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रविवार, 28 अगस्त 2016

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अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  5,   अंक  :  05-12,  जनवरी-अगस्त  2016



प्रधान संपादिका : मध्यमा गुप्ता
संपादक :  डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल: 09458929004)
संपादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन 
ई मेल :  aviramsahityaki@gmail.com 


शुल्क, प्रकाशन आदि संबंधी जानकारी इसी ब्लॉग के ‘अविराम का प्रकाशन’लेवल/खंड में दी गयी है।





।।सामग्री।।


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सम्पादकीय पृष्ठ {सम्पादकीय पृष्ठ}:  नई पोस्ट नहीं।

अविराम विस्तारित : 

काव्य रचनाएँ {कविता अनवरत} : इस अंक में डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा 'अरुण', प्रो. मृत्युंजय उपाध्याय, शान्ति सुमन, विज्ञान व्रत,  मालिनी गौतम, चेतना, सुरेन्द्र गुप्त ‘सीकर’ , सुमन शेखर , रमेश मिश्र ‘आनंद’  की काव्य रचनाएँ।

लघुकथाएँ {कथा प्रवाह} : इस अंक में पड़ाव और पड़ताल से श्री भगीरथडॉ. बलराम अग्रवाल एवं  लघुकथा : अगली पीढ़ी में ज्योत्सना कपिल की लघुकथाएँ।

कहानी {कथा कहानी} : नई पोस्ट नहीं।

क्षणिकाएँ {क्षणिकाएँ} : इस अंक में श्री केशव शरण की क्षणिकाएँ। 

हाइकु व सम्बंधित विधाएँ {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ} :  इस अंक में डॉ. सतीश दुबे, सुश्री विभा रश्मि एवं श्री रामेश्वर दयाल शर्मा ‘दयाल’ के हाइकु। 

जनक व अन्य सम्बंधित छंद {जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द} : इस अंक में डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ के जनक छन्द।

माँ की स्मृतियां {माँ की स्मृतियां} :  नई पोस्ट नहीं।

बाल अविराम {बाल अविराम} : नई पोस्ट नहीं।

हमारे सरोकार {सरोकार} :  नई पोस्ट नहीं।

व्यंग्य रचनाएँ {व्यंग्य वाण} :  इस अंक में डॉ.सुरेन्द्र वर्मा का व्यंग्यालेख- 'जुगाड़ से जुडि़ये' एवं ओमप्रकाश मंजुल का व्यंग्यालेख- 'काश! मैंने भी सम्मान हथिया ही लिया होता' 

संभावना {संभावना} :  नई पोस्ट नहीं।

स्मरण-संस्मरण {स्मरण-संस्मरण} :  नई पोस्ट नहीं।

क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श} : नई पोस्ट नहीं।

अविराम विमर्श {अविराम विमर्श} : इस अंक में डॉ. पुरुषोत्तम दुबे का आलेख- ‘‘हिन्दी लघुकथा : स्थापना के सोपान’’ तथा डॉ. जितेन्द्र ‘जीतू’ का आलेख- ‘‘सांस्कृतिक बदलाववाद और लघुकथा की स्थिति का नारको टेस्ट’’

किताबें {किताबें} :  इस अंक में ‘‘गौशाला : वैष्णवधर्मी जीवन पद्धति’’/कन्हैयालाल गुप्त ‘सलिल’ के गीत-काव्य की श्यामसुंदर निगम द्वारा तथा "श्वेत श्यामपट : लम्बी काव्य यात्रा का सुफल"/श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी के काव्य-संग्रह, "डॉ. मिथिलेश दीक्षित का क्षणिका-साहित्य : एक  परिचयात्मक नोट"/ डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर' द्वारा सम्पादित विमर्श, "टूटे हुए तार : क्षणिका में अहसासों की अनुभूतियाँ"/डॉ. बेचैन कण्डियाल के क्षणिका- संग्रह , "केनवास पर शब्द  :  रेखाओं के मध्य कविताएँ"/संदीप राशिनकर के ग़ज़ल-संग्रह, "मैं जहाँ हूँ : मानवीय अहसासों की ग़ज़लें"/विज्ञान व्रतके ग़ज़ल-संग्रह, "अँगूठा दिखाते समीकरण : सहजता-सरलता के साथ व्यंय में उभरती क्षणिका"/चक्रधर शुक्ल के क्षणिका- संग्रह, "दूरी मिट गयी :  कुछ लघु कविताओं के साथ उत्कृष्ट क्षणिकाएँ"/केशव शरण के क्षणिका संग्रह की डॉ. उमेश महादोषी द्वारा परिचयात्मक समीक्षाएँ। 
लघु पत्रिकाएँ {लघु पत्रिकाएँ} : नई पोस्ट नहीं।

