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मंगलवार, 26 मार्च 2013

बाल अविराम

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2,  अंक : 7,  मार्च  2013  


।।बाल अविराम।।

सामग्री : डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ की बाल-कहानी एवं ‘फैज’ रतलामी की कविता। नए बाल चित्रकार- स्तुति शर्मा, राधिका शर्मा, मेहुल कैंथोला व वैभव कैंथोला।



डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’




{वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा ‘अरुण’ जी की प्रेरक बाल कहानियों का संग्रह ‘महाविजय’ वर्ष 2011 में प्रकाशित हुआ था। संग्रह की कहानियां प्रेरणाशील तो हैं ही, रोचक भी हैं। इस बार इसी संग्रह से प्रस्तुत है डॉ. ‘अरुण’ जी की एक बाल कहानी।}


सच्ची खुशी

    हर्ष अपने माता-पिता की इकलौती संतान है। उसके लिए माता-पिता का एक ही कहना रहता है, ‘‘हर्ष, डियर! इस संसार में जो कुछ भी पैसे से खरीदा जा सकता हो उस पर अगर तुम उँगली रख दोगे तो वह चीज कैसे भी आए, हम वह चीज तुम्हें दिला देंगे।’’
    और यह बात अब तक हर्ष के माता-पिता ने पूरी भी की है। कारण यह कि हर्ष के पिता एक बहुत बड़ी कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं और उनके पास इतनी दौलत है कि अगर उनकी तीन पीढ़ियाँ कोई काम न करें तो भी मजे से बैठकर खा-पी सकती हैं।
    हर्ष की मम्मी को, जिन्हें माँ या मम्मी कहलाना कतई पसंद नहीं है, सिर्फ ‘मॉम’ ही सुनना अच्छा लगता
पेंटिंग : स्तुति शर्मा 
है। दौलत की कोई कमी हालांकि नहीं है, फिर भी हर्ष की मम्मी एक एन.जी.ओ. चलाती हैं। इसी एन.जी.ओ. की बदौलत हर्ष की मम्मी की जान-पहचान बड़े-बड़े मंत्रियों और नौकरशाहों से लेकर उद्योग जगत् और समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय बहुत बड़े-बड़े लोगों से हो गई है।

