आपका परिचय

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

30. हरकीरत ‘हीर’

हरकीरत ‘हीर’ 


जन्म  : 31 अगस्त, (असम)। 
शिक्षा  :  एम.ए (हिन्दी), डी.सी.एच.।
लेखन/प्रकाशन/योगदान  :  हिन्दी, पंजाबी तथा असमियाँ में काव्य, आलेख, कहानियों का लेखन व अनुवाद। विभिन्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं  हंस, वर्तमान साहित्य, पर्वत राग , सरस्वती सुमन ,फर्स्ट न्यूज ,प्रतिमान, पुष्पगंध, साहित्य-अमृत, अभिनव-प्रयास आदि में निरंतर प्रकाशन। ‘इक-दर्द’ एवं ‘दर्द की महक’ प्रकाशित काव्य संग्रह। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से काव्यपाठ। इंटरनेट पर अपना harkirathaqeer.blogspot.com नामक स्वतंत्र ब्लॉग।
सम्पर्क  : 18, ईस्ट लेन, सुन्दरपुर, आर.जी. बारू रोड, हाउस नं.5, गुवाहाटी-781005 (असम)।
फोन  :  09864171300
ई मेल  :  mail4u2harbi@yahoo-com / harkirathaqeer@gmail.com
                    

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :  जून २०१० अंक में ग्यारह क्षणिकाएं 
                          जून २०११ अंक में पांच क्षणिकाएं
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अभी कोई नहीं 



नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
२. उपरोक्त परिचय हमें भेजे गए अथवा हमारे द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. किसी भी त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. त्रुटि के बारे में रचनाकार द्वारा हमें सूचित करने पर संशोधन कर दिया जायेगायदि रचनाकार अपने परिचय में कुछ अन्य सूचना शामिल करना चाहते हैं, तो इसी पोस्ट के साथ के टिपण्णी कॉलम में दर्ज कर सकते हैं। यदि किसी रचनाकार को अपने परिचय के इस प्रकाशन पर आपत्ति हो, तो हमें सूचित कर दें, हम आपका परिचय हटा देंगे
 

29. रामयतन यादव

रामयतन यादव





जन्म  : 29 अप्रैल 1965 को रहुई (नालन्दा) में।
लेखन/प्रकाशन/योगदान  : हिन्दी के साथ ही उर्दू एवं मगही में भी लेखन। रामयतन जी लघुकथा के साथ कहानी लेखन में भी सहभागी रहे हैं। लघुकथा की विकास यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहें हैं। लघुकथा से सम्बन्धित अधिकांश कार्यक्रमों में सहभागी रहे। लघुकथा के पक्ष में अनियतकालिक फोल्डर/पत्रिका ‘युद्ध’ के साथ ही तीन महत्वपूर्ण संकलनों- ‘हिन्दी की जनवादी लघुकथाए’ं, ‘हिन्दी की चर्चित लघुकथाएं’ तथा ‘बदनाम लघुकथाएं’ का सम्पादन। ‘नई धारा’(लघुकथा विशेषांक) एवं ‘चेतांशी’ (साहित्य विशेषांक) पत्रिकाओं के प्रकाशन में संयोजक व अतिथि संपादक के रूप में भूमिका। साक्षात्कारों के माध्यम से भी लघुकथा के विकास में योगदान। प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं व संकलनों में प्रकाशन एवं दूरदर्शन व आकाशवाणी से प्रसारण। रचनाओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद। ‘परिवेश का अतिक्रमण’ व ‘मेरे हिस्से का सच’ रामयतन यादव जी के महत्वपूर्ण लघुकथा संग्रह है। आपकी अन्य प्रकाशित पुस्तकें हैं- ‘बाँझ होते अहसास’ व ‘ठूँठ पेड़ की छाँव में’ (कहानी संग्रह) तथा ‘गुजरते लम्हों का दर्द’ (सम्पादित)।
सम्मान  :  कई स्तरों पर सम्मानित।
सम्पर्क  :  ग्राम-मकसूदपुर, पोस्ट-फतुहा, जिला-पटना- 803201 (बिहार)
फोन :  09234798952

                    


अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :    जून २०१० अंक में तीन लघुकथाएं - अस्मिता, जाल व चोरी

 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अभी कोई नहीं



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28. माधव नागदा

माधव नागदा

 
जन्म : 20 दिसम्बर 1951 लालमादड़ी (नाथद्वारा), राज0 में।
शिक्षा : रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर तथा शिक्षा स्नातक (B.Ed)।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  प्रमुख कथाकार के रूप में स्थापित नागदा जी ने यूँ तो कहानी व लघुकथा दोनों कथा-विधाओं में समान योगदान किया है, लेकिन लघुकथा के विकास काल में उत्कृष्ट लघुकथाएं  देकर उसके विधागत स्वरूप को स्पष्ट एवं स्थापित करने में जो योगदान किया है वह कहीं अधिक प्रासंगिक है। लघुकथा में स्तरीय लेखन की जरूरत को उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से पूरा करने का प्रयास  उस समय किया जब इसकी जरूरत थी। नागदा जी कविता व संस्मरण भी लिखते रहे हैं। नागदा जी की कहानियां कई भाषाओं में अनूदित एवं मंचित हुई हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में ‘उसका दर्द’, ‘शाप मुक्ति’ व ‘अकाल और खुश्बू’ (कहानी संग्रह), ‘आग’ (लघुकथा संग्रह), ‘उजास’ (राजस्थानी में कहानी संग्रह), ‘ठहरा हुआ वक्त’ (कविता-संग्रह), ‘सोनेरी पांखा वाली तितलियाँ’ (डायरी) एवं ‘पहचान’ (सम्पादित लघुकथा संग्रह) प्रमुख हैं। इन्टरनेट ‘साहित्य सुगन्ध’(http://madhavnagda.blogspot.com) ब्लाग पर उपलब्ध।
सम्मान : आपका कहानी संग्रह ‘उसका दर्द’ राजस्थान साहित्य अकादमी से एवं कविता-संग्रह ‘ठहरा हुआ वक्त’ राजस्थान पत्रिका द्वारा पुरस्कृत की गई हैं। कई संस्थाओं से सम्मानित।
सम्प्रति : श्री गोवर्द्धन राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, नाथद्वारा (राज0) में रसायन विज्ञान के व्याख्याता ।
सम्पर्क : श्री गोवर्द्धन राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, नाथद्वारा-313301 (राज0)
फोन : 09829588494
ई मेल :  madhav123nagda@gmail.com




अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :   जून २०१० अंक में चार लघुकथाएं- वह चली क्यों गयी, डेड, दुविधा, पता-ठिकाना 
                        मार्च २०११ अंक में एक लघुकथा- पुरानी फाइल 
                        जून २०११ अंक में दो क्षणिकाएं
 

 
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27. डॉ. पंकज परिमल

डॉ. पंकज परिमल

 जन्म : 25 .05.1964 मुजफ्फरनगर, उ.प्र. में।
शिक्षा : बी.एस-सी., बी.ए.एम.एस.
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  वरिष्ठ साहित्यकार पंकज जी मूलतः कवि हैं, परन्तु एक समलोचक एवं निबन्धकार के तौर पर भी आपने महत्वपूर्ण कार्य किया है। अनेक रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, संकलनों व वेबसाइटों पर प्रकाशित।
सम्प्रति : उ. प्र. सरकार की राजकीय चिकित्सा सेवा में चिकित्सक के पद पर कार्यरत।
सम्पर्क : ‘प्रवाल’, ए-129, शालीमार गार्डन एक्स.-।।, साहिबाबाद, जिला: गाजियाबाद (उ.प्र.)
   फोन : 09810838832 / 09810837814
                    

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : मार्च  २०१० अंक में कविता- सोने के पाँखों वाले हंस से तथा दो क्षणिकाएं 
                      सितम्बर-दिसंबर २०१० अंक में एक आलेख- नई कविता में बिम्ब्धार्मिता, सपाटबयानी  और सम्प्रेषणीयता 
 
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26 डॉ0 महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’

डॉ0 महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’

 
जन्म : 05.05.1965 ग्राम गोबराई जिला देवरिया, उ.प्र. में।
शिक्षा :  एम.ए. (हिन्दी), एम.एड.। विद्यावाचस्पति (पी-एच.डी.)।
लेखन विधायें- कविता एवं कथा-साहित्य। अमृता (काव्य संग्रह) व बुड़माशाण चालीसा सहित कुछ पुस्तकें प्रकाशित। अनेकों पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित। आकाशवाणी व दूरदर्शन से प्रसारण। सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी एवं शैक्षणिक स्तर कई प्रमुख जिम्मेवारियों का निर्वहन।
सम्मान :  बाल प्रहरी के ‘काव्य श्री 2007’, ‘सृजन श्री 2008’ आदि सहित विभिन्न स्तरों के कई सम्मानों से सम्मानित।
सम्प्रति :  रा.इ. का. द्वाराहाट में अध्यापनरत।
सम्पर्क :  रा.इ. का. द्वाराहाट, जिला: अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड।
फोन : 05966-244243/09410161626
ई मेल : mp_pandey123@yahoo.co.in        
                    


                  
अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :       मार्च २०१० अंक में माँ पर केन्द्रित पांच दोहे 
                                       मार्च २०११ अंक में एक रचना 'नील गगन'
 
