आपका परिचय

मंगलवार, 26 मार्च 2013

किताबें

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2, अंक : 7,  मार्च   2013  


{अविराम के ब्लाग के इस अंक में रामेश्वर काम्बोज’हिमांशु’, डॉ भावना कुँअर, डॉ हरदीप सन्धु सम्पादित चर्चित हाइकु संकलन "यादों के पाखी" की  डॉ अर्पिता अग्रवाल द्वारा लिखित तथा वरिष्ठ कवयित्री डॉ सुधा गुप्ता के पर्यावरण विषयक हाइकु संग्रह "खोई हरी टेकरी" की डॉ ज्योत्सना शर्मा द्वारा लिखित समीक्षायें  रख रहे हैं। लेखकों/प्रकाशकों से अनुरोध है कृपया समीक्षा भेजने के साथ पुस्तक की एक प्रति (एक से अधिक नहींहमारे अवलोकनार्थ डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला - हरिद्वार, उत्तराखण्ड के पते पर भेजें।}



डॉ अर्पिता अग्रवाल






‘यादों के पाखी’: एक उपलब्धि

‘यादों के पाखी’ सन् 2012 की साहित्यिक सौगात के रूप में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है ।इस संकलन में एक नवीन प्रयोग है-यह प्रयोग आजकल हमारे दैनन्दिन जीवन में जगह बना चुका है -इसे आज जनसामान्य ‘थीम आइडिया’ के नाम से जानता है । सम्पादकों ने विशिष्ट दृष्टिकोण के अन्तर्गत ‘स्मृति’ का थीम आइडिया लिया है । संग्रह का शीर्षक बहुत ही उपयुक्त है; क्योंकि इसमें इस संग्रह में देश-विदेश के 48 रचनाकारों के 793 हाइकु एक स्थान पर सम्पादित और संकलित किए गए हैं ।इसमें नए -पुराने , वरिष्ठ-कनिष्ठ हाइकुकारों के हाइकु हैं ;जो सभी ने अपनी-अपनी मधुर-कटु स्मृतियों को आधार बनाकर लिखे हैं। इस तरह के हाइकु को पढ़ना बड़ा ही मनोरंजक और तुष्टिदायक है।
      यादों के लिए प्रयुक्त उपमानों की विविधता मान को बाँध लेती है । जहाँ एक ओर कुछ उपमान प्राय: सभी हाइकुकारों ने प्रयुक्त किए हैं, जैसे-पाखी , परिन्दे, जुगनू, मृग, गुलाब , सुधियों की छाया , फूल , सुगन्ध आदि । वहीं कुछ ने अपनी कलात्मक सुरुचि का परिचय देते हुए लाक्षणिकता का कौशल चरम पर पहुँचा दिया है , जिससे वे हाइकु इस संग्रह में अपनी सुरभि वितरित कर रहे हैं। उनकी मूल्यवत्ता को सहृदय पाठक अलग पहचान लेता है ।सुरुचिपूर्ण अच्छे हाइकु में से कुछ हाइकु द्रष्टव्य हैं; जिनमें कहीं तोतले दिनों की याद है , कहीं पेड़ों पर साथ -साथ नाम लिखने के पल स्मृति-पटल पर छाए हुए हैं , कहीं भूली -बिसरी यादों के ख़त हैं तो कहीं हिलते रूमाल -सी याद कौंध रही हैं-
-तोतले दिन / जिस संग बिताए / यादों में आए -डॉ हरदीप कौर सन्धु

-भीगती शाम / साथ-साथ लिखेंगे / पेड़ों पे नाम - डॉ गोपाल बाबू शर्मा

-यूँ खोलो मत /भूली-बिसरी हुई / यादों के ख़त -डॉ भावना कुँअर

-टेरती रही /हिलते रूमाल -सी / व्याकुल यादें -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

माँ के लिए बच्चे के खिलौने याद दिला जाते हैं तो कहीं अचानक चूड़ियों की तरह पुरानी याद खनक उठती है तो कहीं यादों को लिखने के लिए टूटी कलम ही बची है

5-तेरे खिलौने / चिपकाके सो जाती / रोते-रोते माँ -रचना श्रीवास्तव

6-तेरी वो याद / चूड़ी-सी खनकी थी / बरसों बाद -मंजु मिश्रा

7-कहीं भी जाऊँ / परछाई-सी साथ / यादें तुम्हारी -कमला निखुर्पा

8-टूटी कलम / लिखे यादों की दास्ताँ/ बिन स्याही के -श्याम सुन्दर अग्रवाल

          कुल मिलाकर य संकलन सुरुचिपूर्ण एव सार्थक है और हिन्दी हाइकु काव्य के इतिहास में अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज़ कराने में सक्षम है ।


यादों के पाखी : सम्पादक - रामेश्वर काम्बोज’हिमांशु’, डॉ भावना कुँअर, डॉ हरदीप सन्धु ; संयोजन- रचना श्रीवास्तव ;पृष्ठ :136 (सजिल्द), मूल्य : 200 रुपये; संस्करण :2012 , प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030
  • 120 बी/ 2 साकेत मेरठ -250003




