आपका परिचय

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

सामग्री एवं सम्पादकीय पृष्ठ : नवम्बर 2012

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 2,   अंक  : 3,  नवम्बर  2012 

प्रधान संपादिका :  मध्यमा गुप्ता
संपादक :  डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल : 09412842467)
संपादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन  
ई मेल :  aviramsahityaki@gmail.com 

शुल्क, प्रकाशन आदि संबंधी जानकारी इसी ब्लॉग के "अविराम का प्रकाशन" लेवल/खंड में दी गयी है।

 ।।सामग्री।।


छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल 
  
 कृपया सम्बंधित सामग्री के पृष्ठ पर जाने के लिए स्तम्भ के साथ कोष्ठक में दिए लिंक पर क्लिक करें।


अविराम विस्तारित : 

काव्य रचनाएँ  {कविता अनवरत:    इस अंक में स्व. चन्द्रपाल शर्मा ‘शीलेश’, पारसनाथ बुलचंदानी, अमृत लाल मदान, शशिभूषण बड़ोनी, मीनू ‘सुखमन’, साहिल, जगदीश तिवारी व  विजय कुमार तन्हा की काव्य रचनाएं।

लघुकथाएँ   {कथा प्रवाह} :   इस अंक में श्याम सुन्दर अग्रवाल,  डॉ. सुरेन्द्र गुप्त,  निर्मला सिंह, शोभा रस्तोगी ‘शोभा’, मनोज सेवलकर व  विनोद कुमारी किरन की लघुकथाएं।

कहानी {कथा कहानी पिछले अंक तक अद्यतन

क्षणिकाएँ  {क्षणिकाएँ  इस अंक में अनीता ललित की क्षणिकाएँ।

हाइकु व सम्बंधित विधाएँ  {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ}  :  इस अंक में डॉ. सुधा गुप्ता के पाँच तांका।

जनक व अन्य सम्बंधित छंद  {जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द:   मुखराम माकड़ ‘माहिर’ के छ: जनक छंद।

बाल अविराम {बाल अविराम} इस अंक में डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’  एवं  नरेश कुमार ‘उदास’ की बाल कविताएँ। साथ में बाल चित्रकारों मिली भाटिया, अभय ऐरन  एवं आरुषी ऐरन की पेंटिंग्स व रेखांकन।

हमारे सरोकार  (सरोकार) :   पिछले अंक तक अद्यतन।

व्यंग्य रचनाएँ  {व्यंग्य वाण:   पिछले अंक तक अद्यतन।
संभावना  {सम्भावना:  पिछले अंक तक अद्यतन।

स्मरण-संस्मरण  {स्मरण-संस्मरण पिछले अंक तक अद्यतन।

अविराम विमर्श {अविराम विमर्श} :  पिछले अंक तक अद्यतन

किताबें   {किताबें} :  पिछले अंक तक अद्यतन

लघु पत्रिकाएँ   {लघु पत्रिकाएँ} :  पिछले अंक तक अद्यतन
हमारे युवा  {हमारे युवा} :   पिछले अंक तक अद्यतन

गतिविधियाँ   {गतिविधियाँ} : पिछले दिनों प्राप्त साहित्यिक गतिविधियों की सूचनाएं/समाचार

अविराम के अंक  {अविराम के अंक} :  पिछले अंक तक अद्यतन

अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के पाठक सदस्य (हमारे आजीवन पाठक सदस्य) :  अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के  20 नवम्बर 2012 तक बने आजीवन एवं वार्षिक पाठक सदस्यों की सूचना।

