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मंगलवार, 29 मई 2018

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  7,   अंक  :  09-10,  मई-जून 2018



।। कथा कहानी ।। 

योगेन्द्र नाथ शर्मा ’अरुण’



मुस्कुराती ज़िंदगी

\लता आज बेहद उदास थी! श्याम दफ्तर जा चुका था और लता की सास अपने कमरे के कोने में बने पूजा घर में चुपचाप से क्या माँग रही थीं, यह तो शायद वे ही जानती होंगी! लता ने दोनों बेटियों को रोज़ की तरह नाश्ता करा के स्कूल भेज दिया, लेकिन ख़ुद बिना कुछ खाए-पिए जाकर अपने कमरे में लेट गई!
      लता को श्याम से ऐसी उम्मीद तो कभी थी ही नहीं, जैसा व्यवहार कल रात श्याम ने किया! बैंक में मैनेजर है और शादी के आठ सालों में लता ने श्याम को ऐसे चीखते हुए कहीं नहीं देखा, जैसा कल रात को हुआ!
      लता अपने बिस्तर पर लेट गई और माथे पर बाम लगाने लगी! रात को लता पल भर के लिए भी ढंग से सो नहीं पाई! बार-बार यही सोचती रही कि श्याम को आखिर हो क्या गया कि मेरे अबार्शन की बात को लेकर इतनी जोरों से चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया! 
      तभी दरवाज़े की घंटी बज उठी! लता की सास पूजा घर में बैठी थी; वहीं से चीख कर बोली- ‘‘अरी, बहू! देख तो ले दरवाज़े पर कौन है?’’ लता ने जवाब दिया- ‘‘देखती हूँ माँ जी! देख रही हूँ!’’
      लता ने दरवाज़ा खोला, तो देखा रसोई की गैस का सिलिंडर लगाने एजेंसी का आदमी खड़ा है! लता ने उस से गैस-बुकिंग की पर्ची ली और रसोई में ले जाकर सिलिंडर बदलवाया! पूजा घर से सास ने फिर पूछा- ‘‘अरी, कौन आया है?’’ तो लता ने कहा- ‘‘गैस का सिलिंडर लगाने वाला आया है गैस एजेंसी से! आप पूजा कर लो, मैं सब करा लूँगी!’’
      लता ने सिलिंडर बदलवा कर पैसे दिए और गैस-एजेंसी का आदमी चला गया! लता ने देखा, साढ़े ग्यारह बजे हैं! अम्माजी तो अभी एक घंटे और पूजा करेंगी और बेटियाँ स्कूल से ढाई बजे तक ही आएँगी! लता का सर दर्द से फटा सा जा रहा था, इसलिए वह फिर कमरे में जाकर लेट गई! लता की आँखों में शादी के बाद के आठ साल घूम रहे थे! उसके पापा एग्जिक्युटिव इंजीनियर और माँ महिला विद्यालय में लेक्चरार हैं! लता और सीमा उनकी बेटियाँ हैं! पापा ने एक बार हँसी-हँसी में बताया था कि जब लता  पैदा हुई, तो बड़ी दुबली-पतली थी, इसलिए खुश होकर लता नाम रक्खा था!
      हँसकर लता ने ही पूछा था पापा से- ‘‘और पापा! फिर सीमा का नाम क्यों ‘सीमा’ रक्खा?’’ तो हँसकर पापा बोले थे- ‘‘बेटी लता! यह नाम तुम्हारी मम्मी का दिया हुआ है! वे दो ही संतान चाहती थीं, इसलिए जब दूसरी बेटी हुई, तो तुम्हारी मम्मी ने कहा कि यह हमारी सीमा है!’’
      लता ने करवट बदली! कल रात श्याम का चीखना और बार-बार कहना कि ‘‘अबार्शन’’ तो कराना ही पड़ेगा, लता को कहीं भीतर तक कुरेद गया है!
      फिर से विचारों का तार जुड़ गया!
      लता की शादी हुई, तो वह एम.एससी. कर चुकी थी और रिसर्च का मन बना रही थी कि पिताजी ने श्याम से उसका रिश्ता पक्का कर दिया! लता की शादी हो गई, तो उसने नौकरी करने का प्रस्ताव श्याम के सामने रक्खा था! तब श्याम ने कहा था- ‘‘मुझे तो नौकरी में कोई ऐतराज़ नहीं है लता, लेकिन घर पर माँ दिन भर अकेली रहेंगी, तो तकलीफ़ ज़रूर होगी! सोच लो; घर तो मेरी कमाई में चलता ही है!’’
      लता ने सोचा था तब कि श्याम सचमुच बहुत सुलझा हुआ पति है! और डेढ़ वर्ष बाद, जब उनकी बेटी गौरी पैदा हुई, तो श्याम की माँ ने ही उसका नाम गौरी रखते हुए कहा था कि यह तो पार्वती का रूप है! लेकिन गौरी के बाद जब रिया पैदा हुई, तो लता की सास मानों बुझ ही गईं! अब उन्हें गौरी में अपनी पार्वती नहीं दिखाई देती! रिया को तो दादी शायद ही कभी आवाज़ लगाती हों! लता ने एक-दो बार श्याम को कहा भी, तो श्याम ने भी बुझे मन से ही कहा- ‘‘अब छोड़ो भी इस बेकार की बात को? आखिर अम्मा के मन में भी तो पोते की ललक रही है और तुमने दी हैं दो-दो पोतियाँ?’’ एक बार तो लता ने कह भी दिया था- ‘‘बेटियों के बाप आप हैं जनाब! बेटा देना आपकी जिम्मेदारी है, क्या यह भी आपको समझाना पड़ेगा?’’
