आपका परिचय

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

अविराम विस्तारित

 ।।सामग्री।।
 जनक छन्द :  डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ व आर. पी. शर्मा ‘महर्षि’ के जनक छंद।

।।जनक छन्द।।
डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’






पाँच जनक छंद
1.
इक अल्ला को मानते
उसके बन्दो पर कहो
क्यों बन्दूकें तानते
2.
अमलतास फूला बहुत
भले झड़ा, रोया नहीं
फलियों में झूला बहुत
दृश्य छाया चित्र : डॉ. उमेश महादोषी
3.
पंखुरियाँ क्रमशः झरीं
जाते जाते कह गईं
कहो सुगन्धें कब मरी?
4.
मैं न भूधरों से मरूँ
किन्तु पाप दुर्धर बने
उन्हें शीश कैसे धरूँ
5.
नापाकी उत्पात है
कहीं नक्सली मारते
दुर्बलता सन्ताप है

  • बी-2-बी-34, जनकपुरी, नई दिल्ली-110058

आर. पी. शर्मा ‘महर्षि’

पाँच जनक छंद
1.
टुकड़े-टुकड़े हो गई।
खाने वाले पांच थे
रोटी केवल एक थी।
2.
रेखांकन : शशि भूषण बडोनी
बारूदी सामान हैं।
कैसे ये विध्वंस के
फुलझड़ियां हैरान हैं।
3.
आये दिन के भार से।
कैसे पायें त्राण जन
महंगाई की मार से।
4.
नष्ट घृणा का तत्व हो।
हो प्रसार बन्धुत्व का
प्यार भरा अपनत्व हो।
5.
बन आई है जान पर।
कांप रहे तरुवर सभी
आरी चलती देखकर।
  • फ्लैट नं.402, प्लॉट नं.11/ए, श्री रामनिवास  टट्टा निवासी CHS 
पेस्टम सागर रोड नं.3, महल-घाटकोपर रोड, चेम्बूर, मुम्बई-400089
अविराम विस्तारित  :  जनक छंद व सम्बंधित छंद 

अविराम विस्तारित


।।सामग्री ।।
अविराम विस्तारित  :  डॉ. भावना कुँअर व राधेश्याम के हाइकु

।।हाइकू।।

डॉ. भावना कुँअर






दस हाइकु 
1.
तेज थी आँधी
टूटा गुलमोहर
सपनों जैसा।
2.
खेत है वधू
सरसों हैं गहने
स्वर्ण के जैसे ।
3.
चीं- चीं करती
चिड़ियों  की ये बोली
लगे है भोली।
4.
खिड़की पर
है भोर की किरण
नृ़त्यागंना -सी ।
5.
दृश्य छाया चित्र : रोहित कम्बोज 
थकी थकान
बर्फ़ीली आग में भी
चाँदनी जली।
6.
प्यासा सागर
सर्द हुआ सूरज
चाँद झुलसा ।
7.
नदियॉ गातीं
लहरों के साथ में
रास रचातीं।
8.
सोच रही थी
चिलचिलाती धूप
कहॉं मैं जाऊँ?
9.
लेटी थी धूप
सागर तट पर
प्यास बुझाने।
10.
सीप से मोती
जैसे  झाँक रहा हो
नभ में चॉंद।
  • सिडनी, आस्ट्रेलिया (ई मेल: bhawnak2002@gmail.com )


राधेश्याम





चार  हाइकु
1.
रात अकेली
गिनती रही तारे
पिया न आये
2.
दृश्य छाया चित्र : डॉ. उमेश महादोषी
झुरमुट से
झांक रहा चन्द्रमा
तू घूंघट से
3.
नभ से गिरा
खजूर में अटका
भाग्य का खेल
4.
चांदनी रात
वह करे न बात
मैं सकुचात
  • 184/2, शील कुंज, आई.आई.टी. कैम्पस, रुड़की-247667, जिला- हरिद्वार (उत्तराखण्ड)

अविराम विस्तारित

। । सामग्री। । 
अविराम विस्तारित  :  डॉ. प्रेम कुमार की  एक लघुकहानी 

।।कथा कहानी।।

डॉ. प्रेम कुमार
महाबली

    गाँव भर में अब वह अकेला महाबली था। उसका एक जिगरी दोस्त था। लोग उसे महाबली का पिल्ला कहते थे। दोनों की ऐसी धाक कि बैंक, अस्पताल, स्कुल, पंचायत, थाना, कचहरी- सब उसके सामने दण्डवत होने लगें, इशारों पर नाचें! खाने-पीने, जीने-मरने, लिखने-पढ़ने, लड़ने-भिड़ने की हर चीज पर उनका अधिकार! बिना पेटेंट कराए हर चीज के सर्वाधिकार उनके पास सुरक्षित! तमाम तरह की दुकानों-फैक्टरियों के मालिक वे, उनके परिवारीजन-रिश्तेदार या फिर उनके चेले-चण्टारी! रुतबे की हद यह कि उनकी दुकानों से खरीदे माल से भले कोई बीमार हो या मर जाए- क्या मजाल कि कानून उस ओर निगाह भी उठा सके अपनी। इससे भी बड़ी बात यह कि उनसे न खरीदा गया सब कुछ रातों-रात ज़हर बना-बता दिया जाता और उसे घातक-मारक सिद्व भी करा दिया जाता। खरीदने और बेचने वालों पर चाहे जहाँ अभियोग लगता, मुकदमा जहाँ कहीं भी चलता- पर दण्ड हमेशा महाबली की इच्छा क अनुसार ही दिया जाता।
   महाबली के हर शब्द, हर कार्य को अनूठा, मौलिक, दिव्य या अपरिहार्य ठहराने वाले सिद्धों, महंतों, ज्ञानियों, मुल्लाओं की भी पूरी एक फौज थी। महाबली के अहसानों में गले-गले तक डूबे ये लोग अपने आका की आँखों के इशारे को समझकर जब जो करते-कहते, वो सब उनके ब्याज चुकाने जैसा होता। इसी सबके चलते किसी की मजाल नहीं थी कि महाबली या उनके पिल्ले की अनुमति के बिना कोई छींक या डकार भी ले सके। पिल्ले की नमकहलाली का आलम यह कि बिन बाँधे भी प्रतिपल महाबली के साथ। महाबली के सब कुछ को मानवीय, लोकतान्त्रिक, न्यायसंगत बताने-ठहराने के लिए रात-दिन ऐसी भौं-भौं कि न फिर गले में खराश की चिन्ता, न गले में खून आ जाने की फिक्र! जानवर चुराए जाएँ या आदमी, फसल कटे-जले या जमीन पर कब्जा हो, हत्या हो या बलात्कार- ये लोग पीड़ित के भी साथ होते और अभियुक्त के भी। रिपोर्ट लिखाने के लिए उनकी सिफ़ारिश ज़रूरी होती और बरी होने के लिए उनका धन और समर्थन! हत्यारों के हथियार उन्हीं से खरीदे गये होते और कफ़न -दफ्न का सामान भी उन्हीं की दुकानों से लाया जाता। उनका सूचनातंत्र इतना प्रभावी और संवेदी कि जो जैसा वो चाहते, लोगों को वही और वैसा खाना-पीना, करना-सोचना और बोलना पड़ता!
   इतने सबके बावजूद कुछ ऐसा था कि उनके दिल की फाँस की चुभन, आँखों में की जलन और किरकिराहट कभी खत्म ही न होती। दरअसल उस गाँव में चंद सिरफिरे थे जो अपनों के बीच बातों-बातों में कुछ कह-पूछ लिया करते थे। मसलन वे पूछते कि तमाम तरह से मरने-खपने के बाद भी सारा ये गाँव रोजी-रोटी या दवा-दारू के लिए महाबली का मुँहदेखा या मोहताज क्यों है! कौन नहीं जानता कि महाबली ने अपने हाथ से टूक तक नहीं तोड़ा। महनत-मजदूरी से कुछ कमाने-बनाने का तो सवाल ही नहीं है। सस्ता खरीदा, अपनी मुहर लगाई, मनमानी कीमत पर बेचा। दलाली, चौथ वसूली, धौंसपट्टी, दादागीरी का धंधा अलग से। देखते-देखते सबसे बड़ा और अमीर बन बैठा! जो जरा तना, उसके बाल-बच्चे गायब या उसका काम तमाम! कुछ और नहीं तो जाँचों और कोर्ट-कचहरी में ऐसा फंसा दिया कि उस पर न जीते बने और न मरते! ऐसे में सवाल और बातें जब महाबली और उसके दोस्त तक पहुंचती तो उनकी आँखें लाल-पीली हो उठतीं, मुट्ठियाँ कस जातीं और दाँत किटकिटाकर बजने लगते।
   कुछ ही दिन बीते थे कि गाँव में यह सिलसिला शुरू हुआ। शाम होते ही किसी एक गली या मुहल्ले में शामियाना तनता, तख्त छिता। लाइट, माइक और खान-पान की व्यवस्था की जाती। पूरी तैयारी के बाद महाबली दोस्त के साथ मंचासीन होते। मालाएँ पहनाने की होड़ लग जाती। तने-ऐंठे-से महाबली खड़े होते! सन्नाटा छा जाता! महाबली का बोलना शुरू होता- ‘आतंकवाद को दुनियाँ से मिटाना है। लोकतन्त्र स्थापित करना है। मानवता के दुश्मनों का खात्मा करना है।’ खूब सिर हिलत, देर तक तालियाँ बजतीं। तकरीर की लम्बाई और रूखेपन पर ध्यान दिये बिना भीड़ खामोश बैठी महाबली को सुनती रहती। महाबली के बाद उनका दोस्त अपना राग अलापना शुरू करता- ‘महाबली से बेहतर न कभी हुआ है, न हो सकता है। जो महाबली के साथ नहीं हैं वो शांति के दुश्मन हैं, लोकतन्त्र के हत्यारे हैं।’ भीड़ हो-होकर हँसने लगती। तालियाँ और जोर से अधिक देर तक बजती रहतीं। यह सब इसलिए कि भीड़ में शामिल हर शख्स ने मान रखा था कि यह सब गाँव के उन चंद सिरफिरों के लिए कहा गया है, जो यहाँ उपस्थित नहीं हैं। उन्हें खतरा नहीं है। तब तो और भी नहीं जब वो हँस भी रहे हैं, तालियाँ भी बजा रहे हैं और फूल-मालाएँ भी पहना रहे हैं।
   उन्हीं दिनों में से एक की एक सुबह महाबली के दोस्त की भौं-भौं की उस अजीबोगरीब आवाज़ ने गाँव भर को अँधेरे में ही जमा दिया। भाग-दौड़ कर महाबली के द्वार पहुँची भीड़ ने देखा कि महाबली चिंतित-शोक में डूबे से चुप खड़े हैं और उनका दोस्त भौंखे जा रहा है। पूरी भीड़ ने महाबली की मुद्रा अपना ली। देर बाद मालूम हुआ कि आज महाबली के दरवाजे द्वार पर ऐ चूहा मरा पड़ा मिला है। सुनकर लोग सन्न! तमाम तरह के शक, संदेह, अनुमान! जरूर कोई साजिश है, किसी ने दुश्मनी निकाली है। चूहे की अर्थी सजी। भीड़ में से लोगों ने बारी-बारी से उसे कंधा दिया। सबसे आगे महाबली, उनके पीछे उनका दोस्त, उसके पीछे अर्थी और उसके पीछे जो भी थी वो भीड़! उस रोज़ गाँव में न कोई चूल्हा जला, न कोई अपने किसी काम को गया। पर उससे अगली-अगली, फिर अगली सुबह- और अगली सुबह! किसी न किसी की गाय, भैंस, बकरी खूँटे से बँधी मृत मिलने लगी। गाँव बदहवास, आतंकित! हैरान-परेशान महाबली के दरबार में अपने दो हिस्ट्रीशीटर ज़हरखुरान गुर्गों के साथ दोस्त की अध्यक्षता में महाबली ने एक जाँच कमेटी बनाई। रिपोर्ट मिलने पर तीन दिन में दोषी को दंडित किए जाने की घोषणा भी कर दी।
   तीन दिन तक जब कुछ न हुआ तो चौथे दिन लोग फिर महाबली की शरण में जा पहुँचे! उस दिन केवल दो लोगों को अन्दर आकर महाबली से मिलने अनुमति मिली। धूप में बाहर देर तक खड़ी भीड़ पसीने-पसीने होती रही। घंटों बाद जब वो दो लोग बाहर आए तो उन्होंने बताया कि दोषी का पता चल गया है। जन-हित में नाम उजागर नहीं किए जा सकते। तैयारियाँ जारी हैं। अपराधियों को जल्दी ही दण्ड मिल जायेगा। जय-जयकार करती भीड़ ने अपने घरों की ओर रुख किया। लोग घर तक पहुँचे भी नहीं थे कि कुछ गिराने-ढहाने की आवाजें सुनाई दीं। तेज चाल पहुँचे तो दंग- दस-पन्द्रह आदमी कुदालों-फावड़ों से कुछ घरों को मिस्मार करने में जुटे हैं। घंटों के बाद भी नतीजा सिफ़र! भीड़ चिल्लाने-बौखलाने लगी। शोर से पास छाया में खड़े महाबली को परेशान हुआ देख उनके दोस्त ने जैसे कान में एक मंत्र फूँका- ‘हशीश, हैरोइन या सोने की तरह ज़हर भी तो देह में छिपाया जा सकता है। प्रमाण जुटाने के लिए कुछ लोगों के गले-पेट रेतने-चीरने पड़ सकते हैं। सुबूत बिना अभियुक्त दंडित नहीं होगा। दंड बिना आतंकवाद खत्म नहीं होगा। आतंकवाद के खात्मे के बिना न शांति स्थापित हो सकेगी, न लोकतन्त्र। दोस्त की बुद्धिमानी पर महाबली प्रशन्न हुए। उनकी आज्ञा होते ही भीड़ भी उन लोगों की तलाश में जुट गई, जिनकी देह में ज़हर के छिपा होने का संदेह था। इसका कोई मतलब नहीं कि संदेह केवल उन चंद सिरफिरों पर ही था- जो न अपने होंठ सीं सकते थे और न अपने गले और पेट को अपने जिस्म से अलग कर सकते थे।
  • कृष्णा धाम कॉलोनी, आगरा रोड, अलीगढ़ (उ.प्र.)


