आपका परिचय

रविवार, 30 मार्च 2014

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 07- 08, मार्च - अप्रैल 2014


।। क्षणिका ।

सामग्री : 
इस अंक में श्री नित्यानन्द गायेन व सु श्री अनिता ललित जी की क्षणिकाएं। 


नित्यानन्द गायेन 





तीन क्षणिकाएँ


01.
एक समानता है 
हम दोनों में 
एक कमजोरी है हमारी
अपने-अपने हिस्से का सच सुनकर 
अक्सर हम हो जाते हैं 
नाराज़ 
एक-दूसरे से....।।
02.
राजनीति का देखिये 
कमाल
कवि भूल गये कविता को...।
छाया चित्र : डॉ.  बलराम अग्रवाल 

03. 
वे जो लोग हैं 
जो कर रहें हैं प्रचार 
अपने मालिकों का 
उन्हें याद रखना चाहिए कि 
दास कभी...
अपनाये नही गए इनके इतिहास में।।

  • 4-38/2/बी, बी, श्री राम प्रसाद दुबे कालोनी, रोड नं. -3 

लिंगमपल्ली, हैदराबाद-500019 / मोबाइल : 09642249030 



अनिता ललित



{युवा कवयित्री अनिता ललित कविता, विशेषतः हाइकु एवं क्षणिका में एक उभरता हुआ नाम है। उनकी कविताओं का एक संग्रह ‘बूँद-बूँद लम्हे’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह की कविताओं में अनेक रचनाओं के क्षणिका की श्रेणी में रखा जा सकता है। प्रस्तुत है उनके इस संग्रह से कुछ क्षणिकाएँ।}

छः क्षणिकाएँ

01.
तुमसे जुदा हुई...
तो कुछ मर गया था मुझमें...
जो मर गया था...
उसमें ज़िंदा तुम आज भी हो...!
02.
बचपन है...
बना लो चाहे जितना...
ऊँट घोड़ा पालकी....!
जिंदगी है....
वसूलेगी कर्ज़....
तोड़कर कमर....
हर गुज़रते साल की....!
03.
हर मोड़ पर...
छाया चित्र : उमेश महादोषी 

कोई न कोई याद आ खड़ी हुई है...।
हर याद...
ख़ुद में एक महकता फूल हुई है...!
04.
आइना तो हर दिल में होता है...
फिर क्यों भटक जाती है नज़र...
इधर उधर...
लिये हाथ में...
कोई न कोई पत्थर...?
05.
यहीं तो था...
फिर गया किधर...?
वो प्यार का एहसास....
अपने रिश्ते की साँस...
यहीं तो था... फिर गया किधर...?
06.
बिना आहट के आँखों से...
फिसल गया...
मख़मली-सा ख़्वाब,
पुकारूँ अब उसे कैसे...
न पलकों को छुआ उसने...
न दिल में ही उतर पाया....!

  • 1/16, विवेक खंड, गोमतीनगर, लखनऊ-226010, उ.प्र.

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 07- 08 , मार्च-अप्रैल  2014


।।हाइकु।।

सामग्री :  इस अंक में श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ के हाइकु  व रेखा रोहतगी के कुछ ताँका और एक ताँका कविता। 


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


{हाइकु को हिन्दी काव्य जगत में प्रतिष्ठा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका दिलाने वाले वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ का दूसरा हाइकु संग्रह ‘माटी की नाव’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं उनके इसी संग्रह से चुने हुए कुछ हाइकु।}

पंद्रह हाइकु

01.
कोंपलें जगीं
निर्वसन तरु की
उदासी भगी।
02.
जाड़े की धूप
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
भर-भर के सूप
बाँटती रूप।
03.
नई कढ़ाई
टाँकी उपवन में
खुशबू छाई।
04.
जले अलाव
फरार हुई धूप
काँपती छाँव।
05.
सोचता मन-
ले तेरी ही खुशबू
बहे पवन।
06.
विश्वास-पाखी
उड़ा जो एक दिन
लौट न पाया।
07.
सपने बाँटे-
जितने थे गुलाबी,
बचे हैं काँटे।
08.
नयन जल
सुधियों-भरा ताल
छलक गया।
09.
कोकिल-पीर
चुभे यादों के तीर
बरसे नीर।
10.
बहना मेरी
है नदिया की धारा
भाई किनारा।
11.
कँटीली बाढ़
घायल हुए पाँव
आगे पहाड़
12.
बच्चे की भाषा
छाया चित्र : रोहित कम्बोज 
जिस दिन भूलेंगे
सब खो देंगे
13.
अकेला कहाँ
जब बीसों गौरैयाँ
आ बैठी यहाँ
14.
भूखों की भीड़
सिंहासन पा गई
देश खा गई
15.
दूर है गाँव
तैरनी है नदिया
माटी की नाव
  • फ़्लैट नं. 76 (दिल्ली सरकार आवासीय परिसर), रोहिणी सैक्टर-11, नई दिल्ली-110085 / मोबाइल : 09313727493 


रेखा रोहतगी


{कवयित्री रेखा रोहतगी का ताँका संग्रह ‘घन सघन’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत है उनके इसी संग्रह से कुछ ताँका और एक ताँका कविता।} 

सात ताँका

01.
मिट्टी होकर
मेरे तन की मिट्टी
सँवर गई
मिट्टी में मिलकर
जो मैं बिखर गई
02.
खिड़की खुली
तैरती नन्ही नाव
छू गई मन
डूब गया आँखों के
पानी में बचपन
03.
मीठा-सा दर्द
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
देकर कहाँ गई
बासंती हवा
चारों ओर ढूँढूँ मैं
मिले न कहीं दवा
04.
हैं तेरी आँखें
आँसुओं का समुद्र
तेरी पलके
जल सोखती हुई
हैं रेत की परतें
05.
तारों में देखी
तेरी आँखों की नमी
फूलों में पाई 
सुगंध-सी गंधाती
तेरे होंठों की हँसी
06.
इच्छाएँ होती
हारिल की लकड़ी
जिसे पकड़
मन उड़ता जाता
छाया चित्र : उमेश महादोषी
पर कुछ न पाता
07.
सर्द मौसम
गुलाब का चेहरा
ऐसे खिलता
जैसे मासूम बच्चा
मंद हँसी हँसता

एक ताँका कविता

सच्ची कविता

सच्ची कविता
संवेदना जगाती
नर्म करती
मन की भावभूमि
कठोरता हरती

कभी बनाती
अन्तर्मुखी तो कभी
पर दुःख में
कातर बना, पीड़ा
छाया चित्र : आदित्य अग्रवाल 
हृदय में भरती

कभी बुद्धि को 
जड़वत् कर देती
कभी प्राणों में
नव चेतना जगा
जीवन्तता भरती

कभी मन को
आह्लाद से भरती
कभी हृदय
अश्रुपूरित कर
आँखें नम करती
  • बी-801, आशियाना अपार्टमेंट, मयूर विहार फेस-1, दिल्ली-110091            / मोबाइल : 09818903018 व 09968060155  

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 07- 08  : मार्च- अप्रैल  2014


।। जनक छंद ।। 

सामग्री : इस अंक में डॉ. ब्रह्मजीत गौतम एवं श्री प्रदीप पराग के जनक छंद। 


डॉ. ब्रह्मजीत गौतम




दो जनक छन्द


01.
सब को एक न आँकिये
दोष कहाँ होता नहीं
ख़ुद में भी तो झाँकिये

02.
धुप्प अँधेरा क्यों न हो
जुगनू जैसी चमक भी
राह दिखा देती अहो
  • गौतम कुटी, बी-85, मिनाल रेसीडेन्सी, जे.के.रोड, भोपाल-462023 /मोबाइल: 09425102154






प्रदीप पराग




दो जनक छन्द

01.
कुदरत ने जब मार की
पल भर में सुनसान थी
घाटी यह केदार की।


02.
आवाजें चुप हो गयीं
चीखें सारी डूबकर
मलबे में ही सो गयीं।
  • 1785, सेक्टर-16, फरीदाबाद-121002 (हरियाणा)/09891059213

बाल अविराम

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 07- 08,  मार्च-अप्रैल 2014


।। बाल अविराम ।।

सामग्री :  इस अंक में पढ़िए-   डॉ.महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’  तथा नरेश कुमार ‘उदास’  बाल कविताएँ नन्हें बाल चित्रकारों सक्षम गम्भीर व स्तुति शर्मा  के चित्रों के साथ। 


डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘नन्द’




मदारी

आया एक मदारी गाँव,
ढूँढ़ रहा है पीपल छाँव।

देखो डमरू बजा रहा है,
बन्दरिया को नचा रहा है।
नखरे करती है बंदरिया,
बन्दर उसको मना रहा है।
सज-धज करके बूढ़ा बन्दर,
चित्र : सक्षम गम्भीर 

पहुँचा है साले के गाँव।
आया एक मदारी गाँव,
ढूँढ़ रहा है पीपल छाँव।

पैण्ट शर्ट टाई को बाँधे,
बन्दर जब लेता मुस्कान।
चेन तुम्हारी खुली हुयी है,
लगते हो कितने नादान।
मैं तो तेरे संग ना जाऊँ,
चाहे फेंको कितने दाँव।
आया एक मदारी गाँव,
ढूँढ़ रहा है पीपल छाँव।

  • पूजाखेत, पोस्ट-द्वाराहाट, जिला अल्मोड़ा-263653 (उत्तराखंड)



नरेश कुमार ‘उदास’




कहाँ रहेगा इंसान

वृक्ष को न काटो
इसका दुख-दर्द बाँटो
वृक्ष देता है छाया।
काटो न इसकी काया
प्रभु की कैसी है माया
इसका फल जन-जन ने खाया।
चित्र : स्तुति शर्मा 


वृक्ष है कितना महान
देता है 
हमें जीवन-प्राण।
वायु-लकड़ी
फल और छाया का
गाओ बस गुणगान।

वृक्ष काटोगे तो
धरा बन जाएगी रेगिस्तान।
जीवन के चिन्ह मिट जाएँगे
कहाँ रहेगा यह इंसान।

  • हिमालय जैव सम्पदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पो. बा. न.ं 6, पालमपुर (हि.प्र.)

