आपका परिचय

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

माँ की स्मृतियां

अविराम  (ब्लॉग संकलन) :  वर्ष  : 3,   अंक  : 03- 04,  नवम्बर-दिसम्बर 2013 


{विगत 16 नवंबर को हमारी माताजी श्रीमती शान्ती देवी गुप्ता का देहावसान हो गया। इस संसार में आये हर प्राणी का जाना होता है। यह अमिट सत्य है। किन्तु जिन अपनों के साथ हम जीवन को जीते हैं, उनके प्रति मोह-पाश में बँध जाते हैं, उनके साथ जीवन विषयक अभिन्नताओं के आदी हो जाते हैं। माता-पिता और बच्चों का पारस्परिक रिश्ता तो वैसे भी कुछ ज्यादा ही अभिन्नताओं से रचा-बसा होता है, भले बदलते समय और परिवेश के साथ हम कितने ही स्वार्थी हो गए हों। मोह-पाश और अभिन्नताओं के कारण हमेशा-हमेशा की विदाई पीड़ादायी भी होती है और अविश्वसनीय जैसी भी। बहुत दिनों तक इस सत्य को स्वीकारना मुश्किल होता है और हम स्मृतियों को कुरेदते रहते हैं। पर सत्य तो सत्य है। स्मृतियां शायद पीड़ा को कम कर देती हैं और सांसारिक सत्य को समझना सरल हो जाता है। माँ की स्मृतियों के कुछ छाया चित्रों और एक-दो प्रतीकात्मक संस्मरणों को आप मित्रों के साथ साझा करने के लिए ब्लॉग के इस छोटे से हिस्से के उपयोग की अनुमति चाहता हूँ।} 

उमेश महादोषी

माँ :  अपेक्षा-रहित जीवन का उदाहरण     



विगत 16 नवंबर को माँ इस दुनियां से चली गईं। विगत मार्च के महीने से वह दिल्ली में मुझसे बड़े भाई श्री गिरीश चन्द्र गुप्ता के पास थीं, तब से वह ही उनकी सेवा-टहल कर रहे थे। करीब एक वर्ष पूर्व अचानक मांस-पेशियों और नशों में आई कमजोरी उनके लिए गम्भीर समस्या बनती चली गयी और वह एक ऐसी स्थिति में पहुंच गईं थी, जहां जीवन उनके लिए पीड़ादायी बन गया था। 92-93 वर्ष की अपनी जिन्दगी में इससे पूर्व इतनी पीड़ा उन्होंने कभी नहीं देखी थी। इस बार की बीमारी से पूर्व वह हमेशा अपनी दिनचर्या के सभी कार्य स्वयं करने में सक्षम रहीं। उन्होंने कभी किसी से अपेक्षा नहीं की कि कोई उनकी सेवा-टहल करे। किसी ने उनके लिए कुछ किया तो ठीक, नहीं किया तो कोई अपेक्षा नहीं। शिकायत करना तो उन्हें आता ही नहीं था। भरे-पूरे परिवार के होते हुए, तमाम मोह-माया के बावजूद स्वयं के लिए अपेक्षाओं से रहित जीवन किस तरह जिया जाता है, इसकी एक मिसाल रही माँ! अपने सभी भाई-बहनों में मुझे माँ के नजदीक रहने का सबसे अधिक अवसर मिला- बचपन में भी और उसके बाद भी। इसलिए चीजों को थोड़ा सा समझने लाइक होने के बाद से उनके जीवन के बड़े हिस्से को मैंने नजदीक से देखा था। परिवार के किसी सामूहिक मसले पर सलाह-मशविरे के तौर पर कभी कोई छोटी-मोटी बात हुई हो तो बात अलग है, अन्यथा परिवार के किसी व्यक्ति या किसी रिश्तेदार के प्रति उन्होंने कभी कोई नाराजगी या आक्रोश जाहिर किया हो, मुझे याद नहीं। अपनी पारिवारिक
जिम्मेवारियों को पूरा करने के लिए उनके लिए जो कुछ भी करना जरूरी था, उन्होंने पूरी तरह शान्त, शालीन और मर्यादित रहकर किया। अपने-आपके लिए जैसे उनकी कभी कोई अपेक्षा ही नहीं थी। जो मिल गया, उसे अपना लिया; जो नहीं मिला, उसके लिए लालसा नहीं। न पिताजी के रहते हुए, न उनके जाने के बाद। आज के युग में जीवन को जीते हुए इस तरह की चीज को अख्तियार करना बड़ी बात है। यह जीवन की ऐसी सहजता है, जिसे अपनाना आसान नहीं होता। भले माँ पढ़ी-लिखी नहीं थीं, उनकी कोई उल्लेखनीय सार्वजनिक-सामाजिक सक्रियता भी नहीं रही, फिर भी
ऋषिकेष के पास लक्ष्मण झूला पर 
उनके शान्त जीवन के इस सच को गांव-रिश्तेदारों के साथ तमाम परिचित परिवारों में हमेशा सम्मान की दृष्टि से देखा गया। आर्थिक और ताकत के मोर्चे पर अत्यंत साधारण होने के बावजूद पिताजी के समय में अपने गांव के साथ आस-पास के कई गांवों में भी हमारे परिवार का पर्याप्त मान-सम्मान रहा, तो इसका कारण उनका अच्छा और कुशल व्यवहार ही था। इस व्यवहार को माँ ने अपने विनम्र स्वभाव और निस्वार्थ भावनाओं से काफी सम्बल दिया। कभी भूल से भी किसी के साथ उनका कोई विवाद या मनमुटाव हुआ हो, इसका कोई उदाहरण नहीं मिल सकता।
   
