अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 1, सितम्बर 2012
।।जनक छन्द।।
सामग्री : इस बार डॉ. ब्रह्मजीत गौतम के जंक छंद।
डॉ. ब्रह्मजीत गौतम
पाँच जनक छन्द
1.
बादल सा दानी नहीं
सींच-सींच कर सृष्टि को
खाली हो जाता यहीं।
2.
जलता सकल समाज है
आरक्षण की आग में
हुई कोढ़ में खाज है।
3.
पत्थर बोला स्तम्भ से
तू मुझ पर ही है खड़ा
इतराता क्यों दम्भ से।
4.
यह संसद आगार है
धक्का-मुक्की, शोर-गुल
ज्यों सब्जी बाज़ार है।
5.
जड़ता का न प्रभाव है
नित नूतनता प्रकृति में
उसका सतत स्वभाव है।
।।जनक छन्द।।
सामग्री : इस बार डॉ. ब्रह्मजीत गौतम के जंक छंद।
डॉ. ब्रह्मजीत गौतम
पाँच जनक छन्द
1.
बादल सा दानी नहीं
सींच-सींच कर सृष्टि को
खाली हो जाता यहीं।
2.
जलता सकल समाज है
आरक्षण की आग में
हुई कोढ़ में खाज है।
3.
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल |
तू मुझ पर ही है खड़ा
इतराता क्यों दम्भ से।
4.
यह संसद आगार है
धक्का-मुक्की, शोर-गुल
ज्यों सब्जी बाज़ार है।
5.
जड़ता का न प्रभाव है
नित नूतनता प्रकृति में
उसका सतत स्वभाव है।
- बी-85, मिनाल रेजीडेंसी, जे.के. रोड, भोपाल-462023(म.प्र.)
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