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 07-08, मार्च-अप्रैल 2014



।। व्यंग्य वाण ।।

सामग्री :  इस अंक में ललित नारायण उपाध्याय की व्यंग्य रचना। 


ललित नारायण उपाध्याय



सुखदायी वातावरण

    कहते हैं जब पृथ्वी पर बहुत गन्दगी बढ़ गयी तो उसे हटाने के लिए प्रभु ने ‘सूकर’ या सुअर का अवतार लिया, इससे अधिक मेरा धार्मिक ज्ञान नहीं है। परन्तु इस बार प्रभु को न जाने क्या सूझी कि उन्होंने सूकर अवतार लेकर सीधे कीचड़ और दलदल में प्रवेश कर लिया। वहाँ ठंडी-ठंडी बयार बह रही थी। वातावरण एकदम ठंडा व सुखदायी था। प्रभु कई दिनों तक उसमें पड़े रहे।
   एक दिन लक्ष्मी माता पधारी। बोली- ‘बाहर निकलते हो कि अस्त्र चलाऊँ?’ प्रभु पर कोई असर नहीं हुआ, उल्टे और कीचड़ में छुप गये। लाचार माताश्री लौट पड़ी। उधर देवताओं में हलचल मच गयी, तब देवीजी ने चण्डी माता का स्वरूप लिया और बोली- ‘बेटा अपन जैसों को यह शोभा नहीं देता। बाहर निकल आओ।
   प्रभु बोले- ‘आपकी आज्ञा को टाल नहीं सकता, परन्तु एक शर्त है। इस अवतार केा स्थायी बनाने के लिए
रेखा चित्र : महावीर रंवाल्टा 
मेरी शक्ल तय कर दो। लोगों ने देखा- वहां एक आदमी प्रकट हुआ। उसके सिर पर टोपी थी। कुरता-पायजामा-जाकेट वह पहना हुआ था, उसकी मुद्रा अत्यंत हुसमुख थी और वह हाथ जोड़कर खड़ा था। वह कर्म और शरीर से ‘काला कलूटा’, परन्तु उसका रूप सुन्दर था। उसके एक हाथ में सूटकेस, दूसरे में वादों की लिस्ट और जेब में शराब की बॉटल थी......।

    इसी क्षण प्रभु गायब हो गये। वह मुस्कराता रहा। देखते-देखते लोगों ने इसे पद दिया, पद मिलते ही उसने पैसा कमा लिया और कीचड़ में समा गया। कहते हैं- तब से नेता बनते ही कीचड़ में समा जाने की परिपाटी चली आ रही है। 

  • ईश कृपा सदन, 96, आनन्द नगर, खंडवा-450001 (म.प्र.)

किताबें

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 07-08, मार्च-अप्रैल 2014 

          {लेखकों/प्रकाशकों से अनुरोध है कृपया समीक्षा भेजने के साथ पुस्तक की एक प्रति(एक से अधिक नहीं) हमारे अवलोकनार्थ डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला - हरिद्वार, उत्तराखण्ड के पते पर भेजें। समीक्षाएँ ई मेल द्वारा कृतिदेव 010 या यूनिकोड मंगल फॉन्ट में वर्ड या पेजमेकर फ़ाइल के रूप में ही भेजें। स्कैन करके या पीडीएफ में भेजी रचनाओं का उपयोग सम्भव नहीं होगा। }


।।किताबें।।

सामग्री : इस अंक में डॉ. बलराम अग्रवाल द्वारा सम्पादित लघुकथा संकलन "पड़ाव और पड़ताल" की श्री ओम प्रकाश कश्यप द्वारा लिखित समीक्षा। 

{पड़ाव और पड़ताल के अब तक दो खंड प्रकाशित हुए हैं। प्रथम  खंड का संपादन  स्वयं मधुदीप जी ने किया हैं और उसके दो संस्करण आ चुके हैं। प्रथम खंड में सर्व श्री अशोक वर्मा, कमल चोपड़ा, कुमार नरेन्द्र, मधुकान्त, मधुदीप, तथा विक्रम सोनी कि 11-11 लघुकथाएं शामिल हैं।  लघुकथाओं पर  प्रो० सुरेशचन्द्र गुप्त,  डॉ0 स्वर्ण किरण,  डॉ0 विनय वश्वास,  प्रो० रूप देवगुण,  एवं श्री भगीरथ, डॉ0 सतीश दुबे, डॉ0 सुलेखचंद्र शर्मा की समीक्षाएँ तथा लघुकथा पर समग्र आलेख  डॉ0 कमलकिशोर गोयनका जी का है। डॉ. बलराम अग्रवाल के संपादन में दूसरे खंड में सुश्री चित्रा मुद्गल, सर्व श्री जगदीश कश्यप, बलराम अग्रवाल, भगीरथ, युगल और श्री सुकेश साहनी की 11-11 लघुकथाएं तथा इन पर क्रमशः श्री भारतेंदु मिश्र, श्री सुभाश चंदर, डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, डॉ. उमेश महादोषी, प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार तथा ऋषभदेव शर्मा का समीक्षात्मक आलेख हैं। सभी लघुकथाओं का समग्र मूल्यांकन करता प्रोफेसर मृत्यंजय उपाध्याय का आलेख है। पूर्वपीठिका डॉ. शकुंतला किरण ने  लिखी है। प्रथम खंड का मूल्य रु 250/- तथा दूसरे खंड का मूल्य रु 350/- रखा गया है।}

