आपका परिचय

गुरुवार, 31 जनवरी 2013

बाल अविराम

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2,  अंक : 5,  जनवरी  2013  



।।बाल अविराम।।

सामग्री : प्रभुदयाल श्रीवास्तव, मधुकान्त  की कवितायेँ। 


प्रभुदयाल श्रीवास्तव




चुहिया और संपादक

चुहिया रानी रोज डाक से,
कवितायें भिजवाती।
संपादक हाथी साहब को,
कभी नहीं मिल पातीं।

एक दिन चुहिया सुबह-सुबह ही,
हाथी पर चिल्लाई।
चित्र : आरुषी ऐरन, रुड़की
बाल पत्रिका में मैं अब तक,
कभी नहीं छप पाई।

तब हाथी ने मोबाइल पर,
चुहिया को समझाया।
क्यों न, मिस, अब तक तुमने,
अपना ई मेल बनाया?
अगर मेल पर,
अपनी रचनायें मुझको भिजवातीं।
तो मिस चुहिया निश्चित ही,
तुम कई बार छप जातीं।

  • 12, शिवम सुंदरम नगर, छिंदवाड़ा, म.प्र. 




मधुकान्त 



{वरिष्ठ साहित्यकार मधुकान्त जी का बाल कविता संग्रह ‘मेरी बाल शैक्षिक कविताएँ’ वर्ष 2011 में प्रकाशित हुआ था। उनके दो संग्रह से दो बाल कविताएँ प्रस्तुत हैं।}  

दो बाल कविताएँ


नीम का पेड़

हरा-भरा है सुन्दर नीम
दूर भगाए यह हकीम।

गन्दी खाता हवा हमारी
ऑक्सीजन देता हमको प्यारी
मीठे फल और अंग-अंग से
परोपकार करता है भारी।

सुबह-सवेरे दातुन इसकी
कर देती दाँतों को साफ
गहरी शीतल छाया देता
खून को करता पूरा साफ।

इतना सारा काम बनाता
पेंटिंग : मिली भाटिया, रावतभाटा 
कभी न वेतन-बोनस लेता
फिर भी हँसता बढ़ता रहता
बीमारी से हमें बचाता।

हरा-भरा है सुन्दर नीम,
दूर भगाए यह हकीम।

मोर

कैसा सुन्दर मोर है
जंगल में यह शोर है
सिर पर मुकुट बनाए है
सुन्दर पंख लगाए है।

बढ़ते जब आकाश में बादल
पीहूँ पीहूँ दे आवाज
मटक-मटक फैलाता पंख
घूम-घूम करता नाच।

मित्र पक्षी यह कहलाता
दुश्मन कीटों को खाता है
अच्छी खेती देख-देखकर
झूम-झूम कर इठलाता है।

  • अनूप बंसल ‘मधुकान्त’, साँपला-124501, रोहतक (हरियाणा)

गतिविधियाँ

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष :  02, अंक :  05,  जनवरी  2013


इन्दौर में अविराम के लघुकथांक पर चर्चा


फोटो : बाएं से दायें सदाशिव कौतुक, डॉ पुरुषोत्तम दुबे,
डॉ बलराम अग्रवाल, सुरेश शर्मा एवं प्रताप सिंह सोढ़ी 
     विगत दिनों अविराम साहित्यिकी के लघुकथांक (अक्टूबर-दिसम्बर 2012) पर इन्दौर में एक चर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विशेषांक के अतिथि संपादक डॉ. बलराम अग्रवाल विशेष रूप से उपस्थित रहे। शहर के प्रसिद्ध शासकीय देवी अहिल्या पुस्तकालय के व्यवस्थित कक्ष में सर्वश्री प्रतापसिंह सोढ़ी, सुरेश शर्मा व डॉ. पुरुषोत्तम दुबे के प्रयासों से आयोजित इस कार्यक्रम में अविराम के लघुकथा विशेषांक पर चर्चा एवं डॉ. बलराम अग्रवाल जी से बतियाने के लिए नगर के सभी शुलभ साहित्यकारों/लघुकथाकारों को आमंत्रित किया गया था। अनेक साहित्यकारों की उपस्थिति में सर्वप्रथम श्री सोढ़ी जी ने डॉ. बलराम अग्रवाल व्यक्तित्व के मेधावी पक्ष को रेखांकित करते हुए ‘अविराम साहित्यिकी’ के लघुकथा विशेषांक के संपादन में अतिथि संपादक के रूप में उनकी भूमिका को सिद्धहस्त, उपयोगी और महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने डॉ. बलराम के संपादकीय से ‘घटना स्वयं में कथा कभी नहीं होती, कथा उसे बनाया जाता है’ विचार को रेखांकित करते हुए उस पर तफसील से प्रकाश डाला। 
      इस अवसर पर डॉ. बलराम अग्रवाल का पुष्पहरों से भावभीना स्वागत किया गया। लघुकथाकार प्रतापसिंह सोढ़ी, हरेराम बाजपेयी ‘आश’, सदाशिव कौतुक, डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल, जवाहर चौधरी, सुरेश शर्मा, ज्योति जैन, नियति सप्रे प्रभृति साहित्यकारों ने पुष्पमालाओं से डॉ. बलराम अग्रवाल के प्रति सम्मान-भाव व्यक्त किए।
      विशेषांक पर चर्चा के उपरान्त सभी उपस्थित लघुकथाकारों को उनकी एक-एक लघुकथा के पाठ का अवसर भी दिया गया। इसके उपरान्त डॉ. बलराम अगवाल ने अपने अतिथि उद्बोधन में लघुकथा के समकालीन लेखन पर विस्तार से अपने विचार रखे तथा अविराम के विशेषांक में प्रकाशित सामग्री के ‘क्यों और कैसे’ के उत्तर में अपनी बेबाक टिप्पणियाँ दर्ज करायीं। कार्यक्रम का कुशल व संयमित संचालन सदाशिव कौतुक ने किया। {समाचार सौजन्य: डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, संपा. छह शब्द, 74 जे/ए, स्कीम नं.71, इन्दौर-9 (म.प्र.)}