      तब लता ने महसूस किया था कि श्याम को लता की बात कहीं-न-कहीं चुभ गई है, लेकिन सच तो यही था! लेकिन कल रात श्याम के ऊपर जाने कैसा भूत सा सवार हुआ कि बोला- ‘‘सुनो, लता! कल या परसों सुविधा देखकर अपना अबार्शन करा लो; अब इस घर में हमें बेटी नहीं चाहिए!’’
      ‘‘क्या मतलब? क्या इसीलिए तुमने अल्ट्रासाउंड कराया था मेरा?...  मैंने तुम्हें कहा था की मैं गर्भ का अल्ट्रासाउंड करके लिंग परीक्षण नहीं करना चाहती, क्योंकि यह सब कानूनी दृष्टि से तो अवैध है ही, नैतिक और सामाजिक दृष्टि से और भी ज्यादा ख़राब बात है!... बेटी क्या मेरे और तुम्हारे प्रेम का रूप नहीं होगी?’’ लता ने श्याम को अपना दृढ़ इरादा बता दिया था!
      तभी श्याम आपा खोकर चिल्लाया था- ‘‘आखिर कितनी बेटियाँ पालेंगे हम? क्या मेरी माँ पोते का मुँह देखे बिना ही संसार से तड़पती हुई चली जाएगी?...  तुम्हारे घर की तो परम्परा ही है बेटियों को जन्म देने की... तुम्हारा कोई भाई नहीं हुआ, तो क्या मेरी माँ को भी पोता न मिले? तुम्हे अबार्शन तो कराना ही पड़ेगा!’’
      लता ने बेचैन होकर करवट बदली! सर का दर्द बाम लगाने से थोड़ा कम हो गया था! लता उठ गई और देखा कि उसकी सास पूजा ख़त्म कर चुकी हैं! एक बज रहा था; बेटियों के आने में अभी देर थी! लता ने कुछ सोचा और उठ कर मुँह-हाथ धोकर सास के पास आई!    
      सास ने देखा, लता उनके कमरे में चुपचाप खड़ी है! उनके मुँह से निकला- ‘‘क्या बात है, बहू? तबियत ठीक नहीं है क्या?’’ लता सास के पास ही पलंग पर बैठ गई और बोली- ‘‘माँ जी! आज मैं बहू नहीं, बल्कि आपकी बेटी बन कर कुछ कहने आई हूँ! बताइए, क्या मुझे बेटी मानकर प्यार की भीख आप मुझे देंगी?’’
      जाने लता के शब्दों में क्या जादू था कि लता की सास ने उसे अपने पास बिठा कर अनायास छाती से लगा लिया! लता को भी सास से यह उम्मीद नहीं थी! सास ने जैसे ही लता को छाती से लगाया, वैसे ही, रात भर उसके मन में उमड़ती रही विचारों की आँधी जैसे आँसुओं के रूप में उमड़ पड़ी! लता की हिचकियाँ बँध गईं और सास उसके सर और पीठ पर हाथ फेरकर चुप करती रहीं!
      आँसुओं की बाढ़ रुकी, तो लता ने शांत मन से कहना शुरू किया- ‘‘माँ! मुझे बताइए कि बेटी पैदा करना क्या मेरा अपराध है? आप और मैं भी तो किसी की बेटी ही हैं न?... बताओ, माँ! अगर मेरा बेटा हो जाता, तभी क्या मैं सफल औरत हुई होती? मुझे बहू न मानकर, अपनी बेटी मानकर कहिये, माँ! क्या श्याम के कहने से मैं अपने गर्भ में आ गई अपनी बेटी की इसलिए हत्या कर दूँ कि वह बेटा नहीं है?’’
      लता की सास हड़बड़ा कर बोली- ‘‘क्या हुआ, मेरी बेटी? किसने कहा तुझे कि अजन्मी बेटी को मार दे?’’
      ‘‘आपके बेटे ने कहा कि आपको पोता चाहिए; पोती नहीं चाहिए! बताओ माँ! क्या औरत होकर आप भी चाहती हैं कि मैं जन्म से पहले ही, औरत होते हुए एक औरत की हत्या कर दूँ? बताइए,माँ! बताइए! क्या सचमुच आप पोती की हत्या चाहती हैं?’’  लता ने भावुक होकर माँ के चरणों में गिरकर कहा!
      और, ... न जाने कहाँ से लता की सास में गज़ब का जोश आ गया! माँ बोली- ‘‘नहीं, नहीं, बेटी! बिल्कुल नहीं! पगला गया है श्याम! अरे, पोता हो या पोती; मेरे लिए तो चाँद और तारों से बढ़कर हैं!... पोता चाहती रही हूँ मैं... हाँ! बेटी, यह सच है, लेकिन पाप करके पोता कभी नहीं चाहिए मुझे! कभी भी नहीं...कभी नहीं! एक पोते की चाह में अपने बहू.... नहीं, नहीं, अपने बेटी की ज़िंदगी मैं नर्क नहीं बनने दूँगी!’’
      लता ने आँसुओं की झड़ी के बीच अपने सास को देखा, तो उसे लगा कि उसकी माँ ही उसे अभयदान दे रही है! सास का स्वर गूँजा- ‘‘मुझे चाहिए बेटी की मुस्कुराती ज़िंदगी!’’ और लता के सर पर हाथ फेरते हुए बोली- ‘‘चल, बेटी! मेरी पोतियाँ स्कूल से आती होंगी! उनकी चिंता नहीं है क्या तुझे?’’
      और, लता ने मुस्कुरा कर अपनी सास को छाती से लगा कर जोरों से भींच लिया! 
  •  74/3, न्यू नेहरु नगर, रूडकी-247667, जिला हरिद्वार, उ.खण्ड/मो. 09412070351

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