अविराम के रचनाकार  {अविराम के रचनाकार} : पिछले अंक तक अद्यतन

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उमेश महादोषी 

मेरा पन्ना 

  • तमाम वरिष्ठ साहित्यकारों ने जिस उत्साह के साथ ‘अविराम साहित्यिकी’ के लघुकथा विशेषांक का स्वागत किया, वह निश्चय ही हमारा मनोबल बढ़ाने वाला है। लिखित प्रतिक्रियाएँ भी आना आरम्भ हो गई हैं। सभी मित्रों से अनुरोध है कि अंक यदि वास्तव में आपको महत्वपूर्ण लगता है तो अपनी विस्तृत प्रतिक्रिया लिखित में अवश्य भेजें। साथ ही यदि भविष्य के लिए लघुकथा पर कोई नया एवं महत्वपूर्ण दृष्टिकोंण एवं सुझाव हमारे सामने रखना चाहते हैं, तो अवश्य रखिए। अगला विशेषांक जब भी आयेगा, हमारी कोशिश रहेगी, इससे कुछ बेहतर करने की। यदि आप मित्रों का आर्थिक सहयोग (आजीवन सदस्यता के माध्यम से पत्रिका के प्रकाशन हेतु स्थाई निधि में अंशदान के रूप में) भी प्राप्त हो सका तो अगले विशेषांक को पृष्ठों/स्थान की उपलब्धता की दृष्टि से भी एक वृहत विशेषांक बनाने का हम पूरा प्रयास करेंगे।
  • विशेषांक पर जिन मित्रों की प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं, हम अतिथि संपादक डा. बलराम अग्रवाल जी और समस्त संपादकीय सहयोगियों की ओर से उनके आभारी हैं।
  • भूल सुधार : विशेषांक में कुछ तथ्यात्मक त्रुटियां चली गयी हैं, जो नहीं जानी चाहिए थी। अंक के अतिथि संपादक डा. बलराम अग्रवाल जी और समस्त संपादकीय सहयोगियों के साथ हम क्षमा प्रार्थी हैं। दरअसल अन्तिम रूप से कम्प्यूटर पर जो फाइल तैयार की गई थी, वह साज-सज्ज के कार्य को अन्तिम रूप देते समय विद्युत के आकस्मिक फ्लैक्चुएशन के साथ करप्ट हो गई। उसके बाद उससे पहले की फाइल को आधार बनाकर पुनः सारा काम करना पड़ा। समयाभाव और अस्वस्थता के मध्य कार्य करते हुए मैं कुछ संशोधनों पर ध्यान नहीं दे पाया। प्रमुख तथ्यात्मक त्रुटियां और उनका हम यहां संशोधन रख रहे हैं। 1. स्व. श्री कृष्ण कमलेश जी की जन्म एवं मृत्यु की तिथियां अंक में क्रमशः 18 अगस्त 1943 व मार्च 2002 अंकित हैं, जो कि वास्तव में क्रमशः 02.08.1943 एवं 03.04.2002 हैं। 2. स्व. श्री सुरेन्द्र मन्थन जी की मृत्यु की तिथि 25 मार्च 2012 अंकित है, जो कि वास्तव में 25 मई 2012 है। 3. स्व. श्री कालीचरण प्रेमी जी की मृत्यु तिथि 24 अप्रैल 2011 अंकित है, जो कि वास्तव में 25 अप्रैल 2011 है। कृपया इन्हें संशोधित करके पढ़ने का कष्ट करें। ये सब तिथियाँ हमें प्राप्त श्रोतों के अनुसार हैं। यदि किसी को अन्य कोई तथ्यपरक आपत्ति हो तो वह कृपया दर्ज़ कराए, उसके सुधार का यथासंभव प्रयत्न किया जायेगा। इस भूल-सुधार का प्रकाशन आगामी मुद्रित अंक में भी कर दिया जायेगा।
  • इस अंक से हमने बाल साहित्य एवं बच्चों की रचनात्मक गतिविधियों पर केन्द्रित एक नया खंड "बच्चों की दुनियां" आरम्भ किया है।  इस स्तम्भ हेतु सभी मित्रों का सहयोग आमंत्रित है।
  • मुद्रित प्रारूप में अगले यानी जनवरी-मार्च 2013 अंक से ‘बहस’ स्तम्भ को आरम्भ किया जा रहा है। अगले दो अंकों यानी जनवरी-मार्च 2013 अंक तथा अप्रैल-जून 2013 अंक के विषयों की जानकारी विस्तार से पिछले अंक के इसी पृष्ठ पर विज्ञापित की हुई है। पाठकों के विचार जनवरी-मार्च 2013 अंक हेतु (‘साहित्य और भाषा की शुद्धता व संस्कार’ विषय पर) अधिकतम 31 दिसम्बर 2012 तक तथा अप्रैल-जून 2013 अंक हेतु (‘लघु पत्रिकाओं को आर्थिक सहयोग सार्थक या निरर्थक’ विषय पर) अधिकत 31 मार्च 2013 तक ई मेल से aviramsahityaki@gmail.com पर अथवा डाक द्वारा ‘‘अविराम साहित्यिकी, एफ-488/2, गली संख्या 11, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला हरिद्वार (उत्तराखण्ड)’’ के पते पर आमन्त्रित हैं। ‘बहस’ में आपकी सहभागिता भविष्य में कई ज्वलन्त साहित्यिक समस्याओं पर सामान्य दृष्टिकोंण बनाने में उपयोगी सिद्ध होगी। आप ऐसे विषयों का सुझाव भी हमें भेज सकते हैं, जिन पर आप पाठकों को बहस करते देखना चाहते हैं। 

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अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2, अंक : 3,  नवम्बर 2012


।।कविता अनवरत।।

सामग्री : इस अंक में स्व. चन्द्रपाल शर्मा ‘शीलेश’, पारसनाथ बुलचंदानी, अमृत लाल मदान, शशिभूषण बड़ोनी, मीनू ‘सुखमन’, साहिल, जगदीश तिवारी व  विजय कुमार तन्हा की काव्य रचनाएं।


