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रविवार, 2 फ़रवरी 2014

ब्लॉग का मुखप्रष्ठ

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 05-06, जनवरी-फरवरी 2014


प्रधान संपादिका : मध्यमा गुप्ता
संपादक :  डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल: 09458929004)
संपादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन 
ई मेल :  aviramsahityaki@gmail.com 


शुल्क, प्रकाशन आदि संबंधी जानकारी इसी ब्लॉग के ‘अविराम का प्रकाशन’लेवल/खंड में दी गयी है।





क्षणिका पोस्टर : के. रविन्द्र  
।।सामग्री।।

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सम्पादकीय पृष्ठ सम्पादकीय पृष्ठ } :  नई पोस्ट नहीं। 

अविराम विस्तारित :

काव्य रचनाएँ {कविता अनवरत} :  इस अंक में सर्वश्री लाखन सिंह भदौरिया ‘सौमित्र’, डॉ. विनोद निगम, वेद व्यथित, जगन्नाथ ‘विश्व’, कृष्णमोहन अम्भोज, अनिल पतंग, आकांक्षा यादव व सुधीर मौर्य ’सुधीर’ की कविताएं।

लघुकथाएँ {कथा प्रवाह} :  इस अंक में सर्वश्री पारस दासोत, मधुदीप, पुष्पा जमुआर, महावीर रवांल्टा, डॉ.नन्द लाल भारती, भावना सक्सेना की लघुकथाएं।की लघुकथाएँ।

कहानी {कथा कहानी} : इस अंक में श्री ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग’ कहानी 'एक टुकड़ा आसमान'।  

क्षणिकाएँ {क्षणिकाएँ} :  इस अंक में श्री सुरंजन जी की चार क्षणिकाएं। 

हाइकु व सम्बंधित विधाएँ {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ} : इस अंक में डॉ. ब्रह्मजीत गौतम के हाइकु युग्म व श्री राजेन्द्र बहादुर सिंह ‘राजन’ का हाइकु गीत। 

जनक व अन्य सम्बंधित छंद {जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द} : इस अंक में श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला के जनक छंद। 

माँ की स्मृतियां {माँ की स्मृतियां} :  नई पोस्ट नहीं।

बाल अविराम {बाल अविराम} : इस अंक में पढ़िए-  एक लोक कथा पर आधारित श्री शशिभूषण ‘बड़ोनी’ की बाल कहानी ‘गुफा में बाघ’ तथा डॉ.महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’ की बाल कविता ‘चलो बनाये हम एक रेल’ नन्हें बाल चित्रकारों इशिता व स्तुति शर्मा  के चित्रों के साथ।

हमारे सरोकार (सरोकार) : नई पोस्ट नहीं।

व्यंग्य रचनाएँ {व्यंग्य वाण} :  इस अंक में गोविन्द चावला 'सरल' की व्यंग्य कविता।

संभावना {संभावना}: नई पोस्ट नहीं।

स्मरण-संस्मरण {स्मरण-संस्मरण} : नई पोस्ट नहीं।

क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श} :  इस अंक में (डॉ.) कमल किशोर गोयनका, (डॉ.) सतीश दुबे,  (डॉ.) सुरेन्द्र वर्मा,  रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, जितेन्द्र ‘जौहर’,  (डॉ.) पुरुषोत्तम दुबे, नित्यानंद गायेन,  (डॉ.) शैलेश गुप्त ‘वीर’ व सुश्री शोभा रस्तोगी शोभा  के क्षणिका-विधा के विविधि पक्षों को रेखांकित करते आलेख। साथ ही सर्वश्री (डॉ.) डी. एम. मिश्र, (डॉ.) शरद नारायण खरे, चक्रधर शुक्ल, रमेश कुमार भद्रावले, गुरुनाम सिंह रीहल, गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’, राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ की वैचारिक टिप्पणियां। 

