अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 08, अंक : 01-02, सितम्बर-अक्टूबर 2018
।।कविता अनवरत।।
निर्देश निधि
गैर कानूनी
“ए लड़की तू ही यहाँ काम करती है क्या?” पुलिस वाली ने काम वाली की बेटी राधा से कड़क कर पूछा।
‘‘हाँ, करती हूँ।’’
‘‘तेरी उम्र क्या है?’’
‘‘तेरह साल!’’
‘‘हाँ, यही तो! हमें शिकायत ठीक ही मिली है कि ये बाल मजदूरी कराते हैं अपने घर में।’’
‘‘किसने की शिकायत?’’
‘‘अच्छा जवाब माँगती है हमसे?’’
‘‘क्यों न मागूँ जवाब?’’
‘‘बोल कब से तेरे से गैर कानूनी रूप से काम कराते हैं इस घर के मालिक? हम इन्हें कड़ी सज़ा दिलवाएँगे।’’
‘‘गैर कानूनी रूप से कैसे हुआ? अम्माजी मुझे पढ़ाती-लिखाती हैं। मेरे स्कूल की फीस देती हैं। दिन-भर का खाना-पीना मेरा इन्हीं के पास है। कौन-सा कानून ये सब करेगा मेरे लिए? अगर मैं उनकी बेटी होती तो क्या उनकी बीमारी में उनकी मदद न करती, बताओ पुलिस वाली आंटी? और मुझे ये भी पता है, किसने की होगी शिकायत। उन बाजू वाले बुड्ढे अंकल ने ही न? पता है क्यों?’’
‘‘हाँ, उन्होने ही की है, क्योंकि देखा होगा तेरे साथ अन्याय होते।’’
‘‘कुछ अन्याय होते न देखा उन्होंने। उनकी पोती की उम्र की हूँ, क्या हरकत करी उन्होंने मेरे साथ अपने घर के बगीचे में?’’
‘‘क्या करने गई थी तू उनके बगीचे में?’’ पुलिसवाली ने कड़क कर पूछा।
‘‘अपनी अम्मा को बुलाने गई थी मैं। वो तो ये वाली अम्मा जी आ गईं मेरी चीख सुनकर। जो ये न आईं होतीं तो क्या हो सकता था मेरे साथ, आपको पता भी है? आई बड़ी, अम्माजी को कड़ी सज़ा दिलाने वाली... हुँह....
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