    हर्ष की कोठी इतनी बड़ी है कि वह कभी-कभी तो चाहकर भी अपनी कोठी के हर कमरे में नहीं जा पाता है। उसके पापा और मम्मी के पास अलग-अलग बढ़िया और महँगी कारें हैं, जिन्हें उनकी मरजी हो तो खुद ही चला लेते हैं, वरना चटक ड्रैसवाले ड्राइवर ही उनकी गाड़ियाँ चलाते हैं।
   हर्ष के लिए बिल्कुज अलग चमचमाती कार पापा और मम्मी ने ड्राइवर सहित लेकर, उसे दे रखी है, जिसमें हर्ष अपने स्कूल तो जाता है ही, रविवार की सुबह स्विमिंग पूल में तैरने भी जाता है।
    घर में हर काम के लिए नौकर हैं, जिन्हें हर्ष के पापा और मम्मी ने हिदायत दे रखी है कि हर्ष बाबा को किसी भी तरह की कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए।
    हर्ष का अपना कमरा है जिसमें एयर कंडीशनर के साथ ही टी.वी. और फ्रिज रखे हुए हैं। हर्ष के कमरे में रखे हुए फ्रिज में सेब, संतरे, चॉकलेट, मक्खन, फ्रूटी, कोका कोला, पेस्ट्री और जाने क्या-क्या भरा रहता है।
    इतना सब कुछ होने पर भी जाने क्या बात है कि हर्ष हमेशा ही चुपचाप, गुमसुम और गंभीर-सा ही रहता है।
    हर्ष सातवीं कक्षा में आ गया है, लेकिन अजीब-सी बात है कि दो-दो टीचर ट्यूशन पढ़ाते हैं, फिर भी हर्ष बड़ी मुश्किल से ही अपनी कक्षा में पास हो पाता है। एक दिन तो उसकी मम्मी साइंस का ट्यूशन पढ़ाने वाले टीचर पर भड़क ही गई थी, ‘‘क्या बात है टीचर जी! आप आखिर क्या पढ़ाते हैं हमारे हर्ष बाबा को? क्या यह समझ नहीं पाता?...देखिए, मन लगाकर पढ़ाया करिए, वरना छोड़ दीजिए....किसी और टीचर को हम एंगेज कर लेंगे।’’
    बेचारा टीचर सिर्फ इतना ही कह पाया था, ‘‘मैम! आय एम ट्राइंग माय वेस्ट।’’ और बड़ी ही लापरवाही से ‘ओ.के.’ कहकर हर्ष की मम्मी पैर पटकती हुई चली गई थी, लेकिन टीचर की कोशिशों के बाद भी परीक्षा में हर्ष के नंबर बढ़ नहीं पाए।
    हर्ष को तो याद नहीं कि वह अपने पापा से कब से नहीं मिला है? मम्मी से भी कभी-कभी ही मिल पाता है हर्ष। असल में हर्ष के पापा या तो विदेश के दौरे पर रहते हैं या फिर दफ्तर की मीटिंग्स में व्यस्त रहते हैं। रात को जब वे आते हैं तो हर्ष सो चुका होता है और जब सुबह उनकी नींद खुलती है, तो हर्ष स्कूल में पढ़ने के लिए जा चुका होता है।
    उधर हर्ष की ही कक्षा में एक प्यारा-सा लड़का पढ़ता है। उसका नाम है विपुल और बहुत ही साधारण से कपड़े पहनने वाला विपुल हमेशा खुश और स्वस्थ रहता है। विपुल अपनी कक्षा में जहाँ एक ओर पढ़ाई में बहुत तेज है और हमेशा कक्षा में प्रथम ही आता है, वहीं दूसरी ओर खेलकूद तथा निबंध आदि की प्रतियागिताओं में भी हमेशा बढ़-चढ़कर हिस्सा लेकर कोई-न-कोई इनाम अवश्य जीतता है।
    एक दिन हर्ष ने देखा कि आधी छुट्टी के समय अपना लंच खत्म करके विपुल पढ़ रहा था। हर्ष के मन में जाने क्या आया कि वह विपुल के पास आकर बैठ गया।
    विपुल ने किताब से आँख हटाकर जब हर्ष की ओर देखा तो उसे लगा कि हर्ष शायद बीमार है। हर्ष ने ही कुछ झिझकते हुए पूछा, ‘‘डियर विपुल! क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगे?...मेरा तो क्लास में कोई दोस्त ही नहीं है डियर।’’
    हँसते हुए विपुल ने हर्ष का हाथ अपने हाथ में पकड़कर कहा, ‘‘क्यों नहीं, जरूर करूँगा तुमसे दोस्ती। अरे भाई, जब हम एक ही कक्षा में साथ-साथ पढ़ते हैं और साथ-साथ खेलते भी हैं, तब मैं तुमसे भला दोस्ती क्यों नहीं करूँगा?’’
    और बस! हर्ष उसी दिन से विपुल का दोस्त बन गया। आधी छुट्टी में विपुल प्रायः हर्ष को अपने साथ लेकर स्कूल के ग्राउंड में बैठकर घर से लाया हुआ लंच बाँटकर खाया करता था तो जाने क्यों, हर्ष को लंच में नौकर द्वारा रखे गए टोस्ट-मक्खन या सैंडविच में कतई स्वाद नहीं आता था और विपुल द्वारा लाए पराँठे और गोभी की सब्जी में गजब का स्वाद आता था।
    एक दिन विपुल ने हर्ष से पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है दोस्त! तुम हमेशा ही उदास, गुमसुम से और चुप-चुप क्यों रहते हो?’’
    तब हर्ष ने अपने मन की बात अपने दोस्त को बताते हुए कहा था, ‘‘दोस्त मैं क्या करूँ? मेरे पापा और मम्मी अपने-अपने कामों में इतने अधिक बिजी रहते हैं कि स्कूल से घर जाकर मैं बिलकुल अकेला हो जाता हूँ।’’


