आपका परिचय

मंगलवार, 26 मार्च 2013

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2,  अंक : 7, मार्च 2013  

।।क्षणिकाएँ।।

सामग्री : डॉ. मिथिलेश दीक्षित व रामस्वरूप मूँदड़ा की क्षणिकाएँ।


डॉ. मिथिलेश दीक्षित




चार क्षणिकाएँ

1.
वक्त की आवाज़ को 
पहचानती हूँ,
मेरे घर के
कट गये हैं
रोशनी के तार क्यों
यह जानती हूँ!
2.
हंस हँस दे,
रेखा चित्र : बी मोहन नेगी 

कल
न जाने
काल क्या कर दे!
3.
सारा जंगल
एक होकर
क्रोध से जलने लगा 
एक तिनके ने 
हवा का रुख 
बदलने को 
बग़ावत 
की है शायद!
4.
कई बार
वह घड़ी 
परीक्षा की आयी,
जब हमने भी
मृत्यु द्वार से
लौटायी!

  • जी-91, सी, संजयगान्धीपुरम, लखनऊ-226016



रामस्वरूप मूँदड़ा



दो क्षणिकाएँ


1. जिन्दगी

एक कोरे पृष्ठ पर 
गिर गई है
स्याही की एक बूँद
ढुलक गई उस ओर
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
जिधर था ढलान
धीरे-धीरे
सूख गई बस
बन गया कोई अक्षर
या कोई चित्र।

2. कैक्टस

उग आया है 
मन में
एक कैक्टस
सहला रहे हैं
चुभन
उखाड़ नहीं पा रहे हाथ।
-पथ 6, द-489, रजत कॉलोनी, बून्दी-323001 (राज.)

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2,  अंक : 7,  मार्च  2013  

।।तांका।।


सामग्री : इस अंक में डॉ. उर्मिला अग्रवाल के दस तांका ।


डॉ. उर्मिला अग्रवाल




{डॉ. उर्मिला जी का ‘मुस्काने दो दोस्ती को’ तांका संग्रह 2012 में प्रकाशित हुआ। विभिन्न विषयों पर लिखे इस संग्रह के तांकाओं में से कुछ तांका प्रस्तुत हैं अविराम के पाठकों के लिए।}


दस तांका 

1.
सूरज लाया
गठरी भर धूप
हुआ निराश
खरीदार न मिला
गर्मी के मौसम में
2.
समेट लिया
छाया चित्र : रोहित काम्बोज 

दिनकर ने जब
किरण-जाल
निर्द्वन्द्व हो विचरी
चाँदनी धरा पर
3.
टपक गई
ओस की एक बूंद
अधरों पर
झूमने लग गया
मन में खिला फूल
4.
तेरी यादों से
सरगोशियाँ होतीं
मेरे आज की
और महक जाती
मेरी तनहाइयाँ
5.
खूब मिली थी
शोहरत गीतों को
कहाँ था वह
जिसके लिए हम
गीत लिखते रहे
6.
ऐसे मनाया
मृत्यु का महोत्सव
धारण किया
बेवफ़ाई से बुना
उपेक्षा का कफ़न
7.
भीष्म तुमने
ताकत के जोर से
ब्याही गांधारी
अंधे धृतराष्ट्र से
कैसे भूले शकुनि
8.
पहनकर
पैरों में पायलिया
नाच रही है
पिंजरे में चिड़िया
जैसे घर की रानी
9.
रेखा चित्र : बी मोहन नेगी 

तुम न सुनो
तो सूरज क्या करे
वो तो आता है
रोज़-रोज लेकर
रोशनी का संदेश
10.
दिल का हाल
बताएँगे ज़रूर
अभी तनिक
बह जाने दो आँसू 
मुस्काने दो दोस्ती को

  • 15, शिवपुरी, मेरठ-250001 (उ.प्र.)

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 7,  मार्च  2013

।।जनक छन्द।।

सामग्री : पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’ के पाँच जनक छंद।



पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’






पांच जनक छन्द





1.
ऊषा सुन्दर गागरी
छलकत नित घर आँगना
खुलकर खेलत फागरी।
2.
रेखा चित्र : मनीषा सक्सेना 
नूतन विमल उमंग हो
अजब गजब रंगत लिए
इतनी धवल तरंग हो।
3.
दृष्टि रखो निज देश पर
रघुकुल की है रीति यह 
डटे रहो उद्देश पर।
4.
वर्षा हो धन-धान्य की
करें कामना मिल सभी
नित हम जन कल्यान की।
5.
वीर प्रसूता निज धरा
चन्दन सम महके सदा
हरी भरी यह उर्वरा।

  • 251/1, दयानन्द नगरी, ज्वालापुर, हरिद्वार-249407 (उत्तराखण्ड)

बाल अविराम

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2,  अंक : 7,  मार्च  2013  


।।बाल अविराम।।

सामग्री : डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ की बाल-कहानी एवं ‘फैज’ रतलामी की कविता। नए बाल चित्रकार- स्तुति शर्मा, राधिका शर्मा, मेहुल कैंथोला व वैभव कैंथोला।



डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’




{वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा ‘अरुण’ जी की प्रेरक बाल कहानियों का संग्रह ‘महाविजय’ वर्ष 2011 में प्रकाशित हुआ था। संग्रह की कहानियां प्रेरणाशील तो हैं ही, रोचक भी हैं। इस बार इसी संग्रह से प्रस्तुत है डॉ. ‘अरुण’ जी की एक बाल कहानी।}


सच्ची खुशी

    हर्ष अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। उसके लिए माता-पिता का एक ही कहना रहता है, ‘‘हर्ष, डियर! इस संसार में जो कुछ भी पैसे से खरीदा जा सकता हो उस पर अगर तुम उँगली रख दोगे तो वह चीज कैसे भी आए, हम वह चीज तुम्हें दिला देंगे।’’
    और यह बात अब तक हर्ष के माता-पिता ने पूरी भी की है। कारण यह कि हर्ष के पिता एक बहुत बड़ी कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं और उनके पास इतनी दौलत है कि अगर उनकी तीन पीढ़ियाँ कोई काम न करें तो भी मजे से बैठकर खा-पी सकती हैं।
    हर्ष की मम्मी को, जिन्हें माँ या मम्मी कहलाना कतई पसंद नहीं है, सिर्फ ‘मॉम’ ही सुनना अच्छा लगता
पेंटिंग : स्तुति शर्मा 
है। दौलत की कोई कमी हालांकि नहीं है, फिर भी हर्ष की मम्मी एक एन.जी.ओ. चलाती हैं। इसी एन.जी.ओ. की बदौलत हर्ष की मम्मी की जान-पहचान बड़े-बड़े मंत्रियों और नौकरशाहों से लेकर उद्योग जगत् और समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय बहुत बड़े-बड़े लोगों से हो गई है।

