आपका परिचय

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

60. प्रताप सिंह सोढ़ी

प्रताप सिंह सोढ़ी





जन्म : 16 मार्च 1946। 
शिक्षा :  हिन्दी, इतिहास, एवं समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर एवं एम.एड.।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :   मूलतः लघुकथाकार, कहानी, कविता, व्यंग्य, समीक्षा आदि में भी दख़ल। अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं एवं संकलनों में रचनाएं प्रकाशित। ‘शहादत’ एवं ‘संप्रति’ मासिक एवं ‘काव्यकुंज’ त्रैमासिक पत्रिकाएं, ‘समप्रभ’ एवं ‘लघुकथा संसार: माँ के आसपास’ (लघुकथा संकलन) आदि का सम्पादन। सोढ़ी जी ने उर्दू व पंजाबी कहानियों का हिन्दी में अनुवाद भी किया है। आपकी अपनी लघुकथाओं का उर्दू, तेलगू एवं पंजाबी में अनुवाद हुआ है। प्रकाशित कृति: शब्द संसार (लघुकथा संग्रह)।
सम्मान :  जन संस्कृति शोध संस्थान, उज्जैन द्वारा ‘सारस्वत सम्मान’ व म.प्र. लेखम संघ, भोपाल द्वारा ‘पार्वती मेहता सम्मान’ सहित कई प्रमुख सम्मानों से विभूषित।
सम्प्रति :  प्राचार्य पद से सेवानिवृत होकर पूर्णतः साहित्य सेवा में रत हैं।
सम्पर्क :  5, सुखशांति नगर, बिचौली-हप्सी रोड, इन्दौर (म0प्र0)
फोन :  07311-2591837 / मोबाइल : 09039409969


अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :  सितम्बर-दिसम्बर 2010 अंक में तीन लघुकथाएँ- ‘सत्य का अहसास’, ‘ढहती जिन्दगी’ एवं ‘स्वाभिमान’।
                        जून 2011 अंक में दो हाइकु एवं दो क्षणिकाएँ।
                       दिसम्बर 2011 अंक में एक लघुकथा ‘विरासत’।

 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अभी नहीं



नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
२. उपरोक्त परिचय हमें भेजे गए अथवा हमारे द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. किसी भी त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं. त्रुटि के बारे में रचनाकार द्वारा हमें सूचित करने पर संशोधन कर दिया जायेगायदि रचनाकार अपने परिचय में कुछ अन्य सूचना शामिल करना चाहते हैं, तो इसी पोस्ट के साथ के टिपण्णी कॉलम में दर्ज कर सकते हैं। यदि किसी रचनाकार को अपने परिचय के इस प्रकाशन पर आपत्ति हो, तो हमें सूचित कर दें, हम आपका परिचय हटा देंगे

59. मंजु मिश्रा

मंजु मिश्रा





जन्म : उत्तर प्रदेश लखनऊ, शिक्षा: विज्ञान में स्नातक व हिन्दी में परास्नातक।
लेखन/प्रकाशन/योगदान : मूलतः कविता, हाइकु एवं क्षणिका लेखन। अनेक पत्र-पत्रिकाओं व संकलनों में प्रकाशन। कई प्रमुख बेव पत्रिकाओं में भी प्रकाशन। 1993 से अब तक रेडियो सलाम नमस्ते, फनएशिया एवं रेडियो ह्यूस्टन पर कविता पाठ। मंच संचालन, मनोरंजन एवं संगीत में रुचि। घर परिवार और व्यावसायिक व्यस्तताओं के चलते एक अर्से तक साहित्य से दूर रहने के बाद पिछले कुछ वर्षों से अपने पति की प्रेरणा और उत्साहवर्धन से पुनः साहित्य में सक्रिय। 

वर्तमान निवास :  कैलिफोर्निया।
ई मेल- manjumishra@gmail-com

 


अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : जून 2010 अंक में चार छोटी कविताएँ।
                        जून 2011 अंक में दस हाइकु एवं चार क्षणिकाएँ।

 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) :   नवम्बर 2011 अंक में पाँच क्षणिकाएँ।



नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
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58. महेश चंद्र पुनेठा

