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सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

अविराम विस्तारित


अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०६, जनवरी २०१२  


।।कथा कहानी।।

सामग्री :
 राजेन्द्र परदेशी की कहानी- 'नई राहें'



राजेन्द्र परदेशी



नई राहें


   परिस्थितियाँ लाख विपरीत हों, जीने के लिए उनका सामना तो करना ही पड़ता है। पति के स्वर्गवास के बाद मिसेज जोशी को अनुकम्पा के आधार पर नौकरी मिल गयी थी। वह कभी भी अकेले घर से बाहर नहीं निकली थीं, तब क्या दूसरे शहर में जाकर नौकरी कर पायेंगी? निर्णय नहीं कर पा रही थीं कि क्या करना चाहिये क्या नहीं। बच्चे अभी छोटे थे। अकेले रह नहीं सकते थे। उनका अपना भी कोई न था जिसके भरोसे बच्चों को छोड़कर वह अकेले जाकर सीतापुर में नौकरी करें। अगर नौकरी नहीं करें तो गुजर-बसर का कोई और साधन भी नहीं। स्वयं तो किसी तरह उम्र काट लेंगी, परन्तु बच्चों के भविष्य का क्या होगा? काफी ऊँच-नीच सोचने के बाद मिसेज जोशी ने निर्णय कर लिया कि वह सीतापुर जाकर नौकरी करेंगी।
   लखनऊ से सीतापुर के लिए बस का साधन ही अधिक सुविधाजनक है, जब जाओ, कोई-न-कोई बस जाने के लिए खड़ी मिलती है। सीतापुर जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराने के लिए मिसेज जोशी बस स्टेशन जाकर, एक बस पर बैठ गयीं। पर संकोच का आवरण ओढ़े रहीं, जो उनके चेहरे से स्पष्ट झलक रहा था। ऐसे में असामाजिक प्रवृत्ति के पुरुषों को अपनी कलुषित भावनाओं को मूर्त रूप देने का अवसर मिल ही जाता है। इसी स्थिति का लाभ उठाकर ऐसा ही एक युवक उनकी बगल में आकर बैठ गया और फिर अपनी सहानुभूति दर्शाते हुए पूछा- ‘लगता है, आप अकेले ही सीतापुर जा रही हैं?’
   ‘हाँ।’
   ‘क्यों? आपके पतिदेव नहीं हैं क्या?’
   ‘कुछ दिनों पहले ही उनका स्वर्गवास हो गया है।’ इसी के साथ मिसेज जोशी की आँखें डबडबा उठीं।
   ‘बहुत दुःखद हुआ’ कहकर वह युवक मिसेज जोशी के और पास आकर बोला, ‘कोई बात नहीं, मैं भी सीतापुर डेली अप-डाउन करता हूँ, आपको कोई परेशानी होगी तो बताइयेगा’। बात समाप्त करते-करते युवक लगभग उनके इतने पास आ गया कि उसका हाथ मिसेज जोशी के हाथ को छूने लगा। वह सकुचाती हुई जितनी सिमटती जातीं, युवक के शरीर का दबाव उतना ही बढ़ता जा रहा था। संकोचवश वह प्रतिरोध भी नहीं कर पा रही थी। इसका उसने कुछ और अर्थ लगाया और अपने हाथ से मिसेज जोशी का हाथ दबाने का प्रयास किया। उन्होंने मौन आक्रोश व्यक्त किया, लेकिन युवक पर कुछ भी प्रभाव न पड़ा। रास्ते भर वह चारित्रिक स्तर का परिचय देने का प्रयास करता रहा। सीतापुर बस स्टेशन आते ही उसने राहत की सांस ली। फिर तुरन्त उतरकर तेजी से अपने कार्यालय पहुँच गयी।
   पहले कभी इसी परिस्थिति से गुजर चुकी माधवी मिसेज जोशी के पास आकर बोली- ‘क्या बात है? तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?’
   मिसेज जोशी ने लखनऊ से सीतापुर के बीच पास बैठे युवक की हरकतों का विस्तार से विवरण देने के बाद, लगभग रुआँसी होकर बोली- ’मुझे तो शाम को वापस जाते समय डर लग रहा है।’
    ‘राह चलते किसी के सामने अपने परिवार के बारे में बताने की क्या जरूरत थी?’ माधवी ने झिड़कते हुए कहा।
   ‘मैंने तो कोई गलत बात नहीं कही थी, जो सच था वही बताया था।‘ मिसेज जोशी ने सफाई दी तो माधवी ने रहस्य का उद्घाटन किया, ‘‘तुम्हारा सत्य सुनने के कारण ही तो उसने गलत हरकत करने का साहस किया।’
