कैनेडा में हिन्दी राइटर्स गिल्ड के तीसरे वार्षिक उत्सव की धूम
5 नवम्बर 2011 को पोर्ट क्रेडिट सेकेन्डरीस्कूल, मिसिसागा में धूमधाम से सम्पन्न हुआ। हर वर्ष की तरह गिल्ड ने एक नई शैली में कार्यक्रम प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का आरम्भ श्रीमती मानोशी चटर्जी ने सरस्वती वन्दना और एक सरस्वती भजन से किया। डॉ. शैलजा सक्सेना ने श्री रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ की कविता ‘हिन्दी की जय-जयकार करें’ का पाठ किया और हिन्दी राइटर्स गिल्ड का संक्षिप्त परिचय एवं पिछले वर्ष की गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत किया। शैलजा ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग देने के लिए शारिका फाउन्डेशन, विद्याभूषण धर, राजस्थान एसोसिएशन ऑफ नार्थ अमेरिका के सक्रिय सदस्य महेन्द्र भण्डारी का धन्यवाद दिया। इस अवसर पर मीडिया का धयवाद करते हुए उन्होंने विशेष रूप से हिन्दी टाइम्स, अपना रेडियो बॉलीवुड बीट्स, स्टार बज्ज और संगीत रेडियो प्रोग्राम का धन्यवाद दिया। शैलजा ने टाइम्स और अपना रेडियो बालीवुड्स बीट्स के प्रकाशक और प्रेसीडेन्ट राकेश तिवारी जी के हिन्दी प्रेम की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने अपने समाचार पत्र और रेडियो कार्यक्रम में हिन्दी राइटर्स गिल्ड को इतना अधिकार दे रखा है कि अब हमें यह उनका कम, हमारा अधिक लगता है। डॉ. शैलजा ने ब्रैम्पटन लाइब्रेरी, ट्र्लिियन फाउन्डेशन का भी उनके सहयोग के लिए धन्यवाद किया।
डॉ. शैलजा ने कार्यक्रम में आमंत्रित गणमान्य अतिथियों का परिचय दिया तथा उन्हें मंच पर बुलाकर उनका स्वागत किया। उन्होंने राजस्थान एसोसिएशन ऑफ नार्थ अमेरिका के अध्यक्ष श्री योगेश शर्मा के हिन्दी प्रेम व योगदान की चर्चा की। इंडो-कैनेडा चैम्बर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष श्री सतीश ठक्कर ने भूमण्डलीकरण के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी के महत्व की चर्चा अपने हिन्दी में दिये भाषण में की। भारत से आये सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री रामेश्वर काम्बोज हिमान्शु जी ने कैनेडा में अपनी भाषा और संस्कृति से तुड़े रहने के प्रयत्नों की प्रशंसा की। इस अवसर पर सुश्री दीपिका दामेरला, सुश्री चरणदासी आदि ने भी हिन्दी राइटर्स गिल्ड के प्रयासों की प्रशंसा की।
श्रीमती लता पांडे के संचालन में कार्यक्रम के अगले चरण में श्रीमती आशा बर्मन के काव्य संकलन ‘कही-अनकही’, डॉ. रेणुका शर्मा के का और श्रीमती व्य संकलन ‘एक धुला आसमान’ और श्री जसवीर कालरवी के पंजाबी उपन्यास ‘अमृत’ के हिन्दी अनुवाद का लोकार्पण हुआ। तत्पश्चात श्रीमती आशा बर्मन, स. जसबीर कालरवी मानोशी चटर्जी ने काव्य पाठ किया। द्वितीय चरण में कैनेडा की प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायिका श्रीमती रमणीक सिंह ने एक घंटे तक विभिन्न विधाओं में अपनी कलाओं का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम का अन्त श्री विजय विक्रान्त ने घन्यवाद ज्ञापन के साथ किया। सभी प्रायोजकों का धन्यवाद करते हुए उन्हांने टी.वी. मीडिया में ऑमनी टी.वी., रॉजर्स और एटीएन का कवरेज के लिए धन्यवाद किया। (समाचार सौजन्य : हिंदी टाइम्स एवं श्री रामेश्वर काम्बोज हिमान्शु)