महेश चंद्र पुनेठा





जन्म : 10 मार्च 1971 ग्राम सिरालीखेत, जिला-पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) में। जीवन यापन इसी जनपद के लम्पाटा गॉव में बसे।
शिक्षा :  प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा जनपद में ही ग्रहण करते हुए एम0ए0 (राजनीति शास्त्र) किया।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  लोक और जनपदीय चेतना के प्रमुख और प्रखर कवि के रूप में पुनेठा जी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति का अहसास कराया है। लेकिन यह चेतना युवा पुनेठा जी के लिए सिर्फ कविता का बिषय नहीं है, अपने जनपद में इस चेतना को जागृत करने के लिए साहित्यिक एवं सांस्कृतिक स्तर पर विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से वह सक्रिय व समर्पित भूमिका भी निभाते हैं। उनकी सक्रियता का एक दूसरा पक्ष भी है, यदि दूरदराज के बच्चों को सही शिक्षा सही तरीके से मिल पाये तो इन अंचलों में लोक चेतना को जागृत करने का काम भी आसान हो सकता है और साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रभावी तरीके से चलाया जा सकता है। इसलिए वह बच्चों के लिए रोचक एवं भयमुक्त शिक्षा के वातावरण सृजन एवं वैज्ञानिक चेतना के विकास के उद्देश्य से गठित ’रचनात्मक शिक्षक मंडल‘ ’शैक्षिक नवाचार मंच‘ ’दृष्टिकोण‘ आदि शैक्षिक संस्थाआंे की स्थापना हेतु पहलकदमी भी करते हैं। जनपदीय काव्य प्रतिभाओं को मंच प्रदान करने के उद्देश्य से ’काव्यांकुर‘ नाम से एक कविता फोल्डर के संपादन एवं प्रकाशन से संबद्ध। कुछ पत्रिकाओं के विशेषांकों का सम्पादन। देश भर से निकलने वाली छोटी -बड़ी जनपक्षधर पत्रिकाओं का संग्रह कर एक अध्ययन केंद्र की स्थापना की दिशा में प्रयासरत। भय अतल में (कविता संग्रह ) आपकी प्रकाशित  कृति।
सम्मान :  सूत्र सम्मान 2010 से विभूषित।
सम्प्रति :  अध्यापन।
सम्पर्क :  जोशी भवन,निकट लीडबैंक, जिला-पिथौरागढ़ 262530(उत्तराखंड)।
मो0- 9411707470
ई मेल :  punetha.mahesh@gmail.com

अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :  अविराम सितम्बर-दिसम्बर 2010 अंक में ‘सूत्र सम्मान समारोह’ में दिये गये आत्मवक्तव्य का प्रमुख अंश ‘ मेरा परिवेश और मेरी कविता’।
सितम्बर 2011 अंक में तीन कविताएँ- ‘दुपहिया चलाती युवतियाँ’, ‘बाजार समय’, ‘कभी भी नहीं मर सकता’ एवं ‘ताकि’

 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : दिसम्बर 2011 अंक में दो  कवितायेँ- 'प्रार्थना' व 'गमक' 



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57. कृष्ण सुकुमार

कृष्ण सुकुमार





जन्म : 15.10.1954।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  कवि व कथाकार के रूप में सुकुमार जी ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। सौ से अधिक पत्र-पत्रिकाओं व दो दर्जन से अधिक संकलनों में कविताएं व कहानियां प्रकाशित। तीन उपन्यास (इतिसिद्धम्, हम दोपाये हैं एवं आकाश मेरा भी), दो कहानी संग्रह (सूखे तालाब की मछलियां एवं उजले रंग मैले रंग) तथा एक ग़ज़ल संग्रह (पानी की पगडंडी) सुकुमार जी की प्रकाशित कृतियां हैं।
सम्मान :  कई प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित।
सम्प्रति :  भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की में कार्यरत। कवि सम्मेलनों में भी सहभागिता।
सम्पर्क :  193/7, सोलानी कुंज, आई.आई.टी., रुड़की-247667, जिला-हरिद्वार (उत्तराखण्ड)
फोन : 09897336369
ईमेल : kktygi.1954@gmail.com 




अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप : अविराम सितम्बर-दिसम्बर 2010 अंक में चार ग़ज़लें।
 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अक्टूबर 2011 अंक में एक ग़ज़ल।
                                                            दिसम्बर 2011 अंक में एक ग़ज़ल।