अविराम विमर्श {अविराम विमर्श}:   नई पोस्ट नहीं ।

किताबें {किताबें} :  इस अंक में बहुल पाठक वर्ग द्वारा सराही गई कालजयी कहानियां :  डॉ. सतीश दुबे द्वारा डॉ. तारिक असलम तस्नीम के कहानी संग्रह ‘पत्थर हुए लोग’ / भगीरथ ने दोहरी जिम्मेदारी को निभाया है :  हितेश व्यास द्वारा भगीरथ परिहार के लघुकथा संग्रह ‘पेट सबके हैं’ / मानवीय संवेदनाओं की कहानियाँ :  डॉ. ज्योत्सना स्वर्णकार द्वारा माधव नागदा के कहानी संग्रह ‘परिणति और अन्य कहानियां’/ रास्तों पर चलती दुआएँ :  डॉ. पुरुषोत्तम दुबे द्वारा पारस दासोत के लघुकथा संग्रह ‘मेरी किन्नर केन्द्रित लघुकथाएं’ / वर्तमान समय के बहुरुपियेपन का सफल चित्रण :  संतोष सुपेकर द्वारा सुरेश शर्मा के लघुकथा संग्रह ‘अंधे बहरे लोग’ / भविष्य की संभावनाएँ तलाशती लघुकथाएँ :  राजेन्द्र नागर ‘निरंतर’ द्वारा संतोष सुपेकर के लघुकथा संग्रह ‘भ्रम के बाजार में’ की समीक्षाएं।

लघु पत्रिकाएँ {लघु पत्रिकाएँ}: नई पोस्ट नहीं।

हमारे युवा {हमारे युवा}: नई पोस्ट नहीं।

गतिविधियाँ {गतिविधियाँ}: पिछले दिनों प्राप्त साहित्यिक गतिविधियों की सूचनाएं/समाचार।

अविराम की समीक्षा (अविराम की समीक्षा) : अविराम के क्षणिका विशेषांक पर डॉ.सुरेन्द वर्मा, प्रो. मृत्युंजय उपाध्याय, सुश्री शोभा रस्तोगी शोभा व इन्दिरा किसलय के समीक्षात्मक पत्र

अविराम के अंक {अविराम के अंक}: नई पोस्ट नहीं।

अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के पाठक सदस्य (हमारे आजीवन पाठक सदस्य) : अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के 30 जनवरी 2014 तक अद्यतन आजीवन एवं वार्षिक पाठक सदस्यों की सूची।

अविराम के रचनाकार {अविराम के रचनाकार}: नई पोस्ट नहीं।

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 05-06, जनवरी-फरवरी 2014


।।कविता अनवरत।।



सामग्री : सर्वश्री लाखन सिंह भदौरिया ‘सौमित्र’, डॉ. विनोद निगम, वेद व्यथित, जगन्नाथ ‘विश्व’, कृष्णमोहन अम्भोज, अनिल पतंग, आकांक्षा यादव व सुधीर मौर्य ’सुधीर’ की कविताएं।


लाखन सिंह भदौरिया ‘सौमित्र’





इसी विश्व की मधुमयी वाटिका का






छाया चित्र :
उमेश महादोषी 

इसी विश्व की मधुमयी वाटिका का मैं भी मधुर फूल बनता किसी दिन।
मगर विश्व की वंचना के करों से, कली रूप में ही मरोड़ा गया मैं
नियति के निठुरतम करों से मसलकर, मृदुल वृन्त से आह तोड़ा गया मैं
हृदय हारिणी प्रीति सौरभ लुटा कर भली भांति उर को खिला भी न पाया
अपने सनेही मधुप मीत को, प्रीति मकरन्द प्याली, पिला भी न पाया।
भले अर्चना में चढ़ाया न जाता, मगर प्रिय चरण धूल बनता किसी दिन।
इसी विश्व की मधुमयी वाटिका का मैं भी मधुर फूल बनता किसी दिन।

अनपारखी जौहरी के करों से, जो अनमोल हीरा लुटाया न जाता।
अनजान के हाथ में सौंप कर जो मधुर चित्र, मेरा मिटाया न जाता।
तो मधु प्रात, मेरा भी होता अनोखा, अमर यामिनी का न साम्राज्य होता
बनता मरुस्थल न मेरा सरस उर सभी के लिये मैं नहीं त्याज्य होता
मैं भी किसी हृदय की तटी का, अनोखा कलित कूल बनता किसी दिन।
इसी विश्व की मधुमयी वाटिका का मैं भी मधुर फूल बनता किसी दिन।

