।।सामग्री।।
क्षणिकाएँ : मंजू मिश्र व मदन दुबे
।।क्षणिकाएँ।।
मंजु मिश्रा
मंजु मिश्रा
1.
मेरी ख्वाहिशों ने
रिश्ते जोड़ लिए आसमानों से
उगा लिए हैं पंख
और उड़ने लगी हैं हवाओं में
अब तो बस !
ख़ुदा ही ख़ैर करे !!
2.
सपनों की फसल..
बोती हूँ हर रात,
एक नया सपना
फ़िर सींचती हूँ
ख्यालों में !
सींचते सींचते
थक जाती हूँ
लेकिन जाने
ये कैसी फसल है ?
न बढ़ती है
न सूखती है,
बस यूँ ही आँखों में
टँगी रहती है!
3.
दरख्तों ने तो
अपनी
प्यास के पैगाम भेजे थे
मगर सूखी हुई नदियाँ,
भला करतीं तो क्या करतीं
4.
चाँद बनके उतरे हैं
ख़वाब मेरी आँखों में
ज़िन्दगी धड़कती है
हौले हौले सांसों में
5.
दिग्भ्रमित ह्रदय की
व्यर्थ कल्पना पर
मुझको विश्वास नहीं हैं
मेरे पाँव,
जहाँ टिकते हैं,
धरती है,
आकाश नहीं है !!
मेरी ख्वाहिशों ने
रिश्ते जोड़ लिए आसमानों से
उगा लिए हैं पंख
और उड़ने लगी हैं हवाओं में
अब तो बस !
ख़ुदा ही ख़ैर करे !!
2.
सपनों की फसल..
बोती हूँ हर रात,
एक नया सपना
फ़िर सींचती हूँ
ख्यालों में !
रेखांकन : बी.मोहन नेगी |
थक जाती हूँ
लेकिन जाने
ये कैसी फसल है ?
न बढ़ती है
न सूखती है,
बस यूँ ही आँखों में
टँगी रहती है!
3.
दरख्तों ने तो
अपनी
प्यास के पैगाम भेजे थे
मगर सूखी हुई नदियाँ,
भला करतीं तो क्या करतीं
4.
चाँद बनके उतरे हैं
ख़वाब मेरी आँखों में
ज़िन्दगी धड़कती है
हौले हौले सांसों में
5.
दिग्भ्रमित ह्रदय की
व्यर्थ कल्पना पर
मुझको विश्वास नहीं हैं
मेरे पाँव,
जहाँ टिकते हैं,
धरती है,
आकाश नहीं है !!
- कैलिफ़ोर्निया, ई मेल- manjumishra@gmail&com
मदन दुबे
१. व्यभिचार
फूलो से करते
भृंग व्यभिचार
कलियों ने देखा
पढ़ा अपना लेखा
२. आख्यान
आत्मा ने लिखा
स्वयं का आख्यान
स्मृति पढ़ती रही
कलम चलती रही
फूलो से करते
रेखांकन : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा |
कलियों ने देखा
पढ़ा अपना लेखा
२. आख्यान
आत्मा ने लिखा
स्वयं का आख्यान
स्मृति पढ़ती रही
कलम चलती रही
- 49/280, जसूजा सिटी, भेड़ाघाट रोड, धनवन्तरिनगर, जबलपुर-482002(म.प्र.)
मंजु मिश्रा की सभी क्षणीकाएँ नई परिकल्पना से सराबोर हैं । इन क्षणीकाओं की गहनता तो इस विधा को महत्त्व दिलाने में सहायक होगी-
जवाब देंहटाएं1.
मेरी ख्वाहिशों ने
रिश्ते जोड़ लिए आसमानों से
उगा लिए हैं पंख
और उड़ने लगी हैं हवाओं में
अब तो बस !
ख़ुदा ही ख़ैर करे !
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!दरख्तों ने तो
अपनी
प्यास के पैगाम भेजे थे
मगर सूखी हुई नदियाँ,
भला करतीं तो क्या करतीं