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रविवार, 30 सितंबर 2012

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 1,  अंक : 1,  सितम्बर  2012  

।।कथा प्रवाह।।  


सामग्री :  इस अंक में ‘भ्रूण हत्या’ पर डा. रामकुमार घोटड़ सम्पादित  लघुकथा संकलन ‘किसको पुकारूँ’ से सर्व श्री  माधव नागदा, रतन चन्द्र रत्नेश, डा. तारिक असलम ‘तस्नीम’ व  डॉ. रामकुमार घोटड़  की तथा  सर्व श्री संतोष सुपेकर, डॉ. पूरन सिंह, डॉ0 रामशंकर चंचल एवं गोवर्धन यादव की अन्य  लघुकथाएं।


‘भ्रूण हत्या’ पर कुछ लघुकथाएं 

(‘किसको पुकारूँ’: सुप्रसिद्ध लघुकथाकार एवं वरिष्ठ चिकित्सक डा. रामकुमार घोटड़ जी सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर साहित्यिक कार्यों में अग्रणी रहे हैं। हाल ही उन्होंने ‘भ्रूण हत्या’ जैसे संवेदनशील और महत्वपूर्ण विषय पर ‘किसको पुकारूँ’ नाम से एक लघुकथा संकलन संपादित करके प्रकाशित करवाया है। इस संकलन में ‘भ्रूण के लिंग निर्धारण’, लिंग जाँच, कन्या भ्रूण हत्या, गर्भपात आदि पर वैज्ञानिक पक्ष के साथ कानूनी पक्ष पर अपने विस्तृत आलेख के साथ देश भर के 71 लघुकथाकारों की 81 लघुकथाएँ संकलित की हैं। इस महत्वपूर्ण संकलन से प्रस्तुत हैं चार लघुकथाकारों- सर्व श्री माधव नागदा, रतन चन्द्र रत्नेश, डा. तारिक असलम ‘तस्नीम’ एवं डा. रामकुमार घोटड़ की लघुकथाएं।)


माधव नागदा




हम हैं न 

     वह शहर का अपेक्षाकृत सुनसान इलाका था। शहर में होते हुए भी शहर से दूर, उदास लेम्प-पोस्ट पीली मरियल सी रोशनी उगल रहे थे। सड़क के दोनों ओर जंगली झाड़ियाँ थीं, किसी की प्रतीक्षा में लीन। एक झाड़ी में कोई भ्रूण पड़ा था। उसने इधर-उधर चोर निगाहों से देखा और सफेद कपड़े में लिपटी एक पोटली पास की झाड़ी में सरका दी।
    ‘‘तू भी आ गई बहन?’’ पीले वस्त्र वाले भ्रूण ने दुःख भरे स्वर में पूछा।
    ‘‘क्या करती! वे लोग हाथ धोकर मेरी जान के पीछे पड़े थे।’’
    ‘‘कौन था तुम्हारा कातिल? डाक्टर या डाक्टरनी?’’
    ‘‘डाक्टर था, भयानक चेहरे वाला।’’ याद आते ही भ्रूण का चेहरा फक हो गया।
रेखांकन : के. रविन्द्र 
    ‘‘मेरी हत्या तो डाक्टरनी ने की, मासूम चेहरे वाली। और बताऊँ? उसके एक छोटी बेटी भी है।’’ रेशमी वस्त्रों में लिपटा भ्रूण बोला। उसकी आवाज से दर्द टपक रहा था।’’
    ‘‘अरे, तुम्हे कैसे पता?’’
    ‘‘कह रही थी आज बड़ी देर हो गयी। केस पर केस आ रहे हैं। घर पर बेटी भूखी होगी। तो पास खड़ा कम्पाउन्डर बोला, आया है न! बोतल पिला देगी।’’ 
    ‘‘फिर? डाक्टरनी क्या बोली?’’ दूसरे भ्रूण ने उत्सुकता से पूछा। उससे लिपटा सफेद वस्त्र धीरे-धीरे रक्तिम होने लगा था।
    ‘‘डाक्टरनी बोली, मेरी बेटी माँ का दूध पियेगी, बोतल का नहीं।’’
    कुछ देर तक दोनों भ्रूण अबोले ही रहे। अपने आप में खोये से। फिर पहला बोला- ‘‘जन्म ले पातीं तो हम भी माँ कर दूध पीतीं।’’ उसका स्वर दयनीय था।
    ‘‘माँ का दूध तो क्या, हमारी किस्मत में माँ भी नहीं है।’’ दूसरे ने आक्रोश से कहा। इतने में हवा का झोंका आया। झाड़ियों की शाखें झुकीं और भ्रूणों के मस्तक सहलाने लगीं, मानो कह रही हों, ‘हम हैं न!’
  •  गाँव- लाल मादड़ी (नाथद्वारा) पिन-313301, जिला उदयपुर (राजस्थान)


