अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 6, फरवरी 2013
।।क्षणिकाएँ।।
सामग्री : डॉ. बलराम अग्रवाल, नारायण सिंह निर्दोष व डॉ. सुरेश सपन की क्षणिकाएँ।
डॉ. बलराम अग्रवाल
दो क्षणिकाएँ
1.
बिटिया ने
ऊपर को
पत्थर जो उछाला
नीचे को बैठ गया
सूरज बेचारा
छिप गया
डरपोक खरगोश सा दिन
2.
शब्द को
न शूल बनाओ
न सुई करके
हवा में फेंको
फूट जायेंगी
सभी ओर हैं- मेरी आँखें
नारायण सिंह निर्दोष
दो क्षणिकाएँ
1.
पाँवों में
फटी चप्पलों की कीमत
जमा (+)
जिस्म पर टंगे
चिथड़ों की कीमत
और कुल पर
शत-प्रतिशत छूट
बराबर (=)
गरीब की कुल कीमत
2.
सहन करने की
आखिरी हद से पूर्व ही
जब हम/बौखला जाते हैं
तब जनम लेता है- द्वन्द
फिर कुंठायें
और ढह जता है
हमारा/बचा-खुचा व्यक्तित्व
डॉ. सुरेश सपन
दो क्षणिकाएँ
1.
बिखरे हुए/शब्द
कुछ डायरी के इस पन्ने पर
कुछ डायरी के उस पन्ने पर
सूख गये/बस एक धूप में
वे शब्द सब
डायरी के उस पन्ने पर
2.
आसमान साफ है
मगर जमीन पर धुंध है
कत्ल होने वाला है
जीर्ण-शीर्ण आदमी का
।।क्षणिकाएँ।।
सामग्री : डॉ. बलराम अग्रवाल, नारायण सिंह निर्दोष व डॉ. सुरेश सपन की क्षणिकाएँ।
दो क्षणिकाएँ
1.
बिटिया ने
ऊपर को
पत्थर जो उछाला
रेखा चित्र : राजेंद्र परदेशी |
सूरज बेचारा
छिप गया
डरपोक खरगोश सा दिन
2.
शब्द को
न शूल बनाओ
न सुई करके
हवा में फेंको
फूट जायेंगी
सभी ओर हैं- मेरी आँखें
- एम-70, उल्धनपुर, दिगम्बर जैन मन्दिर के पास, नवीन शाहदरा, दिल्ली
नारायण सिंह निर्दोष
दो क्षणिकाएँ
1.
पाँवों में
फटी चप्पलों की कीमत
जमा (+)
रेखा चित्र : शशिभूषण बडोनी |
चिथड़ों की कीमत
और कुल पर
शत-प्रतिशत छूट
बराबर (=)
गरीब की कुल कीमत
2.
सहन करने की
आखिरी हद से पूर्व ही
जब हम/बौखला जाते हैं
तब जनम लेता है- द्वन्द
फिर कुंठायें
और ढह जता है
हमारा/बचा-खुचा व्यक्तित्व
- सी-21, लैह (स्म्प्।भ्) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096
डॉ. सुरेश सपन
दो क्षणिकाएँ
छाया चित्र : उमेश महादोषी |
1.
बिखरे हुए/शब्द
कुछ डायरी के इस पन्ने पर
कुछ डायरी के उस पन्ने पर
सूख गये/बस एक धूप में
वे शब्द सब
डायरी के उस पन्ने पर
2.
आसमान साफ है
मगर जमीन पर धुंध है
कत्ल होने वाला है
जीर्ण-शीर्ण आदमी का
- डॉ. एस.सी.पाण्डे, वरिष्ठ वैज्ञानिक, विवेकानन्द कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा (उत्तराखंड)
रचनाकरोँ को बधाई।
जवाब देंहटाएंhttp://yuvaam.blogspot.com/p/katha.html?m=0