आपका परिचय

रविवार, 30 मार्च 2014

अविराम के अंक

अविराम साहित्यिकी 

(समग्र साहित्य की समकालीन त्रैमासिक पत्रिका)

खंड (वर्ष) : 2 / अंक : 4  / जनवरी-मार्च  2014  (मुद्रित)

प्रधान सम्पादिका :  मध्यमा गुप्ता
अंक सम्पादक :  डॉ. उमेश महादोषी 
सम्पादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन
मुद्रण सहयोगी :  पवन कुमार

अविराम का यह मुद्रित अंक रचनाकारों व सदस्यों को 14 फ़रवरी 2014  को तथा अन्य सभी सम्बंधित मित्रों-पाठकों को 18 फ़रवरी 2014 तक भेजा जा चुका है। 10 मार्च  2014  तक अंक प्राप्त न होने पर सदस्य एवं अंक के रचनाकार अविलम्ब पुन: प्रति भेजने का आग्रह करें। अन्य  मित्रों को आग्रह करने पर उनके ई मेल पर पीडीऍफ़ प्रति भेजी जा सकती है। पत्रिका पूरी तरह अव्यवसायिक है, किसी भी प्रकाशित रचना एवं अन्य  सामग्री पर पारिश्रमिक नहीं  दिया जाता है। इस मुद्रित अंक में शामिल रचना सामग्री और रचनाकारों का विवरण निम्न प्रकार है- 

सामग्री

।।लघुकथा के स्तम्भ।।
अंजना अनिल (03) 
मालती बसंत (06) 
पुष्पलता कश्यप (09)

।।अनवरत-1।। (काव्य रचनाएँ) 
लाखन सिंह भदौरिया ‘सौमित्र’ (11) 
डॉ.योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ व हृदयेश्वर (13) 
राजकुमार कुम्भज व श्रीरंग (14) 
अनवर सुहैलव डॉ.विनोद निगम (15) 
सुरंजन (16) 
नारायण सिंह निर्दोष व अजय चन्द्रवंशी (17)
डॉ.कपिलेश भोज व मोहन भारतीय (18)
शशीभूषण ‘बड़ौनी’ व अमरेन्द्र सुमन (19)

।।मेरी लघुकथा यात्रा।।
डॉ. कमल चोपड़ा (20)
डॉ. तारिक असलम ‘तस्नीम’ (24)

।।आहट।। (क्षणिकाएँ) 
सुरेश यादव, डॉ.पंकज परिमल व  नित्यानन्द गायेन (28)

।।विमर्श।।
साहित्य से समाज में बदलाव आता है: डॉ. सतीश दुबे से राधेश्याम शर्मा की बातचीत (29)
वात्सल्य के आयाम: भगवान अटलानी (35)
बुढ़ापे की पीड़ा: रचना  रस्तोगी (38)

।।अनवरत-2।। (काव्य रचनाएँ) 
शाद बागलकोटी व राजेन्द्र बहादुर सिंह ‘राजन’ (40)
राधेश्याम सेमवाल, गोविन्द चावला ‘सरल’व मनीषा सक्सेना (41)
ख़याल खन्ना, रमेश चन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ व शिवशंकर यजुर्वेदी (42)

।।कथा कहानी।।
कपाल क्रिया/माधव नागदा (43) 

।।अनवरत-3।। (काव्य रचनाएँ) 
डॉ.वेद व्यथित व गोवर्धन यादव (48)
डॉ. ब्रह्मजीत गौतम, त्रिलोक सिंह ठकुरेला व कृष्णमोहन अम्भोज (49) 
नन्द किशोर बावनिया व विनय सागर (50) 

।।व्यंग्य वाण।।
01. आर.टी.ओ. यानी रिश्वत, टेक और ओ.के. व 2. नेता/ललित नारायण उपाध्याय (51) 

