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रविवार, 19 मई 2013

बाल अविराम

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष :  2,  अंक : 8,  अप्रैल 2013


।।बाल अविराम।।

सामग्री :  श्यामसुन्दर अग्रवाल  की बाल-कहानी 'प्यार का फल' एवं डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’ की दो बाल कविताएँ ।


श्यामसुन्दर अग्रवाल



{वरिष्ठ साहित्यकार श्री श्यामसुन्दर अग्रवाल जी बच्चों के लिए भी शिक्षाप्रद कहानियाँ लिखी हैं। उनकी बाल कथाओं का संग्रह ‘एक लोटा पानी’ पिछले वर्ष प्रकाशित हुआ था। इसी संग्रह से प्रस्तुत है अपने बाल पाठकों के लिए एक बाल कथा ‘प्यार का फल’।}


प्यार का फल


पेंटिंग : स्तुति शर्मा 
     राजा संपत सिंह के मन में कई दिनों से एक सवाल उमड़-घुमड़ रहा था। आखिर एक दिन उन्होंने अपने मंत्री से पूछ ही लिया, ‘‘दीवान जी, मैं बचपन से देख रहा हूँ कि हमारे राज्य में कुत्ते बहुत पैदा होते हैं। एक कुतिया एक बार में सात-आठ बच्चों को जन्म देती है। भेडें इससे कम बच्चों को जन्म देती हैं। फिर भी भेड़ों के तो झुंड दिखाई देते हैं, परंतु कुत्ते दो-चार ही दिखाई देते हैं। इसका क्या कारण है?’’
     मंत्री बहुत समझदार था। उसने कहा, ‘‘महाराज! इस सवाल का उत्तर मैं आपको कल दूँगा।’’
     उसी दिन शाम को मंत्री राजा को अपने साथ लेकर एक स्टोर में गया। वहाँ उसने राजा के सामने एक कोठे में बीस भेड़ें बंद करवा दी। भेड़ों के बीच में चारे का एक टोकरा रखवा कर कोठा बंद करवा दिया।
     ऐसे ही उसने दूसरे कोठे में बीस कुत्ते बंद करवा दिए। कुत्तों के बीच रोटियों से भरी एक टोकरी रखवा दी।
पेंटिंग : अभय ऐरन 
     अगली सुबह मंत्री राजा को लेकर उन कोठों की ओर गया। उसने पहले कुत्तों वाला कोठा खुलवाया। राजा ने देखा कि सभी कुत्ते आपस में लड़-लड़कर जख्मी हुए पड़े थे। टोकरी की रोटियाँ जमीन पर बिखरी पड़ी थीं। कोई भी कुत्ता एक भी रोटी नहीं खा सका था।
     फिर मंत्री ने भेड़ों वाला कोठा खुलवाया। राजा ने देखा, सभी भेड़ें एक-दूसरी के गले लगी बड़े आराम से सो रहीं थीं। चारे की टोकरी बिल्कुल खाली पड़ी थी।
    तब मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज! आपने देखा कि कुत्ते आपस में लड़-लड़कर जख्मी हो गए। वे एक भी रोटी नहीं खा सके। परंतु भेड़ों ने बहुत प्यार से चारा खाया और एक-दूसरी के गले लगकर सो गईं। यही कारण है कि भेड़ों की संख्या बढ़ती जाती है और वे एक साथ रह सकती हैं। लेकिन कुत्ते एक-दूसरे को सहन नहीं कर पाते। जिस बिरादरी में आपस में इतनी घृणा हो, वह कैसे तरक्की कर सकती है।’’
    राजा को अपने सवाल का उत्तर मिल गया था।

  • 575, गली नं.5, प्रतापनगर, पो.बा. नं. 44, कोटकपूरा-151204, पंजाब




डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’

{कवि श्री डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’ बाल साहित्य में भी लेखनरत हैं। उनकी बाल कविताओं का संग्रह ‘हाल सुहाने बचपन के’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। इसी संग्रह से प्रस्तुत है बाल पाठकों के लिए उनकी दो बाल कविताएं।}

होली

कितनी प्यारी बोली होती,
रोज-रोज गर होली होती।

रंगों की पिचकारी लेकर,
पेंटिंग : सक्षम गंभीर  
सभी साथ में बाहर जाते,
सबको रंग अबीर लगाकर,
लाल हरे पीले हो जाते,
सभी साथियों के संग सबकी,
कितनी बड़ी ठिठोली होती।
कितनी प्यारी बोली होती,
रोज-रोज गर होली होती।।1।।

मालपुए गुझिये रसगुल्ले,
पापा-मम्मी साथ बनाते,
गरी छुआरे काजू किसमिस,
मिल-जुलकर हम सबही खाते,
मिलने जाते हर घर हम भी,
संग में बहना भोली होती।
कितनी प्यारी बोली होती,
रोज-रोज गर होली होती।

बादल आए

बादल आए, बादल आए।

अपने संग वे पानी लाए।

काले-काले भूरे-भूरे
नहीं हैं थोड़े, पूरे-पूरे,
चित्र  : आरुषि ऐरन 
धरती की तू प्यास बुझा जा,
गीत यही रानी ने गाए।
बादल आए, बादल आए।

मौसम कितना हुआ सुहाना,
लगता अच्छा बाहर जाना।
हरे भरे पेड़ों के ऊपर,
चिड़ियों ने गाया है गाना।
गर्मी थोड़ी शान्त हो गयी,
ऊपर जो बादल मडराये।
बादल आए, बादल आए।

  • पूजाखेत, पोस्ट-द्वाराहाट, जिला अल्मोड़ा-263653 (उत्तराखंड)    

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