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बुधवार, 1 नवंबर 2023

अविराम ब्लॉग का मुखप्रष्ठ

 अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  2023, अंक  : 01, नवम्बर 2023

प्रधान संपादिका : मध्यमा गुप्ता

संपादक :  डॉ. उमेश महादोषी (मोबाइल/व्हाट्सएप्प : 09458929004)
संपादन परामर्श :  डॉ. सुरेश सपन 
ई मेल :  aviramsahityaki@gmail.com 


शुल्क, प्रकाशन आदि संबंधी इस ब्लॉग के ‘अविराम का प्रकाशन’लेवल/खंड में दी गयी जानकारी मार्च 2023 से निरस्त कर दी गयी है।

छायाचित्र : उमेश महादोषी





 ।।सामग्री।।

कृपया सम्बंधित सामग्री के पृष्ठ पर जाने के लिए स्तम्भ के साथ कोष्ठक में दिए लिंक पर क्लिक करें।



अविराम विस्तारित : 

लघुकथाएँ {कथा प्रवाह 2} : इस अंक में सर्वश्री राजकुमार निजात (एकता में शक्ति), सदानंद कवीश्वर (दुम हिलाने का फायदा), सुरेश सौरभ (बेवफा हवाएँ), विजयानंद विजय (आँख खुली) एवं सुश्री कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा’ (अन्धों में काना राजा) की लघुकथाएँ।

अन्य स्तम्भ, जिनमें इस बार नई पोस्ट नहीं लगाई गई है। इन पर पुरानी पोस्ट पढ़ी जा सकती हैं। 

काव्य रचनाएँ {कविता अनवरत} : 
लघुकथाएँ {कथा प्रवाह} : 
हाइकु व सम्बंधित विधाएँ {हाइकु व सम्बन्धित विधाएँ} :
क्षणिकाएँ {क्षणिकाएँ एवं क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श} : 
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कहानी {कथा कहानी} :
श्रीकृष्ण ‘सरल’ जन्म शताब्दी वर्ष {जन्म शताब्दी वर्ष में श्रीकृष्ण ‘सरल’ का स्मरण:
अविराम के अंक {अविराम के अंक} : 
किताबें {किताबें} :  
गतिविधियाँ {गतिविधियाँ} : 
सम्पादकीय पृष्ठ {सम्पादकीय पृष्ठ}:  
जनक व अन्य सम्बंधित छंद {जनक व अन्य सम्बन्धित छन्द} : 
व्यंग्य रचनाएँ {व्यंग्य वाण} :  
लघुकथा : अगली पीढ़ी  {लघुकथा : अगली पीढ़ी} :
माँ की स्मृतियां {माँ की स्मृतियां} :  
बाल अविराम {बाल अविराम} :
संभावना {संभावना} :  
स्मरण-संस्मरण {स्मरण-संस्मरण} : 
साक्षात्कार {अविराम वार्ता} :  
अविराम विमर्श {अविराम विमर्श} :
लघुकथा विमर्श {लघुकथा विमर्श} : 
हमारे सरोकार {सरोकार} : 
लघु पत्रिकाएँ {लघु पत्रिकाएँ} : 
हमारे युवा {हमारे युवा} :  
अविराम की समीक्षा {अविराम की समीक्षा} : 
अविराम के रचनाकार {अविराम के रचनाकार} :

अविराम विस्तारित

 अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  2023,   अंक  :  01,   नवम्बर 2023,  लघुकथा : 01 


।।कथा प्रवाह 2।।


प्रस्तुति/उमेश महादोषी 

ब्लॉग रूप में अविराम को मित्रों का भरपूर सहयोग मिलने के बावजूद अक्टूबर 2018 के बाद हम अन्य व्यस्तताओं के कारण नियमित नहीं रख सके। अब नवम्बर 2023 से इस ब्लॉग के केवल लघुकथा पृष्ठ (कथा प्रवाह) का पुनः प्रकाशन आरम्भ कर रहे हैं।  इस प्रयास में सर्वप्रथम ’मुहावरों से सज्जित लघुकथाएँ’ शृंखला प्रस्तुत है। इस शृंखला में फिलहाल प्रत्येक माह की पहले दिवस पर पाँच लघुकथाएँ प्रकाशित होंगी। 

