अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 2023, अंक : 01, नवम्बर 2023, लघुकथा : 03
।।कथा प्रवाह 2।।
सुरेश सौरभ
बेवफा हवाएँ
‘‘क्या बात है- इतना उदास, मुँह लटकाये क्यों बैठे हो।’’ पत्नी पति के कंधे पर हाथ रखकर बोली।
‘‘यही कि तुम जज हो और मैं एक मामूली चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी। कहीं हमारा आगे तालमेल न बिगड़ जाये।’’
‘‘अरे! अरे! तुम आज ऐसा क्यों सोच रहे हो।’’ एक प्यार भरी थपकी देकर पत्नी बोली।
‘‘क्योंकि कुछ पिशाची हवाओं ने कई पैसे वाली पत्नियों का साथ उनके पतियों से छुड़ा दिया।’’
‘‘जब प्रेम सच्चा हो। विश्वास दोनों का पक्का हो, तो कोई भी पिशाची हवा पति-पत्नी को जुदा नहीं कर सकती। भले ही पद-पैसे की चाहे जितनी दीवारें खड़ी हो जाएँ, सब दीवारों, सब बाधाओं को पार करके सच्चा प्रेम, सदा अक्षय रहा है। निष्कलंक रहा है। पर जहाँ प्रेम में छल, फरेब आ जाये, वहाँ चाहे पैसे वाला पति हो या पत्नी; आपस में निर्वाह कभी न होगा। रिश्तों की बेल पैसे से नहीं प्रेम और विश्वास के निर्मल जल से सींची जाती है। तभी वह रिश्तों की बेल, अमर बेल की तरह पुष्पित, पल्लवित और फलित होती है। मेरे पर भरोसा रखो मेरे प्रियतम! हर पीली चीज सोना नहीं होती, हर पत्नी, हर पति बेवका नहीं होते।’’ पत्नी पति के सीने से लगकर भर्राए गले से बोली।
जमुहाई लेकर पति ने अब राहत की साँस ली और अपना मोबाइल एक ओर सरकाकर सोशल मीडिया के खुले किवाड़ बंद कर लिए।
ईमेल : sureshsaurabhlmp@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें