।।सामग्री।।
जनक छन्द : डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ व आर. पी. शर्मा ‘महर्षि’ के जनक छंद।
।।जनक छन्द।।
डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’
1.
इक अल्ला को मानते
उसके बन्दो पर कहो
क्यों बन्दूकें तानते
2.
अमलतास फूला बहुत
भले झड़ा, रोया नहीं
फलियों में झूला बहुत
पंखुरियाँ क्रमशः झरीं
जाते जाते कह गईं
कहो सुगन्धें कब मरी?
4.
मैं न भूधरों से मरूँ
किन्तु पाप दुर्धर बने
उन्हें शीश कैसे धरूँ
5.
नापाकी उत्पात है
कहीं नक्सली मारते
दुर्बलता सन्ताप है
- बी-2-बी-34, जनकपुरी, नई दिल्ली-110058
आर. पी. शर्मा ‘महर्षि’
पाँच जनक छंद
1.
टुकड़े-टुकड़े हो गई।
खाने वाले पांच थे
रोटी केवल एक थी।
2.
कैसे ये विध्वंस के
फुलझड़ियां हैरान हैं।
3.
आये दिन के भार से।
कैसे पायें त्राण जन
महंगाई की मार से।
4.
नष्ट घृणा का तत्व हो।
हो प्रसार बन्धुत्व का
प्यार भरा अपनत्व हो।
5.
बन आई है जान पर।
कांप रहे तरुवर सभी
आरी चलती देखकर।
- फ्लैट नं.402, प्लॉट नं.11/ए, श्री रामनिवास टट्टा निवासी CHS
पेस्टम सागर रोड नं.3, महल-घाटकोपर रोड, चेम्बूर, मुम्बई-400089
अविराम विस्तारित : जनक छंद व सम्बंधित छंद
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