आपका परिचय

शनिवार, 25 मई 2013

सामग्री एवं सम्पादकीय पृष्ठ : अप्रैल 2013

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 2,   अंक  : 8, अप्रैल  2013

संपादक :  डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल : 09412842467)
संपादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन  
ई मेल :  aviramsahityaki@gmail.com 

शुल्क, प्रकाशन आदि संबंधी जानकारी इसी ब्लॉग के "अविराम का प्रकाशन" लेवल/खंड में दी गयी है।

।।सामग्री।।

रेखाचित्र : राजेन्द्र परदेसी 




कृपया सम्बंधित सामग्री के पृष्ठ पर जाने के लिए स्तम्भ के साथ कोष्ठक में दिए लिंक पर क्लिक करें।



अविराम विस्तारित : 

काव्य रचनाएँ  {कविता अनवरत:    इस अंक में डॉ. रश्मि बजाज, शेर सिंह,  पूजा भाटिया प्रीत, अमित ‘अहद’, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, सजीवन मयंक, धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’ एवं अशोक भारती ‘देहलवी’ की काव्य रचनाएँ।

लघुकथाएँ   {कथा प्रवाह} : इस अंक में श्री सिमर सदोष, डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव, श्री माधव नागदा, सुश्री आशा शैली ‘हिमाचली’, डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, पुरुषोत्तम कुमार शर्मा, सूर्यकान्त श्रीवास्तव, गांगेय कमल एवं सुजीत आर. कर की लघुकथाएं।

कहानी {कथा कहानी  पिछले अंक तक अद्यतन।

क्षणिकाएँ  {क्षणिकाएँ:   इस अंक में नित्यानंद गायेन  की क्षणिकाएँ।

हाइकु व सम्बंधित विधाएँ  {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ}  : इस अंक में सर्वश्री राजेन्द्र परदेशी, सिद्धेश्वर व वंशस्थ गौतम के हाइकु

जनक व अन्य सम्बंधित छंद  {जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द:  महावीर उत्तरांचली  के पाँच जनक छंद।

बाल अविराम {बाल अविराम:  इस अंक में श्यामसुन्दर अग्रवाल  की बाल-कहानी 'प्यार का फल' एवं डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’ की दो बाल कविताएँ ।

हमारे सरोकार  (सरोकार) :   पिछले अंक तक अद्यतन।

व्यंग्य रचनाएँ  {व्यंग्य वाण:    पिछले अंक तक अद्यतन।

संभावना  {सम्भावना:    पिछले अंक तक अद्यतन।

स्मरण-संस्मरण  {स्मरण-संस्मरण:  पिछले अंक तक अद्यतन।

अविराम विमर्श {अविराम विमर्श} : इस अंक में डॉ. सुरेन्द्र वर्मा का हाइकु विषयक आलेख 'हिंदी हाइकु का सामाजिक सरोकार'।

किताबें   {किताबें} :  इस अंक में डॉ. रश्मि बजाज के काव्य संग्रह ‘‘स्वयं सिद्धा’’ की वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ द्वारा एवं पुरुषोत्तम कुमार शर्मा के लघुकथा संग्रह ‘छोटे कदम’ की डा. शरद नारायण खरे द्वारा लिखित समीक्षा। 

लघु पत्रिकाएँ   {लघु पत्रिकाएँ} :  पिछले अंक तक अद्यतन।

हमारे युवा  {हमारे युवा} :   पिछले अंक तक अद्यतन।

गतिविधियाँ   {गतिविधियाँ} : पिछले दिनों प्राप्त साहित्यिक गतिविधियों की सूचनाएं/समाचार।
अविराम की समीक्षा (अविराम की समीक्षा) : पिछले अंक तक अद्यतन।

अविराम के अंक  {अविराम के अंक} :   पिछले अंक तक अद्यतन।

अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के पाठक सदस्य (हमारे आजीवन पाठक सदस्य) :  अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के 14 मई 2013  तक अद्यतन आजीवन एवं वार्षिक पाठक सदस्यों की सूची।