ओमप्रकाश कश्यप




हिंदी लघुकथा के महत्त्वपूर्ण पड़ावों की पड़ताल

     समीक्षित पुस्तक ‘पड़ाव और पड़ताल’ विशिष्ट पुस्तक योजना की दूसरी कृति है। संपादक और प्रकाशक की योजना लघुकथा आंदोलन के सुपरिचित चेहरों के लेखकीय अवदान को समालोचना के साथ प्रस्तुत करने की है। पुस्तक में छह वरिष्ठ लघुकथाकार अपनी ग्यारह-ग्यारह प्रतिनिधि लघुकथाओं के साथ मौजूद हैं। रचनाकारों में सुश्री चित्रा मुद्गल, जगदीश कश्यप, बलराम अग्रवाल, भगीरथ, युगल और सुकेश साहनी सम्मिलित हैं। ये सभी लघुकथा आंदोलन से किसी न किसी रूप में जुड़े रहे हैं। आज यदि लघुकथा को लगभग सभी पत्रिकाओं में सम्मानजनक स्थान प्राप्त है, वह सफलता के महत्त्वपूर्ण पायदान पर है, तो उसके लिए जगदीश कश्यप, बलराम अग्रवाल, भगीरथ, सुकेश साहनी आदि के अवदान को भुला पाना असंभव है। ‘पड़ाव और पड़ताल’ के दूसरे खंड में इन्हें सम्मिलित करना, प्रकारांतर में लघुकथा के इतिहास के दस्तावेजीकरण के काम को आगे बढ़ाना है। सम्मिलित लघुकथाकारों के रचनाकर्म पर क्रमशः भारतेंदु मिश्र, सुभाश चंदर, डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, डॉ. उमेश महादोषी, प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार तथा ऋषभदेव शर्मा का समीक्षात्मक योगदान है। साथ में संकलित लघुकथाओं का समग्र मूल्यांकन करता प्रोफेसर मृत्यंुजय का आलेख है। पूर्वपीठिका में डॉ. शकुंतला किरण ने हिंदी लघुकथा की विशेषताओं को रेखांकित किया है। पुस्तकमाला अपने आप में अनूठा प्रयोग है, जिसकी परिकल्पना का श्रेय लेखक और प्रकाशक मधुदीप को जाता है। प्रस्तुत खंड उसकी दूसरी कड़ी है, जिसका संपादन हिंदी के वरिष्ठ लघुकथाकार बलराम अग्रवाल ने किया है। पुस्तक में चूंकि रचनाकर्म और समीक्षाकर्म साथ-साथ प्रस्तुत हैं, इसलिए इस पुस्तक को समीक्षा की वैसी आवश्यकता नहीं है, जैसी अन्य पुस्तकों को पड़ती है।
     चित्रा मुद्गल को छोड़कर शेष पांचों लघुकथाकार हिंदी लघुकथा आंदोलन से गहराई से जुड़े हैं। चित्राजी की मूल विधा कहानी और उपन्यास है। लघुकथाएं उन्होंने कम ही लिखी हैं। मानवीय सरोकारों से लबरेज उनकी कहानियों में अनूठी पारिवारिकता और अपनापन रहता है। ‘पड़ाव और पड़ताल’ में संकलित लघुकथाएं भी उससे अछूती नहीं हैं। छोटी-छोटी घटनाओं को सूत्ररूप में उठाकर रचना का रूप देने में वे पारंगत हैं। वे उस दौर की लेखिका हैं जब हिंदी में नारीवादी लेखन उफान पर था। चित्राजी ने स्त्री-अस्मिता से जुड़े प्रश्नों को तो उठाया, किंतु बिना किसी नारेबाजी के। ‘उनकी कहानियों में नारीवादी शोर या नगाड़ा बजता दिखाई नहीं देता। उनके पात्र संवेदना के बहुरंगी स्वेटर पहने मिलते हैं, जिन्हें लेखिका सिलाई-दर-सिलाई(या सलाई-दर-सलाई?) स्वयं बुनती हैं।’(डॉ. भारतेंदु मिश्र) मानवीय संवेदना और सरोकारों की दृष्टि से ये हिंदी की बेहतरीन लघुकथाओं में जगह ले सकती हैं। इनमें हम उनकी सूक्ष्म विवरणों से रचना का वंदनबार सजानेवाली शैली को देख सकते हैं। चूंकि वे प्रतिबद्ध लघुकथाकार नहीं हैं, इसलिए कई बार उनकी लघुकथाएं लघुकहानी लगने लगती हैं। दूसरे उनकी रचनाओं में कहीं-कहीं अभिजातबोध दबे पांव चला आता है। 
     जगदीश कश्यप की छवि लघुकथा के हरावल दस्ते के प्रमुख सेनानी की रही है। अपने अक्खड़पन और साफगोई के लिए वे जीवन-भर विवादित भी रहे। विवादों के कारण घटती प्रतिष्ठा के बीच ‘आलोचकों के मजार नहीं बनते’ कहकर वे खुद को तसल्ली देते रहे। जीवन के कटु अनुभवांे का गहरा अनुभव उन्हें था। गरीब, बेरोजगार युवक अपनी खुद्दारी और स्वाभिमान की कीमत पर जीवन में जितने दंश सह सकता है, उससे कहीं ज्यादा दंश उन्होंने सहे थे। खलील जिब्रान को अपना गुरु मानने वाले जगदीश कश्यप ने दृष्टांत शैली में अनेक लाजवाब लघुकथाएं लिखीं। उनके सरोकार मुख्यरूप से जनसाधारण के प्रति थे, इसलिए अपनी सर्जना को रहस्यवाद में उलझाने के बजाय उन्होंने जीवन के करीब बनाए रखा। दृष्टांत शैली की उनकी लघुकथाओं में जीवन और समाज के अंतर्विरोधों को खुली जगह मिली है। वे आम आदमी के पीड़ा और आक्रोश को सामने लाती हैं दरअसल हिंदी लघुकथा आंदोलन से जुड़े रचनाकारों के आगे दो चुनौतियां थीं. पहली रचनात्मक यानी लघुकथा को कहानी के बरक्स खड़ा करने की. दूसरी उसके लिए समीक्षात्मक कसौटियों के निर्धारण की। जगदीश कश्यप ने यह काम उस्तादाना अंदाज में किया। इसलिए उनकी लघुकथाएं इस विधा की कसौटी पर खरी उतरती और एक मानक का काम करती हैं. एक लेखक के रूप में, ‘इस महान रचनाकार की सबसे बड़ी शक्ति है- संवेदनशीलता, मानवीय सरोकारों के प्रति गंभीरता, अव्यवस्था के प्रति विद्रोह की भावना तथा बेहद तीखा, पर महीन व्यंग्य... उनकी रचनाएं विसंगतियों में फंसे आम आदमी की पीड़ा का दस्तावेज हैं। वे बेचैनी की उपज हैं. अव्यवस्था के खिलाफ खड़े आदमी का बयान हैं, उसके रिसते घावों के साक्षात्कार हैं।’ (सुभाश चंदर, जगदीश कश्यप की लघुकथाओं का सच)। हर बड़ा साहित्यकार अपनी व्यक्तिगत पीड़ा को रचना से दूर रखता है, जगदीश कश्यप छिछली भावुकता से बचे हैं। बकौल सुभाश चंदर, ‘उन्होंने जिस निम्न मध्यवर्गीय परिवार के दुख-सुख, निराशा-आशा और संत्रास को झेला, वही उनकी रचनाओं में प्रस्फुटित हुआ।’ अपने जीवन सत्य को युग-सत्य में ढाल देना किसी भी रचनाधर्मी के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। संग्रह में जगदीश कश्यप की ‘ब्लेक हार्स’, ‘दूसरा सुदामा’, ‘सरस्वती पुत्र’ जैसी बहुचर्चित लघुकथाएं शामिल हैं, जो हिंदी में मानक लघुकथा की भांति प्रस्तुत की जाती हैं।    
     बलराम अग्रवाल ने जगदीश कश्यप के साथ ही लघुकथा में प्रवेश किया और समर्पित भाव से उसे समृद्ध करने में जुटे रहे। लघुकथा आंदोलन से जुड़े दूसरे लेखकों की भांति उन्होंने भी रचनात्मक और आलोचनात्मक लेखन की दुहरी जिम्मेदारी को संभाला। उनकी लघुकथाओं में विषय बहुलता है। आजादी के बाद के हिंदी समाज के अंतर्विरोधों तथा सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल को उन्होंने एक जिम्मेदार लेखक की तरह उठाया है। इस संकलन में सम्मिलित उनकी ग्यारह लघुकथाओं में ‘बिना नाल का घोड़ा’, ‘लगाव, ‘भरोसा’ जैसी आम आदमी की जद्दोजहद और सामाजिक उथल-पुथल को दर्शाती हुई लघुकथाएं हैं। इनमें ‘लगाव’ का विषेश उल्लेख मुझे जरूरी लगता है। इसलिए कि हिंदी में ऐसी लघुकथाएं बहुत कम हैं। कहानी में ‘बाबूजी’ बेटा-बहू के साथ रहते हैं, दोनों उनका पूरा ध्यान रखते हैं। मनसद पर लेटे देख दर्द के अनुमान मात्र से बहू अपने पति से ‘मूव’ लाने को कह देती है. ऐसे ‘केयरिंग’ बेटा-बहू के रहते हुए बाबूजी व्यथित रहते हैं। यह व्यथा पत्नी का साथ छूट जाने की है। दिवंगत पत्नी की स्मृति को सहेजने के लिए वे मनसद को छाती से लगाए रखते हैं। कहानी दर्शाती है कि ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ के अलावा भी व्यक्ति की कुछ आवश्यकताएं होती हैं। मनुष्य यदि अकेलापन अनुभव करने लगे तो सुख-सुविधा के बाकी साधन उसको वांछित तसल्ली नहीं दे पाते। शायद इसीलिए अरस्तु द्वारा दी गई परिभाषा, ‘मनुष्य विवेकवान प्राणी है’- में आज तक कोई बदलाव संभव नहीं हो सका। समाज मनुष्य का विवेक और जरूरत है, यह अरस्तु की परिभाषा दर्शाती है; और यह कहानी भी। लेखक का काम पाठक के अकेलेपन को भरना ही नहीं, उन स्थितियों को भी उजागर करना है, जो उसके अकेलेपन का सबब बनती हैं। इस लघुकथा में इसे बाखूबी देखा जा सकता है।
     यहां डॉ. शकुंतला किरण के लेख से संदर्भ लेना प्रासंगिक समझता हूं। वह इसलिए कि हिंदी लघुकथा में आज जो बिखराब या द्रृष्टिभ्रम की स्थिति है, वह कहीं न कहीं आलोचकीय दिशाहीनता से भी प्रेरित है। डॉ. किरण ‘भाषागत सादगी, सहजता और स्वाभाविकता’ को लघुकथा की शिल्पगत विशेषता मानती हैं. उनके अनुसार ‘व्याकरण सम्मत चमत्कारिकता व पांडित्य प्रदर्षन से रहित जनसामान्य दैनिक जीवन में बोलचाल की सहज, स्वाभाविक सीधी-सादी भाषा ही लघुकथा में मिलती है। जो कथ्यगत पात्रों के अनुरूप ही चुटीली, पैनी, व्यंग्यात्मक, आंचलिक अथवा सपाट हो जाती है।’ यह अपने आप में विरोधाभासी है। उनकी अगली टिप्पणी और भी चौंकानेवाली है, ‘‘लघुकथा छापामार कला है, यह ‘चोट करो और भाग जाओ’ वाली नीति को उजागर करती है।’’ जो विधा ‘सादगी, सहजता और स्वाभाविकता’ को अपना भाषायी गुण मानती हो, वह छापामार कला हो ही नहीं सकती। लघुकथा को लघ्वाकार रखने और उसे सार्थक समापन देने के लिए जितनी मेहनत लघुकथाकार को करनी पड़ती है, उतनी शायद कहानीकार और उपन्यासकार को नहीं। यह काम ‘चोट करो और भाग निकलो’ वाली शैली में संभव नहीं है। हिंदी लघुकथा में जो चुटुकलेबाजी है, उसके पीछे समीक्षा के ये घटिया मापदंड भी हैं। इस विरोधाभास के सूत्र हम लघुकथा आंदोलन के समय की पड़ताल में खोज सकते हैं। आजादी के बाद ही हिंदी में विधाओं के अस्मितावादी आंदोलन शुरू हो चुके थे। जिन दिनों लघुकथा आंदोलन अपने शिखर पर था, व्यंग्य अपनी पहचान बना चुका था। बदले समाजार्थिक परिवेश तथा राजनीतिक क्षरण पर सटीक, चुटीली शैली के कारण परसाई, जोशी जैसे व्यंग्यकार पर्याप्त ख्याति बटोर चुके थे। इसका प्रभाव लघुकथाकारों पर भी पड़ा. व्यंग्य की बढ़ती प्रतिष्ठा से प्रेरित होकर कुछ व्यंग्यकारों ने लघुकथा को ‘लघु व्यंग्य’ कहना आरंभ किया तो कुछ वक्रोक्ति, विदग्धता, कटाक्ष, तंज आदि को जो व्यंग्य के लक्षण हैं- लघुकथा की विशेषता मानने लगे। परिणामस्वरूप ऐसी लघुकथाओं की बाढ़-सी आ गई जिनमें आक्रोश की प्रधानता हो।
     लघुकथा आखिर कहानी की उपधारा है। व्यंग्य उसकी शैली हो सकती है, विषेशता नहीं। इस तथ्य पर न तो लघुकथाकारों ने ज्यादा ध्यान दिया, न ही समीक्षकों ने। चूंकि लघुकथा अपनी शब्द-सीमा से भी बंधी थी, इसलिए व्यंग्य की प्रहारात्मकता रचना को झन्नाटेदार समापन देने में मददगार बनी। लेखक को सुभीता था कि जब उसको लगे कि रचना लघु कलेवर से बाहर आने को है- एक समापन-प्रहार देकर चलता बने। छापामार शैली जिसकी ओर डॉ. किरण ने संकेत किया है, यही है। लेकिन इससे रचना अपनी स्वाभाविकता खो देती है। ‘लगाव’ की विषेशता है कि वह अपनी सहजता और कहानीपन को अंत तक बनाए रखती है और एक संपूर्ण रचना होने का एहसास दिलाती है। अकेलेपन की मनोस्थिति पर अशोक भाटिया की एक लघुकथा मुझे अक्सर याद आती है। उसमें होली पर रंगियारों से बचने के लिए एक सद्गृहस्थ खुद को घर में बंद कर लेते हैं। धीरे-धीरे लोग भी उनकी ओर से उदासीन हो जाते हैं। तब उन्हें अपना अकेलापन कचोटने लगता है और वे अपने ही हाथों से गुलाल चेहरे पर मल लेते हैं। आपसी सौहार्द, मानवीय संवेदना और अपनत्व की रक्षा के लिए ‘लगाव’ जैसी लघुकथाएं अपेक्षित हैं।
    ‘लगाव’ की भावभूमि को विस्तार देती संग्रह में भगीरथ की लघुकथा है- ‘सोते वक्त’। मानो ‘लगाव’ के बूढ़े की स्मृति-यात्रा हो। भगीरथ की लघुकथाओं पर विस्तृत, गवेषणात्मक टिप्पणी उमेश महादोषी की है। इस लघुकथा पर वे लिखते हैं- ‘बूढ़े और बूढ़ी के बीच बुढ़ापे में प्रेम की अनुभूति इतनी गहरी है कि वे एक-दूसरे के न रहने की कल्पना से ही दहशत में आ जाते हैं। पीड़ा और प्रेम की यह मिली-जुली गहन अनुभूति इसे एक सार्वकालिक रचना बना देती है।’ भगीरथ ने लघुकथाओं का लंबा सफर तय किया है। समीक्षा और रचनात्मक लेखन में उनका योगदान भी कम नहीं है। वे ‘लघुकथा के भगीरथ हैं...उन कुछ प्रमुख साहित्यकारों में सम्मिलित हैं, जिनके संयुक्त सृजनात्मक एवं संरचनात्मक प्रयासों का परिणाम है कि लघुकथा आज कथा साहित्य के केंद्र में विद्यमान है।’’ युगलजी इस संकलन में शामिल लघुकथाकारों में संभवतः सबसे वरिष्ठ हैं। लघुकथा के क्षेत्र में उन्होंने देर से कदम रखा। अब तक उनके पांच लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। संग्रह में सम्मिलित लघुकथाओं में ‘नामांतरण’ और ‘औरत’ बेहतरीन रचनाएं हैं। बकौल शैलेंद्र कुमार शर्मा, ‘युगलजी की निगाहें कथित आधुनिक सभ्यता में मानवमूल्यों के क्षरण पर निरंतर बनी रही हैं। ....उनकी लघुकथाएं सर्वव्यापी सांप्रदायिकता पर तीखा प्रहार करती हैं.... उनके यहां पूर्वांचल की स्थानीयता का चटख रंग यहां-वहां उभरता हुआ दिखाई पड़ता है।’ 
     हिंदी लघुकथा को समर्पित लेखकों की सूची बनाई जाए तो उसमें सुकेश साहनी का नाम शीर्ष की ओर रहेगा। वे वरिष्ठतम हिंदी लघुकथाकारों में से हैं। उन्होंने एक बार इस विधा का हाथ थामा तो अभी तक उससे जुड़े हुए हैं। विधा-विशेष के प्रति इतना समर्पण, इतनी निष्ठा और उल्लास विरलों में ही दिखाई पड़ता है। फंतासी में मानवीय सरोकार बुनने की कला में वे सिद्धहस्त हैं। उनकी लघुकथाओं में कई बार तो इतना महीन व्यंग्य होता है कि उसको पकड़ पाना कठिन हो जाता है। ‘लघुकथा की प्रभावशीलता के लिए व्यंग्य, ध्वनि या व्यंजना को वे पहचानते हैं और उसका भली प्रकार इस्तेमाल करने में कुशल हैं। अतिरंजना और फंेटेसी का उन जैसा सटीक प्रयोग करना हर किसी के बस की बात नहीं।’ (ऋषभदेव शर्मा)। यह अतिरंजना उनकी लघुकथा ‘गोश्त की गंध’ में अति की सीमा पार करती नजर आती है। इसे पढ़कर देह झनझना उठती है। उनकी रचनाओं में घटनाएं बहुत तेजी से घटती हैं। यही त्वरा उनकी कहानियों को विशिष्ट बनाती ह।, ‘कथाभाषा के गठन में सुकेश जहां सहजता और प्रतीकात्मकता को मुहावरेदानी और आमफहम भाषा के सहारे एक साथ साधते हैं, वहीं सटीक विशेषणों, उपमानों और विवरणों के सहारे अभिव्यंजना को सौंदर्यपूर्ण भी बनाते हैं।’ (प्रो. शेलेंद्र कुमार) 
     कुल मिलाकर ‘पड़ाव और पड़ताल’ जहां लघुकथाकारों के लिए एक कसौटी का निर्माण करता है, वहीं यह लघुकथा के लिए भी नए प्रतिमान गढ़ने का काम करता है। यह जरूरी पुस्तकमाला है। जिसे चलते रहना चाहिए। लेकिन एक संशोधन के साथ कि पुस्तकमाला की किसी कड़ी का संपादक उसमें लेखक के रूप में सम्मिलित न हो। उसके संपादन का दायित्व उससे पहले या बाद की कड़ी के संपादक को मिलना चाहिए।