पौत्र अभिशक्ति के बालपन को दुलारती हुई 
 माँ के स्वभाव से जुड़ी एक और बड़ी बात, उनका धैर्य और सहज-सरल किन्तु दृढ़ इच्छा शक्ति थी। एक ऐसी इच्छा शक्ति, जो हर किसी में नहीं हो सकती। परेशानियों के समय में उनका एक ही रवैया रहता था कि परेशानी आई है तो चली भी जायेगी। उनकी इच्छा शक्ति का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है करीब पिचासी वर्ष की आयु में 65 वर्ष से भी अधिक पुरानी आदत को छोड़ देना। और उसे छोड़ देने के बाद पूरी सहजता के साथ, जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो, जीवन को जीते चले जाना। 
     जैसा कि उस समय में होता था, माँ-पिताजी की शादी कुछ कम उम्र में ही हो गयी थी। तब की स्थितियों के अनुरूप घर में दिनचर्या सुबह होने से पहले ही शुरू हो जाती थी। उठते ही कुछ काम घर की महिलाओं के जिम्मे होते थे, माँ के जिम्मे भी थे। लेकिन हमारी माँ शायद नींद की कुछ कच्ची थीं। उन्हें काम करते-करते नींद सी आ जाती थी। घर में महिलाओं के जिम्मे रहने वाले कई काम उनके जिम्मे होते थे, कुछ दादी की सख्ती भी रही होगी कि उनकी नींद का समाधान खोजने की प्रक्रिया में दादी ने उन्हें एक गलत आदत का शिकार बना दिया। यह आदत थी- खाने वाली तम्बाकू
अन्य पारिवारिक जनों के
 साथ  अभि को दुलारती हुई 
खाने की आदत। दादी का आदेश था कि सुबह के काम करते हुए थोड़ी सी तम्बाकू मुँह में डालकर चबाते रहने से नींद नहीं आयेगी। माँ को दादी का आदेश मानना पड़ा और धीरे-धीरे वह तम्बाकू की आदी हो गई। बाद में उन्होंने न छोड़ने की कोशिश की और न किसी ने उन्हें इस आदत को छोड़ने के लिए प्रेरित किया। जब मेरी नौकरी लगी, तो गांव से उन्हें मैं अपने साथ ले आया था। जिस तरह की तम्बाकू वह खातीं थी, मैं बाजार में कहीं न कहीं से लाकर उन्हें दे ही देता था। कभी-कभी मुझे लगता था कि माँ को यह आदत छोड़ देनी चाहिए, कहीं इसकी वजह से कोई बीमारी न हो जाये, फिर लगता था कि शायद माँ के लिए यह आदत छोड़ना असम्भव होगा, कहीं इसे छोड़ने के चक्कर में वह अन्दर ही अन्दर तकलीफ झेलती रहें और अपने स्वभाव के अनुरूप हमसे कह न पायें। अतः मैंने अपना सोचना अपने तक ही सीमित रखा, माँ पर कभी जाहिर नहीं किया। लेकिन पिछले कुछ वर्ष पूर्व जब वह हमारे बड़े भाई के पास थीं, तो वहां किसी ने उन्हें तम्बाकू छोड़ने के लिए प्रेरित किया और किसी तरह वह उन्हें समझाने में कामयाब हो गया। उन्होंने करीब पिचासी वर्ष की उम्र में अपनी उस 65 वर्षों से चली आ रही आदत को छोड़ दिया। बाद में जब मेरे पास आईं, तो मैंने पूछा- ‘‘माँ,
कुछ भावपूर्ण मुद्राएँ 
आपकी तम्बाकू है या बाजार से लेकर आऊँ?’’ उन्होंने जवाब दिया, ‘‘मैंने तो तम्बाकू खाना ही छोड़ दिया।’’ मुझे लगा, कहीं माँ ने मजबूरी में तो नहीं छोड़ा और मन ही मन उसकी वजह से परेशान होती हों। मैने काफी जिद करके कहा, माँ, यहां बाजार में तम्बाकू मिल जायेगी। आप निश्चिन्त रहो, मैं ले आता हूँ। परन्तु उनका जवाब यही था कि अब तो इच्छा भी नहीं होती। खा भी नहीं पाऊँगी। मैं आश्चर्यचकित था- क्या इतनी पुरानी आदत को इस उम्र में और इतनी आसानी से सिर्फ इच्छाशक्ति के बल पर छोड़ा जा सकता है! मेरे लिए विश्वास करना मुश्किल हो रहा था। पर उनके लिए यह सम्भव था। शायद अपनी अपेक्षाओं को नियन्त्रित कर पाने का एक और उदाहरण!
रुड़की में कुछ सहेलियों के साथ 
     कई चीजे हैं, जिन्हें माँ के अन्दर देखता था, तो लगता था कि सकारात्मक ढंग से सोचना कितना आसान है! हालांकि कई मसलों पर उनकी वह आसान सी सकारात्मकता मैं अपना नहीं पाता। बहुत मुश्किल होता है। शायद उनकी तरह अपनी बहुत सारी अपेक्षाओं को नियन्त्रित कर पाना संभव नहीं बना पाता मैं। फिर भी माँ की बातों से प्रेरणा मिलती रही और कई परेशानियों के वक्त निर्णय लेने में आसानी होती है। अपने लिए कुछ खोने-पाने की
एक जन्म-दिन पर अभिशक्ति को आशीर्वाद 
लालसा को नियन्त्रित करने से कभी-कभी सामाजिक दायरा कुछ 

पौत्र अभि व पुत्रबधु मध्यमा के साथ 
सीमित भले हो जाता है, पर जीवन निश्चय ही सहज हो जाता है।












प्रमुख अवसरों के कुछ और छाया चित्र
पुत्र उमेश व पुत्रवधु मध्यमा को
शादी के अवसर पर आशीर्वाद 


पुत्र उमेश महादोषी के साथ
 (1987 का चित्र)
परिवार के अन्य सदस्यों के साथ




और अंतिम दर्शन 








अब न कोई हिचकी आयेगी
न स्वप्न आयेगा
बस धूप ही धूप होगी सिर पर
और
एक आंचल याद आयेगा!
-उमेश महादोषी




बाल अविराम

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष :  3,  अंक : 03-04,  नवम्बर-दिसम्बर 2013

।।बाल अविराम।।

सामग्री : इस अंक में श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु की बाल कहानी 'कछुए की बहिन' तथा ‘फैज’ रतलामी की कविता 'भारत है हमारा प्यारा वतन'  बालचित्रकारी में क्रमशः राधिका शर्मा व स्तुति शर्मा की पेंटिंग्स के साथ। 



रामेश्वर काम्बोज हिमांशु



कछुए की बहिन
     
        कछुआ तालाब से निकला और धीरे-धीरे सरक कर खेत की मेंड़ पर आकर बैठ गया। उसे तालाब से बाहर का संसार बहुत ही प्यारा लगा। स्कूल से लौटते खिलखिलाते बच्चों को देखकर उसका मन मचल उठा। उसने सोचा- मैं भी बच्चों की तरह खिलखिलाता! कन्धे पर बस्ता लटकाकर स्कूल जाता!
      उसने अपना सिर निकालकर बच्चों की तरफ देखा। दो शैतान बच्चों ने उसे देख लिया। फिर क्या- दोनों उसे बारी-बारी से ढेले मारने लगे। कछुए ने अपने हाथ, पैर, सिर सब एकदम समेट लिए। खोपड़ी पर लगातार ढेलों की मार से उसे लगा कि वह मर जाएगा। लड़कों के साथ एक छोटी लड़की भी थी। वह चिल्लाई- ‘क्यों मार रहे हो? इसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?’
     ‘‘तुम्हें बहुत दुःख हो रहा है। वह तुम्हारा भाई है क्या?’’ एक शैतान लड़के ने कहा।
     ‘‘इसे राखी बाँध देना’’ -दूसरा लड़का कछुए को ढेला मारकर बोला।
     लड़की की आँखों में आंसू आ गए- ‘‘यह मेरा भाई हो या न हो, पर यह दुश्मन भी नहीं है’’।
     ‘‘अरे, ओ कछुए की बहिन! अपने घर चली जा’’ -दूसरा बोला।
     सभी बच्चे ‘कछुए की बहिन! कछुए की बहिन! कछुए की बहिन!’ कहकर जोर-जोर
पेंटिंग : राधिका शर्मा 
से हँसने लगे। उन दोनों शैतान लड़कों ने कछुए को उल्टा करके ढेलों के बीच रख दिया।
     लड़की चुपचाप अपने घर चली गई।
     घर पहुँचने पर उसका मन बहुत उदास हो गया। वह सोचने लगी- ‘‘बेचारा कछुआ! कब तक उल्टा पड़ा रहेगा?’’
     उसे लगा- जैसे वह सचमुच उसका भाई ही हो। वह चुपचाप घर से निकली और तालाब के किनारे जा पहुँची। कछुआ उल्टा पड़ा हुआ था। वह सीधा होने के लिए छटपटा रहा था। लड़की ने चारों तरफ देखा। आसपास कोई नहीं था। वह उसे उठाकर तालाब की तरफ दौड़ी। उसने कछुए को तालाब के पानी में छोड़ दिया।
     कछुए ने अपनी लम्बी गर्दन निकाली। चमकती छोटी-छोटी आँखों से लड़की की तरफ प्यार से देखा और गहरे पानी में उतर गया।
     लड़की खुश होकर घर की तरफ दौड़ी। अब उसे कोई ‘कछुए की बहिन’ कहे तो वह नहीं चिढ़ेगी।
    कछुए ने भी फिर कभी तालाब से निकल कर घूमने की हिम्मत नहीं की। 
  • फ्लैट न-76,(दिल्ली सरकार आवासीय परिसर) रोहिणी सैक्टर -11, नई दिल्ली-110085