अविराम के रचनाकार  {अविराम के रचनाकार} : पिछले अंक तक अद्यतन।

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मेरा पन्ना 
  • यह अंक कुछ अधिक ही बिलम्ब से आ सका। मेरी व्यक्तिगत व्यस्तताओं के चलते अगले कुछ और अंकों में भी विलम्ब संभावित है। क्षमा करें!
  • क्षणिका विशेषांक के लिए सामग्री भेजने का आग्रह एक बार पुन: दोहरा रहा हूँ। जिन मित्रों न सूचना न पढ़ी हो, वे निम्न लिंक पर क्लिक करके पिछले माह के सम्पादकीय पृष्ठ पर जाकर जानकारी ले सकते हैं-http://aviramsahitya.blogspot.in/2013/02/2013.html
  • कृपया ई मेल से सामग्री हर हाल में कृतिदेव 010 या यूनीकोड फोन्ट में ही भेजें।
  • पत्रिका का सदस्यता शुल्क कृपया रुड़की पर देय  सी टी एस चेक या बैंक ड्राफ्ट द्वारा ही भेजें, धनादेश (मनिआर्डर) द्वारा न भेजें।
  • कल यानी 18.05.2013 की सुबह श्री मनोहर शर्मा ‘माया’ जी ने फोन पर वरिष्ठ शायर श्री साज जबलपुरी जी के निधन का दुःखद समाचार दिया। साहित्य जगत के लिए यह एक बड़ी छति है। साज साहब ने ‘मिजराब’, ‘किरचें’ एवं ‘शरम मगर इनको आती नहीं’ जैसी महत्वपूर्ण कृतियां दी।  हम पूरे अविराम परिवार की ओर से वरिष्ठ शायर को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

अविराम विस्तारित

विराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2, अंक : 8,  अप्रैल 2013

।।कविता अनवरत।।

सामग्री :  इस अंक में डॉ. रश्मि बजाज, शेर सिंह,  पूजा भाटिया प्रीत, अमित ‘अहद’, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, सजीवन मयंक, धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’ एवं अशोक भारती ‘देहलवी’ की काव्य रचनाएँ।



डॉ. रश्मि बजाज




{सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. रश्मि बजाज का कविता संग्रह ‘स्वयं सिद्धा’ इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है। स्त्री विमर्श के सन्दर्भ में बाह्य जगत की क्रियायें हों या परिवेशगत अन्तर्विरोध, संग्रह की अधिकांश कविताओं में उन्होंने स्त्री की वास्तविक पहचान को कुरेदकर अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है। संग्रह से प्रस्तुत हैं उनकी कुछ प्रतिनिधि कविताएँ।}


सीता नाम सत्य है

सीता नाम भी
सत्य है उतना
रेखाचित्र : के. रविन्द्र 

राम नाम
सच है जितना
सच जानो तो
सीता नाम ही
सदा सत्य है-
जाँचा, परखा
तपा, मंजा
अग्नि-परीक्षा
से गुज़रा
धरती के
आँचल से जुड़ा....

एक अज़ान

जोड़ोगे जब
अपने साथ
औरत की भी
एक अज़ान
सच जानो
रेखाचित्र : हिना फिरदोस 

तब ही तुमको
फल पाएंगे
रमज़ान, कुरान

खोलो बंद
किवाड़, हुजूर
आए भीतर
खुदा का नूर!

आदम के बच्चे!
हव्वा की
बच्ची को
कब तक
रख पाएगा
तू अल्लाह
से दूर?

स्वयंसिद्धा

सुन लो
तुम सब
बुद्ध, प्रबुद्ध
उसे न करना
रेखाचित्र : राजेन्द्र सिंह 

‘धम्मपद’ सिद्ध!

तुमने जो
खोजा है
मरण में
स्त्री ने
ढूँढ़ लिया
जीवन में

स्त्री है
नृत्य है
स्त्री संगीत
स्त्री रसधार
है स्त्री
है प्रीत

बँधे वो
शास्त्र में
कैसे भला
स्त्री होती है
स्वयंसिद्धा!

जिंक्सड

इनाम है
पैदा होने पर
इनाम है
शाला जाने पर
रेखाचित्र : बी मोहन नेगी 
इनाम है
ब्याह रचाने पर

इतने ‘इंसैटिव’
दे कर भी
नहीं बढ़ती
मेरी ‘प्रोडक्शन’
मैं हूँ
ईश्वर का
‘जिंक्सड आइटम’....

  • विभागाध्यक्ष, अंग्रेजी विभाग, वैश्य पी.जी.कॉलेज, भिवानी (हरियाणा)




शेर सिंह




नया अंदाज

जुबान में चाशनी
कदमों में ठहराव
फिर कोई नई चाल?
रेखाचित्र : राजेन्द्र परदेशी 

कुशलक्षेम, राम-राम
अचानक गलबांहे डालते
कोई नया पंछी जाल में?

सर्द, गर्म
बदले बोल, व्यवहार
क्या गजब नया अंदाज?

है चतुर खिलाड़ी
सभी समझते, जानते
आंखें होते हुए भी अंधे सब?  


  • के.के.-100 कविनगर, गाजियाबाद-201 001(उ.प्र.)