पड़ाव और पड़ताल, खंड-दो : लघुकथा संकलन। संपादन :  डॉ. बलराम अग्रवाल। प्रकाशन : दिशा प्रकाशन, 138/3, त्रिनगर, दिल्ली-110035। मूल्य : रु. 350/- मात्र। संस्करण : 2014।

  • जी-571, अभिधा, गोविंदपुरम्, गाजियाबाद-201013(उप्र)

गतिविधियाँ

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 07-08,  मार्च-अप्रैल 2014 


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विश्व पुस्तक मेले में ‘पड़ाव और पड़ताल’ का विमोचन

     
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फेस बुक - लघुकथा साहित्य 
इस बार दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में दिशा प्रकाशन के स्टाल पर लघुकथा के अनूठे संकलन ‘पड़ाव और पड़ताल’ के दो खण्डों का विमोचन किया गया। ‘पड़ाव और पड़ताल’ दिशा प्रकाशन के संचालक/निदेशक एवं सुप्रसिद्ध कथाकार श्री मधुदीप द्वारा लघुकथा पर आरम्भ की गई एक अनूठी संकलन श्रंखला है। संकलन के प्रत्येक खण्ड में छः-छः प्रतिनिधि लघुकथाकारों की 11-11 लघुकथाएं संकलित की जा रही हैं। प्रत्येक लघुकथाकार की लघुकथाओं पर एक-एक

समीक्षक की समालोचनात्मक समीक्षा तथा अन्त में किसी अन्य समीक्षक द्वारा समस्त
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फेस बुक - लघुकथा साहित्य
66 लघुकथाओं पर आधारित एक समग्र समालोचनत्मक आलेख शामिल किया गया है। इस पुस्तक के फिलहाल दो खण्ड प्रकाशित हुए हैं तथा कई अन्य खण्ड शीघ्र प्रकाशनाधीन हैं। पहले खण्ड का संपादन स्वयं श्री मधुदीप जी ने किया है। जबकि दूसरे खण्ड का संपादन सुप्रसिद्ध लघुकथाकार एवं समालोचक डॉ. बलराम अग्रवाल ने किया है। विमोचन समारोह में दोनों खण्डों के संपादकों के साथ अनेक साहित्यकार एवं गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
{समाचार प्रस्तुति : उमेश महादोषी}


संसद भवन में आचार्य तुलसी जन्मशताब्दी समारोह 

पर चर्चा

अल्पसंख्यक बहुसंख्यक की राजनीति घातक : मुनि राकेशकुमार

नई दिल्ली, 18 फरवरी 2014। संसद में एक ओर तेलंगाना मुद्दे पर गर्मागर्म बहस छिड़ी हुई थी तो दूसरी ओर भारतीय संत परम्परा के शीर्षस्थ संतपुरुष आचार्य तुलसी के अवदानों की चर्चा को लेकर लोकतंत्र को एक नई दिशा देने के प्रयास किये जा रहे थे। संसद भवन में भाजपा के कार्यालय में करीब पन्द्रह सांसदों की उपस्थिति में आचार्य तुलसी जन्मशताब्दी समारोह पर चर्चा को लेकर आचार्य श्री महाश्रमण के शिष्य मुनिश्री राकेशकुमारजी की सन्निधि में देश के सम्मुख उपस्थित समस्याओं को लेकर सकारात्मक चर्चा का वातावरण बना। 
     लोकसभा में विपक्षी नेता श्रीमती सुषमा स्वराज ने कहा कि वर्तमान में देश जिन
जटिल परिस्थितियों से जूझ रहा है, इन हालातों में शांति एवं अहिंसा जैसे मूल्यों की स्थापना जरूरी है। उन्नत व्यवहार से जीवन को बदला जा सकता है और इसके लिए आचार्य श्री तुलसी द्वारा प्रारंभ किया गया अणुव्रत आंदोलन और उसकी आचार-संहिता जीवन-निर्माण का सशक्त माध्यम है।
राज्यसभा में विपक्ष के उपनेता श्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि अणुव्रत आंदोलन के द्वारा लोकतंत्र को सशक्त करने की दृष्टि से किए जा रहे इन प्रयत्नों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्होंने आगे कहा कि आचार्य श्री महाश्रमण आध्यात्मिक शक्ति के साथ संपूर्ण राश्ट्र में शांति व भाईचारे का संदेश फैला रहे हैं। मौजूदा माहौल में अणुव्रत आंदोलन समाज में शांति एवं सौहार्द स्थापित करने के साथ लोकतांत्रिक मूल्यों को जन-जन में स्थापित करने का सशक्त माध्यम है। श्री प्रसाद ने संसद में नई सरकार के गठन के बाद यदि भाजपा की सरकार बनती है तो आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी का एक भव्य आयोजन करने का आश्वासन दिया। 
   