हमारे युवा {हमारे युवा} :  नई पोस्ट नहीं।

गतिविधियाँ {गतिविधियाँ} :  पिछले दिनों प्राप्त साहित्यिक गतिविधियों की सूचनाएं/समाचार।

अविराम की समीक्षा {अविराम की समीक्षा} :  नई पोस्ट नहीं।

अविराम के अंक {अविराम के अंक} : इस अंक में अविराम साहित्यकी के अक्टूगर-दिसम्बर 2015, जनवरी-मार्च 2016, अप्रेल-जून 2016 एवं जुलाई-सितम्बर 2016 मुद्रित अंक में प्रकाशित सामग्री की सूची।

अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के पाठक सदस्य {हमारे आजीवन पाठक सदस्य} :  अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के 31 जुलाई 2016  तक अद्यतन आजीवन एवं वार्षिक पाठक सदस्यों की सूची।

अविराम के रचनाकार {अविराम के रचनाकार} :  नई पोस्ट नहीं।

अविराम विस्तारित

               अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  5,   अंक  :  05-12,  जनवरी-अगस्त  2016



।।कविता अनवरत।।


सामग्री :  इस अंक में डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा 'अरुण', प्रो. मृत्युंजय उपाध्याय, शान्ति सुमन, विज्ञान व्रत,  मालिनी गौतम, चेतना, सुरेन्द्र गुप्त ‘सीकर’ , सुमन शेखर , रमेश मिश्र ‘आनंद’  की काव्य रचनाएँ।


डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा 'अरुण'



लाइलाज बीमारी

सभी जानते हैं खुद को, बस छिपने की लाचारी है।
धोखा देने की आदत तो, एक लाइलाज बीमारी है।।


रेखाचित्र : उमेश महादोषी 
जिनकी करतूत उजागर, छिपते हैं खूब मुखौटों में,
धन्ना सेठ बने फिरते वे, सिर पे जिनके उधारी है।।

रहबर बन के साथ चले, कसमें खाईं मुहब्बत की,
चुपके-चुपके खूब चलाई, जो आस्तीन में आरी है।।

हमने तो समझाया भी, पर बात हमारी नहीं सुनी,
अब रोते हैं वो जार-जार, वक्त जो खुद पे भारी है।।


वक्त किसी का सगा नहीं, सबसे वसूल कर लेता है,
'अरुण' वक्तसे बचके रहना, आनी सब की बारी है।।

  • 74/3,न्यू नेहरू नगर, रुड़की-247667, जिला हरिद्वार (उत्तराखण्ड)/मोबाइल : 09412070351 


प्रो. मृत्युंजय उपाध्याय 




अस्तित्व

किसी का जीवित होना ही
नहीं होता अस्तित्व का चिन्ह
न होता है उसका नज़रिया
मनुष्य का खाना, पीना, सोना
दिन-रात काम की चक्की में पिसना
यह भी उसके अस्तित्व को 
नकारता ही जाता है
अपने से अलग खड़े होकर
एकदम तटस्थ मुद्रा अपनाकर
पढ़ना जीवन को नज़दीक से
क्या किसी की रुलाई से
नम हो पाती हैं उसकी आँखें
उसकी खुशी क्या फेंक पाती है
कोई खूबसूरत कोंपल
भीतर से उठ पाता है आनंद का
ज्वार पर ज्वार
ऐसा हो पाए तो वह मनुष्य है
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
अन्यथा उसमें और पशु में 
भला कैसा अन्तर है?