    हर्ष की कोठी इतनी बड़ी है कि वह कभी-कभी तो चाहकर भी अपनी कोठी के हर कमरे में नहीं जा पाता है। उसके पापा और मम्मी के पास अलग-अलग बढ़िया और महँगी कारें हैं, जिन्हें उनकी मरजी हो तो खुद ही चला लेते हैं, वरना चटक ड्रैसवाले ड्राइवर ही उनकी गाड़ियाँ चलाते हैं।
   हर्ष के लिए बिल्कुज अलग चमचमाती कार पापा और मम्मी ने ड्राइवर सहित लेकर, उसे दे रखी है, जिसमें हर्ष अपने स्कूल तो जाता है ही, रविवार की सुबह स्विमिंग पूल में तैरने भी जाता है।
    घर में हर काम के लिए नौकर हैं, जिन्हें हर्ष के पापा और मम्मी ने हिदायत दे रखी है कि हर्ष बाबा को किसी भी तरह की कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए।
    हर्ष का अपना कमरा है जिसमें एयर कंडीशनर के साथ ही टी.वी. और फ्रिज रखे हुए हैं। हर्ष के कमरे में रखे हुए फ्रिज में सेब, संतरे, चॉकलेट, मक्खन, फ्रूटी, कोका कोला, पेस्ट्री और जाने क्या-क्या भरा रहता है।
    इतना सब कुछ होने पर भी जाने क्या बात है कि हर्ष हमेशा ही चुपचाप, गुमसुम और गंभीर-सा ही रहता है।
    हर्ष सातवीं कक्षा में आ गया है, लेकिन अजीब-सी बात है कि दो-दो टीचर ट्यूशन पढ़ाते हैं, फिर भी हर्ष बड़ी मुश्किल से ही अपनी कक्षा में पास हो पाता है। एक दिन तो उसकी मम्मी साइंस का ट्यूशन पढ़ाने वाले टीचर पर भड़क ही गई थी, ‘‘क्या बात है टीचर जी! आप आखिर क्या पढ़ाते हैं हमारे हर्ष बाबा को? क्या यह समझ नहीं पाता?...देखिए, मन लगाकर पढ़ाया करिए, वरना छोड़ दीजिए....किसी और टीचर को हम एंगेज कर लेंगे।’’
    बेचारा टीचर सिर्फ इतना ही कह पाया था, ‘‘मैम! आय एम ट्राइंग माय वेस्ट।’’ और बड़ी ही लापरवाही से ‘ओ.के.’ कहकर हर्ष की मम्मी पैर पटकती हुई चली गई थी, लेकिन टीचर की कोशिशों के बाद भी परीक्षा में हर्ष के नंबर बढ़ नहीं पाए।
    हर्ष को तो याद नहीं कि वह अपने पापा से कब से नहीं मिला है? मम्मी से भी कभी-कभी ही मिल पाता है हर्ष। असल में हर्ष के पापा या तो विदेश के दौरे पर रहते हैं या फिर दफ्तर की मीटिंग्स में व्यस्त रहते हैं। रात को जब वे आते हैं तो हर्ष सो चुका होता है और जब सुबह उनकी नींद खुलती है, तो हर्ष स्कूल में पढ़ने के लिए जा चुका होता है।
    उधर हर्ष की ही कक्षा में एक प्यारा-सा लड़का पढ़ता है। उसका नाम है विपुल और बहुत ही साधारण से कपड़े पहनने वाला विपुल हमेशा खुश और स्वस्थ रहता है। विपुल अपनी कक्षा में जहाँ एक ओर पढ़ाई में बहुत तेज है और हमेशा कक्षा में प्रथम ही आता है, वहीं दूसरी ओर खेलकूद तथा निबंध आदि की प्रतियागिताओं में भी हमेशा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर कोई-न-कोई इनाम अवश्य जीतता है।
    एक दिन हर्ष ने देखा कि आधी छुट्टी के समय अपना लंच खत्म करके विपुल पढ़ रहा था। हर्ष के मन में जाने क्या आया कि वह विपुल के पास आकर बैठ गया।
    विपुल ने किताब से आँख हटाकर जब हर्ष की ओर देखा तो उसे लगा कि हर्ष शायद बीमार है। हर्ष ने ही कुछ झिझकते हुए पूछा, ‘‘डियर विपुल! क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगे?...मेरा तो क्लास में कोई दोस्त ही नहीं है डियर।’’
    हँसते हुए विपुल ने हर्ष का हाथ अपने हाथ में पकड़कर कहा, ‘‘क्यों नहीं, जरूर करूँगा तुमसे दोस्ती। अरे भाई, जब हम एक ही कक्षा में साथ-साथ पढ़ते हैं और साथ-साथ खेलते भी हैं, तब मैं तुमसे भला दोस्ती क्यों नहीं करूँगा?’’
    और बस! हर्ष उसी दिन से विपुल का दोस्त बन गया। आधी छुट्टी में विपुल प्रायः हर्ष को अपने साथ लेकर स्कूल के ग्राउंड में बैठकर घर से लाया हुआ लंच बाँटकर खाया करता था तो जाने क्यों, हर्ष को लंच में नौकर द्वारा रखे गए टोस्ट-मक्खन या सैंडविच में कतई स्वाद नहीं आता था और विपुल द्वारा लाए पराँठे और गोभी की सब्जी में गजब का स्वाद आता था।
    एक दिन विपुल ने हर्ष से पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है दोस्त! तुम हमेशा ही उदास, गुमसुम से और चुप-चुप क्यों रहते हो?’’
    तब हर्ष ने अपने मन की बात अपने दोस्त को बताते हुए कहा था, ‘‘दोस्त मैं क्या करूँ? मेरे पापा और मम्मी अपने-अपने कामों में इतने अधिक बिजी रहते हैं कि स्कूल से घर जाकर मैं बिलकुल अकेला हो जाता हूँ।’’