पूजा भाटिया प्रीत




पुरुष मन

दशरथ की पीर का अनुमान
किसे न था ?
कौशल्या के मन का भान
किसे न था?
राम के बनवास का त्रास
किसे न दिखा?
सीता की वेदना
किसने न महसूस की ?
भरत का घाव
किसने न भोगा ?
रेखाचित्र : डॉ सुरेन्द्र वर्मा 

हनुमान का भक्ति भाव
किस से अनछुआ रहा?
उर्मिला का विरह क्रंदन
किस से छुपा रहा?
यहाँ तक की चंद विराट हृदय लोगो ने
मंथरा और कैकई को भी
समझा या समझने का प्रयत्न किया
सबने सब महसूस किया
अपनी-अपनी सीमा तक
क्या अनछुआ रह गया रामायण में?
क्या किसी ने लक्ष्मण के अथाह मन को समझा?
क्यों अपना संसार मोह छोड़
वो चल दिया राम संग?
उर्मिला को विरह विछोह उपहार में दे?
क्या पाना ध्येय था उसका?
क्या भान था उसे राम के भगवान होने का?
क्या चौदह सालों में एक पल भी
विरह न सहा उसने?
क्यूँ नकार दिया हमने पुरुष में
छिपे स्त्री मन को?
जो तड़पा भी होगा कभी
अपनी उर्मी की याद में?
क्यों अनछुआ, अनकहा रह गया
लक्ष्मण का मन?
क्या इस लिए की लक्ष्मण पुरुष हैं?
क्या पुरुष नहीं होते भावुक?
क्या उन्हें नहीं सताती विरह-वेदना?
सोचिये.....
सोचिये.....  क्यों कि ....
प्रश्न सोचनीय तो है.....


  • 365-बी सूर्यदेव नगर, अन्नपूर्णा रोड, इंदौर 452009







अमित ‘अहद’



ग़ज़ल

कुछ न कुछ तो जरूर होता है
इश्क का जब सरूर होता है

आप से दूर जब भी जाता हूँ
दर्द दिल में हुजूर होता है

बात सच्ची अगर कहे भी तो
छाया चित्र : रामेश्वर कम्बोज हिमांशु 
आइना चूर-चूर होता है

इन्साँ कोई बुरा नहीं होता
वक्त का सब क़ुसूर होता है

जब नज़र से नज़र टकरातीी है
चर्चा फिर दूर-दूर होता है

प्यार उससे खुदा नहीं करता
‘अहद’ जिसको गरूर होता है


  • ग्राम व पोस्ट: मुजफ्फराबाद-247129, जिला: सहारनपुर (उ.प्र.)




त्रिलोक सिंह ठकुरेला



कुंडलियां

1.
अपनी अपनी अहमियत, सूई या  तलवार।
उपयोगी हैं  भूख में, केवल रोटी चार।।
केवल रोटी चार, नहीं खा सकते सोना।
 सूई  का कुछ  काम, न तलवारों से होना।।
‘ठकुरेला’ कविराय , सभी की माला जपनी।
छोटा हो कि लघुरूप , अहमियत सबकी अपनी।।

2.
नहीं समझता मंदमति, समझाओ सौ बार।
मूरख से पाला पड़े, चुप रहने में सार।।
चुप रहने में सार, कठिन इनको समझाना।
जब भी जिद लें ठान , हारता सकल जमाना।।
‘ठकुरेला’ कविराय , समय का डंडा बजता।
करो कोशिशें लाख, मंदमति नहीं समझता।।
छाया चित्र : उमेश महादोषी 

3.
मानव की कीमत तभी, जब हो ठीक चरित्र।
दो कौड़ी का भी नहीं, बिना महक का इत्र।।
बिना महक का इत्र, पूछ सदगुण  की होती।
किस मतलब का यार, चमक जो खोये मोती।।
‘ठकुरेला’ कविराय , गुणों की ही महिमा सब।
गुण, अवगुण अनुसार असुर सुर, मुनि-गण, मानव।।
  • बंगला संख्या-एल-99,रेलवे चिकित्सालय के सामने, आबू रोड-307026 (राज.) 





सजीवन मयंक




{वरिष्ठ कवि श्री सजीवन मयंक का ग़ज़ल संग्रह ‘बीमार उजाले दिखते हैं’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत हैं उनके इस संग्रह से दो ग़ज़लें।}

