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बुधवार, 24 मई 2017

अविराम विस्तारित

                    अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  6,   अंक  :  01-04,  सितम्बर-दिसम्बर  2016



नवल जायसवाल 


प्रयागराज का सत्य

आटा बोलता नहीं तो क्या हुआ
सहता बहुत है
दबाव और आँच, दोनों



प्रकाश कहता रहा
अपनी आत्मकथा
मैंने अपने
झुर्रियों वाले हाथ देखे
और नाखूनों की धार
तुरन्त तेज कर दी



मेरी नज़रें कष्ट देती हैं
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
मेरे हाथों की तरह
लम्बी और सीधी हैं
वे किसी की भी
आँख से टकराकर
पहचान लेती हैं
जो मैं जानना चाहता हूँ



मैंने अपने लहू को
खौलने के लिए
भट्टी के ऊपर रखी
कढ़ाई में डाल दिया है
मैं उससे चिपकना नहीं चाहता
पास रहकर भी



तन-तन, मन-मन
काया मेरी छरहरी-सी
दौड़ना चाहती है
रेल की पटरियों पर
बरसात के बिना भी
हरे घास के बगल से
निःसंकोच



मैं अन्त की परिभाषा नहीं जानता
आदि अतीत को दे आया हूँ
वह सम्हाल लेगा
किनारों की तलाश में है वह
अपने प्रलोभन को कह भी दें तो
शायद, सम्भव, स्यात
घुटनों तक पानी में खड़े होकर



मेरा दुश्मन
जो कभी दोस्त भी था
कह रहा है वह सब
जो एक निहायत ही
एकान्त वाले कमरे में
तय करके गया था
आजादी की गोपनीयता के बारे में



घर की छत
कभी टपकती नहीं थी
मैंने अपने ही बिस्तर से
देखा एक बूंद
टपकना चाहती है
आकार तो बड़ा कर रही है
न जाने कब टपक पड़े
नींद को दे दूँगा
बाढ़ की श्रृंखलाएँ और म्यूरल्स



मैं इतना सब
अपनी देह के बिना
नहीं कर सकता
माध्यम है
अनेक प्रकार की
आत्माओं की सभा करने का
मृत्यु शैय्या पर जाने से पूर्व



मैंने विधवाओं का
जीवन भी देखा है
मरने वाला दे जाता है
अपनी शेष आयु भी
वह आत्मसात् कैसे करे
सहती है सब
रेखाचित्र :  रमेश गौतम 
या/थोप देती है अपना आतंक



निरन्तर शब्द
कोष से निकलकर
मेरे सामने आ गया है
मैं उसकी हत्या कर देना चाहता हूँ
अनगिनत मित्रों के साथ
रिश्तेदारों के साथ/चीख लूँ
प्रयागराज जाने से पूर्व।

  • प्रेमन, बी-201, सर्वधर्म कोलार रोड, भोपाल-462042 (म.प्र.)/फोन : 0755-2493840

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