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व्यंग्य वाण :  डॉ. सुरेन्द्र वर्मा का व्यंग्यालेख।  
।।व्यंग्य वाण।।
डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
वरिष्ठ साहित्यकार, चित्रकार एवं विद्वान डॉ. सुरेन्द्र वर्मा जी के व्यंग्य एवं रोचक लेखों की पुस्तक ‘राम भरोसे’ इसी वर्ष प्रकाशित हुई है। इसी पुस्तक से प्रस्तुत है उनका एक अत्यन्त रोचक व्यंग्यालेख।
उँगलियों के पंचशील
   सिर्फ गूंगे ही अपनी बात उँगलियों से नहीं करते। वाचाल से वाचाल आदमी भी उँगलियों से सेकेत करते देखे गए हैं।
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| रेखांकन : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा | 
   ऐसा न सोचिए कि  उँगलियाँ सब बराबर होती हैं। उनमें भी समानता नहीं है और लिंग भेद भी है।  अँगूठा, जो वस्तुतः एक उँगली ही है, पुल्लिंग बना बैठा है। वह अंगुस्ते-नर  है। वह जानता है उसके बिना उँगलियों का काम नहीं चल सकता। बड़ी ऐंठ में रहता  है। और क्यों न रहे? उँगलियाँ कुछ भी करना चाहें तो उन्हें पहले अँगूठे को  मदद के लिए आमन्त्रित करना पड़ता है। बिना उसकी सहायता के, वे सुई तक नहीं  उठा सकतीं। जरा सोचिए यदि कहीं अंगूठा उँगलियों को अंगूठा दिखा दे तो  उँगलियों का भला क्या हाल होगा? बेचारी बेबस हो जायेंगी। अंगूठा बड़ा  प्रतापी है। जो लोग अंगूठे के नीचे रहते हैं वे भी जानते हैं कि मातहत होने  का दर्द क्या होता है? राजनीति और नौकरशाही में अँगूठे का खेल खूब चलता  है। कौन किसको अँगूठा दिखा दे, कुछ नहीं कहा जा सकता। और कब कौन किसको सफल  घोषित कर ‘थम्स अप’ की मुद्रा में खड़ा हो जाये, कोई ठिकाना नहीं। 
    अंगूठे के अतिरिक्त चार उँगलियाँ और भी होती हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण  है, तर्जनी। अंगूठे के बाद वाली पहली उँगली यही है। हम अधिकतर आदेशात्मक  सन्देश इसी से देते हैं- उठो, जाओ, हटो इत्यादि। निर्देश देने में यह निपुण  है। यह संकेतनी है। जिन्हें नेतागीरी का शौक होता है उनकी यह उँगली खूब  चलती है। इसे चलाकर वे सबको नचाते रहते हैं।
    छिंगुली सबसे छोटी होते हुए भी, सबसे शरारती उँगली है। पर बड़ी सहायक भी  है। अपने से बड़ी सभी उँगलियों की, बिना किसी आडम्बर और दिखावे के, मदद करती  रहती है। लोगों को जब बाथरूम जाना होता है तो इसी को उठाकर इशारा करते  हैं।
   छिंगुली के पास वाली उँगली  ‘अनामिका’ कहलाती है। इसकी कोई बड़ी भूमिका नहीं है। इसका बस  सौन्दर्यवर्द्धक मूल्य है। नाम भी अनामिका है और काम भी नाम मात्र का ही  करती है। पर वह उँगली, जो बीचोबीच है, और इसीलिए जो ‘मध्यमिका’ कहलाती है,  अपनी उपस्थिति सबसे लम्बी उँगली होने के कारण दूर से ही दर्शाती है। भद्दे  इशारे इसी उँगली से किए जाते हैं।
     उँगलियाँ पैमाना हैं। उनसे हम नापते हैं- दो अंगुल, चार अंगुल, आदि।  उँगलियों से हम गिनते हैं। शायद यही सोचकर ऋषिवर ‘अंगुलिमार’ ने उँगलियों  से बरताव के ‘पंचशील’ सुझाए हैं।
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| रेखांकन : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा | 
- 10, एच.आई.जी., 1, सर्कुलर रोड, इलाहाबाद (उ.प्र.)

 
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