पेंटिंग : मेहुल कैंथोला 
    हर्ष कहते-कहते रुक गया और विपुल को लगा कि जैसे हर्ष की आँखें गीली हो गई हैं। विपुल ने हर्ष का हाथ अपने हाथ में पकड़ा तो हर्ष ने फिर बताया, ‘‘दोस्त! घर पर दो-दो टीचर मैथ्स और साइंस का ट्यूशन पढ़ाने आते हैं, लेकिन घर पर न पापा होते हैं और न ही मम्मी मिलती है तो ट्यूशन क्या खाक पढूँ?....नौकर-ही-नौकर हैं हमारी कोठी में...कभी-कभी तो जब सिर में दर्द होता है तो मन करता है कि मम्मी पास हों, लेकिन फोन पर मम्मी का एक ही जवाब होता है, ‘‘हर्ष बाबा! डोंट वरी, डियर!...मॉम एक मीटिंग में बिजी हैं डियर...तुम सर्वेंट से कहो वो तुम्हें ‘सैरिडॉन’ देकर विक्स लगा देगा...सो....ओ.के. माई चाइल्ड।’’
    और पूरी तरह रुआँसा-सा होकर हर्ष बोला था, ‘‘क्या टी.वी., फ्रिज, ए.सी., कार और नौकर मम्मी-पापा की कमी पूरी कर सकते हैं, दोस्त?’’
    तभी स्कूल की घंटी बज गई और विपुल हर्ष को साथ लेकर क्लास में चला गया।
    इसी दिन विपुल को हर्ष की उदासी और मन की बेचैनी का पहली बार अनुमान हुआ था।
    अगले दिन फिर हर्ष और विपुल साथ-साथ बैठे, तब हर्ष को पता चला कि विपुल के पिताजी इंटर कॉलेज में पढ़ाते हैं और माँ घर पर ही रहती हैं। विपुल की दीदी बी.ए. में आई हैं और रोज विपुल को पढ़ाती भी हैं। उधर विपुल के पिताजी इंटर कॉलेज में गणित और साइंस के टीचर हैं और विपुल को रोज साइंस और गणित खुद ही पढ़ाते हैं। विपुल का घर वैसे तो छोटा-सा ही है, लेकिन वे सब बड़ी खुशी से हिलमिलकर प्यार से रहते हैं।
    एक दिन स्कूल की आधी छुट्टी में जब हर्ष ने विपुल द्वारा घर से लाए हुए दो पराँठों में से एक खाया तो फिर से उसे बहुत बढ़िया स्वाद आया। खुश होकर हर्ष ने विपुल से कहा, ‘‘दोस्त, क्या तुम आज छुट्टी के बाद मुझे अपने घर लेकर चल सकते हो?’’
    खुशी से हर्ष का हाथ पकड़कर विपुल ने चहकते हुए उत्तर दिया, ‘‘अरे वाह दोस्त, जरूर ले चलूँगा तुम्हें, लेकिन....’’
    विपुल कहते-कहते रुक गया तो थोड़ा-सा घबराकर हर्ष ने पूछा, ‘‘लेकिन क्या है दोस्त? क्या घरवाले पसंद नहीं करेंगे तुम्हारे साथ मेरा आना?’’
    अब विपुल जोर से हँसा और हर्ष के कंधे पर थपकी-सी देते हुए बोला, ‘‘अरे नहीं-नहीं दोस्त, ऐसी कोई बात नहीं है। मेरी माताजी तो बहुत खुश होंगी तुम्हें देखकर, लेकिन तुम तो कार से स्कूल आते हो और मैं आता हूँ अपनी साइकिल से, तब कैसे चल पाओगे तुम?....बस यही मुस्किल है।’’
    हर्ष उछलकर बोला, ‘‘अरे दोस्त, यह तो कोई मुश्किल बात नहीं है....मैं ड्राइवर से कहकर तुम्हारी साइकिल अपनी कार में रखवा लूँगा और हम दोनों कार में बैठकर तुम्हारे घर चले जाएँगे। इस प्रकार मैं और हमारा ड्राइवर तुम्हारा घर भी देख लेंगे, ताकि फिर कभी मन होगा, तो मैं आ जाया करूँगा। क्यों ठीक है न मेरा प्लान?’’
    विपुल खुश होकर बोला, ‘‘अरे वाह! फिर तो बड़ा मजा आएगा। घर पर दीदी भी मिलेंगी।’’
    स्कूल की छुट्टी हुई तो हर्ष के साथ विपुल अपनी साइकिल स्कूल के स्टैण्ड से जाकर उठा लाया और दोनों स्कूल से बाहर आ गए। हर्ष ने अपनी कार के ड्राइवर से कहकर विपुल की साइकिल अपनी कार के पीछे डिक्की में रखवा ली।
     विपुल हर्ष के साथ कार में बैठ गया और ड्राइवर को अपने घर का रास्ता बताते हुए अपने घर ले आया।
     घर पहुँचकर हर्ष ने देखा कि विपुल की माता जी और दीदी उसका इंतजार कर रही थीं। उन्होंने जब विपुल के साथ हर्ष को देखा तो वे दोनों बहुत खुश हुई।
    हर्ष कुछ सकुचाया हुआ-सा लग रहा था, लेकिन विपुल की माताजी ने उन दोनों से कहा, ‘‘जाओ बेटे, दोनों बाथरूम में जाकर हाथ-मुँह धोकर आ जाओ, तब तक मैं तुम दोनों का खाना परोसती हूँ।’’
    विपुल के साथ बैठकर हर्ष ने जब खाना खाया तो उसे पहली बार शायद भरपूर स्वाद का आनंद मिला। विपुल की माताजी और दीदी का प्यार पाकर हर्ष की खुशी का तो जैसे ठिकाना ही नहीं रहा। हर्ष बहुत खुश था।
पेंटिंग : राधिका  शर्मा 
    कुछ देर बाद ही विपुल के पिताजी भी घर आ गए। जब उन्हें पता चला कि हर्ष कार से आया है और कार का ड्राइवर वहीं बैठा है तो उन्होंने हर्ष को भेजकर ड्राइवर को घर में बुलाकर चाय पिलवाई।
    कुछ देर में ही हर्ष को ऐसा लगा कि वह इस घर का ही हिस्सा है। जब वह जाने लगा तो विपुल के पिता जी और माँ ने कहा, ‘‘हर्ष बेटे, जब भी तुम्हारा मन हुआ करे, तुम यहाँ आ जाया करो। यह तुम्हारा ही घर है।’’
    हर्ष खुशी-खुशी अपने घर लौट आया।
    कल रात हर्ष के मम्मी-पापा घर पर थे। जब नौकर ने कमरे में आकर कहा कि हर्ष को मम्मी-पापा बुला रहे हैं तो हर्ष को सहसा विश्वास नहीं हुआ। लेकिन खुश होकर हर्ष मम्मी-पापा के पास उनके कमरे में जा पहुँचा।
    हर्ष की मम्मी बोली, ‘‘हलो, हर्ष डियर, सब बढ़िया से चल रहा है ना, डियर? हैप्पी न्यू ईयर आ रहा है। तुम्हारे पापा की एक बहुत इंर्पोटेंट मीटिंग गोवा में है, जिसमें मैं भी साथ जा रही हूँ। अब तुम हमें बताओ, हर्ष बाबा कि डैड और मॉम से तुम्हें क्या गिफ्ट चाहिए न्यू ईयर पर? हम तुम्हें दिला देंगे।’’
    हर्ष जितना खुश होकर मम्मी-पापा के कमरे में आया था, उस सारी खुशी पर जैसे पानी फिर गया। डरते-डरते ही हर्ष ने कहा, ‘‘मॉम! क्या मैं इस बार भी न्यू ईयर आप दोनों के साथ नहीं मना सकता?’’
    तो हर्ष के पापा ने कुछ झल्लाकर कहा, ‘‘नो, नो डियर। इस बार नहंी, गोवा की मीटिंग में सिर्फ स्पाउस ही जा सकते हैं, बच्चे नहीं जाएँगे....सो डियर, इस बार नहीं फिर कभी देखेंगे।’’
    हर्ष गुम-सुम सा खड़ा था, क्या करता आखिर?
    अगले दिन स्कूल में हर्ष ने विपुल से पूछा, दोस्त, तुम न्यू ईयर पर क्या करोगे?’’ तो विपुल ने उसे बताया, ‘‘दोस्त, हम लोग तो हर साल नववर्ष को अपने घर पर एक साथ मिलकर मनाते हैं और संगीत आदि कार्यक्रम करके सब साथ-साथ खाना खाते हैं।’’
    हर्ष बोला, ‘‘क्या मैं भी इस बार तुम्हारे घर आकर सबके साथ न्यू ईयर मना कसता हूँ, दोस्त?’’
    विपुल चहककर बोला, ‘‘जरूर दोस्त, जरूर आना। हमें तो और भी खुशी होगी, हर्ष। जरूर आना।’’
    और नव वर्ष विपुल के घर मनाकर हर्ष सचमुच बेहद खुश है। इस बार वह गुमसुम नहीं, उदास भी नहीं। विपुल के घर में हर्ष ने अपना असली घर ढूँढ़ लिया है। उसे इस बार अनूठा ‘गिफ्ट’ मिला है, वह है सच्ची खुशी।
    विपुल के साथ हर्ष खूब चहक रहा है।