दो ग़ज़लें

1. जिसके साथ दुआ चलती है

जिसके साथ दुआ चलती है
उसके साथ हवा चलती है

हर मरीज जिन्दा है तब तक
जब तक साथ दवा चलती है

उम्र कैद का यह मतलब है
जब तक सांस सजा चलती है

सच्चाई हो भले अकेली
सर को सदा उठा चलती है

पूरी बस्ती जान चुकी जब
घर की बात पता चलती है

आंधी के आने पर देखा
बूढ़े पेड़ गिरा चलती है

चंदन की खुश्बू तो हरदम
छायाचित्र : रोहित काम्बोज 
उसके साथ सदा चलती है

2. पक्के रिश्ते कच्चे घर में

पक्के रिश्ते कच्चे घर में
अपनापन बूढ़े छप्पर में

जीवन भर का साथ मिल गया
अनायास ही किसी सफर में

जिसको तुम सागर कहते हो
रहता है मेरी गागर में

प्रेम कहानी लिखी हुई है
किसी पहाड़ी के पत्थर में

दुनियां भर के लिये उजाला
है सूरज की एक नज़र में

मिली एक नवजात बालिका
सड़क किनारे कचरे-घर में
  • 251, शनिचरा वार्ड-1, नरसिंह गली, होशंगाबाद-461001 (म.प्र.)



धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’




ग़ज़ल

क्यूँ न काँपें फूस की ये बस्तियाँ
तेज़ बारिश और तड़पती बिजलियाँ

इक कसक-सी दिल में उठती है मेरे
देखता हूँ जब गुलों पर तितलियाँ

भर गयी सब्ज़ों से घर की हर दरार
छाया चित्र : पूनम गुप्ता 

अबके यूँ सावन में बरसी बदलियाँ

एक ईश्वर और कितने धर्म हैं
एक साहिल और कितनी कश्तियाँ

लिख रहा था ख़त में ‘साहलि’ सच उसे
काँपती जाती थीं मेरी उँगलियाँ


  • के 3/10 ए, माँ शीतला भवन, गायघाट, वाराणसी-221001(उ.प्र.)



अशोक भारती ‘देहलवी’




किसको पता


फिर तेरे रहने गुजर जाने का है किसको पता!
ये अलाव हुई बस्तियाँ यूं उजड़ेंगी किसको पता!

इन दरख्तों पर लटके हैं ढेरों दुपट्टे आज तक,
ऐसी भी सूली चढेंगी बेटियाँ किसको पता!

बहला-फुसला कर हवाएँ ले गई मजलूम को,
इस तरह मछली फंसेगी जाल में किसको पता!

आज भी बस धूप के रस्ते में दहशत बड़ी,
कब झुलस दे ज़िन्दगी सूरज ही किसको पता!
छायाचित्र : डॉ बलराम अग्रवाल 


आशियां हमने बनाने में लगा दी ज़िन्दगी,
पूछती फिरती है फिर से आंधियाँ घर का पता!

जब मिला वो मुस्करा कर ही गले मेरे लगा,
दर्द इक बहता था उसके अन्दर भी किसको पता!

ना जाने क्या फितूर में कह गया अच्छी बुरी,
कि जहर से भी तेज है बातों का असर किसको पता!
  • 562, पॉकेट-2, सेक्टर-4, निकट बालकराम अस्पताल, तिमारपुर, दिल्ली-110054 

रविवार, 19 मई 2013

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग : वर्ष  :  2,  अंक  : 8,  अप्रैल 2013

।।कथा प्रवाह।।

सामग्री :  इस अंक में श्री सिमर सदोष, डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव, श्री माधव नागदा, सुश्री आशा शैली ‘हिमाचली’, डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, पुरुषोत्तम कुमार शर्मा, सूर्यकान्त श्रीवास्तव, गांगेय कमल एवं सुजीत आर. कर की लघुकथाएं।

'आधुनिक हिन्दी लघुकथाएँ' संकलन से 

{युवा साहित्यकार श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला के सम्पादन में ‘‘आधुनिक हिन्दी लघुकथाएँ’’ नाम से लघुकथा संकलन का प्रकाशन गत वर्ष हुआ था। इस संकलन में कुछ स्थापित और कुछ संघर्षरत, कुल पचपन लघुकथाकारों की लघुकथाएँ संकलित हैं। इसी संकलन से प्रस्तुत हैं श्री सिमर सदोष, डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव, श्री माधव नागदा, सुश्री आशा शैली ‘हिमाचली’ एवं डॉ. पुरुषोत्तम दुबे की एक-एक लघुकथा।}

सिमर सदोष



वैतरिणी

    धरती पर अपने यौवन काल में बेहद सुन्दर, आकर्षक और वाचाल रही एक महिला का अन्तिम समय आने पर चित्रगुप्त के निर्देशानुसार, उसे लेने आए दूत ने, एक अति सुन्दर युवक का शरीर धारण किया ताकि वैतरिणी को पार करने तक का सफर उस सुन्दर युवती को एकाकी एवं अप्रिय न लगे।
    अति सुन्दर एवं लावण्य-युक्त रूप धारण करके दूत जब उस महिला को लेकर चला तो वैतरिणी के तट पर पहुँचकर बोला- देखो रमणी, यह वैतरिणी है। इसे
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
पार करने के बाद ही तुम्हें अपने कर्मों का लेखा-जोखा जानने का अधिकार प्राप्त होगा। इतना कहकर दूत ने उसकी ओर पीठ करते हुए कहा- देखो, धरती पर तुमने जैसा भी जीवन व्यतीत किया, वह किस्सा वहीं समाप्त हो गया। अब वैतरिणी को पार करने के दौरान अपने मन में कोई बुरा विचार न लाना....वरना बीच-धार में डूब जाओगी, जहां की ढलान सीधे नर्क में जाती है।
    औरत पहले मुस्कराई। फिर उसने सहमति में सिर हिलाया और आँखें बंद करके, दूत के आगे-आगे चलने लगी। अचानक बीच धारा में पहुँचने पर, छपाक् की आवाज़ सुनकर उसने आँखें खोलीं और पीछे की ओर मुड़कर देखा, उसके पीछे-पीछे चला आ रहा दूत, वैतरिणी की बीच-धारा में डूब गया था।

  • 186, डब्ल्यू.बी. सफरी मार्ग, बाजार शेखां, जालन्धर-144001 (पंजाब)



डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव



ऐतबार

    ‘‘नीलू, कौन आया था, आज दोपहर घर पर?’’ सुधीर ने शाम को आफिस से आकर कुर्सी पर बैठते हुए पूछा।
    ‘‘आपको कैसे पता चला?’’
    ‘‘पता चलने से नहीं रह जाता। दुष्कृत्य छिपता नहीं, समझीं।’’ सुधीर गुस्से से काँपता हुआ कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
रेखा चित्र : नरेश उदास 
    ‘‘देखिए, अनावश्यक और बेवजह उत्तेजित होने की जरूरत नहीं है....बताती हूँ.....सुधांशु आया था, जो मेरे बचपन का साथी है।’’ नीलू ने संयत स्वर में कहा।
    ‘‘मगर न अब तुममें बचपना है, न सुधांशु में....तुम दोनों जवान हो....दोनों का एकान्त में....।’’
    ‘‘एकान्त में मिलने से कुछ नहीं होता, समझे...तुम भी तो अपनी स्टेनो से आफिस में एकान्त में मिलते हो....डिक्टेशन देते हो।’’
    ‘‘तो तुम्हें मुझ पर शक है।’’
    ‘‘नहीं, मुझे शक नहीं है....बस, मुझे यही कहना है कि मुझसे प्यार करते हो तो ऐतबार भी करो, जैसे मैं तुम पर करती हूँ।’’

  • एल 6/86, सेक्टर-एल, अलीगंज, लखनऊ-226024 (उ.प्र.)




माधव नागदा



विकलांग

    लंगड़ा भिखारी बैसाखी के सहारे चलता हुआ भीख मांग रहा था।
    ‘‘तेरी बेटी सुखी में पड़ेगी। अहमदाबाद का माल खायेगी, मुम्बई में हुण्डी चुकेगी। दे दे सेठ, लंगड़े को रुपये-दो रुपये दे।’’ उसने साइकिल की दुकान के सामने जाकर गुहार लगाई। सेठ कुर्सी पर बैठा-बैठा रजिस्टर में कुछ लिख रहा था। उसने सिर उठा कर भिखारी की तरफ देखा।
    ‘‘अरे, तू तो अभी जवान और हट्टा-कट्टा है भीख माँगते शर्म नहीं आती।
छाया चित्र : अभिशक्ति 
कमाई किया कर कमाई।’’ भिखारी ने स्वयं को अपमानित महसूस किया। स्वर में तल्खी भर बोला- ‘‘सेठ, तू भाग्यशाली है। पहले जन्म में तूने अच्छे करम किये हैं। खोटे करम तो मेरे हैं। जन्म लेते ही भगवान ने एक टाँग न छीन ली होती तो मैं भी आज कुर्सी पर बैठा तेरी तरह राज करता।’’
    सेठ ने इस मुँहफट भिखारी को ज्यादा मुँह लगाना ठीक नहीं समझा और गुल्लक से भीख लायक परचूनी ढूंढ़ने लगा। भिखारी आगे बढ़ा।
    ‘‘यह ले, ले जा।’’
     भिखारी हाथ फैलाकर नजदीक गया। परन्तु एकाएक हाथ वापस खींच लिया, मानो सामने सिक्के की बजाय जलता हुआ अंगारा हो। कुर्सी पर बैठकर ‘राज करने वाले’ की दोनों टाँगें घुटनों तक गायब थीं।

  • ग्राम व पोस्ट: लालमादड़ी (नाथद्वारा)-313301 (राजस्थान)





आशा शैली ‘हिमाचली’