      इस अंक में प्रस्तुत हैं सर्वश्री राजकुमार निजात (एकता में शक्ति), सदानंद कवीश्वर (दुम हिलाने का फायदा), सुरेश सौरभ (बेवफा हवाएँ), विजयानंद विजय (आँख खुली) एवं सुश्री कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा’ (अन्धों में काना राजा) की लघुकथाएँ।

 

राजकुमार निजात 




एकता में शक्ति

      आज सारे शहर में यह चर्चा आम थी कि शहर के सबसे बड़े पार्क शिवपुरी में बत्तखों के एक झुंड ने एक शिकारी कुत्ते को चोंच मार-मारकर मार डाला था। जिसने भी यह घटना सुनी वह बत्तखों की एकता में शक्ति की प्रशंसा कर रहा थेा।

      पड़ताल करने पर पता चला कि आवारा कुत्तों ने बत्तखों के इसी झुंड पर कुछ दिन पहले हमला करके एक चूजे को मारकर खा लिया था। अतः बत्तखों का सारा कुनबा इस हिंसक कुत्ते से बेहद दुःखी था। वह अक्सर ताक में रहता और मौका मिलने पर अपना काम कर जाता। 

      गीता में कहा गया है कि यदि कोई बार-बार हिंसा करता है तो उसका उत्तर भी हिंसा के साथ ही देना चाहिए और उसे खत्म कर देना चाहिए। यही जीवन का मूल मंत्र है। हिंसक प्राणी को देर तक कभी माफ नहीं किया जा सकता। जो जैसा करेगा वह वैसा ही भरेगा, यह उक्ति आज चरितार्थ हो गई थी। 

      एकता में शक्ति है और शक्ति में ही शांति है। बिना शक्ति के शांति प्राप्त नहीं की जा सकती। जब बत्तखें अपनी सुरक्षा के लिए हिंसक कुत्ते से लड़ रही थीं तो वहाँ कुछ बच्चों ने अपने मोबाइल में युद्ध का वह दृश्य कैद कर लिया था। वह केवल युद्ध नहीं था। वह अन्याय और जुल्म के खिलाफ एक सबक था जिसे पढ़ाया जाना जरूरी था। जो जैसा करता है वह वैसा ही भरता है।

      उस कुत्ते को मार देने के बाद बत्तखों की पंचायत हुई। 

      बत्तखों के मुखिया ने कहा, ‘‘शांति बिना बलिदान के मिल पाना संभव नहीं है। यदि आप शांति चाहते हैं तो बलिदान के लिए हर वक्त तैयार रहना चाहिए। हर प्राणी को जीने का अधिकार है इसलिए उसे अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए कुछ भी करने का अधिकार भी है।

     दूसरे कुत्तों ने अब उस पार्क की ओर देखना भी बंद कर दिया था।

ईमेल : rajkumarnijaat@gmail.com

अविराम विस्तारित

 अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  2023,   अंक  :  01,   नवम्बर 2023, लघुकथा : 02  


।।कथा प्रवाह 2।।

सदानंद कवीश्वर



दुम हिलाने का फायदा

      हाउसिंग सोसाइटी के बीच बने पार्क में वर्मा जी का भूरे रंग का पालतू कुत्ता और उसका दोस्त काले रंग का गली का कुत्ता दोनों खेल रहे थे। बीच-बीच में वहाँ बने हुए बेंच के पास बैठकर बतिया भी रहे थे। वर्मा जी के कुत्ते ने पूछा, ‘‘और सुनाओ, कालू कैसे हो?’’

