आपका परिचय

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 1,  अंक : 11,  जुलाई  2012  

।।क्षणिकाएँ।।


सामग्री :  इस अंक में डॉ. अनीता कपूर की क्षणिकाएं।


डॉ. अनीता कपूर


{प्रवासी कवयित्री डॉ. अनीता कपूर जी का काव्य संग्रह ‘साँसों के हस्ताक्षर’ भारत में हाल ही में प्रकाशित हुआ है। उनके इस संग्रह में छन्दमुक्त कविताओं के मध्य कई लघुकाय कविताएँ ऐसी हैं, जिन्हें क्षणिका की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। इन्हीं क्षणिकाओं में से कुछ रचनाएँ हम इस बार प्रस्तुत कर रहे हैं।}



अलाव

तुमसे अलग होकर
घर लौटने तक
मन के अलाव पर
रेखांकन : डॉ सुरेन्द्र वर्मा 
आज फिर एक नयी कविता पकी है
अकेलेपन की आँच से

समझ नहीं पाती
तुमसे तुम्हारे लिए मिलूँ
या एक और
नयी कविता के लिए?

अलसायी सुबह

खुद सुबह सर्दी से ठिठुरती
अलसायी-अलसायी
पिछवाड़े की झाड़ियों में अटकी हुई
कोहरे की चादर में मुँह छिपा
इतनी सिकुड़ गयी है
घबराकर, बाहर आकर
चाय की चुस्की लेने से भी
डर गयी है।

बोंज़ाई

रोज़ चाँद
रात की चौकीदारी में
सितारों की फसल बोता है
पर चाँद को सिर्फ बोंज़ाई पसंद है
तभी तो वो सितारों को
बड़ा ही नहीं होने देता है।

रिश्ता

तुम्हारे साथ
मुझे
एक महज रिश्ता
एक सहज सम्बन्ध
और अपेक्षा भी थी
पर,
एक उफनते पुरुष की नहीं
एक सही साथी की
जो मेरे साथ सुस्ता सके
और सहला सके
मेरे कमजोर
क्षण।

पिघला चाँद


छाया चित्र : उमेश महादोषी 
चाँद रात भर पिघलता रहा
पिघला चाँद टपकता रहा
मैं हथेलियाँ फैलाये बैठी रही
कोई बूँद बन तुम शायद गिरो।

गिलौरी

रात के मखमली गद्दों पर
चाँदनी के घुँघुँरू बाँधे
इठलाती  रक्कासा सी हवाएँ
बनाकर चाँद को तश्तरी
सजाये
आसमानी वर्क लिपटी गिलौरी।

दरवाजा

चाँद का गोटा लगा
किरणों वाली साड़ी पहने
सजी सँवरी रात ने
बंद कर दिया
दरवाज़ा आसमान का।

ताजमहल

ताजमहल
है,
रिश्ता यूँ जोड़ता
चूमता माथा
भटकती कहानी का
इश्क भरे होठों से।


टँगी आँखें

मैं, तू
वीरान खामोशी
सूखे पत्ते
फिर एक
इतिहास
लेकिन
मेरी आँखें
ईसा सी रक्त-रंजित
तुम्हारे लिए
टँगी हैं आज भी
आसमान की सलीब पर।


वक्त का अकबर

नहीं सुन पाती अब
तेरी खामोशियों की दीवारों पर
लिखे शब्द
चुनवा दिया है
मेरे अहसासों को
वक्त के अकबर ने
नज़रों की ईंटों से
और मैं
एक और अनारकली
बन गयी हूँ।


  • फ्रीमोन्ट, सी ए 94539, यू एस ए (Fremont, CA 94539  USA)
ई मेल : anitakapoor.us@gmail.com
            kapooranita13@hotmail.com

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 1,  अंक : 12,  अगस्त 2012  

।।हाइकु।।

सामग्री :  डॉ मिथिलेश दीक्षित, डॉ रमाकान्त श्रीवास्तव, डॉ. गोपाल बाबू शर्मा, डॉ. जेन्नी शबनम, रेखा रोहतगी, डॉ. रमा द्विवेदी, डॉ. पूर्णिमा वर्मन, डॉ. उर्मिला अग्रवाल, सुदर्शन रत्नाकर, प्रियंका गुप्ता, राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’ के हाइकु।


{अविराम के हाइकु विशेषांक (जून 2011 अंक) के लिए अतिथि संपादक श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी द्वारा चयनित हाइकुओं में से स्थानाभाव में छूट गये हाइकुओं के प्रकाशन की तीसरी किश्त में प्रस्तुत हैं ग्यारह और कवियों के हाइकु।}


डॉ मिथिलेश दीक्षित








1.
बेले का फूल
पत्ते की चुटकी से
क्यों गया फूल
2.
माँ का आँचल
रेखांकन : नरेश उदास 
शीतल-सुरभित
मलयानिल!
3.
नहीं समता
सभी गुणों से ऊँची
माँ की ममता
4.
मेरा सपना-
बच्चे न माने उसे
बोझ अपना।


  • 699, सरस्वती नगर, फ़ीरोज़ाबाद-205135, उ.प्र.


डॉ रमाकान्त श्रीवास्तव








1.
आये कोकिल
धुन वंशी की गूँजे
बौर महकें।
2.
सूनी वीथी में
शेफाली बन झरी
हँसी वन की।
3.
रखांकन : महावीर रंवाल्टा 
गीत न होते
मीत न होते, हम
साँसे ही ढोते।
4.
कोई रोया है
चाँदनी रात भर
ओस के आँसू।


  • एल 6/96, सेक्टर एल, अलीगंज, लखनऊ-226004


डॉ. गोपाल बाबू शर्मा








1.
कंगूरे हँसे
पत्थर कब दिखे
नींव में धँसे
2.
रेतीले टीले
दिखते बड़े ऊँचे
कितने दिन?
3.
न हों सवार
काग़ज़ की कश्तियाँ
डूबना तय
4.
जीना ज़रूरी
हो जाओ नीलकण्ठ
ज़हर पियो


  • 46, गोपाल विहार कॉलोनी, देवरी रोड, आगरा-282001(उ.प्र.)



डॉ. जेन्नी शबनम








1.
ज्यों तुम आए
जी उठी मैं फिर से
अब न जाओ.
2.
रूठ हीं गई
फुदकती गौरैया
बगिया सूनी.
3.
छाया चित्र : रोहित कम्बोज 
जायेगी कहाँ
चहकती चिड़िया
उजड़ा बाग़.
4.
पेड़ की छाँव
पथिक का विश्राम
अब हुई कथा.


