अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 7, मार्च 2013
।।जनक छन्द।।
सामग्री : पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’ के पाँच जनक छंद।
पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’
पांच जनक छन्द
1.
ऊषा सुन्दर गागरी
छलकत नित घर आँगना
खुलकर खेलत फागरी।
2.
नूतन विमल उमंग हो
अजब गजब रंगत लिए
इतनी धवल तरंग हो।
3.
दृष्टि रखो निज देश पर
रघुकुल की है रीति यह
डटे रहो उद्देश पर।
4.
वर्षा हो धन-धान्य की
करें कामना मिल सभी
नित हम जन कल्यान की।
5.
वीर प्रसूता निज धरा
चन्दन सम महके सदा
हरी भरी यह उर्वरा।
।।जनक छन्द।।
सामग्री : पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’ के पाँच जनक छंद।
पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’
पांच जनक छन्द
1.
ऊषा सुन्दर गागरी
छलकत नित घर आँगना
खुलकर खेलत फागरी।
2.
रेखा चित्र : मनीषा सक्सेना |
अजब गजब रंगत लिए
इतनी धवल तरंग हो।
3.
दृष्टि रखो निज देश पर
रघुकुल की है रीति यह
डटे रहो उद्देश पर।
4.
वर्षा हो धन-धान्य की
करें कामना मिल सभी
नित हम जन कल्यान की।
5.
वीर प्रसूता निज धरा
चन्दन सम महके सदा
हरी भरी यह उर्वरा।
- 251/1, दयानन्द नगरी, ज्वालापुर, हरिद्वार-249407 (उत्तराखण्ड)
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