 मुनि राकेशकुमार ने अपने विशेष उद्बोधन में अणुव्रत आंदोलन की संपूर्ण जानकारी प्रदत्त करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति में दायित्व और कर्तव्यबोध जागे, तभी लोकतंत्र को सशक्त किया जा सकता है। सांप्रदायिक हिंसा, कटुता एवं नफरत के जटिल माहौल में अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से शांति एवं अमन-चैन कायम करने के लिए प्रयास हो रहे हैं। यही वक्त है जब राष्ट्रीय एकता को संगठित किया जाना जरूरी है। हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा जैन समाज को अल्पसंख्यक का दर्जा दिये जाने के मुद्दे पर अपने विचार व्यक्त करते हुए मुनि राकेशकुमारजी ने कहा कि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की राजनीति देश के लिए घातक है। राष्ट्रीयता के आधार पर वह हर व्यक्ति हिन्दू है जिसे हिन्दुस्तान की नागरिकता प्राप्त है और जिसकी मातृभूमि हिन्दुस्तान है। जाति व धर्म के आधार पर इंसान को बांटने की नहीं जोड़ने की जरूरत है। ऐसे ही विचारों को आचार्य तुलसी ने बल दिया था। मुनिश्री सुधाकरकुमार ने आचार्य तुलसी के द्वारा साम्प्रदायिक सौहार्द, राष्ट्रीय एकता एवं समतामूलक समाज की स्थापना के लिए किये गये प्रयत्नों की चर्चा करते हुए कहा कि पंजाब समस्या हो या संसदीय अवरोध, भाषा का विवाद हो या साम्प्रदायिक झगड़े हर मोर्चे पर उन्होंने देश को संगठित करने का प्रयत्न किया। प्रारंभ में मुनिश्री दीपकुमार ने अणुव्रत गीत का गायन किया। 
    इस अवसर पर श्री अर्जुन मेघवाल, श्री पीयूष गोयल, श्री दिलीप गांधी, श्री अविनाश खन्ना, श्रीमती विमला कश्यप, श्री पाण्डेया जी, श्री जयप्रकाश नारायण सिंह, श्री वीरेन्द्र कश्यप, ज्योति धुर्वे, श्री संजय पासवान, पूर्व सांसद श्री संघप्रिय गौतम, पूर्व सांसद डॉ॰ महेश शर्मा, पूर्व सांसद श्री प्रदीप गांधी, अनुसेया आदि अनेक सांसद उपस्थित थे। समारोह में अणुव्रत के शीर्षस्थ कार्यकर्ता श्री मांगीलाल सेठिया, श्री पदमचंद जैन, तेरापंथी सभा के महामंत्री श्री सुखराज सेठिया, अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास के प्रधान ट्रस्टी श्री संपत नाहटा, अणुव्रत लेखक मंच के संयोजक श्री ललित गर्ग, श्री रमेश कांडपाल, श्री महेन्द्र मेहता, भाजपा कार्यालय के सचिव श्री वी॰ एस॰ नाथन आदि ने भी अपने विचार रखे। (समाचार प्रस्तुति: ललित गर्ग, मीडिया प्रभारी: जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा, अणुव्रत भवन, 210,  दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली-110002, मो॰ 98110511330) 


व्यंग्यकार समाज की अव्यवस्था पर ध्यान दिलाता है 

 डॉ. सतीश दुबे

      श्री श्रीसाहित्य सभा द्वारा आयोजित समारोह में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार, लघुकथाकार मालवी बोली के श्री रमेशचन्द्र पंडित की दो पुस्तकों का विमोचन सम्पन्न हुआ। डॉ. शिव चौरसिया की अध्यक्षता में संपन्न कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्री सत्यनारायण सत्तन तथा विशिष्ट अतिथि व चर्चाकार के रूप में डॉ. सतीश दुबे, सूर्यकांत नागर, अनिल त्रिवेदी उपस्थित थे। पार्श्वगायक श्री शिवकुमार पाठक द्वारा संगीतमय सरस्वती वंदना से आरम्भ इस आयोजन का संचालन कवि चकोर चतुर्वेदी ने किया। इस अवसर पर रमेश चन्द्र पंडित ने अपने वक्तव्य के साथ मालवी संग्रह ‘पईसा को झाड़’ से एक लघुकथा तथा डॉ. दीपा व्यास ने व्यंग्य संग्रह ‘सवाल नाक का’ से एक व्यंग्य का पाठ किया। सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सतीश दुबे ने व्यंग्य एवं व्यंग्यकार की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए अपने वक्तव्य में कहा- ‘‘व्यंग्यकार समाज की अव्यवस्था पर ध्यान दिलाता है।’’
    गौतम आश्रम, सुदामा नगर, इन्दौर में आयोजित इस समारोह में संस्था के अनेक पदाधिकारियों अशोक कानूनगो, जगदीश पचौरी, जयश्री व्यास, वीणा जोशी, उयाा दुबे आदि ने अतिथियों का ससम्मान स्वागत किया। हिन्दी परिवार के पदाधिकारियों तथा नगर के कई साहित्यकारों सहित जावरा के श्री सतीश श्रोत्रिय ने श्री रमेश चन्द्र पंडित का स्वागत किया।  अन्त में श्री धर्मेन्द्र पंडित ने सभी का आभार च्यक्त किया। (समाचार प्रस्तुति: निर्लेश तिवारी, प्रचार मंत्री, श्री श्रीसाहित्य सभा, इन्दौर)