  • द्वारा राजेश कुमार श्रीवास्तव, द्वितीय तल, 5/7 सर्वप्रिय विहार नई दिल्ली -110016


रेखा रोहतगी









1.
बेटी बाहर
गुज़ारे आधी रात
सोया न जाए
2.
सपना देखूँ
अपनों के प्यार का
फिर कलपूँ
3.
है बरसात
बाहर-भीतर है
पानी ही पानी
4.
शब्द है सीपी
जिसमें मिलता है
भाव का मोती


  • बी-801, आशियाना अपार्टमेण्ट,  मयूर विहार फेज़-1, दिल्ली-110091


डॉ. रमा द्विवेदी








1.
धूप उतरी
आँख मिचौली खेल
मुँडेर चढ़ी।
2.रात बिताई
घड़ियाँ गिन-गिन
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
बीते न दिन।
3.
सिमटा जल
क्षीण हुईं नदियाँ
करें रुदन।
4.
सुलगे दिन
रूठ गई क्यों नींद
पूछे दो नैना।


  • फ़्लैट नं.102, इम्पीरिअल मनोर अपार्टमेंट, बेगमपेट, हैदराबाद -500016(आं. प्र.)


डॉ. पूर्णिमा वर्मन








1.
बिन बारिश
दिन भर झरते
सारे झरने
2.
रेत के खेल
टीलों पर दौड़ती
तेज़ गाड़ियाँ
3.
आँगन तक
छम-छम दोपहरी
नीम पायलें
4.
चिड़िया प्यासी
घर की छत पर
जमी उदासी


  • पो बॉक्स 25450, शारजाह ,यू ए ई,  ईमेल- abhi_vyakti@hotmail-com



डॉ. उर्मिला अग्रवाल








1.
दीपक-बाती
संग जली दीप के
नेह बिना भी।
2.
धूप सेंकती
गठियाए घुटने
वृद्धा सर्दी के।
3.
नम आँखों से
जब निहारे कोई
सिहरे मन।
4.
पहला प्यार
तपती धरा पर
पहली बूँद।


  • 16, शिवपुरी, मेरठ-250001, उ.प्र.



सुदर्शन रत्नाकर








1.
सरसों खिली
खिलखिलाई धरा
आया वसन्त।
2.
वसन्त आया
छाया चित्र : अभिशक्ति 
मन है भरमाया
बदली काया।
3.
वर्षा की बूंदें
भिगो देती हैं तन
लुभाती मन।
4.
फुनगी पर
चिड़िया है चहकी
ज्यों मेरा मन।


  • ई-29, नेहरू ग्राउण्ड, फ़रीदाबाद-121001, हरि.



प्रियंका गुप्ता







1.
डरता मन
आने वाले कल से
जो आज आया।
2.
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल 
मुट्ठी में रेत
ठहरती नहीं है
वक़्त के जैसे।
3.
चंचल मन
उड़ता फिरता है
मानो पतंग।
4.
बेटे की आस
प्रेम को तरसती
बेटी उदास।


  • एम आई जी-292, आ. वि. यो. संख्या-एक,  कल्याणपुर,  कानपुर-208017 (उ.प्र) 


राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’







1.
लू की  मार  से
तन हो गया लाल
मन बेहाल


2.
गर्मी  बढ़ी जो
रेखांकन : उमेश महादोषी 
फैल गया सन्नाटा
कर्फ्यू के जैसा

3. 
लू के थपेड़े -
श्रमिकों की पीठ पे
पड़ते कोड़े
4.
लोग बेहाल
हँसे गुलमोहर
फूले हैं लाल


  • 33, निराला नगर,  निकट हनुमान मन्दिर,  रायबरेली-229001 (उ.प्र.)

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 1, अंक : 12, अगस्त 2012


।।जनक छन्द।।


सामग्री :  इस बार डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ के जंक छंद।


डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’



{डॉ. अराज जी के जनक छन्दों को दूसरा सहस्त्रक गत वर्ष प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में पहले सहस्त्रक से आगे के 1080 जनक छन्द संग्रहीत हैं। प्रस्तुत हैं उनके इस संग्रह से दस जनक छन्द।}


दस जनक छन्द


1.
प्रियतम की सुधि आ गयी
रटती उसका नाम नित
कोयलिया बौरा गई।।
2.
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
लो पतझड़ का अन्त है
कुसुमाकर होकर जगा
जीवन नवल वसंत है।।
3.
कौन पवन-सुत-सा बने
राम लला के शत्रु का
मार मुष्टिका मुख हने।।
4.
राजा ही जब लूटता।
पक्षपात कर बाँटता
देश अन्त में टूटता।।
5.
महँगाई ही पीन है
भारतीय हर वर्ग का
उसके सम्मुख दीन है।।
6.
भर चुनाव चख चख हुई
इस चुनाव के चौक में
बात-बात अदरख हुई।।
7.
सपने हमको दे गया
नेता गिटपिट बोल कर
लूट सभी कुछ ले गया।।
8.
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
यहाँ न जीवित आग है
चूल्हा ठंडा देखकर
लौट चला चुप काग है।।
9.
मन हिंसा में लीन है
जाल फँसाता मीन है
बगुला भूखा दीन है।।
10.
रितु हो गई जवान है
बिना बैन के बोलता
नैनों में आह्वान है।

  • बी-2-बी-34, जनकपुरी, नई दिल्ली-110058

किताबें

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 1, अंक : 12, अगस्त  2012 

{अविराम के ब्लाग के इस अंक में  सुभाष नीरव जी के लघुकथा संग्रह  "सफर में आदमी" की समीक्षा  रख  रहे हैं। लेखकों/प्रकाशकों से अनुरोध है  कृपया समीक्षा भेजने के साथ  पुस्तक की एक प्रति हमारे अवलोकनार्थ (डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला - हरिद्वार, उत्तराखण्ड के पते पर) अवश्य भेजें।}  