अविराम विस्तारित

।।सामग्री।।
व्यंग्य वाण :  डॉ. सुरेन्द्र वर्मा का व्यंग्यालेख। 

।।व्यंग्य वाण।।
डॉ. सुरेन्द्र वर्मा






वरिष्ठ साहित्यकार, चित्रकार एवं विद्वान डॉ. सुरेन्द्र वर्मा जी के व्यंग्य एवं रोचक लेखों की पुस्तक ‘राम भरोसे’ इसी वर्ष प्रकाशित हुई है। इसी पुस्तक से प्रस्तुत है उनका एक अत्यन्त रोचक व्यंग्यालेख।

उँगलियों के पंचशील
   सिर्फ गूंगे ही अपनी बात उँगलियों से नहीं करते। वाचाल से वाचाल आदमी भी उँगलियों से सेकेत करते देखे गए हैं।
रेखांकन : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
   उँगलियाँ हथेली के छोर से निकली हुई, फलियों के आकार के पाँच अवयव हैं। इनसे इन्सान छोटी-छोटी चीजों को पकड़ता, उठाता इत्यादि है। लेकिन आप अपनी उँगजियों से कैसे काम लेते हैं, यह आपकी पूरी जीवन पद्धति पर प्रकाश डालता है। आप उँगलियों से भला क्या नहीं कर सकते? आप उँगली उठा सकते हैं, लेकिन ध्यान रखिए उँगली आप पर भी उठ सकती है। आप उँगली पकड़ सकते हैं, लेकिन आप कभी कभी उँगली पकड़कर पहुँचा भी पकड़ सकते हैं, अक्सर इसी कोशिश में रहते हैं। आप उँगली चलाते और नचाते हैं और कभी कभी स्वयं भी किसी की उँगलियों पर नाचने के लिए मजबूर हो जाते हैं। आप जब काम नहीं करना चाहते फिर भी काम करने का आभास देना चाहते हैं तो आप काम को केवल उँगली भर लगाते हैं और आपके इस व्यवहार से लोग दाँतों तले उँगली दबा बैठते हैं। आपको जो सुनना होता है, उसे बेशक सुनते हैं, अन्यथा आदमी हजार बकता रहे, आप कानों को उँगली दे लेते हैं।
   ऐसा न सोचिए कि उँगलियाँ सब बराबर होती हैं। उनमें भी समानता नहीं है और लिंग भेद भी है। अँगूठा, जो वस्तुतः एक उँगली ही है, पुल्लिंग बना बैठा है। वह अंगुस्ते-नर है। वह जानता है उसके बिना उँगलियों का काम नहीं चल सकता। बड़ी ऐंठ में रहता है। और क्यों न रहे? उँगलियाँ कुछ भी करना चाहें तो उन्हें पहले अँगूठे को मदद के लिए आमन्त्रित करना पड़ता है। बिना उसकी सहायता के, वे सुई तक नहीं उठा सकतीं। जरा सोचिए यदि कहीं अंगूठा उँगलियों को अंगूठा दिखा दे तो उँगलियों का भला क्या हाल होगा? बेचारी बेबस हो जायेंगी। अंगूठा बड़ा प्रतापी है। जो लोग अंगूठे के नीचे रहते हैं वे भी जानते हैं कि मातहत होने का दर्द क्या होता है? राजनीति और नौकरशाही में अँगूठे का खेल खूब चलता है। कौन किसको अँगूठा दिखा दे, कुछ नहीं कहा जा सकता। और कब कौन किसको सफल घोषित कर ‘थम्स अप’ की मुद्रा में खड़ा हो जाये, कोई ठिकाना नहीं।
   अंगूठे के अतिरिक्त चार उँगलियाँ और भी होती हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है, तर्जनी। अंगूठे के बाद वाली पहली उँगली यही है। हम अधिकतर आदेशात्मक सन्देश इसी से देते हैं- उठो, जाओ, हटो इत्यादि। निर्देश देने में यह निपुण है। यह संकेतनी है। जिन्हें नेतागीरी का शौक होता है उनकी यह उँगली खूब चलती है। इसे चलाकर वे सबको नचाते रहते हैं।
   छिंगुली सबसे छोटी होते हुए भी, सबसे शरारती उँगली है। पर बड़ी सहायक भी है। अपने से बड़ी सभी उँगलियों की, बिना किसी आडम्बर और दिखावे के, मदद करती रहती है। लोगों को जब बाथरूम जाना होता है तो इसी को उठाकर इशारा करते हैं।
   छिंगुली के पास वाली उँगली ‘अनामिका’ कहलाती है। इसकी कोई बड़ी भूमिका नहीं है। इसका बस सौन्दर्यवर्द्धक मूल्य है। नाम भी अनामिका है और काम भी नाम मात्र का ही करती है। पर वह उँगली, जो बीचोबीच है, और इसीलिए जो ‘मध्यमिका’ कहलाती है, अपनी उपस्थिति सबसे लम्बी उँगली होने के कारण दूर से ही दर्शाती है। भद्दे इशारे इसी उँगली से किए जाते हैं।
    उँगलियाँ पैमाना हैं। उनसे हम नापते हैं- दो अंगुल, चार अंगुल, आदि। उँगलियों से हम गिनते हैं। शायद यही सोचकर ऋषिवर ‘अंगुलिमार’ ने उँगलियों से बरताव के ‘पंचशील’ सुझाए हैं।
रेखांकन : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
   (1) यह ध्यान में रखकर कि आप पर भी उँगली उठाई जा सकती है, किसी पर उँगली न उठाएँ। (2) जिन्हें चलाना नहीं आता, उन्हें उँगली पकड़कर बेशक चलना सिखाइए, पर उँगली पकड़कर उनका पहुँचा न पकड़िए। (3) लोगों को अपने अंगूठे के दबाव से मुक्त रखिए। (4) छिगुनी को छोटा मत समझिए, वह रूठ गई तो सभी उँगलियों का सहारा छिन जायेगा। (5) आपके इशारे पर कोई नहीं चलना चाहता। तर्जनी का इस्तेमाल न ही करें, तो अच्छा।

  • 10, एच.आई.जी., 1, सर्कुलर रोड, इलाहाबाद (उ.प्र.)

