अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 03, अंक : 03-04, जुलाई-अगस्त 2013
सामग्री : इस अंक में श्री दिनेश रस्तोगी व डॉ. गोपाल बाबू शर्मा की व्यंग्य कविताएँ।
दिनेश रस्तोगी
व्यंग्य ग़ज़ल
आंखों में हुशियारी रख।
मतलब की बस यारी रख।
सच में थोड़ा झूठ मिला,
भीतर से मक्कारी रख।
माल वही जो अंटी में
थोड़ी-बहुत उधारी रख।
रिश्ते बस कंधा देंगे,
तू भी दुनियादारी रख।
मदद मांगने आये जो,
उस पर तू लाचारी रख।
सभी रहेंगे दर से दूर,
कुत्ता कोई शिकारी रख।
डी.एन.ए. दारुण दुःख दे,
गूंगी हो वो नारी रख।
जेल अगर अटपटी लगे,
छद्म कोई बीमारी रख।
वैसे भी पीड़ित जनता,
इस पर बोझ न भारी रख।
गूढ़ पद्य क्या समझेगा,
ग़ज़ल मेरी अखबारी रख।
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
{डॉ. गोपाल बाबू शर्मा का व्यंग्य कविता संग्रह ‘बिन कुर्सी सब सून’ इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत हैं उनके इस संग्रह से दो व्यंग्य कविताएं।}
मंत्री जी का तर्क
भूतपूर्व मंत्री जी को,
अपहरण के एक मामले में,
पुलिस ने उठाया।
मंत्री जी ने उल्टा आरोप लगाया-
‘‘राजनीति के कारण
मुझे लोगों ने झूठा फंसाया।’’
उन्होंने अपने बचाव में
तर्क का सहारा लिया
और सवाल खड़ा किया-
‘‘भला मैं पैसों के लिए
अपहरण क्यों कराऊँगा?
मैं इतनी छोटी बात पर
नियत डिगाऊँगा?
मेरे कई-कई धंधे हैं,
और दो सौ करोड़ सालाना का
टर्न ओवर है।
सुख-सुविधाओं से सम्पन्न
आलीशान घर है।
बाज़ार में
जो भी उतरती है लग्जरी कार,
उसका होता हूँ,
मैं ही पहला खरीद-दार।
मेरे मैनेजर भी,
एअर कण्डीशण्ड कारों में चलते हैं
विरोधी लोग,
मेरे वैभव को देख जलते हैं।’’
पर
माननीय मंत्री जी ने,
यह नहीं बताया,
कि कुछ ही सालों में,
छप्पर फाड़ कर,
इतना सब कहाँ से आया?
पाक दोस्ती
आइए,
हम और आप
अच्छे दोस्त बन जाएँ,
दिल नहीं,
हाथ मिलाएँ।
आपका काम होगा
कि आप अपने झण्डे गाड़ें
हमारे उखाड़ें।
हम मिमियाएँ
और आप दहाड़ें।
जितना हो सके,
माहोल बिगाड़ें।
आप कूड़ा-कर्कट बिखराएँ,
और हम
एक शुभचिन्तक के नाते,
झाड़ू लगाएँ।
आप हमें धमकाएँ,
आतंक फैलाएँ,
हम शान्ति-गीत गाएँ।
आइए,
हम और आप
अच्छे दोस्त बन जाएँ।
।।व्यंग्य वाण।।
दिनेश रस्तोगी
व्यंग्य ग़ज़ल
आंखों में हुशियारी रख।
मतलब की बस यारी रख।
सच में थोड़ा झूठ मिला,
भीतर से मक्कारी रख।
माल वही जो अंटी में
थोड़ी-बहुत उधारी रख।
रिश्ते बस कंधा देंगे,
तू भी दुनियादारी रख।
मदद मांगने आये जो,
उस पर तू लाचारी रख।
सभी रहेंगे दर से दूर,
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल |
कुत्ता कोई शिकारी रख।
डी.एन.ए. दारुण दुःख दे,
गूंगी हो वो नारी रख।
जेल अगर अटपटी लगे,
छद्म कोई बीमारी रख।
वैसे भी पीड़ित जनता,
इस पर बोझ न भारी रख।
गूढ़ पद्य क्या समझेगा,
ग़ज़ल मेरी अखबारी रख।
- निधि निलयम्, 8-बी, अभिरूप, साउथ सिटी, शाहजहांपुर-242226 (उ0प्र0)
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
{डॉ. गोपाल बाबू शर्मा का व्यंग्य कविता संग्रह ‘बिन कुर्सी सब सून’ इसी वर्ष प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत हैं उनके इस संग्रह से दो व्यंग्य कविताएं।}
मंत्री जी का तर्क
भूतपूर्व मंत्री जी को,
अपहरण के एक मामले में,
पुलिस ने उठाया।
मंत्री जी ने उल्टा आरोप लगाया-
‘‘राजनीति के कारण
मुझे लोगों ने झूठा फंसाया।’’
उन्होंने अपने बचाव में
तर्क का सहारा लिया
और सवाल खड़ा किया-
छाया चित्र : उमेश महादोषी |
‘‘भला मैं पैसों के लिए
अपहरण क्यों कराऊँगा?
मैं इतनी छोटी बात पर
नियत डिगाऊँगा?
मेरे कई-कई धंधे हैं,
और दो सौ करोड़ सालाना का
टर्न ओवर है।
सुख-सुविधाओं से सम्पन्न
आलीशान घर है।
बाज़ार में
जो भी उतरती है लग्जरी कार,
उसका होता हूँ,
मैं ही पहला खरीद-दार।
मेरे मैनेजर भी,
एअर कण्डीशण्ड कारों में चलते हैं
विरोधी लोग,
मेरे वैभव को देख जलते हैं।’’
पर
माननीय मंत्री जी ने,
यह नहीं बताया,
कि कुछ ही सालों में,
छप्पर फाड़ कर,
इतना सब कहाँ से आया?
पाक दोस्ती
आइए,
हम और आप
अच्छे दोस्त बन जाएँ,
दिल नहीं,
हाथ मिलाएँ।
आपका काम होगा
कि आप अपने झण्डे गाड़ें
हमारे उखाड़ें।
हम मिमियाएँ
और आप दहाड़ें।
जितना हो सके,
माहोल बिगाड़ें।
रेखा चित्र : महावीर रन्वाल्टा |
आप कूड़ा-कर्कट बिखराएँ,
और हम
एक शुभचिन्तक के नाते,
झाड़ू लगाएँ।
आप हमें धमकाएँ,
आतंक फैलाएँ,
हम शान्ति-गीत गाएँ।
आइए,
हम और आप
अच्छे दोस्त बन जाएँ।
- 46, गोपाल विहार कॉलोनी, देवरी रोड, आगरा-282001 (उ.प्र.)
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