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25. बाबा कानपुरी


बाबा कानपुरी


मूल नाम : सन्तोष कुमार शर्मा
जन्म  : 
11 जून 1955 को ग्रम झूलपुर जिला रायबरेली, उ.प्र. में।
शिक्षा  :  एम. ए., बी. एड.।
लेखन/प्रकाशन/योगदान  : 
श्री सन्तोष कुमार शर्मा हास्यकवि के रुप में बाबा कानपुरी के नाम से राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर चुके एक प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। काव्य की सभी प्रचलित विधाओं- गीत, ग़ज़ल, दोहा, कुण्डली, धनाक्षरी, कविताओं के सृजन के साथ-साथ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ’बाबा कवि बर्राय, भोंपू कहे पुकार, भड़ांस कॉलम छपते रहे हैं। सन् 1976 में कानपुर कृषि विश्वविद्यालय के उपकुलपति डा0 कैलाशनाथ कौल द्वारा एक काव्य समारोह में इनकी रचनाओं से प्रभावित होकर हास्यकवि के रुप में ’बाबा कानपुरी’ का खिताब दिया गया। पैंतालीस वर्षांे की काव्य-यात्रा में अब तक आपकी अनेक पुस्तकें-’बाबा कवि बर्राय, ’पीछे से खुली खिड़की, चौके-छक्के (हास्य संकलन), अभिनंदन ग्रंथ-बाबा कानपुरी व्यक्तित्व एवम् कृतित्व, गजल संग्रह- छप्पर बोलता है व श्री दिव्य योग रामायण प्रकाशित एवं ’भांेपू कहे पुकार’ व भड़ास अप्रकाशित कृतियां। आकाशवाणी, दूरदर्शन, साधना टी. वी., एन. डी. टी. वी., ई टी. वी. एवं राष्ट्रीय काव्य मंचों से निरन्तर काव्यपाठ तथा सैकड़ों पत्र-पत्रिकाओं में कविता, गीत, ग़ज़ल, दोहे प्रकाशित। सम्बंध सेतु पत्रिका (मासिक) के साहित्य सम्पादक, हास्य-व्यंग्य पत्रिका ‘रचना रंगोली’ के सम्पादक तथा यू. एस. एम. पत्रिका गाजियाबाद के साथ सह-सम्पादक के रूप में सम्बद्ध। लेखन के अलावा आप विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से निरन्तर साहित्य सेवा एवं समाज सेवा के प्रति समर्पित हैं। दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन ’सनेही मण्डल’ के संस्थापक व महामंत्री, उत्तर प्रदेश समाज दिल्ली-नोएडा के सांस्कृतिक मंत्री, सूर्या संस्थान के प्रचारमंत्री के रूप में योगदान।
सम्मान  : गजल संग्रह ’छप्पर बोलता है’ के लिए इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती दिल्ली द्वारा ‘उदयशंकर भट्ट सम्मान’, जय साहित्य संसद जयपुर द्वारा ‘गोकुलदास कोटावाला सम्मान’, साहित्यिक संस्था अदिति गाजियाबाद द्वारा ‘दुष्यंत कुमार सम्मान’ सहित विभिन्न स्तरों के कई सम्मान।
सम्प्रति  :
भारत संचार निगम लिमिटेड में वरिष्ठ कार्यालय सहायक ’फोन्स’ के रुप में सेवारत।
सम्पर्क  : 
ग्राम- सदरपुर, सेक्टर-45, नोएडा-201303, उ0 प्र0।
दूरभाष : 
0120-2573116, मो0- 9818217925, 9412000280
ई मेल : 
kavishribabakanpuri@gmail.com
                    


अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : मार्च  २०१० अंक में एक ग़ज़ल 
                         जून २०११  अंक मेंएक जनक छंद
 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अभी कोई नहीं 



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24. मोहन द्विवेदी

मोहन द्विवेदी
सम्पर्क  :  डी-180, महेन्द्रा एनक्लेव, शास्त्रीनगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)
फोन  : 09350717901

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : मार्च  २०१० अंक में दो रचनाएँ- वही हमारा भाग्य विधाता  व  ग़ज़ल 
                         मार्च २०११ अंक में एक गीत- धूप गई साँझ भी

 
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23. अलीहसन मकरैंडिया

अलीहसन मकरैंडिया


जन्म : 02.03.1967 ग्राम अहमदपुर गठीना जिला बागपत, उ.प्र. में। 
शिक्षा :  एम.ए. (हिन्दी) एवं आई.टी.आई. फिटर।
लेखन विधायें :  विभिन्न छन्दों में ओजस्वी एवं हास्य कविताऐं, कहानी, लेख, समीक्षा आदि। कवि सम्मेलनों में सक्रिय भगीदारीएवं घनाक्षरी छन्द तथा वीर रस के कवि के रूप में प्रसिद्धि।  अनेक पत्र-पत्रिकाओं व संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, आकाशवाणी व दूरदर्शन के चैनलों से प्रसारण। सह-सम्पा. ‘अभिनव प्रयास’ त्रै0साहि0 पत्रिका।
सम्मान :  विभिन्न स्तरों के लगभग दो दर्जन सम्मान।
सम्प्रति :  एनटीपीसी, दादरी के प्रचालन-थर्मल मे कार्यरत।
संपर्क : बी-४१०, एन.टी.पी.सी. टाउनशिप, डाक- विद्युत् नगर, जिला- गौतम बुद्ध नगर-२०१००८ (उ.प्र.)
फोन : 0120-2672391/09810734430/09456607715/फैक्स: 0120-2762330
ई मेल : makraindia@gmail.com  / ali_hasan67@rediffmai.com

                    

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : मार्च  २०१० अंक में पाँच घनाक्षरी छंद
जून २०१० अंक में एक घनाक्षरी छंद
मार्च २०११ अंक में तीन घनाक्षरी छंद
 
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22. ओम नागर


ओम नागर


जन्म :  20.11.1980। शिक्षा :  एम.ए. (हिन्दी साहित्य), बी.जे.एम.सी.। कोटा विश्वविद्यालय से ‘समसामयिक सन्दर्भों में प्रेम जी प्रेम के साहित्य का अवदान’ विषय पर शोधरत।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  राजस्थानी एवं हिन्दी में समान रूप से लेखन। मूलतः कवि ओम जी कहानी भी अच्छी लिखते हैं। प्रकाशित पुस्तके ‘छिंयापताई’ एवं ‘प्रीति’ राजस्थानी कविता-संग्रह, ‘देखना एक दिन’ हिन्दी कविता-संग्रह तथा ‘जनता बावली होगी’ शिवराम के जननाटकों का राजस्थानी अनुवाद। प्रख्यात कवि श्रद्धेय लीलाधर जगूड़ी के कविता संग्रह ‘अनुभव के आकाश में चांद’ का राजस्थानी में अनुवाद भी किया है। ‘काव्यांजलि साहित्य एवं संस्कृति संस्थान’ तथा ‘संवेदना’ के माध्यम से साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी।
सम्मान : अम्बेडकर फेलोशिप सम्मान-2005 व अ.भा.सा.परिषद, कोटा के नवांकुर सम्मान-2006       सहित कई सम्मान।
सम्प्रति :  ई.टी.वी. राजस्थान के कोटा संवाददाता।
सम्पर्क :  4-एच-2, रंगबाड़ी योजना, कोटा (राज.)
फोन: 09460677638/09667881933
ई मेल : omnagaretv@gmail.com


                    

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : मार्च  २०१० अंक में दो कवितायेँ- ईस्वर के साक्ष्य में/कविता  का होना 
                         जून २०१० अंक में एक कहानी- प्यास
 
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नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
२. उपरोक्त परिचय हमें भेजे गए अथवा हमारे द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. किसी भी त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. त्रुटि के बारे में रचनाकार द्वारा हमें सूचित करने पर संशोधन कर दिया जायेगायदि रचनाकार अपने परिचय में कुछ अन्य सूचना शामिल करना चाहते हैं, तो इसी पोस्ट के साथ के टिपण्णी कॉलम में दर्ज कर सकते हैं। यदि किसी रचनाकार को अपने परिचय के इस प्रकाशन पर आपत्ति हो, तो हमें सूचित कर दें, हम आपका परिचय हटा देंगे
 

21. ईशिता आर. गिरीश

ईशिता आर. गिरीश
जन्म : 09.08.1968, कुल्लू, हि.प्र.।
शिक्षा : बी.ए. आनर्स (अंग्रेजी), एम.ए. (अंग्रेजी) एवं बी.एड.।
लेखन/प्रकाशन/योगदान  : कविता एवं कथा-साहित्य में समान रूप से लेखन। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अनेकों कविताये एवं कहानियाँ प्रकाशित। एक कविता संग्रह ‘अपने साए से’ तथा एक उपन्यास ‘रीवा’ उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं।
सम्प्रति : ‘अवर लेडी ऑफ द स्नोज स्कूल’ कुल्लू में अंग्रेजी की अध्यापिका।
सम्पर्क : शास्त्री नगर, कुल्लू-175101 (हि.प्र.)
फोन : 01902-222919/09418070519




                    

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : मार्च २०१० अंक में पाँच कवितायेँ-  बंद घंटों की जिंदगी/आसमान और नदी का पानी/चाँद/बर्फ की ठण्ड/प्रसव 
 
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शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

ब्लाग को पढ़ना और प्रतिक्रिया दर्ज करना


    हमने महसूस किय है कि समुचित जानकारी के अभाव में कई मित्रों को ब्लाग पर पढ़ने हेतु अपनी रुचि की रचनाओं के चयन एवं अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने में परेशानी हो रही है। हम इस सम्बन्ध में संक्षिप्त जानकारी यहां दे रहे हैं।
1. ब्लाग को खोलने के लिए ब्लाग के लिंक (http://aviramsahitya.blogspot.com) पर क्लिक करें। ब्लाग खुल जायेगा।
2. ब्लाग पर अपनी दाहिनी ओर की विवरण वाली पट्टी पर देखें, एक जगह ‘लेवल(ब्लाग के विभिन्न खण्ड)’ लिखा होगा। उसके नीचे ब्लाग के सभी खण्ड दर्शाये गये हैं। जिस खण्ड से सम्बन्धित सामग्री आप पढ़ना चाहते हैं, उस पर कम्पूटर के माउस से क्लिक करें। सम्बन्धित खण्ड की सामग्री प्रकाशित तिथि के क्रम में खुल जायेगी।
     सम्पादक के विचार एवं अविराम सम्बन्धी सूचनाएं पढ़ने के लिए ‘मुख पृष्ठ’ पर क्लिक करें।
     सितम्बर अंक की कविताएं, लघुकथाएं, क्षणिकाएं, हाइकु, जनक छन्द, व्यंग्य आदि रचनाएं पढ़ने के लिए ‘अविराम विस्तारित’ खण्ड खोलिए।
     अक्टूबर 2011 एवं इसके बाद के अंको में कविताएं पढ़ने के लिए ‘अविराम विस्तारित: कविता अनवरत’ उपखण्ड खोलिए। लघुकथाएं पढ़ने के लिए ‘अविराम विस्तारित: कथा प्रवाह’, क्षणिकाएं पढ़ने के लिए ‘अविराम विस्तारित: क्षणिका’, हाइकु, तांका आदि पढ़ने के लिए ‘अविराम विस्तारित: हाइकु व सम्न्धित विधाएं’, जनक छन्द व अन्य मात्रिक त्रिपदिक छन्द पढ़ने के लिए ‘अविराम विस्तारित: जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द’, कहानी पढ़ने के लिए ‘अविराम विस्तारित: कथा कहानी’, व्यंग्य रचनाएं पढ़ने के लिए ‘अविराम विस्तारित: व्यंग्य वाण’ पर क्लिक करें।
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5. पाठकों की डाक से प्राप्त प्रतिक्रियाएं हम सम्बंधित अंक के 'कमेन्ट' बोक्स में दर्ज कर देते हैं। जून २०११ अंक की प्रतिक्रियाएं दर्ज हैं। सम्बंधित (जून या जिस अंक पर प्रतिक्रिया भेजी हो) अंक के कमेन्ट बॉक्स को खोलकर पढ़ी जा सकती हैं। सितम्बर अंक पर प्रतिक्रियाएं जल्दी ही दर्ज कर दी जायेंगी।

सम्पादकीय पृष्ठ : अक्टूबर २०११

मेरा पन्ना/डा. उमेश महादोषी

  •  अविराम के सभी पाठकों एवं मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

  •  अविराम ब्लॉग का यह अंक कुछेक दिन बिलम्ब से आपके समक्ष प्रस्तुत हैयद्यपि अभी हमारे बहुत से पाठक इन्टरनेट के उपयोग एवं ब्लॉग के उपयोग के बारे में सामान्य जानकारी से भी भिग्य नहीं हैं जिसके कारण उनकी प्रतिक्रियाएं ब्लॉग पर प्रतिबिंबित नहीं हो पर रही हैं, फिर भी पत्र, फोन आदि के माध्यम से काफी मित्रों ने न सिर्फ अपना समर्थन जताया है, ब्लॉग पर सामग्री को पढ़ा भी है और खुशी भी जाहिर की हैउम्मीद है समय के साथ ब्लॉग रचनाकार एवं पाठक मित्रों के मध्य उपयोगी सिद्ध होगाहमने पाठकों की जानकारी के लिए ब्लॉग पर टिपण्णी दर्ज करने की संक्षिप्त जानकारी एक अलग लेवल के अंतर्गत दी है, आशा है पाठकों के लिए उपयोगी होगी ब्लॉग के सदस्य/समर्थक  बनने वाले सभी मित्रों का हार्दिक आभार

  • जैसा कि हमने पिछले अंक में लिखा था, क्षणिका पर हम एक प्रकाशन योजना बना रहे हैं, लेकिन हमें स्तरीय क्षणिकाएं पर्याप्त संख्या में प्राप्त नहीं हो पा रहीं हैं। 

  • हल्के-फुल्के  हास्य या घिसे-पिटे सपाट कथ्यों को क्षणिका कहना उचित नहीं है, ऎसी रचनाओं को क्षणिका के रूप में बहुत अधिक बढावा नहीं दिया जा सकता। यह बात हम सब समझते हैं कि अपने लेखन के महत्व को बनाये रखने एवं किसी भी प्रकाशन योजना को महत्वपूर्ण बनाने के लिए स्तरीय लिखना एवं स्तरीय रचनाओं को प्रकाशन हेतु उपलब्ध करवाना अत्यंत जरूरी है। 

  • क्षणिका लेखन को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है, यह निराशाजनक है। इसके पीछे कुछ कारण भी हैं। क्षणिका पर नियोजित कार्य भी बहुत कम हुआ है, पत्रिकाओं के विशेषांकों की बात हो या संग्रह-संकलनों की। हाइकु व जनक छंद के साथ  हमने अविराम का एक विशेषांक निकाला था जून २०११ में। अविराम में क्षणिका का एक स्तम्भ भी देने का प्रयास रहता है। 

  • वर्षों पूर्व हमने क्षणिका  का एक छोटा सा संकलन  और क्षणिका की एक लघु पत्रिका 'आहट' भी निकाली थी। व्यक्तिगत प्रयासों में उमेश महादोषी (स्वयम मैं) व श्री रमेश भद्रावले के क्षणिका संग्रह आये हैं। संभवत: मिथिलेश दीक्षित जी ने भी क्षणिका पर कार्य किया है। बलराम अग्रवाल जी ने भी क्षणिका को दिशा देने की कोशिश की है। छुटपुट रूप में कई कवियों की क्षणिकाएं देखने को मिलती हैं, पर नियोजित कार्य बेहद अपर्याप्त हैं। जल्दी ही 'सरस्वती सुमन' का भी क्षणिका विशेषांक हरकीरत 'हीर' के अतिथि संपादन में आने वाला है, जो स्वागतेय है। परन्तु प्रत्येक कार्य अंतत: रचनाकारों के क्षणिका लेखन व सहयोग पर ही निर्भर करेगा

  • यदि कवि मित्र क्षणिका को गंभीरता से लेकर अच्छी क्षणिकाएं भेजेंगे, तो हम क्षणिका पर नियोजित कार्यों में यथासंभव योगदान के लिए कृत-संकल्प हैं। आशा है मित्रों की अच्छी क्षणिकाएं  पर्याप्त संख्या में प्राप्त होंगी।



अविराम विस्तारित

इस अंक से रचनाओं के पठन की सुविधा एवं भविष्य में इन रचनाओं की उपयोगिता की दृष्टि अविराम विस्तारित को विधावार उपखण्डों- कविता अनवरत(विभिन्न काव्य रचनाओं का उपखण्ड), कथा प्रवाह (लघुकथा उपखण्ड), क्षणिकाएँ, जनक छन्द एवं अन्य त्रिपदिक छन्द, हाइकु एवं सम्बन्धित रचनाएँ, कथा कहानी (कहानी उपखण्ड), व्यंग्य वाण (व्यंग्य रचनाओं का उपखण्ड) में विभजित कर रहे हैं। अन्य वैचारिक  आलेख ‘अविराम विमर्श’ के अन्तर्गत ही जायेंगे। अगला अंक २० अक्टूबर २०११ तक प्रकाशित होगा आपकी प्रतिक्रियाएं दर्ज करके चर्चा में सहभागी बनें इससे हमारा उत्साहवर्धन होगा कृपया रचनाएँ सम्पादकीय पते-  डॉ.उमेश महादोषी, ऍफ़-४८८/२, गली-११, राजेंद्र नगर,रुड़की-२४७६६७, जिला- हरिद्वार (उत्तराखंड )  पर भेजें

।।सामग्री।।
अनवरत : हृदयेश्वर, हितेश व्यास, आचार्य भगवत दुबे, विद्याभूषण, दिनेश चन्द्र दुबे, प्रशान्त उपाध्याय, कृष्ण सुकुमार,  गांगेय कमल, डॉ.ए. कीर्तिबर्धन, पवन कुमार 'पवन' एवं टी. सी. सावन की कवितायेँ ।
संभावना : नवोदित कवयित्री विनीता चोपड़ा।

।।अनवरत।।

हृदयेश्वर






 सुप्रसिद्ध एवं वरिष्ठ गीतकार हृदयेश्वर जी का नया गीत संग्रह ‘धाह देती धूप’ इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है। यहाँ इसी संग्रह से प्रस्तुत हैं हृदयेश्वर जी के दो गीत -

मुझे बहुत भाता है

मुझे बहुत भाता है
देना चीजों को नाम!

