आपका परिचय

शुक्रवार, 29 अगस्त 2014

गतिविधियाँ

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 11-12,  जुलाई-अगस्त  2014 

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डॉ अरुण को संस्कृति मंत्रालय की वरिष्ठ शोधवृत्ति मिली
   


भारत सरकार की ओर से प्रतिवर्ष ‘फ़ेलोशिप फॉर आउट स्टैंडिंग पर्सन्स’ योजना के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली ‘वरिष्ठ शोध वृत्ति’ वर्ष 2012- 2013 के लिए निर्णय की घोषणा कर दी गई है, जिस के अनुसार रूडकी के निवासी डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ को भी राष्ट्रीय स्तर की इस प्रतिष्ठित शोधवृत्ति के लिए चुना गया है!
     भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की तरफ से प्रतिवर्ष वरिष्ठ और कनिष्ठ शोध वृत्तियाँ दी जाती हैं! वर्ष 2012-13 के लिए इस बार ‘ऑनलाइन’ आवेदन मांगे गए थे! पूरे देश से आए हुए आवेदनों में से हिंदी साहित्य में वरिष्ठ शोध वृत्ति प्रदान करने के लिए मात्र बाईस विद्वानों के आवेदन-पत्रों को चुन कर उनसे विस्तृत ‘शोध-योजना’ संस्कृति मंत्रालय द्वारा माँगी गई थी!
     विशेषज्ञों की समिति में इन बाईस विस्तृत शोध-परियोजनाओं पर विचार के बाद कुल ग्यारह शोध परियोजनाओं को अंतिम रूप से संस्कृति मंत्रालय ने अपनी स्वीकृति प्रदान करने की सूचना दी है! इन में रूड़की के पूर्व प्राचार्य और प्रतिष्ठित कवि डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ की वह शोध परियोजना भी स्वीकृत हो गई है, जो अपभ्रंश भाषा में रची गई ‘जैन कृष्ण कथा के महाकाव्य’ से जुड़ी हुई है!
     डॉ. ‘अरुण’ की शोध परियोजना का शीर्षक ‘‘जैन कृष्ण कथा पर ‘महाभारत’ का प्रभाव: महाकवि स्वयंभू देव प्रणीत ‘रिठ्नेमी चरिउ’ के विशेष सन्दर्भ में’’ है, जिसके अन्तरगत डॉ. ‘अरुण’ वास्तव में दसवीं शताब्दी के जैन कवि पुष्पदंत द्वारा रचे गए महाकाव्य ‘रिठ्नेमी चरिउ’ को आधार बना कर जैन कृष्ण कथा पर महाभारत के प्रभाव का आकलन करेंगे! इस शोध वृत्ति के अंतर्गत डॉ. ‘अरुण’ को संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से प्रति माह बीस हज़ार रूपए मानदेय के साथ यात्रा-व्यय तथा अनुशांगिक व्यय आगामी तीन वर्षों तक दिए जाएँगे!
      डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ को मिली यह वरिष्ठ शोध वृत्ति उत्तराखंड के किसी विद्वान को मिली ‘प्रथम’ शोध वृत्ति है, जिसके लिए डॉ. ‘अरुण’ को उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ.रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के साथ ही दिगंबर जैन समिति, श्री महावीरजी, जयपुर के अध्यक्ष पूर्व न्यायमूर्ति श्री एन. के. जैन, सचिव श्री नरेन्द्र कुमार पाटनी, अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर के निदेशक और प्रख्यात विद्वान डॉ. कोमल चाँद जैन आदि ने बधाइयाँ दी हैं! (समाचार सौजन्य :  डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’) 


नागपुर में हाइकु की दो पुस्तकों का लोकार्पण

         विगत 03 अगस्त 2014 को विदर्भ साहित्य सम्मेलन, नागपुर के सभागार में एक भव्य समारोह हाइकु की दो महत्वपूर्ण कृतियों का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। ये दोनों कृतियां थीं- सुप्रसिद्ध हाइकुकार उषा अग्रवाल ‘पारस’ का हाइकु संग्रह ‘हाइकुयाना’ एवं उन्हीं के द्वारा संपादित हाइकु संकलन ‘हाइकु व्योम’। दोनों कृतियों का लोकार्पण मंच पर कृतिकार एवं संपादक उषा अग्रवाल ‘पारस’ की उपस्थिति में सुप्रसिद्ध साहित्यकार-समालोचक डॉ.गोविन्द प्रसाद उपाध्याय, वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिंतक डॉ. मिथिलेश कुमार अवस्थी, अविराम साहित्यिकी के अंक संपादक डॉ. उमेश महादोषी तथा ‘आधुनिक साहित्य’ पत्रिका के संपादक श्री आशीष कंधवे ने किया। समारोह की अध्यक्षता डॉ. गोविन्द प्रसाद उपाध्याय ने की। डॉ. मिथिलेश कुमार अवस्थी व डॉ. उमेश महादोषी प्रमुख वक्ता तथा श्री आशीष कंधवे विशेष अतिथि थे।
         इस अवसर पर हाइकु व्योम पर प्रमुख वक्ता के रूप में डॉ. मिथिलेश कुमार अवस्थी ने ‘हाइकु व्योंम’ पर विस्तार से अपने समीक्षात्मक विचार रखे। उन्होंने संकलन के कई हाइकुकारों के प्रतिनिधि उदाहरणों के माध्यम से अपनी बात रखी। कुछ कवियों के अच्छे हाइकुओं के मध्य उन्हीं के कमजोर हाइकुओं पर डॉ. अवस्थी ने आश्चर्य व्यक्त किया। डॉ. उमेश महादोषी ने अपने वक्तव्य में उषा अग्रवाल के संग्रह ‘हाइकुयाना’ को रचनात्मकता के स्तर बेहद सफल कृति बताया। उन्होंने कई हाइकुओं के रचनात्मक पक्ष को उजागर करते हुए कहा कि इन हाइकुओं में समुद्र सी गहराई है। श्री आशीष कंधवे ने अपने वक्तव्य में हाइकु जैसी विधा पर हाइकु जैसे ही संक्षिप्त प्रारूप में समीक्षात्मक विचार रखने की सलाह दी। अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. गोविन्द प्रसाद उपाध्याय ने दोनों कृतियों को सफल बताया लेकिन नई पीढ़ी द्वारा वरिष्ठ पीढ़ी के साहित्यकारों की उपेक्षा पर चिन्ता जाहिर की। उन्होंने नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करते हुए उन्हें अपनी धरोहर को सहेजकर रखने की आवश्यकता समझाई।
         सभी मंचासीन एवं अन्य वक्ताओं ने उषा अग्रवाल की रचनात्मकता, साहित्य के प्रति समर्पण एवं नागपुर में साहित्यिक गतिविधियों में उनके योगदान की खुलकर प्रशंसा की। साथ ही उनके पति डॉ. योगेन्द्र अग्रवाल व बच्चों के योगदान को भी रेखांकित किया। इस अवसर पर अनेक स्थानीय साहित्य प्रेमियों एवं कुछ संस्थाओं ने उषा अग्रवाल ‘पारस’ को उनकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया। समारोंह में दोनों कृतियों के चित्रकारों श्रीमती कमलेश चौरसिया व श्री सुभाष तुलसिता का भी सम्मान किया गया। ज्ञातव्य है कि दोनों ही पुस्तकों में अनेक भावपूर्ण रेखाचित्रों का भी उपयोग किया गया है। कार्यक्रम का गरिमापूर्ण संचालन श्रीमती रीमा चड्ढा ने किया। समारोह में बड़ी संख्या में स्थानीय साहित्यकार एवं सुधीजन उपस्थित रहे, जिनमें ‘दिवान मेरा’ के संपादक श्री नरेन्द्र परिहार, अविराम साहित्यिकी की प्रधान संपादिका श्रीमती मध्यमा गुप्ता, कवयित्री माधुरी राउलकर, वंदना सहाय, सुश्री इन्द्रा किसलय, श्रीमती कमलेश चौरसिया, चित्रकार श्री सुभाष तुलसिता, वरिष्ठ कवि श्री अहफ़ाज अहमद कुरेशी, विक्रम सोनी आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय थी। अन्त में श्री राजेन्द्र देवधरे ने सभी उपस्थित अतिथियों एवं साहित्य प्रेमियों का आभार व्यक्त किया। (समाचार प्रस्तुति : अविराम समाचार डेस्क)


कथा संगम समारोह सम्पन्न



उज्जैन। साहित्य अकादमी म. प्र. संस्कृति परिषद से संबद्ध प्रेमचंद सृजन पीठ द्वारा मुंशी प्रेमचंद स्मृति सप्ताह के अंतर्गत कथा संगम का विशिष्ट समारोह (5 अगस्त को) विक्रम विश्वविध्यालय के वाकदेवी सभागार में आयोजित किया गया, जिसमे म.प्र. के प्रतिनिधि कथाकारों वेद हिमांशु, संदीप सृजन, नियति सप्रे, गोपाल माहेश्वरी, अनामिका त्रिवि, अनुराग पाठक, स्वामीनाथ पांडे, एवं दिनेश परिहार आदि ने समकालीन संदर्भों पर केन्द्रित सामाजिक सरोकारों की कहानियों तथा लघुकथाओं का पाठ किया।
     प्रस्तुत की गयी रचनाओं पर समीक्षा वक्तव्य डॉ. बी. एल. आच्छा ने दिया। मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी भोपाल के निर्देशक प्रो. त्रिभुवन नाथ शुक्ल थे। प्रस्तुत की गई कहानियों पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि इन कहानियों में गरीबी, आधुनिक तकनीक से प्रभावित हो रहे विचार तथा पीढियों के अंतराल को रेखांकित किया गया है एवं इन कहानियों ने प्रेमचंद कि परंपरा को आगे बढ़ाया है। समारोह की अध्यक्षता डॉ. प्रेमलता चुटैल ने की। इस अवसर पर सृजन पीठ के अध्यक्ष डॉ. जगदीश तोमर ने भी संबोधित किया। संचालन डॉ. जगदीश शर्मा ने एवं आभार वक्तव्य प्रो. गीता नायक ने दिया। (समाचार प्रस्तुति : वेद हिमांशु/मोबाइल :  94245-86658)



डॉ अरुण को राष्ट्रीय ‘स्वयंभू सम्मान’ 





अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर की कार्यकारिणी समिति ने राष्ट्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ की पुस्तक ‘पुष्पदंत’ पर उन्हें वर्ष 2013 का राष्ट्रीय ‘स्वयंभू सम्मान’ प्रदान करने का निर्णय लिया है! इस गौरवशाली सम्मान में अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर इक्यावन हज़ार रूपए के नकद पुरस्कार के साथ प्रशस्ति-पत्र, अंग-वस्त्र आदि एक भव्य समारोह में प्रदान करती है। समारोह किसी उपयुक्त समय पर जयपुर में या श्री महावीरजी में आयोजित होगा! स्मरणीय है कि साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित डॉ. अरुण की यह पुस्तक ‘पुष्पदंत’ दसवीं शताब्दी के अपभ्रंश भाषा के महाकवि पुष्पदंत पर शोधपरक विनिबंध है, जो राष्ट्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने ‘भारतीय साहित्य के निर्माता’ जैसी महत्त्वपूर्ण योजना के अंतर्गत वर्ष 2012 में प्रकाशित की है और जिसे साहित्य अकादमी ने भी महत्त्वपूर्ण माना है!
    महाकवि पुष्पदंत पर लिखी गई इस पुस्तक के समीक्षक हिंदी साहित्य-जगत के प्रकांड विद्वान् डॉ. राममूर्ति त्रिपाठी रहे हैं, जिन्होंने मुक्तकंठ से इस ग्रन्थ की प्रशंसा करते हुए इसे ‘अपभ्रंश साहित्य की मूल्यवान कृति’ माना है! (समाचार सौजन्य :  डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’) 



अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका  ‘‘अक्षरवार्ता’’ का विमोचन 