शताब्दी पुरस्कार रामदरश मिश्र और प्रभाकर श्रोत्रिय को

श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर द्वारा दिया जाने वाला अखिल भारतीय शताब्दी पुरस्कार इस बार वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र (दिल्ली) और डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय (गा.बाद) को संयुक्त रूप से तथा प्रान्तीय पुरस्कार श्रीमती ज्योत्सना मिलन (भोपाल) को उनके साहित्यिक अवदान के लिए दिया जाएगा। साहित्य अकादमी, नई दिल्ली में सम्पन्न निर्णायक मण्डल की बैठक, जिसमें सर्वश्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, अच्युतानन्द मिश्र, श्रीमती राजी सेठ और पाण्डेय शशिभूषण ‘शीतांशु’ शरीक थे, में यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया। उल्लेखनीय है कि एक लाख रु. राशि का यह अ.भा. पुरस्कार गम वर्ष डॉ. आनंदप्रकाश दीक्षित (पुणे) को और प्रान्तीय पुरस्कार श्री रमेश दवे (भोपाल) को दिया गया था। सम्मान समारोह मार्च में इन्दौर में आयोजित होगा। (समाचार सौजन्य: सूर्यकान्त नागर, संयोजक-श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति, इन्दौर)   



भाव जगत के कथाकार इलाचंद्र जोशी  का स्मरण


फोटो : संगोष्ठी को संबोधित करती
भाषा विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय
 की पूर्व अध्यक्ष प्रो. ऊषा सिन्हा
कुमाऊँ विश्वविद्यालय की रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ ने जन्मदिन (13 दिसम्बर, 2013) पर भाव जगत के कथाकार इलाचंद्र जोशी का भावपूर्ण स्मरण किया। सृजन पीठ द्वारा राजकीय उच्च्तर माध्यमिक विद्यालय, मल्ला रामगढ़ (नैनीताल) में इलाचंद्र जोशी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य व्याख्याता लखनऊ विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो. ऊषा सिन्हा ने कहा कि आधुनिक हिंदी साहित्य एवं मनोविज्ञान के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वालों में इलाचंद्र जोशी प्रमुख हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। विभिन्न विधाओं पर गम्भीर रचनाएँ उनकी हिंदी साहित्य को अमूल्य देन हैं। जोशी जी ने यद्यपि सभी विधाओं में लेखनी चलायी लेकिन उन्हें सर्वाधिक ख्याति मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास के क्षेत्र में मिली। पात्रों की मानसिक स्थिति का जो सजीव चित्रण उनकी कहानियों और उपन्यासों में मिलता है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
प्रो. सिन्हा ने कहा कि प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में सामाजिक कुरीतियों के बाह्य जगत को उद्घाटित किया परन्तु इलाचंद्र जोशी ने व्यक्ति के बाह्य जगत से कहीं अधिक महत्व आन्तरिक जगत को दिया है। उन्होंने हिंदी में पहले-पहल मनोविश्लेषण प्रधान उपन्यासों की परम्परा का सूत्रपात किया। चरित्रों के भाव जगत के सूक्ष्म विश्लेषण में उनके उपन्यास बेजोड़ हैं। उनकी विशेषता थी कि अध्ययनशील होते हुए भी दार्शनिकता का प्रभाव उनकी रचनाओं में नहीं दिखाई देता जिस कारण वे आम आदमी के अधिक निकट हैं। 
महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रो. देव सिंह पोखरिया ने कहा कि इलाचंद्र जोशी अपने समय के उन प्रबुद्ध साहित्यकारों में थे जिन्होंने भारतीय एवं विदेशी साहित्य का व्यापक अध्ययन किया था। उन पर रवीन्द्रनाथ टैगोर के व्यक्तित्व का विशेष प्रभाव रहा तथा सदैव लिखते रहने की प्रेरणा उन्हें शरतचन्द्र से मिली। जोशी जी कथाकार एवं उपन्यासकार होने के साथ एक सफल सम्पादक, आलोचक तथा पत्रकार भी थे। उनकी मनोविश्लेषणात्मक शैली अन्य लेखकों से बिल्कुल अलग है। इस शैली के कारण ही उनका साहित्य प्रायः दुरूह एवं जटिल प्रतीत होता है।
        रा0उ0मा0वि0 मल्ला रामगढ़ के प्राध्यापक मुख्तार सिंह ने कहा कि इलाचंद्र जोशी का संपूर्ण जीवन संघर्षमय रहा। बचपन में पिता की मृत्यु, आर्थिक संकट का निरंतर बने रहना, नौकरी करना और छोड़ना उनका स्वभाव बन गया था। इन विषम परिस्थितियों के बावजूद वह टूटे नहीं बल्कि इन स्थितियों को उन्होंने अपनी रचनाओं का हिस्सा बनाया। उनका बहुचर्चित उपन्यास ‘जहाज का पंछी’ एक तरह से उनके अपने जीवन की गाथा है।
       सृजन पीठ के शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत ने बताया कि 1960 में इलाचंद्र जी कुछ महीनों तक महादेवी वर्मा के रामगढ़ स्थित घर ‘मीरा कुटीर’ में रहे जहाँ उन्होंने ‘ऋतुचक्र’ नामक उपन्यास लिखा। पहाड़ी जीवन को लेकर लिखा गया उनका यह एकमात्र उपन्यास है। उल्लेखनीय है कि महादेवी जी के घर ‘मीरा कुटीर’ में ही कुमाऊँ विश्वविद्यालय की महादेवी वर्मा सृजन पीठ स्थापित है।
       राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, मल्ला रामगढ़ के प्रधानाचार्य देवेन्द्र कुमार जोशी ने महादेवी वर्मा सृजन पीठ की पहल की सराहना करते हुए कहा कि इस आयोजन से भूले-बिसरे साहित्यकार इलाचंद्र जोशी के व्यक्तित्व के छुए-अनछुए पहलुओं को जानने का अवसर मिला। निरंतर संघर्षरत रहकर जोशी जी ने साहित्य जगत में जो मुकाम हासिल किया, निसंदेह उससे विद्यार्थियों को प्रेरणा मिली होगी। इस प्रकार के आयोजनों की विद्यार्थियों में साहित्यिक जागरूकता उत्पन्न करने में विशेष भूमिका है। उन्होंने भविष्य में भी पीठ द्वारा विद्यालय में साहित्यिक गतिविधियाँ आयोजित कर विद्यार्थियों को साहित्य के प्रति जागरूक व प्रोत्साहित करने पर बल दिया। छात्रा दिलमाया थापा ने अपनी मौलिक कविता का पाठ किया। इससे पूर्व गणमान्य अतिथियों द्वारा इलाचंद्र जोशी के चित्र पर माल्यार्पण से संगोष्ठी का प्रारम्भ हुआ। 
        इस अवसर पर पीताम्बर दत्त भट्ट, प्रभात कुमार साह, ताहिर हुसैन, मुख्तार सिंह, ईश्वरी दत्त जोशी, शेखर चन्द्र गुणवन्त, बसन्त सिंह बिष्ट, रमेश सिंह रावत, साबिर खाँ, प्रमोद रैखोला, बहादुर सिंह आदि उपस्थित थे। संगोष्ठी का संचालन पीठ के शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत ने किया।  {समाचार  प्रस्तुति : मोहन सिंह रावत बर्ड्स आई व्यू, इम्पायर होटल परिसर, तल्लीताल, नैनीताल-263 002(उत्तराखण्ड)}




अटलानी जी के नाटक संग्रह ‘सपनों की सौग़ात’ का विमोचन 


फोटो : दायें से बायें सुप्रसिद्ध डान्सर सिन्धु मिश्रा,
 डॉ. मुरलीधर
 जैटली,भगवान अटलानी, लक्ष्मण कोमल,
हीरो ठाकुर एवं जया जादवानी