कविता का मौसम
भूखी, प्यासी, मरणासन्न माँ
झल रही है-
बुखार से पीड़ित पुत्र को
ताड़ का पंखा
न उसकी आँख कभी झपकती है
न अँगड़ाई लेकर उठने का ही
मन करता है
पुत्र असक्त, विवश 
माँ को टुकुर-टुकुर ताकता है
मन ही मन कुछ निश्चय करता है
फिर पता नहीं विजातीय विवाह ने 
कैसे-कैसे उसे तोड़ा है
उसका माता से मुख मोड़ा है
अब माँ एकदम नहीं सुहाती है
कभी एकांत के किसी कोने में
बरबस माँ की याद सताती है
तो उसे लगता है- वह जीवित है
कविता का यह सही मौसम है
और वह बरस-बरस पड़ता है।

  • वृंदावन मनोरम नगर, धनवाद-826001(झारखण्ड)/मोबाइल : 09334088307


शान्ति सुमन




रेती की दीवारें

दूर-दूर से अलग-अलग हम बसे
बहुत दिन हुए हँसे

नींदों में भी दीखा करतीं
गीली रेती की दीवारें
पूरब वाले घर की छूटी
टूट-टूट गिरती शहतीरें
मन से मन की साँसें कुछ-कुछ कसे
बहुत दिन हुए हँसे

थोड़ी आमदनी की बातें
छायाचित्र : उमेश महादोषी
सहज घरों से बाहर होतीं
कहीं दुपहरी थक जाती है
खुशियाँ पाँखें आँख भिगोतीं
पँखुरी पर लिखे दिन होते अब से
बहुत दिन हुए हँसे

सीढ़ियाँ उतरते बादल के
संग-संग चलते पैदल ही
हरी चूड़ियाँ लाल रिबन में
सज जाते सब लय-सुर यों ही
आँखों बसे ये गीत कहें सबसे
बहुत दिन हुए हँसे

  • 2, कैजर बंगला, कपाली रोड, कदमा (कदमा-सोनारी लिंक), जमशेदपुर-831005, झारखंड/मोबाइल : 09430917356


विज्ञान व्रत 




दो ग़ज़लें

01.
कब से मन में रक्खे हो
जाने दो जाने भी दो

मैं पहचान गया तुमको
तुम भी औरों जैसे हो

कैसे समझाऊँ तुमको
तुम मुझको समझाओ तो

ऐसे देख रहा है वो
जैसे कोई अपना हो

नामुमकिन है जीत सको
रेखाचित्र : विज्ञान व्रत 
कैसे हारूँ बतला दो

02.
खर्च कब के हो चुके हो
और फिर भी बच गये हो

खुद कभी के मर चुके हो
सिर्फ़ मुझ में जी रहे हो

ज़िन्दगी भर चुप रहे हो
अब नहीं हो, बोलते हो

ये रही मंज़िल तुम्हारी
रास्ते में क्यूँ रुके हो

आप मेरे क्या बनोगे
क्या कभी खुद के हुए हो

  • एन-138, सेक्टर-25, नोएडा-201301(उ.प्र.)/मोबाइल : 09810224571


मालिनी गौतम






दो ग़ज़लें

01.
इस तरह क्यों हुई तू विकल ज़िन्दगी 
कुछ सँभल, कुछ बहल, आगे चल ज़िन्दगी

हैं उमीदें कई शेष अरमान हैं 
थाम ले तू हमें, यूँ न छल ज़िन्दगी 

छन्द बहरों में नाहक तलाशा किये 
चाक सीने से निकली ग़ज़ल ज़िन्दगी 

नित नयी मुश्किलों से जो घबरा गये 
कर दे उनके इरादे अटल ज़िन्दगी 

वो हैं नादां, हुई उनसे बेशक ख़ता 
दे न उनको सजा, कुछ पिघल ज़िन्दगी 

देखकर क्रूर मंज़र जो पथरा गये 
उनकी आँखों को कर दे सजल ज़िन्दगी 
रेखाचित्र :
रमेश गौतम
 