उज्जैन। उज्जैन से प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका ‘अक्षरवार्ता’ का विमोचन विदिशा में आयोजित राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त समारोह में संपन्न हुआ। साहित्य अकादेमी मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद्, भोपाल द्वारा आयोजित दो दिवसीय समारोह के उद्घाटन अवसर पर इस मासिक शोध-पत्रिका का विमोचन अकादेमी के निदेशक एवं वरिष्ठ विद्वान प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल एवं मंचासीन अतिथियों ने किया। पत्रिका का विमोचन प्रधान सम्पादक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, सम्पादक डॉ. मोहन बैरागी, सम्पादक मंडल सदस्य डॉ. जगदीशचन्द्र शर्मा ने करवाया। इस मौके पर विदिशा के शास. महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. कमल चतुर्वेदी, साहित्यकार डॉ. शीलचंद्र पालीवाल, डॉ. वनिता वाजपेयी, जगदीश श्रीवास्तव (विदिशा), डॉ. तबस्सुम खान (भोपाल), युवा शोधकर्ता पराक्रमसिंह (उज्जैन) आदि सहित अनेक संस्कृतिकर्मी और साहित्यकार उपस्थित थे।
     उज्जैन से प्रकाशित इस आई एस एस एन मान्य अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में कला, मानविकी, समाजविज्ञान, जनसंचार, विज्ञान, वैचारिकी से जुड़े मौलिक शोध एवं विमर्शपूर्ण आलेखों का प्रकाशन किया जा रहा है। यह पत्रिका देश-विदेश की विभिन्न अकादमिक संस्थाओं, संगठनों और शोधकर्ताओं के साथ ही इंटरनेट पर भी उपलब्ध रहेगी। (समाचार प्रस्तुति :  डॉ. मोहन बैरागी / प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, अक्षरवार्ता, उज्जैन)



राधेश्याम भारतीय के लघुकथा संग्रह का लोकार्पण



हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित राधेश्याम भारतीय के लघुकथा संग्रह ‘अभी बुरा समय नहीं आया है’ का लोकार्पण समारोह दिनांक 16 अगस्त 2014 को राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय घरौंडा (करनाल) के प्रांगण में आयोजित हुआ।  लोकार्पण करने वाले साहित्यकारों में- डॉ.सुभाष रस्तोगी, डॉ.अशोक भाटिया, नरेश कुमार उदास, डॉ. ओमप्रकाश करुणेश, रामकुुमार आत्रेय, सुभाष शर्मा, ओमसिंह अशफाक, कमलेश चौधरी, छाया उदास, अरुण कुमार, रामकुमार भारतीय आदि प्रमुख थे।
           इस अवसर पर मुख्यअतिथि नरेश कुमार उदास ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज का युवा इंटरनेट और दूरदर्शन की वजह से  साहित्य से दूर भाग रहा है। यदि वह सहित्य से जुड़ जाएं, तो समाज का चेहरा कुछ और ही होगा। मुख्य वक्ता के तौर पर डॉ. अशोक भाटिया ने इस विधा पर विस्तार से चर्चा की और अनेक लघुकथाएं सुनाकर इस विधा के सशक्त होने के प्रमाण दिए।
          अध्यक्ष सुभाष रस्तोगी ने राधेश्याम भारतीय के लघुकथा संग्रह पर कहा कि इन लघुकथाओं में समाज का यथार्थ चित्रण है और प्रथम कृति होने पर अच्छी लघुकथाएं पढ़ने को मिली। सुभाष शर्मा ने अपनी देशभक्ति कविता सुना कर सभी को ईमानदारी से काम करने को प्रेरित किया। रामकुमार आत्रेय ने राधेश्याम भारतीय के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। कमलेश चौधरी ने कई लघुकथाओं पर अपनी राय दी। रामकुमार भारतीय ने इस संग्रह कई लघुकथाओं की चर्चा की, जो पाठक को शीघ्र आकर्षित करती हैं। अंत में जयभगवान पत्रकार ने सभी का आभार प्रकट किया। मंच संचालन मदन लाल ‘शिरशववाल’ ने किया। (समाचार प्रस्तुति :  सुभाष शर्मा, घरौंडा करनाल)



नरेश कुमार उदास के कहानी संग्रह का लोकार्पण




विगत दिनों पालमपुर, हिमाचल प्रदेश में कवि-कथाकार श्री नरेश कुमार ‘उदास’ के कहानी संग्रह ‘रोशनी चिन्ता हुआ शब्द’ का विमोचन सुश्री छाया रानी, डॉ. कालिया एवं डॉ. लेख राज के द्वारा किया गया। इस अवसर पर कई स्थानीय साहित्यकार एवं गणमान्य लोग उपस्थित रहे। (समाचार सौजन्य :  नरेश कुमार उदास)



पंचतंत्र कथा की एकल नाट्यभिनय प्रस्तुति 



इन्दौर। मालवी बोली के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु प्रतिबद्ध रचनाकारों के समूह मालवी जाजम के तत्वावधान में (7 अगस्त को) हिन्दी साहित्य समिति मे पंचतंत्र कथा पर आधारित वेद हिमांशु के मालवी आलेख पर केन्द्रित एकल नाट्यभिनय की प्रस्तुति वरिष्ठ रंगकर्मी / अभिनेता संतोष जोशी ने दी।
इस अवसर पर आयोजित इस मालवी समागम में  नरहरि पटेल, वेद हिमांशु, हरमोहन नेमा, रेणु मेहता, कुसुम मंडलोई ,एवं मुकेश इन्दोरी आदि रचनाकरों ने काव्य पाठ किया। (समाचार प्रस्तुति :  वेद हिमांशु, मालवी जाजम/मोबाइल :  94245-86658)



