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रविवार, 30 सितंबर 2018

ब्लॉग का मुखप्रष्ठ

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  08,   अंक  :  01-02,   सितम्बर-अक्टूबर 2018 


प्रधान संपादिका : मध्यमा गुप्ता

संपादक :  डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल : 09458929004)
संपादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन 
ई मेल :  aviramsahityaki@gmail.com 


शुल्क, प्रकाशन आदि संबंधी जानकारी इसी ब्लॉग के ‘अविराम का प्रकाशन’लेवल/खंड में दी गयी है।


छायाचित्र : अभिशक्ति गुप्ता 



 ।।सामग्री।।

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अविराम विस्तारित : 

काव्य रचनाएँ {कविता अनवरत} :  इस अंक में सर्वश्री सूर्य कुमार पाण्डेय, प्रतापसिंह सोढ़ी, (डॉ.) ब्रह्मजीत गौतम, नरेश कुमार उदास, मुकुट सक्सेना, पं. गिरिमोहन गुरु एवं रमेश चन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’  की काव्य रचनाएँ।

लघुकथाएँ {कथा प्रवाह} : इस अंक में श्री मधुदीप, सुश्री निर्देश निधि, सुश्री ज्योत्स्ना कपिल, श्री रमेश गौतम, सुश्री सविता मिश्रा, सुश्री मनीषा सक्सेना एवं श्री हेमचन्द्र सकलानी की लघुकथाएँ।

हाइकु व सम्बंधित विधाएँ {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ} :  इस अंक में श्री राजेंद्र परदेसी के हाइकु।

क्षणिकाएँ {क्षणिकाएँ एवं क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श} : 
अब से क्षणिकाओं एवं क्षणिका सम्बन्धी सामग्री के लिए ‘समकालीन क्षणिका’ ब्लॉग पर जायें।  इसके लिए इस लिंक पर क्लिक करें-      समकालीन क्षणिका

कहानी {कथा कहानी} : इस अंक में सुश्री लक्ष्मी रानी लाल की कहानी 'आत्मसमर्पण'।

श्रीकृष्ण ‘सरल’ जन्म शताब्दी वर्ष {जन्म शताब्दी वर्ष में श्रीकृष्ण ‘सरल’ का स्मरणइस अंक में सरल जी के स्मरण क्रम में अशोक वक्त का आलेख 'सरल महाकाव्यों में शहीद माताओं का पुण्य स्मरण' 

अविराम के अंक {अविराम के अंक} : इस अंक में अविराम साहित्यिकी के जुलाई-सितम्बर 2018 (मुद्रित) अंक की विषय सूची। 

किताबें {किताबें} :  इस अंक में डॉ. संध्या तिवारी के  लघुकथा संग्रह  ततः किम्’ की डॉ. उमेश महादोषी द्वारा, सुश्री विजयश्री तनवीर के  कहानी संग्रह 'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' की श्री  नारायण सिंह निर्दाेष द्वारा एवं सुश्री अनघा जोगलेकर के उपन्यास 'अश्वत्थामा : यातना का अमरत्व' की  संतोष सुपेकर द्वारा समीक्षाएँ। 

गतिविधियाँ {गतिविधियाँ} : विगत अवधि में सम्पन्न कुछ साहित्यिक गतिविधियों के समाचार। 

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सम्पादकीय पृष्ठ {सम्पादकीय पृष्ठ}:  
जनक व अन्य सम्बंधित छंद {जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द} : 
व्यंग्य रचनाएँ {व्यंग्य वाण} :  
लघुकथा : अगली पीढ़ी  {लघुकथा : अगली पीढ़ी} :
माँ की स्मृतियां {माँ की स्मृतियां} :  
बाल अविराम {बाल अविराम} :
संभावना {संभावना} :  
स्मरण-संस्मरण {स्मरण-संस्मरण} : 
साक्षात्कार {अविराम वार्ता} :  
अविराम विमर्श {अविराम विमर्श} :
लघुकथा विमर्श {लघुकथा विमर्श} : 
हमारे सरोकार {सरोकार} : 
लघु पत्रिकाएँ {लघु पत्रिकाएँ} : 
हमारे युवा {हमारे युवा} :  
अविराम की समीक्षा {अविराम की समीक्षा} : 
अविराम के रचनाकार {अविराम के रचनाकार} :

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  08,   अंक  :  01-02,   सितम्बर-अक्टूबर 2018 


।।कविता अनवरत।।


सूर्य कुमार पाण्डेय




दो गीत

01. एक डगर पर

एक डगर पर हम चलते हैं
एक डगर भीतर चलती है

जितना इस जीवन को जाना
उतना लगा नया अनजाना
पाया सब, संतुष्ट हुआ कब
जो न मिला, उसका भ्रम माना