निरुपमा कपूर



कई पड़ावों से गुजरता आदमी


    लेखक अपने आसपास की परिस्थितियों से आँख मूँद कर नहीं रह सकता। वह अपने समय के कटु यथार्थ को रेखांकित करने का प्रयास है। सुभाष नीरव के लघुकथा संग्रह ‘सफर में आदमी‘ (नीरज बुक सेंटर, पटपड़गंज, दिल्ली-92) ऐसी ही लघुकथाओं का संग्रह है जिसमें आधुनिक युग की कड़वी सच्चाइयों को उजागर किया गया है चाहे वह बाजारवाद की देन हां या अपने ही स्वार्थ में अंधे होकर माता पिता को भूलने का कटु सच लिए हां, समाज में व्याप्त अंधविश्वास अथवा लड़कियों के लिए समाज की दोहरी सोच हो, इन सभी मनोभावों को सुभाष नीरव ने अपनी लघुकथाओं में खूब जगह दी है। कुल मिलाकर समाज के हर वर्ग की मानसिकता, तनाव, कुंठा प्रर्दशित करने की भरपूर कोशिश की है जिसमें लेखक को भरपूर सफलता मिली है। 
    संग्रह की प्रथम लघुकथा ‘कमरा‘ नैतिक दायित्वों को एक किनारा करते हुए तुरंत लाभ कैसे कमाया जाए, को इंगित करती है। बहू-बेटा पहले वर्द्ध  पिता की अपेक्षा बच्चों की पढ़ाई को महत्व देते प्रतीत होतेे हैं परंतु अगले ही दिन कमरे को किराये पर चढ़ाने का प्रस्ताव उन्हें बच्चों की पढ़ाई से अधिक उपयोगी लगने लगता है। ये लघुकथा आधुनिक युग में मानव की मौकापरस्ती को भी बयाँ करती है। ‘दिहाड़ी' दर्शाती है कि हमारे देश में पुलिस की वरदी कैसे लोगों का शोषण करके अपने पेट भरने में लगी रहती है।
‘अपने क्षेत्र का दर्द' हमारे राजनीतिक आकाओं की पोल खोलता नजर आता है। मानवीय संवेदनाओं का उनके लिए कोई मूल्य नहीं। बस अपनी स्वार्थपूर्ति के हथकंडे  उनके लिए सर्वोपरि है। दहेज के लालच में भूखे भेड़ियों द्वारा जिन्दा जला दी गई बेटी के बूढ़े बाप की संवेदनाएँ मंत्री के लिए कोई मायने नहीं रखतीं, क्योंकि यह उनके संसदीय क्षेत्र का मामला नहीं था। राजनीतिक स्वार्थपूर्ति चित्रण बखूबी इस कथा में हुआ है। 
    ‘‘रंग परिवर्तन" नेताओं का दोगलापन दर्शाती है। देश की जनता को विकास के लिए धार्मिक अंधविश्वास से ऊपर उठाने की बात करने वाले नेताजी स्वयं अंधविश्वास में सिर से पांव तक डूबे हैं। अपने गुरु महाराज के कहने पर ‘‘बचो मनोहर लाल बचोकृकृकृ इस हरे रंग से बचो यह रंग तुम्हारे राशि के लिए अशुभ और अहितकारी है कृकृकृ जानते हो तुम्हारे लिए नीला रंग ही शुभ और हितकारी है।" मंत्री जी अपने लाव लश्कर को रंग बदलने में लगा देते हैं और हजारों रुपयों की फिजूलखर्ची को बढ़ावा देते हैं। ये कथा समाज में बढ़ते अंधविश्वास और इन बाबाओं की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाती है। शिक्षकों की कर्त्तव्यहीनता का अच्छा उदाहरण ‘‘अच्छा तरीका"  में पेश किया गया है। कैसे शिक्षक ट्यूशन से अतिरिक्त धन जुटाने के लिए बच्चों को फेल करने व कम नम्बर देने की तिकड़में प्रयोग करता है - यह कथा हमारी चरमराती शिक्षा व्यवसाय को आईना दिखाती है। जब तक कोई घटना हमारे साथ नहीं घटती, तब तक हम दूसरों के साथ होने वाले अन्याय के प्रति आँखें मूंद कर बैठे रहते हैं। इसके चलते अन्याय के विरुद्ध लड़ने वाला अकेला व्यक्ति कितना अकेला और अहसाय हो जाता है, इसें ‘अकेला चना’ में  बखूबी दर्शाया गया है। ‘कड़वा अपवाद' हमारी उस मानसिकता को दर्शाता है जहाँ मदद के असली हकदार को भी हम ढांगी मानकर आगे चलते बनते हैं। ‘‘मैंने एक झटके से उसके ऊपर ही चिथड़ा हुई धोती को खींचकर एक तरफ कर दिया। मेरे पांव के नीचे से जमीन खिसक गयी। वह तो सचमुच ही ठंड से अकड़ कर मर चुका था।" यह लघुकथा दर्शाती है कि सभी रूदन अविश्वासी नहीं होते हैं बल्कि हमारी आँखें ही ढोंग और सच्चाई में अंतर नहीं कर पाती है। ‘वाकर‘ निम्नमध्यवर्गीय परिवार की उस दशा को दर्शाती है जिसमें घर की आधारभूत जरूरतें अन्य जरूरतों पर भारी पड़ जाती है -‘मैंने एक बार हाथ में पकड़े हुए सौ के नोट को देखा और फिर पास ही खेलती हुई मुन्नी की ओर... मैंने कहा, ‘मगर, वह मुन्नी का वॉकर...’,  ‘अभी रहने दो। पहले घर चलाना जरूरी है‘ आम भारतीय परिवारों की आर्थिक विडंबना को दर्शाती इस लघुकथा की अंतिम पंक्ति, सपनों के टूटने और मुन्नी के पिता की ओर चलने, फिर धम्म से नीचे बैठकर रोने लगने - का पर्याय लगती है। ‘‘फर्क‘‘ युवा वर्ग की गलत मानसिकता को दर्शाती है। ‘‘क़त्ल होता सपना" हमारे भारतीय घरों में बेटियों के सपने कैसे क़त्ल किये जाते हैं, को रेखांकित करने की कोशिश है। कभी बल से, कभी भावनाओं से छल के उनके सपनों को बलि चढ़ा दिया जाता है। 
