अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 2, अंक : 9-10, मई-जून 2013
।।मेरा पन्ना ।।
।।मेरा पन्ना ।।
- मेरी व्यक्तिगत व्यस्तताओं के कारण ब्लॉग समय पर पोस्ट नहीं हो पा रहा है। मई-जून के अंक को संयुक्त करना पड़ा। इस अंक से हमने सम्पादकीय पृष्ठ को भी मुख पृष्ठ से अलग कर दिया गया है। जुलाई का अंक लगभग तैयार है, कुछ ही दिनों के अंतर से उसको पोस्ट कर दिया जायेगा।
- मित्रो, मुद्रित "अविराम साहित्यिकी" के क्षणिका विशेषांक के प्रकाशन के लिए हम प्रतिसद्ध हैं, यद्यपि अपेक्षानुसार सामग्री नहीं प्राप्त हो पाई है। जो मित्र अपनी क्षणिकाएं नहीं भेज पाए हैं, वे अभी भी 25 सितम्बर 2013 तक भेज सकते हैं।
- लघुकथा विशेषांक में शामिल न हो पाने की शिकायत कई मित्रों ने की थी, उसको ध्यान में रखते हुए हम सभी मित्रों से पुन: अनुरोध करते हैं- हास्य-व्यंग्य, सपाट बयान /सामान्य कथ्यों, चुटुकुलेनुमा, परिभाषानुमा वाक्यांशों को क्षणिका के नाम पर न भेजें। स्तरीय क्षणिकाएं भेजेंगे, तो हमारे पास आपकी रचनाओं को शामिल करने के लिए अभी पर्याप्त गुंजाईश है। जो मित्र क्षणिका पर हमारे दृष्टिकोण को समझना चाहें, उनके लिए इस ब्लॉग पर क्षणिकाओं का एक स्तम्भ तो है ही, फ़िलहाल दो आलेख भी उपलब्ध हैं। निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते है-
- अविराम विमर्श
- क्षणिका पर बहस और विमर्श में भी आप सब आमंत्रित हैं। इसकी सूचना मुद्रित अंक (जुलाई-सितम्बर 2013) में दी गयी है। इसी पृष्ठ पर नीचे भी हम उस सूचना को दे रहे हैं। कृपया उसे अवश्य पढ़ें और बहस एवं विमर्श में सहभागी बनें।
- कृपया ई मेल से सामग्री हर हाल में कृतिदेव 010 या यूनीकोड फोन्ट (मंगल) में ही भेजें।
- पत्रिका का सदस्यता शुल्क कृपया रुड़की पर देय सी टी एस चेक या बैंक ड्राफ्ट द्वारा ही भेजें, धनादेश (मनिआर्डर) द्वारा न भेजें। मुद्रित प्रारूप के आजीवन सदस्यों के लिए एक निर्णय यह लिया गया है कि यदि किन्हीं प्रतिकूल परिस्थितियों में इसका प्रकाशन बिना कोई समकक्ष/उपयुक्त विकल्प दिए बन्द होता है, तो आजीवन सदस्यों को उनकी सदस्यता की तिथि से पत्रिका बन्द होने की तिथि के मध्य के वर्षों के वास्तविक वार्षिक सदस्यता शुल्क का समायोजन करके शेष राशि वापस कर दी जायेगी। उम्मीद है इससे लघुपत्रिकाओं के प्रति एक विश्वास की परंपरा बनेगी और रचनाकार-पाठकों का अविराम साहित्यिकी के आजीवन सदस्य बनने में संकोच कुछ कम होगा।
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क्षणिका विशेषांक हेतु
बहस : अक्टूबर-दिसम्बर 2013 अंक
अलग विधा के मानक आधार और क्षणिका