विभिन्न क्षेत्रों में साहित्यिक हलचल

{यहां साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के प्राप्त समाचार पूर्ण रूप में दिये जा रहे हैं। मुद्रित अंक में स्थान की उपलब्धता के अनुसार चयनित समाचारों को संक्षिप्त रूप में दिया जायेगा। कृपया समाचार यथासम्भव संक्षिप्त रूप में ही भेजें।}



‘बीसवाँ अंतर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन’ अमृतसर में सम्पन्न
 

पंजाबी त्रैमासिक पत्रिका ‘मिन्नी’, ‘पंजाबी साहित्य अकादमी, लुधियाना’ व ‘पिंगलवाड़ा चौरिटेबल सोसायटी, अमृतसर’ के संयुक्त तत्त्वाधान में ‘बीसवाँ अंतर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन’ 8 अक्तूबर, 2011 को पिंगलवाडा काम्प्लैक्स, अमृतसर(पंजाब) में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन की अध्यक्षता डॉ. इंदरजीत कौर(अध्यक्षा, पिंगलवाड़ा सोसायटी), डॉ. सुखदेव सिंह खाहरा, डॉ. इकबाल कौर, डॉ. अनूप सिंह(उपाध्यक्ष, पंजाबी साहित्य अकादमी) व बलराम अग्रवाल (दिल्ली) ने की।
पत्रिका ‘मिन्नी’ के संपादक-मंडल के सदस्य श्याम सुन्दर अग्रवाल ने पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश व दिल्ली से सम्मेलन में पधारे अतिथियों का स्वागत करते हुए इस सम्मेलन के उद्देश्य संबंधी जानकारी दी।
कार्यक्रम के प्रारंभ में पंजाबी-आलोचक डॉ. दरिया ने आपना आलेख ‘इक्कीवीं सदी दे पहिले दहाके दी मिन्नी कहाणी, समाजिक ते सभ्याचारक संदर्भ’ पढ़ा। उन्होंने कहा कि किसी भी सामाजिक परिवर्तन पर प्रतिकर्म सबसे पहले लघुकथा में ही व्यक्त होता है।
श्री भगीरथ परिहार ने अपने आलेख ‘मुठ्ठीभर आसमान के लिएरू लघुकथा में स्त्री विमर्श’ में लघुकथा-साहित्य में प्रस्तुत स्त्री की विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों का वर्णन किया।
दोनों आलेखों पर डॉ. अनूप सिंह, सुभाष नीरव व डॉ. बलदेव सिंह खाहरा ने अपने विचार व्यक्त किए।

कार्यक्रम के अगले चरण की शुरुआत पत्रिका ‘मिन्नी’ के अंक-93 के विमोचन से हुई। इसके साथ ही डा. श्याम सुन्दर दीप्ति व श्याम सुन्दर अग्रवाल द्वारा संपादित दो लघुकथा-संकलनों ‘विगत दशक की पंजाबी लघुकथाएँ’ (हिन्दी) व ‘दहाके दा सफ़र’ (पंजाबी) का विमोचन अध्यक्ष-मंडल की ओर से किया गया। इसी चरण में सुकेश साहनी व रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ द्वारा संपादित संकलन ‘मानव मूल्यों की लघुकथाएँ’ तथा बलराम अग्रवाल की ओर से संपादित पुस्तक ‘समकालीन लघुकथा और प्रेमचंद’ का विमोचन भी किया गया।
सर्व श्री सूर्यकांत नागर, सुकेश साहनी, हरभजन सिंह खेमकरनी, निरंजन बोहा व श्री सुरिंदर कैले सम्मानित
    लघुकथा सम्मेलन का प्रथम-सत्र का आखरी चरण सम्मान समारोह का रहा। समारोह दौरान श्री सूर्यकांत नागर (इन्दौर) को ‘माता शरबती देवी समृति सम्मान’, श्री सुकेश साहनी (बरेली) को ‘श्री बलदेव कौशिक स्मृति सम्मान’, श्री हरभजन सिंह खेमकरनी (अमृतसर) को ‘लघुकथा डॉट कॉम सम्मान’, श्री निरंजन बोहा (बोहा, पंजाब) को ‘प्रिं. भगत सिंह सेखों समृति सम्मान’ तथा पत्रिका ‘अणु’ के संपादक श्री सुरिंदर कैले (लुधियाना) को ‘गुरमीत हेयर समृति सम्मान’ से नवाजा गया। पुस्तक विमोचन व सम्मान समारोह में
श्रीमती अनवंत कौर, तलविंदर सिंह, अरतिंदर संधू, डॉ. शेर सिंह मरड़ी व हरिकृष्ण मायर ने अध्यक्ष-मंडल के साथ सहयोग किया। अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ. इंदरजीत कौर ने समाज में लेखकों की सकारात्मक भूमिका तथा अच्छे साहित्य की आवश्यकता पर जोर दिया।
   सम्मेलन का दूसरा सत्र ‘जुगनूआँ दे अंग-संग’ अमृतसर से लगभग दस किलोमीटर दूर पिंगलवाड़ा सोसायटी के मानांवाला कम्प्लैक्स में हुआ। देर शाम शुरू हुआ यह सत्र रात के बारह बजे तक चला। इस सत्र में श्री सुरेश शर्मा व सूर्यकांत नागर (इन्दौर), सुभाष नीरव व बलराम अग्रवाल (दिल्ली), ऊषा मेहता दीपा (चंबा), अशोक दर्द (डलहौजी), डॉ. शील कौशिक व डॉ. शक्तिराज कौशिक (सिरसा) व श्याम सुन्दर अग्रवाल (कोटकपूरा) ने हिन्दी में अपनी लघुकथाएँ पढ़ीं। हरप्रीत सिंह राणा व रघबीर सिंह महिमी (पटियाला), जगदीश राय कुलरीआँ व दर्शन सिंह बरेटा (बरेटा), बिक्रमजीत ‘नूर’ (गिद्दड़बाहा), निरंजन बोहा (बोहा), विवेक (कोट ईसे खाँ) रणजीत आज़ाद काँझला (धूरी), अमृत लाल मन्नन, हरभजन खेमकरणी व डॉ. श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’(अमृतसर) ने पंजाबी में अपनी रचनाएँ पढ़ीं। पढ़ी गई रचनाओं पर अन्य के साथ भगीरथ परिहार (कोटा), सुकेश साहनी (बरेली) व डॉ.सुखदेव सिंह सेखों (अमृतसर) ने विशेष रूप से अपने विचार व्यक्त किए। (समाचार सौजन्य: श्याम सुन्दर अग्रवाल, ५७५, गली न.५, प्रताप नगर, कोटकपूरा, पंजाब)



 