    ‘‘एक खुशी खोखली सी"  रोज़गार और बेरोजगारी के बीच में जो थोड़ा सा अंतर है, उसे प्रर्दशित करती है। ‘इंसानी रंग' धर्म के नाम पर हम इंसान एक दूसरे से कैसे अलग हो जाते हैं, ये बताते हुए इस बात की पुष्टि करती है कि ‘इंसानियत का धर्म’ हर धर्म से बड़ा होता है। ‘‘मरना जीना"  हमारी भारतीय विवाहिताओं की अशांत असहाय अवस्था को दर्शाने के साथ-साथ उस क्षणिक आवेग को भी दिखाती है जिसमें हम जीवन को दांव पर लगाने के लिए तैयार हो जाते है। ‘‘एक और कस्बा"  बाल सुलभ मन को पतंग के लिए ‘बोटियों’ को कुर्बान करने के साथ साथ, पवित्र स्थानों पर अपवित्र वस्तुओं के मिलने से संप्रादायिक स्थिति कैसे बिगाड़ी जाती है - की ओर संकेत करती है ‘‘दुकानों के शटर फटाफट गिरने लगे थे, लोग बाग इस तरह भाग रहे थे, मानो कस्बे में कोई खूँखार दैत्य घुस आया हो‘‘ लघुकथा की अंतिम पंक्ति हमारे उस डर को दर्शाती है जो धार्मिक उन्माद के कारण दंगों में  परिवर्तित हो जाती है। 
     ‘‘धूप"  उच्च अधिकारी या बड़े पद पर होने पर हम सामान्य जीवन बिताने से कैसे दूर हो जाते हैं, का ज्ञान कराती है। ‘‘कोठे की औलाद" धर्म को अहमियत न देने पर समाज की मानसिकता किस प्रकार बदलती है, का अच्छा उदाहरण है। ‘‘कबाड़"  उम्रदराज पिता को कबाड़ की जगह देना, पिता को स्वयं कबाड़ समझने का दर्द दे देता है- रात को स्टोर में बिछी चारपाई पर लेटते हुए किशन बाबू को अपने बूढ़े शरीर से पहली बार कबाड़ सी दुर्गन्ध आ रही थी। ‘‘आदान प्रदान"  एक व्यंग्यात्मक लघुकथा है जो प्रकाशनों में चल रहे लाभ के रिश्ते को रेखांकित करती है। ‘चेहरे‘ हमारी राजनीति के बदलते चेहरों को प्रतिबिबिंत करती है। ‘फिटनेस‘ रिश्वत के अभाव मंे योग्य कैसे अयोग्य बन जाते हैं- को दर्शाती है। ‘खर्चा पानी‘ एक ऐसी सोच को प्रर्दशित करती है कि शहर पढ़ने के लिए भेजा गया बच्चा पढ़-लिख कर भविष्य माँ बाप को में पूछेगा नहीं, इसीलिए स्वार्थवश वे अपने दूसरे बच्चे को शिक्षा से दूर कर देते हैं। ‘नालायक‘ बेटे के दहेज से बेटी का विवाह करने की भारतीय जुगत को दर्शाता है। ‘चोर' बड़ा चोर कैसे छोटे चोर के सामने अपने आप को ईमानदार साबित करने की कोशिश करता है - को प्रतिबिंबित करती है। 
    ‘सहयात्री‘ पुरुष के मन में उठ रहे द्वन्द-अंतर्द्वंद को दर्शाती है। अंत में जो उचित है, उसका मन उसे वही करने के लिए उकसाता हैं। ‘भला मानुष'  दमित भावनाओं  को व्यक्त करने का कहीं मौका मिल जाये तो मनुष्य उसे छोड़ते नहीं। दुर्घटनाग्रस्त लड़की को सहलाने, चूमने जैसी चेष्टाएँ युवा वर्ग की कुत्सित भावनाओं को व्यक्त करती हैं- ‘‘कभी उसके गाल थपथपाकर, कभी सिर, कन्धे, कमर, हाथ पैर दबाकर और कभी उसका मुँह माथा चूमकर कहने लगता बस अभी पहुँचे"। ‘तिड़के घड़े' वृद्ध  माता-पिता को बात बात पर कोंचने की बहू-बेटों की कोशिशें, शांत तालाब में कंकड़ फेंकने पर उठी तरंगों की भाँति ही वष्द्ध माता पिता के मनों के शान्त पानियों में हलचल मचाती हैं और उन्हें दुःखी-व्यथित कर देती हैं। ‘वाह मिट्टी‘ बच्चे को उसकी स्वाभाविक जीवन शैली से हटाकर अनुशासित रखने की जिद्द उससे उसका बचपन छीन सकती है, को व्यक्त करती है तो इसके विपरीत ‘बांझ‘ लघुकथा में  बच्चे के खराब आचरण पर आँखे बंद करे रहने वाली माँ के रूप में दर्शाने की पुरजोर कोशिश है। बाज़ार किस तरह से क्रेडिट कार्ड द्वारा आदमी को अपने जाल में मकड़ी की तरह फंसा लेता है कि इस कंटीले जाल से निकलना उसके लिए संभव नहीं हो पाता। शुरुआत में ये जाल इतना चमकीला व लुभावना होता है कि आदमी उसकी चमक में खो जाता है और इस दलदल में फंसता ही चला जाता है- इस सच्चाई को ‘मकड़ी’ में बाखूबी लेखक ने रेखांकित किया है। ‘‘इस्तेमाल‘‘ स्थापित लेखकों द्वारा नये लेखकों का शोषण को दर्शाती है। ‘अपने घर जाओ न अंकल'  बाल मन की सरलता और निर्मलता का उदाहरण पेश करती है। ‘धर्म विधर्म'  हमारी उस मानसिकता पर चोट करती है जिसमें हमें जब लाभ की आशा होती है तब हम ऐसे कार्य को भी करने के लिए तत्पर हो जाते हैं जिसकी हम कड़ी आलोचना करते हों। 
     सुभाष नीरव का संग्रह सफर में आदमी ‘आदमी' की सकरात्मक व नकारात्मक सोच के साथ उसकी कुत्सित व दमित भावनाओं  व बालमन की सरलता को व्यक्त करने वाली लघुकथाओं का संग्रह है। ज्यादातर कथायें मानसिक तौर पर उद्वेलित करके अपनी सार्थकता प्रकट करती हुई हिन्दी साहित्य में अपनी प्रंशसनीय उपस्थिति दर्ज़ कराती है। ये लघुकथायें समाज की यथार्थ स्थिति को पेश करने के साथ-साथ मस्तिष्क व हृदय में एक ज्वार उत्पन्न करती है जो लंबे समय तक विचारों को झिझोड़ती रहती है। 
     