रतन चन्द्र रत्नेश 

एक फैसला

  गाँव से रवि अपनी पत्नी के साथ मेरे पास आया। तकरीबन एक वर्ष पूर्व उसका विवाह हुआ था। गाँव में ही। हम भी उसके विवाह में शामिल हुए थे। पत्नी के साथ वह पहली बार शहर आया था।
    मैंने कहा, ‘‘क्यों रवि, आखिर भाभी जी को शहर दिखाने ले ही आए?’’ वह मुस्कराया।
    ‘‘हाँ, शहर भी देख लेंगे और जिस काम के लिए आये हैं, वह भी हो जायेगा। एक पंथ दो काज।’’
    ‘‘क्या काम है भाई, कोई खास? मुझे नहीं बताओगे?’’
    उसकी पत्नी उठकर रसोई में चली गई, जहाँ मेरी पत्नी हमारे लिए चाय बना रही थी।
    रवि ने धीमे स्वर में कहा, ‘‘यार, तुम्हारी सहायता के बिना तो वह खास काम होने से रहा। मुझे तो शहर और डाक्टरों के बारे में अधिक पता नहीं है। तू तो जानता है कि अपनी जिंदगी गाँव और अपने पुश्तैनी दुकान के आस-पास तक ही सीमित रही है।’’
    मैंने कहा, ‘‘खुलकर कहो भई। तुम तो पहेलियाँ बुझाने लगे।’’
     वह कहने लगा, ‘‘यार, तुम्हारी भाभी का पाँव भारी है। आजकल ‘टेस्ट’ की बड़ी चर्चा सुनी है, पर साथ ही यह भी पता चला है कि प्राइवेट क्लीनिकों में यह काम अब चोरी-छुपे हो रहा है क्योंकि सरकार ने गर्भस्थ शिशु के लिंग जाँच को अवैध घोषित कर रखा है। हम भी जानने के इच्छुक हैं कि गर्भ में लड़का है या लड़की?’’
     मैं सुनकर दंग रह गया। इसका अर्थ यह है कि यह ‘बीमारी’ सुदूर गाँव तक को अपनी गिरफ्त में ले चुकी है।
रेखांकन : बी मोहन नेगी 
     मैंने सहज भाव से कहा, ‘‘परिणाम जानने की इतनी उत्सुकता क्यों? सब्र से काम लो।’’ भ्रूण-जाँच करवाकर अपनी स्वाभाविक प्रशन्नता का गला क्यों घोंट रहे हो?’’
    ‘‘दरअसल हम चाहते हैं कि लड़की हो तो गर्भ गिरा दें।’’ उसने कुछ झेंपते हुए कहा।
    मेरी आवाज थोड़ी तल्ख हो गई, ‘‘तुम गंवार के गंवार ही रहे। अब क्या लड़का-लड़की में भेद रह गया है बल्कि लड़कियाँ लड़कों से कहीं अधिक सुख दे रही हैं....।’’
    ‘‘सो तो ठीक है पर.....’’ वह सिर खुजाने लगा।
    अंत में निराश होकर मैंने कहा, ‘‘जैसी तेरी इच्छा, पर मैं तुझे किसी भी क्लीनिक का पता देने वाला नहीं। मुझे क्यों पाप का भागी बना रहे हो? जितने दिन चाहो, आराम से रहो, पर क्लीनिक की तलाश तुझे स्वयं करनी पड़ेगी। हाँ, मेरी बात याद रखना। कुदरत के खिलाफ कोई कदम उठाया तो तेरी आत्मा सदा तुझे दुत्कारती रहेगी।’’
    दूसरे दिन प्रातः रवि अपनी पत्नी से कहने लगा, ‘‘प्रतिमा, चलो गाँव लौटने की तैयारी करते हैं।’’
    मैंने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।
    ‘‘क्यों मेरी बात का बुरा मान गए?’’
    उसने कहा, ‘‘नहीं यार, तूने तो मेरी आँख खोल दी। हमें जाँच नहीं करवानी। जो संतान हमें ईश्वर प्रदान करेगा, उसे सहर्ष स्वीकार कर लेंगे।’’
    ‘‘रात भर में यह परिवर्तन....?’’ मैंने उत्सुकता से पूछा।
    ‘‘बस समझो, हमसे भयंकर भूल होते-होते रह गई। साथ ही उन प्रश्नों से भी बच गए जो आने वाली पीढ़ी हमसे कुरेद-कुरेद कर पूछेगी और हमारे पास जिनका कोई उत्तर नहीं होगा।’’   
  • 1859, सैक्टर 7-सी, चण्डीगढ़-160019


