आपका परिचय

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

कुछ और महत्वपूर्ण पत्रिकाएँ


{अविराम के ब्लाग के इस  स्तम्भ में अब तक हमने क्रमश:  'असिक्नी', 'प्रेरणा (समकालीन लेखन के लिए)', कथा संसार, संकेत, समकालीन अभिव्यक्ति तथा हम सब साथ साथ साहित्यिक पत्रिकाओं का परिचय करवाया था।  इस  अंक में  हम दो और  पत्रिकाओं पर अपनी परिचयात्मक टिप्पणी दे रहे हैं।  जैसे-जैसे सम्भव होगा हम अन्य  लघु-पत्रिकाओं, जिनके  कम से कम दो अंक हमें पढ़ने को मिल चुके होंगे, का परिचय पाठकों से करवायेंगे। पाठकों से अनुरोध है इन पत्रिकाओं को मंगवाकर पढें और पारस्परिक सहयोग करें। पत्रिकाओं को स्तरीय रचनाएँ ही भेजें,  इससे पत्रिकाओं का स्तर तो बढ़ता ही है, रचनाकारों का अपना सकारात्मक प्रभाव भी पाठकों पर पड़ता है।}

आरोह अवरोह : जिसके अन्तस में है साहित्य का सरोवर

   आरोह अवरोह के मुखपृष्ठ को देखते ही किसी सामाजिक-राजनैतिक व्यवसायिक पत्रिका का आभास होता है, पर इसकी पुष्टि के लिए अन्दर के पृष्ठों में उतनी सामग्री नहीं मिलती, जितनी होनी चाहिए। पत्रिका का अन्तस हमें एक समृद्ध साहित्यिक लघु पत्रिका के दर्शन ही कराता है। सम्पादकीय सामाजिक-राजनैतिक, फिल्म और साहित्य के बीच संतुलन साधता प्रतीत होता है। ‘वैचारिक भूमि’ के अन्तर्गत कुछ आलेख, सांस्कृतिक रिपोर्टें, फिल्मों पर आधारित आलेख, राशिफल आदि भी इसी नीति पर मुहर लगाते दिखाई देते हैं। लेकिन अन्दर के पृष्ठों में ‘गन्धवीथी’ के अन्तर्गत पर्याप्त संख्या में कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, हाइकु, आदि विविध काव्य रचनाओं एवं ‘बरगद की छांव’ में कहानी एवं लघुकथाओं की प्रस्तुति पत्रिका के अन्तस को पूरी तरह साहित्यमय बना देती है। पत्रिका को मासिक स्तर पर दीर्घकाल तक निकालने और अधिकाधिक पाठकों तक पहुँचाने की इच्छा की दृष्टि से यह एक सन्तुलित नीति हो सकती है। इस नीति के तहत मिले पाठकों को अच्छा और पर्याप्त साहित्य उपलब्ध करवाने को साहित्य के प्रचार-प्रसार की एक अलग दृष्टि माना जा सकता है। वर्ष 2011 के जून एवं अगस्त दो अंक हमने देखे हैं, दोनों अंक उपरोक्त नीति की पुष्टि करते हैं। जहाँ तक आरोह अवरोह की साहित्यिक रचनाओं का प्रश्न है, अधिकांश गीत-नवगीत एवं कई ग़ज़लें प्रभावशाली हैं। कविताओं में चेतना वर्मा (जून अंक) प्रभाव छोड़ने में सफल हैं। हाइकु दोनों ही अंकों में बहुत प्रभावशाली नहीं कहे जा सकते। कथा रचनाएँ (लघुकथा और कहानियों) में अधिसंख्यक सफल हैं। वैचारिक दृष्टि से
अधिकांश रचनाएँ समकालीन मानवीय-जीवन के विभिन्न पक्षों पर बखूबी ध्यान आकर्षित करती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि साहित्यिक रचनाओं को संख्या और गुणवत्ता- दोनों ही दृष्टि से पर्याप्त महत्व दिया गया है। सम्पादक डॉ. शंकर प्रसाद जी का यह प्रयास निश्चय ही उत्साहजनक है। उनकी टीम में साहित्यिक परामर्शी के तौर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सतीशराज पुष्करणा की उपस्थिति पत्रिका के साहित्यिक योगदान को सही दिशा में ले जाने में सहायक होगी। उम्मीद है आरोह अवरोह अपने पाठको को अपने अन्तस के साहित्यिक सरोवर में स्नान करने के लिए सफलतापूर्वक आकर्षित करती रहेगी।
आरोह अवरोह :  कला, साहित्य, संस्कृति और सामाजिक सरोकार की मासिक पत्रिका। सम्पादक : डॉ. शंकर प्रसाद सम्पादकीय कार्यालय : 306, महादेवी अपार्टमेंट, काशीनाथ लेन, पूर्वी लोहानीपुर, पटना-800003 (बिहार) दूरभाष : ०९८३५०५५६२६६/०९३३४१४३३६३। ई मेल : arrohavroh@rediffmail.com ।  मूल्य : रु. 15/- प्रति एक प्रति। पृष्ठ : 64।