चौथा बेंत

    पत्नी के साथ धूप और कॉफी का आनन्द लेते हुए मैजिस्टेªट साहब बड़ी देर से बर्तन माँजती गुरबचन कौर को बड़े ध्यान से देख रहे थे। जो कभी इस हाथ से, तो कभी उस हाथ से आँसू पोंछती जा रही थी।
    ‘‘की होया बेबे?’’ आखिर मैजिस्टेªट साहब से रहा न गया।
    ‘‘अज उनी मैनू फेर मारेया है, मैजिस्टेªट साहब।’’ गुरबचन कौर ने अपने झुर्रियों भरे चेहरे से फिर आँसू पोंछे। उसके हाथों में लगी बर्तनों की कालिख आँसुओं में घुलकर गोरे चेहरे को मैला कर गई थी। जालिम बेटे ने उसे न जाने किस चीज से पीटा था कि सारी पीठ लहू-लुहान हो रही थी। दाँत पीसते हुए उठे और गुरबचन कौर को बाजू से पकड़कर लगभग खींचते हुए थाने जा पहुँचे, उसके बेटे को थाने बुलवा लिया और गुरबचन कौर के सामने ही
रेखा चित्र : डॉ सुरेन्द्र वर्मा 
उसे पाँच बेंत मारने की आज्ञा दी। साथ ही यह चेतावनी भी कि आइन्दा वो माँ पर हाथ उठाने से पहले अपने बारे में भी सोचे।
    ‘‘लगाओ....।’’ थानेदार जोर से दहाड़ा और सिपाही का हाथ चल गया।....एक.... हर बेंत पर गुरबचन कौर का बेटा चिल्ला रहा था, आऽऽऽ।
    ‘‘हरामज़ादे....बुढ़िया को मारते हुए शर्म नहीं आई?’’ थानेदार ने आँखें दिखाईं। ‘‘क्यों? मारो।’’ सिपाही को रुकता देख थानेदार उधर मुड़ा और सिपाही का हाथ फिर चलने लगा....‘‘तीन....चार.....’’।
    अचानक खून के कुछ छींटे उड़कर मैजिस्टेªट साहब की सफेद पेंट पर जा पड़े। गुरबचन कौर बेटे की चीखें बरदाश्त न करके उठे बेंत के नीचे बेटे से लिपट गई थी। चौथा बेंत उसकी पहले से उधड़ी हुई पीठ में जा लगा था।

  • कार रोड, बिंदुखत्ता, पो. लालकुआँ-262402, जिला नैनीताल (उत्तराखंड)




डॉ. पुरुषोत्तम दुबे



विरेचन

     हम दोनों की बड़ी देर से दूरभाष पर बातें चल रही थीं। हमारी बात का बिषय वह तीसरा आदमी था जो कभी आगे होकर न उसको फोन करता है, न मुझको।
    -‘‘साला कभी फोन ही नहीं करता है।’’ यह उधर से कहा गया था।
    -‘‘खुद को अकड़ू समझता है।’’ इधर से मैंने कहा।
    -‘‘तो बैठा रहे घर पर!’’ उधर से आई खीझ थी।
रेखा चित्र : डॉ सुरेन्द्र वर्मा 
    हम दोनों ने उस तीसरे के सारे दुर्गुण एक-दूसरे को सुना डाले। अब उस तीसरे पर की जाने वाली एक भी बात हम दोनों के पास शेष नहीं थी, जिसका
छोर पकड़ हम चर्चारत् बने रहते।
     हम दोनों के बीच चुप्पियों के वक्फे कटने लगे।
    -‘‘और’’ उधर से प्रश्न उछला।
    -‘‘और बस’’ इधर से मेरा उत्तर निकला।
    -‘‘तो फिर मिलते हैं’’ उधर से यही निश्चय आया।
    -‘‘जरूर। लेकिन कहाँ?’’ मैंने जिज्ञासा व्यक्त की।
    -‘‘अरे, उसी के घर, जिस पर चर्चा करते-करते हमने हमारी खोपड़ी खाली कर ली है।’’

  • 74 जे/ए, स्कीम नं.71, इन्दौर-452009 (म.प्र.)


