अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 2, अंक : 1, सितम्बर 2012
प्रधान संपादिका : मध्यमा गुप्ता
संपादक : डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल : 09412842467)
संपादन परामर्श : डॉ. सुरेश सपन
ई मेल : aviramsahityaki@gmail.com
।।सामग्री।।
संपादक : डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल : 09412842467)
संपादन परामर्श : डॉ. सुरेश सपन
ई मेल : aviramsahityaki@gmail.com
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रेखांकन : के. रविन्द्र |
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अविराम विस्तारित :
काव्य रचनाएँ {कविता अनवरत} : इस अंक में डॉ. हरि जोशी, राम मेश्राम, प्रशान्त उपध्याय, शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’, डॉ. गार्गीशरण मिश्र ‘मराल’, सुरेन्द दीप, मीना गुप्ता, निर्मला अनिल सिंह एवं अशोक भारती ‘देहलवी’ की काव्य रचनाएं।
लघुकथाएं {कथा प्रवाह} : इस अंक में ‘भ्रूण हत्या’ पर डा. रामकुमार घोटड़ सम्पादित लघुकथा संकलन ‘किसको पुकारूँ’ से सर्व श्री माधव नागदा, रतन चन्द्र रत्नेश, डा. तारिक असलम ‘तस्नीम’ व डॉ. रामकुमार घोटड़ की तथा सर्व श्री संतोष सुपेकर, डॉ. पूरन सिंह, डॉ0 रामशंकर चंचल एवं गोवर्धन यादव की अन्य लघुकथाएं।
हाइकु व सम्बंधित विधाएं {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ} : इस अंक में डॉ मिथिलेश दीक्षित’ के दो हाइकु नवगीत एवं हरिश्चंद्र के दस हाइकु।
अविराम विमर्श {अविराम विमर्श} : समकालीन लघुकथा के सन्दर्भ में प्रेमचंद की लघु कथा रचनाओं पर दो आलेख- 'प्रेमचंद बनाम समकालीन लघुकथा' / डॉ. अशोक भाटिया एवं 'कुछ रचनाएँ अच्छी लघुकथाएँ' / डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ।
किताबें {किताबें} : इस अंक में डॉ अशोक पांडे 'गुलशन' द्वारा संतोष सुपेकर के काव्य संग्रह 'चेहरों के आर पार' की समीक्षा- 'चेहरों के आर पार : सामाजिक विसंगतियों का आइना'।
लघु पत्रिकाएं {लघु पत्रिकाएँ} : इस अंक में तीन पत्रिकाओं ‘अभिनव प्रयास’, 'शब्द प्रवाह'एवं 'कथा सागर' पर उमेश महादोषी की परिचयात्मक टिप्पणियां।
अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के पाठक सदस्य (हमारे आजीवन पाठक सदस्य) : अविराम साहित्यिकी के मुद्रित संस्करण के सितम्बर 2012 के अंत तक बने आजीवन एवं वार्षिक पाठक सदस्यों की सूचना।
अविराम के रचनाकार {अविराम के रचनाकार} : अविराम के चौवन और रचनाकारों का परिचय।
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उमेश महादोषी
।।मेरा पन्ना।।
- रचनाओं की प्रस्तुति की दृष्टि से अविराम के ब्लाग प्रारूप का पहला वर्ष पूरा हुआ, और हम इस अंक के साथ दूसरे वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। अन्तर्जाल पर अविराम के ब्लॉग को यूं तो जुलाई 2012 माह में ही तैयार कर लिया गया था तथा मुद्रित अंको में प्रकाशित सामग्री की सूची भी ‘अविराम के अंक’ लेवल के अन्तर्गत पोस्ट कर दी गयी थी, परन्तु एक पूर्ण ब्लॉग पत्रिका के रूप में इसका पहला अंक सितम्बर 2011 माह में ही प्रकाशित किया जा सका था। दरअसल आरम्भ में इसके प्रकाशन के पीछे सीमित उद्देश्य था, जिसे अन्तर्जाल पर बढ़ रही साहित्यिक गतिविधियों के परिप्रेक्ष्य, मुद्रित प्रारूप में स्थान की सीमित उपलब्धता व सीमित कवरेज एवं अधिकाधिक रचनाकार मित्रों से जुड़ने की भावना आदि कई कारण रहे, जिनके रहते इसे एक पूर्ण ब्लॉग पत्रिका के रूप में आगे बढ़ाने का निश्चय किया गया। मित्रों का सहयोग उत्साहबर्द्धक रहा। उम्मीद है आने वाले समय में यह प्रतिष्टित ब्लॉग पत्रिकाओं में शुमार हो सकेगी और हम अपने रचनाकार मित्रों की रचनाओं को विश्व भर के हिन्दी भाषा के पाठकों से जोड़ पायेंगे। हम सभी मित्रों का, जिनके रचनात्मक सहयोग से ही हम आगे बढ़ पा रहे हैं, हृदय से आभार प्रकट करते हैं।