सरस्वती सुमन के मुरुक विशेषांक एवं हाइकु कृतियों का लोकार्पण, परिचर्चा एवं हाइकु-सम्मेलन
गत् 13 नवम्बर, 2011 को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ के निराला सभागार में ‘वैदिक क्रान्ति परिषद्’, देहरादून के सौजन्य से कृतियों का लोकार्पण, परिचर्चा एवं हाइकु-सम्मेलन सम्पन्न हुआ, जिसका कुशल संचालन करते हुए जितेन्द्र जौहर ने सभी उपस्थित अतिथियों एवं श्रोताओं का अभिनन्दन किया तथा मंचासीन अतिथियों को बैज लगवाकर उनका स्वागत किया। सर्वप्रथम अध्यक्ष डॉ0 कुँअर बेचैन, मुख्य अतिथि डॉ0 आनन्द सुमन सिंह ने दीप-प्रज्वलन किया तथा डॉ0 मिथिलेश दीक्षित, डॉ0 रमाकान्त श्रीवास्तव, डॉ0 विद्याविन्दु सिंह, डॉ0 रेखा व्यास ने माँ सरस्वती को पुष्पार्पण किया। डॉ0 आनन्द सुमन सिंह ने समारोह की प्रासंगिकता के विषय में अपने विचार व्यक्त किये तथा विषय-प्रवर्तन करते हुए कहा कि साहित्य जीवन और समाज का अंकन करने वाला एक बड़ा माध्यम होता है। आज का यह समारोह एक साथ तीन आयामों को समायोजित किये हुए है। एक साथ ही एक पत्रिका एवं सात पुस्तकों का लोकार्पण एक बड़े मंच से होना साहित्य के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है। इसके लिए उन्होंने ‘सरस्वती सुमन’ के अतिथि सम्पादक जितेन्द्र जौहर तथा पुस्तकों की लेखिका डॉ0 मिथिलेश दीक्षित को बधाई दी।
समारोह के प्रथम सत्र में ‘सरस्वती सुमन’ पत्रिका के मुक्तक-विशेषांक का लोकार्पण डॉ0 मिथिलेश दीक्षित एवं डॉ0 रमाकान्त श्रीवास्तव के द्वारा तथा डॉ0 रमाकान्त श्रीवास्तव द्वारा सम्पादित ग्रन्थ ‘डॉ0 मिथिलेश दीक्षित की हाइकु-रचनाधर्मिता’ का लोकार्पण डॉ0 आनन्द सुमन सिंह द्वारा किया गया। डॉ0 दीक्षित के हाइकु-संग्रहों ‘सदी के प्रथम दशक का हिन्दी हाइकु-काव्य’, ‘परिसंवाद’, ‘एक पल के लिए’, ‘अमर बेल’, ‘लहरों पर धूप’, ‘आशा के बीज’ का लोकार्पण डॉ0 कुँअर बेचैन, कमलेश भट्ट ‘कमल’, राजेन्द्र परदेसी, डॉ0 सुरेश उजाला, डॉ0 विद्याविन्दु सिंह, डॉ0 रेखा व्यास आदि के द्वारा किया गया।
डॉ0 आनन्द सुमन सिह के सम्पादकत्व में देहरादून से प्रकाशित होने वाली प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती सुमन’ के मुक्तक विशेषांक के अतिथि सम्पादक जितेन्द्र जौहर ने इस लोकार्पित विशेषांक का समग्रता के साथ, संक्षेप में परिचय प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि यह विशेषांक काव्य-साहित्य में अनेक दृष्टिकोणों से बहुत उपयोगी है। निश्चित ही, इसकी भूमिका हिन्दी साहित्य में स्थायी महत्व प्राप्त करेगी। डॉ0 आनन्द सुमन सिंह ने डॉ0 मिथिलेश दीक्षित की हाइकु-रचनाधर्मिता पर आधारित डॉ0 रमाकान्त श्रीवास्तव द्वारा सम्पादित ग्रन्थ को हाइकु-काव्य का विशिष्ट और श्रमसाध्य प्रदेय बताया। डॉ0 मिथिलेश दीक्षित द्वारा रचित और सम्पादित हाइकु-पुस्तकों के सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि डॉ0 दीक्षित ने हाइकु कविता के द्वारा मानवीय मूल्यों के प्रतिष्ठापन एवं परिवर्द्धन के लिए एक सार्थक रचनात्मक अभियान चलाकर अपनी भाषा, अपने साहित्य और अपने देश का गौरव बढ़ाया है। डॉ0 विद्याविन्दु सिंह ने कहा कि रचना वही सराहनीय होती है, जो शाश्वत जीवन-मूल्यों को लेकर चले, जिसमें समसामयिक यथार्थबोध हो और वह कालजयी हो। डॉ0 मिथिलेश दीक्षित का हाइकु-साहित्य इसी प्रकार का है। उनके हाइकु में कथन की सहज सम्प्रेषणीयता के साथ, अनुभूति की गहराई भी है। भाव पक्ष की भाँति उनका शिल्पपक्ष भी ललित है। डॉ0 दीक्षित का हाइकु-साहित्य एक अच्छी कोशिश है समसामयिक यथार्थ की प्रस्तुति का, संघर्षों में जूझते हारे-थके मनों में आशा, आस्था और विश्वास की लौ जगाने का। उन्होंने हाइकु-संकलन ‘अमरबेल’ की चर्चा की। डॉ0 रमाकान्त श्रीवास्तव ने ‘सरस्वती-सुमन’ के सम्पादक एवं अतिथि सम्पादक को मुक्तक-विशेषांक हेतु बधाई दी और साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में इसे मील का पत्थर बताया। साथ ही डॉ0 मिथिलेश दीक्षित के हाइकु-साक्षात्कार-ग्रन्थ ‘परिसंवाद’ को देश का प्रथम हाइकु-साक्षात्कार-ग्रन्थ बताया और प्रशंसा की। डॉ0 रेखा व्यास ने ‘एक पल के लिए’ हाइकु-संकलन को जीवन्त और सोद्देश्य हाइकु-कविताओं का संकलन बताते हुए कहा कि इन कविताओं में मानव की विविध अवस्थाओं और संवेदनाओं का चित्रण है। यह संकलन कथ्य एवं शिल्प की दृष्टि से महत्वपूर्ण और पठनीय संकलन है। प्रीति एम0 शाह ने ‘लहरों पर धूप’ के सन्दर्भ में कहा कि अनन्य शब्द-साधना के बल पर डॉ0 दीक्षित ने प्रकृति-सौन्दर्य, दार्शनिकता, ईश्वर में आस्था, सामाजिक-चेतना जैसे विविध विषयों को हाइकु कविता में सजाकर-पिरोकर अपने ग्रन्थों में प्रस्तुत किया है। डॉ0 कुँवर बेचैन ने ‘सदी के प्रथम दशक का हिन्दी हाइकु काव्य’ को हाइकु-कविता-यात्रा का श्रेष्ठ सम्पादित ग्रन्थ बताया तथा कमलेश भट्ट ‘कमल’ ने अनेक हाइकु-संकलनों को प्रस्तुत करने वाली डॉ0 मिथिलेश दीक्षित की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने हाइकु-काव्य को अपनी विविधमुखी रचनाधर्मिता से समृद्ध किया है। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक समीक्षकों की भी समीक्षाएँ उपलब्ध हुईं, जिनमें डॉ0 अमिता दुबे, डॉ0 निशा गहलौत, प्रतिमा अवस्थी, डॉ0 चन्द्रेश्वर, डॉ0 रश्मिशील, डॉ0 सन्तलाल विश्वकर्मा, राजेन्द्र परदेसी, हरिश्चन्द्र शाक्य, विजय तन्हा, डॉ0 सुरेश उजाला, यतीश चतुर्वेदी, विजय प्रकाश मिश्रा, प्रदीप श्रीवास्तव, डॉ0 कामिनी सिंह, जितेन्द्र जौहर, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, नीलमेन्दु सागर, विजय चतुर्वेदी आदि विद्वानों की समीक्षाएँ प्रमुख हैं।