नव्य आशा, मिली है नयी चेतना 
त्याग दे पथ पुराना, बदल ज़िन्दगी 

02.
तार जीवन के जब भी उलझ जायेंगे             
आपसी प्यार से उनको सुलझायेंगे 

ढूँढते हो कहाँ हमको पृष्ठों में तुम
हाशिये में तुम्हें हम नज़र आयेंगे

तप के सोना हुए जो कड़ी धूप में 
वे सदा कामयाबी के फल पायेंगे 

प्यार भी दीजिये खाद पानी के संग 
फूल बंजर धरा पे भी इठलायेंगे 

अपनी नकली हँसी और ठहाकों से वो  
महफ़िलों को भला कैसे गरमायेंगे 
  • मंगल ज्योत सोसाइटी, संतरामपुर-389260 जिला-पंचमहल, गुजरात/मो. 09427078711


चेतना वर्मा




नदी का जल

अब नदी के पानी में
नहीं दिखाई देता
चिड़िया का चेहरा
देखा करती थी झाँक-झाँक कर
उसमें
अपनी आँखों के रंग और पंखों की छाँह
चिड़िया जानती है कि खड़ी है वह
दो लड़ाइयों के बीच
एक तो बदल देना चाहती है
रेखाचित्र :
शशिभूषण बडोनी 
नदी का जल
और दूसरी जो बचाकर रखना चाहती है
उसको
चिड़िया यह भी जानती है
कि बची रहेगी नदी
और बचा रहेगा उसका साफ जल
तो देखा करेंगी अपने को
आने वाली पीढ़ियाँ
और तेज करती रहेंगी
अपनी लड़ाइयाँ।
  • 2, कैजर बंगला, कपाली रोड, कदमा (कदमा-सोनारी लिंक), जमशेदपुर-831005, झारखंड/मोबाइल : 08292675554


सुरेन्द्र गुप्त ‘सीकर’ 





गीत

कवि कुछ ऐसा तो लिख जाओ, जो प्रबोध को प्रसार दे दे।
जो समष्टि को सँवार दे अरु, जो प्रसून को निखार दे दे।

नीति, शान्ति और स्नेह के पावन
पाथर रख दे जो घाटों पर।
पिस न सके जो कवि कबीर-सा
चलती चाकी के पाटों पर।
ऐसा ठोस कि जो विकास-हित, जन-जन को नव विचार दे दे।
कवि कुछ ऐसा तो लिख जाओ....

हो विमुक्त जो भेद-भाव से
रेखाचित्र : बी.मोहन नेगी 
निज-पर की सीमा से परे हो।
अभिनव जल-प्रपात सा निर्मल,
धर्म-धुरी की धार धरे हो।
जो विशिष्ट हो, जो पवित्र हो, जो उदात्त को उभार दे दे।
कवि कुछ ऐसा तो लिख जाओ....

जो भी लिखें हम सोच-समझ कर,
आत्मा से हो वह साक्षात्कृत।
मंगल संदेशा धारित हो,
प्रतिपालक अरु प्राणाधारित।
दुःख-विनाशक, अनिष्ट-नाशक, तप्त ह्नदय को तुषार दे दे।
कवि कुछ ऐसा तो लिख जाओ....

स्वर-व्यंजन-युत शब्द-समूहों
का सविनय सुन्दर सम्मेलन।
भावों का संवेदनाओं का-
हो संयम संग, शुभ आमेलन।
जो विशिष्ट को भी समष्टि से, सिन्धु-सन्धि-हित कगार दे दे।
कवि कुछ ऐसा तो लिख जाओ....
  • 43, नौबस्ता, हमीरपुर रोड, कानपुर-208021, उ.प्र./मोबा. 09451287368  


सुमन शेखर 



{हिमाचल की उभरती  हुई कवियत्री सुश्री सुमन शेखर का कविता संग्रह ‘कल्पतरु बना जाना तुम’ वर्ष 2012 में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में उनकी प्रतिनिधि 61 कविताएँ रूाामिल हैं। इस संग्रह से सुश्री शेखर जी की तीन कविताएँ प्रस्तुत हैं।}