विस्मयकारी हैं मेरे हर शब्द
कि ज्यों बोंसाई
जिनकी खातिर मैंने जाने
कितनी आग गँवाई
कितने दिन, कितनी रातों को
फूँका है अविराम!

हासिल मुझको जो दो-पल
वे चुम्बन जैसे कोमल
मेरे छंदों में छलकाते रहते
वे जीवन-जल
वे अकाल में सारस जैसे
हैं मन के सुखधाम!

वे रोटी हैं, माँ हैं
दृश्य छाया चित्र : रोहित काम्बोज    
आकर दुखती रग सहलाते
कल की नई उम्मीदों से
खाली जेबें भर जाते
वे कपिला गइया जैसे हैं
सीधे वो निष्काम!

वे मेरे बचपन के गुइयाँ
रंगों की पिचकारी
मेरे मन की चादर पर वे
सुंदर-सी फुलकारी
वे जन-मन को हलकाते-से
हैं सुख-दुख के राम!


धाह देती धूप
धूप दरवाजे पकड़कर खड़ी गुमसुम
हादसों के बीच
जलते इस शहर में!

हाथ में दिल को लिए ज्यों चल रहे हम
क्या पता गति भीड़ की कब रचे ताण्डव?
किस गली से दनदनाती मौत निकले
किस गली में कहर बनकर बम फटे कब?

खिड़कियों से रोज देखें हम सड़क पर
जिन्दगी को तोड़ते दम
निमिष भर में!

सुरक्षित अब शाम में घर लौट आना
है किले के फतह जैसा इस शहर में
इक अँदेशा खड़ा मग में जलजला-सा
घिसटते-से बढ़ रहे हम किन्तु-पर में

दिवस खाई तो कुएँ-सी रात पसरी
फँसे हम हैं
वक्त के पगले भँवर में!

उँगलियों पर गिन रहे हैं साँस अपनी
अब न बजती बाँसुरी-सी जिंदगी है
भोर में ज्यों धाह देती धूप निकले
नहीं गलबाँही कहीं, या पा-लगी है

कर तमस के हवाले आकाश मन का
त्रिशंकु से लटकते हम हैं
अधर में!

  • ‘गीतायन’, प्रेमनगर, रामभद्र (रामचौरा), हालीपुर-844101, जिला- वैशाली (बिहार)

हितेश व्यास









चेहरा
एक चेहरे की तलाश है
हर एक को
हर एक के पास है
एक चेहरा
एक चेहरा भीड़ में कहीं खो गया है
हो गया है हर आदमी का
एक चेहरा
दृश्य छाया चित्र : अभिशक्ति
एक चेहरा हर हाल में बचाना है
पाना है हर आदमी को
एक चेहरा

छोटी छोटी बात
छोटी छोटी बातों पर
मोटा मोटा ध्यान दिया
और तुमने क्या किया?
मोटी मोटी बातों को सहन कर गये
मोटे मोटे भार को वहन कर गये
छोटे छोटे बोझ को उठा न सके
छोटे छोटे बोझ से बार बार थके
जीवन को टुकड़ों में जिया
और तुमने क्या किया?

  • 1, मारुति कॉलोनी, पंकज होटल के पीछे, नयापुरा, कोटा-324001(राज.) 

आचार्य भगवत दुबे 









प्रश्न सारे ज्वलन्त धर आया

दर्द, अड़ियल सा मुसाफिर आया
पूछ बस्ती से मेरा घर आया

उसकी आँखों में हादसे पढ़कर
याद फिर खौफ़ का सफर आया
दृश्य छाया चित्र : अभिशक्ति

इम्तिहां छोड़, पुस्तिका में वह
प्रश्न सारे ज्वलन्त धर आया

ले के शुभकामना गया था मैं
चोट खाकर मिरा जिग़र आया

दोस्त के जिस्म की महक लेकर
तीर तरकस में लौटकर अया

शांति का जो कपोत भेजा था
खून से हो के तर-बतर आया


  • पिसनहारी-मढ़िया के पास, जबलपुर-482003 (म.प्र.)

विद्याभूषण











व्यंग्य दोहे 

।।1।।
करे ठिठौली समय भी, गर्दिश का है फेर।
यश वर्षा  की कामना,  सूखे का है दौर।।
।।2।।
नाम-दाम सब कुछ मिले, जिनके नाथ महंत।
कर्म करो, फल ना चखो,  कहे महागुरु संत।।
।।3।।
हरदम चलती मसखरी, ऐसी हो दूकान।
मौन ठहाके से डरे,  सद्गुण से इन्सान।।
।।4।।
दृश्य छाया चित्र : रोहित काम्बोज  
दस द्वारे का पींजरा,  सौ द्वारे के कान।
सबसे परनिन्दा भली,  चापलूस मेहमान।।
।।5।।
ऐसी बानी  बोलिए,  जिसमें लाभ अनेक।
सच का बेड़ा गर्क हो, मस्ती में हो शोक।।
।।6।।
आडम्बर का दौर है, सच को मिले न ठौर।
राजनीति के  दांव में,   पाखण्डी सिरमौर।।
।।7।।
राज रोग का कहर है, आसन सुधा समान।
जिसको कोई ना तजे, उसे परम पद जान।।