- इस अवसर पर वरिष्ठ लघुकथाकार एवं चिंतक आदरणीय बलराम अग्रवाल जी का आभार प्रकट करना चाहूंगा, जिन्होंने समय-समय पर मार्गदर्शन तो किया ही, ब्लॉग बनाना एवं उसे विकसित करना भी मुझे सिखाया। इसके साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ का भी समान भावना से आभार प्रकट करता हूं, जिनका सहयोग एवं मार्गदर्शन भी समान रूप से उपयागी रहा है। इन दोनों अग्रजों के सहयोग के बिना अन्तर्जाल पर अविराम की ही नहीं, मेरी भी उपस्थिति शायद सम्भव नहीं हो पाती।
- अविराम का यह ब्लॉग अधूरा और अनाकर्षक ही रहता, यदि हमें वरिष्ठ चित्रकार सर्वश्री विज्ञान व्रत, पारस दासोत, बी. मोहन नेगी, डॉ. सुरेन्द्र वर्मा, सिद्धेश्वर आदि का सहयोग नहीं मिला होता। इस अंक तक आते-आते हमें वरिष्ठ चित्रकार श्री के. रविन्द्र जी का सानिध्य भी आद. बलराम अग्रवाल जी के माध्यम से मिला है। सर्वश्री नरेश उदास, शशिभूषण बड़ोनी, राजेन्द्र परदेशी, महावीर रंवाल्टा, किशोर श्रीवास्तव, अनिल सिंह, श्रीगंगानगर के नवोदित चित्रकार राजेन्द्र सिंह एवं हिना फिरदोस (वरिष्ठ साहित्यकार श्री अनवर सुहैल जी की बिटिया) आदि के भी रेखांकनों का योगदान रहा है। इसी के साथ इसकी साज-सज्जा में सर्वश्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, डॉ. बलराम अग्रवाल, रोहित काम्बोज, आदित्य अग्रवाल, पूनम गुप्ता, डॉ. ज्योत्शना शर्मा, चेतन, रितेश गुप्ता, अभिशक्ति, सुरभि ऐरन आदि के छायाचित्र भी इसे सजाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इन सबका आभार प्रकट करते हुए मैं यह बात जोर देकर कहना चाहूंगा कि किसी भी पत्रिका की साज-सज्जा में चित्रकारों एवं छायाकारों की भूमिका हमें सदैव याद रखनी चाहिए।
- उम्मीद है सभी रचनाकारों, चित्रकारों एवं मार्गदशकों का सहयोग हमें सतत रूप से मिलता रहेगा। दर्ज होने वाली पाठकीय प्रतिक्रियाओं के रूप में हमें अब तक उतना सहयोग नहीं मिल पाया है, जितना पाठकों की संख्या की तुलना में मिलना चाहिए था। निःसंदेह इसके कुछ तकनीकी कारण हैं तो कुछ मेरे संपर्कों एवं अन्य ब्लॉगों पर सक्रियता में कमी से संबन्धित कारण भी हैं। पाठक मित्रों से अनुरोध है, साहित्यिक रचनाओं पर स्वस्थ चर्चा अवश्य करें। भविष्य में हम भी प्रयास करेंगे कि ब्लॉग पर चर्चा में पाठकीय साझेदारी हेतु हमारे स्टार पर जो भी किया जाना जरूरी है, हम कर सकें।
- जिन मित्रों के पास जलाई-सितम्बर 2012 का मुद्रित अंक पहुंचा होगा, उन्हें मुद्रित प्रारूप में पाठको की साझेदारी के उद्देश्य से शुरू किए जा रहे ‘बहस’ स्तम्भ की जानकारी मिली होगी। हमारा ब्लॉग प्रारूप के पाठक मित्रों से भी अनुरोध है कि आप भी इस बहस में शामिल होइए। बहस की संपूर्ण सामग्री मुद्रत अंक के बाद वाले ब्लॉग के अंक में भी शामिल की जाएगी। ‘बहस’ के पहले बिषय की जानकारी इसी पृष्ठ पर आगे दी जा रही है।
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‘बहस’ हेतु आमंत्रण
मुद्रित प्रारूप में हम एक नये स्तम्भ ‘बहस’ का आरम्भ कर रहे हैं। इसमें एक दिये गये विषय पर अपने विचारों के साथ पाठकों की सीधी सहभागिता होगी। जनवरी-मार्च 2013 अंक के लिए विषय है- ‘‘साहित्य और भाषा की शुद्धता व संस्कार’’। पाठकों से उनके यथासंक्षिप्त विचार निम्न प्रश्नों के परिप्रेक्ष में 15 दिसम्बर 2012 तक आमन्त्रित हैं। पाठक अपने विचार संक्षिप्त आलेख के रूप में भी भेज सकते हैं। मुद्रित अंक में स्थान की उपलब्धता के अनुसार चुने हुए विचार प्रकाशित होंगे। ब्लॉग प्रारूप में प्राप्त सभी विचार प्रकाशित किये जायेंगे।
1. साहित्य में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है, भाषा की शुद्धता और संस्कार या सम्प्रेषण?