  • 74/3, न्यू नेहरू नगर, रुड़की-247667, जिला-हरिद्वार (उत्तराखण्ड)





‘फैज’ रतलामी

मेरे बच्चो!!!

मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो
आने वाले कल की तुम ही शान हो

ज़िन्दगी को खूबसूरत दोगे मोड़
पेंटिंग : वैभव  कैंथोला 
तुम संभालोगे वतन की बागडोर
होने को तो तुम छोटी सी जान हो
मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो

फूल बन के हिन्द के महको सदा
और बन के बुलबुले चहको सदा
हिन्द के गुलशन का तुम अरमान हो
मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो

अम्न के फूलों से महके गुलिस्ताँ
इस तरफ आने न पाए अब ख़िजाँ
अब न गुलशन कोई भी वीरान हो
पेंटिंग : अभय ऐरन 
मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो

गंगा जमना कावेरी बहती रहें

गांवों के हर खेत को सींचा करें
खूब सब्जी हो यहाँ पर धान हो
मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो

ये हिमालय पर हमेशा आन से
लहलहायेगा तिरंगा शान से
सबसे ऊँचा ‘फैज’ हिन्दुस्तान हो
मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो

  • 48, समता नगर, (आनन्द कॉलोनी), रतलाम-457001(म.प्र.)


हमारे नए बाल-चित्रकार 

स्तुति शर्मा


माँ : पूनम शर्मा
पिता : ओमकार शर्मा

कक्षा : 8
जन्म : 09.01.2001

स्कूल : श्री कृष्ण जानकी सरस्वती शिशु मन्दिर, गांधी कॉलोनी, मु.नगर, उ.प्र.





राधिका  शर्मा



माँ : पूनम शर्मा
पिता : ओमकार शर्मा

कक्षा : 2 
जन्म : 27-09-2005

स्कूल : श्री कृष्ण जानकी सरस्वती शिशु मन्दिर, गांधी कॉलोनी, मु.नगर, उ.प्र.






मेहुल कैन्थोला



माँ : सुनीता कैन्थोला
पिता : संजय कैन्थोला

कक्षा : 5
जन्म : 24.04.2002 

स्कूल : एकेडमी हाईलाइट पब्लिक स्कूल, जगजीतपुर, हरिद्वार, उत्तराखंड  






वैभव  कैन्थोला



माँ : सुनीता कैन्थोला
पिता : संजय कैन्थोला


कक्षा : 3 
जन्म : 29.09.2005

स्कूल : 
एकेडमी हाईलाइट पब्लिक स्कूल, जगजीतपुर, हरिद्वार, उत्तराखंड  




अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2, अंक :7,  मार्च   2013  

।। संभावना।।  

सामग्री : विष्णु कुमार शर्मा 'कुमार' अपनी एक कविता के साथ।


विष्णु कुमार शर्मा ‘कुमार’

धरती का श्रृंगार करें

पर्यावरण प्रदूषण का हम, सब मिलकर उपचार करें।
वृक्ष लगायें हम सब मिलकर, धरती का शृृंगार करें।

हरी-भरी हो परती-धरती, अपनी वन आच्छादित हो।
शहर-गांव हो निर्मल-सुन्दर, मन सबके आह्लादित हो।
छाँह मिले संतप्त हृदय को, वातावरण तैयार करें।।
वृक्ष लगायें ........

जन्म दिवस अरु ब्याह दिवस पर, पौधा एक लगायें हम।
छाया चित्र : रोहित काम्बोज 

हर आंगन में तुलसी पौधा, सुन्दर सुखद लगायें हम।
बरगद, पीपल, नीम, आम के सुन्दर तरु तैयार करें।।
वृक्ष लगायें ........

सुखदा उपवन और वाटिका, सींचे पुष्प लगायें हम।
देख-भाल करके पुत्रों सी, धरती सुखद बनायें हम।
पुष्प वाटिका हो मन-मोहक, हम तरुओं से प्यार करें।।
वृक्ष लगायें ........

लता, पुष्प, गुल्मों से सुन्दर, सावन धरती पर लायें।
वृक्ष गंगा अभियान चलाकर, तरुओं को खूब लगायें।
सृजन शक्ति संयुक्त लगाकर, स्वप्न सभी साकार करें।।
वृक्ष लगायें ........

  • वेदनगर-उस्मानपुर, बाराबंकी-225120, उ.प्र.

किताबें

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2, अंक : 7,  मार्च   2013  


{अविराम के ब्लाग के इस अंक में रामेश्वर काम्बोज’हिमांशु’, डॉ भावना कुँअर, डॉ हरदीप सन्धु सम्पादित चर्चित हाइकु संकलन "यादों के पाखी" की  डॉ अर्पिता अग्रवाल द्वारा लिखित तथा वरिष्ठ कवयित्री डॉ सुधा गुप्ता के पर्यावरण विषयक हाइकु संग्रह "खोई हरी टेकरी" की डॉ ज्योत्सना शर्मा द्वारा लिखित समीक्षायें  रख रहे हैं। लेखकों/प्रकाशकों से अनुरोध है कृपया समीक्षा भेजने के साथ पुस्तक की एक प्रति (एक से अधिक नहींहमारे अवलोकनार्थ डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला - हरिद्वार, उत्तराखण्ड के पते पर भेजें।}