सफर में आदमी  :   लघुकथा संग्रह : सुभाष नीरव। प्रकाशक : नीरज बुक सेंटर, पटपड़गंज, दिल्ली-92।


  • 18, कैला देवी इन्क्लेव, देवरी रोड, आगरा (उत्तर प्रदेश) / ईमेल  :  nrpmkapoor325@gmail.com

हमारे युवा


स्तम्भकार :  अभिशक्ति

(इस स्तम्भ में अविराम साहित्यिकी के पाठक  सदस्यों में से सकारात्मक सामाजिक-राजनैतिक सरोकारों के लिए कार्यरत युवाओं (40 वर्ष तक की आयु) के बारे में उनके परिचय एवं गतिविधियों पर आधारित जानकारी दी जायेगी। ऐसे युवाओं को उत्साहित करने के दृष्टिकोंण से पत्रिका के कोई दो आजीवन सदस्य ऐसे किसी एक युवा (जो स्वयं भी पत्रिका का पाठक सदस्य हो) के बारे में अपनी संस्तुति भेज सकते हैं। स्तम्भकार द्वारा प्राप्त सूचना/जानकारी के आधार पर सम्बन्धित युवा एक्टिविस्ट से बातचीत करके आवश्यक विवरण हासिल करके प्रस्तुत किया जायेगा। अविराम साहित्यिकी के जनवरी-मार्च 2013 अंक से मुद्रित अंक में एवं ब्लॉग संकरण-  दोनों में  नियमित रूप से जाएगी।  इस बार प्रस्तुत है दो युवा सोशल एव पॉलिटिकल एक्टिविस्ट श्री आशुतोष कुमार व श्री नवीन कुमार नीरज के बारे में जानकारी। आप दोनों अपनी सामाजिक एवं सकारात्मक राजनैतिक गतिविधियों द्वारा युवा पीढी की भूमिका को सार्थक आयाम प्रदान कर रहे हैं। -अभिशक्ति) 




