल दिया। इस अवसर अहिन्दी भाषी होते हुए भी हिन्दी के संवर्धन में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाने वाला प्रतिष्ठित निम्बार्क राष्ट्र सम्मान डा. हरमहेन्द्र सिंह बेदी को दिया गया। उन्हें ग्यारह हजार की नकद राशि, प्रशस्ति-पत्र,  शाल आदि भेंट किया गया। श्रेष्ठ कृति सम्मान विनोद बब्बर के यात्रा वृतांत ‘इब्सन के देश में’ को दिया गया। सर्वाधिक लम्बी हिन्दी गज़ल के विश्वरिकार्ड धारी गोला गोकरणनाथ के डा. मधुकर शैदाई तथा पटियाला के सागर सूद को निम्बार्क गज़ल शिरोमणि सम्मान में नकद राशि, शाल, शील्ड अर्पित कर कृतज्ञता ज्ञापित की गई। अनेक अन्य सम्मान भी प्रदान किये गये।

     इस अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में भाग लेने वालों में सागर सूद, मधुकर शैदाई, इरफान राही भी शामिल थे।

     इस अवसर पर आयोजित सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार और गुदगुदाने वाले पोस्टरों की किशोर श्रीवास्तव कृत ‘खरी-खरी’ कार्टून पोस्टर प्रदर्शनी को भी लोगों ने खूब सराहा। किशोर श्रीवास्तव द्वारा मंच पर प्रस्तुत सांस्कृतिक कार्यक्रम ने हिम्मत नगर के सहकार हाल में उपस्थित सैंकड़ों नागरिकों तथा विभिन्न भागों से आये हिन्दी प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी बहुमुखी प्रतिभा के कारण उन्हें ‘निम्बार्क सांस्कृतिक राजदूत सम्मान’ से नवाजा गया।

     सम्मेलन के पश्चात प्रतिभागी विद्वानों को साबरकांठा जिले के ऐतिहासिक सावड़ा जी मंदिर, ग्राम दर्शन तथा गुजरात की राजधानी गांधीनगर के विभिन्न मंदिरां उद्यानों तथा महत्वपूर्ण स्थलों का भ्रमण भी करवाया गया। 
(समाचार सौजन्य  :  किशोर श्रीवास्तव)


बहुप्रतीक्षित परिकल्पना ब्लॉग विश्लेषण 
 परिकल्पना ब्लॉग पर ब्लॉग जगत का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है. यहाँ उनकी निम्न प्रस्तुति टिपण्णी के साथ उअनाका लिंक दिया जा रहा है. यह विश्लेषण निश्चित रूप से पाठकों एवं विश्लेषकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा.
हालाँकि हिंदी ब्लॉग जगत अपने जन्म से हीं सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करता आ रहा  है ।लेकिन वर्ष-२०११ की ऐतिहासिकता का अपना एक अलग महत्व है । क्योंकि इस वर्ष उसके हलचलों की वैश्विक स्तर पर केवल चर्चा ही नहीं हुयी है वल्कि इस बात को भी स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया कि आम भारतीयों की स्थिति को हिंदी ब्लॉग जगत ने जितना वेहतर ढंग से प्रस्तुत किया है उतना न तो हिंदी की इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने और न  प्रिंट मीडिया ने ही प्रस्तुत किया इस वर्ष । यानी इस वर्ष हिंदी ब्लॉगिंग ने न्यू मीडिया के रूप में अपनी भूमिका का पूरा निर्वाह किया है ।

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आकांक्षा यादव को मानद डाक्टरेट की उपाधि

विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार के सोलहवें महाधिवेशन में युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चित ब्लागर आकांक्षा यादव को मानद डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की उपाधि से विभूषित किया गया। आकांक्षा यादव को मानद डाक्टरेट की इस उपाधि के लिए उनकी सुदीर्घ हिंदी सेवा, सारस्वत साधना, शैक्षिक प्रदेयों, राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में महनीय शोधपरक लेखन के द्वारा प्राप्त प्रतिष्ठा के आधार पर अधिकृत किया गया। उज्जैन में आयोजित कार्यक्रम में उज्जैन विश्वविद्यालय के कुलपति ने यह उपाधि प्रदान की। 