डॉ अर्पिता अग्रवाल






‘यादों के पाखी’: एक उपलब्धि

‘यादों के पाखी’ सन् 2012 की साहित्यिक सौगात के रूप में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है ।इस संकलन में एक नवीन प्रयोग है-यह प्रयोग आजकल हमारे दैनन्दिन जीवन में जगह बना चुका है -इसे आज जनसामान्य ‘थीम आइडिया’ के नाम से जानता है । सम्पादकों ने विशिष्ट दृष्टिकोण के अन्तर्गत ‘स्मृति’ का थीम आइडिया लिया है । संग्रह का शीर्षक बहुत ही उपयुक्त है; क्योंकि इसमें इस संग्रह में देश-विदेश के 48 रचनाकारों के 793 हाइकु एक स्थान पर सम्पादित और संकलित किए गए हैं ।इसमें नए -पुराने , वरिष्ठ-कनिष्ठ हाइकुकारों के हाइकु हैं ;जो सभी ने अपनी-अपनी मधुर-कटु स्मृतियों को आधार बनाकर लिखे हैं। इस तरह के हाइकु को पढ़ना बड़ा ही मनोरंजक और तुष्टिदायक है।
      यादों के लिए प्रयुक्त उपमानों की विविधता मान को बाँध लेती है । जहाँ एक ओर कुछ उपमान प्राय: सभी हाइकुकारों ने प्रयुक्त किए हैं, जैसे-पाखी , परिन्दे, जुगनू, मृग, गुलाब , सुधियों की छाया , फूल , सुगन्ध आदि । वहीं कुछ ने अपनी कलात्मक सुरुचि का परिचय देते हुए लाक्षणिकता का कौशल चरम पर पहुँचा दिया है , जिससे वे हाइकु इस संग्रह में अपनी सुरभि वितरित कर रहे हैं। उनकी मूल्यवत्ता को सहृदय पाठक अलग पहचान लेता है ।सुरुचिपूर्ण अच्छे हाइकु में से कुछ हाइकु द्रष्टव्य हैं; जिनमें कहीं तोतले दिनों की याद है , कहीं पेड़ों पर साथ -साथ नाम लिखने के पल स्मृति-पटल पर छाए हुए हैं , कहीं भूली -बिसरी यादों के ख़त हैं तो कहीं हिलते रूमाल -सी याद कौंध रही हैं-
-तोतले दिन / जिस संग बिताए / यादों में आए -डॉ हरदीप कौर सन्धु

-भीगती शाम / साथ-साथ लिखेंगे / पेड़ों पे नाम - डॉ गोपाल बाबू शर्मा

-यूँ खोलो मत /भूली-बिसरी हुई / यादों के ख़त -डॉ भावना कुँअर

-टेरती रही /हिलते रूमाल -सी / व्याकुल यादें -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

माँ के लिए बच्चे के खिलौने याद दिला जाते हैं तो कहीं अचानक चूड़ियों की तरह पुरानी याद खनक उठती है तो कहीं यादों को लिखने के लिए टूटी कलम ही बची है

5-तेरे खिलौने / चिपकाके सो जाती / रोते-रोते माँ -रचना श्रीवास्तव

6-तेरी वो याद / चूड़ी-सी खनकी थी / बरसों बाद -मंजु मिश्रा

7-कहीं भी जाऊँ / परछाई-सी साथ / यादें तुम्हारी -कमला निखुर्पा

8-टूटी कलम / लिखे यादों की दास्ताँ/ बिन स्याही के -श्याम सुन्दर अग्रवाल

          कुल मिलाकर य संकलन सुरुचिपूर्ण एव सार्थक है और हिन्दी हाइकु काव्य के इतिहास में अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज़ कराने में सक्षम है ।


यादों के पाखी : सम्पादक - रामेश्वर काम्बोज’हिमांशु’, डॉ भावना कुँअर, डॉ हरदीप सन्धु ; संयोजन- रचना श्रीवास्तव ;पृष्ठ :136 (सजिल्द), मूल्य : 200 रुपये; संस्करण :2012 , प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030
  • 120 बी/ 2 साकेत मेरठ -250003




डॉ ज्योत्स्ना शर्मा 






’खोई हरी टेकरी’ के जंगल को गाने दो

       साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं अपितु सचेतक और मार्ग दर्शक भी है । तीनों ही विशेषताओं को आत्मसात् किये डॉ सुधा गुप्ता जी द्वारा विरचित पुस्तिका ‘खोई हरी टेकरी’ इसी अवधारणा को पुष्ट करती है ।पर्यावरण के प्रति समाज का उदासीन व्यवहार ,उस पर चिंतन को विवश करते साथ ही समाधान प्रस्तुत करते हाइकु वास्तव में ऐसे अमृत बिंदु हैं जो संवेदनहीन, मृत प्राय समाज में जीवन का संचरण करने में पूर्णत : समर्थ हैं । कवयित्री पहले ही हाइकु से समाज को सचेत करती दृष्टिगोचर होती हैं -‘चेत मानव / फल फूल छाया है / पेड़ों की माया।’ 
        सौन्दर्य में विचरण करती दृष्टि से समाज कल्याण कभी ओझल नहीं होता- 
               ‘तरु चिकित्सा /पर्यावरण शुभ /हरीतिमा भी ।’ 
       कहीं निसर्ग पुत्री ने हरी-भरी पुष्पान्विता धरा को सुवसना युवती के रूप में देखा ..... 
              ‘हरा लहँगा /फूलों कढी ओढ़नी /सजी है धरा ।’,वहीं दूसरी ओर...जादुई छड़ी लिये परी सी दिखती आज वृक्ष-विहीन होती हुई-ऋतम्भरा धरा लज्जावनत सी दिखाई देती है ।विकास के भ्रम में हरियाली का विनाश करता मानव ऋषि मुनि जैसे वृक्षों के शाप का अधिकारी तथा स्वयं के ही विनाश का कारण बन जाता है - ‘मानव बना /प्रकृति का दुश्मन /स्वयं का विनाश ।’
         प्रकृति के कोप से वायु दूषित हो रोगिणी हो गई है ,चिड़ियों का दम घुटता है और वो गीत भूल गई हैं ।शरद पूनो भी गर्द की मारी पीली पड़ गई है -‘शरद पूनो /पीली पड़ी बेचारी /गर्द की मारी ।’ 
         फिर मनुष्य का तो कहना ही क्या ! मेघ रूठ गए हैं , नदी सूख गई है और कूप बावड़ी भी खाली हैं ।इस बेसुध मानव व्यवहार पर कवयित्री की पैनी दृष्टि पड़ी है ।सड़कों पर सार्वजनिक नल जिस तरह खुले पड़े रहते हैं , यह स्थिति चिन्ताजनक है । वह कह उठती हैं -   ‘साक्षात काल /पानी की बरबादी/इसे बचाओ ।’ 
           शांत प्रकृति के मधुर संगीत में रमी कवयित्री की प्रवृत्ति को आज का शोर भरा संगीत संगीत नहीं लगता -‘आज का मीत /कान फाड़ संगीत /कल का यम ।’ 
         आज वर्षा की प्रथम फुहार पर सौंधी सौंधी गंध नहीं आती। मौसम के अप्रत्याशित व्यवहार के लिए भी स्वयं मानव व्यवहार एवं आकाशीय प्रदूषण को उत्तरदायी मानती हैं और चेताती हैं -  वर्षा फुहार /खोई महक जो थी /प्राणदायिनी ।    
-बदल डाले /ग्रीष्म शीत मानक /सूर्य कोप ने । 
     कब चेतोगे /करो रफू चादर /ओजोन पर्त। 
        अंत में ..गौरैया ,मोनाल कस्तूरी मृग और यायावर सारस को खोजती कवयित्री गा उठती हैं मधुर रस सिक्त जंगल का गीत - 
स्वाधीन मुक्त /सदा मस्ती में डूबा /सबका मीत । 
आत्म विभोर /प्रभु-भक्ति में लीन /सबसे प्रीत । 
तथा साथ ही एक सद्भावना -सन्देश -‘‘मनमौजी है /जंगल को गाने दो / अपना गीत।’ 
        सुधा जी की सशक्त लेखनी सहृदयों को वहाँ पहुँचा देती है कि जहाँ उन्हें होना चाहिए ।किम् अधिकम् .....’खोई हरी टेकरी’ को पढ़ना तप्त मरुभूमि में ऐसी हरी टेकरी को पा लेना है; जो अपने सुन्दर ,सुगन्धित पुष्पों से सहृदयों के मन और हिंदी-हाइकु-उपवन को सदा सुवासित करती रहेगी ।