आशुतोष कुमार




जन्म  :  07 जुलाई 1988, बिहार में। 

माता-पिता :  श्रीमती मीना शर्मा एवं श्री अशोक कुमार। 

शिक्षा  :  बी. ई. ऑनर्स, लेन्केस्टर वि.वि., यू.के. से।

गतिविधियां एवं सामाजिक योगदान  :  आशुतोष जी ने यू. के. से  भारत में वापस आकर सामाजिक एवं सकारात्मक राजनैतिक गतिविधियों के द्वारा समाज एवं देश के लिए कुछ अलग करने का निश्चय किया। अपने निश्चय के तहत इन्टरनेट के माध्यम से अपने जैसे पढ़े-लिखे नौजवानों  (अधिकांशतः तकनीकी शिक्षित ) को संगठित करने का कार्य आरम्भ किया। इसके लिए उन्होंने ‘यूथ डेमोक्रेटिक फ्रन्ट (वाई डी एफ)’ नाम से युवाओं के एक सामाजिक-राजनैतिक संगठन की स्थापना के लिए मित्रों के साथ पहल की। आज वह इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उन्होंने सामाजिक अन्याय के खिलाफ कई छोटे आन्दोलनों की पहल की, विशेषतः अनुज बिडवे, रूचिका हत्याकाण्ड आदि मामलों में। कई रक्तदान शिविरों के वह प्रेरणा स्रोत बने। आशुजी सामाजिक कार्यों के     माध्यम से विकसित भारत का सपना देखते हैं। उनका मानना है कि वास्तविक दुनियां की जमीनी हकीकत को देखो, समझो और उन लोगों के लिए काम करो, जिन्हें आपकी जरूरत है। इसी को केन्द्र में रखकर वह अपनी गतिविधियों को संचालित करते हैं। औरंगाबाद(बिहार) के एक प्रतिभाशाली गरीब बच्चे (सन्नीकुमार) की पढाई आदि को भी उन्होंने अपने मित्र श्री नवीन कुमार नीरज के साथ मिलकर प्रायोजित किया है। 

सम्पर्क  :  शिव कुटीर, ब्लॉक कालोनी, दाउद नगर, औरंगाबाद-824113 (बिहार)
                         मोबाइल :  07411337407 
                         ई मेल  :   president@ydfparty.org  
                                       ashu772611@gmail.com (facebook id)



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नवीन कुमार नीरज 





जन्म  :  18जुलाई 1986, बिहार में। 

माता-पिता  :  श्रीमती इन्दु शर्मा व श्री सुदामा प्रसाद शर्मा। 

शिक्षा  :  इलेक्ट्रीकल्स एवं इलेक्ट्रोनिक्स में बी. ई.।

गतिविधियां एवं सामाजिक योगदान  :  पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम साहब से  प्रभावित नवीन जी सामाजिक-राजनैतिक गतिविधियों में रूचि के चलते युवाओं के संगठन ‘यूथ डेमाक्रेटिक फ्रन्ट’ से जुड़े। अजकल वह इसके प्रवक्ता हैं और इसकी गतिविधियों के संचालन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। विभिन्न स्थानों पर कई रक्तदान शिविरों के आयोजन में उनकी अहम् भूमिका रही है। अन्याय व शोषण के विरुद्ध आन्दोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। अपने मित्र व वाई.डी.एफ. के अध्यक्ष आशुजी के साथ मिलकर वह औरंगाबाद (बिहार) के एक प्रतिभाशाली गरीब बच्चे (सन्नीकुमार) की पढाई आदि का व्यय वहन करते हैं। उनका सोचना है कि मान लीजिए आप साठ वर्ष की आयु को पार कर रहे हैं और अपने जीवन की पूरी फिल्म अपनी आंखों के सामने देख रहे हैं, तब आपके समक्ष अपने जीवन की कुछ ऐसी चीजें होनी चाहिए कि आप अपने जीवन की सार्थकता महसूस कर सकें। वह अपने सपनों के भारत के लिए काम करना चाहते हैं। 

सम्पर्क  :   द्वारा श्री तपेश्वर सिंह, सी-69, इन्दिरापुरी कालोनी, डाक ; बी.वी.कॉलेज, पटना-14 (बिहार)

                 मोबाइल :  09971254643
                 ई मेल  :  media@ydfparty.org     
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गतिविधियाँ

 अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष : 1, अंक : 12, अगस्त  2012



वरिष्ठ लघुकथाकार श्री बलराम अग्रवाल को पी-एच.डी. की उपाधि






वरिष्ठ लघुकथाकार, चिन्तक एवं समालोचक श्री बलराम अग्रवाल जी को चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा पी-एच.डी. की शोध उपाधि अवार्ड की गई है। उन्हें यह उपाधि ‘समकालीन हिन्दी लघुकथा का मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन (वर्ष 1971 से 2000 तक)’ विषय पर उनके महत्वपूर्ण शोधकार्य पर प्रदान की गई है। श्री बलराम अग्रवाल जी लघुकथा पर महत्वपूर्ण सृजन के साथ चिन्तनपूर्ण  एवं समालोचनात्मक कार्यों के लिए देश भर में जाने जाते हैं। लघुकथा के मापदण्डों के निर्धारण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कई चर्चित साहित्यकारों के साहित्य पर भी उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया है, जिनमें प्रेमचंद एवं खलील जिब्रान भी शामिल हैं। उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकें ‘खलील जिब्रान’ तथा प्रेमचंद के समकालीन लघुकथा में योगदान पर संपादित पुस्तक ‘समकालीन लघुकथा एवं प्रेमचंद’ अभी हाल ही में प्रकाशित हुई हैं। ‘समकालीन लघुकथा एवं प्रेमचंद’ में प्रेमचंद की लघु आकारीय चौदह कथा रचनाएं, जिनकी चर्चा लघुकथा में उनके योगदान के सन्दर्भ में बहुधा की जाती है, के साथ उनके योगदान पर उन्तीस वरिष्ठ साहित्यकारों के आलेख संकलित हैं। मलयालम एवं तेलगू लघुकथाओं के संकलनों के साथ प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि महान कथाकारों की महत्वपूर्ण कहानियों (जिनमें कई दुर्लभ कहानियाँ भी शामिल हैं।) के करीब पन्द्रह संकलनों का संपादन भी उन्होंने किया है। उनके द्वारा ‘वर्तमान जनगाथा’ का 1993 से 1996 तक प्रकाशन/संपादन लघुकथा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सोपान था। ‘सहकार संचय’ (जुलाई 1997), ‘द्वीप लहरी’ (अगस्त 2002 व जनवरी 2003), ‘आलेख संवाद’ (जुलाई 2008) आदि पत्र-पत्रिकाओं के लघुकथा विशेषांकों के संपादन माध्यम से भी उन्होंने लघुकथा की विकास-यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान किया है। ‘अविराम साहित्यिकी’ के शीघ्र प्रकाश्य लघुकथा विशेषांक का संपादन भी डॉ. बलराम अग्रवाल जी कर रहे हैं। ‘सरसों के फूल‘, जुबैदा, चन्ना चरनदास, दूसरा भीम, ग्यारह अभिनव बाल एकांकी, समग्र अध्ययन- उत्तराखण्ड, खलील जिब्रान आदि उनकी मौलिक प्रकाशित कृतियां हैं। वर्तमान में इन्टरनेट पर लघुकथा विषयक तीन एवं दो अन्य ब्लाग पत्रिकाओं के माध्यम से लघुकथा के क्षेत्र में वह महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। (समाचार प्रस्तुति :  डॉ. उमेश महदोषी, एफ-488/2, गली सं.11, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला-हरिद्वार, उत्तराखण्ड)