हिन्दी व सिन्धी के वरिष्ठ लेखक भगवान अटलानी के ग्यारह एकांकियों के संग्रह ‘सपनो की सौगात’ का भारतीय कला केन्द्र, नई दिल्ली में विमोचन हुआ। प्रसिद्ध लेखक डा. मुरलीधर जैतली, लक्ष्मण कोमल, हीरो ठकुर, जया जादवानी, भरत नाट्यम की ख्यात नृत्यांगना सिन्धु मिश्रा तथा सिन्धी गुलिस्तान की प्रधान सम्पादिका अंजली तुलसियानी ने संयुक्त रूप से किया। मंच, आकाशवाणी, कठपुतली, इतिहास, विज्ञान तथा लोककथाओं पर केन्द्रित संग्रह की सभी एकांकियां सामाजिक व प्रगतिकामी विषयो पर आधारित हैं। पुस्तक का प्रकाशन नेशनल पब्लिशिंग हाउस ने किया है।
भगवान अटलानी की अब तक विभिन्न विधाओं मे इक्कीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी के सर्वोच्च सम्मान मीरा पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है। वे राजस्थान सिन्धी अकादमी के अध्यक्ष रहे हैं। (समाचार सौजन्य: भगवान अटलानी, डी-183, मालवीय नगर, जयपुर-302017)        

सरल जी जैसा दूसरा कोई नहीं: सूर्यकान्त नागर

(श्रीकृष्ण जयन्ती समारोह में लघुकथा फोल्डर का हुआ विमोचन)


‘‘सरल जी जैसा दूसरा कोई नहीं है। विश्व में सबसे ज्यादा महाकाव्य रचने का गौरव राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल जी को प्राप्त है। देश के अमर शहीदों पर जिन परिस्थितियों में उन्होंने रचना की, वे पििस्थतियां बिल्कुल प्रतिकूल थीं।’’ यह बात वरिष्ठ साहित्यकार श्री सूर्यकान्त नागर ने उज्जैन में श्रीकृष्ण सरल जयंती पर आयोजित समारोह मुख्य अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में कही। शा. शिक्षा महाविद्यालय एवं ‘सरल काव्यांजलि’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री बी.के. शर्मा ने कहा कि सरल जी सदियों तक प्रासंगिक रहेंगे। विशेष अतिथि कवि व उपायुक्त (विकास) श्री प्रतीक सोनवलकर ने कहा कि सरल जी का साहित्य शासन द्वारा हर विद्यालय में पढ़ाया जाना चाहिए। श्री जगदीश गुप्त (ग्वालियर) व श्री अनिल सिंह चन्देल ने भी सरल जी के बारे में विचार व्यक्त किए।
    इस अवसर पर संतोष सुपेकर द्वारा संपादित राधेश्याम पाठक ‘उत्तम’ व राजेन्द्र देवधरे ‘दर्पण’ की लघुकथाओं के फोल्डर ‘शब्द सफर के साथी’ का विमाचन अतिथियों द्वारा किया गया। फोल्डर के दोनों लघुकथाकारों ने अपनी लघुकथाओं का पाठ भी किया। ख्यात समीक्षक डॉ. शेलेन्द्र कुमार शर्मा ने लघुकथा के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘लघुकथा सहलाती नहीं, ना ही वह लोरी बन सुलाती है। वह तो आम आदमी को जगाने का काम करती है। लघुकथा की शक्ति अणुशक्ति के समान है।’’ इस अवसर पर डॉ. उमा बाजपेयी, श्री जगदीश शर्मा एव डॉ. रेखा कोशल का सम्मान भी किया गया।
    प्राचार्य श्री ए.पी.पाण्डेय ने अतिथियों का परिचय दिया। संतोष सुपेकर ने सभी का आभार व्यक्त किया। संचालन श्री जे.पी.आर्य व परमानंद शर्मा ‘अमन’ ने किया। (समाचार सौजन्य: डॉ. संजय नागर, प्रचार सचिव: सरल काव्यांजलि)

सोमवार, 31 दिसंबर 2012

सामग्री एवं सम्पादकीय पृष्ठ : दिसम्बर 2012

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 2,   अंक  : 4,  दिसम्बर 2012 


प्रधान संपादिका :  मध्यमा गुप्ता
संपादक :  डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल : 09412842467)
संपादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन  
ई मेल :  aviramsahityaki@gmail.com 

शुल्क, प्रकाशन आदि संबंधी जानकारी इसी ब्लॉग के "अविराम का प्रकाशन" लेवल/खंड में दी गयी है।