’खोई हरी टेकरी’( पर्यावरण -हाइकु) :  डॉ सुधा गुप्ता। प्रकाशक : पर्यावरण शोध एवं शिक्षा संस्थान,506/13 शास्त्रीनगर मेरठ-250004; पृष्ठ : 64 ; मूल्य : 80 रुपये , संस्करण:2013

  • प्रमुख हिल्स ,एच टावर -६०४ ,छरवाडा रोड ,वापी ,जिला –वलसाड -पिन -३९६१९१ -गुजरात (भारत)

गतिविधियाँ

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 2,   अंक  : 7,  मार्च  2013 

मिन्नी कहानी (लघुकथा) पर लुधियाना में सेमिनार

          17 मार्च को लुधियाना में  मिन्नी कहानी पर पंजाबी साहित्य अकादमी लुधियाना द्वारा सेमिनार का आयोजन किया गया। इममें  डा. अनूप सिंह, डा. नैब सिंह मंडेर और डा. श्याम सुंदर दीप्ति ने आलेख पढ़े, जबकि अध्यक्ष मंडल में  डा. अशोक भाटिया, प्रो. निरंजन तस्नीम, मित्तर सेनमीत और गुरपाल लिट्ट मौजूद थे।
         अकादमी के सचिव और सेमिनार के संयोजक-संचालक सुरिंदर कैले ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए कहा कि मिन्नी कहानी के आलोचना पक्ष पर बहुत कम काम हुआ है। यह सेमिनार उसके एक पड़ाव का काम करेगा। डा. अनूप सिंह ने ‘मिन्नी कहानी में राजनीतिक व सामाजिक चेतना’ विषय  पर बोलते हुए कहा कि पंूजीवाद की चरमसीमा के दौर में मिन्नी कहानी का उभार हुआ है। मिन्नी कहानी में तनाव-लटकाव व जिज्ञासा जरूरी है, व्यंग्य जरूरी नहीं। उन्होंने कहा कि मिन्नी कहानी में सामाजिक सरोकार व प्रतिनिधि यथार्थ होना चाहिए। डा. नैब सिंह मंडेर ने ‘मिन्नी कहानी में नारी की दशा  व दिशा ’ आलेख पढ़ते हुए नारी की वर्तमान सामाजिक स्थिति पर प्रकाश  डाला। उन्होंने कहा कि पूँजीवादी युग के प्रांरभ होने से स्त्री की चेतना बढ़ी है और उसमें बराबरी की संभावनाओं ने जन्म लिया है। फिर अनेक मिन्नी कहानियों का उदाहरण देकर स्पष्ट  किया कि मिन्नी कहानी में  नारी-चेतना को संघर्ष  में तब्दील करने की कोशिश  की गई है। डा. श्यामसुंदर दीप्ति ने ‘मिन्नी कहानी में बुजुर्गों का जन-जीवन’ विशय पर बोलते हुए कहा कि एक तरफ़ अकेलापन है, तो दूसरी तरफ़ मां-बाप बच्चों को ‘सेट’ करने की लालसा में देश  के कोने-कोने ही नहीं, विदेश  में भी उन्हें खुद ही भेजते हैं। उन्होंने कहा कि विषय से पहले लेखकों को मिन्नी कहानी का रूपक स्पष्ट  होना जरूरी है। थोड़े शब्दों में अधिक करने के लिए बड़े अभ्यास की जरूरत होती है। कई लेखक मिन्नी कहानी को साहित्य में प्रवेश-द्वार की तरह लेते हैं।
         चर्चा में भाग लेते हुए हरप्रीत सिंह राणा ने कहा कि कमजोर कहानियों के बीच मॉडल मिन्नी कहानियाँ दब गई है। उन्होंने मिन्नी कहानी के काव्य षास्त्रीय पक्ष पर भी लिखे जाने पर बल दिया। हरभजन खेमकरनी ने नए मिन्नी कहानीकारों द्वारा श्रेश्ठ साहित्य न पढ़ने और छपने को बहुत महत्व देने पर चिंता जाहिर की। सूफी अमरजीत ने कहा कि हरेक लेखक का विधान-संबंधी अपना ही मापदंड होता है। मिन्नी कहानी को अन्य विधाओं की भांति महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता, जबकि मिन्नी कहानी भी जीवन से जुड़ी है।
         अध्यक्ष मंडल से मित्तर सेन मीत ने कहा कि मिन्नी कहानी की भांति मिन्नी उपन्यास का भी विधा-विधान बनाया जाना चाहिए। प्रो. निरंजन तस्नीम ने कहा कि संक्षिप्तता ही मिन्नी कहानी का प्रमुख गुण है। उन्होंने मंटो की ‘स्याह हाशिए’ से कुछ लघुकथाएं प्रस्तुत कर मिन्नी कहानी की शक्ति को रेखांकित किया। गुरपाल लिट्ट ने कहा कि ‘अणु’ ने सबसे पहले मिन्नी कहानी को प्रकाशित किया है। इसका दूसरा अंक सन् 1972 में  ‘मिन्नी कहानी विशेषांक (विद्रोही रंग) था। 1970 के दशक में बंगाल में बांग्ला मिन्नी कहानियों की कई पत्रिकाएं आती थीं।
        अंत में मिन्नी कहानी (लघुकथा) के विशेषज्ञ डा. अशोक भाटिया ने कहा कि पंजाबी अकादमी द्वारा मिन्नी कहानी पर लगातार तीसरे वर्ष  सेमिनार का आयोजन और पढ़े गए तीन आलेख पंजाबी साहित्य में मिन्नी कहानी की मजबूत दस्तक के प्रमाण हैं। किंतु मिन्नी कहानी (लघुकथा) को शब्दों, वाक्यों या पंक्तियों जैसे बाहरी आधारों से मापना गलत है। ऐसा किसी भी विधा में नहीं होता। एक तो छोटे कैनवास के कारण मिन्नी कहानी बहुत विस्तार नहीं ले पाती, फिर उस पर रचना-विरोधी शर्तें थोपना उसके पनपने में बाधाएं खड़ी करने जैसा है। यह लघुकथा के भविष्य  के लिए अच्छा संकेत नहीं है। उदय प्रकाश  की कहानियों ‘पीली छतरी वाली लड़की’ आदि के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कहानी तीन-चार पृष्ठ  से करीब डेढ़ सौ पृष्ठ  तक जाती है, तो मिन्नी कहानी (लघुकथा) के लिए ही क्या मुसीबत है कि वह एक पृष्ठ  के घूँघट से बाहर झाँक भी नहीं सकती। ऐसी बाहरी शर्तें रचना और पात्रों पर दबाव बनाती हैं और उसके सहज सौंदर्य को नष्ट  करती हैं। वास्तव में रचनाएँ ही रचना-विधान बनाती और संवारती हैं। अच्छी रचना वह है जिसे पढ़कर पाठक का कद बढ़ जाए।
         इस अवसर पर सुरिंदर कैले द्वारा संपादित ‘अणु कहानियां’ पुस्तक का विमोचन भी किया गया, जिसमें चार दशकों में ‘अणु’ पत्रिका में छपी प्रतिनिधि लघुकथाएं व उन पर आलेख शामिल हैं।
      इस अवसर पर त्रिलोचन लोची, धर्मपाल साहिल, रणजीत आजाद कांझला, गुरचरण कौर कोचर, मलकीत सिंह बिलिंग, जोगिंदर भाटिया, गुरमीत सिंह बिरदी, जसबीर सिंह सोहल, इंजी. डी.एम सिंह, प्रो. उत्तमदीप कौर, दलबीर लुधियानवी, वसीम मलेरकोटला, लील दयालपुरी, करमजीत ग्रेवाल आदि बड़ी संख्या में लेखक-श्रोता उपस्थित थे।
(समाचार सौजन्य : डॉ अशोक भाटिया, करनाल)

