आपका परिचय

मंगलवार, 20 अगस्त 2013

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अविराम  (ब्लॉग संकलन) :  वर्ष  : 2,   अंक  : 9-10,  मई-जून 2013

प्रधान संपादिका : मध्यमा गुप्ता
संपादक :  डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल : 09412842467)
संपादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन  
ई मेल :  aviramsahityaki@gmail.com 

शुल्क, प्रकाशन आदि संबंधी जानकारी इसी ब्लॉग के "अविराम का प्रकाशन" लेवल/खंड में दी गयी है।
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क्षणिका विशेषांक के सम्बन्ध में आवश्यक सूचना सम्पादकीय पृष्ठ पर देखें। 
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रेखाचित्र : राजेन्द्र परदेसी 


।।सामग्री।।
कृपया सम्बंधित सामग्री के पृष्ठ पर जाने के लिए स्तम्भ के साथ कोष्ठक में दिए लिंक पर क्लिक करें। 


सम्पादकीय पृष्ठ { सम्पादकीय पृष्ठ } : उमेश महादोषी का सम्पादकीय एवं अविराम के बारे में जरुरी सूचना।

अविराम विस्तारित : 
काव्य रचनाएँ  {कविता अनवरत:    इस अंक में सर्वश्री हरनाम शर्मा, गणेश भारद्वाज ग़नी, डॉ. सुरेश उजाला, अजय चन्द्रवंशी, सुधीर कुमार मौर्य एवं सुश्री विनोद कुमारी किरन की काव्य रचनाएं।

लघुकथाएँ   {कथा प्रवाह} :  इस अंक में डॉ.सतीश दुबे, श्री श्यामसुन्दर अग्रवाल, सु-श्री शोभा रस्तोगी ‘शोभा’, श्री अहफ़ाज़ अहमद कुरैशी, डॉ नन्द लाल भारती व श्री किशन लाल शर्मा की लघुकथाएं।

कहानी {कथा कहानी  नई पोस्ट नहीं

क्षणिकाएँ  {क्षणिकाएँ:   सु-श्री राजवन्त राज की क्षणिकाएँ।
हाइकु व सम्बंधित विधाएँ  {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ}  : इस अंक में डॉ मिर्जा हसन नासिर की हाइकु आधारित रचनाएँ

जनक व अन्य सम्बंधित छंद  {जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द:   डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया 'अराज'  के पाँच जनक छंद।

बाल अविराम {बाल अविराम:  बाल अविराम के इस अंक में प्रस्तुत हैं वरिष्ठ कवि प्रभुदयाल श्रीवास्तव की दो कविताएँ सक्षम गंभीर, राधिका शर्मा व मिली भाटिया के चित्रों के साथ।
हमारे सरोकार  (सरोकार) :   नई पोस्ट नहीं

व्यंग्य रचनाएँ  {व्यंग्य वाण:   नई पोस्ट नहीं

संभावना  {सम्भावना:    नई पोस्ट नहीं

स्मरण-संस्मरण  {स्मरण-संस्मरण:  नई पोस्ट नहीं

अविराम विमर्श {अविराम विमर्श} : सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं चिन्तक डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा ‘अरुण’ जी के साथ वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजेन्द्र परदेसी की बातचीत।

किताबें   {किताबें} :  इस अंक में वरिष्ठ कथाकार डॉ. सतीश दुबे के कहानी संग्रह ‘‘कोलाज’’ की तथा वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ के महाकाव्य "वैदुष्यमणि विद्योतमा" की डॉ. उमेश महादोषी द्वारा द्वारा लिखित समीक्षायें।
लघु पत्रिकाएँ   {लघु पत्रिकाएँ} :  नई पोस्ट नहीं

हमारे युवा  {हमारे युवा} :  नई पोस्ट नहीं

गतिविधियाँ   {गतिविधियाँ} : पिछले दिनों प्राप्त साहित्यिक गतिविधियों की सूचनाएं/समाचार।
अविराम की समीक्षा (अविराम की समीक्षा) : नई पोस्ट नहीं

अविराम के अंक  {अविराम के अंक} :   नई पोस्ट नहीं

अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के पाठक सदस्य (हमारे आजीवन पाठक सदस्य) :  विराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के 30 जून  2013  तक अद्यतन आजीवन एवं वार्षिक पाठक सदस्यों की सूची।