कहीं अकर्म रहा जीवन में
नहीं नियति की यह गलती है

जब-जब अंधकार ने घेरा
मिलने आया नया सवेरा
जब भी लगा डूबने, उसने
खींचा हाथ पकड़कर मेरा

बाहर तिमिर घनेरा घिरता तब
भीतर ज्योति-शिखा जलती है

कैसा पछताना, क्या रोना
प्रतिपल अनहोनी का होना
जितना भरा, न भीतर देखा
रिक्त मिला मन का हर कोना

संग्रह की परिणति यह पाई 
इच्छा सदा हाथ मलती है।

02. यह नहीं जरूरी

हर चाँद अमावस लीलेगी
हर सूरज को ढलना होगा
हर आँख में जुगुनू चमकेंगे
हर दीपक को जलना होगा

आँधियाँ चलेंगी उपवन में
तब कुछ डालें भी टूटेंगी
जब बीज पड़ेंगे धरती में 
कोपलें नई तब फूटेंगी

यह नहीं जरूरी नदिया की
हर लहर किनारा पा जाए
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
जितनी गिनती की साँसें हैं
उन साँसों को चलना होगा

जब आँसू दिल से उमड़ेंगे
आँखें दुःख की भर आएँगी
जब आँच प्रेम की दहकेगी
सरिता सागर को जाएगी

यह नहीं जरूरी मिलना हो
इसलिए गले से लग जाना
नफरत की बर्फ जमी है जो
उसको तिल-तिल गलना होगा

यह नहीं जरूरी मेले से
तुम बिना ठगे घर आ जाओ
छलते आए हो औरों को
अब खुद को भी छलना होगा

  • 538 क/514, त्रिवेणीनगर द्वितीय, लखनऊ-226020, उ.प्र./मो. 09452756000

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  08,   अंक  :  01-02,   सितम्बर-अक्टूबर 2018 




।।कविता अनवरत।। 


प्रतापसिंह सोढ़ी



गज़लें


01.
उन्हें सताने में लुत्फ़ आया
हमें मनाने में लुत्फ़ आया

थी रास्ते में इक दीवार
उसे गिराने में लुत्फ़ आया

हमें तलब थी के मुखड़ा देखें
उन्हें छुपाने में लुत्फ़ आया

उधर से ज़लवों की बारिशें थीं
हमें नहाने में लुत्फ़ आया

मिली जो जुल्फ़ों की छाँव हमको
तो बैठ जाने में लुत्फ़ आया

मिले थे ज़ख्मों जिगर जो उनसे
उन्हें छुपाने में लुत्फ़ आया

02.
रेखाचित्र : (स्व.) बी.मोहन नेगी 

रात भर इक दिया दिल का जलता रहा
उससे मिलने का अरमां मचलता रहा

लब उदासी लिये उसके हँसते रहे
उसकी आँखों का काज़ल पिघलता रहा

फूल उसने बिछाये जहाँ के लिए
खुद अकेला वो काँटों पर चलता रहा

उसके मंजिल ने इक रोज चूमे कदम
जो गिरा और गिरकर सँभलता रहा

देखकर बेहिसी अपने एहबाब की
खून उसके बदन का उबलता रहा

  • 5, सुख शान्ति नगर, बिचौली हप्सी रोड, इन्दौर-452016, म.प्र./मो. 09479560623

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  08,   अंक  :  01-02,   सितम्बर-अक्टूबर 2018  





।।कविता अनवरत।। 



ब्रह्मजीत गौतम




ग़ज़ल
अगर तुम करोगे इबादत वतन की
तो पाओगे हर पल मुहब्बत वतन की

मुहब्बत नहीं है जो मन में तुम्हारे
सँभालोगे कैसे अमानत वतन की

अमानत का जिम्मा लिया है जिन्होंने
बदल देंगे इक दिन वो किस्मत वतन की

न किस्मत से दुःख दूर होंगे वतन के
मिटेगी मशक्कत से गुर्बत वतन की

जो गुर्बत में रहकर लड़े सरहदों पर
उन्हीें से है इज़्जत सलामत वतन की

सलामत रहे ये तिरंगा हमारा
ये है जाँ से प्यारी अलामत वतन की

अलामत फ़क़त है नहीं ये तिरंगा 
हक़ीकत में तो है ये इज़्ज़त वतन की
रेखाचित्र : (स्व.) पारस दासोत 

नहीं करते इज़्ज़त बड़ों की जो दिल से
वो पालेंगे कैसे रिवायत वतन की

रिवायत में हो गर नयेपन की ख़ुश्बू
तो कर देगी जादू सियासत वतन की

सियासत में ईमानदारी जो आये
बहुत जल्द बदलेगी सूरत वतन की

सुनो ‘जीत’ बदलेगी सूरत तभी तो
ज़माना करेगा इबादत वतन की

  • युक्का-206, पैरामाउण्ट सिंफनी, क्रासिंग रिपब्लिक, गाजियाबाद-201016, उ.प्र./मो. 09425102154

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।।कविता अनवरत।। 


नरेश कुमार उदास





काव्य रचनाएँ

01.