स्व. चन्द्रपाल शर्मा ‘शीलेश’



{वरिष्ठ गीतकार चन्द्रपाल शर्मा ‘शीलेश’ आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गीत, उनका काव्य हमें उनके विचारों और उनकी रचनात्मकता से जोड़े हुए है। हाल ही में उनके न रहने के बाद श्रुतिसेवा निधि न्यास, फिरोजाबाद ने उनके गीतों का संग्रह ‘मुस्कानों का जंगल’ प्रकाशित करके उनकी रचनात्मकता की स्मृतियों को संजोने का सुकार्य किया है। यह संग्रह पुस्तक के भूमिका लेखक एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ के माध्यम से पढ़ने को मिला। इस संग्रह से यहाँ दो गीत प्रस्तुत करते हुए हम पाठकों के साथ स्व. शीलेश जी की रचनात्मकता को साझा कर रहे हैं।}

दो गीत 

बदली अम्बर से

बदली अम्बर से रिमझिम के गीतों को बरसाती
सावन में आवाज चूड़ियों की पवित्र हो जाती।।

साजन हुए बहिष्कृत आँखों में भाई गहराये
डूब गये राखी में झट सिंगारदान के साये।
रक्षाबंधन की गरिमा से करवा चौथ लजाती।।
रेखांकन : के. रविन्द्र 

राहों से हट गया बांकपन अब तिरछे नयनों का
पानी के मायाजालों पर रंग चढ़ा बहनों का।
ससुराली सूरत झूले के पास नहीं आ पाती।।

मुक्त वेश आँगन में थिरके बूढ़ी माँ के आगे
सौ-सौ मन के अरमानों को बांधें कच्चे धागे।
मंद-मंद मुस्कान खिलखिलाहट में डूब नहाती।।

स्वप्निल छाया मात्र रह गये सभी जेठ और देवर
भूली बिसरी याद बन गये सास ससुर के तेवर।
उड़ जाती ससुराल मल्हारें जब तालियाँ बजातीं।।

धूप कड़ी है

धूप कड़ी है
फिर भी दर्पण लिए
जिन्दगी पास खड़ी है
सांसों के घर्षण से
तन पर पड़ीं सलवटें
स्वयं रक्त-सम्बन्ध
बदलने लगे करवटें।
फिर भी बासी रोटी जैसे
चेहरे पर जीने की हिम्मत
अपना सीना तान खड़ी है।
उतरे टायर जैसी
मैली है दिनचर्या
पाँवों को दिनरात
जकड़कर बैठी शैया।
फिर भी मन में
तूफानों की कमी नहीं है
बारूदी पुस्तक
आँखों में खुली पड़ी है।
        धूप कड़ी है।।



पारसनाथ बुलचंदानी




{वरिष्ठ कवि पारसनाथ बुलचंदानी जी का ग़ज़ल संग्रह ‘सहमत नहीं हूँ’ इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है। इसमें उनकी 93 सशक्त सामयिक ग़ज़लें संग्रहीत हैं। प्रस्तुत हैं उनके इसी संग्रह से दो ग़ज़लें।}

दो ग़ज़लें

एक

कभी जो दार को देखा तो मुस्कराया था
खुदा ही जाने ये जज़्बा कहाँ से आया था

मसीहा था मैं न सरदार था, न ही मुल्ज़िम

सदा-ए-हक़ को मगर मैंने ही उठाया था
रेखांकन : अनिल सिंह 

हैं रोशनी के तरफदार तो बहुत-से मगर

बुझा हुआ दिया किसने यहाँ जलाया था

किसी दिवाने से मैंने सुना था गीत कभी

उसी को आज मुहब्बत से गुनगुनाया था

लिखी है उसने वो तारीख़ अपनी मर्ज़ी से

कि हमने ख़ून से अपने जिसे बनाया था

हुई थी उनसे मुलाक़ात एक दिन ‘पारस’

उसी ने ज़िंदगी जीना मुझे सिखाया था

दो

परदा किसी की आँख से ऐसा उठा कि बस
ग़फ़लत से कोई आदमी ऐसा जगा कि बस

ख़ंजर का वार पीठ में होने को था तभी
क़िस्मत से कोई आदमी ऐसा बचा कि बस

रफ्तार से ही जीने का आदी था कोई शख़्स
इक दिन मगर सफ़र में वो ऐसा रुका कि बस

बच्चों ने आके छीन ली मुझसे मेरी किताब
फिर शोर घर में दोस्तो ऐसा मचा कि बस

आँखें मेरी फ़लक से ही ‘पारस’ नहीं हटीं
पिंजरे से एक पंछी वो ऐसा उड़ा कि बस

  • ‘गुरुप्रसाद’, मकान नं.1377, सेक्टर-8, फ़रीदाबाद-121006 (हरियाणा)



अमृत लाल मदान






हिग्ज़ बोसोन (ईश्वरीय कण)

लघुतम ईश्वरीय कण की तलाश
एक लंबी गुफा में
संभव हुई
अरबों-खरबों परमाणुओं के 
परस्पर टकराने से!
विराटतम ईश्वरीय रूप के दर्शन
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
युद्धक्षेत्र में हुए
लाखों सैनिक जहाँ खड़े थे तत्पर
टकराने को परस्पर!!