।।कथा प्रवाह।। (लघुकथाएँ) 
मधुदीप (52) 
पारस दासोत व आशा शैली (53) 
अमर साहनी व उषा अग्रवाल ‘पारस’(54) 
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा (55) 
प्रद्युम्न भल्ला व डॉ. नन्द लाल भारती (56) 
कृष्ण कुमार यादव व सुधीर मौर्य ’सुधीर’ (57) 
राधेश्याम पाठक ‘उत्तम’ व महावीर रवांल्टा (58)

।।प्रसंगवश।।
हिमाचल का र्वतमान भाषा परिवार/तोबदन (57)

।।किताबें।। (संक्षिप्त समीक्षाएँ)
बहुल पाठक वर्ग द्वारा सराही गई कालजयी कहानियंा: डॉ. सतीश दुबे द्वारा डॉ. तारिक असलम तस्नीम के कहानी संग्रह ‘पत्थर हुए लोग’ (60)/ भगीरथ ने दोहरी जिम्मेदारी को निभायाा है: हितेश व्यास द्वारा भगीरथ परिहार के लघुकथा संग्रह ‘पेट सबके हैं’ (61)/मानवीय संवेदनाओं की कहानियाँ: डॉ. ज्योत्सना स्वर्णकार द्वारा माधव नागदा के कहानी संग्रह ‘परिणति और अन्य कहानियां’ (63) रास्तों पर चलती दुआएँ: डॉ. पुरुषोत्तम दुबे द्वारा पारस दासोत के लघुकथा संग्रह ‘मेरी किन्नर केन्द्रित लघुकथाएं’(64)/वर्तमान समय के बहुरुपियेपन का सफल चित्रण: संतोष सुपेकर द्वारा सुरेश शर्मा के लघुकथा संग्रह ‘अंधे बहरे लोग’ (65)/भविष्य की संभावनाएँ तलाशती लघुकथाएँ: राजेन्द्र नागर ‘निरंतर’ द्वारा संतोष सुपेकर के लघुकथा संग्रह ‘भ्रम के बाजार में’ (66) की समीक्षाएं।

।।स्तम्भ।। 
माइक पर/उमेश महादोषी का संपादकीय (आवरण 2), हमारे आजीवन सदस्य (आवरण 3), चिट्ठियाँ (68), गतिविधियाँ (70), प्राप्ति स्वीकार (72, 08, 23 व 67)


इस अंक की साफ्ट (पीडीऍफ़) प्रति ई मेल (umeshmahadoshi@gmail.com)अथवा  (aviramsahityaki@gmail.com)  से मंगायी जा सकती है।

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4 टिप्‍पणियां:

  1. सेराज खान बातिस, 3-बी, बंबाली शाह वारसी लेन, खिदिरपुर, कलकत्ता-700023 (प.बं.)
    ...आप जिस निष्ठा से इस साहित्यिकी को निकाल रहे हैं, वह किसी भी हिन्दी भाषी के लिए गर्व की बात है। इस छोटी सी पत्रिका में ‘साहित्य’ की हर संभव विधा को समेटने की चेष्टा, आपके लगन और रुचि का ही परिचायक है। लघुकथाएं तो कुछ इतनी मारक हैं कि पढ़कर मन झनझना उठता है। यही रचनाकार की ताकत है। लेकिन मैं मानता हूँ कि ऐसी पत्रिका का संपादक भी कम महत्वपूर्ण नहीं है, जो ऐसा साहस जोखिम मोल ले बैठा है। उषा अग्रवाल पारस की लघुकथा ‘जवाब’ वाकई लाजबाब है। इस छोटी सी कहानी में कितना बड़ा संदेश है। लज्जा से भरे समाज की बिगड़ती स्थिति है। सब कुछ कितना मूल्यहीन होता जा रहा है। कविताएं, ग़ज़लें, समीक्षाएं सभी की स्तरीयता किसी ख्याति नाम बड़ी घराने की पत्रिका से कम नहीं है। ऐसी ही लघुकथा आशा शैली की ‘चेहरे’ है। एक दम नई सोच की रचना है। नित्यानन्द गायेन की छोटी कविता भी बड़ी बात लिए हुए है। डॉ. तारिक असलम तस्नीम, डॉ. कमल चोपड़ा की कथा यात्रा पढ़ने लायक है।...