समय के साथ साहित्य में कई तरह के परिवर्तन होते हैं, इनमें नई विधाओं की उत्पत्ति भी शामिल है। पिछली शताब्दी में नई कविता, लघुकथा, क्षणिका आदि के उदाहरण सामने हैं। अनेक विरोध और अस्वीकार के बावजूद ये विधाएँ स्थापित हुई हैं, तो इसके पीछे निसन्देह कुछ ठोस कारण रहे हैं। पर देखने में आया है कि किसी विधा में छोटे-मोटे परिवर्तनों के साथ उसे एक नया नाम देकर अलग विधाओं के जनक बनने की होड़ साहित्य में अनेक भ्रमों और विवादों को जन्म दे जाती है। नई कविता, लघुकथा आदि के सापेक्ष भी कई उदरहरण सामने आए। आज भी यह क्रम जारी है। ऐसे में क्या उचित नहीं होगा कि किसी भी साहित्यिक रचना के लिए एक नई विधा होने के कुछ स्पष्ट व सामान्य मानक आधार हों, जिनके सापेक्ष अन्य विधाओं से भिन्नता के आधार पर ही किसी रचना(ओं) को नई विधा की मान्यता दी जाये? तो ये मानक आधार क्या होने चाहिए? रूपाकार और शिल्प संबन्धी आधारों के साथ क्या विषय-वस्तु एवं वैचारिक स्तर भी कोई ठोस आधार हो सकते हैं? दूसरी बात सामान्यतः स्थापित नई विधाओं की उत्पत्ति किसी कालखण्ड की घटनाओं एवं प्रयोगों के ग्राह्य प्रभावों के संविलयनस्वरूप विकास की एक प्रक्रिया के रूप में होती पाई गई है, लेकिन कई सृजक अपने कुछ प्रयोगों को ही स्थापित विधाओं के सापेक्ष नवीन विधा घोषित करते रहे हैं, क्या इस प्रवृत्ति को स्वीकार किया जाना चाहिए?
मानक आधारों की कसौटी पर क्षणिका को अलग विधा का दर्जा देने पर आपका मत क्या है?
नवीनता के स्वागत के साथ अनेक विधागत विवादों में ऊर्जा के अपव्यय और भ्रम के वातावरण से भी मुक्ति का रास्ता खुल सकता है, यदि नई विधाओं की मान्यता के लिए कुछ सामान्य व स्पष्ट मानक सामने हों। इस बहस में शामिल होने के लिए आप अपने संक्षिप्त-संश्लिष्ट विचार हमें 30 सितम्बर 2013 तक अवश्य भेज दें। ई मेल से भी कृतिदेव 010 या यूनीकोड फोन्ट में टाइप करके भेज सकते हैं।
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अविराम साहित्यिकी के विशेषांक हेतु क्षणिका-विमर्श
क्षणिका से जुड़े मित्र अपनी क्षणिकाओं के साथ क्षणिका विमर्श में सहभागी बन सकते हैं। विमर्श हेतु निम्न प्रश्नों के परिप्रेक्ष्य में क्षणिका पर अपने संक्षिप्त और संश्लिष्ट विचार हमें लिख भेजें। क्षणिका लेखन की ओर आप कब और किन कारणों से आकर्षित हुए? क्षणिका में किन तत्वों की उपस्थिति के कारण आप इसे काव्य की स्वतंत्र विधा मानते हैं? क्या आपको लगता है कि क्षणिका में बिम्ब की उपस्थिति संप्रेषण को प्रभावी बनाती है? क्या आपको लगता है कि बहुधा सपाटबयानी से क्षणिका काव्यगत प्रभाव/काव्य-सौंदर्य से वंचित हो जाती है? क्या क्षणिका समकालीन समस्याओं, मानवीय सरोकारों और जीवन मूल्यों पर अन्य काव्य विधाओं के सापेक्ष कहीं अधिक प्रभावी और तीव्र संप्रेषण देती है? इसी परिप्रेक्ष्य में क्या आपको लगता है कि क्षणिका को हल्के-फुल्के हास्य और चुटुकुलेबाजी से बचाना जरूरी है? लघ्वाकार के परिप्रेक्ष्य में आपको क्षणिका में मौलिक लेखन की कितनी संभावना लगती है? आपको अपनी क्षणिका रचनाएं क्षणिका की विधागत कसौटी पर कहाँ तक और कैसे उपयुक्त लगती हैं?
उमेश जी ,
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा प्रेषित अविराम पत्रिका मिली .... साथ ही आपके द्वारा लिखा एक नोट भी .... क्ष्निका विशेषांक के लिए विमर्श और क्षणिकएन क्या ई मेल के द्वारा भेजी जा सकती हैं ? कृपया मेरे मेल आई डी पर सूचित करें ---
sangeetaswarup@gmail.com