डा. तारिक असलम ‘तस्नीम’



खामियाजा

     मिसेज सान्याल के दरवाजे की कॉलबेल की घंटी बजी। उनके दरवाजा खोलते ही नौकरानी कम्मो पर नज़र पड़ी। वह गर्म होने लगी- ‘‘अरे! यह क्या तमाशा लगा रखा है कि एक सप्ताह से काम पर ही नहीं आ रही हो! अगर काम करने का मन न हो तो वह भी कह दो। मैं किसी और को रख लूँगी। ऐसी भी क्या आफत आ गयी है कॉलोनी में नौकरानियों की जो न मिले.....।’’ यह कहते हुए मेम साहब ने आँखें तरेरीं।
    कम्मो ने बिना किसी नाखुशी को प्रकट करते हुए मेम साब से इतना भर कहा, ‘‘मेम साब उस दिन यहाँ से घर गई तो बेटी-दामाद आये हुए थे। वह पेट से थी और उसे कुछ तक़लीफें हो रही थीं, जिसे दिखाने डाक्टरनी के पास गये तो उसने भर्ती कर लिया। आपको मैं क्या बताऊँ कि बेटी ने अपनी जैसी ही एक नन्ही सी परी को जन्म दिया है.... वह इतनी सुन्दर है कि मैं आपको बता नहीं सकती....।’’
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल 
    उसके चेहरे पर छलकती खुशी को मेम साब सहन नहीं कर पा रही थीं सो बोली, ‘‘अरे! इसमें इतराने की कौन सी बात है? लड़की ही हुई न, लड़का तो नहीं हुआ न? हमारे यहाँ तो खुशी लड़कों के जन्म पर मनायी जाती है..... या फिर जब वह ब्याहकर बहू घर में लाता है। समझी तू?’’ मेम साब ने उसकी खुशी पर पानी फेरने की कोशिश की।
    लेकिन कम्मों के चेहरे की रंगत में तनिक भी अंतर नहीं आया। उनके चेहरे का रंग फीका पड़ने लगा। क्योंकि मेम साब की बातें सुनकर उसने कहा- ‘‘मेम साब, हर कोई परिवार में लड़के ही चाहेगा और हरेक स्त्री बेटा ही जनेगी, तो वह ब्याहकर किसे लाएगा? गाय-भैंसों को? यह आप क्यों नहीं सोचतीं कि समाज में यदि मर्दों की आवश्यकता है तो औरतों की तादाद भी उसी अनुपात में होनी चाहिए। मुझसे डाक्टरनी जी तो यही कह रही थीं और वह गरीब जानकर भी मेरे मेहमान को बधाई दे रही थी। उन्होंने हमें सरकार की ओर से मिलने वाली सुविधाओं की जानकारी भी दी। जिससे हमें उनकी परवरिश में मदद ही मिलेगी, फिर चिंता किस बात की....।’’
   कम्मो के मुँह से यह सब सुनकर उनका मन भारी हो गया। वह अन्दर से हिल गयीं। उसने मेम साहब को झिंझोड़ दिया था। उनके पास तो किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। यदि कमी थी तो एक बेटी की, जिसे उन्होंने पति की घोर आपत्ति के बावजूद जन्म नहीं लेने दिया था और गर्भ में कन्या भ्रूण का पता लगने पर दो बार सफाई करवा ली थी। क्योंकि उन्हें लगता था कि उसके जन्म के बाद उन्हें ढेर सारा अनावश्यक व्यय करना पड़ेगा....जबकि वह स्वयं एक स्त्री थी।
  • 6/2, हारुन नगर, फुलवारी शरीफ, पटना-801505 (बिहार) 