नागार्जुन की जन्मशती पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
  प्रगतिशील विचारधारा के आधार कवि नागार्जुन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। शोषित-असहाय जनता के प्रति संवेदनशील तथा पीड़ित जनता के कष्टों से व्यथित नागार्जुन ने अपनी प्रभावशाली कविताओं के माध्यम से समाज के दबे-कुचले तबके को जागरूक करने का काम किया। आम बोलचाल की भाषा में लिखी उनकी रचनाएँँ जहाँँ सामाजिक बदलाव का पर्याय बनीं, वहीं जनकवि के रूप में उन्हें विशष ख्याति मिली। उक्त विचार कवि, आलोचक, सम्पादक तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. राजेन्द्र कुमार ने रामगढ़ में महादेवी वर्मा सृजन पीठ द्वारा 5-6 जून, 2011 को आयोजित ‘नागार्जुन और समकालीन हिन्दी लेखन’ विषयक द्वि-दिवसीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता आधार व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए।
   संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वी.एस. अरोरा ने कहा कि विश्वविद्यालय की महादेवी वर्मा सृजन पीठ साहियकारों को रचनात्मक माहौल उपलब्ध कराने की दृष्टि से महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कथाकार, उपन्यासकार एवं समयान्तर के सम्पादक पंकज बिष्ट ने कहा कि नागार्जुन हिन्दी साहित्य परम्परा में ऋषि की भांति हैं। उनकी कविताएँ आदमी की दम तोड़ती उम्मीदों, उसके जीवन-संघर्षों और तकलीफों का संवेदनात्मक पक्ष जाहिर करती हैं।
   वरिष्ठ साहित्यकार वाचस्पति ने कहा कि आजादी के पहले व बाद भी उत्तराखण्ड के सुदूर अंचलों में नागार्जुन भ्रमण करते रहे। वे मूलतः ग्रामीण संस्कारों के कवि हैं। उनका मानवतावाद समाज के अन्तर्विरोधों के खिलाफ एक सजग रचनाकार की भूमिका निभाता है। उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की निदेशिका डॉ. सविता मोहन ने कहा कि यह आयोजन  नागार्जुन के बहाने अपने समय और समाज की पहचान का अवसर हमें प्रदान करता है।
   संगोष्ठी के प्रथम सत्र में नागार्जुन एवं समकालीन हिन्दी लेखन को लेकर प्रतिभागियों के बीच गहन एवं अन्तरंग चर्चा हुई। द्वितीय सत्र में नागार्जुन को उनसे जुड़े संस्मरणों के जरिए याद किया गया। दूसरे दिन समापन सत्र में उत्तराखण्डी साहित्यकारों ने अपने समाज और रचनात्मक परिवेश से जुड़ी साहित्यिक-सांस्कृतिक समस्याओं पर व्यापक विचार-विमर्श किया।
   इससे पूर्व कुलपति प्रो. वी. एस. अरोरा द्वारा दीप प्रज्वलन तथा अतिथियों द्वारा नागार्जुन के चित्र पर माल्यार्पण के साथ संगोष्ठी का शुभारम्भ हुआ। पीठ के निदेशक प्रो. एल.एस. विष्ट ‘बटरोही’ ने अपने स्वागत संबोधन में पीठ की वर्तमान में संचालित गतिविधियों तथा भावी योजनाओं की जानकारी दी।इस अवसर पर कवि राजेश सकलानी के कविता संग्रह ‘पुस्तों का बयान’ का विमोचन कुलपति तथा वरिष्ठ साहित्यकारों ने किया। डॉ. राजेन्द्र कैड़ा ने नागार्जुन की कविताओं का पाठ तथा संचालन कवि सिद्धेश्वर सिंह ने किया।
   इस अवसर पर पूर्व विदेश सचिव शशांक, रंगकर्मी इदरीश मलिक, अनिल घिल्डियाल, एच.एस.राणा, राजेश आर्य, महेश जोशी, जितेन्द्र भट्ट, दिनेश चन्द्र जोशी, मुकेश नौटियाल, शैलेय, नवीन नैथानी, विजय गौड़, महेश पुनेठा, चन्द्रशेखर तिवारी, महावीर रंवाल्टा, सुरेन्द्र पुण्डीर, त्रेपन सिंह चौहान, गीता गैरोला, रानू बिष्ट, स्वाति मेलकानी, शीला रजवार, चंद्रकला रावत, प्रभा पंत, विनीता जोशी, दीपा काण्डपाल, मन्नू ढोडियाल, बीना जोशी, बसन्ती पाठक, सुनीता भट्ट, भावना कनवाल, अंबरीश कुमार, खेमकरण सोमन, विक्रम सिंह, भस्कर उप्रेती, रोहित जोशी आदि अनेक रचनाकर्मी मौजूद थे। (समाचार सौजन्य: मोहन सिंह रावत, बर्ड्स आई व्यू, इम्पयर होटल परिसर, तल्लीताल, नैनीताल-263 002, उत्तराखण्ड)

 डॉ. मानव को मिला वर्ष 2011 का ‘डॉ. प्रतीक मिश्र स्मृति सम्मान’
  साहित्य, बाल-साहित्य एवं शोध के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के दृष्टिगत वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामनिवास ‘मानव’ को वर्ष 2011 का ‘डॉ. प्रतीक मिश्र स्मृति सम्मान’ प्रदान किया गया है। डॉ. प्रतीक मिश्र स्मृति शोध-संस्थान, कानपुर (उ.प्र.) द्वारा प्रसिद्ध इतिहासकर श्री रामकृष्ण तैलंग की अध्यक्षता  में आयोजित एक भव्य राष्ट्रीय समारोह में, केन्द्रीय कोयला मन्त्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने शॉल, स्मृति-चिह्न, सम्मान-पत्र और ग्यारह हजार की नकद राशि भेंट कर डॉ. ‘मानव’ को सम्मानित किया। प्रख्यात साहित्यकार, पत्रकार, श्क्षिाविद् और समाजसेवी डॉ. प्रतीक मिश्र की स्मृति में प्रतिवर्ष दिया जाने वाला यह सम्मान इससे पूर्व पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह ‘शशि’ (2009) तथा डॉ. राष्ट्रबन्धु (2010) को प्रदान किया जा चुका है।
   श्री अणु मिश्र के कुशल संयोजन में सम्पन्न हुए इस समारोह में डॉ. यतीन्द्र तिवारी, डॉ. राष्ट्रबन्धु, डॉ. विमल द्विवेदी, डॉ. सत्यकाम ‘शिरीष’, डॉ. शशि मिश्र, श्री अशोक शास्त्री, डॉ. अनुज स्वामी, श्री रामनाथ ‘महेन्द्र’ आदि प्रमुख साहित्यकारों के अतिरिक्त ‘राष्ट्रीय सहारा’ के स्थानीय सम्पादक श्री नवोदित ने भी डॉ. प्रतीक मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला तथा सम्मानित होने पर डॉ. मानव को बधाई दी। इस अवसर पर संस्थान के तत्वावधान में ‘कविता की शाम: डॉ. मानव के नाम’ कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।
    साहित्य, सम्पादन, शोध आदि के क्षेत्र में बहुमूल्य एवं विशिष्ट योगदान के लिए डॉ. मानव को अनेकों बार प्रमुख साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जर चुका है।(समाचार सौजन्य: डॉ. कान्ता भारती, 706, सै.-13,हिसार)


कमलेश भारतीय हरियाणा ग्रन्थ अकादमी के उपाध्यक्ष बने
   हरियाणा सरकार द्वारा नवस्थापित हरियाणा ग्रन्थ अकादमी के उपाध्यक्ष पद पर कथाकार कमलेश भारतीय को नियुक्त किया गया। उन्होंने अपना कार्यभार संभाल लिया है। कमलेश भारतीय लम्बे समय से पत्रिकारिता से जुड़े रहे। इसके बावजूद साहित्य में उनकी रुचि बरकरार रही। भाषा विभाग, पंजाब द्वारा उनकी पहली कथा-कृति ‘महक से ऊपर’ को वर्ष की सर्वोत्तम कथाकृति का पुरस्कार मिला था। श्री कमलेश भारतीय को इससे पूर्व भी केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, हरियााणा साहित्य अकादमी, चौ. चरण सिंह कृषि वि.वि. आदि के द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। श्री भारतीय ने यह पद दैनिक ट्रिब्यून के प्रमुख संवाददाता के पद से त्यागपत्र देकर ग्रहण किया है। (समाचार सौजन्य: कमलेश भारतीय, 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार)
 

दो और किताबें

{अविराम के ब्लाग के इस अंक में दो पुस्तकों की समीक्षा  रख  रहे हैं।  कृपया समीक्षा भेजने के साथ समीक्षित पुस्तक की एक प्रति हमारे अवलोकनार्थ (डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला- हरिद्वार, उत्तराखण्ड के पते पर) अवश्य भेजें।}