      ‘‘बस भूरे, तुम सुनाओ।’’ 

      ‘‘अरे वाह, तुमने मेरा यह बढ़िया नाम रखा है, वैसे भी घर में मुझे चाहे किसी नाम से बुलाते हों, तुम्हारा रखा यह नाम मुझे बहुत पसंद है।’’

      ‘‘अच्छा! पर भूरे, यह बताओ, मैं तुम्हें जब भी देखता हूँ, तुम दुम हिलाते रहते हो, और जो भी दिखता है, उसके पैर चाटने लगते हो, ऐसा क्यों?’’

      ‘‘इसके पीछे एक राज़ है कालू, मैंने एक दिन अपने मालिक को मालकिन से यह कहते सुना था, ‘‘हमारे ऑफिस वाले भाटिया जी का प्रमोशन इस बार भी नहीं हुआ जबकि वे बहुत काम करते हैं। अनुशासन और लगन में भी आगे हैं और वे गुप्ता जी जिन्हें कुछ नहीं आता उनका चार साल में यह दूसरा प्रमोशन हुआ है इस बार।’’

      ‘‘जानते हो, कालू जब मालकिन ने पूछा कि यह तो बड़ी अजीब बात है, जो काम नहीं करता वह फायदे में है... ऐसा क्यों? तो मालिक बोले, ‘‘अरे काम नहीं करता तो क्या उसे दुम हिलाना और पैर चाटना तो अच्छी तरह आता है न?’’ बस, तभी से मैंने भी सोच लिया फायदे में रहना है तो ये दोनों काम...’’

      तभी वर्मा जी के बेटे ने आवाज़ दी और उनका कुत्ता अपने दोस्त कालू को छोड़, दुम हिलाता हुआ लपककर उसकी तरफ दौड़ पड़ा।

ईमेल : kavishwars@gmail.com

अविराम विस्तारित

 अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  2023,   अंक  :  01,   नवम्बर 2023,  लघुकथा : 03 


।।कथा प्रवाह 2।।



सुरेश सौरभ




बेवफा हवाएँ

      ‘‘क्या बात है- इतना उदास, मुँह लटकाये क्यों बैठे हो।’’ पत्नी पति के कंधे पर हाथ रखकर बोली।

      ‘‘यही कि तुम जज हो और मैं एक मामूली चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी। कहीं हमारा आगे तालमेल न बिगड़ जाये।’’

      ‘‘अरे! अरे! तुम आज ऐसा क्यों सोच रहे हो।’’ एक प्यार भरी थपकी देकर पत्नी बोली।

      ‘‘क्योंकि कुछ पिशाची हवाओं ने कई पैसे वाली पत्नियों का साथ उनके पतियों से छुड़ा दिया।’’ 

      ‘‘जब प्रेम सच्चा हो। विश्वास दोनों का पक्का हो, तो कोई भी पिशाची हवा पति-पत्नी को जुदा नहीं कर सकती। भले ही पद-पैसे की चाहे जितनी दीवारें खड़ी हो जाएँ, सब दीवारों, सब बाधाओं को पार करके सच्चा प्रेम, सदा अक्षय रहा है। निष्कलंक रहा है। पर जहाँ प्रेम में छल, फरेब आ जाये, वहाँ चाहे पैसे वाला पति हो या पत्नी; आपस में निर्वाह कभी न होगा। रिश्तों की बेल पैसे से नहीं प्रेम और विश्वास के निर्मल जल से सींची जाती है। तभी वह रिश्तों की बेल, अमर बेल की तरह पुष्पित, पल्लवित और फलित होती है। मेरे पर भरोसा रखो मेरे प्रियतम! हर पीली चीज सोना नहीं होती, हर पत्नी, हर पति बेवका नहीं होते।’’ पत्नी पति के सीने से लगकर भर्राए गले से बोली।

      जमुहाई लेकर पति ने अब राहत की साँस ली और अपना मोबाइल एक ओर सरकाकर सोशल मीडिया के खुले किवाड़ बंद कर लिए।

ईमेल : sureshsaurabhlmp@gmail.com

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  2023,   अंक  :  01,   नवम्बर 2023,  लघुकथा : 04 


।।कथा प्रवाह 2।।


विजयानंद विजय




आँख खुली

      ‘‘एक नम्बर के ठग-लुटेरे हैं ये सब दुकानदार! नारियल, लड्डू, फूल, माला, चुनरी का ही अस्सी-नब्बे रुपया ले लेते हैं? मंदिर और भगवान के सामने बैठकर भी ये लोग कैसे इतनी बेईमानी कर लेते हैं? देखना, भगवान इनका कभी भला नहीं करेंगे।’’ पत्नी मंदिर से लौटते समय गुस्से में बोले जा रही थी।

      ‘‘देखो, पैसे, नारियल, लड्डू, फल, फूल, माला, चुनरी आदि से पूजा नहीं होती। तुम जैसे लोग ही बेमतलब इन दुकानदारों के चंगुल में फँसकर बार-बार इनका शिकार बनते हैं। जो चुनरी और चादर अंदर मंदिर में चढ़ती है, वह बाहर आकर इन्हीं दुकानों से फिर बिक जाती है। यही इनका बिजनेस है, जो धर्म की आड़ में और मंदिरों की छत्रछाया में खूब फल-फूल रहा है। देखो, पूजा मन से होती है। भावना से होती है। श्रद्धा से होती है। अंधभक्ति और अंधविश्वास से नहीं। और इसके लिए मंदिर जाने या तीर्थ करने की कोई आवश्यकता नहीं है।’’ पति ने पत्नी को पूजा का सही अर्थ समझाने की कोशिश की।

      ‘‘हूँ...। ठीक कहते हो।’’ पत्नी ने पूजा-पाठ के मुद्दे पर आज पहली बार उसकी राय से सहमति जताई थी।

      ‘‘आखिर आँख तो खुली मैडम की!’’ पति आँखें चौड़ी करते हुए मन-ही-मन बुदबुदाया।

ईमेल : vijayanandsingh62@gmail.com

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  2023,   अंक  :  01,   नवम्बर 2023,  लघुकथा : 05 


।।कथा प्रवाह 2।। 


कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा’                        




अन्धों में काना राजा

      ‘‘जब तक दृष्टिहीन कक्षा के नये सर दिल्ली से नहीं आ जाते, तब तक उस कक्षा को सँभालने का उत्तरदायित्व आपको सौंपा जाता है।’’ प्रिंसिपल ने बुलाकर मुझसे कहा।

      ‘‘सुनकर मैं हतप्रभ रह गयी। तेजी से क्षीण होती जा रही दृष्टि के कारण ब्रेल लिपि सीखने के लिए मैंने इस मूक-बधिर-अन्ध विद्यालय में प्रवेश लिया था। अब टीचर की भूमिका भी निभाने लगी।

      ‘‘मैं कहानी-क़िस्से सुनाकर उन दृष्टिहीन छात्रों का मनोरंजन करने के अलावा ऐसे प्रेरणादायक क़िस्से भी सुनाती, जो हौसला बढ़ाते हैं। मैं उनके दिमाग़ में यह कूट-कूटकर भरने लगी कि अभाव में रहकर और किसी का मुँह न ताकते हुए भी वे ज़िंदगी में सफल हो सकते हैं, अगर अपने आत्मविश्वास को डिगने न दें और अपनी कमजोरी को ताकत बना लें।

      अब दृष्टिहीन छात्र बेहिचक विद्यालय के मूक-बधिर छात्रों के बारे में भी मुझसे जानकारियाँ लेने लगे। इस कारण उनके मध्य वे दूरियाँ भी कम होती चली गईं, जो दृष्टिहीनता के कारण स्थायी हो गईं थीं।

      इस तरह और कोई कहे या ना कहे, पर यह कहावत मेरे अपने ऊपर ही चरितार्थ हो गई- ‘अन्धों में काना राजा।’

ईमेल :  komalwadhwaniprerna@gmail.com