डॉ. रामकुमार घोटड़



अपराध बोध

     उस दिन वो पति-पत्नी पूरे परिवार सहित खुशी में सराबोर थे। सोनोग्राफी से डॉक्टर ने गर्भ में पल रहे भ्रूण के लड़का होने की पुख्ता रिपोर्ट दे दी थी। लेकिन वे अफसोस इस बात का कर रहे थे कि साथ में पल रहा दूसरा भ्रूण कन्या भ्रूण है, जबकि उनके पहले से ही तीन लड़कियाँ हैं, जो भैया का दीदार करने माँ की ओर देखा करती हैं।
     अगले दिन वे अस्पताल गये। लड़का भ्रूण को सुरक्षित रखते हुए सिर्फ कन्या भ्रूण को ही गिरवाना चाहते थे। उस डॉक्टर से वो पहले भी कन्या भ्रूण होने के कारण तीन वार गर्भपात करवा चुके थे। इसी प्रकार गर्भपात करवाता-करवाता वह एक अनुभवी एवं धुरंधर डॉक्टर बन चुका था।
     डॉक्टर ने उसे थियेटर में ले जाकर गर्भ गिराने के लिए औजार कन्या भ्रूण की तरफ बढ़ाया। 
रेखांकन : नरेश उदास 
    ‘‘भैया मुझे बचाओ...।’’ कन्या भ्रूण चिल्लाई। ‘‘ये देखो डॉक्टर का राक्षसी औजार मेरी तरफ आ रहा है....।’’
    ‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूँगा, तुम मेरी बहना हो, मैं अंतिम साँस तक तुम्हारी रक्षा करूँगा, नहीं तो डॉक्टर अंकल से निवेदन करता हूँ कि मुझे भी साथ ही खत्म कर दें....।’’ और वह अपने सहोदर भ्रूण से लिपट गया।
    डॉक्टर साहब सोनोग्राफी में यह सब देख रहे थे। दोनों भ्रूणों का स्नेह-अपनत्व देख
कर पसीज गये और अकारण ही भ्रूणहत्या करने पर अपने आपको अपराधी सा महसूस करते हुए अपने औजार गर्भ से बाहर खींच लिए।
     डॉक्टर साहब, थियेटर से बाहर आकर उसके पति को रुपये लौटाते हुए बताने लगे- ‘‘महोदय! माफ करना! मैं अब ऐसा नहीं कर पाऊँगा। मैंने जिन्दगी में कभी भी भ्रूणहत्या न करने का प्रण लिया है....।’’ 
  • सादुलपुर (राजगढ़), जिला चूरू-331023 (राजस्थान)


संतोष सुपेकर






वो देख सामने!