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56. पारस दासोत

पारस दासोत 






जन्म : 14 अगस्त 1945। 
शिक्षा : भूगोल में स्नाकोत्तर एवं विधि स्नातक।
लेखन/योगदान/प्रकाशन :  सुप्रसिद्ध लघुकथाकार दासोत जी उन साहित्यकारों में से एक हैं जिनका लेखन मुख्यतः लघुकथा पर ही केन्द्रित रहा है। दासोत जी मूलतः प्रयोगधर्मी लघुकथाकार हैं। दासोत जी राष्ट्रीय स्तर के चित्रकार भी हैं। आपकी बहुत सारी प्रदर्शनी भी लगी हैं। ‘एक और अभिमन्यु’, ‘प्रयोग’, ‘तेरी मेरी उसकी बात’, ‘मेरी मानवेतर लघुकथायें’ आदि सहित आपके लगभग एक दर्जन लघुकथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं। दासोत जी की लघुकथाओं एवं व्यक्तित्व पर आधारित स्नातकोत्तर स्तर के पांच लघुशोधों के अलावा पी-एच.डी. स्तर पर भी (जो सूचनानुसार लघुकथा का पहला शोध है) एक शोध हुआ है। नेट पर www.parasdasot.com  पर उपलब्ध। 

सम्मान :  ‘लघुकथा महोपाध्याय’ की मानद उपाधि सहित साहित्य एवं कला दोनों क्षेत्रों में योगदान हेतु लगभग डेढ़ दर्जन सम्मान।
सम्प्रति :  कला एवं लेखन को समर्पित।
सम्पर्क :  प्लॉट नं.129, गली नं.9 (बी), मोतीनगर, क्वींस रोड, वैशाली, जयपुर-301021 (राज.)
फोन :  09413687579

वेबसाइट :    www.parasdasot.com 



अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :  सितम्बर-दिसम्बर 2010 में चार लघुकथाएँ- दादी माँ, एक अकेला दर्द, मर्यादा पुरुष एवं घायल ठहाके।
              दिसम्बर 2011 अंक में एक लघुकथा

 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अक्टूबर 2011 अंक में एक लघुकथा ‘अन्ना’



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55. गोवर्धन यादव

गोवर्धन यादव



जन्म : 17.07.1944 को मुलताई (बैतूल), म0प्र0।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  कविता, कहानी, लघुकथा, व्यंग्य एवं यात्रा संस्मरण। देश भर की अनेक प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। आकाशवाणी से रचनाओं का प्रसारण। जूती, फांस एवं जंगल (कहानियां), नदी के डेश-डॉट (कविता) तथा दक्षिण भारत की सुरम्य यात्रा (यात्रा संस्मरण) आपकी विशेष पुरस्कृत/चर्चित रचनाएं रही हैं। यादव जी की प्रकाशित कृतियों में महुआ के वृक्ष, अपना-अपना आसमान एवं तीर बरस घाटी (तीनों कहानी संग्रह) प्रमुख हैं। 

सम्मान :  म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा ‘सारस्वत सम्मान’ व रा. राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘भारती रत्न’ सहित कई प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत।
सम्प्रति :  पोस्टमास्टर के पद से सेवानिवृत होने के बाद स्वतन्त्र लेखन एवं म0प्र0 राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, जिला इकाई छिन्दवाणा के अध्यक्ष।
सम्पर्क : 103, कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा-480001 (म.प्र.)
फोन : 07162-246651/मोबा. 09424356400








अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :   सितम्बर-दिसम्बर 2010 में कविता ‘कपसीले बादल’
 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : दिसम्बर 2011 अंक में एक लघुकथा- 'दस्तूर'



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54. दिनेश चन्द्र दुबे

दिनेश चन्द्र दुबे







जन्म : 20 जून 1942 को दतिया (म0प्र0) में। 
शिक्षा : बी.ए., एल.एल.बी.।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  लेखन विधाएं कविता एवं कहानी परन्तु मूलतः कथाकार। बहुत सी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। विभिन्न स्तरों पर सम्मानित। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण। कवि-सम्मेलनों में सक्रिय भागीदारी।  दुबे जी की कविता, कहानी एवं बाल-कथा आदि विषयक 17 प्रकाशित पुस्तकों में टूटा हुआ अनन्तराल, मेरी प्रिय कहानियाँ, तबादला, हस्तक्षेप, अनुकम्पा (सभी कहानी संग्रह), अहसासों के स्वर (काव्य संग्रह) आदि प्रमुख है।
सम्प्रति :  अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत उपरान्त म0प्र0 उच्च न्यायालय की ग्वालियर खण्डपीठ में अधिवक्ता के रूप में कार्यरत एवं साहित्य को समर्पित।
सम्मान :  उपेन्द्र नाथ अश्क सम्मान (इलाहाबाद) , देवभूमि गद्य साहित्य सम्मान (ऋषिकेश), आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान (रायबरेली) आदि सहित अनेकों सम्मान/पुरस्कार व मानद उपाधियाँ।
सम्पर्क : 68, विनय नगर-1,, ग्वालियर-474012 (म0प्र0)
फोन : 0751-2481684, मोबाइल- 09301104227




अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :  सितम्बर-दिसम्बर 2010 में कविता ‘एक दिन का सफर’
                        दिसम्बर 2011 अंक में एक लघुकथा

 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अक्टूबर 2011 अंक में एक गीत ‘पाँव’
                                                           दिसम्बर 2011 अंक में एक लघुकथा- 'ग्रीटिंग्स'



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53. नूर मुहम्मद ‘नूर’

नूर मुहम्मद ‘नूर’






ग़ज़ल के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर एवं समीक्षक-स्तम्भकार।
सम्पर्क : सी.सी.एम.क्लेम्स लॉ, दक्षिण पूर्व रेलवे, 3, कोयला घाट स्ट्रीट, कोलकाता-1







अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :  सितम्बर-दिसम्बर 2010 अंक में एक ग़ज़ल।
 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : सितम्बर 2011 अंक में एक ग़ज़ल।



नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
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52. हृदयेश्वर

52. हृदयेश्वर 






जन्म : 10 जनवरी 1946 को पूर्वी चम्पारन के ग्राम ऊँचीभटिया में। 
शिक्षा : स्नातक।
लेखन/प्रकाशन/योगदान :  नवगीत के स्थापित हस्ताक्षर। अनेकों प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। अनेक साहित्यिक पत्रों के सम्पादन में सहयोग। ‘आँगन के ईच-बीच’, ‘बस्ते में भूगोल’ व ‘धाह देती धूप’ (गीत संग्रह) तथा ‘मुंडेर पर सूरज’ (काव्य संग्रह) प्रकाशित कृतियाँ।
सम्मान : बिहार सरकार के प्रतिष्ठित राजभाषा सम्मान (2002) व रामइकबाल सिंह ‘राकेश’ स्मृति समिति, मुजफ्फरपुर (बिहार) के ‘गंध ज्वार सम्मान’ सहित  के साथ-साथ हृदयेश्वर जी को कई स्तरों पर सम्मानित किया गया है।
सम्प्रति : लेखन को समर्पित।
सम्पर्क :  ‘गीतायन‘, प्रेमनगर, रामभद्र (रामचौरा), हाजीपुर-844101, वैशाली (बिहार)
फोन : 09801171867



अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :  सितम्बर-दिसम्बर 2010 अंक में गीत- ‘मत्स्यगंधा’
 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अक्टूबर 2011 अंक में दो गीत- ‘मुझे बहुत भाता है’ एवं ‘ धाह देती धूप’



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51. डॉ0 पुरुषोत्तम दुबे

डॉ0 पुरुषोत्तम दुबे






जन्म : 24.09.1947। 
शिक्षा :  एम.ए.(हिन्दी), पी-एच.डी.।
लेखन/प्रकाशन/योगदान : वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद दुबे जी ने कविता, ग़ज़ल, कहानी, निबन्ध एवं समीक्षा आदि लगभग सभी विधाओं में लेखन किया है। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। ‘सीढ़ियां और शिखर’(निबन्ध संग्रह) एवं ‘एक नजर प्यार की’ (लम्बी कविता) प्रकाशित कृतियां। 
सम्प्रति : शोध संस्थान में प्राचार्य।
सम्पर्क : शशीपुष्प, 74 जे, सैक्टर-ए, स्कीम नं. 71, इन्दौर-452009 (म0प्र0)

                  


अविराम में आपकी रचनाओं का प्रकाशन   

मुद्रित प्रारूप :  सितम्बर-दिसम्बर 2010 में तीन ग़ज़लें
                         जून 2011 अंक में दो हाइकु एवं एक क्षणिका
 
ब्लॉग प्रारूप (अविराम विस्तारित) : अभी कोई नहीं 



नोट : १. परिचय के शीर्षक के साथ दी गयी क्रम  संख्या हमारे कंप्यूटर में संयोगवश  आबंटित  आपकी फाइल संख्या है. इसका और कोई अर्थ नहीं है
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मंगलवार, 22 नवंबर 2011

सम्पादकीय पृष्ठ : नवम्बर २०११

मेरा पन्ना/डा. उमेश महादोषी

  • पिछले माह में कई मित्रों ने ब्लॉग की सदस्यता ग्रहण की है, सभी के हम ह्रदय से आभारी हैं. धीरे-धीरे अविराम का यह  ब्लॉग संस्करण अपनी गति पकड़ रहा है.फिर भी इस थोड़े  से समय में जितने मित्र हमारे साथ जुड़े हैं, वह उत्साहबर्धक है.