 ।।सामग्री।।

   
रेखांकन : पारस दासोत 



कृपया सम्बंधित सामग्री के पृष्ठ पर जाने के लिए स्तम्भ के साथ कोष्ठक में दिए लिंक पर क्लिक करें।


अविराम विस्तारित : 

काव्य रचनाएँ  {कविता अनवरत:    इस अंक में डा. ऊषा उप्पल, डा. किशन तिवारी, डॉ. ऊषा यादव ‘ऊषा’, नित्यानन्द गायेन, बरुण कुमार चन्द्रा, डॉ. दशरथ मसानिया, देवी नागरानी एवं ब्रह्मानन्द झा की काव्य रचनाएं।

लघुकथाएँ   {कथा प्रवाह} :   इस अंक में पुष्पा जमुआर, राधेश्याम पाठक ‘उत्तम’, सुरेश जांगिड ‘उदय’, कमल कपूर, सूर्यकान्त श्रीवास्तव की लघुकथाएं।

कहानी {कथा कहानी पिछले अंक तक अद्यतन।

क्षणिकाएँ  {क्षणिकाएँ  इस अंक में रामस्वरूप मूँदड़ा व ज्योति कालड़ा ‘उम्मीद’ की क्षणिकाएँ।

हाइकु व सम्बंधित विधाएँ  {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ}  :  इस अंक में डॉ. अनीता कपूर के दस हाइकु एवं पाँच तांका।

जनक व अन्य सम्बंधित छंद  {जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द:  विजय गिरि गोस्वामी ‘काव्यदीप’ के पाँच जनक छंद।

बाल अविराम {बाल अविरामइस अंक में डॉ. यशोदा प्रसाद सेमल्टी एवं प्रभुदयाल श्रीवास्तव की कवितायेँ और उमेश महादोषी द्वारा बच्चों की पत्रिका "बालप्रहरी" का परिचय। साथ में बाल चित्रकारों आरुषी ऐरन, अभय ऐरन एवं  मिली भाटिया के चित्र व  पेंटिंग्स।

हमारे सरोकार  (सरोकार) :   पिछले अंक तक अद्यतन।

व्यंग्य रचनाएँ  {व्यंग्य वाण:   गोविन्द चावला ‘सरल’ व रमेश मनोहरा की हास्य एवं व्यंग्य का पुट लिए कविताएँ।

संभावना  {सम्भावना:  पिछले अंक तक अद्यतन।

स्मरण-संस्मरण  {स्मरण-संस्मरण पिछले अंक तक अद्यतन।

अविराम विमर्श {अविराम विमर्श} :  पिछले अंक तक अद्यतन।

किताबें   {किताबें} :  पिछले अंक तक अद्यतन।

लघु पत्रिकाएँ   {लघु पत्रिकाएँ} : लघु पत्रिका 'रंग अभियान' की परिचयात्मक समीक्षा।

हमारे युवा  {हमारे युवा} :   पिछले अंक तक अद्यतन।

गतिविधियाँ   {गतिविधियाँ} : पिछले दिनों प्राप्त साहित्यिक गतिविधियों की सूचनाएं/समाचार।

अविराम के अंक  {अविराम के अंक} :  पिछले अंक तक अद्यतन।

अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के पाठक सदस्य (हमारे आजीवन पाठक सदस्य) :  अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के 31 दिसम्बर 2012 तक बने आजीवन एवं वार्षिक पाठक सदस्यों की सूचना।

अविराम के रचनाकार  {अविराम के रचनाकार} : पच्चीस और रचनाकारों के परिचय की प्रस्तुति।