    ‘‘चवन्नी (पच्चीस पैसे का सिक्का) को पास में देखकर एक रूपये का सिक्का हंसा, व्यंग्यपूर्ण हंसी !
    ‘‘हंस मत’’ रिटायर कर दिये जाने से नाराज चवन्नी ने तमतमाकर कहा, ’’ वो देख सामने! तुझे देखकर भी कोई हंस रहा है, बल्कि हंस रहे है।’’
    ‘‘कौन... कौन?’’ एक रुपये के सिक्के ने हडबडाकर पूछा, ‘‘....कौन हंस रहा है मुझ पर, मुझे तो कोई दिखाई नही दे रहा ?’’
    ‘‘तुझे अभी दिखाई नहीं देगा, वो खड़ी हैं दोनों बहनें, मंहगाई और मुद्रास्फीति। और तेरे जीवन की भी उल्टी गिनती कर रही है।’
  • 31, सुदामा नगर, उज्जेन (म0प्र0)


डॉ. पूरन सिंह

धर्मग्रन्थ

     पिछले तीन विधान सभा चुनावों से जीतते आ रहे थे असलम भाई। करोड़ो रूपए की सम्पति है उनके पास। बंगले गाड़िया, बैंक बैलेंस लेकिन उनके क्षेत्र की जनता के पास न तो सड़कें हैं, न अस्पताल। और तो और, पीने का स्वच्छ पानी भी नहीं है। अब लोग समझ गए है उनकी बातें। इस बार, हिन्दू तो हिन्दू, मुसलमान भी उन्हें वोट देने वाले नहीं। यह बात असलम भाई भी अच्छी तरह जानते हैं। दो दिन बाद दिवाली है, उसके बाद ही भैया दौज के दिन वोट पड़ने हैं। क्या करें असलम भाई। बहुत परेशान हैं कुछ नहीं सूझता। थक हार कर, मुकद्दस कुरआन के सामने आकर खड़े हो गए असलम भाई। पवित्र कुरआन ही है जो डूबते को तिनके का सहारा है। असलम भाई आँखे बंद किए उसके सामने खड़े रहे कि अचानक ज्ञान प्राप्त हो गया उन्हें। पवित्र कुरआन को देखकर उनके मन में खुशी की लहर दौड़ गई, आँखे चमकने लगी। अचानक होठों से निकल गया, बन गया काम।
    दूसरे दिन ही- असलम भाई के गुर्गे भागते हुए उनके पास आए थे। भाई, भाई ये देखो, इन हिन्दुओं की नीचता। देखो भाई, देखो तो इन्होंने क्या किया। कैफी ने अपने हाथों में रखे पटाखों के ऊपर उपयोग किए गए कागज को दिखाते हुए असलम भाई से कहा था। दरअसल पटाखों के ऊपर उपयोग किया गया कागज कुरआन के पृष्ठ ही तो थे। 
रेखांकन : महावीर  रंवाल्टा
    असलम भाई की आँखों में आंसू छलकने लगे थे। बस फिर क्या था। सदर वाले चौराहे पर असलम भाई चीख रहे थे। शर्म आती है लोगों पर.... आदमी आदमी की लड़ाई है, इसमें पवित्र धर्मग्रन्थों का उपयोग किया जा रहा है।.... कभी हमारी मस्जिद्रे ढहाई जाती है तो कभी गोधरा कांड होते हैं। अरे हार जीत तो जिंदगी में लगी रहती है। फिर अचानक छाती पीटकर चीखने लगे थे असलम भाई, ईंट से ईंट बजा देंगे....हम अल्पसंख्यक जरूर हैं लेकिन इन बहुसंख्यकों पर भारी पड़ेगे। नाले तकबे....। पूरी भीड़ चिल्लाई थी, अल्लाह अकबर ।
    असलम भाई के भाषण से पूरे शहर में हाहाकर मच गया था। देखते ही देखते पूरी फिजां असलम भाई के पक्ष में थी। मुसलमानों की पवित्र भावनाओं को हिन्दूओं ने ठेस पहुँचाई थी तो वहीं हिन्दू सहिष्णुता, बन्धुत्व और विश्वमैत्री के भंवरजाल में डूबते हुए असलम भाई के साथ थे। और प्रशासन डी.एम., एस.डी.एम., एस.पी. साहब की तो रात की नींद चली गई थी। सभी पटाखों की फैक्ट्रियां सील कर दी गई थी। दीवाली मनायी गई थी लेकिन लग रहा था मानो मातम मनाया जा रहा हो।
    ठीक भैया दौज वाले दिन वोट पड़े थे। और दो दिन बाद ही वोटों की गिनती शुरू हो गई थी। असलम भाई ने रिकार्ड जीत दर्ज की थी। पिछले तीन विधान या चुनावों में वह जीते तो थे, लेकिन इस बार की जीत ने उन्हें आसमान पर बैठा दिया था। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी श्री सत्यनारायण शर्मा जी की जमानत जब्त हो गयी थी।
    असलम भाई जिंदाबाद.... जिंदाबाद के नारों से दशो दिशाएं गूंज रही थी। असलम भाई ने जयकारों की तरफ ध्यान नहीं दिया था उन्होंने घर आकर पहले मुकद्दस कुरआन को चूम लिया था। पवित्र कुरआन के शुरू के पृष्ठ अब भी फटे हुए थे।