‘फैज’ रतलामी

भारत है हमारा प्यारा वतन

भारत है हमारा प्यारा वतन
है सारे जहाँ से न्यारा वतन

हिन्दू ये कहे वरदान है ये
मुस्लिम ये कहे ईमान है ये
पंजाब कहे दिलदारा वतन
है सारे जहाँ से न्यारा वतन
भोर आये तो सूरज चमके है
रात आये तो चन्दा दमके है
है चारों दिशा उजियारा वतन
है सारे जहाँ से न्यारा वतन

इक सुबहे बनारस इसमें है
इक शामे अवध भी जिसमें है
हर एक की आंख का तारा वतन
पेंटिंग : स्तुति शर्मा है सारे जहाँ से न्यारा वतन

ये गंगोजमन बहती जायें
खेतों को ये पानी पिलवायें
गंगोत्री इसकी धारा वतन
है सारे जहाँ से न्यारा वतन

भारत है हमारा जान अपनी
है ऊंचा हिमालय शान अपनी
लहराता तिरंगा प्यारा वतन
है सारे जहाँ से न्यारा वतन

भारत ये सभी का मीत भी है
ऐ ‘फैज’ यहां संगीत भी है
ये बजता हुआ इकतारा वतन
है सारे जहाँ से न्यारा वतन
  • 48, समता नगर, (आनन्द कॉलोनी), रतलाम-457001(म.प्र.)

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष  : 03,  अंक  :  03-04,  जुलाई-अगस्त  2013  

।।व्यंग्य वाण।।

सामग्री : इस अंक में श्री दिनेश रस्तोगी व डॉ. गोपाल बाबू शर्मा की व्यंग्य कविताएँ। 




दिनेश रस्तोगी 



व्यंग्य ग़ज़ल

आंखों में हुशियारी रख।
मतलब की बस यारी रख।

सच में थोड़ा झूठ मिला,
भीतर से मक्कारी रख।

माल वही जो अंटी में
थोड़ी-बहुत उधारी रख।

रिश्ते बस कंधा देंगे,
तू भी दुनियादारी रख।

मदद मांगने आये जो,
उस पर तू लाचारी रख।

सभी रहेंगे दर से दूर,
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल 

कुत्ता कोई शिकारी रख।

डी.एन.ए. दारुण दुःख दे,
गूंगी हो वो नारी रख।

जेल अगर अटपटी लगे,
छद्म कोई बीमारी रख।

वैसे भी पीड़ित जनता,
इस पर बोझ न भारी रख।

गूढ़ पद्य क्या समझेगा,
ग़ज़ल मेरी अखबारी रख।

  • निधि निलयम्, 8-बी, अभिरूप, साउथ सिटी, शाहजहांपुर-242226 (उ0प्र0)





डॉ. गोपाल बाबू शर्मा



{डॉ. गोपाल बाबू शर्मा का व्यंग्य कविता संग्रह ‘बिन कुर्सी सब सून’ इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत हैं उनके इस संग्रह से दो व्यंग्य कविताएं।}

मंत्री जी का तर्क

भूतपूर्व मंत्री जी को,
अपहरण के एक मामले में,
पुलिस ने उठाया।
मंत्री जी ने उल्टा आरोप लगाया-
‘‘राजनीति के कारण 
मुझे लोगों ने झूठा फंसाया।’’

उन्होंने अपने बचाव में
तर्क का सहारा लिया
और सवाल खड़ा किया-
छाया चित्र : उमेश महादोषी 

‘‘भला मैं पैसों के लिए
अपहरण क्यों कराऊँगा?
मैं इतनी छोटी बात पर
नियत डिगाऊँगा?
मेरे कई-कई धंधे हैं,
और दो सौ करोड़ सालाना का 
टर्न ओवर है।
सुख-सुविधाओं से सम्पन्न
आलीशान घर है।

बाज़ार में 
जो भी उतरती है लग्जरी कार,
उसका होता हूँ,
मैं ही पहला खरीद-दार।
मेरे मैनेजर भी,
एअर कण्डीशण्ड कारों में चलते हैं
विरोधी लोग,
मेरे वैभव को देख जलते हैं।’’
पर 
माननीय मंत्री जी ने,
यह नहीं बताया,
कि कुछ ही सालों में,
छप्पर फाड़ कर,
इतना सब कहाँ से आया?

पाक दोस्ती

आइए,
हम और आप
अच्छे दोस्त बन जाएँ,
दिल नहीं,
हाथ मिलाएँ।

आपका काम होगा 
कि आप अपने झण्डे गाड़ें
हमारे उखाड़ें।
हम मिमियाएँ
और आप दहाड़ें।
जितना हो सके,
माहोल बिगाड़ें।
रेखा चित्र : महावीर रन्वाल्टा 

आप कूड़ा-कर्कट बिखराएँ,
और हम
एक शुभचिन्तक के नाते,
झाड़ू लगाएँ। 

आप हमें धमकाएँ,
आतंक फैलाएँ,
हम शान्ति-गीत गाएँ।
आइए,
हम और आप
अच्छे दोस्त बन जाएँ।

  • 46, गोपाल विहार कॉलोनी, देवरी रोड, आगरा-282001 (उ.प्र.) 

