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मंगलवार, 20 अगस्त 2013

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष :  2,  अंक :  9-10,  मई-जून 2013

।।हाइकु ।।


सामग्री :  इस अंक में डॉ. मिर्ज़ा हसन नासिर की हाइकु आधारित रचनाएँ।



डॉ. मिर्ज़ा हसन नासिर




{वरिष्ठ कवि डॉ. मिर्ज़ा हसन नासिर की पुस्तिका ‘हाइकु-काव्य में मेरे नवीन प्रयोग’ हाल ही में प्रकाशित हुई है। विगत दिनों काव्य के विभिन्न रूपों में हाइकु के प्रयोग होते देखे गए हैं। इन प्रयोगकर्ताओं में नासिर साहब भी शामिल रहे हैं। उनके द्वारा लिखे कुछ हाइकु दोहे, हाइकु ग़ज़ल, हाइकु रुबाइयाँ, कुछ अन्य हिन्दी छंदों में हाइकु के प्रयोग आदि जैसी रचनाएँ इस संग्रह में शामिल हैं। कुछ रचनाएँ हाइकु सदृश अन्य वार्णिक काव्य रूप भी इस पुस्तिका में शामिल हैं। इसी पुस्तिका से कुछ रचनाएँ अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।}


हाइकु-गीत

सावन आया
जलधर गरजें
नैना बरसें।

भूखे-बेकल
अगणित जन हैं
कैसे सरसें।

घर में कोई
कब तक ठहरे
ओले बरसें।

भीगा मौसम
पर तन सुलगे
कैसे हरषें।

‘नासिर’ डूबा
विरह-जलधि में
आँखें तरसें।

कुछ हाइकु-रुबाइयाँ

1.
निज देश के/मरु-मरु को हरा/वन कर दें,
चन्दन-सा ही/तरु-तरु का निरा/तन कर दें।
हम खुद को/करें सजग सदा/अब ‘नासिर’,
निज बाग़ का/कुन्दन की तरह/मन कर दें।
2.
खिलते यहाँ/अनुराग-सुमन/मधुबन में,
नव ज्ञान के/खग भरते रस/जन-जन में।
नफ़रत के/झुलसते हैं यहाँ/शूल समूल,
दर्शन की हैं/उड़ती तितलियाँ/मन-वन में।
3.
दिशि-दिशि में/नज़र घपले ही/घपले आये,
दहशत के/सघन जलधर/‘नासिर’ छाए।
महँगाई भी/अब ग़दर मचा/देती है नित,
जन-जन है/विकल हरदम/सुख क्या पाये।

हाइकु-रोला

बाग़ों में हम/सुमन, खिलाकर/गंध लुटायें
गीत मधुर/मधुकण्ठ, गज़ालें/ग़ज़लें गायें।
भ्रमर-वृन्द/नव छन्द, बयारें/साज बजायें,
आओ! ‘नासिर’/एक, नवल अब/स्वर्ग बनायें।
  • जी-02, लोरपुर रेजीडेन्सी, डॉ. बैजनाथ रोड, न्यू हैदराबाद, लख्नऊ-226007, उ.प्र.

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