गौरतलब है कि आकांक्षा यादव की रचनाएँ देश-विदेश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव के लेख, कवितायें और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनों /पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीं आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं। पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ इंटरनेट पर भी सक्रिय आकांक्षा यादव की रचनाएँ तमाम वेब/ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं। व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’(http://shabdshikhar.blogspot.com) और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’ (http://balduniya.blogspot.com),‘सप्तरंगी प्रेम’ (http://saptrangiprem.blogspot.com) व ‘उत्सव के रंग’ (http://utsavkerang.blogspot.com) ब्लॉग का संचालन करने वाली आकांक्षा यादव न सिर्फ एक साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, बल्कि सक्रिय ब्लागर के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। ’क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा‘ पुस्तक का कृष्ण कुमार यादव के साथ संपादन करने वाली आकांक्षा यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु ने ‘बाल साहित्य समीक्षा‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है। 

मूलतः उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गाजीपुर जनपद की निवासी आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहां रहकर भी हिंदी को समृद्ध कर रही हैं। श्री यादव भी हिंदी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं। एक रचनाकार के रूप में बात करें तो आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है। 

इससे पूर्व भी आकांक्षा यादव को विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘एस0एम0एस0‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘साहित्य गौरव‘ व ‘काव्य मर्मज्ञ‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘साहित्य श्री सम्मान‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘आसरा‘ द्वारा ‘ब्रज-शिरोमणि‘ सम्मान, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘साहित्य मनीषी सम्मान‘ व ‘भाषा भारती रत्न‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘साहित्य सेवा सम्मान‘, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘देवभूमि साहित्य रत्न‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘उजास सम्मान‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘भारत गौरव‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘काव्य-कुमुद‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ‘शब्द माधुरी‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’, अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था,ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘सरस्वती रत्न‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा ’श्रेष्ठ कवयित्री’ की मानद उपाधि, जीवी प्रकाशन, जालंधर द्वारा ’राष्ट्रीय भाषा रत्न’ इत्यादि शामिल हैं। 

विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार के इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न भागों में कार्यरत हिन्दी सेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि, विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्वान, शिक्षक-साहित्यकार, पुरातत्वविद्, इतिहासकार, पत्रकार और जन-प्रतिनिधि शामिल थे। उक्त जानकारी विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ के कुल सचिव डा. देवेंद्र नाथ साह ने दी। (समाचार सौजन्य : दुर्गविजय सिंह ’दीप’ उपनिदेशक - आकाशवाणी (समाचार)पोर्टब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह)


डॉ ए. कीर्तिवर्धन ‘विद्यासागर’ की मानद उपाधि से सम्मानित

मुज़फ्फरनगर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ ए. कीर्तिवर्धन को उनके साहित्यक योगदान एवं हिंदी की सेवा के लिए ‘विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ,भागलपुर,बिहार’ के १६वे राष्ट्रीय अधिवेशन मे ‘विद्यासागर’ (डी लिट) की मानद उपाधि से अलंकृत किया गया। श्री राम नाम सेवा आश्रम,मौन तीर्थ,गंगा घाट,उज्जैन (मध्य प्रदेश) मे आयोजित विद्यापीठ के १६वे महाधिवेशन मे स्थानीय नागरिकों, पत्रकारों, समाज सेवियों, गुरुकुल के विद्यार्थियों के अलावा देश के कोने कोने से आये 150 से अधिक साहित्यकारों ऩे भाग लिया। दो दिन तक चले इस महाधिवेशन मे मुख्य अतिथि मध्य प्रदेश के खनन मंत्री श्री मालू जी रहे,अध्यक्षता जाने माने साहित्यकार डॉ रामनिवास मानव ऩे की,मंचासीन रहे डॉ तेज नारायण कुशवाहा,कुलपति,डॉ अमर सिंह वधान,सरदार जोबन सिंह ,डॉ देवेंदर नाथ साह तथा सं्चालन किया डॉ प्रेम चंद पाण्डेय ऩे। विदित हो कि डॉ ए. कीर्तिवर्धन को (मध्य प्रदेश) की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘कादंबरी’  द्वारा उनकी श्रेष्ठ निबंध कृति ‘चिंतन बिंदु’ के लिए स्वर्गीय ब्रहम कुमार प्रफुल्ल सम्मान से अलंकृत किया गया जिसके अंतर्गत अंगवस्त्रम,प्रशस्ति पत्र के साथ २१००/ की सम्मान राशि भी प्रदान कि गयी थी।
डॉ. ए. कीर्तिवर्धन की अब तक ७ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘जतन से ओढ़ी चदरिया’ बहुचर्चित रही जो कि बुजुर्गों कि समस्याओं पर केन्द्रित है। डॉ. ए. कीर्तिवर्धन पर ‘कल्पान्त’ पत्रिका ऩे अपना विशेषांक ‘साहित्य का कीर्तिवर्धन’ प्रकाशित कर उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर व्यापक प्रकाश डाला है। कीर्ति वर्धन जी कि अनेक रचनाओं का उर्दू तमिल, नेपाली ,अंगिका, अंग्रेजी  मैथिली मे अनुवाद व प्रकाशन भी हो चुका है। डॉ कीर्तिवर्धन को अब तक देश कि अनेक संस्थाओं से ५० से अधिक सम्मान मिल चुके हैं। (समाचार सौजन्य : रमेश चंद गह्तोरी,नैनीताल बैंक, जाग्रति एन्क्लेव,विकास मार्ग दिल्ली-92) 