सोचता हूँ

क्या भीतर और बाहर
टकराव में है ईश प्राप्ति
फिर किस खेत की मूली है
विश्व शांति अथवा मन की शांति?

  • 1150/11, प्रो. कॉलोनी, कैथल-136027 (हरियाणा)



शशिभूषण बड़ोनी




सबसे बड़ी खबर

रोज खोलते ही
अखबार
खबरें भरी होती हैं
चोरी, हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार की 
भयावह बेहद

ऐसा नहीं है कि
नहीं होती थी खबरें पहले ऐसी
अखबारों में
होती थी...
रेखांकन : डॉ सुरेन्द्र वर्मा 
लेकिन ....अफसोस व अचरज जो
आजकल होता है अधिक
वह इसलिए कि
पहले लोग पढ़कर...सुनकर ऐसी खबरें
चौंक-चौंक पड़ते थे
चिन्ता करते थे...
निवारण खोजने को
राय...मशविरा देते थे....।

लेकिन अब सबसे बड़ी जो खबर
व चिन्ता व अफसोस की बात है
वह यह है कि
अब बड़ी से बड़ी दुर्घटनाओं
भ्रष्टाचार पर भी
नहीं होती कोई प्रतिक्रिया 
चुपचाप रहते हैं लोग!

  • आदर्श विहार, ग्राम व पोस्ट- शमशेर गढ़, देहरादून (उत्तराखण्ड)



मीनू ‘सुखमन’




{युवा कवयित्री मीनू ‘सुखमन’ का कविता संग्रह ‘सुखमन की तरह’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। उनके संग्रह से दो कविताएँ प्रस्तुत हैं।}

तारे

रात चाहते हैं सो जाएं
नींद आ गई तो तू
सपने में आएगा।
तेरी याद मगर 
सोने नहीं देती
तू मेरे पास 
कैसे पहुँच पाएगा
रात गुजर गई
तारे गिनते-गिनते
माँग लेंगे तुझे
रेखांकन : सिद्धेश्वर 
गर इक तारा टूट जाएगा।
सारी रात तारे
जगमगाते रहे।
मानो मुझे समझाते रहे।
जो किस्मत में नहीं
वो कभी न मिल पाएगा।
मुहब्बत करनी है तो
किसी के दुःखों से कर
एक भी दुःख गर दूर 
कर पाएगा,
सुकूं ख़ुद ही मिल जाएगा

अजनबी

ज़िन्दगी के सफ़र में
तन्हा हो गए हैं।
मंजिल नहीं था तू, मुसाफिर ही था,
रास्ते में तुझे छोड़ अलग हो गए हैं।
साथ-साथ नहीं चल रहे थे,
रास्ता कभी न था
फिर भी आज जाने क्यों
तन्हा हो गए हैं।
रास्ता तो जुदा था ही,
मंज़िल भी जुदा थी
फिर क्यों तुझे खो कर
हम परेशां हो गए है।


  • मकान संख्या 14,गिलको वैली, रूपनगर-140001, पंजाब



साहिल




ग़ज़ल

हर कोई इस तरह से मुझे तक रहा है दोस्त
गोया मेरा वजूद कोई आइना है दोस्त

कल तक जो चल रहा था मेरा हाथ थामकर
वो शख्स आज देख मेरा रहनुमा है दोस्त

पंछी का घर तो नीला-नीला आसमान है
और मेरा आसमान मेरा पिंजरा है दोस्त

परवर भी क्या करे कि हर इक आदमी यहां
रेखांकन : पारस  दासोत 
खुद अपने-आप दलदलों में कूदता है दोस्त

दो-चार गज भी दूर शहर से गये नहीं
क्यों सोच में उसी की जंगल बसा है दोस्त

हम मंच पर हैं इसके सिवा कुछ खबर नहीं
कि गिर रहा है पर्दा या तो उठ रहा है दोस्त

‘साहिल’ जिसे मैं ख्वाब में भी ना कभी मिला 
वो शख़्स मानता है- वो मेरा खुदा है दोस्त