बहुत पास से निकल गये तुम

बहुत पास से निकल गये तुम, जाते हुये पुकार न पाया।

जीवन भर की थकन भरी थी फीकी फीकी मुस्कानो में।
इतनी गहरी रची उदासी, चित्र बन गये सुनसानो में।
आँखों से अधढुलके आँसू का मधु रूप निहार न पाया।
बहुत पास से निकल गये तुम, जाते हुये पुकार न पाया।

जनम-जनम की विरहाकुलता, खड़ी रह गई बिना पुकारे।
छाया चित्र :
उमेश महादोषी 
तुम भी अपने में खोये थे रुके नहीं आँसू के द्वारे।
अन्तर्लीन चरण की गति को अश्रु प्रवीण, परवार न पाया।
बहुत पास से निकल गये तुम, जाते हुये पुकार न पाया।

बोझिल-बोझिल सी पलकों पर ठहरा हुआ अकेलापन था।
अपने को निहारते थे दृग, टूटा हुआ सपन दर्पन था।
सहमी-सी रह गयी तूलिका, मैं वह चित्र उतार न पाया।
बहुत पास से निकल गये तुम, जाते हुये पुकार न पाया।

सेवा का अवसर पाने को, अमृत लिये, तृप्ति चलती थी।
एक दृष्टि का दान मिल सके, बाँधे हाथ मुक्ति चलती थी।
अपराधी-सा मिलन साथ था, अपना जन्म, सँवार न पाया।
बहुत पास से निकल गये तुम, जाते हुये पुकार न पाया।
  • भोजपुरा, मैनपुरी-205001 (उ.प्र.)


डॉ. विनोद निगम


राकेश दीवान के लिए एक गीत

गीत नया रचना है, और गुनगुनाना है
भाए मन को तो, राकेश को सुनाना है

       दर्द जब मुखातिब था, गीत सहज आते थे
       बूँद बूँद आँसू थे,  शब्द-शब्द गाते थे
       युग की पीड़ाओं में, घुटन में, अभावों में
रेखा चित्र : के. रविन्द्र  
       दुखते मन पर, मरहम छन्द ही लगाते थे
अब तो सुविधाएँ हैं, सुख की समिधाएँ हैं
कीर्ति, यश मिला है जो, बस उसे भुनाना है।

       पाँवों की गर्मी से, राह पिघल जाती थी,
       धूप जेठ की, भूख पर चन्दन मल जाती थी
       रिसती छत-दीवारें, अर्थ नये बुनती थीं
       शिशिर की गलन भी, तब नई गज़ल गाती थी
सड़कों में तब रस था, ऋतुओं पर भी बस था
ए सी के बन्दी अब, मौसम के नन्दी अब
नये शीर्षक में, बस खुद को दोहराया है।

       दिन थे यात्राओं के, मित्रों की रातें थीं
       चर्चाओं की पूँजी, बेशुमार बातें थीं
       नाहक मिलना जुलना, घूमना अकारण ही
       निरावरण जीवन था, काँच की कनातें थीं
पर्तें ही पर्तें अब, आरोपित शर्तें अब
आदम कद छोटे हैं, पर बड़े मुखौटे हैं
समझौते ही सच, जीवन इन्हें निभाना है।
गीत नया रचना है, और गुनगुनाना है
भाए मन को तो, राकेश को सुनाना है
  • ‘नन्द कुटीर’, शनीचरा, होशंगाबाद, म.प्र.


वेद व्यथित 


आकर्षण 

काजल की रेख कहीं 
अंदर तक पैठ  गई 
तमस की आकृतियाँ 
अंतर की सुरत हुईं 

मन को झकझोर दिया 
गहरी सी सांसों ने...

दूर कहाँ रह पाया 
आकर्षण विद्युत सा 
अंग अंग संग रहा 
तमस बहु रंग हुआ 

गहरे तक डूब गया 
रेखा चित्र : बी. मोहन नेगी 
अपनी ही साँसों में...

चाहा तो दूर रहूँ 
शक्त नही मन था 
कोमल थे तार बहुत 
टूटन का डर था 

सोचा संगीत बजे 
उच्छल इन साँसों में...