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष :03, अंक : 03-04  ,  मार्च   2013  

।।संभावना।।

सामग्री : डॉ. दीपिका वत्स अपनी कविता साथ। 



डॉ. दीपिका वत्स
{डॉ. दीपिका जन्तुविज्ञान में स्नातकोत्तर एवं पी एच. डी. हैं। मूलतः कविताएं लिखती हैं।}

कहानी

एक बीहड़ जंगल से
गुजरते हुए
चाँदनी 
महसूस कर रही है
कुछ अजीब-सा
ऊँचे-ऊँचे दरख्त
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
दूर-दूर तक
कोशिश में छू लेने की
बहुत ऊपर
एक-दूसरे को 
गये हैं लील
शाखाएँ, टहनियाँ, फूल
प्रतिकूलता मौसम की
निर्ममता प्रकृति की ही
खा गयी
अब कुछ परिंदे, दरिंदे
आश्वस्त हैं
इनके आश्रय में 
ठीक ऐसा ही
मेरी बोध-चाँदनी
महसूस कर रही है!
  • 16, न्यू हरिद्वार, हरिद्वार, उत्तराखण्ड

किताबें

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष :  03,  अंक : 03-04, नवम्बर-दिसम्बर 2013


{इस अंक में  श्री संतोष सुपेकर की लघुकथाओं के संग्रह 'भ्रम के बाजार में' की श्री राजेन्द्र नागर ‘निरंतर’ द्वारा  लिखित समीक्षा  रख रहे हैं। लेखकों/प्रकाशकों से अनुरोध है कृपया समीक्षा भेजने के साथ पुस्तक की एक प्रति (एक से अधिक नहीं) हमारे अवलोकनार्थ डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला - हरिद्वार, उत्तराखण्ड के पते पर भेजें।}


राजेन्द्र नागर ‘निरंतर’

भविष्य की संभावनाएँ तलाशती लघुकथाएँ

    स्वतंत्र और अनिवार्य विधा के रूप में स्थापित हो चुकी लघुकथा अब समाज के हर क्षेत्र में अपनी गहरी पैठ बना चुकी है। नई पीढ़ी के रचनाकार अपने सम्पूर्ण समर्पण भाव से लघुकथा सृजन में जुटे हुए हैं। श्री संतोष सुपेकर ऐसे ही सृजनशील रचनाकारों में से हैं। उनका सद्यः प्रकाशित लघुकथा संग्रह ‘भ्रम के बाजार में’ पाठकों को बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर जाता है। भूत, भविष्य और वर्तमान की चिंताओं से लबरेज इन लघुकथाओं के माध्यम से श्री सुपेकर बहुत कुछ कहना चाहते हैं। ‘इस सदी तक आते आते’, ‘तीसरा पत्थर समूह’, ‘टर्निंग पाईंट’, ‘हम बेटियाँ हैं न’, ‘छूटा हुआ पक्ष’ आदि इस संग्रह की सर्वश्रेष्ठ लघुकथाएँ कहीं जा सकती हैं, जो पाठकों को यकायक झकझोर देती हैं। कहीं-कहीं तो ऐसा लगता है कि श्री सुपेकर की सोच अपने समय से काफी आगे की है। 153 लघुकथाएँ और 168 पृष्ठ में कुल मिलाकर लेखक ने बहुत अच्छा ताना-बाना बुना है। धर्म, अर्थव्यवस्था, सामाजिक परिवेश और चिथड़े होती राजनीति पर बहुत कड़े प्रहार बड़े ही संवेदनशील तरीके से इस पुस्तक में किए गए हैं। चाहे सरकारी कार्यालयों में बढ़ती अकर्मण्यता की बात हो, चैनलों में बढ़ती फालतू की प्रतियोगिता हो, सिक्कों-प्याज का द्वन्द्व हो, भूख से पीड़ित समाज का एक अछूता वर्ग हो, अंध विश्वास हो या मजहबी जुनून, सभी विषयों पर बड़े ही व्यवस्थित ढंग से कहने की कोशिश श्री सुपेकर ने इस संग्रह के माध्यम से की है। ‘व्हेरी गुड’, ‘उसी मां ने’, ‘इसीलिए’, ‘अर्थ ढूंढ़ती सिहरन’,
समीक्षक : राजेन्द्र नागर  'निरंतर'
‘दिलासा’, ‘कातर’, ‘आंखों वाली सीढ़ी’, ‘बड़ी वजह’, ‘मीठा आघात’, ‘सिला’, ‘मिट्टी में गड़े सांप’ आदि ऐसी अनेकों लघुकथाएँ हैं, जिनमें सुनहरे भविष्य की संभावनाएँ तलाशी जा सकती हैं। इन्हें पढ़कर लेखक की संपूर्ण क्षमता का परिचय मिल जाता है। संग्रह में कुछ लघुकथाएँ पुराने ढर्रे पर लिखी गईं हैं तो कुछ मात्र 
लघुकथाओं की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से पुस्तक में शामिल की गई प्रतीत होती हैं। लेखक को अनावश्यक विस्तार के साथ-साथ शीर्षकों के निर्धारण में भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
    अंत में यही कहूँगा कि श्री सुपेकर में अत्यन्त धनात्मकता है। पाठकों का प्रेम भी उन्हें भरपूर मिल रहा है। इस संग्रह के द्वारा अपनी प्रतिबद्धताओं को उन्होंने पूरे मनोयोग से उभारा है। घर की हो शासकीय लायब्रेरी, हर जगह इस संग्रह को यथासंभव स्थान मिलना ही चाहिए।

भ्रम के बाजार में :  लघुकथा संग्रह। लेखक :  संतोष सुपेकर। प्रकाशक :  सरल काव्यांजलि, 31, सुदामानगर, उज्जैन, म.प्र.। मूल्य :  रु. 220/- मात्र। पृष्ठ : 168। संस्करण :  2013।
  • 16, महावीर एवेन्यू पार्ट-1, मक्सी रोड, उज्जैन, म.प्र.

गतिविधियाँ

अविराम ब्लॉग संकलन :  वर्ष :  03,   अंक : 03-04,  नवम्बर-दिसम्बर  2013 


{आवश्यक नोट-  कृपया संमाचार/गतिविधियों की रिपोर्ट कृति देव 010 या यूनीकोड फोन्ट में टाइप करके वर्ड या पेजमेकर फाइल में या फिर मेल बाक्स में पेस्ट करके ही भेजें; स्केन करके नहीं। केवल फोटो ही स्केन करके भेजें। स्केन रूप में टेक्स्ट सामग्री/समाचार/ रिपोर्ट को स्वीकार करना संभव नहीं है। ऐसी सामग्री को हमारे स्तर पर टाइप करने की व्यवस्था संभव नहीं है। फोटो भेजने से पूर्व उन्हें इस तरह संपादित कर लें कि उनका लोड 02 एम.बी. से अधिक न रहे।}