चन्द्रभान भारद्वाज के ग़ज़ल संग्रह ‘हथेली पर अँगारे’ का लोकार्पण
   
 ‘हिन्दी ग़ज़ल ने भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र से लेकर अब तक एक लम्बी यात्रा की है। इस यात्रा में ग़ज़ल के स्वरूप में बहुत परिवर्तन देखने को मिलते हैं। दुष्यन्त कुमार की ग़ज़ल के स्वरूप के दर्शन ग़ज़लकार श्री चन्द्रभान भारद्वाज की ग़ज़लों में होते हैं। श्री चन्द्रभान भारद्वाज ने हिन्दी ग़ज़ल को भारतीय सांस्कृतिक रूप प्रदान किया है। उर्दू ग़ज़ल अरबी-फारसी की शैली और संस्कृति सोच से लदी-फदी है। भारतीय परिवेश में उसे ढालने का प्रयास जारी है। श्री चन्द्रभान भारद्वाज की यह विशेषता है कि उन्होंने ग़ज़ल को विशुद्ध भारतीय मुहावरा दिया है।’ ये विचार विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र शर्मा ने श्री चन्द्रभान भारद्वाज के सद्यः प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह ‘हथेली पर अँगारे’ पर इस संग्रह के लोकार्पण के अवसर पर मुख्य चर्चाकार के रूप में बोलत हुए व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि नयी पीढ़ी श्री चन्द्रभान भारद्वाज के लेखन से सीख ले सकती है। श्री भारद्वाज ने आज की समस्याओं पर बेबाक टिप्पणियाँ की हैं। उनकी ग़ज़लों में नई ऊर्जा, नई रोशनी और ताज़गी है जो श्रोता को बांधती है। आज जब संस्कारों पर प्रहार हो रहे हैं, ऐसे में श्री भारद्वाज का लेखन सहारा बांधता है कि अभी सब कुछ नष्ट नहीं हुआ है। इसे बचाया जा सकता है। रोज-रोज के जीवनानुभव और प्रतीक इन ग़ज़लों में मौजूद हैं।
   अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कवि श्री सत्यनारायण सत्तन ने कहा कि भारतीय साहित्यिक सन्दर्भ में ग़ज़ल की उत्पत्ति दोहे से मानी जानी चाहिए। भारतीय काव्य साहित्य में अनेक तरह के छन्द प्रचलित हैं, जिनका बहुत प्राचीन इतिहास है। इन छन्दों में दोहा सबसे अधिक लोकप्रिय छन्द रहा है। आज दोहे की जगह ग़ज़ल ने ले ली है। उन्होंने अतुकान्त कविता पर टिप्पणी करते हुए करते हुए कहा कविता केवल विचार से नहीं बढ़ती। इसके लिए उसका हृदयंगम होने वाला स्वरूप होना चाहिए। छन्दबद्ध कविता मन और मस्तिष्क दोनों को प्रभावित करती है। कविता की पठनीयता और श्रवण दोनों के अलग-अलग स्तर हैं और इनके अलग-अलग पाठक और श्रोता हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वाल्मीकि और तुलसीदास दोनों ने रामकथा लिखी पर बाल्मीकि की रामकथा के प्रशंसक और ज्ञाता कम हैं जबकि तुलसी की कविता के रसिक और भक्त दोनों बहुत हैं। कारण स्पष्ट है कि तुलसी साहित्य हृदय और मस्तिष्क दोनों को एक साथ प्रभावित करता है। उन्होंने कहा कि इसी तरह भारद्वाज की ग़ज़लें पाठक पर प्रभाव डालती हैं। उन्होंने भारद्वाज की ग़ज़ल को हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान देते हुए कहा कि भारद्वाज संस्कृति, सभ्यता और मानवता के कवि हैं। उनकी ग़ज़लों में पूरे मानवीय समाज के कल्याण की चिेता की गयी है। इस प्रकार ये ग़ज़लें कालजयी बन गयी हैं। इस अवसर पर रचनाकार श्री भारद्वाज ने चुनिन्दा ग़ज़लों का पाठ किया, जिसे श्रोताओं ने खूब सराहा। 
   समारोह के प्रारम्भ में सर्व श्री चंद्रसेन विराट, सुखदेव सिंह कश्यप, त्रयंबक चांदोरकर व प्रभु त्रिवेदी ने अतिथियों का स्वागत किया। सरस्वती वन्दना सौम्य भारद्वाज व प्रेरक ने की। अतिथियों को प्रतीक चिह्न कु. कार्तिकी शर्मा, सूर्यांश शर्मा और कु. आयुषी भारद्वाज ने प्रदान किए।
   कु. कार्तिकी शर्मा ने युवा पीढ़ी और वरिष्ठजनों के बीच संस्कारों की परम्परा पर प्रकाश डाला। संचालन श्री हरेराम बाजपेयी ने किया और आभार श्री विजय भारद्वाज ने माना। इस अवसर पर अनेक साहित्यिक संस्थाओं और काव्य प्रेमियों ने श्री भारद्वाज का सम्मान किया। (समाचार सौजन्य : राकेश शर्मा, पुस्तकालय मंत्री, श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इन्दौर, मानस निलयम, एम-2, वीणा नगर, इन्दौर, म.प्र.)