कुंवारी लड़कियाँ

कुंवारी लड़कियाँ
जब मिलती हैं तो
पूछती हैं एक दूसरे से कि
उसका रिश्ता तय हुआ या नहीं
या
उसकी जन्म कुंडली
जो भेजी गयी थी
उसका मिलान हुआ या नहीं
या कि लड़का उसे देखने 
कब आ रहा है?
कुंवारी लड़कियों की माताएं
सिखाती हैं
उन्हें खाना पकाना
और बात-बात पर
धमकाती हैं कि
फुल्का जल गया तो
सास हाथ जला देगी
कुंवारी लड़कियों के पिता
खुद तो नहीं
पर माँ से कहते हैं कि
बेटी को कह दे
वह ठीक से उठे-बैठे
और ठीक कपड़े पहने
उसे दूसरे घर जाना है
कुंवारी लड़की का भाई
उसे टोकता है
कि वो शीशे के सामने
ज्यादा देर क्यों खड़ी रही
या कल जिससे
उसने किताब माँगी थी
उस लड़के से वह
ज्यादा बात न करे
कुंवारी लड़की की बड़ी 
शादी-शुदा बहन कहती है
शादी में कुछ नहीं रखा है
पर फिर भी 
तेरे लिए एक लड़का देखा है
कुंवारी लड़की 
क्या सोचती है
अपने बारे में
यह लड़की खुद भी 
नहीं जानती

माँ के बिना

घर जाना
हमेशा अच्छा लगा
जब 
माँ
घर पर होती थी
रेखाचित्र : बी.मोहन नेगी 
बिना माँ के 
घर घर नहीं लगता
लगता 
अजनबी मकान में प्रविष्ट 
हुई हूँ
माँ की मधुर मुस्कान से
घर के 
असंख्य दीप 
जल उठते थे
हमेशा अच्छा लगता था
उन जलते दीपकों की लौ
से आलोकित होना
अब माँ नहीं है
घर का कोना-कोना
उदास लगता है
बुझे अंगारे सा
दिखता है

सड़क

उस पराये शहर के घर में
जो गुम हुई औरत
तो अब
ढूंढ़ने से भी नहीं मिलती है

पता चला 
वह सड़क बन गयी है
सभी उस पर से
गुजर रहे हैं
अपनी मंजिल पाने को

वह केवल सड़क ही
बनी रह गयी है
उसकी कोई मंजिल नहीं है
  • नजदीक पेट्रोल पम्प, ठाकुरद्वारा, पालमपुर-176102, जिला कांगड़ा (हि.प्र.)/मोबाइल: 09418239187


रमेश मिश्र ‘आनंद’






गीत

श्रम की स्याही से हम किस्मत का इतिहास लिख रहे।
एक-एक मिल बन अनेक हम, एक नया इतिहास लिख रहे।

भूखे प्यासे श्रमिक पुरानी दीवारों सा ढह जाते हैं
उड़ने वाले ‘पर’ आशा के आँसू बनकर बह जाते हैं
बीत रही है जो हम पर अपने मन का संत्रास लिख रहे।
श्रम की स्याही से हम अपनी किस्मत का इतिहास लिख रहे।

कितने वादे हुए और वादे कूड़े का ढेर हो गये
कितने हुए घोटाले कितने पाप और अंधेर हो गये
दिन बीते हैं जो अब तक हम उनका नया समास लिख रहे।
रेखाचित्र :
कमलेश चौरसिया 
श्रम की स्याही से हम अपनी किस्मत का इतिहास लिख रहे।

सावन आया और गया पर धरती है प्यासी की प्यासी
मुरझाये-मुरझाये चेहरे हर चेहरे पर लिखी उदासी
बरसे मेघ खिलें कलियाँ हम ऐसा नया विकास लिख रहे।
श्रम की स्याही से हम अपनी किस्मत का इतिहास लिख रहे।

भूखे को रोटी मिल जाये, प्यासे जल से प्यास बुझायें
सपने हों साकार हमारे, हम आनंद के दीप जलायें
हो जाये तम दूर धरा से ऐसा एक प्रयास लिख रहे।
श्रम की स्याही से हम अपनी किस्मत का इतिहास लिख रहे।
  • प्लॉट नं.1420, हनुमन्त विहार, नौबस्ता, कानपुर-208021(उ.प्र.)/ मोबा. 09415404461