अविराम के रचनाकार  {अविराम के रचनाकार} : नई पोस्ट नहीं

सम्पादकीय पृष्ठ : मई-जून 2013

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 2,   अंक  : 9-10,  मई-जून 2013

मेरा पन्ना 
  • मेरी व्यक्तिगत व्यस्तताओं के कारण ब्लॉग समय पर पोस्ट नहीं हो पा रहा है। मई-जून के अंक को संयुक्त करना पड़ा। इस अंक से हमने सम्पादकीय पृष्ठ को भी मुख पृष्ठ से अलग कर दिया गया है। जुलाई का अंक लगभग तैयार है, कुछ ही दिनों के अंतर से उसको पोस्ट कर दिया जायेगा। 
  • मित्रो, मुद्रित "अविराम साहित्यिकी" के  क्षणिका विशेषांक के प्रकाशन के लिए हम प्रतिसद्ध हैं, यद्यपि अपेक्षानुसार सामग्री नहीं प्राप्त हो पाई है। जो मित्र अपनी क्षणिकाएं नहीं भेज पाए हैं, वे अभी भी 25 सितम्बर 2013 तक भेज सकते हैं। 
  • लघुकथा विशेषांक में शामिल न हो पाने की शिकायत कई मित्रों ने की थी, उसको ध्यान में रखते हुए हम सभी मित्रों से पुन: अनुरोध करते हैं-  हास्य-व्यंग्य, सपाट बयान /सामान्य कथ्यों, चुटुकुलेनुमा, परिभाषानुमा वाक्यांशों को क्षणिका के नाम पर न भेजें। स्तरीय क्षणिकाएं भेजेंगे, तो हमारे पास आपकी रचनाओं को शामिल करने के लिए अभी पर्याप्त गुंजाईश है। जो मित्र क्षणिका पर हमारे दृष्टिकोण  को समझना चाहें, उनके लिए इस ब्लॉग पर क्षणिकाओं का एक स्तम्भ तो है ही, फ़िलहाल दो आलेख भी उपलब्ध हैं। निम्न लिंक पर क्लिक कर सकते है-
  • अविराम विमर्श  
  • क्षणिका पर बहस और विमर्श में भी आप सब आमंत्रित हैं। इसकी सूचना मुद्रित अंक (जुलाई-सितम्बर 2013) में दी गयी है।  इसी पृष्ठ पर नीचे भी हम उस सूचना को दे रहे हैं। कृपया उसे अवश्य पढ़ें और बहस एवं विमर्श में सहभागी बनें। 
  • कृपया ई मेल से सामग्री हर हाल में कृतिदेव 010 या यूनीकोड फोन्ट (मंगल) में ही भेजें।
  • पत्रिका का सदस्यता शुल्क कृपया रुड़की पर देय  सी टी एस चेक या बैंक ड्राफ्ट द्वारा ही भेजें, धनादेश (मनिआर्डर) द्वारा न भेजें। मुद्रित प्रारूप के आजीवन सदस्यों के लिए एक निर्णय यह लिया गया है कि यदि किन्हीं प्रतिकूल परिस्थितियों में इसका प्रकाशन बिना कोई समकक्ष/उपयुक्त विकल्प दिए बन्द होता है, तो आजीवन सदस्यों को उनकी सदस्यता की तिथि से पत्रिका बन्द होने की तिथि के मध्य के वर्षों के वास्तविक वार्षिक सदस्यता शुल्क का समायोजन करके शेष राशि वापस कर दी जायेगी। उम्मीद है इससे लघुपत्रिकाओं के प्रति एक विश्वास की परंपरा बनेगी और रचनाकार-पाठकों का  अविराम साहित्यिकी के आजीवन सदस्य बनने में संकोच कुछ कम होगा।