लघुकथा अभिव्यक्ति : लघुकथा की पूर्ण लघु पत्रिका
लघुकथा के विकास में कई प्रमुख पत्रिकाओं का विशेष योगदान रहा है, इनमें कुछ पूर्णतः लघुकथा को समर्पित पत्रिकाएँ भी रही हैं। हिन्दी में आघात/लघु आघात, मिनीयुग, जनगाथा/वर्तमान जनगाथा और पंजाबी में ‘मिन्नी’ आदि की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। पंजाबी में ‘मिन्नी’ और इन्टरनेट पर हिन्दी में वेब पत्रिका ‘लघुकथा डाट काम’ आज भी लघुकथा की पहचान बनी हुई हैं। सुपरिचित लघुकथाकार श्री मो. मुइनुद्दीन ‘अतहर’ जी ने ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’ के माध्यम से इसी समृद्ध परम्परा से जुड़ने का प्रयास किया है। वर्तमान में पूर्णतः लघुकथा को लेकर चलने वाली हिन्दी में सम्भवतः यह अकेली मुद्रित लघु पत्रिका है। इस दृष्टि से ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’ का लघुकथा को आगे बढ़ाने में अच्छा उपयोग किया जा सकता है। लेकिन इसके दो अंको (अप्रैल-जून 2010 एवं जुलाई-सितम्बर्र 2011) को देखने के बाद ऐसा नहीं लगता कि इस पत्रिका की मौजूदगी का लघुकथा से जुड़े लोग जितना उपयोग करना चाहिए, उतना कर पा रहे हैं। प्रत्येक अंक में लगभग चालीस तक लघुकथाकारों की लघुकथाएँ तो पढ़ने को मिल जाती हैं, पर लघुकथा के विचार पक्ष पर ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’ का उपयोग नहीं हो पा रहा है। लघुकथाओं को देखकर भी लगता है, सभी लघुकथाकार अपनी श्रेष्ठ या प्रतिनिधि लघुकथाएँ नहीं दे रहे हैं। एक विधागत समर्पित पत्रिका के प्रत्येक अंक में चालीस में से एक तिहाई रचनाकार भी अपना प्रभाव छोड़ पाने में समर्थ न हों तो इसे क्या कहा जाये? अतहर साहब स्वयं वरिष्ठ लघुकथाकार हैं और लघुकथा की अच्छी समझ रखते हैं। लघुकथा के लिए हिन्दी में कम से कम एक पूर्ण पत्रिका की जरूरत भी है, ऐसे में वरिष्ठ लघुकथाकारों का दायित्व बन जाता है कि वे इस लघु पत्रिका को पर्याप्त रचनात्मक सहयोग देकर स्थापित करने में रुचि लें। आज लघुकथा बहुत आगे आ चुकी है, ऐसे में एक समर्पित पत्रिका की मौजूदगी से अपेक्षाएँ कुछ अधिक की ही होगी। यदि पत्रिका इन अपेक्षाओं को नहीं समझेगी या उन्हें पूरा करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ायेगी, तो समय से बहुत पीछे होगी। अतहर जी को इस सम्बन्ध में सोचना होगा कि पत्रिका को ‘लघुकथा की पत्रिका’ से ‘लघुकथा की समर्पित पत्रिका’ बनाने के लिए वह और क्या-क्या कर सकते हैं!
   लघुकथा जैसी महत्वपूर्ण विधा के लिए भावनात्मक दृष्टि से ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’ और उसके सम्पादक महोदय के प्रयासों का स्वागत होना चाहिए, क्योंकि पर्याप्त रचनात्मक सहयोग उपलब्ध होने पर यह लघुकथा की जरूरत को पूरा कर सकती है। उम्मीद है लघुकथाकार मित्र इस कीमती संसाधन का बेहतर उपयोग करने के बारे में अवश्य सोचेंगे।
   लघुकथा अभिव्यक्ति  :  लघुकथा की लघु पत्रिका। सम्पादक :  मोह. मुइनुद्दीन ‘अतहर’। सम्पादकीय पता : 1308, अजीजगंज पसियाना, शास्त्री वार्ड, आर.के. टेण्ट हाउस, जबलपुर-2 (म.प्र.) फोन : 0761-2449830, मो. 09425860708। प्रष्ट : ४४। मूल्य : रु. 15/-, आजीवन सदस्यता : रु. 1000/-

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