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उमेश महादोषी
मेरा पन्ना

  • दोस्तो, वर्ष 2012 कुछ ही क्षणों में विदा हो जायेगा। हम सब यही चाहेंगे, आने वाला समय वह दरिन्दगी और बहसीपन लेकर न आये, जो हमने बीते वर्ष में देखा। पर हमारी इस आशा की पंखुड़ियां कितनी खिल पाती हैं, यह सब इस बात पर निर्भर करेगा कि हम अपने समाज, शासन-प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था को कितना मजबूत कर पाते हैं, सकारात्मक निर्णयों और कार्य-व्यवहार के प्रति उसमें कितनी इच्छा शक्ति पैदा कर पाते हैं।
  • आज हम जिस मोड़ पर खड़े हैं, उसे सरकार, राजनैतिक एवं न्यायिक तन्त्र के साथ समाज को भी समझना पड़ेगा। दामिनी के सन्दर्भ में हमने देखा कि कई जगह कचहरियों और दूसरे सार्वजनिक कार्यों से संबन्धित कार्यालयों पर आये दूर-दराज के लोगों ने भी इस घटना का गम्भीर नोटिस लिया और उन्हीं स्थलों पर अपने सामूहिक आक्रोश एवं शोक को अभिव्यक्त किया। यह एक बड़ा संकेत है। किसी को इसे हल्के से नहीं लेना चाहिए। लोगों के दिलों में आग कौन सा रूप धारण कर रही है, इसके लिए एक संकेत काफी है। लेकिन यह भी सत्य है कि सरकारें और हमारा राजनैतिक तन्त्र अभी भी सोया पड़ा है। देखते हैं कि यह जागना पसन्द करता है या सोते-सोते अपने अन्जाम तक पहुंचने का विकल्प चुनता है।
  • एक बात और। हमने पिछले दिनों में अनेक तरह की चर्चाएं देखी-सुनी हैं। क्या इन चर्चाओं से कोई दीर्घकालीन समाधान निकल पायेगा? क्या यह सच नहीं है कि हमारे समाज की कई ज्वलन्त समस्याओं की जड़ें एक-दूसरे से जुड़ी हैं? तब क्या हमें तात्कालिक उपायों के साथ-साथ दीर्घकालिक पैकेज समाधान की खोज की ओर नहीं बढ़ना चाहिए?
  • ईश्वर करे नया वर्ष हमारे लिए कुछ ऐसी ही समझ और इच्छा शक्ति की भेंट लेकर आये।

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2, अंक : 4,  दिसम्बर 2012


।।कविता अनवरत।।

सामग्री : इस अंक में डा. ऊषा उप्पल, डा. किशन तिवारी, डॉ. ऊषा यादव ‘ऊषा’, नित्यानन्द गायेन, बरुण कुमार चन्द्रा,  डॉ. दशरथ मसानिया, देवी नागरानी एवं  ब्रह्मानन्द झा की काव्य रचनाएं।




डा. ऊषा उप्पल




आक्रान्ता

तुम सोचते हो- तुमने मुझे कुचल दिया
मेरे नारीत्व, मेरी अस्मिता को मिटा डाला
तुम कितने ग़लत हो!

तुम्हारे अपराध ने मुझे भगवान के समकक्ष बिठा दिया
मां बनाकर
तुम क्या बने? एक आततायी, पशु, कापुरुष
और संसार की नज़र में अपराधी
तुम कुछ नहीं कर सके
मां का दर्जा तुम्हारी नियति नहीं है
पर फिर भी तुम विजयघोष करते हो
और सोचते हो तुम अजेय हो
तुम कितने ग़लत हो!
रेखा चित्र : मनीषा सक्सेना 

मैं कभी सिर झुकाकर नहीं चलूंगी
क्योंकि अपराध मैंने नहीं तुमने किया है
तुम तो केवल जिस्म हो
आत्मबल तुममें नहीं, मुझमें है
अगर तुम सोचते हो तुम मेरे नियन्ता हो
जिस्म से रूह को कुचल सकते हो
तुम कितने ग़लत हो!

मैंने पशु से लड़ना सीख लिया है
अब न मुझे तोड़ सकोगे, न झुका सकोगे
क्योंकि मैं बहुत ऊंची उठ गई हूं
और तुम बहुत नीचे रह गये हो
फिर भी सोचते हो मुझे झुकाकर छू लोगे
तुम कितने ग़लत हो!

मैं सदा आगे बढ़ती रहूंगी
और तुम देखते रहोगे पराजित से
क्योंकि तुम आक्रान्ता हो
तुममें आत्मबल नहीं
फिर भी सोचते हो तुम शक्तिवान हो
तुममें पौरुष है, हिम्मत है
तुम कितने ग़लत हो!

ज़रा पलटकर देखो बीते हुए वक़्त को
तुम पौरुषविहीन हो, खाखले हो, अस्तित्वविहीन हो
तुम्हारा अभिमान मिट चुका है
तुम्हारा अहं लुट चुका है
पर मुझे तुम नहीं मिटा सके
मैं आज भी सर ऊंचा किये खड़ी हूं
मैं शक्ति हूं, मां हूं, सृजनकर्ता हूं
जो तुम जानते हो पर मानते नहीं
तुम कितने ग़लत हो!

  • 159, सिविल लाइन्स, बरेली-134001 (उ.प्र.)