2. क्या एक लेखक के लिए भाषाई स्तर पर समृद्ध एवं चैतन्य होना जरूरी है?
3. क्या संस्कारित भाषा साहित्य की जरूरी शर्त है? यदि हाँ तो किस स्तर तक?
4. हिन्दी में जानबूझकर अन्य भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करना क्या उचित है? इसी सन्दर्भ में रचनाकारों के द्वारा कई शब्दों को अपनी सुविधा या रचना की मांग के नाम पर परिवर्तित करके उपयोग करने की प्रवृत्ति पर आप क्या कहना चाहेंगे?
5. सामान्यतः बोलचाल की हिन्दी भाषा में दूसरी भाषाओं, यथा उर्दू, अंग्रेजी आदि के शब्दों का मिश्रण होता है। क्या साहित्य लेखन में इसे जस का तस उपयोग करना ठीक है?
6. भाषाई उत्तरदायित्व को आप कैसे परिभाषित करेंगे? क्या लेखक को भाषाई उत्तरदायित्वों की समझ अनिवार्यतः होनी चाहिए?
7.भाषा के परिष्कार को लेखक का अनिवार्य उत्तरदायित्व मानने एवं उसके निर्वाह से साहित्य और आम-जन के रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
8. भाषाई स्तर पर यदि कोई रचनाकार कमजोर है तथा जैसी भाषा वह लिखना-पढ़ना जानता है, उसी में सृजन करता है। इसे किस दृष्टि से देखा जाए?
9. यदि लेखक की बात पाठक की समझ में आ रही है/सम्प्रेषित हो रही है लेकिन उसकी भाषा व्याकरण की दृष्टि से दोषपूर्ण है और अपनी भाषाई अक्षमताओं के कारण अपनी रचनाओं में भाषा सम्बन्धी दोषों को चाहते हुए भी दूर न कर पाए तो क्या उसके लेखन को हतोत्साहित किया जाना चाहिए? और क्या ऐसा करने पर बहुत से अच्छे विचारों और उसकी अभिव्यक्ति से साहित्य व पाठकों को वंचित करना उचित होगा?
10. एक सामान्य पाठक के रूप में आपको कैसा साहित्य प्रभावित करता है- आम बोलचाल की भाषा में लिखा गया या व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध और संस्कारित भाषा में लिखा गया?
11. यदि आप एक रचनाकार भी हैं तो साहित्य और भाषा के सन्दर्भ में एक पाठक के रूप में आप अपने को आम व्यक्ति के करीब पाते हैं या उससे कुछ अलग?
