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मंगलवार, 29 मई 2018

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  7,   अंक  :  09-10,  मई-जून 2018 


।।कविता अनवरत।।



शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’




दो नवगीत

01. हे! जनपथ के राजा 

हम रोज कुआँ खोदे
हम रोज पिये पानी
हे! जनपथ के राजा
हे! जनपथ की रानी

बीजों का ताजमहल
धरती में हम बोये
सावन-अगहन-फागुन
धरती पर हम सोये
आकाश जलावन का
ढोई टूटी छानी
हे! जनपथ के राजा
हे! जनपथ की रानी
  
पलिहर की बोआई
है डूबी करजा में
खटनी की शिक्षा है
पहले ही दरजा में
उलझन के घर गिरवी
पशुओं की है सानी
हे! जनपथ के राजा
हे! जनपथ की रानी

साँसों के झुरमुट में
आशा के फूल नहीं
अनुभव की चोटी पर
साहस के जूल नहीं
असहज पथ पर लेटे
अबतक दाना-पानी
हे! जनपथ के राजा
हे! जनपथ की रानी

02. पवन-डाकिया

पवन-डाकिया/लेकर आया  
खुले गाँव की मधुरिम गंध
मिलने पहुँचे/नदी किनारे
तोड़-ताड़ तरलित तटबंध

तितली फिसली
भँवरे भटके
बिछुड़ चुके पुलकित मकरंद
धोखा खायीं  
विचलित लहरें
करके चिपचिप फाटक बंद
हटा चुकी है/धूप धुआँसी
पहरा का विकिरक प्रतिबन्ध

नल पर पाँवों
को धोया है 
भिगा पसीना तन का पानी
चूनर धानी
उठा रही है
पहुँच शाम घर ढही पलानी
रेखाचित्र :
राजेंद्र परदेसी 

धूल उड़ी है/छिड़क रहा जल  
अतिथि अमी मृदुता-संबंध

सडकें पहुँचीं
काँवड़ लेने
सँवरी-सँवरी शिव की काशी
मानसून भी
परचा भरने
पहुँच चुका केरल से काशी
मौसम भी कुछ/रंग बदलता
तोड़ सभी पिछले अनुबंध

  • ‘शिवाभा’ ए-233, गंगानगर, मेरठ-250001 (उ.प्र.)/मो. 09412212255

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