पेंटिंग : मेहुल कैंथोला 
    हर्ष कहते-कहते रुक गया और विपुल को लगा कि जैसे हर्ष की आँखें गीली हो गई हैं। विपुल ने हर्ष का हाथ अपने हाथ में पकड़ा तो हर्ष ने फिर बताया, ‘‘दोस्त! घर पर दो-दो टीचर मैथ्स और साइंस का ट्यूशन पढ़ाने आते हैं, लेकिन घर पर न पापा होते हैं और न ही मम्मी मिलती है तो ट्यूशन क्या खाक पढूँ?....नौकर-ही-नौकर हैं हमारी कोठी में...कभी-कभी तो जब सिर में दर्द होता है तो मन करता है कि मम्मी पास हों, लेकिन फोन पर मम्मी का एक ही जवाब होता है, ‘‘हर्ष बाबा! डोंट वरी, डियर!...मॉम एक मीटिंग में बिजी हैं डियर...तुम सर्वेंट से कहो वो तुम्हें ‘सैरिडॉन’ देकर विक्स लगा देगा...सो....ओ.के. माई चाइल्ड।’’
    और पूरी तरह रुआँसा-सा होकर हर्ष बोला था, ‘‘क्या टी.वी., फ्रिज, ए.सी., कार और नौकर मम्मी-पापा की कमी पूरी कर सकते हैं, दोस्त?’’
    तभी स्कूल की घंटी बज गई और विपुल हर्ष को साथ लेकर क्लास में चला गया।
    इसी दिन विपुल को हर्ष की उदासी और मन की बेचैनी का पहली बार अनुमान हुआ था।
    अगले दिन फिर हर्ष और विपुल साथ-साथ बैठे, तब हर्ष को पता चला कि विपुल के पिताजी इंटर कॉलेज में पढ़ाते हैं और माँ घर पर ही रहती हैं। विपुल की दीदी बी.ए. में आई हैं और रोज विपुल को पढ़ाती भी हैं। उधर विपुल के पिताजी इंटर कॉलेज में गणित और साइंस के टीचर हैं और विपुल को रोज साइंस और गणित खुद ही पढ़ाते हैं। विपुल का घर वैसे तो छोटा-सा ही है, लेकिन वे सब बड़ी खुशी से हिलमिलकर प्यार से रहते हैं।
    एक दिन स्कूल की आधी छुट्टी में जब हर्ष ने विपुल द्वारा घर से लाए हुए दो पराँठों में से एक खाया तो फिर से उसे बहुत बढ़िया स्वाद आया। खुश होकर हर्ष ने विपुल से कहा, ‘‘दोस्त, क्या तुम आज छुट्टी के बाद मुझे अपने घर लेकर चल सकते हो?’’
    खुशी से हर्ष का हाथ पकड़कर विपुल ने चहकते हुए उत्तर दिया, ‘‘अरे वाह दोस्त, जरूर ले चलूँगा तुम्हें, लेकिन....’’
    विपुल कहते-कहते रुक गया तो थोड़ा-सा घबराकर हर्ष ने पूछा, ‘‘लेकिन क्या है दोस्त? क्या घरवाले पसंद नहीं करेंगे तुम्हारे साथ मेरा आना?’’
    अब विपुल जोर से हँसा और हर्ष के कंधे पर थपकी-सी देते हुए बोला, ‘‘अरे नहीं-नहीं दोस्त, ऐसी कोई बात नहीं है। मेरी माताजी तो बहुत खुश होंगी तुम्हें देखकर, लेकिन तुम तो कार से स्कूल आते हो और मैं आता हूँ अपनी साइकिल से, तब कैसे चल पाओगे तुम?....बस यही मुस्किल है।’’
    हर्ष उछलकर बोला, ‘‘अरे दोस्त, यह तो कोई मुश्किल बात नहीं है....मैं ड्राइवर से कहकर तुम्हारी साइकिल अपनी कार में रखवा लूँगा और हम दोनों कार में बैठकर तुम्हारे घर चले जाएँगे। इस प्रकार मैं और हमारा ड्राइवर तुम्हारा घर भी देख लेंगे, ताकि फिर कभी मन होगा, तो मैं आ जाया करूँगा। क्यों ठीक है न मेरा प्लान?’’
    विपुल खुश होकर बोला, ‘‘अरे वाह! फिर तो बड़ा मजा आएगा। घर पर दीदी भी मिलेंगी।’’
    स्कूल की छुट्टी हुई तो हर्ष के साथ विपुल अपनी साइकिल स्कूल के स्टैण्ड से जाकर उठा लाया और दोनों स्कूल से बाहर आ गए। हर्ष ने अपनी कार के ड्राइवर से कहकर विपुल की साइकिल अपनी कार के पीछे डिक्की में रखवा ली।