   ‘मुझे बड़ा डर लग रहा है, सोचती हूँ एक बार फिर लखनऊ स्थानान्तरण के लिए सचिव से मिलकर अनुरोध करूँ। अगर वह नहीं  मानेंगे तो यह नौकरी ही छोड़ दूँगी....।’ 
    ‘फिर बच्चों के भविष्य का क्या होगा?’ माधवी ने व्यंग्यवाण छोड़ा- ‘कटोरा देकर उनसे भीख मंगवाओगी क्या?’
   ‘लखनऊ में ही कोई प्राइवेट नौकरी तलाश करूँगी।’ मिसेज जोशी ने अपनी विवशता की पीड़ा को व्यक्त किया।
   ‘क्या वहाँ ऐसे लोगों से पाला नहीं पड़ेगा.....लखनऊ में तुम्हें लोग साधू नजर आते हैं।’ उसने तर्क भी दिया- ‘रास्ते में तुम्हें जो मिला था, वह भी तो लखनऊ का था न?’
   ‘फिर मैं क्या करूँ?’ मिसेज जोशी ने अपनी लाचारी दर्शायी।
   ‘तुम्हें कुछ नहीं करना है, तुम एक औरत हो तो औरत की शान से रहो। रोनी सूरत बनाने से तुम्हारा पति तो वापस आ नहीं जायेगा तुम्हारी मदद को। उल्टे तुम स्वयं अपने लिए रोज़ नयी-नयी मुसीबतें बुलाती रहोगी।’ माधवी कुछ देर सोचती रही, फिर सलाह दी, ‘कल से तुम वैसे ही पहन-ओढ़कर आओगी, जैसे पति के रहते पहनती-ओढ़ती थी।’
   उसकी सलाह पर मिसेज जोशी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई तो माधवी पुनः बोली- ‘जीवन से जो चला गया, वह तो वापस आयेगा नहीं, ऊपर से रोनी सूरत बनाकर रहोगी तो तेरे बच्चे भी अपनी पुरानी यादों को भुला नहीं पायेंगे....और अपने भविष्य के प्रति सजग वह नहीं रहेंगे। दूसरे लोग भी सहानुभूति के नाम पर वासना की ही आँखें तुम्हारे ऊपर गढ़ाये रखेंगे। जीवन केवल अपने लिए नहीं जिया जाता.... उसके सामने अनेक यक्ष प्रश्न होते हैं, उनके समाधान भी तलाशने होते हैं उसे।’
   माधवी के मशविरे का मिसेज जोशी पर असर हुआ। रास्ते की पीड़ा भूल, होठों पर मुस्कान लाकर बोली- ‘ठीक है दीदी, आज से मैं तुम्हे अपना गुरु मानती हूँ और तुम्हारी बतायी नई राह पर ही चलकर जीवन जिऊँगी।’
    सब कुछ सहज हो चलने लगा। दो वर्ष बाद अचानक माधवी का स्थानान्तरण दूसरे शहर को हो गया। मिसेज जोशी पुनः थोड़ा सहमी, पर माधवी के सिर पर हाथ रखते ही वह सहज हो गयी। बच्चों का भविष्य संवारती रही।
   बरसों बाद अचानक माधवी से मिसेज जोशी की भेंट नोएडा के एक बस स्टाप पर हो गयी। मिसेज जोशी को देखकर उसे एक बार भ्रम हुआ कि क्या वह मिसेज जोशी ही है, जो बिल्कुल बदली नज़र आ रही है। अगर वह जोशी ही है तो यहाँ क्या कर रही है? भ्रम दूर करने के लिए वह उनके पास तक चली गयी। पास जाकर पाया कि उसका अनुमान बिल्कुल सही है, सहसा मुख से निकला- ‘यहाँ कैसे आना हुआ?’
   ‘बेटे का इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश दिलाने आयी हूँ।’ मिसेज जोशी ने बताया।
   ‘तुम तो एकदम बदल गयी, पहले तो मैंने सोचा कोई और होगी, पर पास आकर देखा तो तुम....।’
   ‘तुम्हारी बताई हुई राह पर ही तो चल रही हूँ.....अब भला कैसे रोनी सूरत बना सकती हूँ।’
   ‘हाँ, तुम मुझे ऐसी ही अच्छी लगती हो। तुमने जीने की नई राह तलाश ली है और आज बेटे को एडमीशन दिलाने आयी हो। यह तुम्हारी मंजिल का अहम् पड़ाव है, जो तुम्हें सदैव अपने भविष्य के बिखराव पर अंकुश लगाने की प्रेरणा देता रहेगा।’ कहकर माधवी मिसेज जोशी को अपने गले लगाकर फिर बोली- ‘मुझे संतोष है कि तुमने मेरी सलाह पर विपत्तियों से संघर्ष करने का साहस जुटा लिया है।’ माधवी ने मजाक भी किया- ‘चलो गुरुदक्षिणा के रूप में मुझे कॉफी पिलाओ।’
   ‘बस कॉफी ही?’ कहते हुए मिसेज जोशी प्रमुदित मन से माधवी का हाथ पकड़कर चल दी।


  • भारतीय पब्लिक अकादमी, चांदन रोड, फरीदीनगर, लखनऊ-226015 (उ.प्र.)

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