जीवन
महासागर समान है
जिसमें उठता है
दुःखों का ज्वार भाटा
और कभी उमंगों से 
भरा दिल
लहरों समान 
मचलने लगता है।

02.

मेरे भाग्य में ही
लिखा होगा दर्द
होगी इतनी सारी पीड़ा
तभी मेरे भीतर
दर्द का सागर बहता रहता है
हरदम।

03.

उसने कहा-
मेरी कविताओं में है
जनमानस की पीड़ा
सारे जग के आँसू
लेकिन मैं खुश हूँ
मुझे कोई गम नहीं।

04.
आँगन में 
दीवार/खिंच गई है
मानो मन में 
कोई लकीर
खिंच गई हो। 

05.

जीवन की/आड़ी-तिरछी
पगडण्डी पर
चल रहा हूँ
दौड़ रहा हूँ
हाँफ रहा हूँ
थककर
बैठ जाना चाहता हूँ।

06.

औरत कहीं-कहीं
जूझ रही है
लड़ रही है
फिर भी 
पीछे धकेली जा रही है।
रेखाचित्र : नरेश कुमार उदास 

07.

जब भी आइने में 
देखता हूँ अपना चेहरा
तो डर जाता हूँ
अपने भीतर 
और बाहर के रूप में
अन्तर देखकर!

08.

पहाड़ की धूप
भली लगती है
लेकिन यह
सबको तरसाती है
कभी-कभी आती है
आँख-मिचौली खेलती
चली जाती है।

  • अकाश कविता निवास, 54, गली नं. 03, लक्ष्मीपुरम, सैक्टर-बी-1(चनौर), पो. बनतलाब, तह. एवं जिला- जम्मू-181123 (जम्मू-कश्मीर)/09418193842 

अविराम विस्तारित

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।।कविता अनवरत।। 


मुकुट सक्सेना




अभी तक

जिन पूर्वजों ने
रोपे थे नीम, पीपल,
आम और बरगद के पौधे
अपनी ज़मीन पर
सींचे भी/बड़े मनोयोग से
फिर बढ़े वे,
उनके बच्चों के साथ-साथ
हुए जवान
कि उन्होंने/बड़े होते ही
बाँट लिया बाग
कई-कई हिस्सों में
और फिर बँट गए
दरख़्त भी!
छायाचित्र : उमेश महादोषी 
किसी के हिस्से में 
आया नीम,
किसी के पीपल/आम
तो किसी केे बरगद!
पर/बँट नहीं सकीं
उनकी जड़ें
जो बहुत गहराई में
गुंथी हैं/एक दूसरे में
अभी तक!!
  • 5-ग 17, जवाहर नगर, जयपुर-302004 (राज0)/मोबा. 09828089417

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  08,   अंक  :  01-02,   सितम्बर-अक्टूबर 2018 


।।कविता अनवरत।।


पं. गिरिमोहन गुरु






ग़ज़ल

प्यार में धुल धवल हो गई
जिन्दगी एक ग़ज़ल हो गई

रेखाचित्र : डॉ. सुरेंद्र वर्मा 
एक युग थी न कटती थी ये
आजकल एक पल हो गई

स्वप्न की कामनाएँ सभी
जागते ही सफल हो गई

पंक का अंक प्यारा हुआ
सूर्य पाया कमल हो गई

धन्य सृष्टा हुआ देखकर
रिक्त गागर सजल हो गई

  • श्री सेवाश्रम नर्मदा मन्दिरम, हाउसिंग बोर्ड कालोनी, होशंगाबाद-461001/मो. 09425189042

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  08,   अंक  :  01-02,   सितम्बर-अक्टूबर 2018 


।।कविता अनवरत।।


रमेश चन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’




गीतिका

क्या तेरी क्या मेरी सत्ता
धनपतियों की चेरी सत्ता

जनता का धन जनता के हित
करती हेरा फेरी सत्ता

टाल नहीं पाती प्रश्नों को
जब विपक्ष ने घेरी सत्ता

मजदूरों के घर पर रौनक
लगती बहुत उजेरी सत्ता

सुनता कोई नहीं किसी की
रेखाचित्र : शशिभूषण बडोनी 
दिन में लगी अँधेरी सत्ता

ध्यान रखे कृषकों-श्रमिकों का
सोती खाट खरैरी सत्ता

हाथ बड़े लम्बे सत्ता के
डाले जाल मछेरी सत्ता

जनता का आक्रोश फूटता
जब करती है देरी सत्ता



  • डी 4, मोहनकृपा हाउसिंग सोसायटी (उदय), बैजलपुर, अहमदाबाद-380015, गुज.