अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 6, फरवरी 2013
सामग्री : सुकेश साहनी की बाल-कहानी एवं अनिल द्विवेदी ‘तपन’ की दो कवितायेँ। नए बाल चित्रकार- स्मिति गंभीर व सक्षम गम्भीर।
सुकेश साहनी
{सुप्रसिद्ध कथाकार सुकेश साहनी का लघु संग्रह ‘‘अक्ल बड़ी या भैंस’’ गत वर्ष प्रकाशित हुआ था, जिसमें उनकी बारह प्रेरक बालकथाएं संग्रहीत हैं। प्रस्तुत है इसी संग्रह से उनकी एक बालकथा।}
अक्ल बड़ी या भैंस
स्कूल से घर लौटते ही उदय ने चक्की के दो भारी पाट जैसे-तैसे स्टोर से बाहर निकाल दिए। फिर उन्हें लोहे की एक छड़ के, दोनों सिरों पर फँसाकर भारोत्तोलन का प्रयास करने लगा। चक्की के पाट बहुत भारी थे। प्रथम प्रयास में ही उसके पीठ में दर्द जागा और वह चीख पड़ा।
उसकी चीख सुनकर माँ रसोईघर से दौड़ती हुई आ गयीं। उदय की पीठ में असहनीय पीड़ा हो रही थी। उन्होंने उदय को तब कुछ नहीं कहा। वे उदय को एक तरह से एक अच्छा लड़का मानती थीं। उदय जब कुछ राहत-सी महसूस करने लगा तो उन्होंने कहा, ‘‘बेटा, तुम्हें आज क्या सूझी?’’
जवाब में उदय की आँखें भर आयीं, ‘‘माँ, आज स्कूल में मदन ने फिर मेरा हाथ उमेठ दिया। वह मुझसे बहुत तगड़ा है। मैं उससे भी ज्यादा तगड़ा बनूँगा।’’
‘‘अच्छा, पहले यह बताओ, स्कूल में तुम्हारे अध्यापक किसे अधिक चाहते हैं, तुम्हें या मदन को?’’
‘‘मुझे।’’
माँ ने उसे समझाया- ‘‘तुम्हारी बातों से स्पष्ट है कि मदन में शारीरिक बल है, बुद्धि नहीं। बुद्धिमान आदमी अपने गुण की डींगें नहीं हाँकता। तुम चाहो तो अपनी बुद्धि के बल पर उसका घमंड दूर कर सकते हो।’’
माँ के समझाने से उदय को नई शक्ति मिली। वह सोचने लगा। सोचते-सोचते उसकी आँखे खुशी से चमक उठीं।
अगले दिन खेल क मैदान में उदय अपने कुछ मित्रों के साथ खड़ा था। तभी वहाँ मदन भी आ गया। अपनी आदत के मुताबिक आते ही उसने डींग हाँकनी शुरू की, ‘‘देखो, मैं यह पत्थर कितनी दूर फेंक सकता हूँ।’’ इतना कहकर वह एक भारी से पत्थर को फेंककर दिखाने लगा।
‘‘मदन, मुझसे मुकाबला करोगे?’’ उदय ने पूछा।
‘‘अबे तू! जा मरियल, तू क्या खाकर मेरा मुकाबला करेगा?’’ मदन ने उसकी खिल्ली उड़ाते हुए कहा।
‘‘ज्यादा घमंड ठीक नहीं होता’’, उदय ने अपना रूमाल उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा- ‘‘इस रूमाल को ही जरा उस पत्थर तक फेंककर दिखा दो।’’
‘‘बस ये....ये लो।’’ मदन ने पूरी ताकत से रूमाल फेंका। रुमाल हवा में लहराता हुआ पास ही गिर गया।
उदय ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम इस जरा से रूमाल को ही नहीं फेंक पाए, पर मैं इस रुमाल के साथ-साथ एक पत्थर को भी तुमसे अधिक दूरी तक फेंक सकता हूँ।’’ यह कहकर उदय ने रूमाल में एक छोटा-सा पत्थर लपेटा और उसे काफी दूर तक फेंक दिया। सभी लड़के जोर-जोर से तालियाँ बजाकर हँसने लगे। मदन का चेहरा मारे शर्म के लाल हो गया। वह चुपचाप वहाँ से खिसक गया।
शाम को उदय खुशी-खुशी स्कूल से वापस लौट रहा था। वह आज की घटना जल्दी से जल्दी अपनी माँ को बताना चाहता था।
अनिल द्विवेदी ‘तपन’
{कवि-कथाकार अनिल द्विवेदी ‘तपन’ का बाल कविताओं का संग्रह ‘‘उड़न खटोला’’ मार्च 2010 में प्रकाशित हुआ था। इसमें उनकी 22 बाल कविताएं संग्रहीत हैं। प्रस्तुत हैं उनके इसी संग्रह से दो बाल कविताएं।}
क्यों अनपढ़ कहलाते?