संतोष सुपेकर व राजेन्द्र नागर के संग्रहों का विमोचन

   ‘हर मनुष्य में राष्ट्रीयता का कुछ न कुछ अंश होता है, जरूरत सिर्फ उसे उभारने की होती है। यह कार्य राष्ट्रकवि, अमर शहीदों के चारण पं. श्रीकृष्ण शर्मा ‘सरल’ बखूबी किया करते थे।’ वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शिव चौरसिया ने शहीदों को समर्पित उज्जैन की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था ‘सरल काव्यंजलि’ द्वारा 1 जनवरी को आयोजित पं. श्रीकृष्ण ‘सरल’ जयंती कार्यक्रम में यह बात कही। उन्होंने सरल जी को देश का अद्भुत कवि बताते हुए उन्हें उज्जैन का गौरव निरूपित किया। इस अवसर पर साहित्यकार संतोष सुपेकर के काव्य संग्रह ‘चेहरों के आरपार’ एवं राजेन्द्र नागर ‘निरन्तर’ के लघुकथा संग्रह ‘खूंटी पर लटका सच’ का विमोचन भी सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ लघुकथाकार श्री सूर्यकान्त नागर (इन्दौर) ने दोनों साहित्यकारों के लगातार बढ़ते साहित्यिक कद की चर्चा करते हुए लघुकथा विधा की उपादेयता को परिभाषित किया। इस अवसर पर ‘समावर्तन’ के कार्यकारी सम्पादक श्रीराम दवे ने कहा कि संतोष सुपेकर की कविताओं में लघुकथा और राजेन्द्र नागर की लघुकथाओं में मुझे कविता के दर्शन होते हैं। उन्होंने कविता के महत्व पर भी अपनी टिप्पणी दी। समीक्षा वाचन माधव महाविद्यालय, उज्जैन के हिन्दी विभागाध्यक्ष व साहित्यकार डॉ. अरुण वर्मा एवं विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक एवं समीक्षक डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने किया। अध्यक्षता म.प्र.लेखक संघ, उज्जैन के अध्यक्ष डॉ. हरीश प्रधान ने की। संचालन श्री राजेन्द्र देवधरे ‘दर्पण’ एवं श्री विनोद मातवणकर ने किया। आभार प्रर्दशन नितिन पोल ने किया। इस अवसर पर सर्वश्री प्रेमनारायण नागर (वरिष्ठ पत्रकार), पिलकेन्द्र अरोरा, अशोक भाटी, हरीश कुमार सिंह, दिनेश दिग्गज, हुकुमचंद सौगानी तथा अनेकों स्थानीय साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन भी उपस्थित थे। (समाचार सौजन्य: नितिन पोल, सचिव, सरल काव्यांजलि, उज्जैन)

चन्द्रभान भारद्वाज ‘मेहमूद ज़की स्मृति सम्मान’ से सम्मानित

इन्दौर के वरिष्ठ कवि चन्द्रभान भारद्वाज को म.प्र. लेखक संघ, भोपाल के ‘मेहमूद ज़की स्मृति सम्मान’ से हिन्दी भवन, भोपाल के सभागार में म.प.्रनागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष श्री रमेश शर्मा, संघ के प्रदेश अध्यक्ष श्री बटुक चतुर्वेदी व म.प्र. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के मंत्री श्री कैलाशचन्द्र पंत द्वारा प्रदान किया गया। प्रदेश सरकार में मंत्री श्री बाबू लाल गौर भी इस अवसर पर उपस्थित रहे। (समाचार प्रस्तुति: प्रदीप नवीन, सचिव म.प्र. लेखक संघ, शाखा इन्दौर)




