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शुक्रवार, 26 मई 2017

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  6,   अंक  :  05-06,  जनवरी-फ़रवरी  2017




।।कविता अनवरत।।


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’



बंजारे हम
जनम-जनम के बंजारे हम
बस्ती बाँध न पाएगी।
अपना डेरा वहीं लगेगा
शाम जहाँ हो जाएगी।

जो भी हमको मिला राह में
बोल प्यार के बोल दिये।
कुछ भी नहीं छुपाया दिल में
दरवाजे सब खोल दिये।
निश्छल रहना बहते जाना
नदी जहाँ तक जाएगी।

ख्वाब नहीं महलों के देखे
चट्टानों पर सोए हम।
फिर क्यों कुछ कंकड़ पाने को
रो-रो नयन भिगोएँ हम।
मस्ती अपना हाथ पकड़ कर
मंज़िल तक ले जाएगी।

ओ चिरैया
छायाचित्र : डॉ. बलराम अग्रवाल 

ओ चिरैया!
कितनी गहरी 
हुई है तेरी प्यास!

जंगल जलकर
खाक हुए हैं
पर्वत-घाटी 
राख हुए हैं।
आँखों में 
हरदम चुभता है
धुआँ-धुआँ आकाश।

तपती 
लोहे-सी चट्टानें 
धूप चली 
धरती पिघलाने
सपनों में
बादल आ बरसे,
जागे, हुए उदास।

उड़ी है
निन्दा जैसी धूल,
चुभन-भरे
पग-पग हैं बबूल
यही चुभन
रचती है तेरी-
पीड़ा का इतिहास।

कुछ वीर छन्द...

एक तरफ़ हैं वीर बाँकुरे, मस्तक अर्पण को तैयार।
दूजी ओर डटे बातूनी, बातों की भाँजें तलवार।।

अगर देश की रक्षा करना, कर लो अब इनकी पहचान।
रेखाचित्र  : उमेश महादोषी 

खाते-हैं ये अन्न वतन का, और ज़ुबाँ पर पाकिस्तान।।

गद्दारों ने सदा दगा की, लूटा अपना हिन्दुस्तान।
बीज सदा नफ़रत के बोए, खोया भारत का सम्मान।।

सीमा पर गोलों की वर्षा,  प्राण लुटाते सच्चे लाल।
मस्ती करते कायर घर में, खूब उड़ाते हैं तर माल।।

भेजो इनको सीमाओं पर, समझेंगे अपनी औकात।
आ जाएगी अक्ल इन्हें फिर, खाएँगे जब जूते लात।।
  • जी-902,जे एम अरोमा, सेक्टर-75, नोएडा-201301, उ.प्र./मोबा. 09313727493

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