जो भी जिया था 
उस क्षण का सच था 
किस ने सोचा ये 
आगे का सच क्या 

फिर भी वो शेष रहा 
जीवन की सांसों में....
  • अनुकम्पा, 1577, सेक्टर-3,फरीदाबाद-121004, हरियाणा


जगन्नाथ ‘विश्व’


हैरान है पूनम

रोशनी गयी कहाँ आश्चर्य चकित हम
लगता है अमावस से हैरान है पूनम

मना रही जश्न लफंगों की टोलियाँ
लजा रही हैं नंगेपन से रंगीन कोठियाँ
खिड़की में लगे परदों को आ रही शरम
लगता है अमावस से हैरान है पूनम

बढ़ रही है भीड़ रोज घट रही जमी
रेखा चित्र : सिद्धेश्वर 
चढ़ रही दर कीमतें, है बेहाल आदमी
भीड़ में बम फूटते, बेफिक्र बेरहम
लगता है अमावस से हैरान है पूनम

जुल्मों-सितम से तंग परेशान हैं सभी
सादगी को कितना, दफनायेंगे अभी
हरजाइयों के बीच प्रजा तोड़ रही दम
लगता है अमावस से हैरान है पूनम
  • मनोबल, 25, एम.आई.जी., हनुमान नगर, नागदा जं-456335 (म.प्र.)


कृष्णमोहन अम्भोज


सम्बन्धों का रूपान्तरण

उपवनी चेहरे पर
रेतीले चलन।

जिनके 
दिन सावन
भादों जैसी रात,
प्यास के लिए
करते हैं वह
पोखर की घात,
धरती के वैभव पर
जल रहा गगन।
रेखा चित्र : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा 

डाली सच की 
नाक में
झूठ ने नकेल,
चल रहे
मुखौटे के 
जादू भरे खेल,
सम्बन्धों का हुआ
नाट्य रूपांतरण।
  • नर्मदा निवास, न्यू कॉलोनी, पचोर-465683, जिला राजगढ़ (म.प्र.)


अनिल पतंग


हराम की कमाई

टेबुल पर बैठे बैठे
तकता हूँ
कोई काम
काम का जड़
मिलता नहीं
समूचे महीने
बैठ कर कुर्सी पर
दस-पाँच ह्स्ताक्षर
के सहारे
पा लेता हूँ
मोटी तन्खाह
घर आता हूँ
रेखा चित्र : राजेन्द्र परदेसी 
कुछ बाहर पढ़ने
बच्चों को भेज
शेष का राशन
लाता हूँ
रात में जब
खाकर लेटता
हूँ विस्तर पर
तो राशन
बाहर निकल
आना निकल चाहता है  
गैस बनकर
सिर को फाड़
क्योंकि वह कमाई
हराम की है।
  • संपादक, रंग अभियान, पोस्ट बाक्स नं-10, बेगूसराय (बिहार)-851101।


आकांक्षा यादव 




नियति का प्रहार

नारी बढ़ती जाती है
इक नदी की तरह
अपनी समस्त भावनाओं
और संवेदनाओं के प्रवाह के साथ।

जीवन का अद्भुत संगीत और 
आगोश में किलकारियों की गूंज
करती है वह नव-सृजन
नित् प्रवाहमान होकर।

नदी की ही भॉँति
रेखा चित्र :
बी. मोहन नेगी  
लोग रोकते हैं नारी का प्रवाह
सिमेट देना चाहते हैं
उसे घर की चहरदीवारी में
जैसे तालाब या बाँध।  

पर इन सबसे बेपरवाह
बढ़ती जाती है नारी
अपनी ही धुन में
ताजगी को बिखेरते
मस्ती को समेटते।

जीवन भर झेलती है
झंझावतों व अत्याचारों को
पर चलती रहती अविरल
भावनाओं व संवेदनाओं के प्रवाह के साथ
और कहती जाती है
मत तोड़ो नियम प्रकृति का
बहने दो मुझे प्रबल आवेग से
अन्यथा सहना पड़ेगा नियति का प्रहार।
  • टाइप-5, निदेशक बंगला, जी.पी.ओ. कैम्पस, सिविल लाइन्स, इलाहाबाद-211001(उ.प्र.)