तमाशा के लिए शशांक मिश्र भारती को सम्मान


पिथौरागढ। राजकीय इण्टर कालेज दुबौला में कार्यरत शिक्षक साहित्यकार शशांक मिश्र भारती को उनकी लघुकथा-तमाशा- के लिए गत 20 नवम्बर को दिनेशपुर में आयोजित हुए अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता 2011 के सम्मान समारोह में सम्मानित किया गया। इसके अर्न्तगत इन्हें प्रशस्तिपत्र, स्मृति चिन्ह , विश्वस्तरीय पुस्तके, 501 रुपये नकद,पत्रिका की एक वर्ष की सदस्यता व पारकर पेन देकर श्री पी.सी. तिवारी अध्यक्ष उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी, श्री चारूतिवारी संपादक जनपक्ष नई दिल्ली व संपादक प्रेरणाअंशु ने संयुक्त रूप से सम्मानित किया। आयोजन में वरिष्ठ कथाकार श्री पकंज विष्ट, डा.शम्भूशरण पाण्डेय, सुभाष बेहड़, सुश्री शिल्पी अरोड़ा, बल्ली सिंह चामा जनकवि, राजीवलोचन शाह बाबा कश्मीर सिंह,दीपा पाण्डेय, रामकुमार आत्रेय,विजय सिंह, कस्तूरी लाल तागरा आदि अनेक विद्वानों ने लघुकथा पर अपने विचार रखे। देश भर से कुल दो सौ  एक प्रतियोगियों में से  चयनित दस लघुकथाकार सम्मानित हुए।
      लघुकथा के लिए इससे पूर्व इनको हमसबसाथ-साथ पत्रिका नईदिल्ली व सामाजिक आको्रश पाक्षिक सहारनपुर सम्मानित कर चुका है।  इनकी हमबच्चे, पर्यावरण की कविताएं, बिना विचारे का फल, क्यों बोलते हैं बच्चे झूठ, मुखिया का चुनाव व आओ मिलकर गाएं पुस्तकें छप चुकी हैं विद्यालय पत्रिका रामेश्वर रश्मि सहित कई पुस्तकों, विशेषांकों का इन्होंने सम्पादन किया है। देश-विदेश की छः दर्जन संस्थायें इनको सम्मानित कर चुकी हैं सम्मान प्राप्त होने पर क्षेत्रवासियों, शिक्षकों व कई साहित्यकारों नें प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बधाई दी है। ((समाचार प्रस्तुति : शशांक मिश्र भारती)


रवीन्द्र ज्योति का लोकार्पण


नई दिल्ली   हरियाणा जीन्द से पिछले 41 वर्षों से प्रकाशित साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मासिक पत्रिका रवीन्द्र ज्योति का नवम्बर,2011 अंक साहित्य प्रेमी ,दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल की 13 प्रतिनिधि कविताओं को शब्दों के रंग शीर्षक के तहत शामिल किया गया है। जो सामाज के विविध रंगो का प्रतिनिधित्व करती है। इसके उतिथि संपादक श्री रजनीश रल्हन है।
इस विशेषांक का लोकार्पण अल्फा शैक्षणिक संस्थान,मीठापुर में डा. केवल कृष्ण पाठक(जीन्द),डा. एस.सी. पाण्डेय(नोयडा),इंटर कालेज जीन्द के प्रचार्य़ डा. गणेश कौशिक,लाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच की अध्यक्षा श्रीमती सोनू गुप्ता,लाल बिहारी लाल तथा डा.ए.कीर्तिवर्धन ने किया।
इस अवसर पर डा.आर.कान्त,श्रीमती शारदा गुप्ता,श्री आकाश पागल,डा. रमा स्नेही,श्री उमा शंकर दूवे,श्री मनोज सिंह, श्री रविन्द्र तिवारी,श्री वरुण सर,महेन्द्र प्रीतम आदि साबित्यकार एवं पत्रकार मौयूद थे।
इस अवसर पर एक काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें डा.केवल कृष्ण,श्री लाल बिहारी लाल,श्री आकाश पागल,डा.एस.सी. पाण्डेय,श्रीउमा शंकर दूवे आदी ने भाग लिया। इस कार्यक्रम की अधायक्षता जीन्द से पधारे डा. केवल कृष्ण पाठक ने किया । (समाचार सौजन्य :  सोनू गुप्ता, अध्यक्ष : लाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच, नई दिल्ली)