डॉ.‘अरुण’ जी की पुस्तक का महामहिम राज्यपाल ने विमोचन किया


राष्ट्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली  के पूर्व सदस्य एवं प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ द्वारा लिखित उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के उपन्यासों पर केन्द्रित समीक्षा पुस्तक ‘कथाकार डॉ. निशंक और जीवन-मूल्य’ का विमोचन उत्तराखंड के देहरादून स्थित राज भवन में महामहिम राज्यपाल डॉ. अज़ीज़ कुरैशी द्वारा किया गया! इस समारोह में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के साथ विधायक गणेश जोशी भी मौजूद रहे!
     सोमवार की दोपहर में राज भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में डॉ. ‘अरुण’ द्वारा लिखी गई पुस्तक का विमोचन करते हुए राज्यपाल डॉ. अज़ीज़ कुरैशी ने कहा कि साहित्य वही कालजई हो सकता है, जिस में मानवीय संवेदनाओं को उकेरा गया हो! राजनीति के रंग में रंगा हुआ साहित्य कभी कालजयी नहीं हो सकता! साहित्यकार अपने जीवन को अपनी कृतियों में ढाल कर समाज के सामने रखता है और समाज उस से प्रेरणा लेता है! मैं कथाकार डॉ. ‘निशंक’ और समीक्षक डॉ. ‘अरुण’ को हृदय से बधाइयां देता हूँ कि उनके उपन्यासों को केंद्र में रखा कर यह पुस्तक लिखी गई है!
     पूर्व मुख्यमंत्री और कथाकार डॉ. ‘निशंक’ ने महामहिम को हृदय से आभार देते हुए कहा कि उनके लेखन में पर्वतीय-जीवन को साकार करने का प्रयास निरंतर हुआ है! आज भी मैं कोशिश करता हूँ कि पर्वतों की पीड़ा को वाणी दे सकूं! पुस्तक के लेखक डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने इस अवसर पर राज्यपाल महोदय का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ. ‘निशंक’ के कथाकार रूप में जो संवेदनाएं व्यक्त हुई हैं, उन्हें वे अपने ‘राजनेता’ रूप में भी जीते हैं!  डॉ. ‘निशंक’ के इन उपन्यासों में जीवन-मूल्यों को अत्यंत मुखरता से व्यक्त किया गया है!
     इस समारोह में जनकवि अतुल शर्मा, डॉ. नागेन्द्र ध्यानी और डॉ. पुष्पा खंडूरी ने भी डॉ. ‘निशंक’ के रचना-कर्म और साहित्यिक उपलब्धियों पर प्रकाश डाला! इस पुस्तक विमोचन समारोह में पद्मश्री कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ के सुपुत्र अखिलेश प्रभाकर, पत्रकार हर्ष प्रभाकर, यश प्रभाकर, मनीष कच्छल, डॉ. श्री गोपाल नारसन, शिव चरण पुंडीर, श्रीमती उर्मिला, डॉ. आशा शर्मा और अन्य बुद्धिजीवियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया!




अंतर्राष्ट्रीय स्तर का साहित्यिक संस्थान बनेगी महादेवी सृजन पीठ

     
महादेवी वर्मा सृजन पीठ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के साहित्यिक संस्थान के रूप में विकसित किया जायेगा। यहाँ लेखकों के ठहरने तथा साहित्य सृजन के लिए पर्याप्त सुविधाएँ शीघ्र जुटा ली जायेंगी। यह बात उत्तराखण्ड के राज्यपाल डॉ. अज़ीज़ कुरैशी ने 17 नवम्बर, 2013 को कुमाऊँ विश्वविद्यालय के अंतर्गत रामगढ़ में स्थापित महादेवी वर्मा सृजन पीठ के आवासीय भवन का शिलान्यास तथा इस अवसर पर आयोजित मुशायरा एवं कवि गोष्ठी को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए व्यक्त की। उन्होंने कहा कि महादेवी वर्मा सृजन पीठ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का साहित्यिक संस्थान बनाने का प्रस्ताव स्वयं उन्होंने केन्द्र सरकार को स्वीकृति हेतु भेजा है, जिसमें साहित्यकारों के ठहरने के लिए राइटर्स होम, साहित्यिक आयोजन के लिए ऑडिटोरियम तथा पीठ के कार्यक्रमों के प्रतिभागियों के लिए हॉस्टल के निर्माण का प्रस्ताव किया है। उन्होंने कहा कि सृजन पीठ की जो आधारभूत समस्याएँ है, उनके शीघ्र निराकरण के लिए भी वह उत्तराखण्ड शासन को दिशा-निर्देशित करेंगे। 
      राज्यपाल डॉ. कुरैशी ने कहा कि शहरों, बंगलों या कोठियों में लिखे गये साहित्य की तुलना में पहाड़ में रचा गया साहित्य अधिक शक्तिशाली होता है। यही कारण है कि देश के दूसरे हिस्सों से लेखक साहित्य सृजन के लिए पहाड़ों में आते रहे हैं और यहाँ रहकर उन्होंने कालजयी साहित्य का सृजन किया। उन्होंने कहा कि भाषा एक बड़ी ताकत है, उसे दायरे में कैद कर नहीं रखा जा सकता। वह अपना विस्ताद खुद करती है। यही कारण है कि भाषा दुनिया की क्रांतियों में कभी भी बाधा नहीं बनी। साहित्य सृजन के केन्द्र के साथ महादेवी वर्मा सृजन पीठ का हिंदी तथा स्थानीय लोक-भाषाओं एवं बोलियों के संवर्द्धन व संरक्षण की दृष्टि से बेहतर उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर हैरानी जताई कि अविभाजित यूपी., उसके बाद उत्तराखण्ड की सरकारों ने पीठ में सुविधाओं के विकास पर ध्यान नहीं दिया। कुमाऊँ विश्वविद्यालय की पहल की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि महादेवी वर्मा सृजन पीठ को साहित्यकारों और सृजनधर्मियों के लिए शीघ्र ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर के साहित्यिक संस्थान के रुप में विकसित किया जायेगा। सड़क से 200 मीटर दूर होने के कारण राज्यपाल डांडी में बैठकर सृजन पीठ पहुँचे। डॉ. अज़ीज़ कुरैशी महादेवी वर्मा सृजन पीठ पहुँचने वाले उत्तराखण्ड के पहले राज्यपाल हैं। 
     समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुमाऊँ विश्वविद्य़ालय के कुलपति प्रो. एच.एस. धामी ने कहा कि पीठ का बेहतर रखरखाव तथा इसे पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जायेगा। यहाँ रखी महादेवी जी के दैनिक उपयोग की वस्तुओं को धरोहर के रूप में संजोया जायेगा। उन्होंने कहा कि यह स्थान साहित्यिक तीर्थ से कम नहीं है। कुमाऊँ विश्वविद्यालय इस महत्वपूर्ण साहित्यिक संस्थान को सृजनात्मक केन्द्र के साथ ही पर्यटकों के आकर्षण के केन्द्र के रूप में भी विकसित करेगा जिससे अधिक से अधिक लोग यहाँ आकर उस परिवेश से परिचित हो सकें जिसमें रहकर महादेवी जी तथा अन्य प्रमुख साहित्यकारों ने कालजयी रचनाओं की रचना की। 
       महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रो. देव सिंह पोखरिया ने पीठ के कार्यकलापों तथा भावी योजनाओं की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि महादेवी सृजन पीठ भारत के किसी भी विश्वविद्यालय में स्थापित पहला ऐसा केन्द्र है जिसमें सृजन, शोध एवं विचार केन्द्रित मुद्दों को लेकर व्यापक विमर्श होता है। यह पीठ देशभर में फैले हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य एवं साहित्यकारों को महत्वपूर्ण विमर्श के तहत एकत्र कर उनके बीच संवाद स्थापित करने का कार्य कर रही है। पीठ में शीघ्र ही आधारभूत सुविधाएँ जुटा ली जाएंगी जिससे उत्तराखण्ड सहित देशभर की रचनाशील सांस्कृतिक प्रतिभाओं के मंच के साथ ही देश-विदेश के साहित्य-प्रेमी एवं सृजनधर्मी विद्वान यहाँ आकर अध्ययन, लेखन एवं शोध कार्य कर सकें। 
     