     विपुल हर्ष के साथ कार में बैठ गया और ड्राइवर को अपने घर का रास्ता बताते हुए अपने घर ले आया।
     घर पहुँचकर हर्ष ने देखा कि विपुल की माता जी और दीदी उसका इंतजार कर रही थीं। उन्होंने जब विपुल के साथ हर्ष को देखा तो वे दोनों बहुत खुश हुई।
    हर्ष कुछ सकुचाया हुआ-सा लग रहा था, लेकिन विपुल की माताजी ने उन दोनों से कहा, ‘‘जाओ बेटे, दोनों बाथरूम में जाकर हाथ-मुँह धोकर आ जाओ, तब तक मैं तुम दोनों का खाना परोसती हूँ।’’
    विपुल के साथ बैठकर हर्ष ने जब खाना खाया तो उसे पहली बार शायद भरपूर स्वाद का आनंद मिला। विपुल की माताजी और दीदी का प्यार पाकर हर्ष की खुशी का तो जैसे ठिकाना ही नहीं रहा। हर्ष बहुत खुश था।
पेंटिंग : राधिका  शर्मा 
    कुछ देर बाद ही विपुल के पिताजी भी घर आ गए। जब उन्हें पता चला कि हर्ष कार से आया है और कार का ड्राइवर वहीं बैठा है तो उन्होंने हर्ष को भेजकर ड्राइवर को घर में बुलाकर चाय पिलवाई।
    कुछ देर में ही हर्ष को ऐसा लगा कि वह इस घर का ही हिस्सा है। जब वह जाने लगा तो विपुल के पिता जी और माँ ने कहा, ‘‘हर्ष बेटे, जब भी तुम्हारा मन हुआ करे, तुम यहाँ आ जाया करो। यह तुम्हारा ही घर है।’’
    हर्ष खुशी-खुशी अपने घर लौट आया।
    कल रात हर्ष के मम्मी-पापा घर पर थे। जब नौकर ने कमरे में आकर कहा कि हर्ष को मम्मी-पापा बुला रहे हैं तो हर्ष को सहसा विश्वास नहीं हुआ। लेकिन खुश होकर हर्ष मम्मी-पापा के पास उनके कमरे में जा पहुँचा।
    हर्ष की मम्मी बोली, ‘‘हलो, हर्ष डियर, सब बढ़िया से चल रहा है ना, डियर? हैप्पी न्यू ईयर आ रहा है। तुम्हारे पापा की एक बहुत इंर्पोटेंट मीटिंग गोवा में है, जिसमें मैं भी साथ जा रही हूँ। अब तुम हमें बताओ, हर्ष बाबा कि डैड और मॉम से तुम्हें क्या गिफ्ट चाहिए न्यू ईयर पर? हम तुम्हें दिला देंगे।’’
    हर्ष जितना खुश होकर मम्मी-पापा के कमरे में आया था, उस सारी खुशी पर जैसे पानी फिर गया। डरते-डरते ही हर्ष ने कहा, ‘‘मॉम! क्या मैं इस बार भी न्यू ईयर आप दोनों के साथ नहीं मना सकता?’’
    तो हर्ष के पापा ने कुछ झल्लाकर कहा, ‘‘नो, नो डियर। इस बार नहंी, गोवा की मीटिंग में सिर्फ स्पाउस ही जा सकते हैं, बच्चे नहीं जाएँगे....सो डियर, इस बार नहीं फिर कभी देखेंगे।’’
    हर्ष गुम-सुम सा खड़ा था, क्या करता आखिर?
    अगले दिन स्कूल में हर्ष ने विपुल से पूछा, दोस्त, तुम न्यू ईयर पर क्या करोगे?’’ तो विपुल ने उसे बताया, ‘‘दोस्त, हम लोग तो हर साल नववर्ष को अपने घर पर एक साथ मिलकर मनाते हैं और संगीत आदि कार्यक्रम करके सब साथ-साथ खाना खाते हैं।’’
    हर्ष बोला, ‘‘क्या मैं भी इस बार तुम्हारे घर आकर सबके साथ न्यू ईयर मना कसता हूँ, दोस्त?’’
    विपुल चहककर बोला, ‘‘जरूर दोस्त, जरूर आना। हमें तो और भी खुशी होगी, हर्ष। जरूर आना।’’
    और नव वर्ष विपुल के घर मनाकर हर्ष सचमुच बेहद खुश है। इस बार वह गुमसुम नहीं, उदास भी नहीं। विपुल के घर में हर्ष ने अपना असली घर ढूँढ़ लिया है। उसे इस बार अनूठा ‘गिफ्ट’ मिला है, वह है सच्ची खुशी।
    विपुल के साथ हर्ष खूब चहक रहा है।

  • 74/3, न्यू नेहरू नगर, रुड़की-247667, जिला-हरिद्वार (उत्तराखण्ड)





‘फैज’ रतलामी

मेरे बच्चो!!!

मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो
आने वाले कल की तुम ही शान हो

ज़िन्दगी को खूबसूरत दोगे मोड़
पेंटिंग : वैभव  कैंथोला 
तुम संभालोगे वतन की बागडोर
होने को तो तुम छोटी सी जान हो
मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो

फूल बन के हिन्द के महको सदा
और बन के बुलबुले चहको सदा
हिन्द के गुलशन का तुम अरमान हो
मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो

अम्न के फूलों से महके गुलिस्ताँ
इस तरफ आने न पाए अब ख़िजाँ
अब न गुलशन कोई भी वीरान हो
पेंटिंग : अभय ऐरन 
मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो

गंगा जमना कावेरी बहती रहें

गांवों के हर खेत को सींचा करें
खूब सब्जी हो यहाँ पर धान हो
मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो

ये हिमालय पर हमेशा आन से
लहलहायेगा तिरंगा शान से
सबसे ऊँचा ‘फैज’ हिन्दुस्तान हो
मेरे बच्चो तुम बड़े बलवान हो

  • 48, समता नगर, (आनन्द कॉलोनी), रतलाम-457001(म.प्र.)


हमारे नए बाल-चित्रकार 

स्तुति शर्मा


माँ : पूनम शर्मा
पिता : ओमकार शर्मा

कक्षा : 8
जन्म : 09.01.2001

स्कूल : श्री कृष्ण जानकी सरस्वती शिशु मन्दिर, गांधी कॉलोनी, मु.नगर, उ.प्र.





राधिका  शर्मा



माँ : पूनम शर्मा
पिता : ओमकार शर्मा

कक्षा : 2 
जन्म : 27-09-2005

स्कूल : श्री कृष्ण जानकी सरस्वती शिशु मन्दिर, गांधी कॉलोनी, मु.नगर, उ.प्र.






मेहुल कैन्थोला



माँ : सुनीता कैन्थोला
पिता : संजय कैन्थोला

कक्षा : 5
जन्म : 24.04.2002 

स्कूल : एकेडमी हाईलाइट पब्लिक स्कूल, जगजीतपुर, हरिद्वार, उत्तराखंड  






वैभव  कैन्थोला



माँ : सुनीता कैन्थोला
पिता : संजय कैन्थोला


कक्षा : 3 
जन्म : 29.09.2005

स्कूल : 
एकेडमी हाईलाइट पब्लिक स्कूल, जगजीतपुर, हरिद्वार, उत्तराखंड  




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