  •  क्षणिका पर आपकी अच्छी रचनाओं एवं आलेखों की हमें प्रतीक्षा रहेगी. अविराम का  मुद्रित संस्करण  का नया अंक दिसंबर के तीसरे सप्ताह तक ही आ सकेगा. सदस्यता शुल्क के बारे में उपयुक्त  सूचना हम मुद्रित में ही देंगे, तब तक कृपया कोई राशि हमें न भेजें.

     

     

     यदि किसी पाठक मित्र को ब्लॉग पर किसी सामग्री विशेष को खोजने या अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने में कठिनाई हो रही है तो कृपया निम्न लिंक पर क्लिक करके आवश्यक जानकारी हासिल करें- 

     http://aviramsahitya.blogspot.com/search/label/ब्लाग को पढ़ना और प्रतिक्रिया दर्ज करना

     

    अविराम विस्तारित

    ।।कविता अनवरत।।
    सामग्री : किशन कबीरा, नारायण सिंह निर्दोष, शशिभूषण बड़ोनी, रुक्म त्रिपाठी, बाबा कानपुरी, केशव शरण, डा. विजय प्रकाश,  नरेश कुमार उदास, शिवानन्द सिंह सहयोगी, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, सत्येन्द्र तिवारी, नित्यानंद ‘तुषार’ व सनातन कुमार बाजपेयी की कवितायेँ 



    ।।कविता अनवरत।।
    किशन कबीरा

    {समकालीन कविता के सुपरिचित कवि किशन कबीरा का कविता संग्रह ‘ दलित  टोला' इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत है। इसी संग्रह  से उनकी एक प्रतिनिधि कविता।}

    एकलव्य और अर्जुन

    उसके कच्चे-कवैलू वाले घर में
    न पढ़ाई के लिए कोई जगह है
    नहीं बिजली के प्रकाश की कोई व्यवस्था
    अल सुबह ही
    जुत जाते घर की गाड़ी में
    बैलों के साथ बछड़े भी

    पुस्तकें आधी-अधूरी
    सहपाठियों से मांगी-तागी
    और स्कूल की फीस
    सरकारी खाते से
    तब भी
    बड़ी मुश्किल से निकल पाता समय
    पढ़ाई के लिये
    बुझती-झपकती लालटेन के प्रकाश में
    रात-रात भर पढ़कर उसे करनी है प्रतिस्पर्धा अर्जुन से

    वह जानता है
    उसे कभी नहीं मिला
    आशीर्वाद द्रोणाचार्य का
    लेकिन
    मिलने पर वह
    ज़रूर मांग लेगा दाहिना अंगूठा
    गुरु-दक्षिणा के नाम पर

    रेखांकन : सिद्धेश्वर
    उसे कटे हुए अँगूठे की पीड़ा के साथ
    टकराना होगा
    सर्व सुविधा सम्पन्न अर्जुन से
    अर्जुन जिसे शिक्षित-प्रशिक्षित करने में लगी है
    द्रोणाचार्यों की पूरी जमात
    सब जानते हैं
    वे ही गुरु हैं उसके
    और परीक्षक भी
    और उनका शिष्य प्रेम जग जाहिर

    • कबीरा कॉटेज, कबूतरखाने के पास, राजसमन्द-313326 (राज.)

    नारायण सिंह निर्दोष






    ग़ज़ल

    काटती  रितु सर्द है  यारो!
    सूरज, उनके सुपुर्द है यारो!

    सिगरेट तुमने पी, धुआँ-
    हमारे इर्द-गिर्द है यारो!

    उनको रोग पीलिया नहीं
    बदन पै चढ़ी हर्द है यारो!

    छोटी-बड़ी आँतें लड़ रहीं
    पेट में सिर दर्द है यारो!

    कविता

    जब भी/मैं कुचला गया हूँ
    ट्रेफिक से
    अक्सर पाया गया हूँ
    अपने हाथ पर चलता हुआ
    (मंजिल पाने तक)
    उतरना पड़ा बेशक
    अपने हाथ से फुटपाथ पर
    या फिर/अपने ही दूसरे हाथ पर
    मंजूर है मुझे
    क्योंकि/मैं जानता हूँ
    नहीं होगा मेरा जिक्र
    अखबार/पोस्टर
    रेखांकन : डॉ.सुरेन्द्र वर्मा
    या इतिहास के पन्नों पर
    यही कि ‘निर्दोष’
    मारा गया था कभी
    अपने हाथ पर चलता हुआ।
    • सी-21, लैह (LEIAH) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096