‘गाय, गुरु और गंगा’ पर काव्य संकलन की योजना


कानपुर की साहित्यिक संस्था बटोही द्वारा ‘गाय, गुरु और गंगा’ विषयक कविताओं के एक काव्य संकलन के प्रकाशन की योजना है। जो कवि बन्धु इस संकलन में शामिल होना चाहते हैं, अपनी अधिकतम तीस पंक्तियों की कविताएं 31 दिसम्बर 2014 से पूर्व डॉ. अशोक कुमार गुप्त ‘अशोक’ को 124/15, संजय गांधी नगर, नौबस्ता, कानपुर-208021, उ.प्र. के पते पर भेज सकते हैं। सभी प्रकाशित रचनाकारों को प्रकाशनोपरांत संकलन की निःशुल्क लेखकीय प्रति भेजी जायेगी। (समाचार सौजन्य :  डॉ. अशोक कुमार गुप्त ‘अशोक’/मोबाइल :  09956126487)




मध्य प्रदेश लेखक संघ का ‘वार्षिक उत्सव’ व सम्मान समारोह 


टीकमगढ़/नगर की सर्वाधिक सक्रिय साहित्यिक संस्था ‘म.प्र.लेखक संघ’ जिला ईकाई टीकमगढ़ का ‘वार्षिक उत्सव’ व सम्मान समारोह नगर भवन पैेलेस टीकमगढ़ के सभा कक्ष में होकर सम्पन्न हुआ। इस आयोजन में वरिष्ठ साहित्य मनीषी सम्मान्य पं.श्री सुरेन्द शर्मा ‘शिरीष’ (छतरपुर) अध्यक्ष, सम्मान्य श्री राजेश कुमार गौतम निदेशक आकाशवाणी छतरपुर मुख्य अतिथि श्री नवीन खंड़ेलवाल‘निर्मल’(इंदौर) ने विशिष्ट अतिथि की आसंदी को सुशोभित किया। आयोजन दो चरणों में सम्पन्न हुआ। प्रथम चरण में म.प्र. लेखक संघ की वार्षिक पत्रिका ‘आकांक्षा’ पत्रिका के 9वें अंक का विमोचन तथा शायर हाजी ज़फ़रउल्ला खां ज़फ़र’ के द्वितीय ग़ज़ल संग्रह ‘शगुफ़्ता चमन’ का विमोचन किया जायेगा। इस अवसर पर टीकमगढ़ म.प्र.लेखक संघ के जिलाध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ के पूज्य दादाजी स्व.पन्नालाल जी नामदेव की स्मृति के आयोजित कार्यक्रम में श्री नवीन खण्डेलवाल जी (इंदौर) को उनकी कृति ‘‘तुम कहाँ हो? अंर्तमन’’ के लिए रु. 1111/- का प्रथम स्व.पन्नालाल जी नामदेव स्मृति सम्मान 2013 से सम्मानित किया गया। उन्हें सम्मान निधी, आकर्षक सम्मान पत्र, स्मृति चिन्ह् प्रदान किया गया।
          द्वितीय चरण में काव्य संध्या (म.प्र.लेखक संघ की नियमित 185वीं साहित्यिक गोष्ठी) का आयोजन किया गया, जिसका संचालन उमाशंकर मिश्र ने किया। आाभार प्रदर्शन म.प्र.लेखक संघ के जिला अध्यक्ष राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी ने किया। (समाचार प्रस्तुति :  राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, जिला अध्यक्ष-म.प्र.लेखक संघ)



डॉ. सुनील कुमार परीट को ’मंडल रत्न सम्मान’




 11-08-2014  के गुरु पूर्णिमा के पावन दिन उत्तर प्रदेश के श्री एकरसानंद आश्रम, मैनपुरी में प.पू. श्री श्री श्री स्वामी शारदानंद सरस्वती महाराज जी ने अपने पावन कर कमलों से कर्नाटक के प्रसिध्द साहित्यकार डॉ. सुनील कुमार परीट जी को आश्रम का सर्वाेत्कृष्ट सम्मान ’मंडल रत्न सम्मान’ से अलंकृत किया। 
      इस शुभ अवसर पर स्वामी जी ने डॉ. परीट को सम्मान-पत्र, अंगवस्त्र, किताबें, श्रीगणेश जी की मंगलमूर्ति, रुद्राक्ष मालाएँ, प्रसाद आदि प्रदान करके सम्मानित किया। स्वामी जी का आशीर्वाद अनुग्रह पाकर डॉ. परीट धन्य हो गये। (समाचार सौजन्य :  डॉ. सुनील कुमार परीट, ज्ञानोदय साहित्य संस्था, कर्नाटक)

अविराम के अंक

अविराम साहित्यिकी 
(समग्र साहित्य की समकालीन त्रैमासिक पत्रिका)

खंड (वर्ष) : 3  / अंक : 2  / सितम्बर-अक्टूबर  2014  (मुद्रित)

प्रधान सम्पादिका :  मध्यमा गुप्ता
अंक सम्पादक :  डॉ. उमेश महादोषी 
सम्पादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन
मुद्रण सहयोगी :  पवन कुमार

रेखा चित्र : बी.मोहन नेगी 
अविराम का यह मुद्रित अंक रचनाकारों व सदस्योंको 14 अगस्त 2014  को तथा अन्य
सभी सम्बंधित मित्रों-पाठकों को 18 अगस्त  2014 तक भेजा जा चुका है। 10 सितम्बर  2014  तक अंक प्राप्त न होने पर सदस्य एवं अंक के रचनाकार अविलम्ब पुन: प्रति भेजने का आग्रह करें। अन्य  मित्रों को आग्रह करने पर उनके ई मेल पर पीडीऍफ़ प्रति भेजी जा सकती है। पत्रिका पूरी तरह अव्यवसायिक है, किसी भी प्रकाशित रचना एवं अन्य  सामग्री पर पारिश्रमिक नहीं  दिया जाता है। इस मुद्रित अंक में शामिल रचना सामग्री और रचनाकारों का विवरण निम्न प्रकार है- 


।।सामग्री।।

लघुकथा के स्तम्भ 

स्व.जगदीश कश्यप (3)
स्व.रमेश बत्तरा (7) 

कविता अनवरत-1(काव्य रचनाएँ)