डा. किशन तिवारी





{डा. किशन तिवारी ग़ज़ल के जाने माने हस्ताक्षर हैं। उनका ग़ज़ल संग्रह ‘सोचिये तो सही’ हाल ही में हमें पढ़ने को मिला। उनके इसी संग्रह से प्रस्तुत हैं दो ग़ज़लें।}

दो ग़ज़लें

एक
हर तरफ घिर आयें जब काली घटाएँ, क्या करें
फँस गई  अपनी भँवर में आस्थाएँ,  क्या करें

था बहुत चालाक मन पर, जाल की मछली बना
फड़फड़ाता  ढूंढ़ता  संभावनाएँ,   क्या  करें
रेखांकन : के. रविन्द्र 

देखकर चट्टान, मुड़ जाता है, टकराता नहीं
वो बदलता रोज ही, अपनी दिशाएँ, क्या करें

सत्य के संदर्भ, उल्लेखित हुए जब भी यहाँ
प्रश्न प्रति पल प्रश्न-उत्तर यातनाएँ, क्या करें

शब्द में नायक बना, हर जुल्म से टकरा गया
किन्तु व्यवहारों में उल्टी धारणाएँ,  क्या करें

आस्था अस्तित्व का  हर पल  नया  संघर्ष है
व्यर्थ हो जाएँ  जहाँ पर  प्रार्थनाएँ,  क्या करें 

दो
आप हैं पर्वत,  हमें  तिनका  भले  ही  मानिये
किन्तु हर अणु में छिपे, विस्फोट को पहचानिये

तुम  महासागर कई नदियाँ,  तुम्हारी  गोद में
बूँद हमको मानकर, मत  बैर  हमसे  ठानिये

झूठ के  पोथे पे  चढ़, साहित्य के पण्डे बने
ढाई आखर पर न अब, तलवार अपनी तानिये

धुन्ध कोहरे को हटा, सरगम छिड़ेगी धूप की
हैं मुखौटे, आवरण, अन्तिम चरण में जानिये

काँपती हैं क्यूँ भला पुरवाई से पछुआ नकल
झूठ सच के फासले को अब सही पहचानिये

  • 34, सेक्टर-9ए, साकेत नगर, भोपाल-462024 (म.प्र.)



डॉ. ऊषा यादव ‘ऊषा’




ग़ज़ल

लाख वहमों-गुमाँ हम भी पाले रहे
इस बहाने से खुद को सम्हाले रहे

साथ जब तक ये काबे-सिवाले रहे
‘रूह’ में देखो उजले उजाले रहे

जब तलक जीस्त तेरे हवाले रहे
हम सभी ज़हर के पीते प्याले रहे

हाथों से खुद जो गेहूं उगाते रहे
दूर उनसे ही देखो निवाले रहे
रेखांकन : बी. मोहन नेगी 

आस्माँ तक न पहुँचा हमारा नसीब
एक पत्थर तबीयत से उछाले रहे

अच्छी-खासी गुज़र जब गई जिन्दगी
तब लगा बेसबब बैठे ठाले रहे

ग़म भरा इक फ़साना सुनाते रहे
इस तरह अपने क़ातिल को टाले रहे

मेरी ग़ज़लों में है देखो इतना जमाल
इसलिए रश्क़ भी करने वाले रहे

  • 23/47/57-बी, किदवई नगर, अल्लापुर, इलाहाबाद (उ.प्र.)



नित्यानन्द गायेन




गाँव से अभी-अभी लौटा हूँ शहर में

गाँव से
अभी-अभी
लौटा हूँ शहर में

याद आ रही हैं
गाँव की शामें
सियार की हुक्का हू
टर्र-टर्र करते मेंढक
सुलटी‘1 के नवजात पिल्ले
छाया चित्र : उमेश महादोषी 

कुहासा में भीगी हुई सुबह
घाट की युवतियां
सब्जी का मोठ उठाया किसान
धान और पुआल
आँगन में मुर्गिओं की हलचल

डाब का पानी
खजूर का गुड़
अमरुद का पेड़
मासी की हाथ की गरम रोटियाँ
माछ-भात

पान चबाते दांत
और ...........
नन्ही पिटकुली’2 की
चुलबुली बातें

’1 हमारी कुतिया
’2 छोटे मामा की 5 वर्ष की बिटिया

  • 315, डोयेन्स कॉलोनी, शेरिलिंगम पल्ली, हैदराबाद-500019, आं.प्र.



