अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 08, अंक : 01-02, सितम्बर-अक्टूबर 2018
।।कथा प्रवाह।।
मधुदीप
मुर्दाघर
यह एक मनहूस दिन है जिसका साया इस सरकारी हस्पताल पर पड़ गया है। पूरा हस्पताल मुर्दाघर में बदल गया है जहाँ से सिर्फ उन अभागों की चीखें आ रही हैं जिनके कोई उन्हें छोड़कर चले गए हैं। ये चीखें इस मुर्दाघर से आकर पूरे हस्पताल में फैल रहे सन्नाटे को तोड़ने की असफल कोशिश कर रही हैं।
“माँ, मुझे बचा लो! मैं मर जाऊँगी...” पाँच साल की बच्ची की चीत्कार डॉक्टर राघव के कानों तक पहुँच रही है। यह उस सरकारी हस्पताल का डॉक्टर्स रूम है जो इस समय मुर्दा हो गया है। डॉक्टर राघव के अलावा यहाँ तीन डॉक्टर और भी मौजूद हैं लेकिन वे सब बहरे हो गए हैं। बच्ची की माँ बार-बार सभी डॉक्टरों के पाँव पकड़ रही है।
वेतन बढ़ोतरी के लिए इस सरकारी हस्पताल में डॉक्टरों की हड़ताल का यह पहला दिन है लेकिन आज पहले ही दिन जैसे सब-कुछ ठप्प हो गया है। निराश पीले जर्द चेहरे कुछ हताश चेहरों का हाथ पकड़े हस्पताल के गेट की तरफ लौट रहे हैं।
“वह मर जायेगी डॉक्टर ...!” यह चीख सिस्टर मार्था की है जिसने डॉक्टर राघव को झकझोर दिया है। उसके पाँवों में गति आ गई है।
“कहाँ जा रहे हो राघव?” तीनों डॉक्टरों की यह इकट्ठी आवाज है।
“सुन नहीं रहे हो, वह मर जायेगी!” वह चिल्ला उठता है।
“लेकिन हम हड़ताल पर हैं और आप भी हमारे साथ हैं। हम अपने हक के लिए लड़ रहे हैं।” वे उसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
“हक से पहले फर्ज होता है मेरे भाई !”
“हम सब आपका बायकाट कर देंगे डॉक्टर राघव!” फिर एक साथ तीन स्वर डॉक्टर राघव के पाँवों को बाँधने का प्रयास कर रहे हैं।
“कोई बायकाट उस शपथ से बढ़कर नहीं है फ्रेंड्स, जो हमने डॉक्टर बनने पर सबसे पहले ली थी।”
डॉक्टर राघव तेजी से उधर जा रहा है जिधर से उस बच्ची की चीखें आ रही हैं। सिस्टर मार्था उसके पीछे लपक रही है। मुर्दाघर अब हस्पताल में बदल रहा है।
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