राजेन्द्र जोशी (10) 
नित्यानन्द गायेन (11) 
अखिलेश अंजुम/प्रशान्त उपाध्याय (12) 
विज्ञान व्रत (13) 
डॉ. जेन्नी शबनम/डॉ. सुन्दरलाल कथूरिया (14) 
मधुकांत/सत्यनारायण भटनागर (15) 
सुगत कुमारी की मलयालम कविता का के.जी. बालकृष्ण पिल्लै द्वारा अनुवाद (16) 

विमर्श

मॉरीशस ने अपनी हिन्दी में सृजन करना सीख लिया है :  मॉरीशस के वरिष्ठ साहित्यकार श्री राज हीरामन के साथ राजेन्द्र परदेसी की बातचीत (17)
लघुकथा का वृहद अर्थ :  राजाराम भादू (21)
आधुनिकता, समकालीनता एवं लघुकथाएँ :  डॉ.नीहार गीते (24)

आहट 

राजकुमार कुम्भज / राजेश उत्साही (29),
अमृत लाल मदान / वंदना सहाय  (30)

कथा कहानी

अप्रासंगिक :  मनीष कुमार सिंह (31)
मेरा गांव :  डॉ. अनिल पतंग (34)

प्रसंगवश

प्रेम और कठोरता का अप्रतिम दर्शन- ‘माँ...’ :  विद्यादेवी चांडक (38)

कविता के हस्ताक्षर

डॉ.पंकज परिमल (40)

कथा प्रवाह-1

डॉ.अशोक भाटिया (43)
डॉ.सतीश राज पुष्करणा (44)
हरनाम शर्मा/के.एल. दिवान (45)
 सुरेश शर्मा/शेर सिंह (46)
शोभा रस्तोगी ‘शोभा’ (47)

कविता अनवरत-2 (काव्य रचनाएँ) 

डॉ.डी.एम. मिश्र/राकेश तैनगुरिया (48) 
डॉ.कुँवर दिनेश सिंह/अनंत आलोक (49) 
डॉ. अनूप सिंह/पुष्पा मेहरा (50) 
संजीव कुमार अग्रवाल/प्रो.मनु महरबान (51) 

व्यंग्य वाण 

डॉ. अ. कीर्तिवर्धन / डॉ. सतीश चन्द्र शर्मा ‘सुधान्शु’ (52)

कथा प्रवाह-2

स्व. मनोहर शर्मा ‘माया’/महावीर उत्तरांचली (53)
सत्य शुचि (54)
कमलेश व्यास ‘कमल’/राधेश्याम पाठक ‘उत्तम’/दिलीप भाटिया (55)
दिनेश नन्दन तिवारी/गोविन्द भारद्वाज (56)

कविता अनवरत-3 (काव्य रचनाएँ) 

हितेश कुमार शर्मा/उषा कालिया (57) 
रामेश्वर दयाल शर्मा ‘दयाल’/कन्हैयालाल अग्रवाल ‘आदाब’ (58) 
सूर्यकान्त श्रीवास्तव ‘सूर्य’/उदय करण ‘सुमन’ (59) 

किताबें (संक्षिप्त समक्षाएँ)

तपस्वी सृजनधर्मी के बहुआयामी पक्षों को रेखांकित करता दस्तावेजी लघुकथा-संग्रह: डॉ.सतीश दुबे द्वारा श्यामसुन्दर अग्रवाल के लघुकथा संग्रह ‘बेटी का हिस्सा’ की समीक्षा (60) 
भविष्य के लघुकथाकारों का संकलन: डॉ. उमेश महादोषी द्वारा उषा अग्रवाल ‘पारस’ संपादित लघुकथा संकलन ‘लघुकथा वर्तिका’ की परिचयात्मक समीक्षा (63)

स्तम्भ 

माइक पर/उमेश महादोषी का संपादकीय (आवरण 2)
आजीवन सदस्य (20) 
चिट्ठियाँ (64)
गतिविधियाँ (66) 
प्राप्ति स्वीकार (68)

गुरुवार, 10 जुलाई 2014

ब्लॉग का मुखप्रष्ठ

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 09-10,  मई-जून  2014

प्रधान संपादिका : मध्यमा गुप्ता
संपादक :  डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल: 09458929004)
संपादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन 
ई मेल :  aviramsahityaki@gmail.com 


शुल्क, प्रकाशन आदि संबंधी जानकारी इसी ब्लॉग के ‘अविराम का प्रकाशन’लेवल/खंड में दी गयी है।


रेखा चित्र : पारस दासोत 
।।सामग्री।।

कृपया सम्बंधित सामग्री के पृष्ठ पर जाने के लिए स्तम्भ के साथ कोष्ठक में दिए लिंक पर क्लिक करें। 


सम्पादकीय पृष्ठ { सम्पादकीय पृष्ठ }:  नई पोस्ट नहीं। 

अविराम विस्तारित: 

काव्य रचनाएँ {कविता अनवरत}:  इस अंक में सर्वश्री नारायण सिंह निर्दोष, डॉ. पंकज परिमल, जयप्रकाश श्रीवास्तव, शेर सिंह, धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’, अजय चन्द्रवंशी, सतीश गुप्ता व डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन की काव्य रचनाएं।

लघुकथाएँ {कथा प्रवाह}:   इस अंक में इस अंक में डॉ. सतीश दुबे, हरनाम शर्मा, सुदर्शन रत्नाकर, शोभा रस्तोगी, मधुकांत व विजय गिरि गोस्वामी ‘काव्यदीप’ की लघुकथाएं।

कहानी {कथा कहानी}: इस अंक में आशा शैली की कहानी ‘बन्धुआ मजदूर’।

क्षणिकाएँ {क्षणिकाएँ}:  इस अंक में श्री नित्यानन्द गायेन व श्री चिन्तामणि जोशी की क्षणिकाएं।

हाइकु व सम्बंधित विधाएँ {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ}: इस अंक में डॉ. सुधा गुप्ता, सुश्री वंदना सहाय व डॉ.दिनेश त्रिपाठी ‘शम्श’ के हाइकु।

जनक व अन्य सम्बंधित छंद {जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द}: इस अंक में मुखराम माकड़ ‘माहिर’ के जनक छंद।