सब को साथ लेकर चलने से ही हिंदी का विकास होगा  

: ए. के. माथुर

     “हिंदी के अध्ययन के लिए अपने बच्चों का प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और हिंदी के क्षेत्र में जो लोग काम करते हैं उन को हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आगे आना चाहिए। हिंदी का विकास तभी संभव है जब हम सब को एक साथ लेकर आगे बढ़ें”, केन्द्रीय हिंदी निदेशालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली एवं पूर्वाेत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग के संयुक्त तत्वावधान में गत दिनांक 8 मार्च को स्थानीय केन्द्रीय हिंदी संस्थान के प्रेक्षा गृह में “मेघालय में हिंदी-अध्ययन एवं अध्यापन” विषय पर आयोजित एक दिवसीय हिंदी संगोष्ठी में अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री ए. के. माथुर, भारतीय पुलिस सेवा, निदेशक,
उत्तर-पूर्वी पुलिस अकादमी रिभोई ने कहा कि यदि हिंदी को इस क्षेत्र में लाना है तो हिंदी का प्रयोग अधिक से अधिक करना होगा। श्री माथुर ने कहा कि जिस प्रकार हम अंग्रेजी के लिए कठोर हैं उसी प्रकार हमें हिंदी के लिए भी कठोर बनना होगा। हमें त्रुटिपूर्ण भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। जिस तरह एक आदर्श पुरुष या महिला का महत्व है उसी तरह आदर्श हिंदी का भी महत्व है। हमें हिंदी के शब्दकोश को और आसान बनाने की आवश्यकता है। श्री माथुर ने सुझाव दिया कि पूर्वाेत्तर में कार्यरत हिंदी के शिक्षकों को उनके कार्य के अनुसार सम्मानित किया जाना चाहिए। हिंदी शिक्षकों का एक संगठन हो और उसके द्वारा शिक्षकों का सम्मान हो ताकि उनका उत्साह बढ़े। संगोष्ठियों के माध्यम से ज्ञान चर्चा हो और खेल खेल में हिंदी को सिखाया जाये। हिंदी की कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया जाए। आवश्यकता इस बात की है कि इस क्षेत्र के लोगों को हिंदी की विशेषता बताई जाए और स्थानीय साहित्य का अनुवाद हिंदी में किया जाए ताकि स्थानीय जनता मुख्यधारा से जुड़ सके।
साहित्य के माध्यम से ही यहाँ के लोगों को देश के अन्य क्षेत्रों से अवगत कराया जा सकता है। लोगों को एक रुचिकर माध्यम देना होगा और हमारे लिए कोई रास्ता नहीं निकालेगा, रास्ता हमें स्वयं बनाना है।
    इस संगोष्ठी की मुख्य अतिथि श्रीमती पुष्पारानी वर्मा, उपायुक्त नवोदय विद्यालय समिति, शिलांग संभाग ने इस अवसर पर अपना उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी उत्तर और दक्षिण, पूरब और पश्चिम को जोड़ने वाली भाषा है। हिंदी के माध्यम से देश को और मजबूत बनाया जा सकता है। एक राष्ट्रभाषा से हमारी संस्कृति एक होगी और हमारा राष्ट्र दृढ़ होगा। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में प्रांतीय भाषाओं की हानि नहीं, वरन् लाभ है। प्रत्येक भाषा की अपनी संस्कृति होती है, जिसके विस्तार के साथ उस भाषा का भी विस्तार संभव है। नवोदय विद्यालय समिति के विभिन्न विद्यालयों में हिंदी के विस्तार की चर्चा करते हुए श्रीमती वर्मा ने कहा कि हम हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कृतसंकल्प हैं। हमारा यह दायित्व है कि हम हिंदी का विस्तार करें।
    मुख्य वक्ता डा. अवनीन्द्र कुमार सिंह ने अपने आलेख के माध्यम से बताया कि
मेघालय में हिंदी का अध्ययन एवं अध्यापन राज्य के गठन के पश्चात् से ही किया जा रहा। शिक्षक और शिक्षार्थी की स्थिति वैसे ही है जैसे एक लंगड़े और अंधे की होती है और बीच में सयानी सरकार है। जिसका अर्थ है शिक्षा जैसी चल रही वैसे चलने दो। मेघालय में हिंदी पढ़ाए या संपर्क भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाए, व्याकरण पढ़ाए या व्यवहारिक व्याकरण पढ़ाए जिसका प्रयोग दैनिक व संपर्क भाषा के रूप में कर सके ताकि छात्र संदर्भगत नियम समझकर हिंदी भाषा का शुद्ध एवं परिमार्जित भाषा अपना सके।
     श्री जानमोहम्मद अंसारी ने अपने आलेख में कहा कि पूर्वाेत्तर भारत में 86 जवाहर नवोदय विद्यालयों में छात्रों को शिक्षा दी जा रही है। भारत के इस भू-भाग में हिंदी द्वितीय भाषा पर अनिवार्य भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। हिंदी के शिक्षकों की स्थिति पूर्वाेत्तर में दयनीय है, इस कारण भी हिंदी भाषा विकास नहीं हो पा रहा है। श्री जानमोहम्मद ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि हिंदी भाषा को हिंदू धर्म से जोड़कर देखा जाता है। अभिभावक यह समझते हैं कि हिंदी पढ़ने से उनका बच्चा हिंदी बन जाएगा। इस भू-भाग के बच्चों में यह भावना घर कर गयी है कि हिंदी पढ़कर वे जीविकोपार्जन नहीं कर सकते हैं। हिंदी भाषा के माध्यम से सफलता की सीढ़ियाँ नहीं चढ़ी जा सकती है। श्री अंसारी ने अपने आलेख में कहा कि यहाँ हिंदीतर भाषी विद्यार्थियों में उच्चारण की कमी पायी जाती है। हिंदी भाषा की उपयोगिता को दर्शाकर इस क्षेत्र में एक संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का
विकास किया जा सकता है।
     डा. अनीता पंडा ने अपने आलेख में कहा कि भाषा की शुद्धता पूर्वाेत्तर राज्यों में हिंदी पठन-पाठन की सबसे बड़ी समस्या है। इसमें व्याकरण अपनी अहम् भूमिका निभाता है। इसके लिए कठोर व्याकरणिक नियमों को न थोपकर रोचक उदाहरणों द्वारा समझाना चाहिए। इसके लिए प्रशिक्षित हिंदी शिक्षकों की आवश्यकता से इंकार नहीं किया जा सकता है। पूर्वाेत्तर भारत में हिंदी शिक्षण एवं हिंदी शिक्षकों के प्रति उदासीनता इसके प्रसार में एक बड़ी बाधक है, खासतौर पर मेघालय में। इसके बावजूद हिंदी अध्ययन में छात्रों की रुचि बढ़ी है। राज्य सरकारों का पाठ्यक्रम में हिंदी विषय सम्मिलित करना सुखद अनुभूति है। संपर्क भाषा के रूप में भी यहाँ हिंदी अपने पाँव तेजी से पसार रही है। डा. पंडा ने सुझाव दिया कि पूर्वाेत्तर राज्यों में हिंदी शिक्षम को सुगम तथा रुचिकर बनाने के लिए हम दार दृष्टिकोण अपनाएं।
     पावरग्रिड कार्पाेरेशन लिमिटेड के उप प्रबंधक श्री उत्पल शर्मा ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी भाषा को अत्यंत रुचिकर बनाना चाहिए। उनहोंने माना कि पूर्वाेत्तर भारत में मीडिया के माध्यम से हिंदी का खूब प्रचार हुआ है और आगे भी होगा। अपने कार्यालय में हिंदी की स्थिति की चर्चा करते हुए कहा कि उनके कार्यालय में सभी
कर्मचारी एवं अधिकारी हिंदी में ही अपना हस्ताक्षर करते हैं और फाइल वर्क भी हिंदी में अधिक से अधिक किया जाता है। व्याकरण के कारण हो रही अशुद्धि का जिक्र करते हुए श्री शर्मा ने कहा कि व्याकरण पर थोड़ा ध्यान कम दिया जाना चाहिए क्योंकि हम लोग हिंदीतर भाषी हैं और हमें व्याकरण की बारीकियों को समझने में मुश्किल होती है। कर्ता के चिह्नों का प्रयोग भी हमारे लिए कठिन लगता है।
     डा. अरुणा कुमारी उपाध्याय ने कहा कि पूर्वाेत्तर भारत के हिंदी के पाठ्यक्रमों में स्थानीय विषयों को शामिल करना आवश्यक है जिससे छात्रों की रुचि बढ़े। यहाँ की लोककथाओं, कहानियों, निबंधों आदि को हिंदी के पाठ्यपुस्तकों में स्थान दिये जाने से विद्यार्थी मन लगाकर अध्ययन करेगा। हिंदी की शिक्षा अनिवार्य किये जाने पर बल देते हुए डा. उपाध्याय ने कहा कि मैट्रिक तक हिंदी को अनिवार्य विषय के रूप में अध्ययन की सुविधा दी जानी चाहिए। डा. अरुणा ने हिंदी के शिक्षकों की स्थिति पर भी चर्चा की और उन्हें निराश न होकर कार्य करने के लिए आग्रह किया।    
     श्रीमती शिलबी पासाह खासी भाषी विद्यार्थियों की कठिनाइयों की चर्चा करते हुए कहा कि इन कठिनाइयों के बावजूद खासे छात्र हिंदी सीख रहे हैं और रुचि भी ले रहे हैं। वे अब जान गये हैं कि हिंदी के बिना उनका काम नहीं चलेगा। मेघालय से बाहर जाने पर हिंदी में ही बात करनी पड़ती है। मेघालय में हिंदी गाने काफी लोकप्रिय हैं। मोबाइल और नेट के जरिए बच्चे हिंदी सीखने में सफल हो रहे हैं। हमें निराश होने की कतई आवश्यकता नहीं है। हिंदी का विकास पूर्वाेत्तर में हो रहा और आगे भी होगा।
    इस अवसर पर श्री राम बुझावन सिंह, सूर्य प्रसाद अधिकारी, दीपांकर, गीता लिम्बू, रूवी सिन्हा, दीक्षा जैन, दीपा शर्मा, विशाल केसी, आशा पुरकायस्थ, रफीक अली. डा. शिप्रा बासु, शोभा गुप्ता, नीता शर्मा, पत्रकार श्री सतीस चन्द्र झा कुमार, सपन भोआल आदि गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। इस संगोष्ठी का शुभारंभ पूर्वाेत्तर हिंदी अकादमी के अध्यक्ष श्री बिमल बजाज के स्वागत भाषण से हुआ। अपने स्वागत भाषण में श्री बजाज ने अकादमी का परिचय दिया और इसकी गतिविधियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अकादमी सिर्फ मेघालय में ही नहीं बल्कि मिजोरम, सिक्किम, असम, नागालैण्ड आदि राज्यों में भी हिंदी का प्रचार प्रसार करने के लिए अपने सदस्यों को लेकर जा रही है। अन्य राज्यों में भी अकादमी के प्रयास जारी हैं। इस संगोष्ठी का संचालन डा. अरुणा कुमारी उपाध्याय और अकादमी के सचिव डा. अकेलाभाइ ने किया। डा. अकेलाभाइ ने अपने धन्यवाद ज्ञापन में बताया कि आज की इस संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री ए. के. माथुर जी अगले महीने अवकाश प्राप्त कर रहें हैं। इन्होंने अकादमी का पूरा-पूरा सहयोग किया है। इनकी विदाई से अकादमी के सदस्य चिंतित हैं कि आगे का मार्गदर्शक कौन होगा। श्री माथुर जी अकादमी द्वारा आयोजित लगभग प्रत्येक कार्यक्रम में उपस्थित रहा करते थे। अकादमी के लिए श्री माथुर का योगदान एक मार्गदर्शक के रूप नहीं भुलाया जा सकता है। {समाचार प्रस्तुति: डा. अकेलाभाइ, मानद सचिव, पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी, पो. रिन्झा, शिलांग, मेघालय/मोबाइल: 09774286215} 


‘रंग कबीर में बिखरे फागुनी भक्ति के रंग’

इन्दौर। कबीर जन विकास समूह द्वारा आशीष नगर (बंगाली चौराहा) में रंग कबीर शीर्षक के अंतर्गत भक्ति के फागुनी गीतों और काव्य की सुमधुर प्रस्तुति 21 मार्च को की गयी। वरिष्ठ कवि वेद हिमांशु और विजय विश्वकर्मा के विशेष आतिथ्य में संपन्न गीत संगीत और काव्य प्रस्तुतियों के इस अभिनव आयोजन में तारा सिंह डॉडवे मंडली द्वारा प्रस्तुत गीत मथुरा मंदिर में मीरा एकलि खड़ी मोहन आवो तो सरी .... एवं ‘नथ म्हारी दईदो हो सांवरिया म्हारो चन्द्रा बदन मुख सुखो’ ने श्रोताओं को जहां भक्ति रस में सराबोर कर दिया वहीं, उनके फागण आयो रे गीत की ऐसी प्रस्तुति रही की उनकी मंडली का गायन श्रोताओं के समवेत गायन में तब्दील हो गया। 
    सुश्री अंजना सक्सेना के कबीर की छाप वाले गीत ‘झीनी रे चदरिया’ ने जहां श्रोताओं को जहां स्वर माधुर्य से भिगोया वहीं जीवन दर्शन की सूक्ष्म गहराइयों में पहुंचा दिया। गीत संगीत के साथ ही आयोजन में काव्य का अभिनव रंग भी खूब बरसा जिसके सूत्रधार अतिथि कवि वेद हिमांशु, विजय विशकर्मा और विकास गौरव थे। कवियों की इस त्रयी द्वारा प्रस्तुत रचनाओं ने भी आयोजन में खूब समा बांधा। इस अवसर पर कथाकार सत्यनारायण पटेल तथा अजय टिपाणिया भी उपस्थित थे।
    कार्यक्रम का संचालन श्री सुरेश पटेल ने तथा आभार प्रदर्शन श्री छोटेलाल भारती ने किया। (समाचार प्रस्तुति: वेद हिमांशु, द्वारा कबीर जन विकास समूह फोन 0731-3951691/94245-86658)