इसी सत्र में ‘डॉ0 मिथिलेश दीक्षित के हाइकु-काव्य के विविध आयाम’ विषय पर एक वृहद परिचर्चा सम्पन्न हुई, जिसमें साहित्य, दूरदर्शन एवं पत्रकारिता से सम्बन्धित देश के अनेक प्रमुख विद्वानों ने डॉ0 दीक्षित के काव्य के अनेक जीवन्त पक्षों पर अपने-अपने विचार व्यक्त किये।
मुख्य अतिथि डॉ0 आनन्द सुमन सिंह ने डॉ0 दीक्षित के समग्र रचनाधर्मिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न डॉ0 मिथिलेश दीक्षित मानवीय मूल्यों से समन्वित साहित्य का सृजन, प्रचार और प्रसार करने वाली भारत की एक प्रमुख महिला साहित्यकार हैं। आपकी बहुआयामी रचनाधर्मिता ने हिन्दी साहित्य के अनेक आयामों को समृद्ध किया है। जिस प्रकार निबन्ध और समीक्षा के क्षेत्र में आपकी प्रसिद्धि है, उसी प्रकार काव्य के क्षेत्र में हाइकुकार एवं क्षणिकाकार के रूप में आप एक प्रमुख और सशक्त हस्ताक्षर हैं। विजय प्रकाश मिश्र ने बताया कि डॉ0 मिथिलेश दीक्षित की रचनाएँ संवेदन की उच्चतर भावभूमि की रचनाएँ हैं। कभी-कभी लगता है कि इनमें वर्ड्सवर्थ एवं टी0एस0 इलियट के काव्य-सौष्ठव की आँच महसूस होती है। साथ ही वे तर्क और दर्शन के ऊँचे पैरामीटर को छूती नज़र आती हैं और जीवन के हर पहलू में अर्थपूर्ण सामंजस्य स्थापित करती हैं। प्रीति एम0 शाह ने उनके हाइकु की प्रासंगिकता और उपयोगिता के बारे में कहा कि डॉ0 दीक्षित का परिचय इतना विस्तृत एवं ओजस्वी है, जितना इनका हिन्दी एवं संस्कृत भाषा के प्रति लगाव एवं मनन उनकी इस साधना से आज की जल्दी बात कहने समझने वाली पीढ़ी अवश्य ही लाभान्वित होगी। प्रदीप श्रीवास्तव ने स्पष्ट किया कि डॉ0 दीक्षित के साहित्य को किसी खाँचे में नहीं रखा जा सकता। पिछले कई दशक से विपुल साहित्य सृजित करती आ रहीं मिथिलेश जी की रचनाएँ करूणा के भाव को उसके चरम तक ले जाती हैं। वे समाज के अन्तिम व्यक्ति तक के होठों पर संतुष्टि की मुस्कान देखना चाहती हैं। हिन्दी साहित्य मंे हाइकु को स्थापित करने वाले साहित्य-शिल्पियों में शुमार मिथिलेश जी वास्तव में, हाइकु का जैसा विशाल संसार रचती आ रही हैं, वह किसी साधक के ही वश का है। डॉ0 निशा गहलौत ने डॉ0 दीक्षित के प्रकृति-चित्रण के सन्दर्भ में कहा कि उनके हाइकु में विषय की ऊँचाई के साथ-साथ मानवीय चेतना का जीवन्त उत्कर्ष दृष्टिगत होता है। अर्थगत सादगी का आभास देने वाले मिथिलेश जी के कितने ही हाइकु दार्शनिक-आध्यात्मिक भावबोध को समाहित किये हुए हैं, इसीलिए उनका कविता-संसार निर्दोष कंचन सा निखरकर सामने आता है। डॉ0 विद्या विन्दु सिंह ने अपने विचार डॉ0 दीक्षित की पुस्तक ‘अमर बेल’ के सम्बन्ध में प्रेषित किये कि इसमें संकलित हाइकु प्रकृति विषयक अनेक