एन. डी. सोनी 

एक बुन्देली हाइकु संग्रह

साहित्य में काव्य हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रहा है। गद्य साहित्य जहाँ किसी बात का विस्तृत विवेचन करता है, वहीं कविता संक्षेप में/सारगर्भित रूप में बात को सौन्दर्यपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करती है। काव्य साहित्य के विकास में हिन्दी में अनेकों प्रकार के छन्दों का प्रयोग हुआ है। कई छन्द क्लिष्ट और गूढ़ होते हैं, जिन्हें सुनना-समझना काफी मुश्किल होता है। इसलिए आम आदमी सरल और आम बोलचाल के छन्दों को अधिक पसन्द करता है। पाठकों की इसी प्रवृत्ति को समझते हुए श्री राजीव नामदेव ने लघुतम छन्द हाइकु में कविता करने का प्रयोग शुरू किया। इस जापानी छन्द में पहले उन्होंने खड़ी बोली में ‘रजनीगन्धा’ हाइकु संग्रह सन् 2008 में प्रकाशित किया और लोगों को पसन्द आने पर उन्होंने बुन्देली भाषा में पहला हाइकु संग्रह ‘नौनी लगे बुन्देली’ प्रस्तुत किया है।
      ‘नौनी लगे बुन्देली’ में सौ हाइकु बन्देली में लिखे गये हैं। जिसमें मानव जीवन के विभिन्न विषयों पर उन्होंने कलम चलाई है। संग्रह को पढ़ने से ऐसा नहीं लगता कि यह उनका पहला प्रयोग होगा। बुन्देली में ऐसा विशिष्ट संग्रह लिखकर उन्होंने जहाँ बुन्देली कवियों में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है, वहीं लोगों को एक नई राह भी सुझाई है। यद्यपि बुन्देली में एक छोटा छन्द ख्याल है, जो गायक कलाकारों द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। बुन्देली का हाइकु संग्रह साहित्यकारों और सामान्य पाठकों के हाथों में पहुँचने के बाद प्रतिक्रियाएँ सामने आयेंगी। मुझे लगता है कि संग्रह को पढ़कर अन्य कवि भी हाइकु लेखन के लिए प्रेरित हो सकते हैं।
    इस संग्रह की शुरुआत कवि ने वंदना खण्ड द्वारा ईश प्रार्थना से की है। शुद्ध बुन्देली ढंग से हाइकु में श्री गणेश जी को कवि प्रणाम करता है- ‘गनेश जू खौं/दण्डवत प्रनाम/हों पूरे काम’। यह बहुत सीधी और सरल अभिव्यक्ति है। इसी प्रकार चिन्तन खण्ड में आज के समाज के लिए सबसे आवश्यक बात को कवि कितने सहज ढंग से कह देता है, अवलोकन करें- ‘पुरा परोस/हिलमिल रइयौ/गम्म खइयो’।
   मानव जीवन के मधुरतम रस श्रृंगार पर कवि ने अपनी कलम का जादू बिखेरा है। प्रकृति के श्रृंगार की छटा देखें- ‘बसंत आऔ/मउआ गदराऔ/आम बौराऔ’। इसी बसंत से प्रभावित प्रेमी अपने हृदय का हाल कैसे प्रकट करता है, यह इस हाइकु में बहुत स्पष्ट है- ‘कछु बचो न/बे अखियाँ मिलाके/सब लै गईं’।
    श्री राजीव जी ने जहाँ  बुन्देलखण्ड के फलों, फसलों और खेतों का सजीव चित्रण कर उनकी विशेषताओं को उजागर किया है, वहीं देश-प्रेम और रालनीति की पोलों पर कलम चलाना नहीं भूले। नेताओं के चरित्र की विशेषताओं पर दो हाइकु दृष्टव्य हैं- ‘कोरो पाखण्ड/नेतन कौ चरित्र/गिरदौसा सौ’ तथा ‘बखत परै/गदबद हैं देत/आज के नेता’।
    हाइकु संग्रह में नामदेव जी ने एक ‘अन्य’ ख्ण्ड रखा है, जिसमें जीवन के अनेक पहलुओं पर हाइकु लिखे हैं जिनकी झलकियाँ अनूठी हैं। गरीबी और अमीरी की दो विपरीत झलकियाँ देखें- ‘कैसे जी रये/चून तक नइयाँ/आँसू पी रये‘ और ‘जब मिलत/खाबें को परें-परें/काय खौं करें’।
   प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे बहुत से हाइकु हैं जिन्हें पढ़कर मन प्रशन्न हो जाता है और खड़ी बोली से भी नौंनी बुन्देली लगने लगती है। संग्रह पढ़कर ही इसका आनन्द उठाया जा सकता है। कविता के इतने छोटे छन्द में बुन्देली कहावतों का सफल प्रयोग करके कवि ने अपने काव्य-कौशल का अच्छा परिचय दिया है। इस संक्षिप्त विवेचना में, मैं अधिक उदाहरण देना उचित नहीं समझता। हाँ, इतना अवश्य कहूँगा, कुछ ऐसे हाइकु हैं जिनमें यदि बुन्देली के शब्दों को परिवर्तित कर दिया जाता तो उसकी सुन्दरता में वांछनीय वृद्धि हो जाती। आशा है भविष्य में लेखन में कवि के मन में उद्वेलित भावनाओं का प्रस्फुटन निश्चय ही अधिक प्रभावपूर्ण होगा, जिसकी क्षमता नामदेव जी में है। जैसे-जैसे उनकी बुन्देली शब्द सम्पदा में वृद्धि होगी, उनके हाइकु लेखन में उत्तरोत्तर निखार आयेगा।

नौंनी लगे बुन्देली ( बुन्देली हाइकु संग्रह ) :  राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’। प्रकाशक : म.प्र. लेखक संघ, टीकमगढ़ (म.प्र.),। पृष्ठ :  88, मूल्य : 80 रुपये ; संस्करण :  2010।
  • महामंत्री, श्री वीरेन्द्र केशव साहित्य परिषद, टीकमगढ़ (म.प्र.)

 डॉ. उमेश महादोषी
सपाटबयानी में जीवन की छटपटाहट

‘क़तरा क़तरा जिन्दगी’ गांगेय कमल जी का पहला कविता संग्रह है। इसमें उनकी 33 कविताएं एवं 105 हाइकु संग्रहीत हैं। सपाटबयानी शैली में लिखी इन कविताओं में कवि मन की भावुकता तो है ही, मानवीय संवेदना और सरोकारों को भी देखा जा सकता है। परछाइयाँ (1), परछाइयाँ (2), दर्द, माँ, सुख, जिन्दगी आदि कविताओं में कवि की भावुकता में डूबी जीवन की धड़कनों को सुना जा सकता है। मजबूरी (1), मजबूरी (2), सर्दी की रात, उम्र का सूत, बरसात शीर्षक कविताओं में मानवीय संवेदना और सरोकारों का अहसास भी है। ‘वीरान खण्डहर’ की चुप्पियों में खोई उसके अतीत की विरासत को कमल जी का चित्रकार कुरेदता है तो उससे आने वाली आवाजों को उनके अन्दर का भावुक कवि पूरी सिद्दत के साथ सुनता है। प्यास, धुआँ, शून्य  जैसी कविताओं में कवि जिन्दगी के फलसफे को समझने की कोशिश करता दिखता है।
   जहाँ तक हाइकु का प्रश्न है, लघुकाय रचना होने एवं भावार्थ में व्यापकता की अपेक्षा के कारण सपाटबयानी में हाइकु का प्रभाव आ नहीं पाता है। फिर भी कमल जी ने जहाँ कहीं प्रकृति-सानिध्य के चित्र बनाने एवं बिम्बों के माध्यम से अपनी बात कहने की कोशिश की है, वहाँ वह सफल रहे हैं। कुछ उदाहरण रखना चाहूँगा-
ऋतु बसंत/मादकता के संग/शीत का अन्त
ध्यान से सुन/बहती नदिया से/निकली धुन
होठों पे हाला/बरसती आँखें/दिल में ज्वाला
धुंध सी छाती /जब राह कोई भी/मिल न पाती
    संग्रह के 15-20 हाइकु सफल कहे जा सकते हैं।
   इस संग्रह की रचनाओं का दूसरा पक्ष यह है कि गांगेय जी के मन में विचार जिस रूप में और जिस तीव्रता से आते हैं, लगता है वह उन्हें उसी रूप में और उतनी ही तीव्रता के साथ अभिव्यक्त भी कर देते हैं। इसलिए उनकी इन रचनाओं को उनकी स्वाभाविक एवं सरल अभिव्यक्ति भले मन लिया जाये, पर इससे कविता के शिल्प और तकनीकी पक्ष की उपेक्षा जरूर हुई है। रचना की सहजता, सरलता, स्वाभाविकता के साथ उसके शिल्प-सौन्दर्य की भी भूमिका होती है कविता के प्रभाव और सम्प्रेषण में। मुझे लगता है गांगेय कमल जी को कविता के शिल्प पर काफी मेहनत करने की जरूरत है। उनके अन्दर वैचारिक स्तर पर काफी कुछ है, जिसे वह कविता के पाठकों को दे सकते हैं, पर उसे प्रभावशाली ढंग से सम्पेषित करने के लिए शिल्प-कौशल को भी विकसित करना चाहिए। पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सपाटबयानी में भी उन्होंने जीवन की छटपटाहट को अभिव्यक्ति दी है।

क़तरा क़तरा जिन्दगी :  कविता संग्रह। कवि :  गांगेय कमल। प्रकाशक :  हिन्दी साहित्य साधना प्रकाशन, ज्ञानोदय अकादमी, निर्मला छावनी, हरिद्वार (उत्तराख्ण्ड)। पृष्ठ : ५० + १४+४, मूल्य : 100/-। संस्करण : जनवरी २०११
  • ऍफ़-४८८/२, गली न. ११, राजेंद्र नगर, रुड़की-२४७६६७, जिला- हरिद्वार (उत्तराखंड)

कुछ और महत्वपूर्ण पत्रिकाएँ

{अविराम के ब्लाग के इस  स्तम्भ में पिछले  अंक में हमने दो महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं क्रमश:  'असिक्नी' और 'प्रेरणा (समकालीन लेखन के लिए)' का परिचय करवाया था।  इस  अंक में  हम चार और  पत्रिकाओं पर अपनी परिचयात्मक टिप्पणी दे रहे हैं।  जैसे-जैसे सम्भव होगा हम अन्य  लघु-पत्रिकाओं, जिनके  कम से कम दो अंक हमें पढ़ने को मिल चुके होंगे, का परिचय पाठकों से करवायेंगे। पाठकों से अनुरोध है इन पत्रिकाओं को मंगवाकर पढें और पारस्परिक सहयोग करें। पत्रिकाओं को स्तरीय रचनाएँ ही भेजें,  इससे पत्रिकाओं का स्तर तो बढ़ता ही है, रचनाकारों का अपना सकारात्मक प्रभाव भी पाठकों पर पड़ता है।}
 