  • नीसा, 3/15, दयानन्द नगर, राजकोट-360002(गुजरात)




जगदीश तिवारी




तय कर अपना सफर

अपने आपको 
इतना बुलन्द कर
सब झुक जायें
तेरी आवाज पर
नैतिकता मुस्काने लगे
चरित्र छू ले अपना शिखर।

सपने जब भी 

टूटने लगें
टूटने न दे
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
लगा ले उनको गले
पंछी आकाश उड़े
कोई न काटे 
उनके पर।

नदिया के बहने से

पानी है गंगा-जल
तभी तो हरियाया है
धरती का आँचल
चल! तू भी नदिया बन
तय कर 
अपना सफर।

  • 3 क 63, सेक्टर 5, हिरणमगरी, उदयपुर (राजस्थान)



विजय कुमार तन्हा

झूठा बहुत जमाना है

सच को यह बतलाना है।
झूठा बहुत जमाना है।

कौन घड़ी ये डिग जाये
इसका कौन ठिकाना है।

माया भीतर फंसकर तो,
जीवन भर पछताना है।
छाया चित्र : आदित्य अग्रवाल 

बेटी को न बोझ समझ,
जब तक आवो-दाना है।

हर आँगन रावण रहता,
मुस्किल बहुत जलाना है।

भूख, गरीबी औ‘ आँसू,
किस्मत का नजराना है।

द्वेष धरा से मिट जाये,
ऐसा दीप जलाना है।

भीड़ जिसे कर पाये ना,
‘तन्हा’ कर दिखलाना है।

  • अवध भवन, पुवायाँ-242401, शाहजहाँपुर (उ.प्र.)

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 3, नवम्बर 2012


।।कथा प्रवाह।।

सामग्री : इस अंक में श्याम सुन्दर अग्रवाल,  डॉ. सुरेन्द्र गुप्त,  निर्मला सिंह, शोभा रस्तोगी ‘शोभा’, मनोज सेवलकर व  विनोद कुमारी किरन की लघुकथाएं।


श्याम सुन्दर अग्रवाल




उत्सव    
              
     सेना और प्रशासन की दो दिनों की जद्दोजेहद अंततरू सफल हुई। साठ फुट गहरे बोरवैल में फँसे नंगे बालक प्रिंस को सही सलामत बाहर निकाल लिया गया। वहाँ विराजमान राज्य के मुख्यमंत्री एवं जिला प्रशासन ने सुख की साँस ली। बच्चे के माँ-बाप व लोग खुश थे।
     दीन-दुनिया से बेखबर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया दो दिन से निरंतर इस घटना का सीधा प्रसारण कर रहा था। मुख्यमंत्री के जाते ही सारा मजमा खिड़ने लगा। कुछ ही देर में उत्सव वाला माहौल मातमी-सा हो गया। टी.वी. संवाददाताओं के जोशीले चेहरे अब मुरझाए हुए लग रहे थे। अपना साजो-सामान समेटकर जाने की तैयारी कर रहे एक संवाददाता के पास समीप के गाँव का एक युवक आया और बोला, ‘‘हमारे गाँव में भी ऐसा ही...’’
रेखांकन : बी मोहन नेगी 
     युवक की बात पूरी होने से पहले ही संवाददाता का मुरझाया चेहरा खिल उठा, ‘‘क्या तुम्हारे गाँव में भी बच्चा बोरवैल में गिर गया?’’
     ‘‘नहीं।’’
     युवक के उत्तर से संवाददाता का चेहरा फिर से बुझ गया, ‘‘तो फिर क्या?’’
     ‘‘हमारे गाँव में भी ऐसा ही एक गहरा गड्ढा नंगा पड़ा है’’, युवक ने बताया।
     ‘‘तो फिर मैं क्या करूँ?’’ झुँझलाया संवाददाता बोला।
     ‘‘आप महकमे पर जोर डालेंगे तो वे गड्ढा बंद कर देंगे। नहीं तो उसमें कभी भी कोई बच्चा गिर सकता है।’’
     संवाददाता के चेहरे पर फिर थोड़ी रौनक दिखाई दी। उसने इधर-उधर देखा और अपने नाम-पते वाला कार्ड युवक को देते हुए धीरे से कहा, ‘‘ध्यान रखना, जैसे ही कोई बच्चा उस बोरवैल में गिरे, मुझे इस नंबर पर फोन कर देना। किसी और को मत बताना। मैं तुम्हें इनाम दिलवा दूँगा।’’