सुधीर मौर्य ’सुधीर’





ख्वाब की किरचें

वक्त ने मेरी
बाह थाम के
मेरी हथेली पर
रेखा चित्र :
शशि भूषण बडोनी 
अश्क के
दो कतरे बिखेर दिए
मेरे सवाल पर बोल
ये अश्क की बूँदें नहीं
टूटे ख्वाब की
किरचे हैं
ये तुम्हें याद दिलायेंगी
कि मुफ्लिश
आँखों में
ख्वाब सजाया
नहीं करते..
  • ग्राम व पोस्ट गंजजलालाबाद, जनपद-उन्नाव-209869

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 05-06, जनवरी-फरवरी 2014


।। कथा प्रवाह ।।

सामग्री :  इस अंक में सर्वश्री पारस दासोत, मधुदीप, पुष्पा जमुआर, महावीर रवांल्टा, डॉ.नन्द लाल भारती, भावना सक्सेना की लघुकथाएं।


पारस दासोत




एक और पाठ

     ‘‘दिन भर मजदूरी करने के बाद,....
      मैं, जब अपनी मजदूरी लेने मुनीम जी के पास पहुँची, मैंने पोथी में मेरे नाम के आगे बीस रुपये लिखे देखकर, पन्द्रह रुपये लेने से मना कर दिया। और मैं रुपये, मुनीम जी के आगे पटक, अपने घर चली आयी।
      मैं, क्यों अपनी मजूरी कम लेती! मैंने पढ़ना-लिखना सीख जो लिया! मुनीम जी, यह क्या बक रहे थे- ‘‘पढ़ने-लिखने से क्या होता है! उसे ‘महाभारत’ पढ़ना आता है, पर वह रजिस्टर में आठ सौ रुपये की प्राप्ति पर अपने दस्तखत कर, केवल तीन सौ रुपये ही पाता है!’’
रेखा चित्र : हिना फिरदोस 
     ‘‘धत्त ऽऽ! मैं मुनीम नहीं बनूँगी!’’
     मैं अपने बच्चों को क्या खिलाती! आज शाम, चूल्हा जला ही नहीं। रामी रोते-रोते सो गयी। मैं उसको दूध पिलाती, तो कैसे! मेरा दूध, कमरतोड़ मेहनत ने, सुखा जो दिया। रामा, रोटी माँगते-माँगते सो गया और मैं, आधी रात बीते जाग रही हूँ! इसलिए नहीं, मैं भूखी हूँ, इसलिए कि अपना पाठ याद करके, सुबह मुझे प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र पर, सुनाना है।’’
  • प्लॉट नं.129, गली नं.9 (बी), मोतीनगर, क्वींस रोड, वैशाली, जयपुर-301021 (राज.)





मधुदीप




अवाक्

    अपने झोंपड़े के सामने झिलंगी-सी चारपाई में बैठा सुखिया गहरी उधेड़-बुन में उलझा हुआ था। दीवाली पर साहूकार से पॉंच रुपये सैंकड़ा ब्याज पर लिए दो हजार रुपये दशहरा आते-आते चार हजार कैसे हो गये! वह ठहरा निपट अनपढ़, कैसे हिसाब लगाए!
    हाथ की बीड़ी बुझने को थी, उसने सुट्टा लगाकर उसे सुलगाया। सामने से उसका बेटा पीठ पर भारी स्कूल-बैग लटकाए आ रहा था।
     ‘‘बेटे सुन! तुझे ब्याज के सवाल आते हैं?’’ प्रश्न सुन बेटा उनका मुँह ताकने लगा।
     ‘‘अरे, चुप क्यों है, बता न।’’
     बेटे न ‘ना’ में सिर हिला दिया।
     ‘‘पढ़ता तो तू सातवीं में है पर ब्याज के सवाल भी ना आते।’’ सुखिया ने माथा पकड़ लिया।
     बेटा चुपके-से अन्दर जाने लगा।
रेखा चित्र : राजेन्द्र परदेसी 
     ‘‘सुन! बस्ता अन्दर रख और मेरे साथ चल।’’
     ‘‘कहाँ?’’ बेटा आश्चर्य से ताकने लगा।
     ‘‘मास्टरजी के पास, पूछता हूँ कि वे तुझे कुछ पढ़ाते भी हैं या नहीं।’’
     ‘‘पर बापू! मैं स्कूल में पढ़ने के लिए थोड़े ही जाता हूँ।’’
     ‘‘तो...!’’
     ‘‘बापू, मैं तो स्कूल में इसलिए जाता हूँ कि वहाँ दोपहर में भरपेट खाना मिले है। और देख बापू, मैं छोटे के लिए भी लाया हूँ।’’ बेटे ने बस्ते में से पोलीथीन निकालकर बाप को दे दी।
    सुनकर सुखिया सन्न रह गया।
    ‘‘पर मास्टरों को तो तनखा पढ़ाने की मिले है, उन्हें तो बच्चों को पढ़ाना चाहिये!’’
    ‘‘पर बापू! मास्टरजी तो खाना बनाने में और बाँटने में लगे रह हैं, वे पढ़ावें कब!’’
     अब सुखिया अवाक् खड़ा था।
  • दिशा प्रकाशन, 138/16, त्रिनगर, दिल्ली-110035