  • प्रतिमान प्रकाशन, शिवशक्ति लेन, किशोर गंज, हरमू पथ, रांची-834001 (झारखण्ड)


दिनेश चन्द्र दुबे










पाँव
भावों के जंगल में उभरे,
सपनें वाले गाँव।
शायद सूनी रात में महके,
पायल वाले पाँव।।

बदन की खुश्बू उभरी स्वर में,
उमड़ी मन अमराई,
पागल मनुआ लगा पकड़ने,
कल्पित-संग परछांई,
    प्यार बिना यूं लगता जीवन,
    उजड़ा जैसे गाँव।।

गोरे मुख पर लहराते वे,
गीले सूखे बाल,
दृश्य छाया चित्र : रोहित काम्बोज  
जलते-बुझते दीप नयन फिर,
देते जीवन ताल,
    यादों के कानन में उभरी,
    वही बरगदी छांव।।

गीतों का उपहार तुझे दूं,
या लिख भेजूं कविता,
स्वर का यह जादू उतार दूं,
कुछ कह मन-सुख-सरिता,
    और तुझे क्या बोल चाहिए,
    साथ चले ये पांव।।

  • 68, विनय नगर-1, ग्वालियर-12 (म.प्र.)


प्रशान्त उपाध्याय









ग़ज़ल

पतझड़ों के नाम फिर मधुमास लिख देना
हारता है मन मेरा विश्वास लिख देना

पीर कैकेयी ठान ले हठ जब कभी मेरी
तब खुशी के राम को वनवास लिख देना

देख लो यदि तुम बिलखता भूख से बचपन
जिन्दगी के नाम तब उपवास लिख देना

रेखांकन  : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा  
बात आये सुर्खियों में जब मेरे हक की
तृप्ति ले लेना सभी तुम प्यास लिख देना

कल कोई पहचान पूछे आज के युग की
सांस के हर पृष्ठ पर संत्रास लिख देना

हो गये वीरान से अब गांव सुधियों के
छन्द रचती गन्ध का अनुप्रास लिख देना

मन के दफ्तर में अनेकों फाइलें हैं दर्द की
जी सकूं अहसास कुछ अवकाश लिख देना

  • 364, शम्भू नगर, शिकोहाबाद-205135 (उ0प्र0)
कृष्ण सुकुमार










ग़ज़ल
किसी सूरत भी मुम्किन हो, हुनर से या दुआओं से
न बुझने दो  मुहब्बत के  चरागों  को हवाओं से

वफ़ा, इन्सानियत, ईमान, सच, मज़हब किसी की भी
हिफ़ाज़त  हो  नहीं पायी  सियासत के खुदाओं से

मुहब्बत, आर्जू,  सपने,  जुदाई,  जुस्तजू,  धोखे
बना है आदमी  मिलकर, इन्हीं  सारी खताओं से

बड़ा होकर बहुत अच्छा है  दानिशमन्द हो जाना
मगर मा‘सूमियत को  खो न देना  बद्दुआओं से

जिन्हें सुन कर बना लेता हूँ तश्वीरे मैं शब्दों की
मुझे आती हैं  आवाज़ें न  जाने किन ख़लाओं की
  • 193/7, सोलानी कुंज, भा.प्रौ.संस्थान, रुड़की-247667, जिला- हरिद्वार (उत्तराखण्ड) 

गांगेय कमल


वीरान खण्डहर
यहां कोठियां आलीशान
बेशुमार इन्सान
वहीं एक पुराना
खण्डहर वीरान
यूं ही चला गया
उधर
झाड़ झंकाड़
फैले जिधर
टूटी फूटी इमारत
जहां/रात सा पसरा
दिन में सन्नाटा है
देख रहा था उसको
और सोच रहा था
उसके वैभव को
अचानक लगा
जैसे कोई कह रहा
आज कैसे आये हो
लगता वक्त के सताये हो
कहो कैसे याद किया
यह वीराना/आबाद किया
हमारी तड़प
महसूस कर सकोगे
दृश्य छाया चित्र : रोहित काम्बोज  
दर्द हमारा
सुन सकोगे
ये मुर्झाये सूखे पत्ते
फड़फड़ाते पक्षी
सहमी सहमी गुमसुम हवा
कहती हमारी कहानी
सिसकियों की जवानी
कभी हम भी
गुलजार थे
हम भी शानदार थे।
हमारी भी आन थी
ऊँचे कंगूरे
बुलन्द दरवाजे
मेहराव प्यारे
दिलकश नजारे
चूड़ियों की खनखन
पायलों की रूनझुन
घोड़ों का हिनहिनाना
चिड़ियों का चहचहाना
जीवन का संगीत
मस्ती के गीत
जिनके लिए कभी
तरसते थे लोग
वो आज,
देखने वालों को
तरसते हैं!