थके-थके से चूहे चाचा
घर के अंदर आए।
रंग-बिरंगी कई किताबें
अपनी बगल दबाए।।
क्यों उदास हो, मुझे बताओ
चुहिया चाची बोली।
सर में दर्द अगर होता हो
खालो कोई गोली।।
बोले चाचा, बात नहीं कुछ
ना कोई बीमारी।
पत्र-पत्रिका ना पढ़ पाना
है मेरी लाचारी।।
पढ़े-लिखे बच्चे अक्सर अब
मेरी हँसी उड़ाते।
थोड़ा सा भी पढ़-लिख लेते
क्यों अनपढ़ कहलाते।।
अभिलाषा
मेरी अभिलाषा है, मैं भी
बादल बन उड़ जाऊँ।
पवन वेग के संग-संग नभ में
हँस-हँस मजे उडाऊँ।।
कितने सुन्दर ये बादल हैं
पल-पल रंग बदलते।
गर्मी से आहत जन-जन की
व्याकुलता को हरते।।
तेज गर्जना इनकी सुनकर
सब के तन थर्राते।
मानों शेर सभी धरती के
नभ पर जा गुर्राते।।
निश्छल मन से सेवा करने
आसमान पर आते।
पृथ्वी पर पानी बरसाकर
जीवन सुखद बनाते।।
माँ : रागनी श्रीवास्तव
पिता : संदीप श्रीवास्तव
जन्म : 11. 11. 2003
कक्षा : 3
स्कूल : विद्याभूमि पब्लिक स्कूल छिंदवाड़ा
(दादाजी सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री प्रभुदयाल श्रीवास्तव)
।।बाल अविराम।।
सुकेश साहनी
{सुप्रसिद्ध कथाकार सुकेश साहनी का लघु संग्रह ‘‘अक्ल बड़ी या भैंस’’ गत वर्ष प्रकाशित हुआ था, जिसमें उनकी बारह प्रेरक बालकथाएं संग्रहीत हैं। प्रस्तुत है इसी संग्रह से उनकी एक बालकथा।}
अक्ल बड़ी या भैंस
स्कूल से घर लौटते ही उदय ने चक्की के दो भारी पाट जैसे-तैसे स्टोर से बाहर निकाल दिए। फिर उन्हें लोहे की एक छड़ के, दोनों सिरों पर फँसाकर भारोत्तोलन का प्रयास करने लगा। चक्की के पाट बहुत भारी थे। प्रथम प्रयास में ही उसके पीठ में दर्द जागा और वह चीख पड़ा।
पेंटिंग : सक्षम गंभीर |
जवाब में उदय की आँखें भर आयीं, ‘‘माँ, आज स्कूल में मदन ने फिर मेरा हाथ उमेठ दिया। वह मुझसे बहुत तगड़ा है। मैं उससे भी ज्यादा तगड़ा बनूँगा।’’
‘‘अच्छा, पहले यह बताओ, स्कूल में तुम्हारे अध्यापक किसे अधिक चाहते हैं, तुम्हें या मदन को?’’
‘‘मुझे।’’
माँ ने उसे समझाया- ‘‘तुम्हारी बातों से स्पष्ट है कि मदन में शारीरिक बल है, बुद्धि नहीं। बुद्धिमान आदमी अपने गुण की डींगें नहीं हाँकता। तुम चाहो तो अपनी बुद्धि के बल पर उसका घमंड दूर कर सकते हो।’’
माँ के समझाने से उदय को नई शक्ति मिली। वह सोचने लगा। सोचते-सोचते उसकी आँखे खुशी से चमक उठीं।
पेंटिंग : सक्षम गंभीर |
‘‘मदन, मुझसे मुकाबला करोगे?’’ उदय ने पूछा।
‘‘अबे तू! जा मरियल, तू क्या खाकर मेरा मुकाबला करेगा?’’ मदन ने उसकी खिल्ली उड़ाते हुए कहा।
‘‘ज्यादा घमंड ठीक नहीं होता’’, उदय ने अपना रूमाल उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा- ‘‘इस रूमाल को ही जरा उस पत्थर तक फेंककर दिखा दो।’’
‘‘बस ये....ये लो।’’ मदन ने पूरी ताकत से रूमाल फेंका। रुमाल हवा में लहराता हुआ पास ही गिर गया।
उदय ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम इस जरा से रूमाल को ही नहीं फेंक पाए, पर मैं इस रुमाल के साथ-साथ एक पत्थर को भी तुमसे अधिक दूरी तक फेंक सकता हूँ।’’ यह कहकर उदय ने रूमाल में एक छोटा-सा पत्थर लपेटा और उसे काफी दूर तक फेंक दिया। सभी लड़के जोर-जोर से तालियाँ बजाकर हँसने लगे। मदन का चेहरा मारे शर्म के लाल हो गया। वह चुपचाप वहाँ से खिसक गया।
शाम को उदय खुशी-खुशी स्कूल से वापस लौट रहा था। वह आज की घटना जल्दी से जल्दी अपनी माँ को बताना चाहता था।
- 193/21, सिविल लाइन्स, बरेली-243001 (उत्तर प्रदेश)
अनिल द्विवेदी ‘तपन’
{कवि-कथाकार अनिल द्विवेदी ‘तपन’ का बाल कविताओं का संग्रह ‘‘उड़न खटोला’’ मार्च 2010 में प्रकाशित हुआ था। इसमें उनकी 22 बाल कविताएं संग्रहीत हैं। प्रस्तुत हैं उनके इसी संग्रह से दो बाल कविताएं।}
क्यों अनपढ़ कहलाते?
थके-थके से चूहे चाचा
घर के अंदर आए।
रंग-बिरंगी कई किताबें
अपनी बगल दबाए।।
क्यों उदास हो, मुझे बताओ
चुहिया चाची बोली।
सर में दर्द अगर होता हो
खालो कोई गोली।।
पेंटिंग : इशिता श्रीवास्तव |
बोले चाचा, बात नहीं कुछ
ना कोई बीमारी।
पत्र-पत्रिका ना पढ़ पाना
है मेरी लाचारी।।
पढ़े-लिखे बच्चे अक्सर अब
मेरी हँसी उड़ाते।
थोड़ा सा भी पढ़-लिख लेते
क्यों अनपढ़ कहलाते।।
अभिलाषा
मेरी अभिलाषा है, मैं भी
बादल बन उड़ जाऊँ।
पवन वेग के संग-संग नभ में
हँस-हँस मजे उडाऊँ।।
कितने सुन्दर ये बादल हैं
पल-पल रंग बदलते।
गर्मी से आहत जन-जन की
व्याकुलता को हरते।।
पेंटिंग : स्मिति गंभीर |
तेज गर्जना इनकी सुनकर
सब के तन थर्राते।
मानों शेर सभी धरती के
नभ पर जा गुर्राते।।
निश्छल मन से सेवा करने
आसमान पर आते।
पृथ्वी पर पानी बरसाकर
जीवन सुखद बनाते।।
- ‘दुलारे निकुंज’, 46-सिपाही ठाकुर, कन्नौज-209725 (उ.प्र.)
हमारे नए बाल-चित्रकार
स्मिति गंभीर
माँ : भारती गंभीर
पिता : राकेश गंभीर
कक्षा : 7
पिता : राकेश गंभीर
कक्षा : 7
जन्म : 09-09-2000
स्कूल : ए.पी.एस.2 , रुड़की
स्कूल : ए.पी.एस.2 , रुड़की
इशिता श्रीवास्तव
माँ : रागनी श्रीवास्तव
पिता : संदीप श्रीवास्तव
जन्म : 11. 11. 2003
कक्षा : 3
स्कूल : विद्याभूमि पब्लिक स्कूल छिंदवाड़ा
(दादाजी सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री प्रभुदयाल श्रीवास्तव)
सक्षम गंभीर
माँ : भारती गंभीर
पिता : राकेश गंभीर
कक्षा : 4
कक्षा : 4
जन्म : 08-08-2003
स्कूल : ए.पी.एस.2 , रुड़की
स्कूल : ए.पी.एस.2 , रुड़की
ई मेल : sakshamgambhir9@gmail.com
स्मिति , इशिता और सक्षम इन तीनों बच्चों को सुन्दर पेण्टिंग बनाने के लिए बहुत बधाई !आप तीनों का भविष्य उज्ज्वल है । मनोयोग से अपनी कला का विकास करते रहें।
जवाब देंहटाएं- रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
बाल रचनाकरोँ को स्थान दे कर एक नई शुरुआत की है।
जवाब देंहटाएंhttp://yuvaam.blogspot.com