पुष्पा जमुआर




अपना अधिकार

     ‘‘क्या बात है राकेश आज बहुत उदास लग रहे हो?’’
     राकेश ने कोई उत्तर न दिया और मौन बैठा रहा। उदय ने पुनः प्रश्न को दोहराया, ‘‘राकेश! चुप क्यों हो? बताओ, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ?’’
      ‘‘कोई कुछ नहीं कर सकता.... बताने से फायदा?’’
      ‘‘बताओ तो सही....।’’
      ‘‘क्या बताऊँ! आज कई दिन से हमारे घर में महाभारत चल रहा है....।’’
      ‘‘महाभारत! कैसा महाभारत! साफ-साफ कहो न....।’’
      ‘‘मम्मी चाहती हैं मैं इंटर में बायलॉजी लूँ ताकि डाक्टर बन सकूँ....।’’
      ‘‘तो....!’’
      ‘‘पूरी बात तो सुन! पापा चाहते हैं कि मैं मैथ लेकर भविष्य में उन्हीं की तरह इंजीनियर बन सकूं.....।’’
रेखा चित्र : शशि भूषण बड़ोनी 
      ‘‘पर तुम क्या चाहते हो?’’
      ‘‘मैं तो एन.डी.ए. ज्वाइन करना चाहता हूँ... मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं स्लेक्ट भी हो जाऊँगा।’’
      ‘‘तो फिर देर किस बात की.... आगे बढ़ो।’’
      ‘‘पर... मम्मी... पापा... का क्या करूँ?’’
      ‘‘अजीब आदमी हो.... पढ़ना तुम्हें है, जीवन तुम्हारा है, रुचि तुम्हारी है.... निर्णय भी तुम्हें ही करना चाहिए...।’’
      ‘‘तो भी यार....।’’
      ‘‘कुछ नहीं, साहस पैदा करो और बहुत ही आदर एवं शालीनता से अपने मम्मी-पापा का अच्छा मूड देखकर उन्हें निर्णय से अवगत करा दो...।’’
      ‘‘तुम ठीक कहते हो... यही करूँगा मैं।’’  
  • ‘काशी निकेतन’, रामसहाय लेन, महेन्द्रू, पटना-800006 (बिहार)


महावीर रवांल्टा




उदासी

     ‘‘अरे बेटा इस हाथ पर इस बार ऐसी पट्टी बांध दे, जिससे सुबह शौच जाने के बाद पानी बरतने में मुझे दिक्कत न हो’’। अस्पताल में उपचार के लिए आए बुजुर्ग ने वार्ड ब्यॉय से अनुरोध किया।
     ‘‘बांध दूंगा, पर बाबा इस पर पानी नहीं पड़ना चाहिए, वरना मेरी सारी मेहनत बेकार’’।
     ‘‘यह कैसे हो सकता है, फिर मैं शौच जाने के बाद पानी कैसे बरतूंगा?’’ बुजुर्ग
रेखा चित्र : उमेश महादोषी 
ने अपनी लाचारी सामने रखी।
     ‘‘तो क्या हुआ, दूसरा हाथ कब काम आयेगा!’’ बुजुर्ग की ओर देखे बिना वार्ड ब्यॉय ने कहा। 
     सुनकर बुजुर्ग के चेहरे पर गहरी उदासी उभरी।
     ‘‘बेटा वही होता तो.....’’ कहते हुए बुजुर्ग ने अपना दूसरा हाथ आगे कर दिया, जो हाथ नहीं सिर्फ ठूँठ भर था।
     उसे देखकर वार्ड ब्यॉय कुछ कहने की स्थिति में नहीं रह गया था। बुजुर्ग के चेहरे की उदासी कुछ पल के लिए उसके चेहरे पर व्याप गयी थी।
  • ‘सम्भावना’ महरगॉव, पत्रा.- मोल्टाड़ी, पुरोला, उत्तरकाशी-249185, उत्तराखण्ड 