इससे पूर्व दीप प्रज्वलन और महादेवी वर्मा के चित्र पर माल्यार्पण से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। कुलपति प्रो. धामी ने राज्यपाल डॉ. अज़ीज़ कुरैशी का शाल ओढ़ाकर स्वागत किया। इस अवसर पर आयोजित मुशायरा एवं कवि गोष्ठी में तफज्जुल खान, मनी नमन, जहूर आलम और डॉ. महेन्द्र महरा ‘मधु’ ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन हेमंत बिष्ट ने किया। धन्यवाद पीठ के शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत ने व्यक्त किया। इस अवसर पर पूर्व सांसद डॉ. महेन्द्र सिंह पाल, उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग की सदस्य डॉ. छाया शुक्ला, नैनीताल परिसर निदेशक प्रो. बी. आर. कौशल, अल्मोड़ा परिसर निदेशक प्रो. आर.एस. पथनी, अधिष्ठाता विज्ञान संकाय प्रो. सी.सी. पंत, अधिष्ठाता वाणिज्य संकाय प्रो. बी.डी. कविदयाल, अधिष्ठाता दृश्य कला संकाय प्रो. शेखर चंद्र जोशी, अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो. डी.सी. पाण्डे, विभागाध्यक्ष प्रबंध-अध्ययन प्रो. पी.सी. कविदयाल, वित्त अधिकारी डी.एस. बोनाल, उप कुलसचिव दिनेश चन्द्र सहित प्रो. जगत सिंह बिष्ट, प्रो. ललित तिवारी, डॉ. वीना पाण्डे, डॉ. बी.सी. जोशी, डॉ. गीता खोलिया, डॉ. मन्नू ढौंडियाल, डॉ. ममता पंत, सुचेतन साह, विधान चौधरी, मोहन लाल साह, संजय पंत, उमा जोशी, देवेन्द्र सिंह ढैला, किशन सिंह महरा, कृष्ण चन्द्र जोशी, पृथ्वीराज सिंह, मोहित जोशी आदि उपस्थित थे। (समाचार सौजन्य: मोहन सिंह रावत, शोध अधिकारी)





हिमालयन इं. हॉ. ट्रस्ट यूनिवर्सिटी द्वारा डॉ. ‘अरुण’ का सम्मान 

     देव भूमि उत्तराखंड के जन-मन में बसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के दार्शनिक चिन्तक स्वामी राम द्वारा स्थापित हिमालयन इंस्टिट्यूट हास्पिटल ट्रस्ट यूनिवर्सिटी, जौलीग्रांट द्वारा प्रख्यात कवि एवं पूर्व प्राचार्य डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ का एक समारोह में सम्मान किया गया! स्मरणीय है कि डॉ. ‘अरुण’ ने यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. विजय धस्माना के अनुरोध पर विश्वविद्यालय का ‘कुल गीत’ रचा है! डॉ. ‘अरुण’ द्वारा रचे गए ‘कुल गीत’ को विश्वविद्यालय के ‘प्रथम’ दीक्षांत समारोह में तब गया गया था, जब विश्व प्रसिद्द डॉ. सैम पित्रोदा मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे! उस समय समारोह में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति डॉ. ‘अरुण’ द्वारा रचे गए इस ‘कुल गीत’ को सुन कर भाव-विभोर हो गया था!

     परम पूज्य स्वामी राम की पावन स्मृति में आयोजित भव्य समारोह में विश्वविद्यालय के कुलाधिपति स्वामी वेद भारती जी के साथ उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री विजय बहुगुणा, पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ एवं कुलपति डॉ. विजय धस्माना द्वारा डॉ. ‘अरुण’ को अंग-वस्त्र और प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया गया! डॉ धस्माना ने इस अवसर पर कहा कि किसी भी विश्वविद्यालय के लिए उसका ‘कुल गीत’ सबसे
महत्त्वपूर्ण और पवित्र होता है! डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने हमारे विश्वविद्यालय का ‘कुल गीत’ रच कर जहाँ हिमालय की पावन भूमि के प्रेरणा-स्रोत स्वामी राम के प्रति अपनी श्रद्धा को वाणी दी है, वहीँ वे हमेशा के लिए हमारे इस विश्वविद्यालय का अभिन्न अंग बन गए हैं! मुख्यमंत्री श्री विजय बहुगुणा एवं पूर्व मुख्य मंत्री डॉ. ‘निशंक’ सहित समारोह में उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों ने करतल ध्वनी से डॉ. ‘अरुण’ का अभिनन्दन किया! डॉ. ‘अरुण’ ने डॉ. विजय धस्माना के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए स्वामी राम को श्रद्धा-सुमन अर्पित किए!