  • बी-।/575, गली नं. 5, प्रताप सिंह नगर, कोट कपूरा (पंजाब)-151204


डॉ. सुरेन्द्र गुप्त

ग्रहण

   ‘अरे....उठो....उठो, चलो जल्दी करो...बस पन्द्रह मिनट ही तो रह गये हैं ग्रहण लगने में, बारह तो बज ही चुके हैं।’ पापा की एक ही आवाज में पिंटू, चिन्टू तथा टिन्कू आँखें मलते-मलते उठे तथा खाद के बोरे को काट-काटकर बनाये गये थैलों को अपने-अपने बाजुओं में टांगकर खड़े हो गये। सभी ने एक-एक थाली भी अपने-अपने हाथों में ले ली। बस कुछ ही पलों में वे अपने मम्मी-पापा के साथ बाहर हो लिए।
   बाहर निकलते ही नज़दीक की कॉलोनी में पहुँचकर उनके मम्मी-पापा ने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया- ‘दान करो...दान करो...ग्रहण लग गया...ग्रहण लग गया, अन्न दान करो, पुण्य कमाओ’। जैसे ही बच्चों ने अपने मम्मी-पापा को बोलते हुए सुना तो उनके भी मुखों से उसी प्रकार यन्त्र चालित-सा निकल पड़ा- ‘दान करो...दान करो....ग्रहण लग गया.....ग्रहण लग गया....दान करो’।
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
   लोग अपने-अपने घरों से निकल कर एक का या दो रुपये का सिक्का उनकी थालियों में डालने लगे। कोई-कोई गेहूँ लाकर उनके थैलों में डालने लगा। बच्चे क्या करते, जैसे ही कोई उनकी थाली में रुपया-दो रुपया डालता, वह थाली में से उठाकर अपनी फटी-पुरानी पेंट की जेब में बहुत संभालकर डाल लेते। शीतकाल की शुरूआत हो चुकी थी। बच्चे, जो क्रमशः पांच, छः, सात वर्षों के रहे होंगे, ठंड के इस वातावरण में भी एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे नंगे पैर भाग-भागकर खुशी-खुशी अनाज व पैसे एकत्र कर रहे थे। थोड़ी-थोड़ी देर के उपरांत जैसे ही उनके मम्मी-पापा बोलते- ‘दान करो, पुण्य कमाओ, कपड़े दान करो, अन्न दान करो’, तो बच्चे भी जोर से उनके पीछे-पीछे नकल करते हुए बोलने लगते।
   ग्रहण अढ़ाई घंटे तक रहा। गलियों-कूचों एवं कालोनियों में अढ़ाई घण्टे घूमने के बाद जब वे अपने घर पहुंचे तो उनके मुख पर थकान नाम की कोई चीज नज़र नहीं आ रही थी। तीनों बच्चे अपने मम्मी-पापा के इर्द-गिर्द बैठ गये थे और अपनी-अपनी जेबें खाली करने लगे थे। जब सबसे छोटे बेटे ने अपनी पेंट तथा कुर्ते की जेबों से चिल्लर निकाली तो सिक्कों की खनक से उसकी आँखें तेज चमक अथवा प्रकाश से भर गईं। जेबें खाली करता-करता वह पापा से बोल उठा- ‘पापा.....ये चन्द्र ग्रहण रोज-रोज क्यों नहीं लगता?’

  • आर.एन.-7, महेशनगर, अम्बाला छावनी-133001 (हरियाणा) 


निर्मला सिंह




निर्णय

   ‘तुम नौकरी ज्वाइन मत करो, माँ बनने का सुख तीन सालों के बाद मिला है।’ पति राकेश ने अपनी पत्नी गीता को कहा।
   ‘राकेश, तुम तो जानते ही हो, इस नौकरी के लिए एक-दो लाख तक घूस दी जा रही थी और मुझे तो ये नौकरी योग्यता पर मिली है। मैं इसे ठुकराना नहीं चाहती हूँ। बच्चा तो दो-तीन सालों बाद भी कर लेंगे।‘ गीता स्वर में तेजीपन लाकर बोली।
   ‘तुम्हारी ये बात ठीक है बेटी, लेकिन ज्यादा उम्र में बच्चा पालना मुश्किल हो जाता है और फिर बेटी गर्भपात के बाद दुबारा फिर माँ बनने का सौभाग्य तुम्हें दुबारा मिले या न मिले, ये तो ईश्वर की मर्जी पर निर्भर करता है...’ गीता की सास ने समझाया।
रेखांकन : राजेंद्र परदेशी 
    गीता ने सास, ससुर, पति तीनों की बातें सुनी, लेकिन उसे तो बस नौकरी करने की ही जिद थी, एवोर्शन के लिये कार लेकर चुपचाप अस्पताल चली गई। 
   ज्यों ही गीता डा0 गुप्ता के कमरे में प्रवेश करने वाली थी, कि उसके कानों ने सुना- ‘देखिये मिसेज सिंह, हमने आपसे पहिले बच्चे के गर्भपात करवाने के लिये मना भी किया था, लेकिन आपने हमारा कहना नहीं माना। अब आप ईश्वर पर भरोसा रखिये, पाँच वर्षों से आप गर्भवती नहीं हो पायी तब इसमें हम कुछ भी नहीं कर सकते। उस समय आप हमारा कहना मान लेती तब आपका बच्चा पाँच वर्ष का होता।’
   गीता डाक्टर के पास कमरे के अंदर नहीं गई और घर जाकर नौकरी के लिये त्यागपत्र लिखकर अपने पति को दे दिया। उसके इस अप्रत्यासित निर्णय पर सास, ससुर एवं पति सभी खुश थे।      