डॉ.नन्द लाल भारती 




पागल आदमी

     रंजू के पापा दफ्तर से आ रहे हो ना....?
     कोई शक भागवान....?
     शक कर नरक में जाना है क्या ....?
     हुलिया तो ऐसी ही लग रही है जैसे पागल कुत्ता पीछे पड़ा था। 
     कयास तो ठीक है। 
     कहाँ मिल गया। 
     वही जहां उम्र का मधुमास पतझड़ हो गया। 
     मतलब? 
     दफ्तर में। 
     मजाक के मूड में हो क्या...?
     नहीं, असलियत बयान कर रहा हूँ। तीन दिन-रात एक कर दफ्तर शिफ्ट करवाया। उच्च अधिकारी छुट्टी पर या दौरे पर चले गए। मजदूरी और गाड़ी के भाड़े का भुगतान मुझे ही करना पड़ा जेब से। उसी भुगतान पर अपयश लग गया।
रेखा चित्र :  महावीर रवांल्टा 
     ईमानदारी और वफादारी पर अपयश?
     जी भागवान छोटा होने का दंड मिलता रहा है। इसी भेद ने उम्र का मधुमास पतझड़ बना दिया। 
     अपयश कैसे लग सकता है। 
     लग गया भागवान। 
     कौन लगा दिया। 
     वही पागल आदमी जो उच्च ओहदेदार बनने के लिए दो खानदानो की इज्जत दाव पर लगा दिया। अब पद के मद में पागल कुता हो रहा है। 
     रंजू के पापा पद के मद में पागल आदमी हो या पागल कुत्ता दोनों की मौत भयावह होती है। संतोष रखिये। 
  • आजाददीप, 15-एम, वीणा नगर, इन्दौर (म.प्र.)


भावना सक्सेना




तैयारी

    कईं दिन से कार्यालय में सब बहुत व्यस्त थे। पूरे कार्यालय की सफाई कराई गई थी। एक कमरा विशेष रूप से खाली कर उसमें बैठने की व्यवस्था की गई थी। कोने की गोल मेज़ पर गुलाबों का बड़ा सा गुच्छा महक रहा था। श्रेणी चार कर्मचारियों को विशेष निर्देश थे, हर आधे घंटे पर पानी, शीतल पेय, चाय कॉफ़ी आदि को पूछते रहें और श्रेणी तीन के कर्मचारी के पास जमा काजू, बादाम, चिप्स, कुकीस आदि ले कर सेवा करते रहें।
     होटल का इंतजाम भी दुरुस्त है। शहर के सबसे अच्छे होटल में रहने का प्रबंध किया गया है। द्वितीय श्रेणी
रेखा चित्र  : महावीर रवांल्टा 
के कर्मचारी ने निर्देशानुसार वहाँ भी गुलाबों का गुच्छा, फलों की टोकरी, मिनरल वॉटर, और एक व्हिस्की की बोतल पहले ही रख दी है। चार दिन का कार्यक्रम मिनट दर मिनट बन चुका है। एक ड्राइवर और एक अधिकारी को साथ रहना है, कुछ रमणीय पर्यटन स्थल दिखाये जाने है, बाज़ार खरीददारी करानी है, प्रत्येक अधिकारी के घर पर आयोजित लंच डिनर भी कार्यक्रम में शामिल हैं, सभी के लिए उपहार लाये जा चुके हैं। 
    तैयारी पूरी है, आज रात्रि के विमान से चार व्यक्तियों की ऑडिट पार्टी आ रही है।
  • 64, प्रथम तल, इंद्रप्रस्थ कॉलोनी, सेक्टर 30-33, फरीदाबाद, हरियाणा-121003