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मंगलवार, 29 मई 2018

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  7,   अंक  :  09-10,  मई-जून 2018 


।। कथा प्रवाह ।।


कान्ता राय 



मेड इन इण्डिया
     ‘‘बाई सा, आज हिसाब कर ही दो! अब दूसरी जगह काम करेगी!’’
     ‘‘अरे, ऐसे कैसे! काम क्यों छोड़ेगी?’’
      ‘‘तुम्हारे यहाँ बहुत चिकचिक है!’’
      ‘‘क्या चिकचिक है? तुम्हारे हिसाब से ही कपड़े निकालती हूँ धोने को, तुमने कहा कि एक बाल्टी से अधिक नहीं होना, तो याद से एक बाल्टी ही डालती हूँ। तुम्हारा कपड़ा अधिक ना हो इस कारण रात में नहाना छोड़ दिया है!’’
      ‘‘वो ठीक है रे! दूसरी बात में चिकचिक है!’’
      ‘‘दूसरी बात कौन सी? झाड़ू-पोंछा..? तूने कहा था कि गलीचा सिर्फ रविवार को झाडे़गी, सोफा और डायनिंग टेबल के नीचे एक दिन छोड़ कर पोंछा लगायेगी, गैलरी को सप्ताह में एक बार धोयेगी। सब तो तुम्हारे हिसाब से ही.....!’’
      ‘‘अरे, झाड़ू-पोछाँ के लिए कुछ कहा मैंने, वो नहीं रे!’’
      ‘‘तो क्या बर्तन?’’
      ‘‘हाँ रे, बर्तन!’’
      ‘‘लेकिन खाना तो दोनों वक्त चाहिये, वो तो कम नहीं कर सकती हूँ!’’
      ‘‘तुमको खाना बनाने का शौक है और खिलाने का भी, बस यहीं पर सारी चिकचिक रे बाबा!’’
      ‘‘तुझे भी तो प्यार से खिलाती हूँ, सो?’’
      ‘‘सो क्या? ठगती है प्यार से खिलाकर, बदले में इतना बर्तन माँजने को देती!’’
      ‘‘ओह, तू एक्स्ट्रा रूपये ले लेना बर्तन के! ऊपर की कमाई हो जायेगी!’’
      ‘‘देबा रे, देबा रे, ऊपरी कमाई काली कमाई होती रे! कल ही हमारी चाल में सबने कसम खाई है कि ऊपरी कमाई कोई नहीं खाएगा।’’
      ‘‘अरे, वो ऊपरी कमाई कैसे हुआ भला?’’
      ‘‘वो सब नहीं जानती, मुझे तो मेरी बँधी पगार चाहिये, तू देख ले क्या कर सकती है इस चिकचिक को कम करने के लिए!’’
      ‘‘ठीक है, मैं आधी बर्तन माँज लूँगी और आधी तुम आकर माँज लेना।’’
      ‘‘तुम क्यों माँजेगी बर्तन? मेरे होते माँजेगी तो क्या मुझे अच्छा लगेगा?’’
      ‘‘तो फिर मैं क्या करूँ?’’
      ‘‘हूँ, सोचने दे!.......सुन! एक काम कर सकती है तू!’’
      ‘‘क्या?’’
      ‘‘वो जो तू ऊपरी कमाई का कह रही थी....!’’
      ‘‘हाँ, हाँ, दे दूँगी, जैसा कहेगी, बस काम मत छोड़ना।’’
      ‘‘नहीं रे, ऊपरी कमाई तो ले नहीं सकती, कसम खाई है; लेकिन तू मेरा उतना पगार बढ़ा दे!’’
      ‘‘पगार तो दो महीने पहले ही बढ़ाया था!’’
      ‘‘देख, फिर सोच ले, मैं नहीं रहती इस चिकचिक में!’’
      ‘‘नहीं, नहीं, नाराज मत हो! ठीक है, जैसा तू कहे, बढ़ा दूँगी।’’
      ‘‘अब मैं घर जाती है, शाम को आयेगी। तू आज बड़ा साम्बर बनाना साहिब के लिए। बहुत दिनों से मैंने भी नहीं खाया है!’’
  • 21, सेक्टर-सी, सुभाष कॉलोनी, निकट हाई टेंशन लाइन, गोविंदपुरा, भोपाल, म.प्र./मो. 09575465147

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