शिलांग (मेघालय) में नागरी लिपि संगोष्ठी आयोजित

     नागरी लिपि परिषद्, नई दिल्ली एवं पूर्वाेत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग के संयुक्त तत्वावधान में स्थानीय केन्द्रीय हिंदी संस्थान के सेमिनार कक्ष में दिनांक 7 मार्च 2014 को एक दिवसीय नागरी लिपि संगोष्ठी का आयोजन वरिष्ठ पत्रकार शिलांग दर्पण के कार्यकारी संपादक श्री सतीश चन्द्र झा कुमार की अध्यक्षता में किया गया। मुख्य अतिथि एवं मेघालय हिंदी प्रचार परिषद् के सचिव श्री सकलदीप राय ने नागरी लिपि की वैज्ञानिकता का विस्तृत परिचय देते हुए कहा कि देश की एकता के लिए नागरी लिपि का प्रयोग प्रत्येक राष्ट्रभाषा के लिए करना चाहिए। अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री सतीशचन्द्र झा कुमार ने नागरी लिपि की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए इसकी उपयोगिता के विषय में चर्चा की। उन्होंने कहा कि संसार की सभी लिपियों में नागरी लिपि सर्वश्रेष्ठ लिपि है। इसके प्रचार से देश की एकता मजबूत होगी और साहित्य का देशव्यापी विकास संभव होगा।
   अपने विचार प्रकट करते हुए प्रवक्ता केन्द्रीय हिंदी संस्थान, डा. सुनिल कुमार ने कहा कि नागरी लिपि सबसे सक्षम लिपि है। दूसरी लिपियाँ नागरी लिपि की तरह समर्थ नहीं हैं। खासी भाषा के लिए नागरी लिपि बिल्कुल उपयुक्त लिपि है। हमें विश्वास है कि धीरे-धीरे इस लिपि को पूरे पूर्वाेत्तर भारत में अपनाया जाएगा। गोरखा सेकण्डरी स्कूल की शिक्षिका डा. अरुणा कुमारी उपाध्याय ने अपना विचार रखते हुए कहा कि भारत की सभी भाषाओं को यदि नागरी लिपि में भी लिखा जाए तो राष्ट्र की एकता और मजबूत हो सकती है। यहां की प्रचलित बोलियों के लिए भी यह लिपि उपयुक्त है। आवश्यकता है प्रयास करने और इसका उपयोग बढ़ाने की। इस लिपि को सीखने के लिए छात्र आगे आये तो अवश्य सीख सकते हैं।
    सेंट ऑन्थोनी कॉलेज की प्रवक्ता डा. फिल्मिका मारबनियांग अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि खासी भाषा के लिए नागरी लिपि बिल्कुल उपयुक्त है लेकिन चूँकि खाफी पहले से रोमन में यह भाषा लिखी जा रही है इसलिए इस भाषा के लिए नागरी लिपि को अपनाना बहुत मुश्किल है। परंतु जो ध्वनियाँ खासी में प्रयुक्त होती हैं वे सभी ध्वनियाँ नागरी लिपि में मौजूद हैं। हम नागरी लिपि में खासी भाषा को लिखने की शुरुआत कर सकते हैं लेकिन कठिनाई यह है कि जो वरिष्ठ लोग हैं वे नागरी लिपि नहीं जानते हैं। आज की पीढ़ी के लिए यह लिपि आसान हो सकती है। इस पर विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है।
     आर्मी स्कूल के वरिष्ठ शिक्षक डा. अवनिन्द्र कुमार सिंह ने अपने आलेख के माध्यम से बताया कि नागरी लिपि कोई सामान्य लिपि नहीं है। इस लिपि की अपनी एक सांस्कृतिक विरासत है। दुनिया का कोई भी देश देवनागरी लिपि के समकक्ष बैठने की जुगत नहीं कर सकता है। भारत के संविधान की आत्मा ने इसे राजलिपि का सर्वाेच्च स्थान प्रदान किया है। देश की राष्ट्रीय भाषा के साथ इसका प्रत्यक्ष जुड़ाव है। जिस तरह से हिंदी हमारे भारत गणराज्य की धड़कन बनी उसी तरह से यह लिपि भी हमारी धड़कन बनी है। देवनागरी लिपि बारतीय भाषाओं की आदर्श लिपि है। इसकी वैज्ञानिकता स्वयंसिद्ध है। यह कलात्मक है, भाषाविदों द्वारा इसकी वैज्ञानिकता की सूक्ष्म विवेचना की जाती है। अपने आलेख को समाप्त करते हुए डा. सिंह ने कहा कि भाषा और देवनागरी लिपि की प्रकृति संयोगात्मक है, वियोगात्मक नहीं। कोई भी भाषा तभी अच्छी लगती है जब उसकी कोई लिपि हो और विचार तब अच्छे लगते हैं जब कोई लिपि व्यक्त करने में सक्षम हो।  
    जवाहर नवोदय विद्यालय के हिंदी शिक्षक श्रा जानमोहम्मद अंसारी ने अपने आलेख के माध्यम से कहा कि भारत के इस भूभाग में जितनी भाषाएं एवं बोलियां पाई जाती हैं, उन सभी को यदि देवनागरी लिपि में लिखा जाए तो विनोबा भावे की सोच और विश्व लिपि की अवधारणा को एक जमीनी स्तर मिल जाए और अलगाववाद को एक करारा जवाब। इसके लिए सतह पर कार्य करने की आवश्यकता है। श्री अंसारी ने खासी भाषा की चर्चा करते हुए कहा कि मेघालय राज्य में चार पहाड़ी जनजातियों द्वारा बोली जाने वाली खासी भाषा पर मैंने अध्ययन किया तो पाया कि खासी भाषा के लिए सबसे उपयुक्त और प्रासंगिक लिपि सिर्फ देवनागरी ही है। खासी भाषा के अधिकतर शब्द या तो हिंदी से लिए गये हैं या अन्य भारतीय भाषाओं से। अंत में श्री अंसारी ने कहा कि देवनागरी लिपि को खासी भाषा के लिए अपना कर इस भाषा का कल्याम किया जा सकता है।
     आर्मी स्कूल की शिक्षिका डा. अनीता पण्डा ने अपने आलेख के माध्यम से कहा कि नागरी लिपि पूर्णतः वैज्ञानिक एवं पूर्ण संभावनाओं से युक्त लिपि है। हमारे विद्वजनों ने पूरे देश की एकता हेतु समस्त भारतीय भाषाओं और बोलियों को लेकर ही लिपि की कल्पना की थी। इसके लिए सबसे उपयुक्त नागरी लिपि है। इसकी वर्ण माला, उच्चारण आदि की व्यापकता के कारण सभी भारतीय भाषाओं को लिखा जा सकता है। डा. पण्डा ने बताया कि यदि सारी भारतीय भाषाओं को एक ही लिपि में लिखा जाए तो इससे कई लिपियों के बोझ से बचा जा सकता है। सभी भारतीय भाषाओं और बोलियों के लिए नागरी लिपि सर्वथा उपयुक्त है। सारी भारतीय भाषाओं और बोलियों की एक लिपि होना पूरे भारत को एकता के सूत्र में बाँधता है और आपस में सांस्कृतिक एकता को जोड़ता है। हमारी राजभाषा और लिपि ही हमारी अस्मिता है और पहचान भी।
    इस अवसर पर श्री तन्जीम अहमद और श्री जानमोहम्मद अंसारी ने नागरी लिपि पर अपनी अपनी कविताओं का पाठ भी किया। इस संगोष्ठी का सफल संचालन डा. अनीता पण्डा ने किया तथा इसका समापन स्थानीय संयोजक डा. अकेलाभाइ के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। इस अवसर पर श्री रामबुझावन सिंह, श्रीमती आशा पुरकायस्थ, श्री सपन भोवाल, दीक्षा जैन, रुबी सिन्हा, गीता लिम्बू, राजकुमारी राय, शोभा गुप्ता आदि सहित  शिलांग के विभिन्न विद्यालयों के हिंदी शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। {समाचार प्रस्तुति: डा. अकेलाभाइ, सचिव, पूर्वाेत्तर हिंदी अकादमी, पो. रिन्जा, शिलांग, मघालय/ मोबाइल: 09436117260}


प्रेम दत्त मिश्र की दो काव्य पुस्तकों का लोकार्पण

उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र के विख्यात नगर कोसी कलां में प्रेम दत्त मिश्र की दो काव्य पुस्तकों का लोकार्पण हुआ। ये पुस्तकें हैं- ‘बृजराज श्री बलदेव शतक’ और दूसरी ‘मैथली शतक’। दोनों पुस्तके ब्रज भाषा में लिखी गई हैं और छंदोबद्ध रचना है।  
कार्यक्रम कि अध्यक्षता की श्री आर. एन. भारद्वाज ने और मुख्य अथिति डॉ. मनोहर लाल शर्मा एवं डॉ वेद व्यथित विशिष्ट अथिति थे। इस अवसर पर डॉ. मनोहर लाल शर्मा जी ने बलदेव जी के जीवन पर ऐतिहासिक प्रंसगों के माध्यम से
प्रकाश डाला। डॉ वेद व्यथित ने इस अवसर पर बलदेव जी को कृषक व कृषि प्रतिनिधि बताया तथा कहा कि उन के कंधे पर रखा हुआ हल इस बात का प्रतीक है और आज कृषि पर तथा किसान पर ही संकट के बदल छा रहे हैं।  
    इस अवसर पर सूरज प्रकाश बेनीवाल सतीश चन्द्र शर्मा डॉ सतीश शर्मा आदि ने काव्य पाठ भी किया। इस कार्यक्रम का  आयोजन में शिव शक्ति प्रकाशन के डॉ.करण लाल अग्रवाल ने किया। (समाचार सौजन्य : डॉ. वेद व्यथित) 



प्रो. मनु महरबान को राजेन्द्र व्यथित सम्मान
    
विगत दिनों भाषा विज्ञान विभाग पटियाला (पंजाब) में ज्ञानदीप साहित्य साधना मंच द्वारा उत्तर क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र, हिन्दी साहित्य गंगा संस्था जलगांव के सौजन्य एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया गया। इस कवि सम्मेलन में पठानकोट के युवा साहित्यकार, उद्घोषक, रंगकर्मी प्रो.मनु महरबान को राजेन्द्र व्यथित सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान संस्था के अध्यक्ष सागर सूद, प्रतिष्ठित साहित्यकार मोहन मैत्रे, डॉ. प्रियेका सोनी ‘प्रीति’, श्री प्रवीण सूद तथा श्री भगवानदास गुप्ता द्वारा प्रदान किया गया। प्रो. मनु सुप्रसिद्ध शायर श्री राजेन्द नाथ्र रहबर के शिष्य एवं उभरते हुए साहित्यकार हैं। (समाचार सौजन्य: मनु महरबान, पठानकोट)



हिंदीतर प्रदेशों के छात्रों की ‘छात्र अध्ययन यात्रा’ 
     