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क्षणिका विशेषांक हेतु 

बहस : अक्टूबर-दिसम्बर 2013 अंक

अलग विधा के मानक आधार और क्षणिका

      
समय के साथ साहित्य में कई तरह के परिवर्तन होते हैं, इनमें नई विधाओं की उत्पत्ति भी शामिल है। पिछली शताब्दी में नई कविता, लघुकथा, क्षणिका आदि के उदाहरण सामने हैं। अनेक विरोध और अस्वीकार के बावजूद ये विधाएँ स्थापित हुई हैं, तो इसके पीछे निसन्देह कुछ ठोस कारण रहे हैं। पर देखने में आया है कि किसी विधा में छोटे-मोटे परिवर्तनों के साथ उसे एक नया नाम देकर अलग विधाओं के जनक बनने की होड़ साहित्य में अनेक भ्रमों और विवादों को जन्म दे जाती है। नई कविता, लघुकथा आदि के सापेक्ष भी कई उदरहरण सामने आए। आज भी यह क्रम जारी है। ऐसे में क्या उचित नहीं होगा कि किसी भी साहित्यिक रचना के लिए एक नई विधा होने के कुछ स्पष्ट व सामान्य मानक आधार हों, जिनके सापेक्ष अन्य विधाओं से भिन्नता के आधार पर ही किसी रचना(ओं) को नई विधा की मान्यता दी जाये? तो ये मानक आधार क्या होने चाहिए? रूपाकार और शिल्प संबन्धी आधारों के साथ क्या विषय-वस्तु एवं वैचारिक स्तर भी कोई ठोस आधार हो सकते हैं? दूसरी बात सामान्यतः स्थापित नई विधाओं की उत्पत्ति किसी कालखण्ड की घटनाओं एवं प्रयोगों के ग्राह्य प्रभावों के संविलयनस्वरूप विकास की एक प्रक्रिया के रूप में होती पाई गई है, लेकिन कई सृजक अपने कुछ प्रयोगों को ही स्थापित विधाओं के सापेक्ष नवीन विधा घोषित करते रहे हैं, क्या इस प्रवृत्ति को स्वीकार किया जाना चाहिए? 
मानक आधारों की कसौटी पर क्षणिका को अलग विधा का दर्जा देने पर आपका मत क्या है?
     नवीनता के स्वागत के साथ अनेक विधागत विवादों में ऊर्जा के अपव्यय और भ्रम के वातावरण से भी मुक्ति का रास्ता खुल सकता है, यदि नई विधाओं की मान्यता के लिए कुछ सामान्य व स्पष्ट मानक सामने हों। इस बहस में शामिल होने के लिए आप अपने संक्षिप्त-संश्लिष्ट विचार हमें 30 सितम्बर 2013 तक अवश्य भेज दें। ई मेल से भी कृतिदेव 010 या यूनीकोड फोन्ट में टाइप करके भेज सकते हैं।
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अविराम साहित्यिकी के विशेषांक हेतु क्षणिका-विमर्श

क्षणिका से जुड़े मित्र अपनी क्षणिकाओं के साथ क्षणिका विमर्श में सहभागी बन सकते हैं। विमर्श हेतु निम्न प्रश्नों के परिप्रेक्ष्य में क्षणिका पर अपने संक्षिप्त और संश्लिष्ट विचार हमें लिख भेजें। क्षणिका लेखन की ओर आप कब और किन कारणों से आकर्षित हुए? क्षणिका में किन तत्वों की उपस्थिति के कारण आप इसे काव्य की स्वतंत्र विधा मानते हैं? क्या आपको लगता है कि क्षणिका में बिम्ब की उपस्थिति संप्रेषण को प्रभावी बनाती है? क्या आपको लगता है कि बहुधा सपाटबयानी से क्षणिका काव्यगत प्रभाव/काव्य-सौंदर्य से वंचित हो जाती है? क्या क्षणिका समकालीन समस्याओं, मानवीय सरोकारों और जीवन मूल्यों पर अन्य काव्य विधाओं के सापेक्ष कहीं अधिक प्रभावी और तीव्र संप्रेषण देती है? इसी परिप्रेक्ष्य में क्या आपको लगता है कि क्षणिका को हल्के-फुल्के हास्य और चुटुकुलेबाजी से बचाना जरूरी है? लघ्वाकार के परिप्रेक्ष्य में आपको क्षणिका में मौलिक लेखन की कितनी संभावना लगती है? आपको अपनी क्षणिका रचनाएं क्षणिका की विधागत कसौटी पर कहाँ तक और कैसे उपयुक्त लगती हैं?

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2, अंक : 9-10,  मई-जून 2013

।।कविता अनवरत।।

सामग्री :  इस अंक में सर्वश्री हरनाम शर्मा, गणेश भारद्वाज ग़नी, डॉ. सुरेश उजाला, अजय चन्द्रवंशी, सुधीर कुमार मौर्य एवं सुश्री विनोद कुमारी किरन की काव्य रचनाएं।



हरनाम शर्मा 




दो कविताएँ

1. उत्कर्ष
पर्वत का अहंकार भंग करने के लिए
मनुष्य करोड़ों वर्षों से/उन्नत शिखर की ओर
गतिमान रहा
पर्वत-मस्तक उन्नत रहा
बीच राह में
थक-हारकर मनुष्य मनुष्य ने निज मस्तक उठा
जब-जब पर्वत-शिखा का अवलोकन किया
नन्हें पक्षियों को सदैव शिखर के ऊपर
रेखा चित्र : के.रविन्द्र 
आकाश के निकट पाया है।

2. छिद्रान्वेषी
जाने किस सोच में बैठे थे हम
समय था कम
कमियाँ निकालते रहे इनकी-उनकी
वे होती न थी कम
खुद को निहारते कैसे-कब?
खुद को सुधारते कैसे-कब?
फुर्सत में न थे हम
कमियाँ निकालते रहे इनकी-उनकी
समय था कम
जैसे थे वैसे ही रह गये हम।
  • ए.जी. 1/54-सी, विकासपुरी, नई दिल्ली-110018


गणेश भारद्वाज ग़नी



खोखले विचारों के बांस

मनोबल के ऊंचे पर्वत पर बैठा
वह निहार रहा था
विचारों की गहरी नदी के उस पार
निराशा के बादलों की ओट से 
उम्मीद का खिलता सूरज
अब ढ़लने लगा था।

सांझ पास आते-आते
जैसे थम गई कहीं
दुःख की रात चुपके से
आ बैठी पास।

बरसों लड़ते रहे जो युद्ध
रेख चित्र : बी मोहन नेगी 
वे सुधारक मिट गए
पर नहीं मिटी एक लकीर अब तक।

आज होते ज़िन्दा अगर बुद्ध
तो क्या देख पाते खिचड़ी के वक्त 
अलग पंक्ति बुद्ध राम की 
जातिवाद के अन्त का सबक 
पढ़ा था पाठशाला में
आज यह उसे मज़ाक लगा
सिद्धान्तों और परम्पराओं की चादर में
एक बड़ा सुराख लगा।
खोखले विचारों के बांस भी 
क्या बन पाएंगे सिद्धान्तों की बांसुरी
और फिर फूटेंगें जीवन मूल्यों के स्वर।

अभी तो तथाकथित कवि 
कर रहे हैं खराब कविता की छवि
शब्द नकली हैं सार बनावटी
डाईनिंग टेबल पर बैठकर
भूख पर कविता सोच रहे हैं
पूजी के ढ़ेर पर मारे कुण्डली
समाजवाद का राग अलाप रहे हैं
सामने खड़ा है एक प्रश्न-
क्यों लगा टूटने जैविक चक्र
और डोलने प्रकृति का संतुलन
होने लगे जब विलुप्त-
बाघ, गिद्ध, चिड़ियां और वनस्पतियां
रेखा चित्र : सिद्धेश्वर 
समझ तो रहे हैं हम 
संतुलन और समानता के लिए
इन सबकी भूमिका
पर कौन किसे समझाए?
अब लगी सूखने इन्तजार की नदी
क्या मुख्य पंक्ति में आने के लिए
बुद्ध राम को चाहिए अब भी कोई
लूथर, लिंकन, मंडेला, मार्क्स, गांधी
या अंबेडकर
थामकर अंगुली जो
मिला दे मुख्यधारा में।

कितने ही ऐसे गुरूकुल हैं अब भी 
जहां एकलव्य हो रहे अपंग
और कितने ही द्रोणाचार्य अब भी
जो कर रहे व्यवस्था को अपंग
घृणा के बीज हो रहे अंकुरित
परम्पराओं, आस्थाओं के खाद-पानी से
कुप्रथाओं के सब्जबाग पनप रहे हैं
हृदय में कविता बनते कौन देख पाया 
क्या कभी फूल को खिलते देखा है?
  • एम.सी. भारद्वाज हाऊस, भुटी कालोनी, डाक- शमशी, जिला कुल्लू (हि.प्र.)-175126

डॉ. सुरेश उजाला



बीज

माटी में पड़ा-
ऊर्जावान बीज-
कभी गलता नहीं-
मरता नहीं।

अनुकूल-
और
पर्याप्त मात्रा में-
जल-गर्मी-वायु-
और
माटी मिलने पर-
हो जाता है- अंकुरित
छाया चित्र : शशिभूषण बडोनी 
वर्षों बाद भी।

अतएव-
राख में दबी-
एक चिंगारी-
काफी है- विचारों की
आग लगाने को- 
इतिहास बदलने को-
जनहित में।
  • 108-तकरोही, पं. दीनदयालपुरम मार्ग, इन्दिरा नगर, लखनऊ (उ.प्र.)