माँ की स्मृतियां {माँ की स्मृतियां}:  नई पोस्ट नहीं।

बाल अविराम {बाल अविराम}:  इस अंक में सुश्री पुष्पा मेहरा की बाल कविताएं बाल चित्रकार आरुषि ऐरन व सक्षम गम्भीर की पेन्टिंग्स के साथ। 

हमारे सरोकार (सरोकार) :  नई पोस्ट नहीं।

व्यंग्य रचनाएँ {व्यंग्य वाण}:  इस अंक में आशीष दासोत्तर की व्यंग्य रचना।

संभावना {संभावना}: नई पोस्ट नहीं।

स्मरण-संस्मरण {स्मरण-संस्मरण}: नई पोस्ट नहीं।

क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}: नई पोस्ट नहीं।

अविराम विमर्श {अविराम विमर्श}:  वरिष्ठ लघुकथाकार डॉ. बलराम अग्रवाल के साथ लघुकथा से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर डॉ. उमेश महादोषी की बातचीत।

किताबें {किताबें}:   इस अंक में रतन चन्द्र रत्नेश के कहानी संग्रह 'झील में उतरती ठण्ड' की सुदर्शन वशिष्ठ द्वारा लिखित समीक्षा। 

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गतिविधियाँ {गतिविधियाँ}: पिछले दिनों प्राप्त साहित्यिक गतिविधियों की सूचनाएं/समाचार।

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अविराम के अंक {अविराम के अंक}: अविराम साहित्यकी के अप्रैल-जून 2014 मुद्रित अंक में प्रकाशित सामग्री / रचनाकारों से सम्बंधित सूचना। 

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अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 09-10,  मई-जून 2014


।।कविता अनवरत।।


सामग्री :  इस अंक में सर्वश्री नारायण सिंह निर्दोष, डॉ. पंकज परिमल, जयप्रकाश श्रीवास्तव, शेर सिंह, धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’, अजय चन्द्रवंशी, सतीश गुप्ता व डॉ. अ. कीर्तिवर्धन  की काव्य रचनाएं।


नारायण सिंह निर्दोष 




दो ग़ज़लें

01.
यूं तो पत्थर चेहरों का पिघलना न हुआ
कभी पिघले भी तो साँचों में ढलना न हुआ

एक मुद्दत सी हो गयी, यारों तुमसे मिले
ये क्या बात हुई, घर से निकलना न हुआ

ले गईं आँधियाँ उड़ाकर वजूद अपना
ऐसे पेड़ों से हम लिपटे कि हिलना न हुआ

ज़िन्दगी! तेरी शह पर बेतरतीब रहे
तूने जो दरवाजा खोला, सँभलना न हुआ

हसरतें धूँ-धूँ कर जला करती हैं लेकिन
लोग कहते हैं कि ये जलना जलना न हुआ
रेखा चित्र : पारस दासोत 


02.
तुम न थे तो कारवाँ रूठे मुकद्दर-सा हुआ
तुम से मिलके यूं लगा, तुमसे मिले अरसा हुआ

सामान लेकर चल दिये हर दूसरे इतवार को
देखते ही देखते हर घर मिरे घर-सा हुआ

ऊँचा करें दरवाजों को याकि कद छोटा करें
आपका बर्ताव तो, बर्ताव अफ़्सर-सा हुआ

आसमानों में मैंने कितनी ही उड़ानें भरीं
बीच लोगों के ज़िकर मेरा कटे पर-सा हुआ

कहकर यह पपीहे ने दावा मेरा खारिज़ किया
बादल तो मैं हूं मगर, बादल हूं बरसा हुआ

वो गरम मिज़ाज़ हैं, मगर हैं तो पुरबाईयां
छूने का इक एहसास भी, एहसास इतर-सा हुआ

हम सफ़र के यारो शौकीन इतने हो गये
पेड़ों की छांव में बैठना भी सफ़र-सा हुआ

आदमी कोई न था, सिर्फ बियावान था
कानों का खड़ा होना भी, बैठे हुये डर-सा हुआ

  • सी-21, लैह (LEIAH) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096 // मोबा.: 09810131230



डॉ. पंकज परिमल



{कवि-निबन्धकार पंकज परिमल का गीत-नवगीत संग्रह ‘उत्तम पुरुष का गीत’ गत वर्ष प्रकाशित हुआ था, जिसमें उनके अनेक महत्वपूर्ण गीत-नवगीत संग्रहीत हैं। प्रस्तुत हैं इस संग्रहद से उनके तीन प्रतिनिधि नवगीत।} 

तीन नवगीत

01. पूरा जीवन पर बीत गया...

बैमाता
मेरे माथे पर 
लिख गई न जाने क्या 
पूरा जीवन तो बीत गया
उसकी व्याख्या में ही
अवसाद घना लिख गई
लिखा मैंने भी तो पौरुष
वह तिमिर घना लिक्खे
तो मैं भी
साधूँ किरन-धनुष
सम्पदा-सौख्य
सब कुछ लिक्खा होगा
रेखा चित्र : मनीषा सक्सेना 

बैमाता ने
पूरा जीवन पर बीत गया
गहरी विपदा में ही
उसने उड़ान लिख दी
मैंने आगे आकाश लिखा
उसने थकान लिख दी
मैंने गति का अभ्यास लिखा
माथे पर रख दी तो होगी
आश्वस्ति-भरी अँगुली
पर अपना समय गया सारा
शंका-दुविधा में ही
जो कोमल थे अहसास
चुभे वे ही बनकर काँटे
मेरे एकान्तिक सुख पल
दुनिया ने मुझसे बाँटे
बैमाता
लिख तो गई
मरण से ही पहले ज्वाला
मैं जीवित हूँ लेकिन उसकी
इस दाहकता में ही
युग-भर की चिंताएँ सिर लूँ
यदि राज-पाट लिक्खे
उसमें युग की हिस्सेदारी
यदि ठाठ-बाट लिक्खे
बैमाता
लिख दे राजयोग भी
लेकिन क्या कहिए
राजाजी का जीवन बीते
यदि चारणता में ही