बेलगाम में ‘हिन्दी संघ’ की स्थापना





विगत 17 अगस्त 2012 को बेलगाम जिले के रानी चेनम्मा का क्षेत्र किट्टूर में वहाँ के सभी शिक्षकों ने मिलकर एक कार्यक्रम में ‘हिन्दी संघ’ की स्थापना की। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री कोटि जी ने की। श्री कदम और श्रीमती माने जी प्रमुख अतिथि रहे। शिक्षक एवं साहित्यकार डॉ. सुनील पारित ने इस अवसर पर कर्नाटका में हिन्दी के पूरे परिदृश्य पर रोशनी डालते हुए कहा कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है, इसके बावजूद इसे कर्नाटका में तृतीय भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है, वह भी मात्र छठी कक्षा से दसवीं कक्षा तक। इसके विपरीत अंग्रेजी को द्वितीय भाषा के रूप में पहली कक्षा से ही पढ़ाया जाना आरम्भ कर दिया जाता है। उन्होंने माँग की कि हिन्दी को भी आरम्भ से ही पढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने उपस्थित जनों को केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के बारे में भी जानकारी दी। (डॉ. सुनील पारित, बेलगाम, 08867417505)



हिंदी समाज में वैज्ञानिक चेतना का अभाव


     तेजी से बदलती दुनिया में जहाँ विज्ञान ने नए आयाम स्थापित किए हैं, वहीं हमारे रूढ़िवादी समाज में अंधविश्वास की जड़ें भी गहरी हुई हैं। किसी भी समाज के निर्माण में भाषा का योगदान महत्वपूर्ण होता है। भाषा ही विचारों की अभिव्यक्ति है और वही तय करती है कि हमारे समाज की दिशा और दशा क्या होगी? हिन्दी भाषा और साहित्य में उस वैज्ञानिक चेतना की कमी अखरती है जो समाज को तार्किक और विश्वसनीय बनाती है। उक्त विचार ‘विज्ञान-प्रसार’ के निदेशक डॉ. सुबोध महंती ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल की रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सष्जन पीठ में ‘विज्ञान-प्रसार’ और राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना स्रोत संस्थान (निस्केयर) के सहयोग से पिछले दिनों (26-27 मार्च, 2012) आयोजित ‘वैज्ञानिक मानसिकता और हिंदी लेखन’ विषयक द्वि-दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किये।
     ‘निस्केयर’ के वैज्ञानिक डॉ. गौहर रजा ने कहा कि आज विज्ञान की तार्किकता के स्थान पर अंधविश्वास ने जगह ले ली है। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि हम अपनी नई पीढ़ी के सामने ज्ञान-विज्ञान को किस प्रकार वैज्ञानिक ढंग से उसके आधारभूत तत्व - तार्किकता और विश्वसनीयता के साथ प्रस्तुत करें। तभी हम अपने समाज, राज्य और आने वाली पीढ़ियों को वैज्ञानिक अंतर्दष्ष्टि से युक्त विश्व-समाज से जोड़ सकते हैं।
     उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लेखक प्रेमपाल शर्मा ने ‘वैज्ञानिक मानसिकता और समाज’ विषयक अपने व्याख्यान में कहा कि अंधविश्वासी समाज विज्ञान को संकुचित नजरिए से देखता आया है। तर्कों पर आस्था हमेशा भारी पड़ी है। कर्मकांडों को आस्था का प्रश्न मानकर वैज्ञानिक पक्ष का कभी विश्लेषण नहीं किया गया। समाज में प्रचलित धार्मिक विश्वासों का एक सबल वैज्ञानिक पहलू रहा है, उसकेे प्रचार-प्रसार द्वारा हम रूढ़िवादी समाज को अंधविश्वासों से मुक्त कर सकते हैं। 
     अपने स्वागत-संबोधन में महादेवी वर्मा सष्जन पीठ के निदेशक प्रो.एल.एस.बिष्ट ‘बटरोही’ ने कहा कि पाठ्यक्रम की माध्यम -भाषा के रूप में जो हिंदी विकसित हुई है, वह या तो अनुवाद की कृत्रिम भाषा है या सुदूर अतीत के व्याकरण से निर्मित अस्पष्ट भाषा। ज्ञान-विज्ञान को अपने परिवेश का हिस्सा बनाने के लिए केवल शब्दों के आयात से काम नहीं चलता, उसके लिए नई मानसिकता और नए रचनात्मक तेवरों के द्वारा भाषा का नए सिरे से निर्माण आवश्यक है। इस अवसर पर देवेंद्र मेवाड़ी की पुस्तक ‘मेरी विज्ञान कथाएँ’ तथा सिद्धेश्वर सिंह के कविता-संग्रह ‘कर्मनाशा’ का विमोचन गणमान्य अतिथियों ने किया।
    संगोष्ठी के द्वितीय सत्र को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रो. गोविन्द सिंह ने कहा कि भाषा और साहित्य की सामान्य अभिव्यक्ति पत्रकारिता में दिखाई पड़ती है। किसी भी घटना पर तात्कालिक प्रतिक्रिया करते समय पत्रकार के विवेक और मानसिकता का विशेष महत्व है। यदि वैज्ञानिक सोच के साथ किसी घटनाक्रम का विश्लेषण किया जाए तो घटना सनसनी के बजाय अधिक विश्वसनीय लगेगी।
    विज्ञान अध्येता एवं कथाकार प्रो. कविता पांडेय ने ‘वैज्ञानिक मानसिकता: हिन्दी क्षेत्र की महिलाओं की भूमिका’ विषयक अपने व्याख्यान में कहा कि हिन्दी समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम रही है। ऐसे में उनमें वैज्ञानिक मानसिकता का अभाव स्वाभाविक है। फिर भी शिक्षा के प्रसार के साथ विज्ञान और दूसरे क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई है तो इसका प्रमुख कारण उनकी वैज्ञानिक सोच है।
     विज्ञान प्राध्यापक और साहित्यकार डॉ. नवीन नैथानी ने कहा कि विज्ञान को तार्किक ढंग से नई पीढ़ी तक पहुँचाने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज विज्ञान के साथ ही मानविकी से जुड़े सभी विषयों के पाठ्यक्रम को वैज्ञानिक ढंग से पुनर्प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। पाठ्यक्रम के साथ ही हमारे शिक्षण में भी वैज्ञानिक मानसिकता झलकनी चाहिए। वैज्ञानिक सोच से परिपूर्ण शिक्षक ही रूढ़िवादी समाज में वैज्ञानिक चेतना की अलख जगा सकता है।
     सत्र की अध्यक्षता करते हुए कथाकार, उपन्यासकार एवं ‘समयांतर’ के संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि विज्ञान ने हमें अपने समय के साथ संवाद के अनेक अवसर प्रदान किए हैं और विश्व नागरिक के रूप में हमारी जानकारी का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है लेकिन अकादमिक जगत में इसकी हलचल नहीं सुनाई देती। वर्तमान में हिन्दी में लेखन के नाम पर ललित साहित्य की चर्चा होती है, जबकि हमारा समाज ज्ञान के जबरदस्त विस्फोट के दौर से गुजर रहा है।
     समापन सत्र को संबोधित करते हुए चर्चित कवि विजय गौड़ ने कहा कि सामान्यतः विज्ञान को अंग्रेजी से जोड़कर देखा जाता है जो हमारे संस्कारों की भाषा न होकर एक आयातित भाषा है। हिंदी भाषा से जुड़ी अभिव्यक्ति में वह वैज्ञानिक मानसिकता नहीं दिखाई देती जिसे विज्ञान ने बड़े प्रयत्नों से हमारे समय को दिया है। युवा साहित्यकार प्रभात रंजन ने कहा कि हमारी नई पीढ़ी एक ओर अपनी जड़ों से कटती जा रही है, दूसरी ओर नए विश्व में उजागर हो रहे ज्ञान से उसका रिश्ता कमजोर पड़ता जा रहा है। पत्रकार अनिल यादव ने विज्ञान की तार्किकता को संकुचित नजरिए से देखने की बजाय उसे जीवन के जरूरी अंग के रूप में देखने की जरूरत पर बल दिया। सामाजिक विश्लेषक कष्ष्ण सिंह के अनुसार जीवन का हर पहलू विज्ञान से जुड़ा है लेकिन विज्ञान को हाशिए पर रखकर हम चहुँमुखी विकास की कल्पना नहीं कर सकते।
    सत्र की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध विज्ञान कथाकार देवेंद्र मेवाड़ी ने कहा कि वैज्ञानिक सोच को अपने जीवन में आत्मसात कर ही हम सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। विज्ञान पाठ्यक्रम और शोध के विषय के रूप में ही नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ा है। हम किसी भी क्षेत्र अथवा विषय से क्यों न जुड़े हों, यदि हमारी सोच वैज्ञानिक होगी तभी हमारा समाज और राष्ट्र सही मायनों में तरक्की कर सकता है। सत्र का संचालन कवि-आलोचक डॉ. सिद्धेश्वर सिंह ने किया। 
    इस अवसर पर प्रतिभागियों के सुझावों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ तथा विभिन्न संस्तुतियों के आधार पर ‘रामगढ़ पत्र’ के प्रारूप का आलेखन किया गया। संगोष्ठी में सत्रानुसार आयोजित विमर्श में साहित्यकार शैलेय, दिनेश कर्नाटक, त्रेपन सिंह चौहान, सृजन पीठ के शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत, पत्रकार रोहित जोशी, भास्कर उप्रेती, राहुल सिंह शेखावत, प्राध्यापक प्रो. गंगा बिष्ट, डॉ. सुधीर चंद्र, डॉ. ललित तिवारी, डॉ. गीता तिवारी, डॉ. प्रकाश चौधरी सहित कपिल त्रिपाठी, भरत हर्नवाल, द्रोपदी सिंह, उमा जोशी, रजनी चौधरी, निर्भय हर्नवाल, हिमांशु पांडे आदि ने भाग लिया। अंत में ‘निस्केयर’ के वैज्ञानिक डॉ. सुरजीत सिंह ने सभी प्रतिभागियों और गणमान्य अतिथियों का धन्यवाद व्यक्त किया। {समाचार प्रस्तुति: मोहन सिंह रावत, वर्ड्स आई व्यू,  इम्पायर होटल परिसर, तल्लीताल, नैनीताल-263 002 (उत्तराखण्ड)}



डॉ. अनीता कपूर की दो पुस्तकों का विमोचन


प्रसिद्ध लेखक श्री बलदेव बंशी जी द्वारा विगत 14 जुलाई 2012 को नई दिल्ली में इंडिया वूमेन प्रैस क्लब, नई दिल्ली द्वारा आयोजित समारोह में डॉ. अनीता कपूर की दो पुस्तकों ‘सांसों के हस्ताक्षर’ (कविता संग्र्रह) एवं ‘दर्पण के सवाल’ (हाइकुु संग्रह) का विमोचन किया गया। डॉ. अनीता कपूर के पूर्व में चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ‘सांसों के हस्ताक्षर’ उनका पाँचवां कविता संग्रह है। डॉ. बंशी जी ने इस अवसर पर इसे डॉ. अनीता कपूर के दूसरे चरण का मूल्यवान आत्म सर्जन बताया। उन्होने यह भी कहा कि डॉ. कपूर ने सरस एवं सहृद भाषा के माध्यम से संश्लिष्ट मानव अनुभूति को व्यक्त करते हुए नए शब्द भी रेखांकित किए हैं।
    इस अवसर पर उपस्थित श्रीमती बीरवाला काम्बोज, सुदर्शन रत्नाकर, सुभाष नीरव, सुरेश यादव, डॉ. सतीशराज पुष्करणा, डॉ. जेन्नी शबनम, सीमा मल्होत्रा, सुशीला शिवराण, भूपाल सूद, अनिल जोशी एवं सरोज वर्मा आदि ने लेखिका को हार्दिक शुभकामनाएं दी। 
    कार्यक्रम में डॉ. अनिता कपूर ने अपनी कुछ कविताओं का पाठ भी किया। इसके बाद डॉ. बल्देव बंशी जी के काव्य-पाठ का कार्यक्रम रखा गया। दानों की कविताओं का श्रोताओं ने भरपूर आनन्द लिया। डॉ. सतीशराज पुष्करणा एवं श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु ने हाइकु के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये। (समाचार प्रस्तुति: रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, नई दिल्ली)