डॉ ज्योत्स्ना शर्मा 






’खोई हरी टेकरी’ के जंगल को गाने दो

       साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं अपितु सचेतक और मार्ग दर्शक भी है । तीनों ही विशेषताओं को आत्मसात् किये डॉ सुधा गुप्ता जी द्वारा विरचित पुस्तिका ‘खोई हरी टेकरी’ इसी अवधारणा को पुष्ट करती है ।पर्यावरण के प्रति समाज का उदासीन व्यवहार ,उस पर चिंतन को विवश करते साथ ही समाधान प्रस्तुत करते हाइकु वास्तव में ऐसे अमृत बिंदु हैं जो संवेदनहीन, मृत प्राय समाज में जीवन का संचरण करने में पूर्णत : समर्थ हैं । कवयित्री पहले ही हाइकु से समाज को सचेत करती दृष्टिगोचर होती हैं -‘चेत मानव / फल फूल छाया है / पेड़ों की माया।’ 
        सौन्दर्य में विचरण करती दृष्टि से समाज कल्याण कभी ओझल नहीं होता- 
               ‘तरु चिकित्सा /पर्यावरण शुभ /हरीतिमा भी ।’ 
       कहीं निसर्ग पुत्री ने हरी-भरी पुष्पान्विता धरा को सुवसना युवती के रूप में देखा ..... 
              ‘हरा लहँगा /फूलों कढी ओढ़नी /सजी है धरा ।’,वहीं दूसरी ओर...जादुई छड़ी लिये परी सी दिखती आज वृक्ष-विहीन होती हुई-ऋतम्भरा धरा लज्जावनत सी दिखाई देती है ।विकास के भ्रम में हरियाली का विनाश करता मानव ऋषि मुनि जैसे वृक्षों के शाप का अधिकारी तथा स्वयं के ही विनाश का कारण बन जाता है - ‘मानव बना /प्रकृति का दुश्मन /स्वयं का विनाश ।’
         प्रकृति के कोप से वायु दूषित हो रोगिणी हो गई है ,चिड़ियों का दम घुटता है और वो गीत भूल गई हैं ।शरद पूनो भी गर्द की मारी पीली पड़ गई है -‘शरद पूनो /पीली पड़ी बेचारी /गर्द की मारी ।’ 
         फिर मनुष्य का तो कहना ही क्या ! मेघ रूठ गए हैं , नदी सूख गई है और कूप बावड़ी भी खाली हैं ।इस बेसुध मानव व्यवहार पर कवयित्री की पैनी दृष्टि पड़ी है ।सड़कों पर सार्वजनिक नल जिस तरह खुले पड़े रहते हैं , यह स्थिति चिन्ताजनक है । वह कह उठती हैं -   ‘साक्षात काल /पानी की बरबादी/इसे बचाओ ।’ 
           शांत प्रकृति के मधुर संगीत में रमी कवयित्री की प्रवृत्ति को आज का शोर भरा संगीत संगीत नहीं लगता -‘आज का मीत /कान फाड़ संगीत /कल का यम ।’ 
         आज वर्षा की प्रथम फुहार पर सौंधी सौंधी गंध नहीं आती। मौसम के अप्रत्याशित व्यवहार के लिए भी स्वयं मानव व्यवहार एवं आकाशीय प्रदूषण को उत्तरदायी मानती हैं और चेताती हैं -  वर्षा फुहार /खोई महक जो थी /प्राणदायिनी ।    
-बदल डाले /ग्रीष्म शीत मानक /सूर्य कोप ने । 
     कब चेतोगे /करो रफू चादर /ओजोन पर्त। 
        अंत में ..गौरैया ,मोनाल कस्तूरी मृग और यायावर सारस को खोजती कवयित्री गा उठती हैं मधुर रस सिक्त जंगल का गीत - 
स्वाधीन मुक्त /सदा मस्ती में डूबा /सबका मीत । 
आत्म विभोर /प्रभु-भक्ति में लीन /सबसे प्रीत । 
तथा साथ ही एक सद्भावना -सन्देश -‘‘मनमौजी है /जंगल को गाने दो / अपना गीत।’ 
        सुधा जी की सशक्त लेखनी सहृदयों को वहाँ पहुँचा देती है कि जहाँ उन्हें होना चाहिए ।किम् अधिकम् .....’खोई हरी टेकरी’ को पढ़ना तप्त मरुभूमि में ऐसी हरी टेकरी को पा लेना है; जो अपने सुन्दर ,सुगन्धित पुष्पों से सहृदयों के मन और हिंदी-हाइकु-उपवन को सदा सुवासित करती रहेगी ।

’खोई हरी टेकरी’( पर्यावरण -हाइकु) :  डॉ सुधा गुप्ता। प्रकाशक : पर्यावरण शोध एवं शिक्षा संस्थान,506/13 शास्त्रीनगर मेरठ-250004; पृष्ठ : 64 ; मूल्य : 80 रुपये , संस्करण:2013

  • प्रमुख हिल्स ,एच टावर -६०४ ,छरवाडा रोड ,वापी ,जिला –वलसाड -पिन -३९६१९१ -गुजरात (भारत)

1 टिप्पणी: