अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 1, सितम्बर 2012
महावीर रवांल्टा
{गत वर्ष चर्चित युवा साहित्यकार महावीर रंवाल्टा का कविता संग्रह ‘आकाश तुम्हारा होगा’ प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह की कई छोटी कविताएं अच्छी ‘क्षणिकाएँ’ हैं। प्रस्तुत है उन्हीं में से कुछ क्षणिकाएँ।}
1. कमीज
मैंने पसीने से तर
कमीज को
निचोड़ना चाहा
लेकिन क्या देखता हूँ कि
खून का
एक-एक कतरा निकल रहा है।
2. कल के लिए
संकुचित भावनाओं के
रजत ख़्वाबों में
मेरे लिए
नागफनियाँ उग रही हैं
और मेरे कल्पनावृत्त की
असीमित परिधि पर
बीज अंकुरित हो रहे हैं
आने वाले
कल के लिए।
3. प्रेम
बढ़ती हुई घास की तरह
वे परस्पर
उलझते गए
लेकिन बड़े होते ही
पेड़ों की तरह
अलग-अलग सीधे होने लगे
4. इन्तजार-1
सुबह चाय की प्याली में
उगा सूरज
सारा दिन समेटे
संध्या आगमन से पहले
छोड़ जाता है मुझे अकेला
बिल्कुल अकेला
और फिर
आरम्भ हो जाता है इंतजार
अगली चाय की प्याली का।
5. बड़ा आदमी
रूप गुण से सजा, लदा
अपने घर का
बड़ा आदमी ही होता है
देश का सबसे बड़ा आदमी
वह राष्ट्रपति
कुर्सी से लगा प्रधानमंत्री ही नहीं होता
सड़क का मजदूर
गाँव का किसान
फौज का सिपाही
सरकारी नौकर
व्यवसायी
कोई भी हो सकता है।
6.चरित्र
पृष्ठ जीवन पर जग में
‘अब’ से ‘तब’ लिखकर
कर्म समेटती पंक्तियाँ
बनती नई पुस्तक
अपना मनचाहा
अच्छा-बुरा
चरित्र बनकर
सामने टिके आइने में
नज़र आने लगता है।
7. जागृति
फूली पीली सरसों
और झूमती डाली
सराहने को कोई नहीं
वह अलसा कर सो पड़ी
अब उसे कौन जगाए?
।।क्षणिकाएँ।।
सामग्री : महावीर रवांल्टा की सात क्षणिकाएँ।
महावीर रवांल्टा
{गत वर्ष चर्चित युवा साहित्यकार महावीर रंवाल्टा का कविता संग्रह ‘आकाश तुम्हारा होगा’ प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह की कई छोटी कविताएं अच्छी ‘क्षणिकाएँ’ हैं। प्रस्तुत है उन्हीं में से कुछ क्षणिकाएँ।}
1. कमीज
मैंने पसीने से तर
कमीज को
निचोड़ना चाहा
लेकिन क्या देखता हूँ कि
खून का
एक-एक कतरा निकल रहा है।
2. कल के लिए
रेखांकन : के. रविन्द्र |
रजत ख़्वाबों में
मेरे लिए
नागफनियाँ उग रही हैं
और मेरे कल्पनावृत्त की
असीमित परिधि पर
बीज अंकुरित हो रहे हैं
आने वाले
कल के लिए।
3. प्रेम
बढ़ती हुई घास की तरह
वे परस्पर
उलझते गए
लेकिन बड़े होते ही
पेड़ों की तरह
अलग-अलग सीधे होने लगे
4. इन्तजार-1
सुबह चाय की प्याली में
उगा सूरज
सारा दिन समेटे
संध्या आगमन से पहले
छोड़ जाता है मुझे अकेला
बिल्कुल अकेला
और फिर
आरम्भ हो जाता है इंतजार
अगली चाय की प्याली का।
5. बड़ा आदमी
रूप गुण से सजा, लदा
अपने घर का
बड़ा आदमी ही होता है
देश का सबसे बड़ा आदमी
वह राष्ट्रपति
कुर्सी से लगा प्रधानमंत्री ही नहीं होता
सड़क का मजदूर
गाँव का किसान
फौज का सिपाही
सरकारी नौकर
व्यवसायी
कोई भी हो सकता है।
6.चरित्र
रेखांकन : राजेंद्र सिंह |
‘अब’ से ‘तब’ लिखकर
कर्म समेटती पंक्तियाँ
बनती नई पुस्तक
अपना मनचाहा
अच्छा-बुरा
चरित्र बनकर
सामने टिके आइने में
नज़र आने लगता है।
7. जागृति
फूली पीली सरसों
और झूमती डाली
सराहने को कोई नहीं
वह अलसा कर सो पड़ी
अब उसे कौन जगाए?
- ‘संभावना‘, महरगाँव, पत्रालय: मोल्टाड़ी, पुरोला, उत्तरकाशी-249185 (उत्तराखण्ड)
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