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  2. कुछ और पत्र-

    प्रो.भगवानदास जैन, बी-105, मंगलतीर्थ पार्क, जशोदानगर रोड, मणिनगर(पूर्व), अहमदाबाद (गुज)
    ...अंक में संकलित सामग्री से ज्यों-ज्यों रू-ब-रू होता गया, मन को बड़ी तृप्ति व तुष्टि हुई। लघुकथाओं और विविध काव्य-विधाओं की रचनाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहे, क्षणिका और लघु कविताओं) से अंक समृद्ध है। ज़नाब शाद बागलकोटी और श्री ख़याल खन्ना की ग़ज़लें असरअंगेज हैं। वरिष्ठ गीतकार श्री लाखन सिंह भदोरिया ‘सौमित्र’ के सन् ‘50-60 के पुराने गीतों में भी ग़ज़ब की ताज़गी है।... पृ.14-15 के चारों कवियों सर्वश्री राजकुमार ‘कुंभज’, श्रीरंग. अनवर सुहैल व डॉ. विनोद निगम की कविताएँ पुरअसर हैं। व्यष्टि से लेकर समष्टि तक के व्यापक बोध की अनुभूति कराने में ये कचिताएँ सक्षम हैं। अजय चंद्रवंशी की ग़ज़ल किसी कोंण से ग़ज़ल नहीं लगती, महज़ तुकबन्दी है। बन्धुवर विनय सागर की ग़ज़ल क़ाबिलेतारीफ है। हर शेर काबिलेदाद है। ‘मेरी लघुकथा यात्रा’ के अंतर्गत प्रकाशित सर्वश्री कमल चोपड़ा व डॉ. तारिक असलम ‘तस्नीम’ के आत्मकथ्य दिलचस्प भी हैं, रोचक भी और उपादेय भी। ‘विमर्श’ स्तंभ के तहत प्रकाशित साक्षात्कार रोचक और ज्ञानवर्द्धक है। श्री राधेश्याम शर्मा के प्रश्न सहज, जिज्ञासापूर्ण हैं और डॉ.सतीश दुबे के उत्तर स्वाभाविक एवं सर्वथा अकृत्रिम हैं। अंक में संकलित अन्य समस्त सामग्री सर्वथा सार्थक, सुन्दर व सुनियोजित है।...

    मोहन भारतीय, प्लाट-17, सड़क-5ए, मैत्री नगर, रिसाली क्षेत्र, भिलाई-490006, छ.गढ़
    ...पत्रिका निश्चत ही स्तरीय और पठनीय, सुरुचिपूर्ण सामग्री के चयन में सफल है। इसका श्रेय सम्पादक मण्डल की सम्पादकीय अभिचेतना, लगन और परिश्रम को जाता है।... यह आपकी प्रतिभा का कौशल ही है कि आप नयों को स्नेह और बड़ों को आदर से प्रकाशित कर रहे हैं। मेरा निवेदन है कि नवगीतों को एक अलग स्तम्भ के अन्तर्गत प्रकाशित करें तो नवगीत को भी बल नवगीत रचनाकारों को ऊर्जा मिलेगी।...

    रामनिहाल गुंजन, नया शीतल टोला, आरा-802301 (बिहार)
    ...आप परिश्रमपूर्वक अंक का संयोजन-संपादन कर रहे हैं, यह जानकर अच्छा लगा। यह देखकर प्रसन्नता हुई कि आप नये लेखकों की रचनाएं- कविताएं व कहानियां प्रकाशित कर उन्हें प्रोत्साहित करने का काम कर रहे हैं। रचनाएँ भी अच्छी हैं, इसलिए पत्रिका की अपनी एक पहचान बन ही गयी होगी। आप कभी-कभी किसी विधा पर केन्द्रित विशेषांक भी प्रकाशित करें, तो पत्रिका का महत्व भी बढ़ेगा।...