अजय चन्द्रवंशी





ग़ज़ल

वो रूठे तो आफताब लगे।
मेहरबां तो आफताब लगे।

किसने इसका रोटी नाम रखा,
रेखा चित्र : डॉ सुरेन्द्र वर्मा 
वो नशा है कि शराब लगे।

अपनी वफाओं का क्या कहूँ,
जो दर्द मिले बेहिसाब लगे।

अभी मोहब्बत को समझा नहीं,
अभी बेरुखी मुझे खराब लगे।

जब से मैंने नकाब लगाया है,
हर चेहरा बेनकाब लगे।
  • राजमहल चौक, फूलवारी के सामने, कवर्धा, जिला- कबीरधाम-491995 (छ.गढ़)


सुधीर कुमार मौर्य


{युवा कवि-कथाकार श्री सुधीर कुमार मौर्य का ग़ज़ल संग्रह ‘‘आह’’ वर्ष 2011 में प्रकाशित हुआ था। उनके इस संग्रह से प्रस्तुत हैं दो ग़ज़लें।}


दो ग़ज़लें

1.
सभी तो करीब हैं जाने पहचाने उसे।
रेखाचित्र : डॉ सुरेन्द्र वर्मा 
फकत1 सरोकार नहीं मेरे वीराने से उसे।

न सुनाओ किस्से उसकी बेवफाई के यारो,
कि भुलाया है मैंने लाख बहाने से उसे।

उसके ख्वाबों ने मुझे रात को सोने न दिया,
कोई तो रोके मेरी नींद उड़ाने से उसे।

सहारा जीने का बस है एक तस्वीर तेरी,
कोई हटाये न अब मेरे सिरहाने से उसे

मुझको न रास आये बात वो वाइज2 की,
कि आते हुए देखा मैंने मयखाने से उसे।

उसको रकीब3 की उल्फत पे है यकीन
मैं भी तो चाहता हूँ इक जमाने से उसे।

1केवल     2 उपदेशक    3 दुश्मन  

2.
रेखा चित्र : राजेन्द्र परदेसी 
जाके वापस रफाकत1 निभाने न आया।
वो वफाओं के नगमे सुनाने न आया।

कुशिन्दे-आलम2 के कूचे से गुजरे हम,
कोई मय्यत को मेरी उठाने न आया।

महरूम ऐसे हुए लुत्फे इश्क से हम,
कोई जी को मेरे बहलाने न आया।

अब न इश्क रही न खुमारियाँ रही,
हम नीमजदा3 को कोई जगाने न आया।

1मित्रता     2 जहां को मारने वाला    3 अर्द्धबेहोश  
  • ग्राम व  पोस्ट- गंज जलालाबाद, जिला: उन्नाव-241502, उ.प्र.


विनोद कुमारी किरन



बिटिया

पंखुरी गुलाब सी, कनी हीरे सी
कली कचनार सी, बसन्ती बयार सी
चाँदनी चाँद की, बरखा फुहार सी
रागिनी राग की, मधुर अहसास सी
कैसे बताऊँ तुझे क्या है तू मेरे लिए?
मुझको तो लगती है बिटिया तू प्राण सी
जिन्दगी की भागदौड़ में अनुपम उपहार सी।

छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल 

समझ नहीं पाता मैं होती क्यों भ्रूण हत्या?
मानव बन जाता है जाने क्यों दानव सा?
माँ तो होती ममता की मूरत ही
फिर क्यों बन जाती हत्यारिन बेटी की
कैसे कांटों में, कचरे के ढेर में
फेंक देती है ममता की मूरत जो होती है
कैसे बताऊँ तुझे क्या है तू मेरे लिए?
मुझको तो लगती है बिटिया तू प्राण सी
ज़िन्दगी की आस सी मधुर मुस्कान सी।
  • जी-127, उदयपथ, श्यामनगर विस्तार, जयपुर, राजस्थान।