    शशिभूषण बड़ोनी






    उन्मुक्त हँसी

    मोनालिसा की मुस्कान
    बनी हुई चित्र कृति को
    देखने के बाद सोचता हूँ
    उकेरी किस तरह होगी
    उस महान कलाकार ने
    वह मुस्कान
    कि वह रचना अमर हो गयी

    दरअसल बहुत दिनों से
    देखी नहीं मैंने अपने आस-पास
    किसी भी आदमी के चेहरे पर
    कोई उन्मुक्त सहज मुस्कान


    कई-कई दिन बीत गये
    लेकिन दिखायी नहीं पड़ी
    ऐसी हँसी
    जिसे न सही
    उस कलाकार की तरह देखें
    रेखांकन : डॉ.सुरेन्द्र वर्मा
    अपनी रचनाओं में
    उल्लेख भर ही कर दूँ...

    लेकिन हाय रे...
    आजकल के आदमी की
    तनाव भरी दास्तान
    मिल नहीं पाती है जो कोई
    सीधी सच्ची प्यारी मुस्कान!

    • आदर्श विहार, ग्राम व पोस्ट- शमशेर गढ़, देहरादून (उ.प्र.)

    रुक्म त्रिपाठी


     


    हे मां

    मस्तक पर है मुकुट हिमालय.,
    सागर सादर चरण पखारे ।
    केसर गमके चंदन महके,
    पवन सदा आरती उतारे ।।

    शस्य श्यामला लहरे आंचल,
    चंदा, सूरज नयन तुम्हारे ।
    मौन तुम्हारा वंदन करते,
    जगमग आसमान के तारे।।

    झर झर झर झर झरना बहता,
    कल कल करतीं सरिताएं ।
    भोर हुई है माता जागो,
    मधुर प्रभाती गीत सुनाएं ।।

    हे मां ! सब तेरे अनुचर हैं,
    चंवर डुलातीं पुष्प लताएं ।
    पशु, पक्षी नर्तन करते हैं,
    प्रहरी हैं पर्वत मालाएं ।।

    अवतारों की जननी हो तुम,
    राम, कृष्ण, गौतम की माई।
    गोद तुम्हारी में पलते हैं,
    हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई।।

    भेदभाव तुमको नहिं भाता,
    शांति, अहिंसा तुमको प्यारी।
    जग में अलग-थलग दिखती है,
    इसीलिए तस्वीर तुम्हारी।।

    महावीर, गांधी, सुभाष से,
    द्रश्य छाया चित्र  : पूनम गुप्ता 
    पुत्रों की तुम हो महतारी ।
    उसका भला हुआ ना जिसने,
    तुम पर बुरी नजर है डाली ।।

    आये, गये विदेशी कितने,
    नहीं अधिक दिन थे टिक पाये।
    उन्हें भागना पड़ा एक दिन,
    जो तुम पर अधिकार जमाए।।

    बहक गये जो बेटे उनको,
    रक्त सना आंचल दिखलाओ।
    भटक गये हैं जो भी पथ से,
    उनको मां सन्मार्ग दिखाओ ।।

    • 30, रामकृष्ण  समाधी रोड, ब्लाक-एच, फ्लैट-2,कोलकाता-700054

    बाबा कानपुरी





    हम उसी पथ के पथिक हैं

    मार्ग में अवरोध पग-पग ,
    कंटकों के जाल फैले
    सघन तम की चादरों से
    विषधरों के फन रुपहले।
                  हम उसी पथ के पथिक हैं।  
    आस्था के इन पगों की
    रक्तरंजित एड़ियाँ क्यों?
    बढ़ न पाते, स्वार्थ की
    जकड़े हुए हैं बेड़ियाँ क्यों?
    किन्तु है विस्वास मुण्झको
    छटेंगी तम की घटाएं
    भोर से कुछ ठीक वहले।
                  शुष्क मत समझो रसिक हैं।
                  हम उसी पथ के पथिक हैं।
    श्वेत हैं परिधान, उर में
    द्रश्य छाया चित्र  : अभिशक्ति 
    कालिमा निकले बजकती,
    रेत की दीवार सी नीयत
    सहज जिनकी खिसकती।
    ज्वार बन उन्माद उठते ,
    ध्वंस का अवसाद लगता।
    झाग के बादल विषैले,
                    दीन ये होकर धनिक हैं।
                    हम उसी पथ के पथिक हैं।
    • ग्राम सदरपुर, सेक्टर-45, नोएडा-201303, उ.प्र.

    केशव शरण






    ग़ज़ल

    ये अपनी ज़िन्दगानी का सफ़र था
    बुढ़ापे तक जवानी का सफ़र था

    थका डाला मेरे किरदार को भी
    बहुत लम्बा कहानी का सफ़र था

    हवा से तेज़ गुज़रे इसके लम्हे
    बहुत कम मौज-पानी का सफ़र था

    हमारी एक ही मंज़िल थी लेकिन
    शुरू से बदगुमानी का सफ़र था

    द्रश्य छाया चित्र  : पूनम गुप्ता 
    पड़े हैं फूल मुरझाये ज़मी पर
    गमकता रातरानी का सफ़र था

    कहां तक काग़जी कश्ती भी जाती
    हिलोरदार पानी का सफ़र था

    तुम्हारे गांव का टेशन था गुज़रा
    मेरी जां राजधानी का सफ़र था
    • एस-2/564, सिकरौल, वाराणसी कैन्ट, वाराणसी-2 (उ0प्र0)

    डा. विजय प्रकाश





    अब क्या कहना है

    जब कहनी थी,
    नहीं कह सके,
    कर गये पार पचास......
        प्रिये! अब क्या कहना है?
    फूल-शूल के बँटवारे में
    शूल पड़े सब हिस्से मेरे,
    द्रश्य छाया चित्र  :  उमेश महादोषी
    मन को समझाने के क्रम में
    मैंने गढ़े अनेकों किस्से;
    लेकिन किस्से गढ़ने भर से
    जीवन भला कहाँ चलता है?
    विधि ने जो लिख दिया उसे तो
        हँसकर या रोकर सहना है।
    अपने वश में सिर्फ दौड़ना,
    हार-जीत तो ईश हाथ में,
    मेरे लिए यही काफी था,
    खड़ी रही तुम सदा साथ में;
    हीरे-पन्नों के लालच में
    क्यों कर दर-दर शीश झुकाएँ?
    संघर्षों का श्रम-सीकर ही
        अपने जीवन का गहना है।
    • मंत्रिमंडल सचिवालय (राजभाषा) विभाग, मुख्य सचिवालय, बिहार, पटना- 800015.

    नरेश कुमार उदास





    हँसी के खजाने

    सूरज रोज चढ़ता है
    फैलाता है अपनी रौशनी
    मानों किरणों के खजाने
    लुटाता है।

    चहकती हैं रंग-बिरंगी चिड़ियाएँ
    सुरीले गीत गाती
    हर्षाती हैं

    चाँद चढ़ता है
    हर रात
    शीतल चाँदनी बिखेरता
    खिलखिलाता सा
    चाँदी की हँसी लुटाता
    मोहता है।

    मैं
    देखता हूँ
    सूरज, चाँद और पक्षियों को
    ढूँढ़ता हूँ
    उनकी खुशी का रहस्य।

    मैं हैरान हूँ
    रेखांकन : डॉ.सुरेन्द्र वर्मा
    यह सोचकर
    कितना समय हो गया
    मैं नहीं लगा पाया
    ठहाके

    खुलकर हँसा नहीं
    न जाने कब से
    कौन चुरा ले गया
    मेरी हँसी के खजाने!

    • हिमाचल जैव सम्पदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर-176061(हि.प्र.)

    शिवानन्द सिंह सहयोगी






    चलता बना

    समय जिस पर था भरोसा छोड़कर चलता बना
    धुंध की मनहूस चादर ओढ़कर चलता बना

    तिमिरमय उस रात में जो चाँद कुछ खिलता दिखा
    चाल में अनहोनियों की पेड़ सा गिरता दिखा
    पुस्त के जिस पृष्ठ को पढ़ता रहा मैं रात भर
    सुबह का आया उजाला मोड़कर चलता बना
    समय जिस पर ................................

    जिस परस को नींद की लोरी सुनाता था कभी
    झूलनों के प्यार की डोरी झुलाता था कभी
    आड़ में निगरानियों के दर्द की गोली खिला
    आवरण वह आँसुओं का चीरकर चलता बना
    समय जिस पर ................................

    परिकलन परिकल्पना के बंद ढीले हो गये
    हृदय के अनुनाद के हर छंद गीले हो गये
    भाव हर अनुबंध का अनुलंब सा लगने लगा
    तोड़कर संबंध अनुक्रम जोड़कर चलता बना
    समय जिस पर ................................

    • ‘शिवाभा’ ए-233, गंगानगर, मवाना मार्ग, मेरठ-250001(उ0प्र0)

    त्रिलोक सिंह ठकुरेला



    गांव तरसते हैं

    सुविधाओं के लिए अभी भी गांव तरसते हैं।

    सब कहते इस लोकतन्त्र में
    शासन तेरा है,
    फिर भी होरी की कुटिया में
    घना अंधेरा है,
    अभी उजाले महाजनों के घर में बसते हैं।

    अभी व्यवस्था
    दुःशासन को पाले पोसे है,
    अभी द्रौपदी की लज्जा
    रेखांकन : डॉ.सुरेन्द्र वर्मा
    भगवान - भरोसे है,
    अपमानों के दंश अभी सीता को डसते हैं।

    फसल मुनाफाखोर खा गये
    केवल कर्ज बचा,
    श्रम में घुलती गयी जिन्दगी
    बढ़ता मर्ज बचा,
    कृषक सुद के इन्द्रजाल में अब भी फॅंसते हैं।

    रोजी - रोटी की खातिर
    वह अब तक आकुल है,
    युवा बहिन का मन
    घर की हालत से व्याकुल है,
    वृद्व पिता माता के रह रह नेत्र बरसते हैं।

    • बंगला संख्या-एल-99,रेलवे चिकित्सालय के सामने, आबू रोड-307026 राज.

    सत्येन्द्र तिवारी




    शब्द तूती बज रही है

    तपन से समय की झुलसा,
    मन का पखेरू उड़ रहा
    टीसता है दर्द रह-रह
    वही हिम्मत बांधता है।

    हम न उलझे जगमगाते,
    लुटेरों के जाल में
    नहीं दौड़े, दौड़ अंधी,
    कभी भी नव चाल में
        अनथके अवरोध सारे,
        पंथ दुर्गम लांघता है।

    शोर में भी नगाड़ों के
    द्रश्य छाया चित्र  : पूनम गुप्ता 
    शब्द-तूती बज रही
    बस संसदी अखाड़ों में
    नूरा कुश्ती चल रही
        न्याय की बंदर तुला पर,
        बराबर हक मांगता है।

    शहर जंगल गांव पर्वत,
    नदी भरती सिसकियां
    भंवर में आती नजर हैं
    जिन्दगी की कश्तियां
        पतवार को मन भावना की,
        शब्द-कीलें ठोंकता है।

    • 20/71, गुप्ता बिल्डिंग, रामनारायण बाजार, कानपुर-208001, उ.प्र,

    नित्यानंद ‘तुषार’






    ग़ज़ल
                    
    ये तो सोचो सवाल कैसा है
    देश का आज, हाल कैसा है
                    
    जिससे मज़हब निकल नहीं पाते
    साज़िशों का वो जाल कैसा है 
                    
    आए दिन हादसे ही होते हैं
    सोचता हूँ ये साल कैसा है
                    
    जान लेता है बे-गुनाहों की
    आपका ये कमाल कैसा है
                    
    आपने आग को हवा दी थी
    जल गए तो मलाल कैसा है
                    
    दुश्मनी से ‘तुषार’ क्या हासिल
    दोस्ती का ख़याल कैसा है
                    
    • आर-64, सेक्टर-12, प्रताप विहार, गाजियाबाद-201009 (उ.प्र.)



    सनातन कुमार बाजपेयी






    चलो चलें अविराम

    साथियो चलो चलें अविराम।
    दर्द मिटाना है दुनियाँ के, नहीं क्षणिक विश्राम।।
    साथियो...

    दुश्मन मिलें मसल दें उनको।
    कांटे मिलें कुचल दें उनको।
    अब प्रमाद को त्यागें प्रियवर, करना जग में नाम।।
    साथियो...

    अटल हिमालय से बन जायें।
    अगम सिन्धु से नित लहरायें।
    सुरसरि सी पावनता लेकर, बनें त्रिवेणी धाम।।
    साथियो...

    रामचन्द्र आदर्श हमारे।
    कृष्णचन्द्र जन-जन के प्यारे।
    न्याय धर्म की रक्षा करने, करें सतत हम काम।।
    साथियो...

    सत्य, अहिंसा व्रत अपनायें।
    घर-घर इनकी अलख जगायें।
    द्रश्य छाया चित्र  : पूनम गुप्ता 
    आतंकी घन गरज रहे जो, कर दें काम तमाम।।
    साथियो...

    पग-पग काले नाग विषैले।
    भरते हैं केवल निज थैले।
    पथ से इन्हें हटायें मिलकर, दें नूतन आयाम।।
    साथियो...

    बने विश्व सुन्दर नन्दन वन।
    लहें शान्ति-सुख सारे जन-जन।
    खुशियों के सागर लहरायें, प्रमुदित आठों याम।।
    साथियो...

    •  पुराना कछपुरा स्कूल, गढ़ा, जबलपुर-482003 (म.प्र.)