92. डॉ. सुरेन्द्र वर्मा

डॉ. सुरेन्द्र वर्मा






जन्म :  26 सितम्बर 1932। 
शिक्षा :  एम.ए., पी-एच.डी.।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  डॉ. सुरेन्द्र वर्मा एक लेखक एवं कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं वहीं एक सफल चित्रकार के रूप में भी उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। लेखक के रूप में एक ओर उन्होंने व्यंग्य के क्षेत्र में प्रतिष्ठा अर्जित की है, वहीं  साहित्य, कला और संस्कृति के साथ दर्शनशास्त्र व मनोविज्ञान पर भी महत्वपूर्ण लेखन किया है। वह दर्शनशास्त्र के आचार्य माने जाते हैं। कविता के क्षेत्र में भी उनका योगदान उल्लेखनीय है। एक हाइकुकार के साथ उन्होंने ‘तिपाइयों’ की शक्ल में हास्य-व्यंग्य की कविताओं को एक नया रूप दिया है। उनकी ये तिपाइयाँ ‘राग खटराग’ में संग्रहीत हैं। उन्होंने गीता, माण्डूक्य और ईशावास्य उपनिषदों का तथा आचरांग की कुछ गाथाओं का हिन्दी में काव्यानुवाद भी किया है, जो ‘अमृतकण’ पुस्तक में संग्रहीत है। डॉ. वर्मा जी म.प्र. के शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालयों में प्राचार्य, इंदौर विश्वविद्यालय के कला संकाय के अध्यक्ष, पार्श्वनाथ विद्यापीठ वाराणसी में अहिंसा, शांतिशोध और मूल्य शिक्षा विभाग के आचार्य और अध्यक्ष रहे हैं। वर्तमान में वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गांधी अध्ययन केन्द्र की सलाहकार समिति के सदस्य हैं। आपकी लगभग दो दर्जन पुस्तके प्रकाशित हुई हैं, जिनमें प्रमुख हैं- लोटा और लिफाफा, कुरसियाँ हिल रही हैं, हंसो लेकिन अपने पर, अपने-अपने अधबीच, रामभरोसे (व्यंग्य एवं रोचक निबन्धों के संग्रह)ः साहित्य समाज और रचना, कला विमर्श और चित्रांकन, संस्कृति का अपहरण, भारतीय कला एवं संस्कृति के प्रतीक (साहित्य, कला एवं संस्कृति पर); मनोविज्ञान की झलकियाँ, भारतीय जीवन मूल्य, पाश्चात्य दर्शन की समकालीन प्रवृत्तियाँ, मैटाफिसिकल फाउन्डेशन ऑव महात्मा गांधीज़ थॉट(शोध ग्रंथ), गांघी विचारधारा- प्रासंगिकता और भविष्य, भारतीय दर्शन- संप्रदाय और समस्याएँ, नीतिशास्त्र की समकालीन प्रवृत्तियाँ (दर्शनशास्त्र तथा मनोविज्ञान पर) अमृत कण (उपनिषदादि का काव्यानुवाद), कविता के पार कविता, अस्वीकृत सूर्य, उसके लिए (कविता संग्रह), धूप कुन्दन (हाइकु संग्रह) एवं राग खटराग (हास्य व्यंग्य तिपाइयाँ) आदि। देश की अधिकांश प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं एवं रेखांकनो का नियमित प्रकाशन होता है।
सम्मान : उ.प्र. हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा ‘हंसो लेकिन अपने पर’ पुस्तक पर शरद जोशी ‘सर्जना’ पुरस्कार तथा ‘साहित्य समाज और रचना’ पर महावीर प्रसाद द्विवेदी नामित पुरस्कार।
सम्प्रति :  इलाहाबाद विश्वविद्यालय के गांधी अध्ययन केन्द्र की सलाहकार समिति के सदस्य एवं समर्पित लेखन।
सम्पर्क : 10, एच.आई.जी., 1-सर्कुलर रोड, इलाहाबाद (उ.प्र.)
फोन : 0532-2624438 / 09621222778





अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन    
रेखांकनों का प्रकाशन :  जून 2011 अंक एवं उसके बाद के मुद्रित एवं ब्लाग दोनों ही प्रारूपों के लगभग सभी अंकों में डॉ. वर्मा साहब के रेखांकन प्रकाशित हुए हैं।
रचनाओं को प्रकाशन : 
मुद्रित प्रारूप :  जून 2011 अंक में पांच हाइकु
             दिसम्बर 2011 अंक में व्यंग्यालेख ‘भीतर और बाहर का फर्क’
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अक्टूबर 2011 अंक में व्यंग्यालेख ‘उंगलियों के पंचशील’



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91. डा. उमेश महादोषी

डा. उमेश महादोषी






जन्म : लगभग पचास वर्ष पूर्व ग्राम दौलपुरा, जिला एटा, उत्तर प्रदेश में। 
शिक्षा : कृषि अर्थशास्त्र में एम.एस-सी. (कृषि), पी-एच.डी. एवं सी.ऐ.आई.आई.बी.।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  मुख्यतः नई कविता, क्षणिका एवं समीक्षा के साथ अन्य विधाओं में यदा-कदा लेखन। १९९२-१९९३ तक निरंतर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन,  उसी दौरान ‘नई कविता’ की लघु पत्रिका ‘चन्द्रहास’ बाद में ‘अविराम’ का एवं क्षणिका संकलन ‘सीपियां और सीपियां’ (डॉ. सुरेश सपन के साथ) एवं ‘क्षणिका’ की लघु पत्रिका ‘आहट’ का (श्री बलराम अग्रवाल अग्रवाल जी के साथ) सम्पादन। आगरा की तत्कालीन बहुचर्चित संस्था ‘शारदा साहित्य एवं ललित कला मंच’ से जुड़कर साहित्यिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी निभाई। वर्ष १९९२-९३ के बाद से लम्बे साहित्यिक विश्राम के बाद २००९ में फिर से साहित्यिक दुनियां में लौटने की कोशिश के साथ वर्ष २०१० में समग्र साहित्य की लघु पत्रिका के रूप में ‘अविराम’ का पुनः संपादन प्रारंभ किया। एक क्षणिका संग्रह ‘आकाश में धरती नहीं है’ प्रकाशित। कविता संग्रह ‘हम चिलम पीते हैं’ धारावाहिक रूप में लघु पत्रिका ‘चन्द्रहास’ में प्रकाशित। स्वयं के तीन ब्लाग्स- 1. अपनी क्षणिकाओं के ब्लाग ‘जिन्दगी के आकाश में‘ (http://jindagikeaakashmen.blogspot.com), 2. अपनी क्षणिका से इतर कविताओं के ब्लाग ‘बोतल खाली नहीं है’ (http://botalkhalinahinhai.blogspot.com) एवं अपनी काव्येतर रचनाओं के ब्लाग ‘यदाकदा लेखन’ (http://yadkadalekhan.blogspot.com) पर उपलब्ध। इन्टरनेट पत्रिकाओं ‘अनुभूति’, ‘हिन्दी हाइकु’ एवं ‘त्रिवेणी’ पर भी रचनाएं प्रकाशित।


सम्प्रति : एक राष्ट्रीयकृत बैंक में प्रबन्धक पद से जनवरी २००९ में स्वैच्छिक सेवानिवृति लेने के बाद त्रैमासिक ‘अविराम’ (अब ‘अविराम साहित्यिकी’) एवं ‘अविराम’ (http://aviramsahitya.blogspot.com) मासिक ब्लॉग का सम्पादन।
सम्पर्क :  एफ-488/2, गली संख्या-11, राजेन्द्रनगर, रुड़की-247667, जिला-हरिद्वार (उत्तराखंड)
फोन : 09045437142 / 09412842476
ईमेल : umeshmahadoshi@gmail.com





अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन    
मुद्रित प्रारूप :  सम्पादकीय स्तम्भ ‘माइक पर’ 
मार्च 2010 अंक में दो कविताएं एवं दो क्षणिकाएं 
सितम्बर-दिसम्बर 2010 अंक में डॉ. अशोक भाटिया के लघुकथा संग्रह ‘अंधेरे में आंख’ पर संक्षिप्त समीक्षा- ‘अपने मुकाम पर पहुंची लघुकथाएं’
मार्च 2011 अंक में दो संक्षिप्त समीक्षाएं- ‘समाज की आंखें खोलती लघुकथाएं’ (श्री संतोष सुपेकर के लघुकथा संग्रह ‘बन्द आंखों का समाज’ पर) एवं ‘व्यंग्य की ताकत और सीमाओं का अहसास’ (श्री बृजमोहन श्रीवास्तव के व्यंग्य लेखों के संग्रह ‘कुछ कुछ नहीं बहुत कुछ होता है’ पर)।
जून 2011 अंक में क्षणिका पर एक आलेख ‘क्षणिका की सामर्थ्य’
सितम्बर 2011 अंक में चार समीक्षाएं- ‘समकालीन यथार्थ को अभिव्यक्त करता एक त्रिपदिक छंद’ (डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ के जनक छन्द संग्रह ‘जनक छन्द का प्रथम सहस्त्रक’ पर), ‘कविता और दार्शनिकता के मध्य तीखी लघुकथाएं’ (श्री पारस दासोत के लघुकथा संग्रह ‘मेरी मानवेतर लघुकथाएं’ पर), ‘उत्तराखण्ड की धड़कनों की अनुभूति’ (श्री बलराम अग्रवाल की पुस्तक ‘उत्तराखण्ड’ पर) एवं ‘मनुष्यता की राह दिखाती कविताएं’ (श्री किशन कबीरा के कविता संग्रह ‘दलित टोला’ पर)।
दिसम्बर 2011 अंक में दो संक्षिप्त समीक्षाएं- ‘धाह देती धूप: गीत का अच्छा उदाहरण’ (श्री हृदयेश्वर के गीत संग्रह ‘धाह देती धूप’ पर) एवं ‘राम भरोसे: कलात्मक व्यंग्य’ (डॉ. सुरेन्द्र वर्मा के व्यंग्य एवं रोचक आलेखों के संग्रह ‘रामभरोसे’ पर)।

ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : सभी अंकों में सम्पादकीय स्तम्भ ‘मेरा पन्ना’
सितम्बर 2011 अंक में समीक्षा (डॉ. भावना कुँअर  के हाइकु संग्रह ‘तारों की चूनर’ पर) एवं दो पत्रिकाओं ‘असिक्नी’ एवं ‘प्रेरणा, समकालीन लेखन के लिए’ पर परिचयात्मक टिप्पणियां।
अक्टूबर 2011 अंक में समीक्षा (श्री गांगेय कमल के कविता संग्रह ‘कतरा-कतरा ज़िन्दगी’ पर) एवं चार पत्रिकाओं ‘कथा संसार’, ‘संकेत’, ‘समकालीन अभिव्यक्ति’ एवं ‘हम सब साथ-साथ’ पर परिचयात्मक टिप्पणियां। 
नवम्बर 2011 अंक में दो पत्रिकाओं ‘आरोह-अवरोह’ एवं ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’ पर परिचयात्मक टिप्पणियां।
दिसम्बर 2011 अंक में एवं दो पत्रिकाओं ‘हरिगंधा’ एवं ‘मोमदीप’ पर परिचयात्मक टिप्पणियां।


द्रश्य छाया-चित्र : दोनों प्रारूपों के अधिकांश अंकों में द्रश्य छाया चित्रों का भी प्रकाशन


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90. डॉ. बाल कृष्ण पाण्डेय

डॉ. बाल कृष्ण पाण्डेय


जन्म : 28 मई 1959 को ग्राम पुरने मऊ, तह. कुण्डा जिला प्रतापगढ़, उ.प्र. में ।
शिक्षा :  एम.ए., डी.फिल.।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  कविता, कथा साहित्य एवं आलोचना में लेखन। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल, कविताएं, भूमिकाएं एवं शोध पत्र प्रकाशित। कुछेक पत्रिकाओं का सम्पादन। सूरदास, प्रेमचंद: विचारधारा और साहित्य (आलोचना), गौरैया से छोटा आदमी, रोचक कहानियां (बाल कहानी संग्रह) प्रकाशित कृतियां।
सम्प्रति :  राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, फतेहपुर में हिन्दी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष।
सम्पर्क :  विभागाध्यक्ष (हिन्दी), राज. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, फतेहपुर, उ.प्र.
मोबाइल : 09450945041


अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन    

मुद्रित प्रारूप : जून 2011 अंक में चार हाइकु
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अभी नहीं 






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२. उपरोक्त परिचय हमें भेजे गए अथवा हमारे द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. किसी भी त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. त्रुटि के बारे में रचनाकार द्वारा हमें सूचित करने पर संशोधन कर दिया जायेगा। यदि रचनाकार अपने परिचय में कुछ अन्य सूचना शामिल करना चाहते हैं, तो इसी पोस्ट के साथ के टिपण्णी कॉलम में दर्ज कर सकते हैं। यदि किसी रचनाकार को अपने परिचय के इस प्रकाशन पर आपत्ति हो, तो हमें सूचित कर दें, हम आपका परिचय हटा देंगे