आयामों का निदर्शन करते हैं तथा सुन्दर शिल्प के साथ महान् प्रयोजन को संकेतित करते हैं। पूरा संकलन प्रकृति एवं पर्यावरण की संरक्षा पर केंद्रित हैं। सुन्दर कथ्य के कारण शिल्प में भी लयात्मक सौष्ठव स्वाभाविक रूप से आ गया है। डॉ0 अमिता दुबे ने उनकी ‘लहरों पर धूप’ पुस्तक पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संकलन विविधता से युक्त सहज सम्प्रेषणीय भावों से ओतप्रोत सीधी-सच्ची भाषा में मन को स्पर्श करने वाला आनन्द देने वाला और कहीं-कहीं कुछ गंभीरता से सोचने को विवश करने वाला है। दिल्ली दूरदर्शन की निदेशक डॉ0 रेखा व्यास ने उनकी सार्थक, साभिप्राय, जीवन्त हाइकु-कविताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शाश्वत जीवन के महान् लक्ष्य को भी क्षण की तीव्र अनुभूति के द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। डॉ0 दीक्षित का ‘एक पल के लिए’ हाइकु-संकलन का यह भी एक प्रयोजन है। राजेन्द्र परदेसी ने डॉ0 रमाकान्त श्रीवास्तव के द्वारा सम्पादित ग्रन्थ ‘डॉ0 मिथिलेश दीक्षित की हाइकु-रचनाधर्मिता’ पर प्रकाश डालते हुए डॉ0 दीक्षित के समग्र चिन्तन पर बात की। उन्होंने कहा कि सामान्य जन-जीवन से जुड़े होने के कारण ही डॉ0 दीक्षित ने साहित्य-जगत् में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है। हाइकु के क्षेत्र में उन्होंने अन्य अनेक हाइकुकारों को भी जोड़ने का प्रयास किया है। डॉ0 दीक्षित अपने को भीड़ का ही एक हिस्सा मानने वाली ऐसी मानवतावादी रचनाकार हैं, जिन्होंने सदैव शाश्वत मूल्यों के अभिरक्षण के लिए लड़ाई लड़ी है। डॉ0 चन्द्रेश्वर ने अपना आलेख प्रेषित किया जिसमें डॉ0 दीक्षित के हाइकु के सम्बन्ध में उनका कहना है कि ये हाइकु एक साथ प्रेम, प्रकृति, पर्यावरण, अध्यात्म एवं सामाजिक विमर्श लेकर चलते हैं। डॉ0 दीक्षित के इस चित्रण में एक विरल सन्तुलन एवं सामंजस्य परिलक्षित होता है। यह इसलिए भी कि उनकी कविताओं का धरातल नैतिकता से निर्मित हुआ है और इसे परम्परा से अर्जित करने में वे कमाल का हुनर रखती हैं। डॉ0 सुरेश उजाला ने डॉ0 दीक्षित की हाइकु-कविताओं के सामाजिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी हाइकु कविताएँ समाज के सरोकारों से जुड़ी हुई हैं। डॉ0 सन्तलाल विश्वकर्मा ने डॉ0 दीक्षित की हाइकु काव्य-रचनाओं में कथ्य और शिल्प के सौंदर्य पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। डॉ0 रश्मि शील ने डॉ0 दीक्षित के हाइकुओं में उनकी व्यापक दृष्टि और समग्र बोध के विषय में कहते हुए स्पष्ट किया कि इन रचनाओं में ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ की त्रिवेणी सर्वत्र प्रवाहित है, जिसमें उदात्त आकर्षण और शैल्पिक सौन्दर्य है। जितेन्द्र जौहर ने भीड़ से अलग श्रेष्ठ चिन्तन प्रधान सृजन को समर्पित डॉ0 मिथिलेश दीक्षित की हाइकु-रचनाधर्मिता को अप्रतिम और उत्कृष्ट बताते