कथा संसार :  कुछ नया करने की चाहत
   कथा संसार हिन्दी सहित्य की प्रमुख और चर्चित लघु पत्रिकाओं में से एक है। पिछले दस वर्षों में कथा संसार के इक्कीस अंक आये हैं । स्पष्ट है निरन्तरता वाधित हुई है, फिर भी कथा संसार की उपस्थिति साहित्य से जुड़े तमाम लोगों ने लगातार महसूस की है, इसका कारण निश्चित रूप से सम्पादक सुरंजन द्वारा कदम-कदम पर संघर्षों के बावजूद हमेशा अपनी क्षमताओं से अधिक और हर बार कुछ न कुछ नया और जरूरी देने की कोशिश एवं इच्छाशक्ति ही है। कथा संसार का हर अंक एक विशेषांक होता है और नये-पुराने बहुत सारे रचनाकारों की उपस्थिति के साथ तमाम बड़ी पत्रिकाओं के बराबर खड़ी नज़र आती है यह पत्रिका। खास बात यह है कि अपने अधिकांश रचनाकार मित्रों के साथ सम्पादक सुरंजन जी के सम्बन्धों की गहराई प्रत्येक अंक में महसूस की जा सकती है, साथ ही पत्रिका की रचनात्मकता और वैचारिकता पर सुरंजन जी के व्यक्तित्व के खुलेपन और स्पष्टवादिता का प्रभाव भी।
   कथा संसार के पिछले दो अंक क्रमशः जनक छन्द और पुरुष व्यथा पर केन्द्रित रहे हैं। जनक छन्द एक नया छन्द है, तदापि इसके प्रणेता डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ जी के व्यक्तित्व एवं जनक छन्द के लिए उनके तमाम प्रयासों, जनक छन्द की पृष्ठ-भूमि एवं विकास यात्रा और उसकी रचना-प्रक्रिया व रचनात्मकता के तमाम पक्षों आदि को विस्तार से आलेखों, साक्षात्कार एवं प्रतिनिधि जनक छन्द रचनाओं के माध्यम से सामने रखा गया है जनक छन्द विशेषांक (अंक 20) में। जनक छन्द से जुड़े लगभग सभी रचनाकारों की रचनाओं को विशेषांक में स्थान दिया गया है। विशेषांक की सामग्री के चयन एवं संयोजन में रमेश प्रसून जी का विशेष योगदान रहा है। जनक छन्द से जुड़े रचनाकारों के लिए भी और उन रचनाकारों के लिए भी, जो जनक छन्द का गहन परिचय प्राप्त करना चाहते हैं, यह विशेषांक बेहद महत्वपूर्ण एवं संग्रहणीय है। सुरंजन जी, रमेश प्रसून जी एवं पूरी संपादकीय टीम के सदस्य इस स्तुत्य कार्य के लिए बधाई के पात्र हैं।
    इक्कीसवां अंक पुरुष व्यथा पर केन्द्रित है। समाज में नारी उत्पीड़न और नारी सशक्तीकरण का मुद्दा चर्चा के केन्द्र में है। इस मुद्दे के पक्ष में बहुत सारी अतिरंजित प्रतिक्रियाओं का परिणाम यह हो रहा है कि पुरुष की बहुत सारी पीड़ाएं नज़र अन्दाज हो रही हैं। इस सम्बन्ध में गहराई से और व्यवहारिक स्तर पर निष्पक्ष होकर सोचा जाये, तो महिला-उत्पीड़न हो या पुरुष-उत्पीड़न, बहुत सारे मामले विशुद्ध रूप से मानवीय उत्पीड़न के होते हैं, उनका सम्बन्ध महिला या पुरुष होने से उतना नहीं होता है, जितना समझा जाता है। दूसरी बात उत्पीड़न पुरुष द्वारा महिला/महिलाओं का हो या महिला द्वारा पुरुष/पुरुषों का हो, चर्चा और समाधान दोनों का होना चाहिए। सकारात्मक तथ्य यह है कि महिला और पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और इसी तथ्य को दोनों के समान जीवन-मूल्यों के सन्दर्भ में समान अधिकारों और समान कर्त्तव्यों के आधार पर स्थापित किया जाना चाहिए। पर व्यापक स्तर पर ऐसा हो नहीं पा रहा है। प्रमुखतः महिलाओं के पक्ष में एकतरफा चर्चाएं हो रही हैं और इन चर्चाओं के उद्देश्य और परिणामों पर प्रश्नचिह्न भी लग रहे हैं। इन्हीं सबके मध्य महिलाओं द्वारा पुरुष उत्पीड़न का मुद्दा भी उठने लगा है। अमर साहनी जी ने नियोजित अध्ययन एवं चिन्तन के बाद इसको लेकर एक पुस्तक लिखी है- ‘अथ पुरुष व्यथा’। इस पुस्तक और उसमें उठाये गये मुद्दे यानी महिलाओं द्वारा पुरुषों के उत्पीड़न पर केन्द्रित है- कथा संसार का ‘अथ पुरुष व्यथा विशेषांक-2011’। इस विशेषांक में एक ओर जहाँ अमर साहनी जी की पुस्तक से पुरुष व्यथा पर विभिन्न आलेख रखे गये हैं, वहीं कई रचनाकारों की सशक्त कविताओं, लघुकथाओं एवं कहानियों के साथ सम्पादकीय के माध्यम से भी विशेषांक के विषय का समर्थन किया गया है। रमेश प्रसून जी ने साहनी जी की पुस्तक की संतुलित समीक्षा भी दी है। विशेषांक का उद्देश्य निश्चित रूप से पुरुषों के उत्पीड़न के पक्ष को भी चर्चा के मध्य रखना रहा है, पर कहीं-कहीं वैसी ही अतिरंजित सी प्रतिक्रियाएं भी दृष्टिगत होती हैं, जैसी नारीवादी चर्चाओं में आती रही हैं, खासतौर से पौराणिक सन्दर्भों को उद्धृत करते समय। यद्यपि कथा संसार के विशेषांक को काफी संतुलित करने की कोशिश की गई है, तदापि यह कहना प्रासंगिक होगा कि नारीवाद या पुरुषवाद से अधिक जरूरत दोनों के पूरक सम्बन्धों को समझने एवं स्थापित करने की है।
    निश्चय ही कथा संसार वैचारिक व रचनात्मक स्तर पर तो एक महत्वपूर्ण पत्रिका है ही, कई रचनाकारों और उनके कार्य को पहचान देने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

कथा संसार :  कथा साहित्य और चिन्तन की पत्रिका। सम्पादक :  सुरंजन सम्पादकीय सम्पर्क :  ई-385 सी, प्रताप विहार, निकट कैप्टन गैस ऐजेन्सी, गाजियाबाद-201009(उ.प्र.)। फोन :  9313195796। पृष्ठ :  80-90। मूल्य- एक प्रति :  रु.50/-, वार्षिक :  रु. 200/-(संस्था/लाइब्रेरी के लिए :  रु. 500/-), आजीवन :  रु. 2000/-।

संकेत  :  कविता में जीवन दृव की अभिव्यक्ति को खोजती लघु पत्रिका
 संकेत कविता केन्द्रित लघु पत्रिका है। लोकोन्मुखी एवं जीवन-दृव के अहसास को अभिव्यक्ति देने वाली कविता की खोज में संकेत का हर अंक ऐसी ही कविता के सृजन से जुड़े अपने समय के किसी एक कवि पर केन्द्रित होता है। एक अंक में एक ही कवि की कविताएं होने से सम्पादक जिस कविता की खोज में निकले हैं, उसे उसके फलक की व्यापकता के साथ समझना तो सम्भव होता ही है; कवि विशेष की रचनात्मकता और उसके व्यक्तित्व को समझना भी सम्भव हो जाता है। इस दृष्टि से सम्पादक अनवर सुहैल जी का यह सतत प्रयास अपने-आपमें अनूठा है। हर अंक एक लघु संग्रह की तरह आ रहा है। हालांकि इसके साथ विभिन्न रचनाकारों से आने वाली विविधिता से वंचित जरूर रहना पड़ता है, पर इसे वहन किया जा सकता है क्योंकि इसकी प्रतिपूर्ति के लिए अनेकों अच्छी पत्र-पत्रिकाएं हमारे मध्य हैं।
   संकेत के अब तक आठ अंक आये हैं, जो क्रमशः रजतकृष्ण, केशव तिवारी, शिरोमणि महतो, महेश चन्द्र पुनेठा, खदीजा खान, भास्कर चौधुरी, विष्णु चन्द्र शर्मा एवं ओम शंकर खरे ‘असर’ पर केन्द्रित हैं। इनमें से दो अंक शिरोमणि महतो एवं ओम शंकर खरे ‘असर’ पर केन्द्रित हमें देखने को मिले हैं।
    शिरोमणि महतो की कविताओं में लोक और स्थानीय चेतना के अंकुर भी मिलते हैं और जीवन-दृव का प्रवाह भी। अंक में उनकी ‘अखरा’, ‘काम पर जाते हुए लोग’, ‘इस साल का सावन (2009)’ ‘नदी’, ‘नेटवर्किंग वाले लड़के’ जैसी कई प्रतिनिधि व प्रभावशाली कविताएं शामिल हैं। शिरोमणि महतो भविष्य के एक ऊर्जावान रचनाकार हैं, संकेत के इस अंक से निश्चय ही उनकी प्रतिभा से लोगों को परिचित होने का अवसर तो मिला ही है, महतो जी और अच्छा करने के लिए प्रेरित होंगे।
   ओम शंकर खरे ‘असर’ जी को संकेत के सम्पादकीय में ‘अचर्चित वयोवृद्ध कवि’ कहा गया है, लेकिन उनके कार्यों और योगदन का जो विवरण प्रस्तुत किय गया है, वह इस तथ्य को सामने रखनेे के लिए पर्याप्त है कि आज भी महत्वपूर्ण और महान सृजक समय की अंधेरी कन्दराओं में साधनारत हैं। जब कभी ऐसे सृजकों की ओर किसी का ध्यान जाता है तो हमे कई चौंकाने वाली उपलब्धियां देखने को मिलती हैं। संकेत का असर जी पर अंक निकालना लागों का ध्यान इस ओर खींचने का काम करता है। अंक में असर जी की चौदह ग़ज़लों के साथ कुछ छोटी किन्तु बेहद प्रभावशाली छन्दमुक्त कविताएं रखी गई हैं। सभी रचनाओं में जीवन की धड़कनों को साफ-साफ सुना जा सकता है, जहाँ विसंगतियों को उकेरा गया है, वहाँ भी और जहाँ जीवन के विभिन्न अहसास सीधे अन्तर्मन टकराते हैं, वहाँ भी। असर जी ने कहीं-कहीं व्यंग्य का प्रयोग भी पूरे असर के साथ किया है।
   संकेत छोटी किन्तु एक अच्छी पत्रिका है, कविता के प्रति जिज्ञासुओं के लिए भी और पाठकों के लिए भी। संकेत में कुछ पुस्तकों की सारगर्भित समीक्षाएं भी दी जाती हैं, साथ ही सहयोगी लघु-पत्रिकाओं की परिचयात्मक जानकारी भी।