 "आर्ट टुडे" द्वारा अखिल भारतीय आर्ट प्रतियोगिता


श्री रितेश गुप्ता के संयोजन में रुड़की की संस्था "आर्ट टुडे" द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर एक आर्ट प्रतियोगिता करायी जा रही है। संक्षिप्त विवरण यहाँ दिए बैनर पर अंकित है।  (समाचार सौजन्य :  रितेश गुप्ता )




































अपनी माटी द्वारा चित्तौड़ में संगोष्ठी

रचनाकार को अपने वैयक्तिक जीवन के साथ ही सामाजिक यथार्थ को ध्यान में रखकर रचनाएं गढ़ना चाहिए।जो लेखक सच और सामने आते हालातो को दरकिनार कर ग़र आज भी प्रकृति और प्यार में ही लिख रहा है तो ये समय और समाज कभी उसे माफ़ नहीं करेगा।वे तमाम शायर मरे ही माने जाए जो अपने वक़्त की बारीकियां नहीं रच रहे हैं।इस पूरी प्रक्रिया में ये सबसे पहले ध्यान रहे कि कविता सबसे पहले कविता हो बाद में और कुछ।

ये विचार साहित्य और संस्कृति की ई-पत्रिका अपनी माटी के संरक्षक और हिंदी समालोचक डॉ सत्यनारायण व्यास ने नौ मार्च को चित्तौड़ में संपन्न कवि संगोष्ठी में व्यक्त किये।युवा समीक्षक डॉ कनक जैन के संचालन और गीतकार अब्दुल ज़ब्बार,वरिष्ठ कवि शिव मृदुल की अध्यक्षता में हुए इस आयोजन में नगर के चयनित कवियों ने प्रबुद्ध श्रोताओं के बीच कवितायेँ पढ़ी। संगोष्ठी की शुरुआत में नगर की लेखक बिरादरी में शामिल दो नए साथियों ने पहली बार रचनाएं पढ़ी। अरसे बाद किसी अनौपचारिक माहौल में हुए इस कार्यक्रम में प्रगतिशील युवा कवि विपुल शुक्ला ने पढ़ना, समय, सीमा, जैसी रचनाएं और कौटिल्य भट्ट 'सिफ़र' ने दो गज़लें पढ़कर वर्तमान दौर पर बहुतरफ़ा कटाक्ष किये।इससे ठीक पहले लोकगीतों की जानकार चंद्रकांता व्यास ने सरवती वन्दना सुनायी।

अपनी माटी संस्थापक माणिक ने हाशिये का जीवन जीते आदिवासियों पर केन्द्रित कविता आखिर कभी तो और व्यंग्य प्रधान कविता आप कुछ भी नहीं हैं सुनायी।सुनायी जा रही कविताओं में यथासमय श्रोताओं ने भी अपनी समीक्षात्मक टिप्पणियाँ देकर संगोष्ठी को सार्थक बनाया।दूसरे दौर में डॉ रमेश मयंक ने अजन्मी बेटी के सवाल और आओ कल बनाएँ जैसे शीर्षक की कविताओं के बहाने जेंडर संवेदनशीलता और समकालीन राजनीति पर टिप्पणियाँ की।राजस्थानी गीतकार नंदकिशोर निर्झर ने कुछ मुक्तक पढ़ने के बाद आज़ादी के बाद के पैंसठ सालों को आज़ादी के पहले के सालों पर तुलनापरक कविता सुनायी जिसे बहुत सराहा गया।

राष्ट्रीय पहचान वाले मीठे गीतकार रमेश शर्मा ने अपना नया गीत मेरा पता सुनाकर हमारे देश में ही बसे दो तबकों के जीवन में मौलिक ढंग से झांकने और उसका विवरण देने की कोशिश की। गीतों में आयी नयी शब्दावली से उनके गंवई परिवेश की खुशबू हम तक आती है। इसी बीच अब्दुल ज़ब्बार ने अपने प्रतिनिधि शेर और एक गीत गरीब के साथ विधाता है पढ़ा। उनके चंद शेर
बेकार वो कश्ती जो किनारा न दे सके
बेकार वो बस्ती जो भाईचारा न दे सके।
बेकार जवानी वो ज़ब्बार ज़हाँ में
बुढापे में जो माँ -बाप को सहारा न दे सके।।
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जब ज़िंदगी ही कम है मुहब्बत के वास्ते
लाऊँ कहाँ से वक़्त नफ़रत के वास्ते।
शराफत नाम रखने से शराफत कब मयस्यर है
शराफत भी ज़रूरी है शराफत के वास्ते।।
      इस अवसर पर कविवर शिव मृदुल ने अपने कुछ मुक्तक,छंद और दोहे प्रस्तुत किये। आखिर में आम आदमी की पीड़ा विषयक कविता सुनायी। डॉ सत्यनारायण व्यास ने अपनी पहचान के विपरीत पहली बार दो गज़लें सुनायी।जिसके चंद शेर ये रहे कि-
जंगल में जैसे तेंदुआ बकरी को खा गया
थी झोंपड़ी गरीब की बिल्डर चबा गया।
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नज़रें गढ़ी थी और फिर मौक़ा मिला ज्यों ही
बेवा के नन्हे खेत को ठाकुर दबा गया।
          उन्होंने और फिर एक कविता तू वही सुनायी जिसमें ज़िंदगी की सार्थक परिभाषाएं सामने आ सकी।इस असार संसार में उलझे बगैर हमें मानव जीवन के सार्थक होने का सोच करना चाहिए जैसा चिंतन निकल कर आया।
         अपनी माटी की इस संगोष्ठी में समीक्षक डॉ राजेश चौधरी, चिकित्सक डॉ महेश सनाढ्य, शिक्षाविद डॉ ए एल जैन, कोलेज प्राध्यापिका डॉ सुमित्रा चौधरी, कुसुम जैन, सरिता भट्ट, गिरिराज गिल, विकास अग्रवाल ने अपनी टिप्पणियों के साथ शिरकत की। आभार युवा विचारक डॉ रेणु व्यास ने व्यक्त किया।
( समाचार सौजन्य : माणिक,चित्तौड़गढ़ )