हुए कहा कि गुरू-गम्भीर-सूक्ष्म चिन्तन की चन्द्रिका उनके हाइकु के सृजन के चारो ओर धवल आभा-मण्डल का निर्माण कर देती है, जिसकी प्रभावपरिधि में आकर रसज्ञ पाठक के मुँह से अनायास निकल पड़ता है-यह हुई न बात। यतीश चतुर्वेदी ने डॉ0 दीक्षित के संकलन ‘आशा के बीज’ के बारे में बताया कि डॉ0 दीक्षित का बिम्ब-विधान आन्तरिक सौन्दर्य को भी उद्घाटित करता है। सृष्टि की अखण्ड व्यवस्था और उसके आन्तरिक सौन्दर्य की भी इन हाइकु-कविताओं में अभिव्यक्ति है। संग्रह के प्रकृतिपरक हाइकु अत्यन्त सजीव और प्रभावोत्पादक हैं। लगता है, मानो प्रकृति के सम्पूर्ण फलक को हाइकु में समेटकर गागर में पूरा सागर भर दिया गया है। उन्होंने डॉ0 दीक्षित के ‘परिसंवाद’ ग्रन्थ के सम्बन्ध में कहा कि इस ग्रन्थ में विभिन्न विद्वानों के साक्षात्कारों द्वारा हाइकु कविता के उद्भव, स्वरूप, विकास, कथ्य, शिल्प, लोकप्रियता एवं सम्भावनाओं पर पर्याप्त विवेचना की गयी है।
डॉ0 मिथिलेश दीक्षित ने स्वयं भी हाइकु के संदर्भ में बताया कि यह क्षण-विशेष की कविता नहीं है। वस्तुतः यह एक निश्चित फॅार्मेट में गहन और तीव्र भाव-बोध की कविता है, जो रचनाकार से साधना की माँग करती है। यदि साधक चाहे, तो इसमें चिरन्तन और सौर्वभौम सत्य का उद्घाटन कर सकता है। इनके अतिरिक्त डॉ0 रमाकान्त श्रीवास्तव, डॉ0 कुँअर बेचैन, प्रतिमा अवस्थाी, डॉ0 कमलेश भट्ट ‘कमल’ आदि अनेक विद्वानों ने डॉ0 दीक्षित के हाइकु साहित्य पर पर्याप्त प्रकाश डाला।
कृतियों का लोकार्पण, परिचर्चा एवं हाइकु-सम्मेलन के द्वितीय सत्र में हाइकु-सम्मेलन सम्पन्न हुआ, जिसमें देश के अनेक हाइकुकारों ने अपने हाइकु प्रस्तुत किये। प्रकृति, पर्यावरण, समसमायिकता, शिक्षा, साहित्य, राजनीति, दर्शन, अध्यात्म आदि अनेक विषयों पर हाइकु, हाइकु-मुक्तक, हाइकु-दोहे और हाइकु-रूबाई प्रस्तुत किये गये। इस सम्मेलन में सहभागी रचनाकारों में प्रमुख थे- धन सिंह खोबा ‘सुधाकर’, डॉ0 कुँअर बेचैन, कमलेश भट्ट ‘कमल’, डॉ0 मिथिलेश दीक्षित, डॉ0 रमाकान्त श्रीवास्तव, यतीश चतुर्वेदी, जितेन्द्र जौहर, डॉ0 मिर्ज़ा हसन नासिर, डॉ0 सन्तलाल विश्वकर्मा, आर0पी0 शुक्ला, डॉ0 सुरेश उजाला, डॉ0 डंडा लखनवी, हरिश्चन्द्र शाक्य, विजय तन्हा, डॉ0 विद्याविन्दु सिंह, राजेन्द्र वर्मा, राजेन्द्र परदेसी, डॉ0 करूणेश प्रकाश, महावीर प्रसाद ‘रज’ आदि।
इनके अतिरिक्त उपस्थित हाइकुकारों में राजेन्द्र कृष्ण श्रीवास्तव, डॉ0 रेखा व्यास, डॉ0 रश्मि शील, डॉ0 पल्लवी आदि हाइकुकारों ने भी अपने हाइकु उपलब्ध कराये। डॉ0 कुँवर बेचैन ने अध्यक्षता करते हुए हाइकु-कविता के वर्तमान स्वरूप पर प्रकाश डाला और इस सम्मेलन की वर्तमान साहित्य के क्षेत्र में उपादेयता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह भारत का एक वृहद् हाइकु-सम्मेलन है, जिसका भविष्य में महत्व आँका जायेगा। हाइकु सम्मेलन की संयोजक डॉ0 मिथिलेश दीक्षित ने तथा संचालक जितेद्र जौहर ने मंचासीन और उपस्थित श्रोतागण के प्रति आभार व्यक्त किया। अन्त में सभी सत्रों में उपस्थित अतिथियों एवं उपस्थित श्रोताओं के प्रति प्रदीप श्रीवास्तव ने संयोजक राजेन्द्र परदेसी, यतीश चतुर्वेदी, विजय प्रकाश मिश्रा की ओर से कृतज्ञता अर्पित की।