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  3. कुछ और पत्र-

    माधुरी राऊलकर, प्लॉट नं.-76, रामनगर, नागपुर (महाराष्ट्र)
    ....जनवरी-मार्च 2014 का नवीनतम अंक मिला। पाकर तथा पढ़कर बेहद खुशी हुई। लघुकथाएं, कविताएं, ग़ज़लें, साक्षात्कार ये सब एक अंक में पाकर मन प्रफुल्लित हुआ। लघुकथाएं, ग़ज़लें, कविताएं काफी अच्छी हैं। सारी रचनाएं स्तरीय हैं। इतनी अच्छी पत्रिका के लिए आपको कोटिशः बधाइयाँ। सचमुच पत्रिका से मैं प्रभावित हुई हूं। इस महंगाई के दौर में पत्रिका को निकालना आसान काम नहीं है। आपने शुरुआत की है। आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।...

    डॉ. प्रदीप शर्मा ‘स्नेही’, एस.ए. जैन (पी.जी.) कॉलेज, अम्बाला शहर-134002 (हरियाणा)
    ....‘अविराम’ प्राप्त हुई। पढ़कर आनन्द आया। स्तरीय लेखकों की रचनायें पढ़ने का सुअवसर मिला। आपका प्रयास स्तुत्य है। निसन्देह आज के आपाधापी के युग में एक स्तरीय पत्रिका निकालने के लिए साधुवाद स्वीकार करें।...

    डॉ. रघुनन्दन चिले, 232, मोगंज, वार्ड-1, दमोह-470661 (म.प्र.)
    ....‘अविराम साहित्यिकी’ का अंक प्राप्त हुआ। पत्रिका आकार में लघ जरूर है किन्तु समावेशित सामग्री के सन्दर्भ में विशाल है। सागर, गागर में। अर्थ-पिशाची प्रवृत्ति के इस संक्रमण काल में सत् साहित्य का दीप जलाना और उसे बलाओं की दुर्दान्त हवा के झकोरों से बचाना अत्यंत श्रम-साध्य है, परन्तु आपके साहस को दुस्साहस नहीं कहा जा सकता, आपके प्रयास श्लाघनीय है।.....रचनाओं का चयन सुरुचिपूर्ण है। पेज-सेटिंग उपयुक्त एवं आकर्षक है।...

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  4. बिलम्ब से प्राप्त कुछ और पत्र-

    इन्दिरा किसलय, बल्लालेश्वर, रेणुका विहार, रामेश्वरी रिंग रोड, नागपुर-440027, महा.
    ....जनवरी-मार्च 2014 अंक की अविराम मिली। पत्रिका की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें गीत, ग़ज़ल, क्षणिका हो या हायकु- प्रस्तुतिकरण का अन्दाज प्रभावी है। शब्दों के साथ रेखांकन मणि-कांचन संयोग गढ़ता है।... सुरंजन जी को अर्थगर्भ अभिव्यंजना के लिए बधाई। आ. कमल चोपड़ा जी की सलाह हर रचनाकार को शिरोधार्य करनी चाहिए....। समय-समय पर आत्म-साक्षात्कार जरूरी है। एक खरा-खरा इतिवृत्ति। सतीश दुबे जी का साक्षात्कार इस अंक का प्राण है। सुरेश यादव की ‘कोई चाह’ औश्र पंकज परिमल की ‘नदी’ प्रशंसा की हकदार है।

    अश्विनी कुमार आलोक, पत्रकार कॉलोनी, महनार, वैशाली-844506, बिहार
    अविराम साहित्यिकी, जनवरी-मार्च 14 अंक मिला। आभारी हूँ। कमल चोपड़ा की लघुकथा-लेखन यात्रा रोचक लगी। तारिक असलम तस्नीम ने निष्पक्षता पूर्वक अपने रचनाधर्म का वर्णन किया है। प्रद्युम्न भल्ला, कृष्ण कुमार यादव, सुधीर मौर्य ‘सुधीर’, नंदलाल भारती, मधुदीप, पारस दासोत, आशा शैली आदि की लघुकथाओं ने प्रभावित किया। सतीश दुबे का इंटरव्यू भी पसंद आया। पत्रिका के मंगलमय भविष्य के लिए मेरी शुभकामनाएँ स्वीकारने की कृपा करें।

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