शब्द साधको को शब्द प्रवाह सम्मान से नवाजा गया
       
शब्द प्रवाह साहित्य मंच द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान का आयोजन 24 मार्च 2013 को किया गया।
        आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार डा. रामसिंह यादव और मोहन सोनी को शब्द साधक की मानद उपाधि प्रदान की गई| सम्मान समारोह में संदीप राशिनकर इंदौर को शब्द कला साधक की उपाधि दी गई। सम्मानार्थ आमंत्रित कृतियों के तहत मुकेश जोशी उज्जैन, स्व. साजिद अजमेरी अजमेर, ए.एफ. नजर सवाई माधोपुर, गोविंद सेन मनावर, शिशिर उपाध्याय बढ़वाह, गाफिल स्वामी अलीगढ़, सूर्यनारायणसिंह सूर्य देवरिया, श्रीमती रीता राम मुंबई, श्रीमती सुधा गुप्ता अमृता कटनी, शिवचरण सेन शिवा झालावाड़, सुरेश कुशवाह भोपाल, श्रीमती रोशनी वर्मा इंदौर, बीएल परमार नागदा, श्रीमती दुर्गा पाठक मनावर को सम्मानित किया गया। दिनेशसिंह शिमला, श्रीमती पुष्पा चैहान नागदा, महेंद्र श्रीवास्तव, अभिमन्यु त्रिवेदी उज्जैन, अब्बास खान संगदिल छिंदवाड़ा, राधेश्याम पाठक उत्तम उज्जैन, उदयसिंह अनुज घरगांव, स्वप्निल शर्मा मनावर, राजेंद्र निगम राज गाजियाबाद, संजय वर्मा दृष्टि मनावर, सुनीलकुमार वर्मा मुसाफिर इंदौर, डा. माया दुबे भोपाल, श्रीप्रकाशसिंह शिलांग, रविश रवि फरीदाबाद, राजेश राज उज्जेन को साहित्य सेवा के लिए सम्मानित किया गया।
         समारोह मे 20 रचनाकारों के अ.भा. काव्य संकलन शब्द सागर (सम्पादक कमलेश व्यास कमल) ,महेन्द्र श्रीवास्तव की कृति दोहों की बारहखडी, कोमल वाधवानी प्रेरणा की कृति नयन नीर, यशवंत दीक्षित की कृति रेत समंदर बहा गया, अरविंद सनम् की कृति हर घर मे उजाला जाये, संदीप सृजन की कृति गाँव की बेटी का विमोचन भी किया गया | दुसरे शत्रु मे अ.भा.कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ |
       प्रथम सत्र डा. रामराजेश मिश्र की अध्यक्षता और अनिलसिंह चंदेल, रामसिंह जादौन व डा. पुष्पा चैरसिया के आतिथ्य में संपन्न हुआ। दूसरे सत्र में डा. शैलेंद्रकुमार शर्मा की अध्यक्षता में प्रो. बी.एल. आच्छा, डा. दीपेंद्र शर्मा, श्रीमती पूर्णिमा चतुर्वेदी व डा. श्याम अटल अतिथि के रूप में उपस्थित थे। स्वागत शब्द प्रवाह के संपादक संदीप ‘सृजन‘ ने किया। संचालन डा. सुरेंद्र मीणा और डा. रावल ने किया। आभार कमलेश व्यास ने माना। (समाचार सौजन्य : संदीप ‘सृजन‘)


लाल कला मंच द्वारा रंग अबीर उत्सव-एवं सम्मान समारोह-2013 

         
लाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच(रजि.) द्वारा सामाजिक भाईचारे का पावन पर्व होली के शुभ अवसर पर एक सरस काव्य गोष्ठी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मिला जुला रुप रंग अबीर उत्सव-2013(काव्य गोष्टी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम) का आयोजन अल्फा शैक्षणिक संस्थान,मीठापुर के प्रांगण में वरिष्ठ सामाजसेवी मास्टर डंबर सिंह की अध्यक्षता में समपन्न हुआ। इस कार्यक्रम की शुरुआत लाल बिहारी लाल के सरस्वती वंदना-ऐसा माँ वर दे/विद्या के संग-संग/सुख समृद्धि से सबको भर दे, से शुरु हुआ। कार्यक्रम के अतिथि कामरेड जगदीश चंद्र शर्मा,मीठापुर के पूर्व निगम पार्षद महेश आवाना, समाजवादी आत्मा राम पांचाल तथा गौरव बिन्दल थे। इस कार्यक्रम का संयोजन दिल्ली रत्न श्री लाल बिहारी लाल का था तथा संचालन वरिष्ठ साहित्यकार डा. ए. कीर्तिबर्धन ने किया। इस अवसर पर कवियों एवं बच्चों को संस्था द्वारा काव्य सेवी सम्मान अतिथियों द्वारा एवं अतिथियों को डा.आर कान्त एवं डा.के.के. तिवारी द्वारा समाजसेवी सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरुप अंग वस्त्र एवं सम्मान-पत्र प्रदान किया गया।
     इस कार्यक्रम में स्थानीय विभिन्न स्कूलों के बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं दर्जनों कवियों ने भी इस समारोह मे भाग लिया जिसमें-राकेश महतों, रवि शंकर, कृपा शंकर,दिनेश चन्द्र पाण्डेय, लाल बिहारी लाल ने कहा- होली – होली की तरह मिल के मनायें संग।
                   जतन करें मिज जूल केबिखरे शुशी के रंग।।

           इसके  अलावें डा.ए.कीर्तिबर्धन, सुश्री शिवरंजनी,,श्री के.पी. सिंह,श्री राकेश कन्नौजी, डा. सी.एन.शर्मा, हवलदाऱ शास्त्री,ब्रजवासी तिवारी मा.डंबर सिंह तनवर आदी प्रमुख थे। तुलसी शर्मा, मुरारी कुमार, महेश सिंगला, मलखान सैफी, श्रीमती शारदा गुप्ता,श्री मनोज गुप्ता सहित अनेक गन्य-मान्य ब्यक्ति मैयूद थे। अन्त में संस्था के आध्यक्ष श्रीमती सोनू गुप्ता ने कवियो, अतिथियों एवं विभिन्न स्कूल से आये हुए बच्चों को धन्यवाद दिया। (समाचार सौजन्य : लाल बिहारी गुप्ता लाल)