इस समारोह में बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार, समाजसेवी, शिक्षाविद्, दूरदर्शन से जुड़े लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ करायी। इस समारोह की भव्यता, उपादेयता एवं सफलता के सम्बन्ध में लगभग पाँच दर्ज़न श्रोताओं ने अपनी उत्कृष्ट प्रतिक्रिया (कमेंट्स) को भी अंकित किया।
( प्रस्तुति-राजेन्द्र परदेसी, भारतीय पब्लिक अकादमी, चांदन रोड, फरीदी नगर, लखनऊ-226015, मो0-09415045584 )
गोवा में मिला ‘हम सब साथ साथ’ के सदस्यों को सम्मान
कर्नाटक की प्रसिद्ध शैक्षिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था शिक्षक विकास परिषद ने ज्ञानदीप मंडल एवं शिक्षक विकास प्रतिष्ठान के साथ मिलकर गोवा में 17वें राष्ट्रीय शैक्षिक सम्मेलन का 2 दिवसीय आयोजन किया। इस आयोजन की मुख्य अतिथि थीं दिल्ली निवासी प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राज बुद्धिराजा। अन्य विशिष्ट अतिथियों में सर्वश्री पांडुरंग नाइक, मोहन नाइक, डॉ दिवाकर गौर, विजय पंडित, डॉ. विजयेन्द्र शर्मा, डॉ. आर. एल. शिवहरे आदि शामिल रहे। सम्मेलन के पहले दिन उद्घाटन सत्र में अनेक वक्ताओं ने अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए। संस्था के अध्यक्ष श्री आर. वी. कुलकर्णी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्था की गतिविधियों का परिचय दिया। इस सम्मेलन में कला प्रदर्शनी, शैक्षिक विचार-विमर्श एवं विभिन्न सांस्कृतिक व साहित्यिक कार्यक्रमों का सुदर व भव्य आयोजन किया गया। इसमें ढेर सारे स्कूली बच्चों ने भी भाग लिया।
सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में देश के दूर दराज क्षेत्रों से पधारी विभिन्न साहित्यिक, सामाजिक, शैक्षिक व सांस्कृतिक क्षेत्र की अनेक प्रतिभाओं को राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय सम्मान भी प्रदान किया गया। इसमें जहाँ लाइफ टाइम अचीवमेंट राष्ट्रीय अवार्ड से डॉ. राज बुद्धिराजा को सम्मानित किया गया वहीं हम सब साथ साथ के सदस्यों सर्वश्री अखिलेश द्धिवेदी अकेला (दिल्ली) व डॉ. जगदीश चंद्र शर्मा (राजस्थान) को राष्ट्रीय साहित्य भूषण तथा डॉ. दिवाकर दिनेश गौड़ (गुजरात) को राष्ट्रीय शिक्षक भूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया। सम्मेलन के दौरान हम सब साथ साथ के सदस्यों सर्वश्री नमिता राकेश (फरीदाबाद) व किशोर श्रीवास्तव ( दिल्ली ) को भी विशेष सम्मान प्रदान किया गया। ( रपटः इरफान सैफी राही, नई दिल्ली)
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