संकेत :  कविता केन्द्रित लघु पत्रिका। सम्पादक :  अनवर सुहैलसम्पादकीय सम्पर्क :  टाइप 4/3, ऑफीसर्स कालोनी, पो. बिजुरी, जिला- अनूपपुर (म.प्र.) पिन-484440। मोबाइल : 09907978108/07587690183। ई मेल : sanketpatrika@gmail.com . पृष्ठ : 30-32। सहयोग राशि: एक अंक: रु.15/-, विशेष सहयोग: रु.100/-। पुराने उपलब्ध अंक भी रु. 100/- भेजकर मंगावाये जा सकते हैं। सभी धनराशि धनादेश (मनीआर्डर) द्वारा ही भेजें।


समकालीन अभिव्यक्ति  :   संतुलित पत्रिका
     साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चेतना की लघ्ुा पत्रिका के रूप में समकालीन अभिव्यक्ति का अपना महत्व है। पत्रिका विगत नौ वर्षों से निरन्तर प्रकाशित हो रही है, यह बात अपने आपमें महत्वपूर्ण है। दो अंक अप्रैल-सितम्बर 2010 एवं अक्टूबर-दिसम्बर 2010 हमें देखने को मिले है। दिल्ली से श्री उपेन्द्र कुमार मिश्र के सम्पादन में प्रकाशित इस त्रैमासिक पत्रिका में साहित्यिक रचनाओं के साथ सामाजिक विषयों एवं दर्शनीय स्थलों आदि पर आलेख एवं स्तम्भबद्ध महत्वपूर्ण सामग्री भी दी जाती है। साहित्यिक रचनाओं में कविता, कहानी, लघुकथा, समीक्षाएं आदि का चयन स्तरीय है। स्थापित रचनाकारों के साथ कई उभरते हुए रचनाकारों की उपस्थिति भी देखी जा सकती है। ‘चुप्पी तोड़ो’ शीर्षक से काव्यात्मक सम्पादकीय अनूठा तो होता ही है, वैचारिक स्तर पर भी प्रभावित करता है। प्रमुख स्थाई स्तम्भ हैं- अन्दाजे बयाँ, एक दुनियां और भी है, वक्रोक्ति, साहित्यिक विनोद, खोज खबर एवं पोथी की परख। ‘एक दुनियां और भी है’ में सम्पादक उपेन्द्र जी सामाजिक-राजनैतिक समस्याओं पर अपना चिन्तन रखते हैं, जिससे पाठक सीधे तौर भी जुड़कर बहस का हिस्सा बन सकते हैं, यद्यपि ऐसा हो नहीं पा रहा है। वक्रोक्ति में सह सम्पादक हरिशंकर राढ़ी के व्यंग्य आलेख भी बेहद पैनापन लिए हुए होते हैं। धरोहर के अन्तर्गत अनिल डबराल विभिन्न महत्वपूर्ण स्थलों की अच्छी जानकारी दे रहे हैं, इन दोनों अंको में क्रमशः एलोरा एवं कन्याकुमारी के बारे में जाजकारी दी गई है। यात्रा वृतान्त में बुद्धि प्रकाश कोटनाला वर्ष 2009 में अपनी लद्दाख यात्रा के अपने अनुभव बाँट रहे हैं पाठकों के साथ। अपनी स्मृतियों के माध्यम से वह पाठकों को कश्मीर और लद्दाख की खूबसूरती और बहुत सारी अच्छी चीजों से रूबरू कराते नज़र आते हैं।
      ‘खोज खबर’ के अन्तर्गत विभिन्न साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से सम्बन्धित सूचना-समाचार भी प्रकाशित किए जाते हैं। पुस्तकों की समीक्षाओं के लिए भी पर्याप्त स्थान रखा गया है। सहित्यकारों और पाठकों दोनों की दृष्टि से समकालीन अभिव्यक्ति एक अच्छी संतुिलत पत्रिका है।

समकालीन अभिव्यक्ति :  साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चेतना की पत्रिका। सम्पादक :  उपेन्द्र कुमार मिश्रसम्पादकीय सम्पर्क :  फ्लैट नं.5, तृतीय तल, 984, वार्ड नं. 7, महरोली, नई दिल्ली-30। पृष्ठ :  64। शुल्क :  एक अंक :  रु.15/-, वार्षिक : रु.50/-, संस्था रु.80/-, आजीवन शुल्क : रु.500/-। दूरभाष : 011-26645001/26644751। ई मेल : samkaleen999@gmail.com


हम सब साथ साथ :  प्रासंगिक मुद्दों पर ध्यान खींचती लघु पत्रिका
     ‘हम सब साथ साथ’ द्विमासिक साहित्यिक पत्रिका है, नौ वर्ष से निरन्तर निकल रही है। हर अंक को किसी बिषय विशेष पर केन्द्रित करके विषयानुकूल कविता, कहानी, लघुकथा आदि रचनाओं, आलेखों, चर्चाओं आदि के माध्यम से उस विषय पर साहित्यकारों  और अपने पाठकों सहित तमाम बुद्धिजीवियों का ध्यान आकर्षित करती है। चूँकि पत्रिका के द्वारा चयनित विषय प्रासंगिक होते हैं, इसलिए ‘हससासा’ का कार्य निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है और इसका नोटिस लिया जाना चाहिए। पत्रिका के दो अंक मार्च-अप्रैल 2011 (राष्ट्रीय एकता/देशभक्ति पर केन्द्रित) और जुलाई-अगस्त2011 (अंधविश्वास/ढकोसला पर केन्द्रित) अंक हमने देखे हैं। सामान्यतः ऐसे विषयों पर अच्छी और स्तरीय रचनाएं/सामग्री जुटाना लघु पत्रिकाओं के लिए बेहद मुश्किल कार्य होता है, पर ‘हससासा’ ने इन अंकों के लिए न सिर्फ पर्याप्त वल्कि स्तरीय सामग्री जुटाई है। आलेखों/चर्चाओं में विचार सुलझे हुए हैं, अधिकांश रचनाएं, खासकर कथा रचनाएं (लघुकथाएं व कहानी) प्रभावशाली हैं। कविताओं में भी अधिसंख्यक प्रभावित करती हैं। कार्यकारी सम्पादक श्री किशोर श्रीवास्तव जी स्वयं एक स्थापित और अच्छे चित्रकार/रेखांकनकार हैं, वे इस कला का यथासम्भव उपयोग पत्रिका में बखूबी करते हैं। रचनाओं के साथ रचनाकारों के छायाचित्र भी देने का प्रयास किया जाता है। पत्रिका अपने सदस्यों का परिचय भी फोटो सहित प्रकाशित करती है। लघु पत्रिकाओं के परिचय एवं साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों की सूचनाओं एवं समाचारों के लिए भी पर्याप्त स्थान रखा गया है। पत्रिका से सम्बन्धित विभिन्न सूचना-समाचारों के लिए इन्टरनेट पर एक ब्लाग भी संचालित किया जा रहा है।

हम सब साथ साथ :  द्विमासिक साहित्यिक पत्रिका। सम्पादिका :  शशि श्रीवास्तव, कार्यकारी सम्पादक :  किशोर श्रीवास्तवसम्पादकीय सम्पर्क :  916, बाबा फरीदपुरी, पश्चिमी पटेलनगर, नई दिल्ली-110008। पृष्ठ : 36। शुल्क :  एक अंक :  रु.15/-, वार्षिक :  रु.120/-, पांच वर्ष का शुल्क रु.550/-, आजीवन शुल् :  रु.1100/-।
फोन :  8447673015/9868709348/9968396832/9971070545
ई मेल : humsabsathsath@gmail.com & hass2004@indiatimes.com
ब्लाग :  http://humsabsathsath.blogspot.com 

20. विवेक सत्यांशु


विवेक  सत्यांशु 

सम्पर्क  : १४/१२, शिवनगर कालोनी, अल्लापुर, इलाहबाद (उ.प्र.)
                      फोन : 09235723284
                    

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : दो कवितायेँ  (प्रष्ट 14 मार्च २०१० अंक)
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अक्टूबर २०११ अंक में तीन क्षणिकाएं




नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
२. उपरोक्त परिचय हमें भेजे गए अथवा हमारे द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. किसी भी त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. त्रुटि के बारे में रचनाकार द्वारा हमें सूचित करने पर संशोधन कर दिया जायेगायदि रचनाकार अपने परिचय में कुछ अन्य सूचना शामिल करना चाहते हैं, तो इसी पोस्ट के साथ के टिपण्णी कॉलम में दर्ज कर सकते हैं। यदि किसी रचनाकार को अपने परिचय के इस प्रकाशन पर आपत्ति हो, तो हमें सूचित कर दें, हम आपका परिचय हटा देंगे
 

19. अशोक कुमार पाण्डेय

अशोक कुमार पाण्डेय 






जन्म : २४.०१.१९७५  शिक्षा : अर्थशास्त्र में परास्नातक 
योगदान : मूलत:  कवि  कविता के साथ सामाजिक-आर्थिक विषयों पर वैचारिक लेखन तथा समीक्षा-समालोचना में भी दखल संस्कृतिक-सामाजिक गतिविधियों में सतत सक्रियताब्लोगिंग की दुनियां में अपनी पहचान 
लेखन, प्रकाशन एवं संपादन : प्रमुख साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं एवम इन्टरनेट ब्लोग्स  में प्रकाशन। 'मार्क्स और हमारा समय', 'शोषण के अभ्यारण्य'  तथा एक अनुदित पुस्तक के साथ कविता संग्रह 'लगभग अनामंत्रित' प्रकाशित कृतियाँ। असुविधा, जनपक्ष, युवा दखल, कविता समय, मेरी प्रिय कवितायेँ व आर्थिक विचार ब्लोगों का नियमित प्रकाशन
सम्प्रति : भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय  में कार्यरत। 
सम्पर्क  : ५०८, भावना रेजीडेंसी, सत्यदेवनगर, ग्वालियर (म.प्र.)
                      फोन : ०९४२५७८७९३०/०९०३९६९३१५९
                      ई मेल : ashokk34 @gmail.com 
  