  • 185-ए, सिविल लाईन्स, बरेली-243001 (उ.प्र.)


शोभा रस्तोगी ‘शोभा’




फ़रियाद

     राशन दफ्तर में फरियाद हुई- “राशन कार्ड बनवाना है।” 
    ‘‘उधर जाइए...’’ दिशा निर्देशित करती हुई मुड़ी ऊँगली ने दबंग व्यक्ति की ओर इशारा किया। 
    ‘‘राशन...’’  पुनः प्रार्थना की। 
    ‘‘यह फार्म भरकर 1500 रुपए जमा कर दो।’’ हेकड़ी से भरपूर आवाज अकड़ी। 
    ‘‘1500 रुपए...? वो किसलिए...? यह सरकारी सुविधा तो मुफ़्त में प्रदत्त है!’’  फरियादी की आवाज में जागरूकता झलकी। 
    ‘‘तो सरकार से बनवा लो...’’  दबंग ऑफिसर का रुतबा बढ़कर बोला। 
    ‘‘मै एफ़.आई.आर. करवाऊँगा!’’ ज्वार-भाटे की लहरें घिर गईं फरियादी के माथे पर।   
    ‘‘एफ.आई.आर.! उसके लिए थानेदार को भेंट चढ़ाना मत भूलना!’’  दबंग व्यक्ति और दबंगई से बोला। 
रेखांकन : महावीर रंवाल्टा 
    ‘‘मै पार्षद-विधायक तक जाऊँगा।’’ माथे की लकीरों ने और विस्तार लिया। 
     ‘‘तो....जितना ऊपर जाओ, उतनी मोटी रकम लेते जाना। अधिक ऊपर मत चले जाना। वहाँ जो जाता है, लौटता नहीं है...’’ दबंग भेड़िया अपनी रोज़मर्रा की अनुभवी आवाज में गुर्राया। 
    ‘‘मतलब?... देश में भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन जाग्रत हो रहे हैं। अन्ना...”
     पूरी बात मुँह से निकल भी न हो पाई थी कि दबंग सर्प ने विषैला डंक मारा....‘‘क्या होगा इन सबसे? अन्ना हो या कोई और, सरकार तो अपना बचाव कर ही लेती है।’’
    ‘‘यह लोकतंत्र है?’’ वह रुआँसा हो गया। 
    ‘‘जी हुज़ूर....!!’’ दबंग ने पान की पीक पच्च से दीवार पर मारी और दाँत पीसे, ‘‘हाँ, यही लोकतंत्र है!!’’
     फ़रियादी बेहोश होकर वहीं गिर पड़ा।

  • RZ&D- 208 B, डी.डी.ए. पार्क रोड, राज नगर-2, पालम कालोनी, नई दिल्ली - 110077



मनोज सेवलकर




पराया

   ‘‘भाई मेहता जी, लीजिये मिठाई खाइये।’’ शर्मा जी ने मिठाई का डब्बा मेहता जी की ओर बढ़ाते हुए कहा।
   विस्मय मिश्रित भावों से मेहता जी ने शर्मा जी से पूछा-
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल 
   ‘‘क्यों शर्मा जी, मुझे अच्छी तरह से याद है कि आपने आज से पाँच साल पहले बेटे सुधांशु के इंजीनियरिंग में प्रवेश के लिए स्वीकृत हुए पार्ट-फाइनल पर मिठाई खिलाई थी, फिर इन्जीनियरिंग परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण करने पर भी मुँह मीठा करावाया था। यह तो मानना पड़ेगा कि आपने अपने सारे खर्चों को कम करके बच्चे को अच्छी शिक्षा व परवरिश दी। सुना है सुधांशु अब अमेरिका में बहुत बड़ी कम्पनी में नौकरी कर रहा है। अब तो आपके सारे कर्जे भी चुकता हो गये होंगे। अगले साल सेवानिवृत्ति के पश्चात आपका भी इरादा अमेरिका बसने का तो नहीं बन रहा है। अरे शर्मा जी, बातों-बातों में पूछना ही भूल गया ये मिठाई किस बात की बाँट रहे हैं?’’
   ‘‘भाई मेहता जी, सुधांशु ने अमेरिकन लड़की से शादी कर ली है, इस खुशी में!‘‘ कहते हुए वे धीरे से बुदबुदाये ‘‘सच कहूँ यह मिठाई बेटे के पराया होने की है।’’ यह कहते हुए उनके अधर सहसा चिपकते जा रहे थे व आँखें नम हो दुःख उजागर कर रही थीं।

  • 2892, ‘ई’ सेक्टर, सुदामा नगर, इन्दौर-452009 (म.प्र.)