बरुण कुमार चन्द्रा




....नये युग में जायें

लेकर मन में दृढ़ विश्वास
करें हम कुछ नये प्रयास
जीवन में नयी जोत जगायें।
आओ! हम नये युग में जायें।
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल 

ऊँच-नीच का भेद मिटाकर
छोटे-बड़ों को गले लगाकर।
देश प्रेम की नई राह दिखायें
आओ! हम नये युग में जायें।।

राह कठिन है, कहना सरल है
पर दृढ़ निश्चय ही इसका हल है
शनैः-शनैः ऐसा विश्वास जगायें
आओ! हम नये युग में जायें।।

  • विद्या विहार कॉलोनी, भैरव मन्दिर रोड, कनखल, हरिद्वार (उ.खण्ड)



डॉ. दशरथ मसानिया

डॉ. मसानिया बेटियों के प्रति भेदभाव के विरुद्ध और उनके महत्व को बखान करने वाले साहित्य के सृजन में समर्पण भाव से जुटे हैं। हाल ही में बेटी पर केन्द्रित उनका दूसरा काव्य संग्रह (जिसमें इसी विषय पर उनकी कई लघुकथाएँ भी संग्रहीत हैं) प्रकाशित हुआ है। उनके इसी संग्रह से लोक शैली में रचित दो रचनाएँ प्रस्तुत हैं।

बेटी है सरग की तार

हेली म्हारी बेटी आई है द्वार, मनावा खुशी सब नगरी।
मनावा खुशी सब नगरी, मनावा खुशी सब नगरी।।टेक।।

हेली म्हारी बेटी है शरीर को अंग, मत मारो ऊके पेट में पली।
पेट में पली हेली फूल की कली। हेली.....

हेली म्हारी बेटी है सरग की तार,
रेखा चित्र : नरेश उदास 
चढ़ि जावे बेटी चाँद की घाटी। हेली.....

हेली म्हारी मत करजो, बेटी को अपमान
बेटी म्हारी प्रेम की डली।
प्रेम की डली, हेली फूल की कली। हेली....

बोली-बोली माता द्वार, बेटी से म्हारी काया सुधरी
काया सुधरी हेली, काया सुधरी। हेली.....

हेली म्हारी सुनीता, कल्पना सी नार,
थामस आरती को विचार
उड़ि जावे हेली आज की घड़ी। हेली......

मारे मति मैया

मारे मति मैया, वचन भरवायले।
तेरे घर की लछमी, मैं बनके दिखाउँगी।।टेक।।

झाडू भी लगाउँगी, बर्तन मंजवाउँगी।
रेखा चित्र : नरेश उदास 
बिस्तर भी उठवाउँगी, मैं घर भी सजाउँगी।।1।।

बासी रोटी खायके, स्कूल चली जाउँगी।
रोटी भी बनवाउँगी, मैं भाजी भी बनवाउँगी।।2।।

तू जो कहेगी तो चांद चढ़ी जाउँगी।
दुर्गा का अवतार हूँ, मैं दुश्मन को हराउँगी।।3।।

सरस्वती बनके, मैं ज्ञान भी सिखलाउँगी।
अहिल्यादेवी बन के, राज भी चलाउँगी।।4।।

धरम की धुरी बन, जग को बचाउँगी।
भ्रष्टों को मारके, नीति बतलाउँगी।।5।।

  • 123, गवलीपुरा, आगर, जिला शाजापुर-465441 (म.प्र.)



देवी नागरानी




ग़ज़ल

अनबुझी प्यास रूह की है ग़ज़ल
खुश्क होठों की तिश्नगी है ग़ज़ल

उन दहकते से मंज़रो की क़सम
इक दहकती सी जो कही है ग़ज़ल

नर्म अहसास मुझको देती है
धूप में चांदनी लगी है ग़ज़ल
रेखांकन : सिद्धेश्वर 

इक इबादत से कम नहीं हर्गिज़
बंदगी सी मुझे लगी है ग़ज़ल

बोलता है हर एक लफ़्ज़ उसका
गुफ़्तगू यूँ भी कर रही है ग़ज़ल

मेहराबाँ इस क़दर हुई मुझपर
मेरी पहचान बन गई है ग़ज़ल

उसमें हिंदोस्ताँ की खु़शबू है
अपनी धरती से जब जुड़ी है ग़ज़ल

उसका श्रंगार क्या करूँ ‘देवी’
सादगी में भी सज रही है ग़ज़ल

  • 9-डी कार्नर, व्यू सोसायटी, 15/33 रोड बान्द्रा, मुम्बई-400050




ब्रह्मानन्द झा





शहीद



कौन कहता है कि मैं शहीद हुआ हूँ
इस वतन के वास्ते हमीद हुआ हूँ
रेखांकन : डॉ सुरेन्द्र वर्मा 

गाँधी, सुभाष, शेखर, ऊधम के देश में
चोला बसन्ती ओढ़कर मैं नींद हुआ हूँ

ममता स्नेह बिछुए राखी से पूछ लो
माँ के गले मिलकर मैं ईद हुआ हूँ

भर के लाल सिंदूर सीमा की माँग में
कारगिल द्रास के लिए मुफीद हुआ हूँ

  • 1209-बी, शम्भूनग, शिकोहाबाद, जिला: फिरोजाबाद-205135 (उ.प्र.)