अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 9-10, मई-जून 2013
।।जनक छन्द।।
सामग्री : डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया 'अराज' के पाँच जनक छंद।
डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’
पांच जनक छन्द
1.
सैकूलर कैसा हुआ?
फूट रहा है फूट-सा
अधिक फैल ऐसा हुआ।
2.
चोरों को घर में बसा
रहे सहायक ढूंढ़ते
तभी देश दुःख में धंसा।।
3.
सब कुछ महँगा हो गया
किन्तु मूक सरकार है।
4.
रात महल में जश्न की।
किन्तु झोंपड़ी को मिली
व्याधि मात्र अन-अश्न की।।
5.
रिक्त पेट के शूल को।
तोंद कहाँ पहचानती?
क्या सोचे निज भूल को।
(जनक छन्द के ‘द्वितीय सहस्त्रक’) से
- बी-2-बी-34, जनकपुरी, नई दिल्ली-110058
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