  • ‘गांगेय’, शिवपुरी कालोनी, महिला विद्यालय, जगजीतपुर रोड, कनखल, हरिद्वार (उत्तराखण्ड)


पवन कुमार ‘पवन’         





 पेड़ तले
हमने जितना समय बिताया पेड़ तले
मौसम ने सब याद दिलाया पेड़ तले
          
पत्ता पत्ता मस्ती में झूमा  उस पल
जब तेरा  ऑचल लहराया पेड़ तले

सारा जीवन जो साया बन साथ चला
उसने भी ना साथ निभाया  पेड़ तले

ऐसे रूठी  धूप  न मेरे  पास   आई
उसको मैंने  बहुत बुलाया  पेड़ तले

मन में मन-चाहा पाने की आस लिये
आस्थाओं ने दीप  जलाया पेड़ तले

दृश्य छाया चित्र : अभिशक्ति  
चेहरे खिले परिंदों के मजदूर तनिक
खाना खाने को  सुस्ताया  पेड़ तले

सच्चाई पे अड़ा जान ही दे  बैठा -
लोगों ने इतना समझाया  पेड़ तले

गॉव निकाला निश्चित कलुआ को होगा
पंचों ने हुक्का सुलगाया  पेड़   तले

चौपालों में आज उसी  के गीत  सुने
कल जिसको फांसी लटकाया पेड़ तले

‘पवन’ तेरी परवाह किसे है ए सी में
तूने  यूं ही मन  भरमाया  पेड़ तले  

  • द्वारा बैंक आफ इंडिया, वि0 प0: शारदेन स्कूल,मेरठ रोड, मुजफ्फरनगर (उ0 प्र0)



डॉ0 ए. कीर्तिबर्द्धन










स्वप्नद्रष्टा
मैं स्वप्नद्रष्टा हूँ।
हरपल जिया करता हूँ।
ख्वाबों की दुनियां
हकीकत में बदलता हूँ।

बाधाएं मेरी चुनौती हैं।
लक्ष्य मात्र विश्राम के कुछ क्षण।

लक्ष्य पाने का मतलब ठहरना नहीं,
अपितु आगे बढ़ना है
नए लक्ष्य पाने तक।
लक्ष्य नाम है नए विश्वास का
एवं उत्साह के साथ
दृश्य छाया चित्र : राधेश्याम सेमवाल 
अनवरत बढ़ते जाने का।
व्यवधान रास्ता रोकने को नहीं
बल्कि प्रेरित करते हैं
नया मार्ग खोजने को।
इसलिए
कर्मठ व्यक्ति
सदैव आगे बढ़ते है।
तथा स्वयं महान बनकर
लक्ष्य को गौरान्वित करते हैं।
  •  53, महालक्ष्मी एंक्लेव, जानसठ रोड, मुजफ्फरनगर-251001 (उ0प्र0)




टी. सी. ‘सावन’
आग

आग............,
एक दिये में ज्योति बन
तिमिर दूर करती है।
दूसरी सीने में जलकर
राख कर देती है।
वैसे आग तो आग ही है
फर्क सिर्फ इतना है कि
दृश्य छाया चित्र : अभिशक्ति
एक दिखती है दीये में
लपटों के रूप में
दूसरी अमूर्त हैै।

और शायद जो लपटें
दिखाई नहीं देती
वो बेहद घातक होती हैं!

  • निदे.-माइन्ड पावर स्पोकेन इंगलिस इंस्टी., निकट सैन्ट पॉल स्कूल, जे.डी.ठाकुर हाउस, भन्जरारु, तह.-चुराह, जिला-चम्बा-176316 (हि.प्र.) 


।।सम्भावना।।

नवोदित रचनाकारों को प्रोत्साहन हेतु इस स्तम्भ का आयोजन किया जा रहा है। वरिष्ठ रचनाकार बन्धु अपने परिचित नवोदित रचनाकारों का मार्गदर्शन करें। उन्हें प्रोत्साहन देने हेतु इस स्तम्भ में रचनाएं भिजवायें। इस अंक में विनीता चोपड़ा की रचना भिजवाने के लिए हम वरिष्ठ साहित्यकार आद. डा. अशोक भाटिया जी के आभारी हैं।

विनीता चोपड़ा












तन्हाई
डसने लगी क्यूँ तन्हाई मुझको।
क्यूँ किसी की याद आई मुझको।

दर्द क्यूँ दिल को होने लगा है।
शायद जुदा कोई होने लगा है।
डराती है अपनी ही परछाई मुझको।
डसने लगी क्यूँ ...............

याद आया मुझे मौसम सुहाना।
जब दिल में किसी के था आसियाना।
रुलाती है आज जुदाई मुझको।
डसने लगी क्यूँ ...............

तब कोई पास होकर भी दूर लगता था।
आज दूर होकर भी करीब लगता है।
क्यूँ आदत अपनी लगाई मुझको।
डसने लगी क्यूँ ...............

जब किसी ने दामन हमारा था थामा।
हमने भी अपना हमसफर था माना।
फिर क्यूँ छोड़ गया हरजाई मुझको।
डसने लगी क्यूँ ...............

बीच मझधार में छोड़ दिया उसने।
बनाकर अपना दिल तोड़ दिया उसने।
बिना कसूर दे गया जुदाई मुझको।
डसने लगी क्यूँ ...............

दृश्य छाया चित्र : पूनम गुप्ता 
भले पास अपने कुछ पल थे खुशी के।
वो भी दिन क्या खूब थे जिन्दगी के।
काली नजर किसने लगाई मुझको।
डसने लगी क्यूँ ...............

खुशियाँ हमें रास न आई।
धीरे-धीरे पड़ गई जुदाई।
हिजर में क्यूँ न मौत आई मुझको।
डसने लगी क्यूँ ...............

विराना भी अपना लगने लगा है।
गुजरा वक्त सपना लगने लगा है।
गम ‘विनीता’ के दिखाई दें मुझको।

  •  द्वारा डा. प्रताप सिंह, गाँव- बीड़मारा, डाक- सग्गा, तह. नीलोखेड़ी, जिला- करनाल (हरि.)