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शुक्रवार, 30 मार्च 2012

किताबें

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०७, मार्च  २०१२ 

{अविराम के ब्लाग के इस अंक में संजय वर्मा ‘दृष्टि’ द्वारा लिखित श्री हरिशंकर वट की कृति ‘क्या लिखूँ’ (काव्य  संग्रह)  की समीक्षा  रख  रहे हैं।  कृपया समीक्षा भेजने के साथ समीक्षित पुस्तक की एक प्रति हमारे अवलोकनार्थ (डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला- हरिद्वार, उत्तराखण्ड के पते पर) अवश्य भेजें।} 



संजय वर्मा ‘दृष्टि’

क्या लिखूँ : हरिशंकर वट का प्रथम काव्य संग्रह


    कवि हरिशंकर वट के प्रथम काव्य संग्रह ‘क्या लिखूँ’ में 65 रचनाएँ समाहित हैं। शीर्षक ‘क्या लिखूँ?’ एक प्रश्न छोड़ता है, जिसे सुंदर आवरण पृष्ठ पर, काव्यकृति के अगले कोरे पन्नों पर लिखने को आतुर कलम भावों की कल्पना में रचा जाना दर्शाती है। कवि ने मन की कल्पनाशीलता से उपजे विचार वर्तमान परिदृश्य में प्रेम, यादें, टीस, तलाश, रिश्ते, प्रकृति, समस्या आदि को बड़े ही अच्छे ढंग से काव्य कृति में रचा गया है। शब्दों की बेहतर बुनावट से कव्यकृति में कसावट आई है। रचनाएँ अन्तर्मन को छू जाती हैं।              
    कवि ने विरहता को एक रचना में यूं  बयां किया है- ‘‘विरही/नायिका के नयनों से/ओस बन फूट पड़े/अश्रु-जल मोती/ निर्दयी भोर की किरण ने/भर बचा लिया दामन/रात भर के रोने पर/बन पड़ी पंक्ति एक/शबनम की लड़ियाँ/पिरो ली अहेरी ने/वाह! रे निशा का खेल’’
   एक दूसरी रचना में एक अलग तरह से शब्दों का तिलिस्मी अंदाज है- ‘‘नयनों से गिरा दी पलकें/बादल के बीच बिजली से मोती/समर्पण का भाव था/बाहों में/आलिंगन और धरती’’
   हरिशंकर वट की रचना को गहराई से देखा जाए तो उन्होंने प्रेम को एक नया श्रंगारात्मक मुखर रूप दिया है- ‘‘मेघों ने हटाया घनेरा घूंघट/अक्स इन्दु का नज़र आया/अपनी पूरी जवानी पर है चाँद/कहीं आज पूनम तो नहीं’’। इसी प्रकार एक दूसरी रचना देखिए- ‘‘कभी बसन्त की मदमाती मनुहार/सम्मोहन करती है/तन-मन को और तब/झरने सा कल-कल, छल-छल करता/बहने को विकल हो उठता है/मेरी प्रियतमा का अनछुआ प्यार’’।
   प्रणय प्रतीति में प्रेम से भरी खुश्बू से सराबोर रचना मन को महक की अनुभूति का नया अहसास कराती है- ‘‘तैर आए नीले समंदरी/सतरंगी उजाले/और महकते फूलों की खुश्बू/एक साथ एक जगह/हो गई थी एकत्रित/निःशब्दता/अनुभूति थी प्यार की’’।
   पैसों से स्वार्थ की व्यथितता सचमुच रिश्तों की केन्द्रियता में खण्डता लाने लगी है। इसी कारण मन पर चोट से रिश्तों में घाव पड़ना ज्यादा पीड़ादायी लगने लगा है- ‘‘पैसे पर, उसके बँटवारे पर/अन्ततः वे धागे से तनकर/टूट भी गए/फिर जोड़ने के प्रयत्न के बाद/पड़ी गांठ गड़ती रही/ये रिश्ते/रिसते रहे/घाव से/मवाद की तरह’’।
   ‘क्या लिखूँ’ में विभिन्न विषयों पर बेहतर रचनाएं हैं लेकिन प्रेम के विशेष रंग से दिल तक पहुँचने वाली गुहार लगाई है; वहीं प्रकृति से मनमोहक रिश्ते बनाने का संदेश भी दिया है। कविताएं जब कल्पना और विचारों के तालमेल से प्रकट होती है तो वह शाश्वत और अनुकरणीय हो जाती है, क्योंकि वह मन के भावों की सच्चाई बयां करती है। जिससे मन को छू जाने वाले भावनात्मक पक्ष का उदय होना सुनिश्चित रहता है।
    आन्तरिक मनोभावों को तराशती ‘क्या लिखूँ’ में सभी रचनाएं बेहतर हैं। काव्य कृति में मन को छू जाने की अलौकिक शक्ति भरी है। काव्य रसिकों को यह संग्रह अवश्य पसंद आयेगा। प्रथम काव्य कृति हेतु हार्दिक बधाई।

क्या लिखूँ : काव्य संग्रह। कवि : हरिशंकर वट प्रकाशक : संत बालीनाथ शोध संस्थान, मन्वन्तर, 10, न्यू अभिषेक नगर, नानाखेड़ा, उज्जैन (म.प्र.)। मूल्य : रु.100/- मात्र।


  • 125, शहीद भगतसिंह मार्ग, मनावर, जिला-धार (म.प्र.)


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