कदम्ब की छावं का लोकार्पण


गुडगाँव-गुडगाँव के जीआईए सभागार में नारी अभिव्यक्ति मंच ‘पहचान’ और ‘शब्द शक्ति’ के संयुक्त तत्वावधान में कथाकार कमल कपूर के आठवें कथा-संग्रह ‘कदम्ब की छावं’ का लोकार्पण समारोह की मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार सुश्री चित्रा मुद्गल तथा हरियाणा ग्रन्थ अकादमी की निदेशक डा. मुक्ता के कर कमलों से संपन्न हुआ।
      सर्वप्रथम लेखिका कमल कपूर ने कदम्ब की छावं की कहानियों की रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘‘यदि मैं ये कहानियां ठीक-ठाक ढंग से लिख पाई हूँ तो इसके पीछे मेरी परम गुरु चित्रा दीदी का मार्ग दर्शन और आशीर्वाद है।’’ मुख्य वक्ता सविता स्याल ने कहानियों के समग्र रचना विधान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये कहानियां बरसों तक याद रखी जाएँगी। प्रमुख समीक्षक घमंडी लाल अग्रवाल ने तमाम 19 कहानियों पर खुल कर चर्चा की। आभा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि कमल जी सामाजिक सरोकारों की रचयिता हैं। सुरेखा जैन ने कृति की भाषा, कला तथा सौंदर्य पक्ष को सामने रखा। अभिषेक गौण ने कहा कि कुछ रचनाएँ सामाजिक प्रदूषण को दूर करने में सक्षम हैं। चित्रा मुद्गल ने कहा की कदम्ब की छावं समूचे विश्व को ठंडक प्रधान करेगी, ऐसा मेरा विशवास है। डॉ. मुक्ता ने कहा, ’कमल संभावनाओं की लेखिका हैं। पुस्तक प्रकाशक अरविन्द बक्षी ने इन कहानियों को सदी की उत्तम कहानियाँ बताया। मधुर मंच संचालन शब्द शक्ति के अध्यक्ष नरेंद्र गौर ने किया और सरस्वती वन्दना वीणा अग्रवाल ने की। नगर के गणमान्य व्यक्तियों की बहु उपस्थिति ने समारोह की गरिमा में चार चाँद लगा दिए। (समाचार प्रस्तुति :  कमल कपूर, फरीदाबाद)। 



कमलेश भारतीय का  सम्मान 








हरियाणा ग्रन्थ अकादमी के उपाध्यक्ष व कथाकार कमलेश भारतीय का पंजाब के फगवाड़ा नगर के आर्य मॉडल स्कूल में सपंन्न समारोह में दोआबा साहित्य अकादमी व पंजाब हिंदी साहित्य अकादमी की ओर से सम्मान किया गया। श्री भारतीय ने कहा कि फगवाड़ा का उनके साहित्यिक सफ़र में बहुत महत्त्व रहा है। यहीं पहली बार कवि सम्मेलन में काव्य पाठ किया, यहीं सन् 2008 में डा. चंद्रशेखर सम्मान मिला और यहीं ग्रन्थ अकादमी में जाने पर उनका अभिनंदन किया गया। वे सदैव इस स्नेह को याद रखेंगे। मंच संचालन डा. जवाहर धीर ने किया। इस अवसर पर डा. कैलाश नाथ भारद्वाज, डा. सरला भारद्वाज, डा. किरण वालिया, रमेश सोबती, सुरजीत जज, आरिफ गोबिंद, हरिवंश मेहता, सुनील मोहे, प्रमोद भारती, मनोज, ठाकुरदास चावला व अन्य अनेक साहित्यकार मौजूद थे। रमेश सोबती की नवप्रकाशित पुस्तक का विमोचन भी किया गया। (समाचार प्रस्तुति : कमलेश भारतीय, पंचकुला)                                        



विमोचन एवं काव्य समारोह

     पालमपुर (हि.प्र.) की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य निर्झर मंच के तत्वावधान में एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र में तीन पुस्तकों का विमोचन हुआ। बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि-कथाकार एवं हिंदी साहित्य निर्झर मंच के अध्यक्ष श्री नरेश कुमार ‘उदास’ के नवीनतम लघुकथा संग्रह ‘आकाशदीप’ का विमोचन ख्यातिप्राप्त कवि-कथाकार श्री रामकुमार आत्रेय जी ने किया। इस अवसर पर श्री उदास जी की धर्मपत्नी श्रीमती छाया रानी भी उपस्थित थीं। कवयित्री सुमन शेखर के काव्य संग्रह ‘कल्पतरु बन जाना तुम’ का विमोचन श्रीमती शक्ति शर्मा, नरेश कुमार ‘उदास’, डॉ. जाह्नवी शेखर एवं श्री रामकुमार आत्रेय जी ने संयुक्त रूप से किया। विमोचित होने वाली तीसरी पुस्तक थी- सुमन शेखर  का प्रथम कहानी संग्रह ‘महाव्रत’,  जिसका विमोचन श्री नरेश कुमार ‘उदास’ तथा डॉ. जाह्नवी शेखर ने संयुक्त रूप से किया।
    पुस्तकों के विमाचन के उपरान्त श्री नरेश कुमार ‘उदास’ ने ‘महाव्रत’ कथा-संग्रह पर समीक्षात्मक लेख का वाचन भी किया। छात्रा दीक्षा कुमारी ने ‘कल्पतरु बन जाना तुम’ की कविताओं पर एक सारगर्भित टिप्पणी की।
    कार्यक्रम के दूसरे सत्र में उपस्थित प्रमुख कवियों के काव्य पाठ का कार्यक्रम रखा गया। सर्वश्री रामकुमार आत्रेय (कुरुक्षेत्र), रामकुमार भारतीय (जीन्द), नरेश कुमार ‘उदास’, अमर तनोत्रा, अर्जुन कन्नौजिया एवं सुश्री सुमन शेखर व उषा कालिया की कविताओं को श्रोताओं ने तन्मयता से सुना और उनका भरपूर आनन्द लिया। इस अवसर पर स्थानीय कवियों सहित अनेक साहित्यकार तथा श्रोता उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामकुमार आत्रेय जी ने की तथा संचालन श्री नरेश कुमार ‘उदास’ जी ने किया।
    अन्त में संगोष्ठी श्री आत्रेय जी के अध्यक्षीय वक्तव्य एवं श्री उदास जी के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। (समाचार प्रस्तुति : उषा कालिया, पालमपुर)