शायर जमीर दरवेश सम्मानित

       विगत दिनों मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ द्वारा सुप्रसिद्ध शायर श्री ज़मीर दरवेश को ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान-2013’ से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम वरिष्ठ गीतकार डॉ. माहेश्वर तिवारी की अध्यक्षता में सम्पन्न इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री राजीव सक्सेना तथा संयोजक थे श्री योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’। इस अवसर पर विभिन्न साहित्यकारों ने श्री दरवेश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपने विचार रखे। डॉ. माहेश्वर तिवारी ने कहा- ‘‘ज़मीर दरवेश जी की ग़ज़लें फिक्र और अहसास के नये क्षितिज से उदय होती हैं। उनके शेर हालात पर तंज भी कसते हैं और मशविरे भी देते हैं।’’ मुख्य अतिथि श्री राजीव सक्सेना ने अपने विचार रखते हुए कहा- ‘‘ज़मीर दरवेश जी अपनी ग़ज़लों के माध्यम से चित्रकारी करते हैं, वह अपने शेरों में मुश्किल से मुश्किल विषय पर सहजता से अपनी बात कह जाते हैं। यही खासियत है कि उनकी ग़ज़लें श्रोताओं और पाठकों के दिल-दिमांग पर छा जाती हैं।’’ डॉ. ओम आचार्य ने कहा- ’’बेहद खूबसूरत ग़ज़लें कहने वाले ज़मीर साहब शेर कहते समय भाषा की सहजता का विशेष ध्यान रखते हैं, उनके शेरों में बनावटीपन या दिखावा कहीं नहीं मिलता।’’ डॉ. कृष्ण कुमा ‘नाज’ ने बताया कि ‘बहुत कम लोगों को पता है कि ज़मीर साहब शायर होने के साथ बाल कवि भी हैं। उन्होंने बच्चों के लिए अनेक कहानियाँ तो लिखी ही हैं, बहुत सारी बाल कविताएँ भी लिखी हैं।’’
     संयोजक श्री योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ ने कहा कि ‘‘दरवेश जी का समूचा रचनाकर्म साहित्य जगत में एक अलग पहचान तो रखता ही है, महत्वपूर्ण भी है। उनकी ग़ज़लों में मिठास का एक कारण उनकी कहन का निराला अंदाज भी है।’’ इस अवसा पर श्री ज़मीर दरवेश का एकल काव्य-पाठ भी हुआ। उन्होंने अपनी कई ग़ज़लों का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन श्री आनन्द कुमार ‘गौरव’ ने किया। कार्यक्रम में नगर के अनेक गणमान्य व्यक्ति और साहित्यकार उपस्थित रहे। (समाचार सौजन्य : योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’)





हरियाणा के महामहिम राज्यपाल ने किया ‘कथा समय’ का विमोचन



हरियाणा के राज्यपाल महामहिम श्री जगन्नाथ पहाडिय़ा ने राज्यपाल भवन में हरियाणा ग्रन्थ अकादमी की पत्रिका कथा समय के बाल दिवस विशेषांक का विमोचन किया। 
       इस अवसर पर मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. के.के. खंडेलवाल, मुख्य सचिव पी.के.चौधरी, सूचना व जनसंपर्क विभाग के महानिदेशक सुधीर राजपाल, डॉ. नरेश, ग्रन्थ अकादमी के उपाध्यक्ष कमलेश भारतीय, अकादमी निदेशक डॉ. मुक्ता आदि मौजूद थे। (समाचार सौजन्य : कमलेश भारतीय)




महिला-रचनाकारों के सकारात्मक लेखन से समाज में जाग्रति आई है :  डॉ. अरुण


     ‘यूथ हॉस्टल’ आगरा में नवगठित साहित्यिक संस्था ‘साहित्य साधिका समिति’ का शुभारम्भ संरक्षिका काव्य-कोकिला डॉ. शशि तिवारी की गणेश वंदना और संस्थापक श्रीमती रमा वर्मा की सरस्वती वंदना से हुआ। यह कार्यक्रम केन्द्रीय साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य, हिंदी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’, जो रुड़की से पधारे एवं कुमायूं विश्वविद्यालय की हिंदी आचार्य डॉ. नीरजा टण्डन के शुभाशीषों के साथ वरिष्ठ कवयित्री लखनऊ से पधारी डॉ. मिथिलेश दीक्षित की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। आप सबने समिति की रचनाकारों को सकारात्मक सोच से संपन्न मानवतावादी विचारधारा की रचनाओं का सृजन करने की प्रेरणा दी। समिति की संरक्षक और नगर की ख्यातिप्राप्त कथाकार, समीक्षक डॉ. उषा यादव ने कहा-‘हिंदी साहित्य में महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान है, आशा करती हूँ कि समिति के प्रयासों से आगरा की महिला रचनाकार अपना विशिष्ठ स्थान बनाएंगी।’ समिति की अध्यक्ष माला गुप्ता ने आमंत्रित विद्वानों का परिचय देते हुए उनका भावभीना स्वागत किया। सचिव श्रीमती यशोधरा यादव ‘यशो’ ने समिति की संस्थापना की आवश्यकता एवं उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए उसके उद्देश्यों से परिचित कराया। 
    मुख्य अतिथि डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ ने महिला-साहित्य साधिकाओं को बधाइयाँ देते हुए कहा- ‘आज महिलाओं की जाग्रति से पूरे समाज की सोच में सकारात्मक परिवर्तन आ रहे हैं, जो हमारे समाज को आगे ले जाने में सक्षम सिद्ध होंगे!’ डॉ नीरजा टंडन ने महिला- रचनाकारों की भूमिका को विस्तार से रेखांकित किया!
    नगर के गणमान्य विद्वानों में सोम ठाकुर, व्यास चतुर्वेदी, राजेंद्र मिलन, त्रिमोहन, तरल आदि ने भी समिति की सदस्याओं को शुभकामना देकर उनका उत्साहवर्धन किया। समिति की संरक्षक डॉ. मिथिलेश दीक्षित ने समिति के पदाधिकारियों को निष्ठापूर्वक साहित्य साधना करने की शपथ दिलायी, जिसमें अध्यक्ष - डॉ. माला गुप्ता, उपाशयक्ष - डॉ. प्रभा गुप्ता और श्रीमती मीना गुप्ता, सचिव - श्रीमती यशोधरा यादव, सहसचिव - कु.रीता शर्मा, कोषाध्यक्ष - श्रीमती मीरा परिहार, सहकोषाध्यक्ष - डॉ. गीता यादवेन्दु, पत्रिका संपादक - डॉ. चंदा सिंह, चित्र संयोजक - डॉ. रेखा कक्कड़ और पाँच साहित्य साधिकाएं - डॉ. रमा रश्मि, डॉ. मधु पाराशर, श्रीमती सुनीता कक्कड़, कु. फौजिया बानो एवं श्रीमती मिथिलेश कुमारी सम्मिलित हैं। डॉ. दीक्षित का अध्यक्षीय उद्बोधन प्रेरणापद रहा। अंत में समिति की तृतीय संस्थापक श्रीमती कमला सैनी ने आमंत्रित महानुभावों विदुषियों एवं मीडिया कर्मियों को धन्यवाद दिया। संचालन समिति की संस्थापक  एवं राष्ट्रीय संयोजक डॉ. सुषमा सिंह ने किया।  समारोह में श्रुति सिन्हा, शशि तनेजा, सुशील सरित, सत्या सक्सेना, शान्ति नागर, अलका चौधरी, मिथिलेश जैन, पुष्पा सिंह, डॉ.कुसुम चतुर्वेदी, श्वेता सारस्वत, अनिल शुक्ल, शैलेन्द्र वशिष्ठ, रमेश पंडित, कृपाशंकर शर्मा, कैप्टन व्यास, शेष पाल सिंह ‘शेष’,  बहादुर सिंह ‘राज‘, डॉ. अमी आधार निडर, शलभ भारती आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय है। कार्यक्रम का कुशल संचालन समिति की संस्थापिका एवं प्रसिद्द कथाकार डॉ. सुषमा सिंह ने किया।



प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा विद्यासागर सम्मानोपाधि से विभूषित