विनोद कुमारी किरन




होम में जले हाथ

    कान्ता के घर कोहराम मचा हुआ था। उसकी नौकरानी गीता का बारह वर्षीय बेटा स्कूल से वापस घर नहीं आया था। आज उसके रिजल्ट का दिन था। पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाला रघु आखिर कहाँ चला गया, सभी चिन्तित थे। गीता का पति, अनुज उसे खोजने गया था। गीता का रो-रो कर बुरा हाल था। कान्ता उसे सांत्वना दे रही थी।
    ‘‘रो मत गीता, रघु आ जाएगा। किसी बच्चे के साथ खेल रहा होगा।’’
    ‘‘भाभी जी, मेरा रघु कब आएगा? हाय मेरा बेटा!’’ कॉलोनी की सारी महिलाएं उसे घेर कर खड़ी थीं। कुछ उसे समझा रही थी। कुछ आपस में बातें कर रही थीं-
    ‘‘बड़ा खराब जमाना आ गया है। क्या पता कहीं चला गया हो!’’
    गीता और अनुज कान्ता के घर में सात-आठ साल से रह रहे थे। गीता घर में झाडू-पौंछा-बरतन करती थी और अनुज कान्ता के पति के ऑफिस में चपरासी था। उसके परिवार का खर्चा किसी तरह चल रहा था। कान्ता उसके बेटे रघु को पढ़ा दिया करती थी। रघु की शैतानियों को नियन्त्रित करने और वह पढ़ाई की ओर ध्यान देता रहे, इस कारण से कान्ता कभी-कभी सख्ती से पेश आती थी, कभी-कभार डांट भी देती थी। हाल ही में हुई परीक्षाओं से पहले उसने रघु को सख्ती से कहा भी था- ‘‘देख रघु, अगर तेरा रिजल्ट अच्छा नहीं आया, तो ठीक नहीं होगा!’’
     गीता का रुदन बढ़ता जा रहा था। अचानक ही वह कान्ता से बोली- ‘‘भाभी जी, लगता है वह भाग गया। वह आपसे बहुत डरता था। जरूर उसके नम्बर कम आए होंगे। भाभीजी, अब क्या होगा?’’
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल 
    कान्ता की हालत ‘काटो तो खून नहीं’ जैसी हो गई। ‘‘...यह क्या कह रही है? इसी के कहने पर तो मैंने उसे पढ़ाया, अपना समझकर उसके भले के लिए थोड़ी-बहुत सख्ती की। स्कूल की फीस भरी, किताबों के पैसे दिए। यहाँ तक कि सर्दी में स्वेटर भी बुन-बुनकर दिए। ...सब कुछ भुलाकर दोष मेरे ही ऊपर.... हे भगवान, रघु मिल जाए, नहीं तो पता नहीं यह क्या करेगी!’’
    पड़ोसियों में भी खुसफुसाहट होने लगी थी- ‘‘भला ऐसा कैसा पढ़ाया कि बच्चा घर छोड़कर ही भाग गया....?’’ जितने मुँह, उतनी ही बातें। कोई कह रहा था- पुलिस में रिपोर्ट लिखवाओ। कान्ता का पति टूर पर था। उसका सोच-सोच कर बुरा हाल था। ‘‘पुलिस में बात पहुँची तो क्या होगा? पुलिस न जाने कैसे-कैसे सवाल पूछेगी? हे राम क्या करूँ! प्रभु रघु को घर भेज दो... कैसे भी...।’’
     तभी सामने से अनुज के साथ रघु आता दिखाई दिया। कान्ता ने चैन की सांस ली। पूछने पर पता चला वह स्टेशन पर मिला है। अपने दादा-दादी के पास गाँव जाना चाहता था। एक जान-पहचान वाले ने उसे देखकर अपने पास बिठा रखा था। 
    भगवान को धन्यवाद देती हुई कान्ता आँखों में आँसू और मन में गुबार समेटे अपने कमरे में आ गई। तभी उसने सुना, रघु सबके बीच अपनी माँ को बता रहा था कि उसका रिजल्ट कक्षा में सबसे अच्छा रहा है।

  • जी-127, उदयपथ, श्यामनगर विस्तार, जयपुर, राजस्थान।