 भारत सरकार के केन्द्रीय हिंदी निदेशालय की ‘छात्र अध्ययन यात्रा’ योजना के अंतर्गत हिंदीतर प्रदेशों के छात्र उत्तर भारत में अध्ययन के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पधारे। जहां का विश्व विद्यालय की प्रोफेसर पुष्पा रानी ने विश्व विद्यालय कि और से उत्साह पूर्ण स्वागत किया। इस अवसर पर कुरु.वि.वि. के छात्र कल्याण विभाग के अधिष्ठाता प्रोफेसर अनिल वशिष्ठ व कला संकाय के डीन प्रोफेसर आर.एस. भट्टी ने छात्रों को आशीर्वचन देते हुए सम्बोधन किया। हिंदीतर छात्रों के साथ पधारीं अनुसंधान अधिकारी अनुराधा सेंगर ने हिंदी के प्रचार और प्रसार की निदेशालय कि योजनाओं पर प्रकाश डाला। 
    इस कार्यक्रम के शैक्षिक सत्र में साहित्यकार डॉ. वेद व्यथित ने हिंदी भाषा व देवनागरी लिपि की विश्व स्तर पर स्वीकार्यता और लोकप्रियता तथा हिंदी भाषा का अन्य भारतीय भाषाओँ का  तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए बताया कि भरतीय भाषों में कहीं  कोई विरोध नही हैं हिंदी भाषा व अन्य भारतीय भाषायें आपसी सहयोगात्मक संबंधों को ही व्यक्त करतीं हैं। डॉ. शशि धीमान ने इस अवसर पर हिंदी भाषा के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस अवसर विश्व विद्यालय के कई विभागों के डीन, प्रोफेसर, शोध छात्र व स्नातकोत्तर छात्र उत्साह पूर्वक उपस्थित रहे। प्रो. एच. एस. रंधावा प्रो. एम. एम.गोयल, डॉ आनंद दुबे व डॉ. जय प्रकाश गुप्त ने भी छात्रों का मार्गदर्शन किया।  
    दक्षिण भारत से पधारे छात्रों ने कार्यक्रम को रूचिपूर्वक सुना और अपनी प्रस्तुति भी दीं। पूजा डी यू, स्वेता एम राव वाणी कविराज, हिना कौसर स्वाति जाधव, सुधा कमले आदि छात्रों ने बहुत सी हिंदी की समस्याओं का समाधान पूछा। निदेशालय से साथ आये हितेश यादव व अंजू ने छात्रों की समुचित व्यवस्था उत्तरदायित्व पूर्ण रीती से अभिभावकवत् निभाई। अंतिम दिन इन छात्रों ने कुरुक्षेत्र के दर्शनीय स्थलों का अवलोकन किया। इस सम्पूर्ण कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रोफेसर पुष्पा रानी परिश्रम पूर्वक जुटी रहीं। इस अवसर पर उत्तर भारत के छात्रों ने कहा कि इस तरह कि यात्रायें यहाँ के छात्रों के लिए भी आयोजित की जानी चाहिए। {समाचार सौजन्य :  डॉ. वेद व्यथित)} 



शिवशंकर यजुर्वेदी को साहित्य गौरव
    


           बरेली से प्रकाशित लघु पत्रिका ‘गीत प्रिया’ के सम्पादक एवं कवि श्री शिवशंकर यजुर्वेदी को सहारनपुर की संस्था ‘विभावरी’ द्वारा ‘विभावरी साहित्य-गौरव सम्मान’ सम्मानित किया गया। 
       श्री यजुर्वेदी को विभावरी द्धारा यह सम्मान उनके साहित्यिक योगदान के लिए पद्मश्री डॉ. रामनारायण बागले की स्मृति में दिया गया है। (समाचार सौजन्य: शिवशंकर यजुर्वेदी)



शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान 2014 घोषित
     
उज्जैन की साहित्यिक संस्था ‘शब्द प्रवाह साहित्य मंच’ द्वारा आयोजित अखिल भारतीय स्तर पर वर्ष 2014 के लिए दिये जाने वाले सम्मान/पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है। हिन्दी कविता के लिए प्रथम पुरस्कार श्री थम्मनलाल वर्मा (पीलीभीत), द्वितीय पुरस्कार डॉ. तारा सिंह (मुम्बई), किशन स्वरूप (मेरठ), कृष्ण मोहन अम्भोज (पचोर), राजेन्द्र बहादुर सिंह राजन (रायबरेली) व डॉ. अशोक गुलशन (बहराइच) को संयुक्त रूप से तथा तृतीय पुरस्कार राहुल वर्मा (इन्दौर), शिवमंगल सिंह ‘मंगल’ (लखनऊ), घमंडी लाल अग्रवाल (गुड़गाँव), सुरजीतमान जलईया सिंह (आगरा) व डॉ. रमेश कटारिया पारस को संयुक्त रूप से दिये गए हैं। सर्वश्री करुण प्रकाश सक्सेना (विययपुर), सतीश चन्द्र शर्मा (मैनपुरी), नीलत मैदीरता (गुड़गाँव), डॉ.सारिका मुकेश (बैल्लूर), शोभा रानी तिवारी (इंदौर) व प्रोमिला भारद्वाज (मंडी) को सांत्वना पुरस्कार प्रदान किये गए हैं।
     हिन्दी लघुकथा के लिए प्रथम पुरस्कार कमलचन्द वर्मा (महू) को, द्वितीय पुरस्कार डॉ. नरेन्द्र नाथ लाहा (ग्वालियर), ज्योति जैन (इंदौर) व रंजना फतेपुरकर (इंदौर) को सुयुक्त रूप से, तृतीय पुरस्कार दिलीप भाटिया (रावतभाटा), नरेन्द्र कुमार गौड़ (गुड़गाँव) व गोपाल कृष्ण आकुल को संयुक्त रूप से तथा प्रोत्साहन पुरस्कार डॉ. सुषमा अय्यर (सूरत) को दिये गए हैं। व्यंग्य विधा के अन्तर्गत डॉ.हरीश कुमार सिंह (उज्जैन) को प्रथम, श्री देवेन्द्र कुमार मिश्रा को द्वितीय तथा कुश्लेन्द्र श्रीवास्तव को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया है। (समाचार प्रस्तुति :  संदीप सृजन, संपादक: शब्द प्रवाह)


कुंवर प्रेमिल सम्मानित
     


        
         जबलपुर की साहित्यिक/सांस्कृतिक संस्था द्वारा साहित्यकार/संपादक कुंवर प्रेमिल को व्यंग्य शिल्पी हरिशंकर परसांई सम्मान से सम्मानित किया गया। 
       एक अन्य संस्था पाथेय साहित्य कला अकादमी जबलपुर द्वारा उन्हें स्व. गिरिजा देवी तिवारी सम्मान 2012 से सम्मानित किया है। सम्मान स्वरूप श्री प्रेमिल को रु.1100/- की नकद राशि, अंग वस्त्र व मोमेन्टो प्रदान किया गया। (समाचार सौजन्य :  कुंवर प्रेमिल)


मोह. मुईनुद्दीन अतहर सम्मानित
    



       विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ भागलपुर द्वारा दिसम्बर 2013 में आयोजित समारोह में साहित्यकार एव ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’ पत्रिका के सम्पादक श्री मोह. मुईनुद्दीन अतहर को ‘विद्यासागर’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है। 
       इसी समारोह में श्री अतहर की दो पुस्तकों- कविता संग्रह ‘काव्य सुमन’ तथा लघुकथा संग्रह ‘मुखौटों के पार’ का विमोचन भी संपन्न हुआ। ज्ञातव्य है कि श्री अतहर की अब तक चौदह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें सात लघुकथा संग्रह हैं। (समाचार सौजन्य: मोह. मुईनुद्दीन अतहर)




स्वर्ण/रजत स्मृति सम्मान की घोषणा
    
हिन्दी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया, बिहार के दो दिवसीय महाधिवेशन फणीश्वर नाथ रेणु स्मृति पर्व 8-9 मार्च 2014 में सम्मानित होने वाले साहित्यकारों की प्रविष्टियों पर चयन समिति के निर्णयानुसार राष्ट्रीय कोटे से ‘काव्य गंधा‘ के लिए त्रिलोक सिंह ठकुरेला (राजस्थान) को रामवली परवाना स्वर्ण स्मृति सम्मान, ‘इंडिया और भारत‘ के लिए देवेन्द्र कुमार मिश्रा (म0प्र0) को फणीश्वरनाथ रेणु रजत स्मृति सम्मान, ‘अपनी माटी‘ के लिए चन्द्रिका ठाकुर देशदीप (झारखंड) को जानकी बल्लभ शास्त्री रजत स्मृति सम्मान, ‘फिर भी कहना शेष रह गया‘ के लिए कृपाशंकर शर्मा अचूक (राजस्थान) को रामधारी सिंह दिनकर रजत स्मृति सम्मान, ‘काव्य चतुरंगिनी‘ के लिए अवधेश कुमार मिश्र (दिल्ली) को पोद्दार रामावतार अरूण रजत स्मृति सम्मान, ‘घरवाली का प्यार‘ के लिए अमित कुमार लाडी (पंजाब) को विधानचन्द्र राय रजत स्मृति सम्मान, बिहार कोटे से ‘क्रांति-गाथा‘ के लिए डॉ. जी.पी. शर्मा (सहरसा) को आरसी प्रसाद सिंह रजत स्मृति सम्मान, ‘वक्त की हथेली में‘ के लिए हातिम जावेद (मोतिहारी) को जितेन्द्र कुमार रजत स्मृति सम्मान, ‘घायल मन‘ के लिए अवधेश्वर प्रसाद सिंह (समस्तीपुर) को रामविलास रजत स्मृति सम्मान, ‘चमत्कार चमचई के‘ के लिए श्रीकान्त व्यास (पटना) को विश्वानंद रजत स्मृति सम्मान एवं ‘भावांजलि‘ के लिए हीरा प्रसाद हरेन्द्र (भागलपुर) को महताब अली रजत स्मृति सम्मान खगड़िया कोटे से ‘सूनी बरसात में‘ के लिए रमण सीही को दुष्यंत कुमार रजत स्मृति सम्मान, ‘विलसवा‘ के लिए डॉ.राजेन्द्र प्रसाद को नागार्जुन रजत स्मृति सम्मान, ‘अनुभव की सौगात‘ के लिए रामदेव पंडित राजा को महादेवी वर्मा रजत स्मृति सम्मान, ‘कौन मेरी पुकार सुनता है‘ के लिए कविता परवाना को अवध बिहारी गुप्ता रजत स्मृति सम्मान एवं ‘जिन्दगी के रंग है कई‘ के लिए कैलाश झा किंकर को सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला रजत स्मृति सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। {समाचार सौजन्य :  नंदेश निर्मल, सचिव, हिन्दी भाषा साहित्य परिषद्, खगड़िया}