संग्रह ‘छोटे कदम’ से 


पुरुषोत्तम कुमार शर्मा



{युवा साहित्यकार पुरुषोत्तम कुमार शर्मा का पहला लघुकथा संग्रह ‘छोटे कदम’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। उनके इस संग्रह से प्रस्तुत हैं दो लघुकथाएँ।}

दो बीघे का किसान

    यमराज ने शाम ढलते, थके हारे, जल्दबाजी में, आखिरी मुलजिम को भी निपटाना ही बेहतर समझा। अनमने मन से ही उस दुबले-पतले काले आदमी पर दया दिखाते हुए पाँच किलो वजन कम करने का हुक्म दे दिया। हुक्मरानों ने उसे तीन दिनों तक मारा-पीटा। वजन आधा-एक किलो से ज्यादा कम नहीं हुआ। इतने पतले आदमी का वजन कैसे कम किया जाये, यह किसी की समझ नहीं आ रहा था। हुक्मरान परेशान हो गये। बात हुजूर साहब तक पहुँचाई गई। कैसा आदमी है! वजन कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। यमराज जी का भी सिर चकराया। बोले- चित्रगुप्त, यह धरती पर क्या करता था? चित्रगुप्त- इसने सारी उम्र दो बीघे में किसानी करके निकाल दी, सरकार। यह सुन, यमराज जी अपने निर्णय पर  पछताते हुए बुदबुदाए- अरे, इसने तो धरती पर ही काफी नरक भोग लिया है। और वहाँ से ले जाने का इशारा कर दिया।

जीने की ललक

     पिकनिक स्पॉट पर बैडमिन्टन, पकड़ा-पकड़ी, पिट्टू, थ्रो, रिंग; जहाँ-जहाँ नजर दौड़ाता, खेलते ही नजर आते। कोई बच्चों को झूला झुलाते खुद ही झूलने लग जाते। छोटे-छोटे एडवेचरों के भी 1000-1500 रुपये के पैक लेकर जिन्दगी के कुछ लम्हों को खुशी में बदलने की कवायद नजर आती। भिन्न-भिन्न फिल्मी पोज
छाया चित्र : रामेश्वर कम्बोज हिमांशु 
बनाकर आनन्दमय क्षणों में भी आनन्द जीने से ज्यादा, फोटो जरूर खींची जाती। शायद उनका उपयोग ये लोग अपने स्टेटस सिम्बल के रूप में या अपने गरीब परिचितों पर रौब झाड़ने में करें।

     घर में खुशी न मिलने की वजह से यहाँ भीड़ ज्यादा ही रहती थी। शायद आज की जनता, बाहर की खुशी को ज्यादा तरजीह देती है। घर में खुशी मिल रही होती तो ये एडवेंचर पार्क आज अच्छा बिजनेस नहीं कर रहे होते या बड़े बिजनेस हाउसों ने जीने का नजरिया ही बदल दिया, अपने व्यापार को बढ़ाने हेतु।
     इन सब लोगों में एक समानता थी, जो जिन्दगी को पीछे छोड़ चुकी जीने की उम्र में ये लोग भागते रहे कमाई के लिए और किसी दिन ऐसे पार्कों में जिन्दगी ठहर जाती है तो लगता है इनसे कुछ छूट गया है। उसे वे यहाँ जीना चाहते हैं। वे दिन लौट आए। परन्तु ऐसा कभी नहीं होता। फिर भी थोड़ा संतोष तो होता ही है कि वे जिन्दगी में किसी बहाने ठहरे तो सही। कल से फिर दौड़ शुरू हो जायेगी।
    फिर भी एक कसक जो दबी थी सबके अन्दर, वह थी जिन्दा दिलों की तरह जीने की ललक। जिसकी सुध किसी ने नहीं ली। शायद इस वर्तमान परिवेश को टक्कर देना किसी दिल के वश की बात नहीं थी। मैं अपनी थकान मिटाने हेतु कागज-कलम उठा लेता हूँ। यहाँ के लोगों की थकान मुझसे सही नहीं जा रही थी।

  • 553/210, लक्ष्मण विहार, फेस-2, गुड़गाँव-123028 (हरि.)



कुछ और लघुकथाएँ

सूर्यकान्त श्रीवास्तव





इन्द्र हारा नहीं

     चौधरी ब्रह्मदेव ने गाँव के बाहर बगिया में स्थित सीता-रामजी मन्दिर के पुजारी गोबर्धन जी को आवाज दी, फिर पुजारीजी को देखते ही बोले- ‘‘पुजारीजी, मैं पड़ोस के गाँव में जा रहा हूँ। रात को उसी गाँव में रुकना है। कल वहीं से सीधा शहर जाऊँगा। आपको भी कल शहर पहुँचना है, याद है न? आप कल सुबह ही बस से सीधे शहर आ जाना। और हाँ, इन्दर को कह दिया है कि पुजारी जी के यहाँ चावल का बोरा एवं दाल का कट्टा पहुँचा देना कल दोपहर तक। घर जता देना।’’
    ‘‘आप निश्चिन्त रहें चौधरीजी। मैं समय पर शहर पहुँच जाऊँगा।’’ पुजारीजी ने कहा।
छाया चित्र : ज्योत्सना शर्मा 