02. उतनी झरी व्यथा

जितना-जितना मुसकाए हम
उतनी झरी व्यथा
रेखा चित्र : बी.मोहन नेगी 
    जितने सुख सँघवाए उतने
    और दरिद्र हुए
    तागे थे मजबूत सिवन के
    ज़्यादा छिद्र हुए
और हो गई सघन वेदना
जितनी कही कथा
    उपवासों से हुई अलंकृत
    भूख महान हुई
    उपहासों की खिलखिल गूँजी 
    नींद हराम हुई
उस पथ पर चलने की विद्या
हमको नहीं पता

03. चढ़ा मारीच आता है#

हमारी यज्ञ-वेदी तक
चढ़ा मारीच आता है
    कि विश्वामित्र की भी साधना में
    विघ्न पैदा कर
    बरस के दुष्ट ओले की तरह 
    फिर नष्ट खुद को कर
रेखा चित्र : राजेन्द्र परदेसी 
    हमारे यज्ञ के रक्षक
    सजगता से रहे तत्पर
    उन्हीं के हाथ कसते क्रोध से हैं
    रुद्र के धनु पर
कठिन है काल उनका
मृत्यु-मुख में खींच लाता है
     कभी तो कर दिया हमने क्षमा
    जो पार जा पटका
    रची माया, दिया हमको
    कठिन वन-प्रान्त में भटका
    भले सुख-शांति भी अपनी
    गँवानी पड़ गयी हमको
    करेंगे अंत अब वे तीर ही
    इस छद्म नाटक का
धरा को रक्त से जो पापियां के
सींच जाता है

(#13 दिसंबर 2001, संसद पर आतंकी हमले की स्मृति)

  • ‘प्रवाल’, ए-129, शालीमार गार्डन एक्स.-।।, साहिबाबाद, जिला : गाजियाबाद (उ.प्र.) // मोबा.: 09810838832



जयप्रकाश श्रीवास्तव






{कवि श्री जयप्रकाश श्रीवास्तव का वर्ष 2012 में प्रकाशित गीत/गीतिका संग्रह ‘मन का साकेत’ हमें हाल ही में पढ़ने का अवसर मिला। प्रस्तुत हैं इस संग्रह से उनकी कुछ रचनाएं।}

कुछ रचनाएँ

01. रेगिस्तान मन

तन पिघलती धूप में
मन रेगिस्तान है

पाँव नीचे दबी सूखी पत्तियाँ
छाया चित्र : उमेश महादोषी 

चीखती हैं दर्द के अहसास से
समूचा जंगल उघारे देह को
जी रहा बस धरा के उच्छवास से
हाथ फैला सृश्टि से
बस माँगता पहचान है

लगाती है नदी डुबकी रेत में
तटों पर हैं प्यास की गहराइयाँ
घूमती हैं लू-लपटों की शक्ल में
हवा, आँचल में छुपाए आँधियाँ

धार, टूटी नाव में 
लेटी, लिए तूफान है

02. धूप की नदी

राहों में लू-लपट की बाढ़
ले आई धूप की नदी

मौसम ने गरमाया
सारा उपवन
पतझड़ की समिधा से
सूर्य के हवन
छाया चित्र : अभिशक्ति 

अलसाई देह को उघाड़
लेटी है रूप की नदी

खेतों पर चैत ने
चलाया खंजर
धरती पर फैल गया
भूखा बंजर

होगा कब जेठ ये असाढ़
पूछ रही सूखती नदी

03. रंगों की बौछार

पत्ते-पत्ते पर पुरवा ने
गीत लिखे हैं प्यार के
हँसे धूप बासंती चूनर
इस धरती पर डार के

पीले चावल डाल दे गया
मौसम न्यौता
फागुन का संदेश सुनाए
हरियल तोता
यौवन की अमराई सर पर
बाँधे मौर बहार के

उमर अल्गनी पर लटके
छाया चित्र : अभिशक्ति 
खुशियों के कपड़े 
दर्द हिंडोला टूट गया
हुए दुख लूले लंगड़े
सन्यासी का मन भींज गया है
रंगों की बौछार से

चुटकी भर अबीर प्रेम की
लिखता परिभाषा
जगा रहा जन-जन के मन
कोई अभिलाषा
हुए मोथरे प्रण सारे सब
बदले की तलवार के

04.  गीतिका

उम्र भर जो सलीब ढोते हैं
उनके भी क्या नसीब होते हैं

भूख अहसान फरामोश नहीं
पेट अपने रकीब होते हैं

भीड़ गाती है शहीदाना ग़ज़ल
लाश काँधे गरीब ढोते हैं

वतन पर जाँ निसार करते हैं
चंद ऐसे मुज़ीब होते हैं

सतह पर फिर उभर न पाये कभी
वक्त के भी अजीब गोते हैं

  • आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी, शक्तिनगर, जबलपुर-482001, म.प्र. // मोबा. : 07869193927


शेर सिंह





{कवि श्री शेर सिंह जी का कविता संग्रह ‘मन देश है- तन परदेश’ गत वर्ष प्रकाशित हुआ था। प्रस्तुत हैं इस संग्रह से उनकी कुछ प्रतिनिधि कविताएं।}

कुछ कविताएं

01. ऐसा क्यों होता है

ऐसा क्यों होता है
जिसे हम नायक, महानायक 
मानने लगते हैं
अपने आदर्श के रूप में
मन में स्थापित कर लेते हैं
रेखा चित्र : उमेश महादोषी 

धीरे-धीरे हमारे दिलों से 
उतरने लगता है
और, हमारे दिलों में बसी
उसकी आदर्श छवि 
खंडित होने लगती है

फिर एक दिन 
ऐसा भी आता है
जब हम पाते हैं कि
हमारा नायक, महानायक
हमारा आदर्श
हमारे दिलों में मरने लगा है

हम पाते हैं कि वह
हम और आप जैसा
एक साधारण आदमी है
बल्कि हम से भी
निकृष्ट उसकी सोच
और उसके कर्म हैं

केवल हमने ही उसे
नायक, महानायक स्थापित किया
हमने ही अब
झाड़, पोंछ दिया है
अपने दिलों से उसे
लेकिन ऐसा क्यों होता है? 