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अविराम के दोनों प्रारूपों से सम्बंधित सूचना
- जो चित्रकार एवं फोटोग्राफी करने वाले मित्र अविराम में प्रकाशनार्थ अपने रेखांकन एवं छाया चित्र भेजना चाहते हैं, उनका स्वागत है। साथ में अपना परिचय एवं फोटो भी भेजें।
- जिन रचनाकार मित्रों की कोई रचना अविराम के मुद्रित या ब्लॉग संस्करण में प्रकाशित हुई है और उन्होंने अपना फोटो व परिचय अभी तक हमें उपलब्ध नहीं कराया है, उनसे अनुरोध हैं की शीघ्रातिशीघ्र अपना फोटो व परिचय भेजने का कष्ट करें। भविष्य में पहली बार रचना भेजते समय फोटो व अद्यतन परिचय अवश्य भेजें।
- प्रत्येक रचना के साथ अपना नाम एवं पता अवश्य लिखें। ऐसी रचनाएं, जिनके साथ रचनाकार का नाम व पता नहीं लिखा होगा, हम भविष्य में उपयोग नहीं कर पायेंगे।
- किसी भी प्रकाशित सामग्री पर हम किसी भी रूप में पारिश्रमिक देने की स्थिति में नहीं हैं। अत: पारिश्रमिक के इच्छुक मित्र क्षमा करें।
- अविराम साहित्यिकी के दिसम्बर 2012 मुद्रित अंक (लघुकथा विशेषांक), हेतु सामग्री का चयन लगभग पूरा हो चुका है। अतः जिन मित्रों से किसी विशेष समग्री का अनुरोध किया गया है, को छोड़कर शेष मित्र अतिथि संपादक डॉ. बलराम अग्रवाल जी को और सामग्री न भेजें। सामान्य अंकों हेतु लघुकथा विषयक सामग्री हमें सीधे रुड़की के पते पर भेजना कृपया जारी रखें।
- अविराम के नियमित स्तम्भों के लिए क्षणिकाएं एवं जनक छंद की स्तरीय रचनाएं बहुत कम मिल पा रही हैं। क्षणिका पर हमारी एक और योजना भी विचाराघीन है। रचनाकारों से अपील है कि स्तरीय क्षणिकाएं अधिकाधिक संख्या में भेजकर सहयोग करें।
- प्राप्त पुस्तकों के प्रकाशन सम्बन्धी सूचना सहयोग की भावना से मुद्रित अंक में प्रकाशित की जाती है। कुछ प्राप्त पुस्तकों की चर्चा हम ब्लॉग प्रारूप पर पुस्तक से कुछ रचनाएं पाठकों के समक्ष रखकर भी करने का प्रयास करते हैं। ब्लॉग एवं मुद्रित प्रारूप में यद्यपि हम अधिकाधिक पुस्तकों की समीक्षा/संक्षिप्त समीक्षा/पुस्तक परिचय भी देने का प्रयास करते हैं, तदापि यह कार्य पूरी तरह स्थान की उपलब्धता एवं हमारी सुविधा पर निर्भर करता है। इस संबन्ध में किसी मित्र से हमारा कोई आश्वासन नहीं है।
- कृपया अविराम साहित्यिकी का शुल्क ‘अविराम साहित्यिकी’ के नाम ही धनादेश, चेक या मांग ड्राफ्ट द्वारा भेजें, व्यक्तिगत नाम में नहीं। हमारे बार-बार अनुरोध के बावजूद कुछ मित्र अविराम साहित्यिकी का शुल्क ‘अविराम साहित्यिकी’ के नाम भेजने की बजाय उमेश महादोषी या प्रधान सम्पादिका के पक्ष में इस तरह से चैक बनाकर भेज देते हैं, कि उन चैकों का भुगतान हमारे लिए प्राप्त करना सम्भव नहीं होता है। इस तरह के चैकों को वापस करना भी हमारे लिए बेहद खर्चीला होता है, अतः हम ऐसे चैक वापस कर पाने में असमर्थ हैं। उन्हें अपने स्तर पर नष्ट कर देने के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।
- अविराम साहित्यिकी के सामान्य मुद्रित अंकों में जुलाई-सितम्बर 2012 अंक से पृष्ठों की संख्या बढ़ाकर 72+04=76 कर दी गयी है। बढ़े हुए पृष्ठों के दृष्टिगत वार्षिक एवं आजीवन सदस्यता शुल्क में कुछ माह बाद बृद्धि की जायेगी, अत: जो मित्र आजीवन सदस्य बनना चाहते हैं, फ़िलहाल पुराना शुल्क (रुपये 750/-) ही भेजकर आजीवन सदस्य बन सकते हैं।
- यदि वास्तव में आप इस लघु पत्रिका की आर्थिक सहायता करना चाहते हैं तो किसी भी माध्यम से राशि केवल ‘अविराम साहित्यिकी’ के ही पक्ष में एफ-488/2, गली संख्या-11, राजेन्द्रनगर, रुड़की-247667, जिला हरिद्वार, उत्तराखंड के पते पर भेजें और जहां तक सम्भव हो एकमुश्त रु.750/- की राशि भेजकर आजीवन सदस्यता लेने को प्राथमिकता दें। आपकी आजीवन सदस्यता से प्राप्त राशि पत्रिका के दीर्घकालीन प्रकाशन एवं भविष्य में पृष्ठ संख्या बढ़ाने की दृष्टि से एक स्थाई निधि की स्थापना हेतु निवेश की जायेगी। कम से कम अगले दो-तीन वर्ष तक इस निधि से कोई भी राशि पत्रिका के प्रकाशन-व्यय सहित किसी भी मद पर व्यय न करने का प्रयास किया जायेगा।