    अगले दिन सुबह पुजारीजी समय पर मन्दिर से चले गये। निकल गये सभी लोग, जिन्हें शहर या खेतों पर जाना था।
    चावल का बोरा एवं दाल का कट्टा लेकर इन्दर मन्दिर पहुँचा। वहाँ जाकर उसने परिपक्व आयु के पुजारीजी की युवा पत्नी अहिंसा को देखा। अहिंसा के रूप लावण्य से अभिभूत इन्दर ने बगिया के एकान्त एवं गाँव की नीरवता का लाभ उठाते हुए अहिंसा की नारी सुलभ भावनाओं को प्रोत्साहित कर नारीत्व का उत्पीड़न किया।
    सांझ। नगर से लौटकर पुजारी जी ने फर्श पर रखा चावल का बोरा एवं दाल का कट्टा देखा। साथ ही संध्या के श्यामल प्रकाश में सीता-राम जी की मूर्ति समक्ष शिलावत् पड़ी अहिंसा को दखते ही मुख से निकला- ‘‘हे तारणहार प्रभु! तुम्हारे होते हुए भी इन्द्र हारा नहीं।’’

  • ‘सूर्यछाया’ 5 बी-1(ए), विष्णुगार्डन, पो. गुरुकुल कांगड़ी-249404, हरिद्वार (उ.खंड)




गांगेय कमल




शिक्षक

    हमारे नगर के कॉलेज के प्रोफेसर मि. कुर्ल बड़े ही अनुशासन-प्रिय, सख्त मिजाज और सिद्धान्तवादी थे। इससे हटकर वह कोई ‘बात या काम’ न करते थे, न सुनते-सहते थे, परिणाम चाहे कुछ भी हो। इसी कारण सब उनसे डरते भी थे और उनका आदर भी करते थे।
   एक दिन वह बाजार में जा रहे थे कि वहीं रास्ते में उन्हें एक लड़का कुछ बदतमीजी करता दिखाई दिया। उन्होंने उस लड़के को डाँटना शुरू कर दिया। पहले तो वह लड़का कुछ सकपकाया, शायद पहचानता था, फिर तमक कर बोला-
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल 
‘‘देखिए सर! एक तो यह कोई कॉलेज नहीं और दूसरे मैं आपका स्टूडेन्ट नहीं हूँ, जो आप मुझे एक टीचर की तरह डाँट रहे हैं?’’

    इस पर कुर्ल साहब गंभीर स्वर में कहने लगे- ‘‘हम जानते हैं कि तुम हमारे विद्यार्थी नहीं, लेकिन किसी के तो हो और यह न भूलो कि हम शिक्षक हैं हर समय, केवल कॉलेज में ही नहीं। हम किसी को अनुचित करते नहीं देख सकते। यह बात हम स्वयं भी सोते-जागते दूसरों के लिए ही नहीं, अपने लिए भी याद रखते हैं। हम हमेशा शिक्षक हैं। केवल शिक्षक की नौकरी ही नहीं करते, उसका आचरण और दायित्व भी निभाते हैं!

  • शिवपुरी कालोनी, महिला विद्यालय, जगजीतपुर रोड, कनखल, हरिद्वार (उत्तराखण्ड)




सुजीत आर. कर

इलाज

      बीमार बच्चे कर जाँच के बाद डाक्टर ने पिता को जानकारी दी।
     ‘‘तुम्हारा बेटा कोमा में चला गया है। यदि तीन दिन के भीतर ऑपरेशन नहीं हुआ तो कुछ भी हो सकता है।’’
     ‘‘पर डाक्टर साहब, ऑपरेशन के लिए....।’’
     ‘‘पचास हजार रुपये काउन्टर पर आज ही जमा करवा दो।’’
रेखाचित्र : सिद्धेश्वर 

     ‘‘लेकिन इतने रुपये.....?’’
     ‘‘रुपये नहीं हैं तो उठाओं अपने बच्चे को और किसी धरम अस्पताल में भर्ती करवा दो।‘‘
    ‘‘नहीं डाक्टर साहब, ऐसा मत कहिए। मेरे बेटे को बचा लीजिए।’’
    ‘‘जरूर बचा लेंगे। पहले रुपये का बंदोबस्त तो कर लो।’’
     ‘‘आधी रकम से चल जाएगा?’’
     ‘‘हाँ, चल जायेगा। लेकिन उसकी कोमा नहीं टूटेगी, साँसें भर चलती रहेंगी। फिर जब कभी तुम्हारे पास पूरे रुपये आ जायें, तो मुझे बता देना।’’
    बीमार बच्चे के पिता ने ईश्वर को हाथ जोड़कर धन्यवाद दिया। चलो किसी में डॉक्टर साहब राजी तो हुए।

  • दरोगापारा, रायगढ़ (छत्तीसगढ़) मोबा. 09424181509