  • 240, बाबा फरीदपुरी, वेस्ट पटेलनगर, नई दिल्ली-110008


डॉ0 रामशंकर चंचल




झीतरा   




छाया चित्र : उमेश महादोषी 
 मौसम चाहे जैसा हो, झीतरा सदैव एक-सा रहता- अर्द्धनग्न। कूल्हे पर लंगोटी और वदन पर हाथ-भर कपड़ा बस। इसके अतिरिक्त उसे क्या चाहिए! बचपन से आज तक इसी तरह रहने वाला झीतरा पसीना बहा, खेत में खूब श्रम करता रहता था। खेत, झोंपड़ी और डागला, इन्हीं के बीच गुजार देता है वह जिन्दगी। कभी-कभी आंगन में आ धमकते हैं कोई शहरी बाबू- पटवारी, ग्राम सेवक, मोटर-सायकिल दौड़ाते। अशिक्षित, अज्ञानी झीतरा भयभीत-सा खड़ा हो जाता हाथ जोड़कर। अपनी खटिया उनके सम्मान में लगा बैठ जाता चरणों में और उनके आदेश पर दौड़ जाता मीलों दूर किसी भी काम के लिए। पता नहीं इन शहरी बाबुओं ने उसका किस-किस तरह से कितना शोषण किया, कितने झूठे आश्वासन दिए, पर उसने कभी शिकायत नहीं की, वह सदैव गूँगा बना रहा। हाँ, उसी झीतरा को पीपल के पेड़ के नीचे खामोश बैठे पत्थर के रामदेवजी के आगे मैंने चीखते-चिल्लाते और कभी-कभी रोते भी देखा है। वहां भी वह अपने लिए नहीं, मासूम बच्चों की भूख और अपने खेतों की प्यास के लिए भगवान से प्रार्थना करते ही देखा। पता नहीं, उसके पत्थर के भगवान उसकी सुनेंगे भी या सचमुच पत्थर के ही बने रहेंगे।  

  • माँ, 145, गोपाल कालौनी, झाबुआ-457661 (म0 प्र0)