02. समय

लम्बे पंजों/तीखी चोंच से
ले जाता है सब/सुख
समय/नोंचकर
अंगार से भर दिये हों/आंखों में
और कंठ में/ढोल/दांतों में जकड़े/झंकार फूटे न
रेखा चित्र : डॉ.सुरेन्द्र वर्मा  
मुंह के/कपाट खोलकर?
समय का ही दिया है
ये सब/राहें/चीन्हे-अनचीन्हे/और कहीं-कहीं
कर्म का ही/दूध पिलाया है।

मुखौटे के अन्दर/मुखौटा
सादे आवरण में/धारियां
सत्य को/छिपा लो/मिथ्या को बढ़ा दो
समय/सब कुछ/उजागर-
कर ही डालता है।

03. लड़ाई

लड़ाई तो लड़ाई है
कोई पत्थर से
वार करे
कोई शब्द और बुद्धि से
होते हैं घायल 
दोनों से

मिट जाता है
पत्थर से दिया हुआ घाव
बुद्धि, शब्दों का
दिया घाव लेकिन
सालता है
कचोटता है
सालों-साल।

  • के. के.-100, कविनगर गाजियाबाद-201001 // मोबा. :  08447037777


धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’



ग़ज़ल

धूप से फिर छाँव में हम आ गये।
ज़िन्दगी के अर्थ फिर धुँधला गये।

आपको बचना था सच्चाई से जब
आइने के सामने क्यूँ आ गये।

कुछ तो हम दुनिया से शर्मिन्दा रहे
रेखा चित्र : डॉ.सुरेन्द्र वर्मा  

कुछ हम अपने-आप से शरमा गये।

मुद्दतों के बाद वो मुझसे मिला
लफ़्ज़ मेरे जाने क्यूँ पथरा गये।

अब तो ‘साहिल’ मिल के ही जायेंगे
उनके दरवाजे तलक जब आ गये।

  • के 3/10 ए, माँ शीतला भवन, गायघाट, वाराणसी-221001(उ.प्र.) // मोबाइल : 08935065229 07275318940



अजय चन्द्रवंशी




ग़ज़ल

ये भरम भी टूटेगा किसी दिन।
कि तेरा साथ न छूटेगा किसी दिन।

इस तरह जो खिड़की बंद रखेगा,
कमरे में ही दम घुटेगा किसी दिन।

इस जुल्म की भी इन्तिहा होगी,
ये घड़ा भी फूटेगा किसी दिन।

अब तक तो सबको मनाता रहा,
ऐ दिल तू भी रूठेगा किसी दिन।

  • राजमहल चौक, फूलवारी के सामने, कवर्धा, जिला- कबीरधाम-491995 (छ.गढ़) // मोबा. : 09893728320



सतीश गुप्ता




{कवि एवं काव्य केन्द्रित लघु पत्रिका ‘अनन्तिम’ के संपादक श्री सतीश गुप्ता का दोहा संग्रह ‘शब्द हुए निःशब्द’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह से प्रस्तुत हैं उनके कुछ प्रतिनिधि दोहे।}


कुछ दोहे

01.
भावुकता पानी हुई, सजल हुए हैं नैन।
झर-झर झरती प्रार्थना, शब्द हुए बेचैन।।
02.
समय सत्य का सारथी, समय सत्य का दूत।
सहचारी बनकर रहे, मेरे शब्द सपूत।।
03.
अंगारों पर हैं कमल, दरवाजे पर हाथ।
शालों की तासीर है, अब शबनम के साथ।।
04.
दिग-दिगन्त में डोलता, सहज आत्म विश्वास।
छाया चित्र : अभिशक्ति 

सुन्दरता के परस से, शान्त हुए उच्छ्वास।।
05.
हर मानव के पास है, आग और तूफान।
बम गोला बारूद सब, रक्त बीज सन्तान।।
06.
चटके हर संवाद की, चुप्पी भरे दरार।
आवाजों की मौन से, ठनी रही तकरार।।
07.
तितली चिड़िया चाँदनी, फूलों का श्रृंगार।
नरम हथेली चूमकर, व्यक्त करें आभार।।
08.
समय कभी बर्बर हुआ, और कभी भयभीत।
कभी युद्ध की घोषणा, कभी हृदय की प्रीत।।
09.
जहाँ शुरू होता सफर, वहीं हुआ है अंत।
अनचीन्हा लगता रहा, झुर्रीदार बसंत।।
10.
अपने से लड़ता रहा, वह खुद अपने आप।
अन्त समय तक युद्ध-रत, हार गया चुपचाप।।

  • के-221, यशोदानगर, कानपुर-208011, उ.प्र. // मोबा. :  09793547629


डॉ. अ. कीर्तिवर्धन 





कुछ छुटपुट रचनाएं

01.
अपनी शख्सियत को इतना ऊंचा बनाओ,
खुद का पता तुम खुद ही बन जाओ। 
गैरों के लबों पर तेरा नाम, आये शान से,
मानवता की राह चल, गर इंसान बन जाओ। 
02.
किसी कविता में गर नदी सी रवानी हो,
सन्देश देने में न उसका कोई सानी हो। 
छंद-अलंकार-नियमो का महत्त्व नहीं होता,
जब कविता ने दुनिया बदलने की ठानी हो। 
छाया चित्र : उमेश महादोषी 

03.
गिरगिट की तरह रंग बदलते हर पल,
तेरे लफ्जों में तेरा किरदार ढूँढूँ कैसे ?
कबि तौला कभी माशा, तेरे दाँव -पेंच,
तेरे जमीर को आयने में देखूं कैसे?
04.
मंजिल की तलाश में, जो लोग बढ़ गए,
मंजिलों के सरताज, वो लोग बन गए। 
बैठे रहे घर में, फकत बात करते रहे,
मंजिलों तक पहुँचना, उनके ख्वाब बन गए। 

  • 53, महालक्ष्मी एंक्लेव, जानसठ रोड, मुजफ्फरनगर-251001 (उ0प्र0) // मोबाइल :  09058507676