   
 विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक एवं प्रसिद्ध समालोचक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा को उनकी सुदीर्घ सारस्वत साधना, साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र में किए महत्वपूर्ण योगदान और हिन्दी के व्यापक प्रसार एवं संवर्धन के लिए किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, ईशीपुर, भागलपुर, बिहार द्वारा विद्यासागर सम्मानोपाधि से अलंकृत किया गया। उन्हें यह सम्मानोपाधि उज्जैन में गंगाघाट स्थित मौनतीर्थ में आयोजित विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ के 18 वें अधिवेशन में कुलाधिपति संत श्री सुमनभाई ‘मानस भूषण’, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा ‘अरुण’, रूड़की, प्रतिकुलपति डॉ. अमरसिंह वधान एवं कुलसचिव डॉ. देवेन्द्रनाथ साह के कर-कमलों से अर्पित की गई। इस सम्मान के अन्तर्गत उन्हें सम्मान-पत्र, स्मृति चिह्न, पदक एवं साहित्य अर्पित किए गए। सम्मान समारोह की विशिष्ट अतिथि नोटिंघम यू. के, की वरिष्ठ रचनाकर जय वर्मा, प्रो नवीनचन्द्र लोहनी, मेरठ, एवं डॉ नीलिमा सैकिया, असम थे। इस अधिवेशन में देश-विदेश के सैंकड़ों संस्कृतिकर्मी उपस्थित थे। 
     प्रो. शर्मा आलोचना, लोकसंस्कृति, रंगकर्म, राजभाषा हिन्दी एवं देवनागरी लिपि से जुड़े शोध, लेखन एवं
नवाचार में विगत ढाई दशकों से निरंतर सक्रिय हैं। उनके द्वारा लिखित एवं सम्पादित पच्चीस से अधिक ग्रंथ एवं आठ सौ से अधिक आलेख एवं समीक्षाएँ प्रकाशित हुई हैं। उनके ग्रंथों में प्रमुख रूप से शामिल हैं- शब्द शक्ति संबंधी भारतीय और पाश्चात्य अवधारणा, देवनागरी विमर्श, हिन्दी भाषा संरचना, अवंती क्षेत्र और सिंहस्थ महापर्व, मालवा का लोकनाट्य माच एवं अन्य विधाएँ, मालवी भाषा और साहित्य, मालवसुत पं. सूर्यनारायण व्यास, आचार्य नित्यानन्द शास्त्री और रामकथा कल्पलता, हरियाले आँचल का  हरकारा: हरीश निगम, मालव मनोहर आदि। प्रो. शर्मा को देश-विदेश की अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। उन्हें प्राप्त सम्मानों में थाईलैंड में विश्व हिन्दी सेवा सम्मान, संतोष तिवारी समीक्षा सम्मान, आलोचना भूषण सम्मान आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी राष्ट्रीय सम्मान, अक्षरादित्य सम्मान, शब्द साहित्य सम्मान, राष्ट्रभाषा सेवा सम्मान, राष्ट्रीय कबीर सम्मान, हिन्दी भाषा भूषण सम्मान आदि प्रमुख हैं। (समाचार सौजन्य :  डॉ. अनिल जूनवाल, संयोजक, राजभाषा संघर्ष समिति, उज्जैन)




हिमाचल में हुआ प्रथम लघुकथा सम्मेलन


हिमाचल साहित्यकार सहकार सभा द्वारा बिलासपुर में एक राज्य स्तरीय प्रथम लघुकथाकार सम्मेलन आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार कमलेश भारतीय ने की। उन्होंने कहा कि हिमाचल में साहित्य की विधा लघुकथा को जीवंत रखने के जो प्रयास हो रहे हैं वह सराहनीय हैं। चंडीगढ़ से पधारे विशिष्ठ अतिथि रतन चंद ‘रत्नेश’ ने हिमाचल की लघुकथा पर विस्तृत शोधपरक लेख पढ़ा जिसमें हिमाचल की लघुकथाओं का विस्तार से वर्णन था। उन्होंने  कहा कि लघुकथा और कहानी दो अलग-अलग विधाएं हैं और लघुकथा लिखते समय अनावश्यक शब्दों से बचने की भरसक कोशिश होनी चाहिए। सम्मेलन में हिमाचल के विभिन्न भागों से आए लघुकथाकारों ने अपनी लघुकथाओं का वाचन किया। कार्यक्रम में जिला परिषद अध्यक्ष कुलदीप ठाकुर ने कहा कि इस तरह के आयोजनों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। पाठ की गई लघुकथाओं की सराहना करते हुए उन्होंने भविष्य में ऐसे आयोजनों को सहयोग करने की बात कही। कार्यक्रम में सुन्दरनगर, मंडी के कृष्ण चंद्र महादेविया की लघुकथाओं की पुस्तक ‘बेटी का दर्द’ तथा समारोह की लघुकथा पर आधारित पत्रिका का विमोचन भी किया गया। सभा के अध्यक्ष रतन चंद निर्झर व मुख्य अतिथि व विशिष्ट अथितियों का शॉल व टोपी देकर सम्मान किया। महासचिव अरूण डोगरा ने बताया कि सभा लेखकों की कृतियों का प्रकाशन कर उनके वितरण की व्यवस्था भी करेगी। कार्यक्रम में स्वतंत्रता सेनानी परिषद की अध्यक्ष प्रेम देवी, जिला पार्षद बसंत राम संधू, डा. तेज प्रताप पांडेय, सुभाष ठाकुर सहित अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में मंच संचालन सभा के उपाध्यक्ष सुभाष चंदेल ने किया। (समाचार सौजन्य :  अरूण डोगरा, महासचिव, हिमाचल  साहित्यकार सहकार सभा)




कर्नाटक के डॉ. सुनील कुमार परीट जी सम्मानित


भारतीय दलित साहित्य अकासमी, दिल्ली ने दिनांक 12 दिसम्बर 2013 को कर्नाटक के डॉ. सुनील कुमार परीट जी को उनके समग्र साहित्य सेवा के लिए ’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप नेशनल अवार्ड-2013’ अकादमी के अध्यक्ष डॉ. सोहनलाल सुमनाक्षर जी ने उपाधि प्रदान करके सम्मानित किया। दिनांक 14 दिसम्बर 2013 को बिहार के विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ ने डॉ. सुनील कुमार परीत जी को राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए एवं उनके समग्र साहित्य सेवा के लिए उज्जैन के श्री राम नाम सेवा आश्रम में विद्यापीठ के कुलाधिपति डॉ. सुमनभाई ’मानस भूषण’ जी  ने ’विद्यासागर’ उपाधि प्रदान की। इसमें प्रमाण-पत्र, अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह, मेडल और किताबें देकर सम्मनित किया। (समाचार सौजन्य : डॉ. सुनील कुमार परीट, सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय, लक्कुंडी-591102 बैलहोंगल, जि- बेलगाम, कर्नाटक)