गोवर्धन यादव 



जहरीला आदमी

    एक खूबसूरत युवती ने जहरीले साँपों के बीच रहकर विश्व रिकार्ड तोड़ने की ठानी।
    देश-विदेश से तरह-तरह के जहरीले साँप बुलवाये गये और एक कांच का कमरा तैयार करवाया गया। एक निश्चित दिन, उस काँच के कमरे मे उन सभी जहरीले साँपों को छोड दिया गया और उस सुन्दर युवती ने प्रवेश किया। खलबली-सी मच गई थी साँपों के परिवार में।
   जहरीले साँपों के बीच रहकर वह तरह के करतब दिखलाती, कभी किसी को उठा कर गले से लपेट लेती तो कभी अपनी कमर में। कभी एक साथ ढेरों सारे सर्पों को उठाकर अपने शरीर मे जगह-जगह लपेट लेती, तरह-तरह के करतब वह दिखलाती। उसके कारनामों को देखने के लिये पूरा गाँव उमड पडा था।
    स्थानीय समाचार पत्रों में उसके सचित्र समाचार प्रकाशित हो रहे थे। टीवी वाले भी भला पीछे कहाँ रहने वाले थे। वे अपने चौनलों के माध्यम से उसका लाइव प्रसारण कर रहे थे। अब पास-पड़ोस के लोगों के अलावा पड़ोसी जिले से भी लोग आने लगे थे। फ़लस्वरुप वहाँ  बेहद भीड जमा होने लगी थी। जिला कलेक्टर ने तथा पुलिस अधीक्षक ने उसकी पूरी सुरक्षा के व्यापक प्रबंध कर रखे थे। उस कांच के कक्ष के बाहर श्रध्दालु लोग पूजा-पाठ करने के लिये जुटने लगे थे। नारियल बेचने वाले तथा फ़ूल बेचने वालों ने दुकाने खोल लिये थे। दर्शनार्थीयों में कोई उसे असाधारण साहस की धनी, तो कोई काली माँ का अवतार, तो कोई दुर्गा का अवतार कह रहा था।
    आख्रिर अडतालिस घण्टे जहरीले सांपों के बीच रहकर उसने पुराना विश्व रिकार्ड तोडते हुये नया रिकार्ड बना ही डाला। कमरे से बाहर निकलते ही उस बला की  खूबसूरत युवती को भीड ने घेर लिया। हर कोई उसके गले मे फ़ूलमाला् डालने तो बेताब नजर आ रहा था, विशेषकर युवातुर्क।
रेखांकन : शशिभूषण बड़ोनी 
    यह पहले से तयकर  दिया गया था कि उसके बाहर आने के बाद उसका नागरिक अभिनन्दन किया जायेगा। एक बड़ा विशाल मंच तैयार कर लिया गया था। उसे ससम्मान जयकारे के साथ मंच पर लाया गया। मंच पर अनेक गणमान्य नागरिकों के अलावा एक अधिकार संपन्न नेताजी भी आमंत्रित थे।
    उसके मंच पर आते ही भाषणों का दौर शुरु हुआ। भाषण पर भाषण चलते रहे। भाषणों के बीच, उस नेता ने उसे अपने आवास पर भोजन के लिये आंमंत्रित किया। पोर-पोर में ऐंठन और दर्द के चलते उसका मन वहाँ जाने के लिये तैयार नही हो रहा था, बावजूद इसके वह मना नहीं कर पायी।
    देर रात तक भोजन का दौर चलता रहा। नींद के बोझ के चलते उसकी पलकें कब मूंद गई, उसे पता ही नहीं चल पाया। अब वह पूरी तरह से नींद के आगोश में चली गई थी।
    गहरी नींद के बावजूद उसने महसूस किया कि कोई उसके शरीर को कोई बुरी तरह से रौंद रहा है. चेतना में आते ही पूरी बात उसकी समझ में आ गई थी। वह उठकर भाग जाना चाहती थी, लेकिन शरीर पर वस्त्र न होने की वजह से वह चाहकर भी भाग नहीं पायी थी और वहीं बिस्तर पर पडी-पडी आँसू बहाती रही थी और दरिंदा अपना खेल, खेलता रहा था।
इस दुर्घटना के बाद से वह एकदम से गुमसुम-गुमसुम सी रहने लगी थी।  बात-बात में खिलखिलाकर हँसने वाली वह शोख चंचल हसीन अब मुस्कुराना भी भूल चुकी थी और वह अब आदमियों के बीच जाने से भी घबराने लगी थी। उसे पता चल चुका था कि वहाँ केवल सांपों के मुँह मे जहर होता है, जबकी, जबकी आदमी पूरा की पूरा जहरीला होता है।
  • 103, कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा-480001 (म.प्र.)

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