                     
                    

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : चार कवितायेँ- 'अंतिम इच्छा' , 'कहाँ होंगी जगन की अम्मा', 'सबसे बुरे दिन' एवं 'ग्वालियर किले पर एक शाम' (प्रष्ट १९-२५, मार्च २०१० अंक)
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अभी नहीं




नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
२. उपरोक्त परिचय हमें भेजे गए अथवा हमारे द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. किसी भी त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. त्रुटि के बारे में रचनाकार द्वारा हमें सूचित करने पर संशोधन कर दिया जायेगायदि रचनाकार अपने परिचय में कुछ अन्य सूचना शामिल करना चाहते हैं, तो इसी पोस्ट के साथ के टिपण्णी कॉलम में दर्ज कर सकते हैं। यदि किसी रचनाकार को अपने परिचय के इस प्रकाशन पर आपत्ति हो, तो हमें सूचित कर दें, हम आपका परिचय हटा देंगे
 

18. पुष्पा रघु


पुष्पा रघु 

सम्पर्क  : १/२७-ए, चिरंजीव विहार, गाजिआबाद (उ.प्र.)

                     
                    

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : लघुकथा 'मदर्स डे' (प्रष्ट १८, मार्च २०१० अंक)/ पाँच हाइकु (प्रष्ट 24, जून २०११ अंक)
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अभी नहीं




नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
२. उपरोक्त परिचय हमें भेजे गए अथवा हमारे द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. किसी भी त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. त्रुटि के बारे में रचनाकार द्वारा हमें सूचित करने पर संशोधन कर दिया जायेगायदि रचनाकार अपने परिचय में कुछ अन्य सूचना शामिल करना चाहते हैं, तो इसी पोस्ट के साथ के टिपण्णी कॉलम में दर्ज कर सकते हैं। यदि किसी रचनाकार को अपने परिचय के इस प्रकाशन पर आपत्ति हो, तो हमें सूचित कर दें, हम आपका परिचय हटा देंगे
 

17. डॉ. सुरेश सपन


डॉ.  सुरेश सपन 







जन्म : दिसंबर १९६२ में   शिक्षा : मृदा विज्ञान में एम.एस-सी.(कृषि), पी-एच.डी.  

लेखन : कविता एवं क्षणिका , मृदा एवं जल संरक्षण संबंधी शोध लेख आदि    
प्रकाशन, संपादन व योगदान : कुछ पत्रिकाओं व  संकलनों में रचनाएँ प्रकाशितअविराम त्रैमासिकी व ब्लॉग के संपादन में परामर्श सीपियाँ और सीपियाँ (क्षणिका संकलन) के संपादन में सहभागी। 'राजा के सर पर सींग' (कविता संग्रह) एवं 'कृषि विज्ञान और घाघ की कहावतें' (शोध व विश्लेषणपरक पुस्तक) प्रकाशित कृतियाँ। 
सम्प्रति : विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, अल्मोड़ा में वरिष्ठ वैज्ञानिक 
सम्पर्क  :  विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, अल्मोड़ा (उ.खंड.)
                      फोन :09997896250
                      ई मेल : sureshpanday39@yahoo.com 

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : कविता 'सोचना कभी फुर्सत में' (प्रष्ट १३), व दो क्षणिकाएं(प्रष्ट ४५) मार्च २०१० अंक/ एक कविता- 'हमारे बच्चे' (प्रष्ट 25,मार्च २०११ अंक)/ तीन क्षणिकाएं(प्रष्ट 56) जून २०११  अंक 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित): अभी नहीं




नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
२. उपरोक्त परिचय हमें भेजे गए अथवा हमारे द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. किसी भी त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. त्रुटि के बारे में रचनाकार द्वारा हमें सूचित करने पर संशोधन कर दिया जायेगायदि रचनाकार अपने परिचय में कुछ अन्य सूचना शामिल करना चाहते हैं, तो इसी पोस्ट के साथ के टिपण्णी कॉलम में दर्ज कर सकते हैं। यदि किसी रचनाकार को अपने परिचय के इस प्रकाशन पर आपत्ति हो, तो हमें सूचित कर दें, हम आपका परिचय हटा देंगे
 

16. जोगेश्वरी सधीर

जोगेश्वरी सधीर 

सम्पर्क  : डी-54, फेस-1, आशाराम नगर, बाग मुगलिया, भोपाल (म0 प्र0)
                     
                    

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : लघुकथा 'मुक्ति' (प्रष्ट १६मार्च २०१० अंक)
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अक्टूबर २०११ अंक में एक लघुकथा




नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
२. उपरोक्त परिचय हमें भेजे गए अथवा हमारे द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. किसी भी त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. त्रुटि के बारे में रचनाकार द्वारा हमें सूचित करने पर संशोधन कर दिया जायेगायदि रचनाकार अपने परिचय में कुछ अन्य सूचना शामिल करना चाहते हैं, तो इसी पोस्ट के साथ के टिपण्णी कॉलम में दर्ज कर सकते हैं। यदि किसी रचनाकार को अपने परिचय के इस प्रकाशन पर आपत्ति हो, तो हमें सूचित कर दें, हम आपका परिचय हटा देंगे
 

15. डॉ. पूरण सिंह


डॉ. पूरण सिंह

सम्पर्क  : २४०, फरीदपुरी, वेस्ट पटेलनगर, नई दिल्ली 
                      फोन : 09868846388 
                     
                    

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : लघुकथा 'उनकी सेवानिवृति के बाद' (प्रष्ट १६-१७, मार्च २०१० अंक)/ लघुकथा 'भविष्यनिधि' (प्रष्ट १६-१७, सितम्बर-दिसंबर २०१० अंक)
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अक्टूबर २०११ अंक में एक लघुकथा




नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
२. उपरोक्त परिचय हमें भेजे गए अथवा हमारे द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. किसी भी त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. त्रुटि के बारे में रचनाकार द्वारा हमें सूचित करने पर संशोधन कर दिया जायेगायदि रचनाकार अपने परिचय में कुछ अन्य सूचना शामिल करना चाहते हैं, तो इसी पोस्ट के साथ के टिपण्णी कॉलम में दर्ज कर सकते हैं। यदि किसी रचनाकार को अपने परिचय के इस प्रकाशन पर आपत्ति हो, तो हमें सूचित कर दें, हम आपका परिचय हटा देंगे
 

14. डॉ. ए.कीर्तिवर्धन

डॉ.  ए.कीर्तिवर्धन





जन्म : ०९.०८.१९५६    शिक्षा : बी.एस-सी.,ए.ऍम.आई.ऍम. ए. तथा क्रमश: मर्चेंट बैंकिंग, एक्सपोर्ट मैनेजमेंट एवम मानव विकास प्रबंधन में डिप्लोमा। विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि  

लेखन : कविता, लेख व समीक्षा    
प्रकाशन, संपादन व योगदान : अनेकों पत्र-पत्रिकाओं, संकलनों व  ब्लोग्स पर रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी व टी.वी. चैनल से रचनाएँ प्रसारित कई पत्रिकाओं के संपादन मंडल से सम्बद्ध मेरी उड़ान, सच्चाई का परिचय पत्र, मुझे इन्सान बना दो, सुबह सवेरे, दलित चेतना के उभरते स्वर एवं जतन से ओढ़ी चदरिया आदि प्रकाशित पुस्तकें। कुछ रचनाएँ विभिन्न शिक्षा बोर्डों से सम्बंधित पुस्तकों में चयनित। गैर सरकारी संगठनों 'वरदान फाउन्डेसन'  व 'समाधान' सहित कई संस्थाओं से सम्बद्ध। वर्षों तक बैंकिंग कर्मचारी संगठनों में उच्च स्तर पर सक्रिय रहे। kirtivardhan.blogspot व kirtivardhan.box.net पर उपलब्ध। कल्पान्त पत्रिका द्वारा कीर्तिवर्धन जी पर विशेषांक प्रकाशित
सम्मान : विभिन्न स्तरों के चालीस से अधिक सम्मान  
सम्प्रति : नैनीताल बैंक, लाजपतनगर, दिल्ली में सेवारत 
सम्पर्क  :  'विद्यावती निकेतन', ५३, महालक्ष्मी एन्क्लेव, जानसठ रोड, मुज़फ्फरनगर (उ.प्र.)
                      फोन : 09911323732
                      ई मेल : a.kirtiverdhan@gmail.com 


अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   
मुद्रित प्रारूप : कविता 'नेता और सांप' (प्रष्ट १२, मार्च २०१० अंक)/ दो कवितायेँ- 'मूर्तिकार' व 'प्रकाश पुंज' (प्रष्ट 15,मार्च २०११ अंक) 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित): अक्टूबर २०११ अंक में एक कविता

नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
२. उपरोक्त परिचय हमें भेजे गए अथवा हमारे द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. किसी भी त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. त्रुटि के बारे में रचनाकार द्वारा हमें सूचित करने पर संशोधन कर दिया जायेगायदि रचनाकार अपने परिचय में कुछ अन्य सूचना शामिल करना चाहते हैं, तो इसी पोस्ट के साथ के टिपण्णी कॉलम में दर्ज कर सकते हैं। यदि किसी रचनाकार को अपने परिचय के इस प्रकाशन पर आपत्ति हो, तो हमें सूचित कर दें, हम आपका परिचय हटा देंगे